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चमड़ा उद्योग

सूची चमड़ा उद्योग

चमड़े के काम में प्रयोग किये जाने वाले परम्परागत औजार संसार का लगभग 90 प्रतिशत चमड़ा बड़े पशुओं, जैसे गोजातीय पशुओं, एवं भेड़ तथा बकरों की खालों से बनता है, किंतु घोड़ा, सूअर, कंगारू, हिरन, सरीसृप, समुद्री घोड़ा और जलव्याघ्र (seal) की खालें भी न्यूनाधिक रूप में काम में आती हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर, खालें मांस उद्योग की उपजात हैं। यदि वे प्रधान उत्पाद होतीं, ता चमड़ा अत्यधिक महँगा पड़ता। उपजात होने के कारण उनमें कुछ दोष भी प्राय: पाए जाते हैं, जैसे पशुसंवर्धक लोग खाल के सर्वोत्तम भाग, पुठ्ठों को दाग लगाकर बिगाड़ डालते हैं। उनकी असावधानी से कीड़े मकोड़े खाल में छेद कर जाते हैं। उसको छीलने (flaying) या पकाने सुखाने (curing) के समय कीई और दोषों का आना संभव है। .

8 संबंधों: चमड़ा, चर्मपत्र, चर्मपूरण, चर्मशोधन, बिजनौर, मांस उद्योग, हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय, गंगा प्रदूषण नियंत्रण

चमड़ा

चमड़े के आधुनिक औजारचमड़ा जानवरों की खाल को कमा कर प्राप्त की गयी एक सामग्री है। कमाना या चर्मशोधन एक प्रक्रिया है जो पूयकारी खाल को एक टिकाऊ और विभिन्न प्रयोगों मे आने वाली सामग्री में परिवर्तित कर देती है। चमड़ा बनाने में मुख्यतः गाय और भैंस की खाल का प्रयोग किया जाता है। लकड़ी और चमड़ा ही दो ऐसी सामग्री हैं जो अधिसंख्य प्राचीन तकनीकों का आधार हैं। चमड़ा उद्योग और लोम उद्योग अलग अलग उद्योग हैं और उनकी यह भिन्नता उनके द्वारा प्रयुक्त कच्चे माल के महत्व से पता चलती है। जहां चमड़ा उद्योग का कच्चा माल मांस उद्योग का एक उपोत्पाद है वहीं लोम चर्म उद्योग में लोम की मांस से अधिक महत्वता है। चर्मप्रसाधन भी जानवरों की खालों का इस्तेमाल करता है, लेकिन इसमें आमतौर पर सिर और पीठ का हिस्सा ही प्रयोग में आता है। चर्म और खाल से गोंद और सरेस (जिलेटिन) का उत्पादन भी किया जाता है। .

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चर्मपत्र

सन् १६३८ में महीन चर्मपत्र पर लिखा एक अंग्रेजी संविदा चर्मपत्र (Parchment) बकरी, बछड़ा, भेड़ आदि के चमड़े से निर्मित महीन पदार्थ है। इसका सबसे प्रचलित उपयोग लिखने के लिये हुआ करता था। चर्मपत्र, अन्य चमड़ों से इस मामले में अलग था कि इसको पकाया (टैनिंग) नहीं जाता था किन्तु इसका चूनाकरण अवश्य किया जाता था। इस कारण से यह आर्द्रता के प्रति बहुत संवेदनशील है। .

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चर्मपूरण

सफेद भालू का चर्मपूरित शरीर पेरिस के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय में प्रदर्शित चर्मपूरित जानवर चर्मपूरण (Taxidermy) मृत प्राणियों को सुरक्षित रखने तथा उन्हें जीवित सदृश व्यवस्थित कर प्रदर्शित करने की एक विधि है। प्रकृति विज्ञान (Natural History) के संग्रहालयों में प्राय: इस प्रकार के प्राणी, जैसे मछलियों, उरगों, चिड़ियों और स्तनी प्राणियों, जैसे गिलहरी, हिरण, शेर, रीछ, बंदर तथा अन्य जंगली प्राणियों का उनके प्राकृतिक वातावरण में प्रदर्शन किया जाता है। संग्रहालयों के इन प्राणियों को देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि वे मूक जीवित प्राणी हैं। .

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चर्मशोधन

गाय के अशोधित चर्म के एक भाग का अनुप्रस्थ काट चर्मशोधन (Tanning) वह प्रक्रिया है जो एक पूयकारी या सड़ने वाली जानवर की खाल को एक टिकाऊ सामग्री यानि चमड़े में बदल देती है। इस प्रक्रिया में टैनिन नाम के एक अम्लीय रसायनिक यौगिक का प्रयोग किया जाता रहा है जिसके नाम पर इस प्रक्रिया का नाम 'टैनिंग' पड़ा। इसको 'चमड़ा कमाना' भी कहते हैं। कमाने की प्रक्रिया के दौरान ही चमड़े को रंगा भी जा सकता है। कमाने से खाल की प्रोटीन संरचना पूरी तरह बदल जाती है और वो फिर कभी वापस अपनी मूल अवस्था यानि कच्ची खाल नहीं बन सकती। चर्मशोधन के कार्य का प्राथमिक चरण है- मृत पशु की खाल प्राप्त करना। इसके पश्चात् ही चर्मशोधन की परम्परागत प्रक्रिया प्रारंभ होती है। सद्द (ताजा) प्राप्त खाल को तीन से चार दिन तक धूप में सूखने के लिए लटका दिया जाता है। उसके बाद पानी से खाल की धुलाई की जाती है। पानी से अच्छी तरह धोने के बाद खाल को चूना मिले हुए पानी में डाल दिया जाता है। चूने को पानी में डालने के लिए सीमेंट की टंकी बनाकर उसमें १:५ अनुपात में चूना और पानी का विलयन बनाया जाता है। तीन चार घंटे तक प्रतिदिन इस विलयन में डालकर चमड़े को अच्छी प्रकार से पानी से भिगोया जाता है। मोरोक्को के एक चर्मशोधक कारखाने का दृष्य .

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बिजनौर

बिजनौर भारत के उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। हिमालय की उपत्यका में स्थित बिजनौर को जहाँ एक ओर महाराजा दुष्यन्त, परमप्रतापी सम्राट भरत, परमसंत ऋषि कण्व और महात्मा विदुर की कर्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है, वहीं आर्य जगत के प्रकाश स्तम्भ स्वामी श्रद्धानन्द, अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त वैज्ञानिक डॉ॰ आत्माराम, भारत के प्रथम इंजीनियर राजा ज्वालाप्रसाद आदि की जन्मभूमि होने का सौभाग्य भी प्राप्त है। साहित्य के क्षेत्र में जनपद ने कई महत्त्वपूर्ण मानदंड स्थापित किए हैं। कालिदास का जन्म भले ही कहीं और हुआ हो, किंतु उन्होंने इस जनपद में बहने वाली मालिनी नदी को अपने प्रसिद्ध नाटक 'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' का आधार बनाया। अकबर के नवरत्नों में अबुल फ़जल और फैज़ी का पालन-पोषण बास्टा के पास हुआ। उर्दू साहित्य में भी जनपद बिजनौर का गौरवशाली स्थान रहा है। क़ायम चाँदपुरी को मिर्ज़ा ग़ालिब ने भी उस्ताद शायरों में शामिल किया है। नूर बिजनौरी जैसे विश्वप्रसिद्ध शायर इसी मिट्टी से पैदा हुए। महारनी विक्टोरिया के उस्ताद नवाब शाहमत अली भी मंडावर,बिजनौर के निवासी थे, जिन्होंने महारानी को फ़ारसी की पढ़ाया। संपादकाचार्य पं. रुद्रदत्त शर्मा, बिहारी सतसई की तुलनात्मक समीक्षा लिखने वाले पं. पद्मसिंह शर्मा और हिंदी-ग़ज़लों के शहंशाह दुष्यंत कुमार,विख्यात क्रांतिकारी चौधरी शिवचरण सिंह त्यागी, पैजनियां - भी बिजनौर की धरती की देन हैं। वर्तमान में महेन्‍द्र अश्‍क देश विदेश में उर्दू शायरी के लिए विख्‍यात हैं। धामपुर तहसील के अन्‍तर्गत ग्राम किवाड में पैदा हुए महेन्‍द्र अश्‍क आजकल नजीबाबाद में निवास कर रहे हैं। .

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मांस उद्योग

मांस के उत्पादन, पैकिंग, संरक्षण, तथा विपणन के लिये किये जाने वाले आधुनिक ढंग के औद्योगिक पशुपालन को मांस उद्योग (meat industry) कहते हैं। यह दुग्ध उत्पादन या ऊन उत्पादन से बिल्कुल अलग है। .

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हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय

एचबीटीआई का प्रशासनिक भवन हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय कानपुर उत्तर प्रदेश सरकार का तीसरा प्राविधिक विश्वविद्यालय है। इसके पूर्व इसका नाम था 'हरकोर्ट बटलर तकनीकी संस्थान कानपुर'। विश्वविद्यालय बनने के पूर्व हरकोर्ट बटलर तकनीकी संस्थान कानपुर २५ सितम्बर १९२१ से ३० अगस्त २०१६ तक उत्तर प्रदेश सरकार का सर्वोत्कृष्ट तकनीकी संस्थान रहा। यह भारत के सबसे पुराने प्रौद्योगिकी संस्थानों में एक है। इसे 2016 में विश्वविद्यालय का दर्जा मिला है। इस संस्थान को ISO 9001:2000 प्रमाणपत्र प्राप्त है। यह संस्थान इंजीनियरी विषयों में स्नातक, परास्नातक और शोध डिग्रियाँ देने के अतिरिक्त बिजनेस ऐडमिनिस्ट्रेशन और कम्प्युटर अनुप्रयोग में मास्टर डिग्री प्रदान करता है। .

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गंगा प्रदूषण नियंत्रण

गंगा नदी में होने वाला प्रदूषण पिछले कई सालों से भारतीय सरकार और जनता के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। इस नदी उत्तर भारत की सभ्यता और संस्कृति की सबसे मजबूत आधार है। उत्तर भारत के लगभग सभी प्रमुख शहर और उद्योग करोड़ों लोगों की श्रद्धा की आधार गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे हैं और यही उसके लिए सबसे बड़ा अभिशाप साबित हो रहे हैं। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

चर्म प्रौद्योगिकी, चर्म उद्योग, चर्मोद्योग

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