5 संबंधों: धोलासर, मरुआ, विरेचक, आगुन्ता, कब्ज।
धोलासर
धोलासर एक छोटा सा गांव है जो भारतीय राज्य राजस्थान तथा जोधपुर ज़िले के फलोदी तहसील में स्थित है। धोलासर में राजस्व ग्राम लक्ष्मणपुरा, महर्षि गौतमनगर स्थित है। धोलासर गांव के ज्यादातर लोग कृषि पर निर्भर करते हैं इस कारण रोजगार का साधन ही वही है। यहाँ ट्यूबवेल से सिंचाई की जाती हैं। मुख्यतः कृषक समाज यहाँ बाजरा,ज्वार,गेहूँ,सरसों,रायड़ा,मेथी,जीरा,मूँगफली,जौ, ग्वार, अरण्डी, प्याज ईसबगोल आदि फसलों की खेती करता हैं। धोलासर में शुद्ध मीठे पेयजल की कमी हैं। मनुष्यों और जानवरों के द्वारा फ्लोराइडयुक्त पानी प्रयोग में लिया जा रहा है। जो हानिकारक हैं। .
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मरुआ
मरुआ बनतुलसी या बबरी की जाति का एक पौधा। यह पौधा बागों में लगाया जाता है। इसकी पत्तिय बबरी की पत्तियाँ से कुछ बड़ी, नुकीली, मोटी, नरम और चिकनी होती हैं जिनमें से उग्र गंध आती है। इसके दर देवताओं पर चढ़ाए जाते हैँ। इसका पेड़ ड़ेढ दो हाथ ऊँचा होता है और इसकी फुनगी पर कार्तिक अगहन में तुलसी के भाँति मंजरी निकलती है जिसमें नन्हें नन्हें सफेद फूल लगते हैं फूलों के झड़ जाने पर बीजो से भरे हुए छोटे छोटे बीजकोश निकल आते हैं जिनमें से पकने पर बहुत बीज निकलते हैं ये बीज पानी में पड़ने पर ईसबगोल की तरह फूल जाते हैं। यह पौधा बीजों से उगता हे; पर यदि इसकी कोमल टहन या फुनगी लगाई जाय तो वह भी लग जाती है। रंग के भे से मरुआ दो प्रकार का होता है, काला और सफेद। काले मरुए का प्रयोग औषधि रूप में नहीं होता और केवल फूल आदि के साथ देवताओं पर चढ़ाने के काम आता है। सफेद मरुआ ओषधियों में काम आता है। वैद्यक में यह चरपरा, कड़ुआ, रूखा और रुचिकर तथा तीखा, गरम, हलका, पित्तवर्धक, कफ और वात का नाशक, विष, कृमि और कृष्ठ रोग नाशक माना गया है। पर्यायवाची — मरुवक, मरुत्तक, फणिज्जक, प्रस्थपुष्प, समीरण, कुलसौरभ, गधंपत्र, खटपत्र। .
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विरेचक
विरेचक या आरेचक (Laxatives या purgatives या aperients) ऐसे खाद्यपदार्थ, यौगिक या दवाओं क कहा जाता है जिनके सेवन से मलत्याग में आसानी होती है। इनके उपयोग से मलाशय की सफाई करने में आसानी होती है।; कुछ प्रमुख विरेचक.
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आगुन्ता
आगुन्ता राजस्थान के नागौर जिले का गाँव है। यह बहुत सुन्दर जगह है। यहाँ दलहन होती हे। यहाँ दवा के रूप में काम आने वाली ईसबगोल पैदा होती है। श्रेणी:नागौर जिले के गाँव.
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कब्ज
कब्ज पाचन तंत्र की उस स्थिति को कहते हैं जिसमें कोई व्यक्ति (या जानवर) का मल बहुत कड़ा हो जाता है तथा मलत्याग में कठिनाई होती है। कब्ज अमाशय की स्वाभाविक परिवर्तन की वह अवस्था है, जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है, मल कड़ा हो जाता है, उसकी आवृति घट जाती है या मल निष्कासन के समय अत्यधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है। सामान्य आवृति और अमाशय की गति व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है। (एक सप्ताह में 3 से 12 बार मल निष्कासन की प्रक्रिया सामान्य मानी जाती है। करने के लिए कई नुस्खे व उपाय यहां जोड़ें गए हैं। पेट में शुष्क मल का जमा होना ही कब्ज है। यदि कब्ज का शीघ्र ही उपचार नहीं किया जाये तो शरीर में अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। कब्जियत का मतलब ही प्रतिदिन पेट साफ न होने से है। एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन में दो बार यानी सुबह और शाम को तो मल त्याग के लिये जाना ही चाहिये। दो बार नहीं तो कम से कम एक बार तो जाना आवश्यक है। नित्य कम से कम सुबह मल त्याग न कर पाना अस्वस्थता की निशानी है। .
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