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ऐकीपिट्रीडाए

सूची ऐकीपिट्रीडाए

ऐकीपिट्रीडाए (Accipitridae) पक्षियों के ऐकीपिट्रीफ़ोर्मीस गण के चार कुलों में से एक है। इसमें छोटे से बड़े आकार की अंकुशाकार चोंच रखने वाली कई जातियाँ हैं। महाश्येन (ईगल), चील, बाज़ और पूर्वजगत गिद्ध इस कुल के सदस्य हैं। .

6 संबंधों: चील, ऐकीपिट्रीडाए, ऐकीपिट्रीफ़ोर्मीस, फ़ैल्कोनीडाए, बाज़, महाश्येन

चील

चील, श्येन कुल, फैमिली फैलकोनिडी (Family falconidae), का बहुत परिचित पक्षी है, जिसकी कई जातियाँ संसार के प्राय: सभी देशों में फैली हुई हैं। इनमें काली चील (Black kite), ब्रह्मनी या खैरी चील (Brahminy kite), ऑल बिल्ड चील (Awl billed kite), ह्विसलिंग चील (Whistling kite) आदि मुख्य हैं। चील लगभग दो फुट लंबी चिड़िया है, जिसकी दुम लंबी ओर दोफंकी रहती है। इसका सारा बदन कलछौंह भूरा होता है, जिसपर गहरे रंग के सेहरे से पड़े रहते हैं। चोंच काली और टाँगें पीली होती हैं। बाज, बहरी आदि शिकारी चिड़ियों से इसके डैने बड़े, टाँगें छोटी और चोंच तथा पंजे कमजोर होते हैं। चील उड़ने में बड़ी दक्ष होती है। बाजार में खाने की चीजों पर बिना किसी से टकराए हुए, यह ऐसी सफाई से झपट्टा मारती है कि देखकर ताज्जुब होता है। यह सर्वभक्षी तथा मुर्दाखोर चिड़िया है, जिससे कोई भी खाने की वस्तु नहीं बचने पाती। ढीठ तो यह इतनी होती है कि कभी कभी बस्ती के बीच के किसी पेड़ पर ही अपना भद्दा सा घोंसला बना लेती है। मादा दो तीन सफेद या राखी के रंग के अंडे देती है, जिनपर कत्थई चित्तियाँ पड़ी रहती हैं। .

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ऐकीपिट्रीडाए

ऐकीपिट्रीडाए (Accipitridae) पक्षियों के ऐकीपिट्रीफ़ोर्मीस गण के चार कुलों में से एक है। इसमें छोटे से बड़े आकार की अंकुशाकार चोंच रखने वाली कई जातियाँ हैं। महाश्येन (ईगल), चील, बाज़ और पूर्वजगत गिद्ध इस कुल के सदस्य हैं। .

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ऐकीपिट्रीफ़ोर्मीस

ऐकीपिट्रीफ़ोर्मीस (Accipitriformes) पक्षियों का एक गण है जिसमें अधिकांश दिवाचर शिकारी पक्षी शामिल हैं, जैसे कि बाज़, महाश्येन (ईगल), चील और गिद्ध। कुल मिलाकर इसमें लगभग २२५ जातियाँ सम्मिलित हैं। .

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फ़ैल्कोनीडाए

फ़ैल्कोनीडाए (Falconidae) शिकारी पक्षियों का एक जीववैज्ञानिक कुल है जिसमें फ़ैल्कोनीनाए (Falconinae) और पोलीबोरिनाए (Polyborinae) के दो उपकुल सम्मिलित हैं। फ़ैल्कोनीनाए में श्येन, केस्ट्रेल और उनसे सम्बन्धित पक्षी आते हैं, जबकि पोलीबोरिनाए में काराकारा और वन श्येन से सम्बन्धित पक्षी शामिल हैं। कुल मिलाकर फ़ैल्कोनीडाए कुल में लगभग ६० जातियाँ सम्मिलित हैं। यह दिवाचरी होते हैं, यानि दिन से समय सक्रीय होते हैं। इनमें और ऐकीपिट्रीडाए गण (मसलन महाश्येन (ईगल), चील, बाज़) के पक्षियों में एक अंतर यह है कि जहाँ ऐकीपिट्रीडाए अपने पंजो से अपने ग्रास को मारते हैं वहाँ फ़ैल्कोनीडाए जातियाँ अपनी चोंच से यह काम करती हैं। .

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बाज़

बाज़ एक शिकारी पक्षी है जो कि गरुड़ से छोटा होता है। इस प्रजाति में दुनिया भर में कई जातियाँ मौजूद हैं और अलग-अलग नामों से जानी जाती हैं। वयस्क बाज़ के पंख पतले तथा मुड़े हुए होते हैं जो उसे तेज़ गति से उड़ने और उसी गति से अपनी दिशा बदलने में सहायता करते हैं। श्रेणी:शिकारी पक्षी श्रेणी:लोक-नामों के अनुसार पक्षी श्रेणी:ऐकीपिट्रीडाए.

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महाश्येन

महाश्येन (ईगल) शिकार करने वाले बड़े आकार के पक्षी हैं। इस पक्षी को ऊँचाई से ही प्रेम है, धरातल से नहीं। यह धरातल की ओर तभी दृष्टिपात करता है, जब इसे कोई शिकार करना होता है। इसकी दृष्टि बड़ी तीव्र होती है और यह धरातल पर विचरण करते हुए अपने शिकार को ऊँचाई से ही देख लेता है। यूरेशिया और अफ्रीका में इसकी साठ से अधिक प्रजातियाँ स्पेसीज (species)पायी जाती हैं। महाश्येन, फैल्कोनिफॉर्मीज़ (Falconiformes) गण, ऐक्सिपिटर (Accipitres) उपगण, फैल्कानिडी (Falconidae) कुल तथा ऐक्विलिनी (Aquilinae) उपकुल के अंतर्गत है। यह उपकुल दो वर्गों में विभाजित है। ये दो वर्ग ऐक्विला स्थल महाश्येन (Aquila Land Eagle) और हैलिई-एटस, जल महाश्येन (Haliaeetus Sea Eagle) हैं। इस श्येन परिवार में लगभग तीन सौ जातियाँ पाई जाती हैं। ये अनेक जातियाँ स्वभाव तथा आकार प्रकार में एक दूसरे से भिन्न होती हैं तथा विश्व भर में पाई जाती हैं। प्राचीन काल से ही यह साहस एवं शक्ति का प्रतीक माना गया है। संभवत इन्हीं कारणों से सभी राष्ट्रों के कवियों ने इसका वर्णन किया है और इसे रूस, जर्मनी, संयुक्त राज्य आदि देशों में राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में माना गया है। भारत में इसे गरुड़ की संज्ञा दी गई है तथा पौराणिक वर्णनों में इसे विष्णु का वाहन कहा गया है। संभवत: तेज गति और वीरता के कारण ही यह विष्णु का वाहन हो सका है। अन्य देशों के भी पौराणिक वर्णनों में इसका वर्णन आता है, जैसे स्कैंडेनेविया में इसे तूफान का देवता माना गया है और यह बताया गया है कि यह देव स्वर्ग लोक के एक छोर पर बैठकर हवा का झोंका पृथ्वी पर फेंकता है। ग्रीसवासियों की, प्राचीन विश्वास के अनुसार, ऐसी धारणा है कि उनके सबसे बड़े देवता, ज़्यूस (Zeus), को इस महाश्येन ने ही सहायतार्थ वज्र प्रदान किया था। भगवान् विष्णु का वाहन होकर भी इस पक्षी की मनोवृत्ति अहिंसक नहीं है। यह मांसभक्षी, अति लोलुप और प्रत्यक्षत: हानि पहुँचानेवाला होता है, तथापि यह उन बहुत से पक्षियों को समाप्त करने में सहायक है, जो कृषि एवं मनुष्यों को हानि पहुँचाते हैं। साथ ही साथ यह हानि पहुँचानेवाले सरीसृप तथा छोटे छोटे स्तनी जीवों को भी समाप्त करता है और इस प्रकार जंतुसंसार का संतुलन बनाए रखता है। .

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