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चर्मपूरण

सूची चर्मपूरण

सफेद भालू का चर्मपूरित शरीर पेरिस के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय में प्रदर्शित चर्मपूरित जानवर चर्मपूरण (Taxidermy) मृत प्राणियों को सुरक्षित रखने तथा उन्हें जीवित सदृश व्यवस्थित कर प्रदर्शित करने की एक विधि है। प्रकृति विज्ञान (Natural History) के संग्रहालयों में प्राय: इस प्रकार के प्राणी, जैसे मछलियों, उरगों, चिड़ियों और स्तनी प्राणियों, जैसे गिलहरी, हिरण, शेर, रीछ, बंदर तथा अन्य जंगली प्राणियों का उनके प्राकृतिक वातावरण में प्रदर्शन किया जाता है। संग्रहालयों के इन प्राणियों को देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि वे मूक जीवित प्राणी हैं। .

3 संबंधों: चमड़ा उद्योग, चर्मशोधन, रेशमी चींटीख़ोर

चमड़ा उद्योग

चमड़े के काम में प्रयोग किये जाने वाले परम्परागत औजार संसार का लगभग 90 प्रतिशत चमड़ा बड़े पशुओं, जैसे गोजातीय पशुओं, एवं भेड़ तथा बकरों की खालों से बनता है, किंतु घोड़ा, सूअर, कंगारू, हिरन, सरीसृप, समुद्री घोड़ा और जलव्याघ्र (seal) की खालें भी न्यूनाधिक रूप में काम में आती हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर, खालें मांस उद्योग की उपजात हैं। यदि वे प्रधान उत्पाद होतीं, ता चमड़ा अत्यधिक महँगा पड़ता। उपजात होने के कारण उनमें कुछ दोष भी प्राय: पाए जाते हैं, जैसे पशुसंवर्धक लोग खाल के सर्वोत्तम भाग, पुठ्ठों को दाग लगाकर बिगाड़ डालते हैं। उनकी असावधानी से कीड़े मकोड़े खाल में छेद कर जाते हैं। उसको छीलने (flaying) या पकाने सुखाने (curing) के समय कीई और दोषों का आना संभव है। .

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चर्मशोधन

गाय के अशोधित चर्म के एक भाग का अनुप्रस्थ काट चर्मशोधन (Tanning) वह प्रक्रिया है जो एक पूयकारी या सड़ने वाली जानवर की खाल को एक टिकाऊ सामग्री यानि चमड़े में बदल देती है। इस प्रक्रिया में टैनिन नाम के एक अम्लीय रसायनिक यौगिक का प्रयोग किया जाता रहा है जिसके नाम पर इस प्रक्रिया का नाम 'टैनिंग' पड़ा। इसको 'चमड़ा कमाना' भी कहते हैं। कमाने की प्रक्रिया के दौरान ही चमड़े को रंगा भी जा सकता है। कमाने से खाल की प्रोटीन संरचना पूरी तरह बदल जाती है और वो फिर कभी वापस अपनी मूल अवस्था यानि कच्ची खाल नहीं बन सकती। चर्मशोधन के कार्य का प्राथमिक चरण है- मृत पशु की खाल प्राप्त करना। इसके पश्चात् ही चर्मशोधन की परम्परागत प्रक्रिया प्रारंभ होती है। सद्द (ताजा) प्राप्त खाल को तीन से चार दिन तक धूप में सूखने के लिए लटका दिया जाता है। उसके बाद पानी से खाल की धुलाई की जाती है। पानी से अच्छी तरह धोने के बाद खाल को चूना मिले हुए पानी में डाल दिया जाता है। चूने को पानी में डालने के लिए सीमेंट की टंकी बनाकर उसमें १:५ अनुपात में चूना और पानी का विलयन बनाया जाता है। तीन चार घंटे तक प्रतिदिन इस विलयन में डालकर चमड़े को अच्छी प्रकार से पानी से भिगोया जाता है। मोरोक्को के एक चर्मशोधक कारखाने का दृष्य .

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रेशमी चींटीख़ोर

रेशमी चींटीख़ोर (silky anteater) या पिग्मी चींटीख़ोर (pygmy anteater) चींटीख़ोर की एक जाति है जो मध्य और दक्षिणी अमेरिका में पाई जाती है। विश्व में इस समय चींटीख़ोरों की जो चार जातियाँ अस्तित्व में हैं उनमें रेशमी चींटीख़ोर का सबसे छोटा आकार है। यह सिर-से-पूँछ तक १७ से २४ सेमी (६.७ से ९.४ इंच) लम्बे, और वज़न में १७५ से ४०० ग्राम के होते हैं। इनके घने, मुलायम और रेशमी बाल होते हैं जिनका रंग पीला या भूरा होता है। साथ ही इनकी आँखे काली और पैरों के तलुवे लाल होते हैं।Miranda, F., Meritt, D.A., Tirira, D.G. & Arteaga, M. (2014).

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चर्म-प्रसाधन, चर्मपूर्ण

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