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कोबाल्ट

सूची कोबाल्ट

कोबाल्ट एक रासायनिक तत्व है और संक्रमण धातु के समूह का सदस्य है। अपने शुद्ध रूप में यह धातु सख़्त, चमकीली और सलेटी-चाँदी रंग की है, लेकिन यह पृथ्वी पर केवल अन्य रासायनिक तत्वों के साथ बने यौगिकों के रूप में ही मिलती है। कुछ मात्रा में यह निकल की तरह पृथ्वी पर उल्काओं में गिरती है और वहीं शुद्ध रूप में देखी जा सकती है। .

28 संबंधों: चुम्बकत्व, चुम्बकीय संतृप्ति, चुम्बकीय क्षेत्र, चुंबकत्व, एसिटिक अम्ल, तत्वों की सूची (नाम अनुसार), पोटैशियम, मिश्र धातुओं की सूची, रासायनिक तत्व, रासायनिक तत्वों की सूची, रासायनिक प्रतीक, रेडियोसक्रियता, लौहचुम्बकत्व, लोहा, समुद्री प्रदूषण, समूह ९ तत्व, संक्रमण धातु, सुहागा-मनका परीक्षण, सूक्ष्म पोषक तत्व, सूक्ष्म पोषकों की सूची, खाद्य पूरक, गंधराल, आवर्त सारणी के नमूने, आक्सिम, कातांगा प्रान्त, कार्बन नैनोट्यूब, कोबाल्ट-६०, अधातु

चुम्बकत्व

भौतिकी में चुम्बकत्व वह प्रक्रिया है, जिसमें एक वस्तु दूसरी वस्तु पर आकर्षण या प्रतिकर्षण बल लगाती है। जो वस्तुएँ यह गुण प्रदर्शित करती हैं, उन्हें चुम्बक कहते हैं। निकल, लोहा, कोबाल्ट एवं उनके मिश्रण आदि सरलता से पहचाने जाने योग्य चुम्बकीय गुण रखते हैं। ज्ञातव्य है कि सब वस्तुएं न्यूनाधिक मात्रा में चुम्बकीय क्षेत्र की उपस्थिति से प्रभावित होती हैं। चुम्बकत्व अन्य रूपों में भी प्रकट होता है, जैसे विद्युतचुम्बकीय तरंग में चुम्बकीय क्षेत्र की उपस्थिति। .

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चुम्बकीय संतृप्ति

9 लोहचुम्बकीय पदार्थों के चुम्बकन वक्र जिनमें चुम्बकीय संतृप्ति स्पष्ट दिखती है: 1. शीट स्टील, 2. सिलिकन स्टील, 3. कास्ट स्टील, 4. टंगस्टन स्टील, 5. मैग्नेट स्टीळ, 6. कास्ट आइरन, 7. निकल, 8. कोबाल्ट, 9. मग्नेटाइट किसी लोहचुम्बकीय पदार्थ बी-एच वक्र तथा पारगम्यता (परमिएबिलिटी) कुछ चुम्बकीय पदार्थों में चुम्बकीय संतृप्ति (Magnetic saturation) का गुण देखने को मिलता है। जब किसी चुम्बकीय पदार्थ पर आरोपित चुम्बकीय क्षेत्र H के बढाने पर भी पदार्थ के अन्दर मौजूद चुम्बकीय फ्लक्स घनत्व (B) लगभग अपरिवर्तित रहता है तो पदार्थ की इस अवस्था को 'चुम्बकीय संतृप्ति' कहते हैं। वास्तव में इस अवस्था में फ्लक्स घनत्व बिल्कुल नियत नहीं होता बल्कि बहुत कम मात्रा में बढता रहता है तथा B में वृद्धि की मात्रा उतनी ही होती है जो निर्वात में उतना ही H बढाने पर होती। चुम्बकीय संतृप्ति का यह गुण लौहचुम्बकीय तथा फेरीचुम्बकीय पदार्थों (जैसे सिलिकॉन स्टील, निकल, कोबाल्ट, और उनकी मिश्रातुओं में देखने को मिलता है। श्रेणी:चुम्बकत्व.

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चुम्बकीय क्षेत्र

किसी चालक में प्रवाहित विद्युत धारा '''I''', उस चालक के चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र '''B''' उत्पन्न करती है। चुंबकीय क्षेत्र विद्युत धाराओं और चुंबकीय सामग्री का चुंबकीय प्रभाव है। किसी भी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र दोनों, दिशा और परिमाण (या शक्ति) द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है; इसलिये यह एक सदिश क्षेत्र है। चुंबकीय क्षेत्र घूमते विद्युत आवेश और मूलकण के आंतरिक चुंबकीय क्षणों द्वारा उत्पादित होता हैं जो एक प्रमात्रा गुण के साथ जुड़ा होता है। 'चुम्बकीय क्षेत्र' शब्द का प्रयोग दो क्षेत्रों के लिये किया जाता है जिनका आपस में निकट सम्बन्ध है, किन्तु दोनों अलग-अलग हैं। इन दो क्षेत्रों को तथा, द्वारा निरूपित किया जाता है। की ईकाई अम्पीयर प्रति मीटर (संकेत: A·m−1 or A/m) है और की ईकाई टेस्ला (प्रतीक: T) है। चुम्बकीय क्षेत्र दो प्रकार से उत्पन्न (स्थापित) किया जा सकता है- (१) गतिमान आवेशों के द्वारा (अर्थात, विद्युत धारा के द्वारा) तथा (२) मूलभूत कणों में निहित चुम्बकीय आघूर्ण के द्वारा विशिष्ट आपेक्षिकता में, विद्युत क्षेत्र और चुम्बकीय क्षेत्र, एक ही वस्तु के दो पक्ष हैं जो परस्पर सम्बन्धित होते हैं। चुम्बकीय क्षेत्र दो रूपों में देखने को मिलता है, (१) स्थायी चुम्बकों द्वारा लोहा, कोबाल्ट आदि से निर्मित वस्तुओं पर लगने वाला बल, तथा (२) मोटर आदि में उत्पन्न बलाघूर्ण जिससे मोटर घूमती है। आधुनिक प्रौद्योगिकी में चुम्बकीय क्षेत्रों का बहुतायत में उपयोग होता है (विशेषतः वैद्युत इंजीनियरी तथा विद्युतचुम्बकत्व में)। धरती का चुम्बकीय क्षेत्र, चुम्बकीय सुई के माध्यम से दिशा ज्ञान कराने में उपयोगी है। विद्युत मोटर और विद्युत जनित्र में चुम्बकीय क्षेत्र का उपयोग होता है। .

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चुंबकत्व

चुंबकत्व प्रायोगिक चुंबकीय क्षेत्र के परमाणु या उप-परमाणु स्तर पर प्रतिक्रिया करने वाले तत्वों का गुण है। उदाहरण के लिए, चुंबकत्व का ज्ञात रूप है जो की लौह चुंबकत्व है, जहां कुछ लौह-चुंबकीय तत्व स्वयं अपना निरंतर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करते रहते हैं। हालांकि, सभी तत्व चुंबकीय क्षेत्र की उपस्थिति से कम या अधिक स्तर तक प्रभावित होते हैं। कुछ चुंबकीय क्षेत्र (अणुचंबकत्व) के प्रति आकर्षित होते हैं; अन्य चुंबकीय क्षेत्र (प्रति-चुंबकत्व) से विकर्षित होते हैं; जब कि दूसरों का प्रायोगिक चुंबकीय क्षेत्र के साथ और अधिक जटिल संबंध होता है। पदार्थ है कि चुंबकीय क्षेत्रों द्वारा नगण्य रूप से प्रभावित पदार्थ ग़ैर-चुंबकीय पदार्थ के रूप में जाने जाते हैं। इनमें शामिल हैं तांबा, एल्यूमिनियम, गैस और प्लास्टिक.

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एसिटिक अम्ल

शुक्ताम्ल (एसिटिक अम्ल) CH3COOH जिसे एथेनोइक अम्ल के नाम से भी जाना जाता है, एक कार्बनिक अम्ल है जिसकी वजह से सिरका में खट्टा स्वाद और तीखी खुशबू आती है। यह इस मामले में एक कमज़ोर अम्ल है कि इसके जलीय विलयन में यह अम्ल केवल आंशिक रूप से विभाजित होता है। शुद्ध, जल रहित एसिटिक अम्ल (ठंडा एसिटिक अम्ल) एक रंगहीन तरल होता है, जो वातावरण (हाइग्रोस्कोपी) से जल सोख लेता है और 16.5 °C (62 °F) पर जमकर एक रंगहीन क्रिस्टलीय ठोस में बदल जाता है। शुद्ध अम्ल और उसका सघन विलयन खतरनाक संक्षारक होते हैं। एसिटिक अम्ल एक सरलतम कार्बोक्जिलिक अम्ल है। ये एक महत्वपूर्ण रासायनिक अभिकर्मक और औद्योगिक रसायन है, जिसे मुख्य रूप से शीतल पेय की बोतलों के लिए पोलिइथाइलीन टेरिफ्थेलेट; फोटोग्राफिक फिल्म के लिए सेलूलोज़ एसिटेट, लकड़ी के गोंद के लिए पोलिविनाइल एसिटेट और सिन्थेटिक फाइबर और कपड़े बनाने के काम में लिया जाता है। घरों में इसके तरल विलयन का उपयोग अक्सर एक डिस्केलिंग एजेंट के तौर पर किया जाता है। खाद्य उद्योग में एसिटिक अम्ल का उपयोग खाद्य संकलनी कोड E260 के तहत एक एसिडिटी नियामक और एक मसाले के तौर पर किया जाता है। एसिटिक अम्ल की वैश्विक मांग क़रीब 6.5 मिलियन टन प्रतिवर्ष (Mt/a) है, जिसमें से क़रीब 1.5 Mt/a प्रतिवर्ष पुनर्प्रयोग या रिसाइक्लिंग द्वारा और शेष पेट्रोरसायन फीडस्टोक्स या जैविक स्रोतों से बनाया जाता है। स्वाभाविक किण्वन द्वारा उत्पादित जलमिश्रित एसिटिक अम्ल को सिरका कहा जाता है। .

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तत्वों की सूची (नाम अनुसार)

नीचे प्रत्येक तत्व के सबसे स्थिर समस्थानिक का तत्व प्रतीक, परमाणु क्रमांक और परमाणु भार का विवरण दिया गया है। साथ ही उनका समूह और आवर्त सारणी मे उनकी स्थिति भी प्रदर्शित है। |-style.

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पोटैशियम

पोटैशियम पोटैशियम (Potassium) एक रासायनिक तत्व है। इसका प्रतीक 'K' है। यह आर्वत सारणी के प्रथम मुख्य समूह का तत्व है। इसके दो स्थिर समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ३९ और ४१) ज्ञात हैं। एक अस्थिर समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ४०) प्रकृति में न्यून मात्रा में पाया जाता है। इनके अतिरिक्त तीन अन्य समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ३८, ४२ और ४३) कृत्रिम रूप से निर्मित हुए हैं। .

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मिश्र धातुओं की सूची

यहाँ विभिन्न तत्वों के मिश्रधातुओं की सूची दी जा रही है। .

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रासायनिक तत्व

रासायनिक तत्वों की आवर्त सारणी रासायनिक तत्व (या केवल तत्व) ऐसे उन शुद्ध पदार्थों को कहते हैं जो केवल एक ही तरह के परमाणुओं से बने होते हैं। या जो ऐसे परमाणुओं से बने होते हैं जिनके नाभिक में समान संख्या में प्रोटॉन होते हैं। सभी रासायनिक पदार्थ तत्वों से ही मिलकर बने होते हैं। हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, आक्सीजन, तथा सिलिकॉन आदि कुछ तत्व हैं। सन २००७ तक कुल ११७ तत्व खोजे या पाये जा चुके हैं जिसमें से ९४ तत्व धरती पर प्राकृतिक रूप से विद्यमान हैं। कृत्रिम नाभिकीय अभिक्रियाओं के परिणामस्वरूप उच्च परमाणु क्रमांक वाले तत्व समय-समय पर खोजे जाते रहे हैं। .

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रासायनिक तत्वों की सूची

नीचे परमाणु क्रमांक के बढते हुए क्रम में रासायनिक तत्वों की सूची दी गयी है। अलग-अलग प्रकार के तत्वों को अलग-अलग रंगों से चिन्हित किया गया है। इस सूची में प्रत्येक तत्व का नाम, उसका रासायनिक प्रतीक, आवर्त सारणी में उसका समूह एवं पिरियड, रासायनिक श्रेणी, तथा परमाणु द्रब्यमान (सबसे स्थायी समस्थानिक का) दिये गये हैं। .

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रासायनिक प्रतीक

रासायनिक तत्वों के नामों के संक्षिप्त रूपों को रासायनिक प्रतीक कहते हैं। उदाहरण के लिये, नीचे एक रासायनिक अभिक्रिया को प्रतीकात्मक रूप में अभिव्यक्त किया गया है। इसमें उ (H) उदजन (हाइड्रोजन) के लिये एवं जा (O) जारक (आक्सीजन) के लिये प्रयुक्त हुई है। तत्वों के विशिष्ट समस्थानिक दिखाने, उनके परमाणु भार दिखाने एवं उनके आयनन की अवस्था या आक्सीकरण अवस्था आदि दिखाने के लिये रासायनिक संकेतों के साथ 'उपलिपि' (सबस्क्रिप्ट) एवं 'अधिकलिपि' (सुपरस्क्रिप्ट) भी जोड़े जाते हैं। .

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रेडियोसक्रियता

अल्फा, बीटा और गामा विकिरण की भेदन क्षमता अलग-अलग होती है। रेडियोसक्रियता (रेडियोऐक्टिविटी / radioactivity) या रेडियोधर्मिता वह प्रकिया होती है जिसमें एक अस्थिर परमाणु अपने नाभिक (न्यूक्लियस) से आयनकारी विकिरण (ionizing radiation) के रूप में ऊर्जा फेंकता है। ऐसे पदार्थ जो स्वयं ही ऐसी ऊर्जा निकालते हों विकिरणशील या रेडियोधर्मी कहलाते हैं। यह विकिरण अल्फा कण (alpha particles), बीटा कण (beta particle), गामा किरण (gamma rays) और इलेक्ट्रॉनों के रूप में होती है। ऐसे पदार्थ जिनकी परमाण्विक नाभी स्थिर नहीं होती और जो निश्चित मात्रा में आवेशित कणों को छोड़ते हैं, रेडियोधर्मी (रेडियोऐक्टिव) कहलाते हैं। .

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लौहचुम्बकत्व

लौहचुंबकत्व (Ferromagnetism) (फेरीचुंबकत्व को मिलाकर) ही वह मूलभूत तरीका है जिससे कुछ पदार्थ (जैसे लोहा) स्थायी चुम्बक बनाते हैं या दूसरे चुम्बकों की ओर आकृष्ट होते हैं। वैसे प्रतिचुम्बकीय (डायामैग्नेटिक) और अनुचुम्बकीय (पैरामैग्नेटिक) पदार्थ भी चुम्बकीय क्षेत्र में आकर्षित या प्रतिकर्षित होते हैं किन्तु इन पर लगने वाला बल इतना कम होता है कि उसे प्रयोगशालाओं के अत्यन्त सुग्राही (सेंस्टिव) उपकरणों द्वारा ही पता लगाया जा सकता है। प्रतिचुम्बकीय और अनुचुम्बकीय पदार्थ स्थायी चुम्बकत्व नहीं दे सकते। कुछ ही पदार्थ लौहचुम्बकत्व का गुण प्रदर्शित करते हैं जिनमें से मुख्य हैं - लोहा, निकल, कोबाल्ट तथा इनकी मिश्रधातुएँ, कुछ रेअर-अर्थ धातुएँ, तथा कुछ सहज रूप में प्राप्त खनिज (जैसे लोडस्टोन / lodestone) आदि। उद्योग एवं आधुनिक प्रौद्योगिकी में लौहचुमबकत्व का बहुत महत्व है। लौहचुम्बकत्व ही अनेकों (लगभग सभी) विद्युत और विद्युतयांत्रिक युक्तियों का आधार है। विद्युतचुम्बक (electromagnets), विद्युत मोटर, विद्युत जनित्र (generators), ट्रांसफॉर्मर, टेप रिकॉर्डर, हार्ड डिस्क आदि सभी का आधार विद्युतचुम्बकीय पदार्थ ही हैं। लौहचुम्बकीय (तथा फेरीचुम्बकीय) पदार्थों का बी-एच वक्र (B-H Curve) एक सीधी रेखा नहीं होती बल्कि एक अरैखिक वक्र होता है जिसकी प्रवणता (स्लोप) चुम्बकीय फ्लक्स के अनुसार अलग-अलग होती है। इसके अलावा इनकी बी-एच वक्र में हिस्टेरिसिस होती है जिसके बिना ये स्थायी चुम्बकत्व का गुण प्रदर्शित नहीं कर सकते थे। इसके अलावा लौहचुम्बकीय पदार्थ एक और विशेष गुण प्रदर्शित करते हैं - उनका ताप एक निश्चित ताप के उपर ले जाने पर उनका लौहचुम्बकीय गुण लुप्त हो जाता है। इस ताप को क्यूरी ताप कहते हैं। .

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लोहा

एलेक्ट्रोलाइटिक लोहा तथा उसका एक घन सेमी का टुकड़ा लोहा या लोह (Iron) आवर्त सारणी के आठवें समूह का पहला तत्व है। धरती के गर्भ में और बाहर मिलाकर यह सर्वाधिक प्राप्य तत्व है (भार के अनुसार)। धरती के गर्भ में यह चौथा सबसे अधिक पाया जाने वाला तत्व है। इसके चार स्थायी समस्थानिक मिलते हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्या 54, 56, 57 और 58 है। लोह के चार रेडियोऐक्टिव समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या 52, 53, 55 और 59) भी ज्ञात हैं, जो कृत्रिम रीति से बनाए गए हैं। लोहे का लैटिन नाम:- फेरस .

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समुद्री प्रदूषण

अक्सर प्रदूषण के कारण ज्यादातर नुकसान को देखा नहीं जा सकता है, जबकि समुद्री प्रदूषण को स्पष्ट किया जा सकता है जैसा कि समुद्र के ऊपर दिखाए गए मलबे को देखा जा सकता है। समुद्री प्रदूषण तब होता है जब रसायन, कण, औद्योगिक, कृषि और रिहायशी कचरा, शोर या आक्रामक जीव महासागर में प्रवेश करते हैं और हानिकारक प्रभाव, या संभवतः हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करते हैं। समुंद्री प्रदूषण के ज्यादातर स्रोत थल आधारित होते हैं। प्रदूषण अक्सर कृषि अपवाह या वायु प्रवाह से पैदा हुए कचरे जैसे अस्पष्ट स्रोतों से होता है। कई सामर्थ्य ज़हरीले रसायन सूक्ष्म कणों से चिपक जाते हैं जिनका सेवन प्लवक और नितल जीवसमूह जन्तु करते हैं, जिनमें से ज्यादातर तलछट या फिल्टर फीडर होते हैं। इस तरह ज़हरीले तत्व समुद्री पदार्थ क्रम में अधिक गाढ़े हो जाते हैं। कई कण, भारी ऑक्सीजन का इस्तेमाल करते हुई रसायनिक प्रक्रिया के ज़रिए मिश्रित होते हैं और इससे खाड़ियां ऑक्सीजन रहित हो जाती हैं। जब कीटनाशक समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में शामिल होते हैं तो वो समुद्री फूड वेब में बहुत जल्दी सोख लिए जाते हैं। एक बार फूड वेब में शामिल होने पर ये कीटनाशक उत्परिवर्तन और बीमारियों को अंजाम दे सकते हैं, जो इंसानों के लिए हानिकारक हो सकते हैं और समूचे फूड वेब के लिए भी.

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समूह ९ तत्व

समूह ९ तत्व (Group 9 element) आवर्त सारणी (पीरियोडिक टेबल) के रासायनिक तत्वों का एक समूह है। यह आवर्त सारणी के डी (d) खण्ड में आता है। इस समूह में कोबाल्ट (Co), रोडियम (Rh), इरीडियम (Ir) और मेइट्नेरियम (Mt) तत्व शामिल हैं। यह सभी संक्रमण धातु हैं। पहले तीन तो प्रकृति में मिलते हैं लेकिन मेइट्नेरियम प्रयोगशाला में बनाया गया एक कृत्रिम तत्व है .

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संक्रमण धातु

परमाणु संख्या २१ से ३०, ३९ से ४८, ५७ से ८० और ८९ से ११२ वाले रासायनिक तत्त्व संक्रमण तत्व (transition elements/ट्राँज़िशन एलिमेंट्स) कहलाते हैं। चूँकि ये सभी तत्त्व धातुएँ हैं, इसलिये इनको संक्रमण धातु भी कहते हैं। इनका यह नाम आवर्त सारणी में उनके स्थान के कारण पड़ा है क्योंकि प्रत्येक पिरियड में इन तत्त्वों के d ऑर्बिटल में इलेक्ट्रान भरते हैं और 'संक्रमण' होता है। आईयूपीएसी (IUPAC) ने इनकी परिभाषा यह दी है- वे तत्त्व जिनका d उपकक्षा अंशतः भरी हो। इस परिभाषा के अनुसार, जस्ता समूह के तत्त्व संक्रमण तत्त्व नहीं हैं क्योंकि उनकी संरचना d10 है। .

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सुहागा-मनका परीक्षण

बर्नर की ज्वाला के विभिन्न भाग: ज्वाला का सम्पूर्ण बाहरी भाग आक्सीकारक होता है जबकि अन्दर वाली ज्वाला का सबसे ऊपरी सिरा अपचायक (रिड्यूसिंग) होता है। सुहागा-मनका परीक्षण (borax bead test या blister test / बोरैक्स बीड टेस्ट) अनेकों प्रकार के मनका-परीक्षणों में से एक है। यह परीक्षण गुणात्मक अकार्बनिक विश्लेषण का परम्परागत अंग है जिसके द्वारा दिये गये नमूने में कुछ धातुओं की उपस्थिति का अनुमान होता है। सन १८१२ में इसे बर्जीलियस ने सुझाया था। Materials Handbook: A Concise Desktop Reference, by François Cardarelli सुहागा परीक्षण के बाद सबसे महत्वपूर्ण मनका-परीक्षण माइक्रोकॉस्मिक साल्ट परीक्षण है। .

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सूक्ष्म पोषक तत्व

सूक्ष्म पोषक तत्व या सूक्ष्मपोषकतत्व वो पोषक तत्व हैं जिनकी आवश्यकता जीवन भर लेकिन, बहुत कम मात्रा में पड़ती है। स्थूल पोषक तत्वों के विपरीत, मानव शरीर द्वारा यह एक बहुत कम मात्रा में लिया जाने वाला आवश्यक खनिज आहार है (आमतौर पर 100 माइक्रोग्राम/दिन से भी कम)। सूक्ष्म पोषक तत्वों में लोहा, कोबाल्ट, क्रोमियम, तांबा, आयोडीन, मैंगनीज, सेलेनियम, जस्ता और मोलिब्डेनम आदि शामिल हैं। (यहां प्रयुक्त "खनिज" भूगोल मे प्रयुक्त खनिज से अलग है)। विटामिन कार्बनिक रसायन होते हैं, जिनका सेवन किसी प्राणी के अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है, पर इसका संश्लेषण प्राणी स्वयं नही कर सकते इसलिए इन्हें, उन्हें अपने आहार से प्राप्त करना पड़ता है। .

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सूक्ष्म पोषकों की सूची

नीचे मानव के सन्दर्भ में सूक्ष्म पोषकों (micronutrients) की सूची दी गयी है। .

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खाद्य पूरक

मानव शरीर के लिए कई प्रकार के खाद्य पूरक होते हैं। इनमें से मुख्य इस प्रकार से हैं:-.

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गंधराल

विभिन्न प्रकार के रोजिन गंधराल या रोज़िन (Rosin), रेजिन का एक ठोस रूप है। रोज़िन और रेज़िन एक पदार्थ नहीं हैं। ये दोनों भिन्न भिन्न पदार्थ है। चीड़ और कुछ अन्य वृक्षों से एक स्राव ओलियो रोज़िन (oleo-resin) प्राप्त होता है। इसमें रोज़िन के साथ साथ तारपीन का तेल रहता है। इसके आसवन से तारपीन का तेल आसुत हो निकल जाता है और असवनपात्र में जो अवशिष्ट अंश रह जाता है, वही गंधराल है। रोज़िन बड़े महत्व की व्यापारिक वस्तु है। कई प्रकार के रोज़िन बाजारों में बिकते हैं। उनके रंग, स्वच्छता, साबुनीकरण मान और मृदुभवन बिंदु एक से नहीं होते। रोजिन, अर्ध-पारदर्शी होता है। इसका रंग पीला से लेकर काला तक कुछ भी हो सकता है। सामान्य ताप पर यह भंगुर (ब्रिटल) है। रोजिन में मुख्यतः विभिन्न प्रकार के गंधराल अम्ल (विशेषतः अबीटिक अम्ल / abietic acid) होते हैं। .

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आवर्त सारणी के नमूने

नमूनों द्वारा प्रदर्शित रासायनिक तत्व, जिन्हें परमाणु अंक से क्रमबद्ध किया गया है। इन रासायनिक तत्वों के बारे में अधिक जानकारी के लिये उनके लेखों पर जायें। .

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आक्सिम

300px ऐलडिहाइडों तथा कीटोनों पर हाइड्रॉक्सिल-ऐमिन की प्रतिक्रिया से जो यौगिक प्राप्त होते हैं उन्हें आक्सिम (Oximes) कहते हैं। ऐलडिहाडो से बने यौगिकों को ऐलडॉक्सिम तथा कीटोनों से बने यौगिक कीटॉक्सिम कहलाते हैं। इनके सूत्र सामने के चित्र में दर्शाए गये हैं। आक्सिम वे रासायनिक यौगिक हैं जिनका सामान्य सूत्र R1R2C.

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कातांगा प्रान्त

कातांगा प्रान्त (फ़्रान्सीसी व अंग्रेज़ी: Katanga) अफ़्रीका के कांगो लोकतान्त्रिक गणराज्य के दक्षिण-पूर्व हिस्से में स्थित एक प्रान्त है।, Barry Sergeant, pp.

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कार्बन नैनोट्यूब

कार्बन नैनोट्यूब का घूर्णन करता यह एनिमेशन उसकी 3 डी संरचना को दर्शाता है। कार्बन नैनोट्यूब (CNTs) एक बेलनाकार नैनोसंरचना वाले कार्बन के एलोट्रोप्स हैं। नैनोट्यूब को 28,000,000:1 तक के लंबाई से व्यास अनुपात के साथ निर्मित किया गया है, जो महत्वपूर्ण रूप से किसी भी अन्य द्रव्य से बड़ा है। इन बेलनाकार कार्बन अणुओं में नवीन गुण हैं जो उन्हें नैनोतकनीक, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्रकाशिकी और पदार्थ विज्ञान के अन्य क्षेत्रों के कई अनुप्रयोगों के साथ-साथ वास्तु क्षेत्र में संभावित रूप से उपयोगी बनाते हैं। वे असाधारण शक्ति और अद्वितीय विद्युत् गुण प्रदर्शित करते हैं और कुशल ताप परिचालक हैं। उनका अंतिम उपयोग, लेकिन, उनकी संभावित विषाक्तता और रासायनिक शोधन की प्रतिक्रिया में उनके गुण परिवर्तन को नियंत्रित करने के द्वारा सीमित हो सकता है। नैनोट्यूब फुलरीन संरचनात्मक परिवार के सदस्य हैं, जिसमें गोलाकार बकिबॉल भी शामिल हैं। एक नैनोट्यूब के छोर को बकिबॉल संरचना के एक गोलार्द्ध के साथ ढका जा सकता है। उनका नाम उनके आकार से लिया गया है, चूंकि एक नैनोट्यूब का व्यास कुछ नैनोमीटर के क्रम में है (एक मानव बाल की चौड़ाई का लगभग 1/50,000 वां हिस्सा), जबकि वे लंबाई में कई मिलीमीटर हो सकते हैं (यथा 2008).

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कोबाल्ट-६०

60Co का γ-किरण वर्णक्रम कोबाल्ट-६० (६०Co) कोबाल्ट का एक समस्थानिक है। ये सबसे अधिक प्रयोग में आने वाले रेडियोधर्मी समस्थानिकों में से है। प्राकृतिक रूप में पाया जाने वाला कोबाल्ट अपनी प्रकृति में स्थायी होता है, लेकिन ६०Co एक मानव-निर्मित रेडियो समस्थानिक है जिसे व्यापारिक प्रयोग के लिए ५९Co के न्यूट्रॉन सक्रियन द्वारा तैयार किया जाता है। इसका अर्धायु काल ५.२७ वर्ष का होता है।। हिन्दुस्तान लाइव। ५ मई २०१० ६०Co ऋणात्मक बीटा क्षय द्वारा स्थिर समस्थानिक निकल-६० (६०Ni) में बदल जाता है। सक्रिय निकल परमाणु १.१७ एवं १.३३ माइक्रोइलेक्ट्रॉनवोल्ट के दो गामा किरणें उत्सर्जित करता है। वैसे कोबाल्ट-६० परमाणु संयंत्रों की क्रिया से बनने वाला एक उपफल होता है। ये कई कामों में उपयोग होता है, जिनमें कैंसर के उपचार से लेकर औद्योगिक रेडियोग्राफी तक आते है। औद्योगिक रेडियोग्राफी में यह किसी भी इमारत के ढांचे में कमी का पता लगाता है। इसके अलावा चिकित्सा संबंधी उपकरणों की स्वच्छता, चिकित्सकीय रेडियोथेरेपी, प्रयोगशाला प्रयोग के रेडियोधर्मी स्रोत, स्मोक डिटेक्टर, रेडियोएक्टिव ट्रेसर्स, फूड और ब्लड इरेडिएशन जैसे कार्यो में भी प्रयोग किया जाता है।। अंतर्मंथन। ६ मई २०१० हालांकि प्रयोग में यह पदार्थ बहुआयामी होता हैं, किन्तु इसको नष्ट करने में कई तरह की समस्याएं आती हैं। भारत की ही तरह संसार भर में कई स्थानों पर इसे कचरे के रूप में बेचे जाने के बाद कई दुर्घटनाएं सामने आयी हैं, जिस कारण इसके संपर्क में आने वाले लोगों का स्वास्थ्य संबंधी कई घातक बीमारियों से साम्ना हुआ है। धातु के डिब्बों में बंद किए जाने के कारण यह अन्य कचरे के साथ मिलकर पुनर्चक्रण संयंत्रों में कई बार गलती से पहुंच जाता है। यदि इसे किसी संयंत्र में बिना पहचाने पिघला दिया जाए तो यह समूचे धातु को विषाक्त कर सकता है। कोबाल्ट-६० जीवित प्राणियों में काफी नुकसान पहुंचाता है। अप्रैल २०१० में दिल्ली में हुई एक दुर्घटना में भी कोबाल्ट-६० धात्विक कचरे में मिला है। इसकी चपेट में आए लोगों को स्वास्थ्य संबंधी गंभीर हानि हुई हैं। मानव शरीर में पहुंचने पर यह यकृत, गुर्दो और हड्डियों को हानि पहुंचाता है। इससे निकलने वाले गामा विकिरण के संपर्क में अधिक देर रहने के कारण कैंसर की आशंका भी बढ़ जाती है। .

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अधातु

अधातु (non-metals) रासायनिक वर्गीकरण में प्रयुक्त होने वाला एक शब्द है। आवर्त सारणी का प्रत्येक तत्व अपने रासायनिक और भौतिक गुणों के आधार पर धातु अथवा अधातु श्रेणी में वर्गीकृत किया जा सकता है। (कुछ तत्व जिनमें दोनों के गुण पाये जाते हैं उन्हें उपधातु (metaloid) की श्रेणी में रखा जाता है।) आवर्त सारणी में ये १४वें (XIV) से लेकर १८वें (XVIII) समूह में दाहिने-ऊपरी कोने में स्थित हैं। इसके अलावा प्रथम समूह में सबसे उपर स्थित उदजन भी अधातु है। हाइड्रोजन के अलावा जारक, प्रांगार, भूयाति, गंधक, भास्वर, हैलोजन, तथा अक्रिय गैसें अधातु मानी जाती हैं। प्रायः आवर्त सारणी के केवल 18 तत्व अधातु की श्रेणी में गिने जाते हैं जबकि धातु की श्रेणी में 80 से भी अधिक तत्व आते हैं। फिर भी पृथ्वी के गर्भ का, वायुमण्डल और जलमण्डल का अधिकांश भाग अधातुएँ ही हैं। जीवों की संरचना में भी अधातुओं का ही अधिकांशता है। .

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