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आसफ़ुद्दौला

सूची आसफ़ुद्दौला

आसफ़ुद्दौला (२३ सितंबर १७४८-२१ सितंबर १७९७) १७७५ से १७९७ के बीच अवध के नवाब वज़ीर और शुजाउद्दौला के बेटे थे, उनकी माँ और दादी अवध की बेग़में थी। अवध की लूट ही वारेन हेस्टिंग्स के खिलाफ़ इल्ज़ामों में से प्रमुख था। .

12 संबंधों: बड़ा इमामबाड़ा, मीर तक़ी "मीर", राम सहाय, रेजिडेन्सी, लखनऊ, लखनऊ, लखनऊ का इतिहास, शुजाउद्दौला, सआदत अली खान द्वितीय, सैयद अमीरमाह बहराइची, वज़ीर अली ख़ान, आसफ़ुद्दौला, अवध के नवाब

बड़ा इमामबाड़ा

बड़े इमामबाड़ा में स्थित भूलभुलैया, लखनऊ बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ की एक एतिहासिक धरोहर है। इसे भूलभुलैया भी कहते हैं। इसे आसिफ उद्दौला ने बनवाया था। लखनऊ के इस प्रसिद्ध इमामबाड़े का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। .

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मीर तक़ी "मीर"

ख़ुदा-ए-सुखन मोहम्मद तकी उर्फ मीर तकी "मीर" (1723 - 20 सितम्बर 1810) उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। मीर को उर्दू के उस प्रचलन के लिए याद किया जाता है जिसमें फ़ारसी और हिन्दुस्तानी के शब्दों का अच्छा मिश्रण और सामंजस्य हो। अहमद शाह अब्दाली और नादिरशाह के हमलों से कटी-फटी दिल्ली को मीर तक़ी मीर ने अपनी आँखों से देखा था। इस त्रासदी की व्यथा उनकी रचनाओं मे दिखती है। अपनी ग़ज़लों के बारे में एक जगह उन्होने कहा था- हमको शायर न कहो मीर कि साहिब हमने दर्दो ग़म कितने किए जमा तो दीवान किया .

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राम सहाय

पंडित राम सहाय (१७८०-१८२६) बनारस घराने के संस्थापकों में से एक रहे हैं। आज प्रचलित बनारस बाज लगभग २०० वर्ष पूर्व इन्होंने ही विकसित की थी। ये बनारस शहर के रहने वाले थे। इनके संगीत गुरु दिल्ली के सिधार खान जी के शिष्य उस्ताद मोढू खान थे। उस्ताद जी लखनऊ के नवाब आसफुद्दौला के दरबार में शाही संगीतज्ञ थे। जब राम सहाय मात्र १७ वर्ष के ही थे, तब लखनऊ के नये नवाब ने मोधु खान से पूछा कि क्या राम सहाय उनके लिये एक प्रदर्शन कर सकते हैं? कहते हैं, कि राम सहाय ने ७ रातों तक लगातार तबला-वादन किया जिसकी प्रशंसा पूरे समाज ने की एवं उन पर भेटों की बरसात हो गयी। अपनी इस प्रतिभा प्रदर्शन के बाद राम सहाय बनारस वापस आ गये। .

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रेजिडेन्सी, लखनऊ

लखनऊ रेजिडेन्सी के अवशेष ब्रिटिश शासन की स्पष्ट तस्वीर पेश करते हैं। सिपाही विद्रोह के समय यह रेजिडेन्सी ईस्ट इंडिया कम्पनी के एजेन्ट का भवन था। यह ऐतिहासिक इमारत शहर के केन्द्र में स्थित हजरतगंज क्षेत्र के समीप है। यह रेजिडेन्सी अवध के नवाब सआदत अली खां द्वारा 1800 ई. में बनवाई गई थी। रेसिडेंसी वर्तमान में एक राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक है और लखनऊ वालों के लिये सुबह की सैर का स्थान। रेसिडेंसी का निर्माण लखनऊ के समकालीन नवाब आसफ़ुद्दौला ने सन 1780 में प्रारम्भ करवाया था जिसे बाद में नवाब सआदत अली द्वारा सन 1800 में पूरा करावाया। रेसिडेंसी अवध प्रांत की राजधानी लखनऊ में रह रहे, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंम्पनी के अधिकारियों का निवास स्थान हुआ करता थी। सम्पूर्ण परिसर मे प्रमुखतया पाँच-छह भवन थे, जिनमें मुख्य भवन, बेंक्वेट हाल, डाक्टर फेयरर का घर, बेगम कोठी, बेगम कोठी के पास एक मस्जिद, ट्रेज़री आदि प्रमुख थे। श्रेणी:लखनऊ के दर्शनीय स्थल.

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लखनऊ

लखनऊ (भारत के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी है। इस शहर में लखनऊ जिले और लखनऊ मंडल के प्रशासनिक मुख्यालय भी स्थित हैं। लखनऊ शहर अपनी खास नज़ाकत और तहजीब वाली बहुसांस्कृतिक खूबी, दशहरी आम के बाग़ों तथा चिकन की कढ़ाई के काम के लिये जाना जाता है। २००६ मे इसकी जनसंख्या २,५४१,१०१ तथा साक्षरता दर ६८.६३% थी। भारत सरकार की २००१ की जनगणना, सामाजिक आर्थिक सूचकांक और बुनियादी सुविधा सूचकांक संबंधी आंकड़ों के अनुसार, लखनऊ जिला अल्पसंख्यकों की घनी आबादी वाला जिला है। कानपुर के बाद यह शहर उत्तर-प्रदेश का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है। शहर के बीच से गोमती नदी बहती है, जो लखनऊ की संस्कृति का हिस्सा है। लखनऊ उस क्ष्रेत्र मे स्थित है जिसे ऐतिहासिक रूप से अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। लखनऊ हमेशा से एक बहुसांस्कृतिक शहर रहा है। यहाँ के शिया नवाबों द्वारा शिष्टाचार, खूबसूरत उद्यानों, कविता, संगीत और बढ़िया व्यंजनों को हमेशा संरक्षण दिया गया। लखनऊ को नवाबों के शहर के रूप में भी जाना जाता है। इसे पूर्व की स्वर्ण नगर (गोल्डन सिटी) और शिराज-ए-हिंद के रूप में जाना जाता है। आज का लखनऊ एक जीवंत शहर है जिसमे एक आर्थिक विकास दिखता है और यह भारत के तेजी से बढ़ रहे गैर-महानगरों के शीर्ष पंद्रह में से एक है। यह हिंदी और उर्दू साहित्य के केंद्रों में से एक है। यहां अधिकांश लोग हिन्दी बोलते हैं। यहां की हिन्दी में लखनवी अंदाज़ है, जो विश्वप्रसिद्ध है। इसके अलावा यहाँ उर्दू और अंग्रेज़ी भी बोली जाती हैं। .

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लखनऊ का इतिहास

लखनऊ को प्राचीन काल में लक्ष्मणपुर और लखनपुर के नाम से जाना जाता था। कहा जाता है कि अयोध्या के राम ने लक्ष्मण को लखनऊ भेंट किया था। लखनऊ के वर्तमान स्वरूप की स्थापना नवाब आसफउद्दौला ने 1775 ई.में की थी। अवध के शासकों ने लखनऊ को अपनी राजधानी बनाकर इसे समृद्ध किया। लेकिन बाद के नवाब विलासी और निकम्मे साबित हुए। आगे चलकर लॉर्ड डलहौली ने अवध का अधिग्रहण कर ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। 1850 में अवध के अन्तिम नवाब वाजिद अली शाह ने ब्रिटिश अधीनता स्वीकार कर ली। .

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शुजाउद्दौला

शुजाउद्दौला (१९ जनवरी१७३२, दारा शिकोह के महल में, दिल्ली – १७७५) अवध के नवाब थे। उन्हें वज़ीर उल ममालिक ए हिंदुस्तान, शुजा उद् दौला, नवाब मिर्ज़ा जलाल उद् दीन हैदर खान बहादुर, अवध के नवाब वज़ीर आदि नामों से भी जाना जाता था। अवध का साम्राज्य उस समय औरंगज़ेब की मौत की वजह से मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद एक छोटी रियासत बन गया था। एक छोटे शासक होने के बावजूद वे भारत के इतिहास के दो प्रमुख युद्धों में भाग लेने के लिए जाने जाते हैं - पानीपत की तीसरी लड़ाई, जिसने भारत में मराठों का वर्चस्व समाप्त किया और बक्सर की लड़ाई, जिसने अंग्रेज़ों की हुकूमत स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई। .

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सआदत अली खान द्वितीय

"क्लॉड मार्टिन का घर जिसे सआदत अली खान ने ५० हज़ार रुपए में खरीदा था यामीन उद् दौला नवाब सआदत अली खान (१७५२-१८१४) अवध के शासक (शासनकाल १७९८-१८१४) नवाब शुजाउद्दौला के दूसरे बेटे थे। सआदत अली खान अपने सौतेले भाई, आसफ़ुद्दौला, के बाद अवध के तख्त पर १७९८ पर बैठे। सआदत अली खान की ताजपोशी २१ जनवरी १७९८ को बिबियापुर महल, लखनऊ में सर जॉन शोर द्वारा की गई। उन्होंने १८०१ में अंग्रेज़ों को आधा अवध दे दिया। उनका १८०५ में सर गोर औसेली द्वारा निर्मित दिलकुशा कोठी नामक एक महल भी था। १० सितंबर २००७ को पठित नवाब सआदत अली खान १८१४ में मरे और उन्हें अपनी पत्नी 'खुरशीद ज़ादी' के साथ जुड़वाँ क़ैसरबाग़ के मकबरे में दफ़नाया गया। .

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सैयद अमीरमाह बहराइची

सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी मीर सय्यद अमीर माह बहराइची मुईन अहमद अलवी काकोरवी 1972ई प्रकाशित  के नाम के कारण कौन है जो बहराइच के नाम से परिचित नहीं। तारीख के हरदोर में बहराइच का उल्लेख मिलता है। बुद्ध के ज़माने के आसार गवाही आज भी जिले के कुछ खंडहर से मिलती है। भारत में मुसलमानों के आगमन और सुल्तान महमूद गज़नवी के हमलों के बाद बहराइच नाम इतिहास के पन्नों सजाना 250px बनता है। सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी अपनी सैन्य शक्ति के साथ उत्तर भारत की राजनीतिक शक्तियों से मोर्चा लेते बहराइच तक आकर घर जाते हैं। यहाँ के राजाओं ने एकजुट होकर उनसे युद्ध किया और 424 हिजरी अनुसार 1033 में 14 /माह रजब दिन रविवार आप यहाँ शहीद हो गए। आपकी मज़ार भी बाद में यहाँ बना और मेला भी लगता है। इसी काल से बहराइच की प्रतिष्ठा बराबर स्थापित है। मोहम्मद शाह तुग़लक़ और फ़िरोज़शाह तुग़लक़ दोनों अाप की मज़ार पर हाज़िरी देने आए। फ़िरोज़शाह तुग़लक़ के आगमन के अवसर पर सैयद अमीरमाह बहराइची नामक बुजुर्ग का नाम आता है, वह उन्हीं बुजुर्ग के साथ सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी की मज़ार पर हाज़िरी दी थी।वह सैयद अमीरमाह के आध्यात्मिक प्रभाव से प्रभावित हुआ था, और उसके जीवन में कुछ परिवर्तन हुआ था, फ़िरोज़शाह के आगमन और सैयद अमीरमाह साहब की बैठक के बारे में तारीख फिरोज शाही में है कि: अच्छी सोहबत का अच्छा नतीजा निकलता है " पुस्तकों के देखने से पता चलता है कि सैयद अमीरमाह के समय में आप को सबने श्रद्धांजलि दी है, उस दौर जितने भी सूफी संत हैं सबने किसी न किसी तरीके से आप का उल्लेख किया है, और उनके मलफ़ूज़ात में आप का नाम मौजूद है।अापका पूरा नाम सैयद अफ़जल दीन अबू ज़फ़र अमीरमाह बहराइची है, फ़िरोज़ शाही दौर 752 हिजरी 1351 ई- से 790 हिजरी 1388 ई के प्रसिद्ध बुजुर्ग हैं। तारीख़ फ़िरोज़ शाही में आपका उल्लेख है। हज़रत शेख़ शरफ़ुद्दीन यहया मुनीरी (मृतक 782 हिजरी) बिहार के प्रसिद्ध सूफी संत के मलफ़ूज़ात में भी अापके संक्षिप्त उल्लेख है।हज़रत सैयद अशरफ़ जहांगीर समनानी (मृतक 808 हिजरी) के मलफ़ूज़ात लताइयफ अशरफ़ी आदि में जो उनके मुरीदऔर ख़लीफ़ा शेख़ निजामुद्दीन गरीब यमनी ने एकत्र किया है, उसमे आप का उल्लेख इन शब्दों में: बहराइच के सादात में से सैयद अफ़जल दीन अबू ज़फ़र अमीरमाह को मैंने देखा है। हज़रत अमीर सैयद अली हमदानी (मृतक 787 हिजरी) कश्मीर पहले सूफी और लेेखक और सबसे प्रसिद्ध बुजुर्ग हैं। अपनी पुस्तक उम्दातुल मतालिब में भारत के इन बारह सही उलनसब परिवारों का हाल लिखा है जो विलायत से भारत आए, उनमें सैयद अमीर माह का नामक है। (5) तारीख़ फ़रिश्ता में फ़िरोज़शाह तुग़लक़ यात्रा बहराइच के उल्लेख में अमीरमााह का उल्लेख है, फ़िरोज़शाह तुग़लक़ इन्ही बुजुर्ग से प्रभावित होकर अमीरमााह ही के साथ सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी के मज़ार पर हाज़िरी हुआ था। रास्ते में सैयद साहब से हज़रत सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी की बुज़ुर्गी की करामात के बारे में पूछने लगा। आपने फ़रमाया कि यही करामत क्या कम है कि आप जैसा राजा और मेरे जैसा फ़कीर दोनों उनकी द्वारपाल कर रहे हैं इस जवाब पर राजा जिसके दिल में प्रेम की चाशनी थी बहुत मनोरंजन हुआ। (6) तिथि फिरोज शाही के संबंध में प्रोफेसर रिएक अहमद प्रणाली (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) अपनी पुस्तक किंग्स दिल्ली धार्मिक रुझान में लिखते हैं कहमीर सैयद अमीर महीने बहराइच प्रसिद्ध ोमिरोफ मशाईख तरीक़त थे। सैयद अलाउद्दीन उर्फ ​​ब अली जावरी से बैअत थी। ोहदत वजूद विभिन्न मुद्दों पर पत्रिका ालम्लोब प्रति ालिशक ालमहबोब लिखा था फिरोजशाह जब बहराइच गया था तो उन की सेवा में भी हाज़िर हुआ और पाली साहचर्य नेक दगरम निर्यात । फिरोजशाह मन में मंदिर (हज़रत सैयद सालार मसूद गाजी) से संबंधित कुछ संदेह भी थे, जिन्हें सैयद अमीर महीने ने रफा किया। अब्दुर्रहमान चिश्ती (लेखक मिरातुल असरार) का बयान है कि इस मुलाकात के बाद फिरोजशाह दिल दुनिया से ठंड पड़ गया था, और उसने बाकी उम्र याद इलाही में कटौती दी। या बयान अतिरंजित ज़रूर है, लेकिन गलत नहीं, बहराइच के यात्रा के बाद फिरोज धर्म कागलबह हो गया था। (7) लेखक दर्पण अवध ने हज़रत सैयद अहमद वालिद मौलाना सुास्थी उल्लेख के संबंध में हज़रत सैयद अली हमदानी की दूसरी किताब स्रोत ालांसाब यह पाठ नकल है कहहज़रत मीर सैयद मखदूम मौलाना सुास्थी साहब कि कब्र ओ दर कटरह विसर्जन पाली बुजुर्ग और साहब पूर्णता से खुल्फाए मीर सैयद अलाउद्दीन जयपुरी इंदु हज़रत अबू जफर अमीर महीने बहराइच ोहज़रत मख़दूम सूचीबद्ध हम ताश ख्वाजा बोदनद.ाें हर दो बुज़ुर्गों ोरिएफह सही हज़रत मीर सैयद अलाउद्दीन जयपुरी इंदु मीर सैयद अलाउद्दीन को लेखक प्रशांत ालांसाब हज़रत सैयद अली हमदानी ने इमाम आलम, आलम दीनदार ध्रुव ालसादात प्रति ोकतह, शिक्षक ालारादात और सैयद ालसादात एस शब्दों से याद किया है, आप श्रृंखला सहरोरदया प्रसिद्ध नेता हैं। लेखक मरأۃालासरार मौलवी अब्दुल रहमान चिश्ती ने जो हज़रत सैयद सालार मसूद गाजी की आत्मा फ़्तोह से लाभान्वित हुए थे और समय तक बहराइच में स्थित रहे थे इसी भक्ति में मरأۃ मसूदी लिखी है, मरأۃ कक्षीय भी अपनी लिखी है, मिरातुल असरार में मकतोबात हज़रत मखदूम अशरफ जहांगीर कछोछोी के हवाले से लिखते हैं: मीर सैयद अशरफ जहा नगीर समनानी अपने एक पत्र 32 में (जो सादात बहराइच का उल्लेख है) लिखते हैं सादात ख्हٔ बहराइच के वंश बहुत प्रसिद्ध है, सादात बहराइच में सैयद अबू जाफ़र अमीर महीने मैंने देखा है, घाटी असमानता में बेनजीर थे, सैयद शहीद मसूद गाजी के मजार उपस्थिति मोक अ पर और सैयद अबू जफर अमीर महीने और हज़रते ख़िज़्र अलैहिस्सलाम साथ थे उनकी मशीखत अक्सर स्थिति के लिए मैं हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम की आत्मा को भुनाया है, सैयद अमीर महीने का मज़ार तीर्थ स्थल सृष्टि है । मिरातुल असरार के बीसवें सेगमेंट में मीर सैयद अलाउद्दीन कनतवरी शर्तों के बाद हज़रत सैयद अमीर महीने रहमतुल्लाह अलैह के नाम िलीहद राजा शीर्षक स्थापित करके विस्तार परिस्थितियों लिखे हैं: आरिफ पेशवाये विश्वास, मकतदाए समय ' 'कामलान रोजगार' 'बुज़ुर्गों साहब रहस्य' के ालकाब से चर्चा .

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वज़ीर अली ख़ान

मिर्ज़ा वज़ीर अली खान(१७८० - १८१७), चौथे नवाब वज़ीर अल ममालिक ए एवध थे। चार माह के शासन काल के अंदर ही उन्हें अंग्रेज़ों और अपनी प्रजा, दोनों ही द्वारा विलग कर दिया गया और अंततः उन्हें पदच्युत कर के चुनार के किले में बंदी बनाया गया और वहीं उनका देहांत हुआ। .

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आसफ़ुद्दौला

आसफ़ुद्दौला (२३ सितंबर १७४८-२१ सितंबर १७९७) १७७५ से १७९७ के बीच अवध के नवाब वज़ीर और शुजाउद्दौला के बेटे थे, उनकी माँ और दादी अवध की बेग़में थी। अवध की लूट ही वारेन हेस्टिंग्स के खिलाफ़ इल्ज़ामों में से प्रमुख था। .

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अवध के नवाब

भारत के अवध के १८वीं तथा १९वीं सदी में शासकों को अवध के नवाब कहते हैं। अवध के नवाब, इरान के निशापुर के कारागोयुन्लु वंश के थे। नवाब सआदत खान प्रथम नवाब थे। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

आसफ-उद्-दौला, आसफउद्दौला, आसफुद्दौला, आसिफ़ुद्दौला, आसिफुद्दौला, अशफ - उद - दुलाह, असफ़-उद-दौला, असिफुद्दोला

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