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कठोरता

सूची कठोरता

विकर्स का कठोरतामापी एलास्टोमर पदार्थों के बल-विकृति ग्राफ में हिस्टेरिसिस पायी जाती है (प्रतिबल बढ़ाने पर और घटाने पर ग्राफ अलग-अलग मार्ग से जाता है)। इसे एलास्टिक हिस्टेरिस कहते हैं। प्रतिक्षेप कठोरता (रिबाउण्ड हार्डनेस) का मापन इसी सिद्धान्त पर आधारित है। प्रत्यास्थ पदार्थों में यह हिस्टेरिसिस् नहीं पायी जाती। कठोरता (Hardness) किसी ठोस का वह गुण है जिससे पता चलता है कि उस पर बल लगाने पर उसे स्थायी रूप से विकृत करने की कितनी सम्भावना है। सामान्यतः अधिक कठोर ठोस वह होता है जिसमें अन्तराणविक बल अधिक मजबूत होगा। कठोर पदार्थों के कुछ उदाहरण: सिरामिक (ceramics), कंक्रीट (concrete), कुछ धातुएँ तथा अतिकठोर पदार्थ। 'कठोरता' को मापने के अलग-अलग तरीके हैं.

19 संबंधों: ढलवां लोहा, तल मार्जन, नरम पदार्थ, निवेदिता सेतु, पदार्थों के गुणों की सूची, पन्ना, फ्लोरस्पार, फेराइट, फेल्सपार, मानव दाँत, माक्षिक, साधारण नमक, सिलिकन कार्बाइड, विस्तारात्मक तथा अविस्तारात्मक गुणधर्म, खनिज, कठोरीकरण, क्रिस्टलता, कैल्साइट, उच्चतापसह धातु

ढलवां लोहा

आयरन-सेमेंटाईट मेटा-स्टेबल डायग्राम. ढलवां लोहा (कास्ट आयरन) आम तौर पर धूसर रंग के लोहे को कहा जाता है लेकिन इसके साथ-साथ यह एक बड़े पुंज में लौह अयस्कों का मिश्रण भी है, जो एक गलनक्रांतिक तरीके से ठोस बन जाता है। किसी भी धातु की खंडित सतह को देखकर उसके मिश्र धातु होने का पता लगाया जा सकता है। सफेद ढलवां लोहे का नामकरण इसकी खंडित सफ़ेद सतह के आधार पर किया गया है क्योंकि इसमें कार्बाइड सम्बन्धी अशुद्धियां पाई जाती हैं जिसकी वजह से इसमें सीधी दरार पड़ती है। धूसर ढलवां लोहे का नामकरण इसकी खंडित धूसर सतह के आधार पर किया गया है, इसके खंडित होने का कारण यह है कि ग्रेफाइट की परतें पदार्थ के टूटने के दौरान पड़ने वाली दरार को विक्षेपित कर देती हैं जिससे अनगिनत नई दरारें पड़ने लगती हैं। मिश्र (अयस्क) धातु में पाए जाने वाले पदार्थों के वजन (wt%) में से 95% से भी अधिक लोहा (Fe) होता है जबकि अन्य मुख्य तत्वों में कार्बन (C) और सिलिकॉन (Si) शामिल हैं। ढलवां लोहे में कार्बन की मात्रा 2.1 से 4 wt% होती है। ढलवां लोहे में सिलिकॉन की पर्याप्त राशि, सामान्य रूप से 1 से 3 wt% होती है और इसके फलस्वरूप इन धातुओं को त्रिगुट Fe-C-Si (लोहा-कार्बन-सिलिकन) धातु माना जाना चाहिए। तथापि ढलवां लोहा घनीकरण का सिद्धांत द्विआधारी लोहा-कार्बन चरण आरेख से समझ आता है, जहां गलनक्रांतिक बिंदु और 4.3 wt% कार्बन के 4.3 % वजन (4.3 wt%) पर है। चूंकि ढलवां लोहे की संरचना का अनुमान इस तथ्य से ही लग जता है कि, इसका गलनांक (पिघलने का तापमान) शुद्ध लोहे के गलनांक से लगभग कम है। पिटवां ढलवां लोहे को छोड़कर, बाकि ढलवां लोहे भंगुर होते है। निम्न गलनांक (कम पिघलने वाले तापमान), अच्छी द्रवता, आकार देने की योग्यता, इच्छित आकार देने की उत्कृष्ट योग्यता, विरूपण करने के लिए प्रतिरोध और जीर्ण होने के प्रतिरोध के साथ ढलवां लोहा अनुप्रयोगों की व्यापक श्रेणी के साथ इंजीनियरिंग सामग्री बन गए हैं, पाइप और मशीनों और मोटर वाहन उद्योग के कुछ हिस्सों, जैसे सिलेंडर हेड्स (उपयोग में गिरावट), सिलेंडर ब्लॉक और गियरबॉक्स के डब्बे (केसेज)(उपयोग में गिरावट) में इसका प्रयोग किया जाता है। यह ऑक्सीकरण (जंग) के द्वारा क्षय होने और कमजोर हो जाने में प्रतिरोधी है। .

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तल मार्जन

ताँबे का विद्युतलेपन तल मार्जन (Surface finishing) उन अनेकों प्रकार की औद्योगिक प्रक्रियाओं को कहते हैं जो किसी उत्पाद के सतह को इस प्रकार से बदल देता है जिससे कोई वांछित गुण प्राप्त हो जाय। मार्जन की क्रिया निम्नलिखित गुणों की प्राप्ति के लिये की जा सकती है-.

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नरम पदार्थ

रसायन शास्त्र में नरम पदार्थ (Soft matter) ऐसे संघनित पदार्थ को कहते हैं जो तापमान के दबाव व प्रभाव से आसानी से अपना आकार बदल लें। इस श्रेणी में द्रव (लिक्विड), कलिल (कोलोइड), पॉलीमर, झाग और जैविक पदार्थ शामिल हैं। .

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निवेदिता सेतु

निवेदिता सेतु, (जिसे तीसरी हुगली पुल या दूसरा बाली ब्रिज भी कहा जाता है) पश्चिम बंगाल में कोलकाता महानगर क्षेत्र में हुगली नदी पर निर्मित एक केबल-युक्त पुल है, जो उत्तर हावड़ा के बाली क्षेत्र को बैरकपुर नगर के दक्षिणेश्वर क्षेत्र से जोड़ती है। इसे मुख्यतः दिल्ली और कोलकाता को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग २ को उठाने और काफी पुराने हो चुके विवेकानन्द सेतु के पुनर्स्थापन के रूप में बनाया गया है। यह पुरानी विवेकानंद सेतु के लगभग ५० मीटर नीचे की तरफ चलता है। इस पुल का नाम स्वामी विवेकानंद के शिष्य और नवजागरण काल की सामाजिक कार्यकर्ता सिस्टर निवेदिता के नाम पर रखा गया है। यह दुर्गापुर गतिमार्ग(रारा-२) तथा राष्ट्रीय राजमार्ग-६ और २ के मिलान बिंदु को राष्ट्रीय राजमार्ग-३४,३५, दमदम हवाई अड्डे और उत्तर कोलकाता के अन्य क्षेत्रों से जोड़ने वाले बेलघरिया गतिमार्ग से जोड़ता है। इस पुल को प्रतिदिन ४८,००० वाहनों का बोझ ढोने के लिए डिज़ाइन किया गया है। .

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पदार्थों के गुणों की सूची

कोई विवरण नहीं।

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पन्ना

पन्ना, बेरिल (Be3Al2(SiO3)6) नामक खनिज का एक प्रकार है जो हरे रंग का होता है और जिसे क्रोमियम और कभी-कभी वैनेडियम की मात्रा से पहचाना जाता है।हर्ल्बट, कॉर्नेलियस एस.

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फ्लोरस्पार

नीले फ्लोराइट के क्रिस्टल फ्लोरस्पार (Fluorspar) या फ्लोराइट (Ca F2) हल्के हरे, पीले या बैंगनी रंग में तथा अधिकतर घन आकृति में मिलता है। इसकी चमक काच के समान होती है। कठोरता 4 तथा आपेक्षिक घनत्व 3.2 है। इस खनिज का विशेष गुण है प्रतिदीप्ति (Fluorescence)। कम ताप पर पिघलने के कारण इस खनिज का उपयोग लोह उद्योग में मल को बहाकर निकालने के लिए होता है। विश्व का लगभग तीन प्रतिशत फ्लोराइट चीनी मिट्टी उद्योग में प्रयुक्त होता है। इसके अतिरिक्त फ्लोराइट का उपयोग बहुत से रासायनिक पदार्थ, जैसे हाइड्रोफ्लोरिक एसिड आदि बनाने के काम में होता है। भारत में यद्यपि यह खनिज अल्प मात्रा में बिहार, राजस्थान आदि प्रदेशों की शिलाओं में विद्यमान है, तथापि इसके आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण निक्षेप मध्य प्रदेश में डोंगरगढ़ से 14 मील की दूरी पर है। यहाँ 60 फुट की गहराई तक इस खनिज का भंडार एक लाख टन से अधिक अनुमानित किया गया है। .

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फेराइट

फेराइत के बने स्थायी चुम्बक फेराइट (ferrite) सिरामिक चुम्बकीय पदार्थ हैं। इनकी वैद्युत प्रतिरोधकता (लगभग 10E6 Ohm-m) बहुत अधिक होती है। इस कारण अधिक आवृत्ति पर काम करने वाले ट्रान्सफार्मर एवं प्रेरकत्व (चोक) के निर्माण में इनका उपयोग किया जाता है क्योंकि अधिक प्रतिरोधकता के कारण इनमें भंवर-धारा-हानियाँ बहुत कम होतीं हैं। इनके स्थायी चुम्बक भी बनाये जाते हैं। .

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फेल्सपार

फेल्सपार क्रिस्टल (18×21×8.5 cm) २००५ में फेल्सपार का वैश्विक उत्पादन फेल्सपार (Feldspar) शैलनिर्माणकारी खनिजों का सबसे महत्वपूर्ण वर्ग है। संघटन की दृष्टि से ये खनिज पोटैशियम, सोडियम, कैल्सियम, तथा बेरियम के ऐलुमिनोसिलिकेट हैं। धरती के गर्भ का लगभग ६०% भाग फेल्सपार से बना है। इस वर्ग के मुख्य खनिज निम्नलिखित हैं, जिनमें प्रथम के क्रिस्टल एकनताक्ष तथा शेष के त्रिनताक्ष होते हैं: ऐल्बाइट-ऐनॉर्थाइट संघटक एक खनिज माला का निर्माण करते हैं, जिसे प्लैजिओक्लेस (plagioclase) माला कहते हैं। इस माला के खनिज हैं: ऑलिगोक्लेस (oligoclase), ऐडेज़िन (andesine) लैब्राडोराइट (labrodorite) तथा बाइटोनाइट (bytownite)। इन खनिजों में ऐल्बाइट और ऐनॉर्थाइट संघटकों की भिन्न भिन्न मात्राएँ रहती हैं, उदाहरणार्थ लेब्रैडोराइट खनिज में ऐल्बाइट संघटक की प्रतिशत मात्रा 30 से 50 तथा ऐनॉर्थाइट संघटक की प्रतिशत मात्रा तदनुसार 70 से 50 तक हो सकती है। फेल्सपार खनिज भिन्न भिन्न रंगों में मिलते हैं। ऑर्थोक्लेज़ साधारणत: सफेद या गुलाबी होता है, माइक्रोक्लीन सफेद या हरा तथा प्लैजिओक्लेस सफेद या भूरे रंग के होते हैं तथा इनपर धारियाँ पड़ी रहती हैं। इनकी चमक काचोपम या मोतीसम होती है तथा इनमें दो दिशाओं में विदलन सतह विद्यमान रहती है। इनकी कठोरता 6 से 6.5 तथा आपेक्षिक घनत्व 2.6 से 2.8 तक है। फेल्सपार वर्ग के भिन्न भिन्न खनिजों की उपस्थिति पर ही शैलों का विभाजन किया जाता है। क्वार्ट्ज़ ऑर्थोक्लेज़, ऐल्बाइटयुक्त शैलें अम्लीय तथा ऐनॉर्थाइट युक्त शिलाएँ क्षारीय शैलें कहलाती हैं। ऑर्थोक्लेज, माइक्रोक्लीन और ऐल्बाइट के बहुत से आर्थिक उपयोग भी हैं। इनके संपूर्ण उत्पादन की दो तिहाई मात्रा काच तथा चीनी मिट्टी के उद्योगों में काम आती है। उच्च श्रेणी का पोटाश फेल्सपार विद्युत-अवरोधी पदार्थ तथा बनावटी दाँत बनाने के काम आता है। यद्यपि फेल्सपार सभी शैलों के विद्यमान रहते हैं, तथापि इनके आर्थिक महत्व के निक्षेप पैगमैटाइट शैलों तथा धारियों में मिलते हैं। .

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मानव दाँत

दांत मुंह (या जबड़ों) में स्थित छोटे, सफेद रंग की संरचनाएं हैं जो बहुत से कशेरुक प्राणियों में पाया जाती है। दांत, भोजन को चीरने, चबाने आदि के काम आते हैं। कुछ पशु (विशेषत: मांसभक्षी) शिकार करने एवं रक्षा करने के लिये भी दांतों का उपयोग करते हैं। दांतों की जड़ें मसूड़ों से ढ़की होतीं हैं। दांत, अस्थियों (हड्डी) के नहीं बने होते बल्कि ये अलग-अलग घनत्व व कठोरता के ऊतकों से बने होते हैं। मानव मुखड़े की सुंदरता बहुत कुछ दंत या दाँत पंक्ति पर निर्भर रहती है। मुँह खोलते ही 'वरदंत की पंगति कुंद कली' सी खिल जाती है, मानो 'दामिनि दमक गई हो' या 'मोतिन माल अमोलन' की बिखर गई हो। दाड़िम सी दंतपक्तियाँ सौंदर्य का साधन मात्र नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लिये भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। .

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माक्षिक

माक्षिक माक्षिक या पाइराइट (Pyrite) एक खनिज है जो लौह और गंधक का यौगिक (Fe S2) है। इसे 'मूर्खों का सोना' (fool's gold) भी कहते हैं। इसमें लौह की मात्रा ४६.६ प्रतिशत रहती है। लौह खनिज होते हुए भी पाइराइट का उपयोग लौह उद्योग में नहीं होता, क्योंकि इसमें विद्यमान गंधक की मात्रा लोहे के लिए बड़ी हानिकारक होती है। पाइराइट का महत्व इस खनिज से उपलब्ध गंध के कारण है। गंधक से गंधक का अम्ल तैयार किया जाता है, जो वर्तमान युग के उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण रसायन है। .

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साधारण नमक

नमक (Common Salt) से साधारणतया भोजन में प्रयुक्त होने वाले नमक का बोध होता है। रासायनिक दृष्टि से यह सोडियम क्लोराइड (NaCl) है जिसका क्रिस्टल पारदर्शक एवं घनाकार होता है। शुद्ध नमक रंगहीन होता है, किंतु लोहमय अपद्रव्यों के कारण इसका रंग पीला या लाल हो जाता है। समुद्र के खारापन के लिये उसमें मुख्यत: सोडियम क्लोराइड की उपस्थिति कारण होती है। भौमिकी में लवण को हैलाइट (Halite) कहते हैं। .

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सिलिकन कार्बाइड

सिलिकॉन कार्बाइड सिलिकन कार्बाइड (Silicon Carbide, SiC) अथवा कार्बोरंडम (Carborundum), सिलिकन तथा कार्बन का यौगिक है। इसकी खोज सन् 1891 में एडवर्ड ऑचेसन (Edward Acheson) ने की थी। .

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विस्तारात्मक तथा अविस्तारात्मक गुणधर्म

पदार्थों के भौतिक गुणों को प्रायः दो भागों में विभाजित किया जाता है - .

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खनिज

विभिन्न प्रकार के खनिज खनिज ऐसे भौतिक पदार्थ हैं जो खान से खोद कर निकाले जाते हैं। कुछ उपयोगी खनिज पदार्थों के नाम हैं - लोहा, अभ्रक, कोयला, बॉक्साइट (जिससे अलुमिनियम बनता है), नमक (पाकिस्तान व भारत के अनेक क्षेत्रों में खान से नमक निकाला जाता है!), जस्ता, चूना पत्थर इत्यादि। .

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कठोरीकरण

भट्ठी से १२०० डिग्री सेल्सियस के तापमान पर ढलाई से बने भागों का ठंडा होने पर कठोरीकरण होता है। कठोरीकरण एक विधि है जिस से किसीभी नर्म पदार्थ, आमतौर पर धातु, को कठोर बना दिया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया कठोरीकरण कहलाती हैं। मिश्र धातुओं के लिए तापोपचार की प्रक्रिया से कठोरीकरण किया जाता है। इस क्रिया से पूर्ण धातु कठोर बनता है जिस कारण प्लास्टिक विरूपण के लिए वो प्रतिरोध प्रदान करता है। कई बार सिर्फ़ सतह का कठोरीकरण भी किया जाता है; जैसे कि लकडी का या प्राकृतिक तरीके से पत्थरोंका। .

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क्रिस्टलता

क्रिस्टलता (crystallinity) किसी ठोस पदार्थ में ढांचे की सुव्यवस्था के माप को कहते हैं। क्रिस्टलों में परमाणु या अणु एक नियत व आवर्ती क्रम में सज्जित होते हैं। क्रिस्टलता काष्ठा (degree of crystallinity) का पदार्थ की कठोरता, घनत्व, पारदर्शिता और विसरण के गुणों पर भारी प्रभाव पड़ता है। .

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कैल्साइट

कैल्साइट पृथ्वी पर सबसे अधिक परिमाण में पाया जाने वाला खनिज है। रासायनिक या जैव-रासायनिक कैल्सियम कार्बोनेट को कैल्साइट कहते हैं। इसका रासायनिक सूत्र CaCO3 है। कैलसाइट विभिन्न रंगों में पाया जाता है। यह खनिज अपने विदलन सतहों, काचोपम चमक, अल्प कठोरता (.

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उच्चतापसह धातु

उच्चतापसह धातु (Refractory metal, अर्थ: ऊंचा तापमान सहने वाली धातु) धातुओं की एक श्रेणी है जो अत्याधिक सख़्त होती हैं और बिना आकार खोये ऊँचा तापमान सह सकती हैं। इस श्रेणी में कौन-सी धातु शामिल है और कौन-सी नहीं इस बात को लेकर वैज्ञानिकों में मतभेद है, लेकिन आमतौर पर आवर्त सारणी (पीरियोडिक टेबल) की ५वीं कतार के दो तत्व - नायोबियम (Nb) व मोलिब्डेनम (Mo) - और ६ठीं कतार के तीन तत्व - टैंटेलम (Ta), टंग्स्टन (W) व रीनियम (Re) - इसमें शामिल माने जाते हैं। इन सभी का पिघलाव तापमान २००० °सेंटीग्रेड से अधिक होता है और साधारण तापमान पर यह सभी अधिक कठोरता प्रदर्शित करते हैं। यह अन्य तत्वों के साथ रासायनिक अभिक्रियाओं (रियेक्शन) में भी असानी से भाग नहीं लेते और अपनी शुद्धता बनाये रखते हैं। इन कारणों से औज़ारों और औद्योगिक प्रयोगों के लिये यह बहुत भरोसेमंद होते हैं। .

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निवर्तमानआने वाली
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