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आर्यदेव

सूची आर्यदेव

आर्यदेव (तृतीय शताब्दी) नागार्जुन के प्रधान शिष्य एवं महायान माध्यमक बौद्ध सम्प्रदाय के अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों के रचयिता थे। उन्हें 'काणदेव' (जेन परम्परा में) तथा 'बोधिसत्त्वदेव' (श्री लंका में) भी कहते हैं। आर्यदेव का जन्म श्री लंका में हुआ था। आर्यदेव ने कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे जिनमें सर्वप्रधान 'चतु:शतक' है। आर्यदेव माध्यमिक शाखा के प्रसिद्ध नैयायिक और ग्रंथकार थे। ये दक्षिण भारत के निवासी और नागार्जुन के प्रधान शिष्य थे। इन्होंने महाकोशल, स्त्रुघ्न, प्रयग और वैशाली आदि की अपनी यात्रा में अनेक ख्यातनामा विद्वानों को शास्त्रार्थ में अभिभूत किया था। नालंदा में इन्होंने अनेक वर्ष तक पंडित के पद पर आसीन होने का गौरव प्राप्त किया था। इन्होंने "शतकशास्त्र" "ब्रह्मप्रमथनयुक्तिहेतुसिद्धि" आदि विशिष्ट ग्रंथों का प्रणयन किया था। लंका के महाप्रज्ञ एकचक्षु भिक्षु आर्यदेव अपनी ज्ञानपिपासा शांत करने के लिए नालंदा के आचार्य नागार्जुन के पास पहुँचे। आचार्य ने उनकी प्रतिभा की परीक्षा करने के लिए उनके पास स्वच्छ जल से पूर्ण एक पात्र भेज दिया। आर्यदेव ने उसमें एक सुई डालकर उसे इन्हीं के पास लौटा दिया। आचार्य बड़े प्रसन्न हुए और उन्हें शिष्य के रूप में स्वीकार किया। जलपूर्ण पात्र से उनके ज्ञान की निर्मलता और पूर्णता का संकेत किया गया था और उसमें सूई डालकर उन्होंने निर्देश किया कि वे उस ज्ञान तक पहुँचना चाहते हैं। .

3 संबंधों: बंगला भाषा के साहित्यकारों की सूची (कालक्रमानुसार), भारतीय नैयायिक, संस्कृत भाषा में रचित बौद्ध ग्रन्थ

बंगला भाषा के साहित्यकारों की सूची (कालक्रमानुसार)

यहाँ पर कालक्रम के अनुसार बांग्ला भाषा के साहित्यकारों की सूची दी गयी है। इस सूची में अन्तरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वालों को भी चिन्हित किया गया है। .

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भारतीय नैयायिक

न्याय दर्शन के विद्वान नैयायिक कहलाते हैं। ब्राह्मण न्याय (वैदिक न्याय), जैन न्याय और बौद्ध न्याय के अत्यंत सुप्रसिद्ध नैयायिक विद्वानों में निम्नलिखित हैं: .

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संस्कृत भाषा में रचित बौद्ध ग्रन्थ

बौद्ध धर्म के धर्मग्रन्थ केवल पालि में ही नहीं हैं बल्कि बहुत बड़ी संख्या में संस्कृत में भी हैं। कुछ ग्रन्थ पालि और संस्कृत के मिश्रित भाषा में भी रचे गये हैं। बुद्धवचनों के अलावा बौद्ध विद्वानों ने दर्शन, न्याय (तर्कशास्त्र), आदि के ग्रन्थ संस्कृत में लिखे हैं। बहुत से ग्रन्थ काल के गाल में समा गये किन्तु उसके बावजूद संस्कृत में रचित बौद्ध गर्न्थ विपुल मात्रा में मिलते हैं। .

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