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अहिंसा

सूची अहिंसा

अहिंसा का सामान्य अर्थ है 'हिंसा न करना'। इसका व्यापक अर्थ है - किसी भी प्राणी को तन, मन, कर्म, वचन और वाणी से कोई नुकसान न पहुँचाना। मन में किसी का अहित न सोचना, किसी को कटुवाणी आदि के द्वार भी नुकसान न देना तथा कर्म से भी किसी भी अवस्था में, किसी भी प्राणी कि हिंसा न करना, यह अहिंसा है। जैन धर्म एवंम हिन्दू धर्म में अहिंसा का बहुत महत्त्व है। जैन धर्म के मूलमंत्र में ही अहिंसा परमो धर्म:(अहिंसा परम (सबसे बड़ा) धर्म कहा गया है। आधुनिक काल में महात्मा गांधी ने भारत की आजादी के लिये जो आन्दोलन चलाया वह काफी सीमा तक अहिंसात्मक था। .

60 संबंधों: थिरुनवुकरसर, दिगम्बर, धर्म, धर्मचक्र, नेल्सन मंडेला, पराशर ऋषि, पुरुषार्थ सिद्धयुपाय, ब्रह्मचर्य, बौद्ध धर्म, बौद्ध धर्म का इतिहास, भारत में धर्म, भारत के वैदेशिक सम्बन्ध, भारतीय दर्शन, भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन, भारतीयकरण, भवरलाल जैन, महात्मा गांधी, महात्मा गांधी के एकादश व्रत, महाव्रत, महावीर, महावीर जयन्ती, मानव बलि, मार्क सैटिन, माइकल ग्रेगर, मिताहार, मुख्तार अहमद अंसारी, मृदु शक्ति, यम, यासीन मलिक, राम प्रसाद 'बिस्मिल', शान्तिवाद, शांति सेना, शाकाहार, शाकाहार का इतिहास, सत्य, सत्याग्रह, समवशरण, सराक, सालिम अली, संस्कृत मूल के अंग्रेज़ी शब्दों की सूची, संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द, ज्ञानसागर (छाणी), जैन दर्शन, जैन धर्म, जैन धर्म में अहिंसा, जैन भोजन, जैन मुनि, विद्यानंद, विकीर्णन (डायसपोरा), व्रत (जैन), ..., वेलुपिल्लई प्रभाकरन, वीरचन्द गाँधी, ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान, गांधीवाद, गांधीगिरी, आदर्शवाद (अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध), अणुव्रत, अपरिग्रह, अलखनामी, अहिंसा पुरस्कार सूचकांक विस्तार (10 अधिक) »

थिरुनवुकरसर

तिरुनवुकरसर एक शिव भक्त था तमिलनाडु ७०० मे। वे नयनार सन्घ के सन्त थे। सबसे चार महत्वपूर्ण नयनार और तमिलनाडु में उनका नाम कुरवार था (हिन्दी में "गुरु")। उन्होने भगवान शन्कर के लिए बहुत भजन लिखे और इस वक्त को हमारे पास ३०६६ हे। .

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दिगम्बर

गोम्मटेश्वर बाहुबली (श्रवणबेळगोळ में) दिगम्बर जैन धर्म के दो सम्प्रदायों में से एक है। दूसरा सम्प्रदाय है - श्वेताम्बर। दिगम्बर.

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धर्म

धर्मचक्र (गुमेत संग्रहालय, पेरिस) धर्म का अर्थ होता है, धारण, अर्थात जिसे धारण किया जा सके, धर्म,कर्म प्रधान है। गुणों को जो प्रदर्शित करे वह धर्म है। धर्म को गुण भी कह सकते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि धर्म शब्द में गुण अर्थ केवल मानव से संबंधित नहीं। पदार्थ के लिए भी धर्म शब्द प्रयुक्त होता है यथा पानी का धर्म है बहना, अग्नि का धर्म है प्रकाश, उष्मा देना और संपर्क में आने वाली वस्तु को जलाना। व्यापकता के दृष्टिकोण से धर्म को गुण कहना सजीव, निर्जीव दोनों के अर्थ में नितांत ही उपयुक्त है। धर्म सार्वभौमिक होता है। पदार्थ हो या मानव पूरी पृथ्वी के किसी भी कोने में बैठे मानव या पदार्थ का धर्म एक ही होता है। उसके देश, रंग रूप की कोई बाधा नहीं है। धर्म सार्वकालिक होता है यानी कि प्रत्येक काल में युग में धर्म का स्वरूप वही रहता है। धर्म कभी बदलता नहीं है। उदाहरण के लिए पानी, अग्नि आदि पदार्थ का धर्म सृष्टि निर्माण से आज पर्यन्त समान है। धर्म और सम्प्रदाय में मूलभूत अंतर है। धर्म का अर्थ जब गुण और जीवन में धारण करने योग्य होता है तो वह प्रत्येक मानव के लिए समान होना चाहिए। जब पदार्थ का धर्म सार्वभौमिक है तो मानव जाति के लिए भी तो इसकी सार्वभौमिकता होनी चाहिए। अतः मानव के सन्दर्भ में धर्म की बात करें तो वह केवल मानव धर्म है। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। (पालि: धम्म) भारतीय संस्कृति और दर्शन की प्रमुख संकल्पना है। 'धर्म' शब्द का पश्चिमी भाषाओं में कोई तुल्य शब्द पाना बहुत कठिन है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। .

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धर्मचक्र

थाइलैण्ड के द्वारावती की कला में धर्मचक्र धर्मचक्र, भारतीय धर्मों (सनातन धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म आदि) में मान्य आठ मंगलों (अष्टमंगल) में से एक है। बौद्धधर्म के आदि काल से ही धर्मचक्र इसका प्रतीकचिह्न बना हुआ है। यह प्रगति और जीवन का प्रतीक भी है। बुद्ध ने सारनाथ में जो प्रथम धर्मोपदेश दिया था उसे धर्मचक्र प्रवर्तन भी कहा जाता है। .

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नेल्सन मंडेला

नेल्सन रोलीह्लला मंडेला (ख़ोसा: Nelson Rolihlahla Mandela; 18 जुलाई 1918 – 5 दिसम्बर 2013) दक्षिण अफ्रीका के प्रथम अश्वेत भूतपूर्व राष्ट्रपति थे। राष्ट्रपति बनने से पूर्व वे दक्षिण अफ्रीका में सदियों से चल रहे रंगभेद का विरोध करने वाले अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस और इसके सशस्त्र गुट उमखोंतो वे सिजवे के अध्यक्ष रहे। रंगभेद विरोधी संघर्ष के कारण उन्होंने 27 वर्ष रॉबेन द्वीप के कारागार में बिताये जहाँ उन्हें कोयला खनिक का काम करना पड़ा था। 1990 में श्वेत सरकार से हुए एक समझौते के बाद उन्होंने नये दक्षिण अफ्रीका का निर्माण किया। वे दक्षिण अफ्रीका एवं समूचे विश्व में रंगभेद का विरोध करने के प्रतीक बन गये। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने उनके जन्म दिन को नेल्सन मंडेला अन्तर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। .

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पराशर ऋषि

पराशर एक मन्त्रद्रष्टा ऋषि, शास्त्रवेत्ता, ब्रह्मज्ञानी एवं स्मृतिकार है। येे महर्षि वसिष्ठ के पौत्र, गोत्रप्रवर्तक, वैदिक सूक्तों के द्रष्टा और ग्रंथकार भी हैं। पराशर शर-शय्या पर पड़े भीष्म से मिलने गये थे। परीक्षित् के प्रायोपवेश के समय उपस्थित कई ऋषि-मुनियों में वे भी थे। वे छब्बीसवें द्वापर के व्यास थे। जनमेजय के सर्पयज्ञ में उपस्थित थे।  .

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पुरुषार्थ सिद्धयुपाय

पुरुषार्थ सिद्धयुपाय एक प्रमुख जैन ग्रन्थ है जिसके रचियता आचार्य अमृत्चंद्र हैं। आचार्य अमृत्चंद्र दसवीं सदी (विक्रम संवत) के प्रमुख दिगम्बर आचार्य थे। पुरुषार्थ सिद्धयुपाय में श्रावक के द्वारा धारण किये जाने वाले अणुव्रत आदि का वर्णन हैं पुरुषार्थ सिद्धयुपाय में अहिंसा के सिद्धांत भी समझाया गया हैं   .

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ब्रह्मचर्य

ब्रह्मचर्य योग के आधारभूत स्तंभों में से एक है। ये वैदिक वर्णाश्रम का पहला आश्रम भी है, जिसके अनुसार ये ०-२५ वर्ष तक की आयु का होता है और जिस आश्रम का पालन करते हुए विद्यार्थियों को भावी जीवन के लिये शिक्षा ग्रहण करनी होती है। .

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बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और महान दर्शन है। इसा पूर्व 6 वी शताब्धी में बौद्ध धर्म की स्थापना हुई है। बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध है। भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी, नेपाल और महापरिनिर्वाण 483 ईसा पूर्व कुशीनगर, भारत में हुआ था। उनके महापरिनिर्वाण के अगले पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैला और अगले दो हजार वर्षों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फैल गया। आज, हालाँकि बौद्ध धर्म में चार प्रमुख सम्प्रदाय हैं: हीनयान/ थेरवाद, महायान, वज्रयान और नवयान, परन्तु बौद्ध धर्म एक ही है किन्तु सभी बौद्ध सम्प्रदाय बुद्ध के सिद्धान्त ही मानते है। बौद्ध धर्म दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है।आज पूरे विश्व में लगभग ५४ करोड़ लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी है, जो दुनिया की आबादी का ७वाँ हिस्सा है। आज चीन, जापान, वियतनाम, थाईलैण्ड, म्यान्मार, भूटान, श्रीलंका, कम्बोडिया, मंगोलिया, तिब्बत, लाओस, हांगकांग, ताइवान, मकाउ, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया एवं उत्तर कोरिया समेत कुल 18 देशों में बौद्ध धर्म 'प्रमुख धर्म' धर्म है। भारत, नेपाल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, रूस, ब्रुनेई, मलेशिया आदि देशों में भी लाखों और करोडों बौद्ध हैं। .

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बौद्ध धर्म का इतिहास

सम्राट अशोक (260–218 ई.पू.) के शिलालेखों के अनुसार उनके समय में ही बौद्ध धर्म का प्रसार दूर-दूर तक हो चुका था। सत्य और अहिंसा के मार्ग को दिखाने वाले भगवान बुद्ध दिव्य आध्यात्मिक विभूतियों में अग्रणी माने जाते हैं। भगवान बुद्ध के बताए आठ सिद्धांत को मानने वाले भारत समेत दुनिया भर में करोड़ो लोग हैं। भगवान बुद्ध के अनुसार धम्म जीवन की पवित्रता बनाए रखना और पूर्णता प्राप्त करना है। साथ ही निर्वाण प्राप्त करना और तृष्णा का त्याग करना है। इसके अलावा भगवान बुद्ध ने सभी संस्कार को अनित्य बताया है। भगवान बुद्ध ने मानव के कर्म को नैतिक संस्थान का आधार बताया है। यानी भगवान बुद्ध के अनुसार धम्म यानी धर्म वही है। जो सबके लिए ज्ञान के द्वार खोल दे। और उन्होने ये भी बताया कि केवल विद्वान होना ही पर्याप्त नहीं है। विद्वान वही है जो अपने की ज्ञान की रोशनी से सबको रोशन करे। धर्म को लोगों की जिंदगी से जोड़ते हुए भगवान बुद्ध ने बताया कि करूणा शील और मैत्री अनिवार्य है। इसके अलावा सामाजिक भेद भाव मिटाने के लिए भी भगवान बुद्ध ने प्रयास करते हुए बताया था कि लोगों का मुल्यांकन जन्म के आधार पर नहीं कर्म के आधार पर होना चाहिए। भगवान बुद्ध के बताए मार्ग पर दुनिया भर के करोड़ों लोग चलते है। जिससे वो सही राह पर चलकर अपने जीवन को सार्थक बनाते हैं।तथागत गौतम बुद्ध अपने आपको भगवान या ईश्वर नहीं बताते है। बौद्ध धर्म का उद्भव एवं प्रसार .

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भारत में धर्म

तवांग में गौतम बुद्ध की एक प्रतिमा. बैंगलोर में शिव की एक प्रतिमा. कर्नाटक में जैन ईश्वरदूत (या जिन) बाहुबली की एक प्रतिमा. 2 में स्थित, भारत, दिल्ली में एक लोकप्रिय पूजा के बहाई हॉउस. भारत एक ऐसा देश है जहां धार्मिक विविधता और धार्मिक सहिष्णुता को कानून तथा समाज, दोनों द्वारा मान्यता प्रदान की गयी है। भारत के पूर्ण इतिहास के दौरान धर्म का यहां की संस्कृति में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। भारत विश्व की चार प्रमुख धार्मिक परम्पराओं का जन्मस्थान है - हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म तथा सिक्ख धर्म.

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भारत के वैदेशिक सम्बन्ध

किसी भी देश की विदेश नीति इतिहास से गहरा सम्बन्ध रखती है। भारत की विदेश नीति भी इतिहास और स्वतन्त्रता आन्दोलन से सम्बन्ध रखती है। ऐतिहासिक विरासत के रूप में भारत की विदेश नीति आज उन अनेक तथ्यों को समेटे हुए है जो कभी भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन से उपजे थे। शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व व विश्वशान्ति का विचार हजारों वर्ष पुराने उस चिन्तन का परिणाम है जिसे महात्मा बुद्ध व महात्मा गांधी जैसे विचारकों ने प्रस्तुत किया था। इसी तरह भारत की विदेश नीति में उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद व रंगभेद की नीति का विरोध महान राष्ट्रीय आन्दोलन की उपज है। भारत के अधिकतर देशों के साथ औपचारिक राजनयिक सम्बन्ध हैं। जनसंख्या की दृष्टि से यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्रात्मक व्यवस्था वाला देश भी है और इसकी अर्थव्यवस्था विश्व की बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ रूसी राष्ट्रपति, 34वाँ जी-8 शिखर सम्मेलन प्राचीन काल में भी भारत के समस्त विश्व से व्यापारिक, सांस्कृतिक व धार्मिक सम्बन्ध रहे हैं। समय के साथ साथ भारत के कई भागों में कई अलग अलग राजा रहे, भारत का स्वरूप भी बदलता रहा किंतु वैश्विक तौर पर भारत के सम्बन्ध सदा बने रहे। सामरिक सम्बन्धों की बात की जाए तो भारत की विशेषता यही है कि वह कभी भी आक्रामक नहीं रहा। 1947 में अपनी स्वतंत्रता के बाद से, भारत ने अधिकांश देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखा है। वैश्विक मंचों पर भारत सदा सक्रिय रहा है। 1990 के बाद आर्थिक तौर पर भी भारत ने विश्व को प्रभावित किया है। सामरिक तौर पर भारत ने अपनी शक्ति को बनाए रखा है और विश्व शान्ति में यथासंभव योगदान करता रहा है। पाकिस्तान व चीन के साथ भारत के संबंध कुछ तनावपूर्ण अवश्य हैं किन्तु रूस के साथ सामरिक संबंधों के अलावा, भारत का इजरायल और फ्रांस के साथ विस्तृत रक्षा संबंध है। भारत की विदेश नीति के निर्माण की अवस्था को निम्न प्रकार से समझा जा सकता हैः- .

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भारतीय दर्शन

भारत में 'दर्शन' उस विद्या को कहा जाता है जिसके द्वारा तत्व का साक्षात्कार हो सके। 'तत्व दर्शन' या 'दर्शन' का अर्थ है तत्व का साक्षात्कार। मानव के दुखों की निवृति के लिए और/या तत्व साक्षात्कार कराने के लिए ही भारत में दर्शन का जन्म हुआ है। हृदय की गाँठ तभी खुलती है और शोक तथा संशय तभी दूर होते हैं जब एक सत्य का दर्शन होता है। मनु का कथन है कि सम्यक दर्शन प्राप्त होने पर कर्म मनुष्य को बंधन में नहीं डाल सकता तथा जिनको सम्यक दृष्टि नहीं है वे ही संसार के महामोह और जाल में फंस जाते हैं। भारतीय ऋषिओं ने जगत के रहस्य को अनेक कोणों से समझने की कोशिश की है। भारतीय दार्शनिकों के बारे में टी एस एलियट ने कहा था- भारतीय दर्शन किस प्रकार और किन परिस्थितियों में अस्तित्व में आया, कुछ भी प्रामाणिक रूप से नहीं कहा जा सकता। किन्तु इतना स्पष्ट है कि उपनिषद काल में दर्शन एक पृथक शास्त्र के रूप में विकसित होने लगा था। तत्त्वों के अन्वेषण की प्रवृत्ति भारतवर्ष में उस सुदूर काल से है, जिसे हम 'वैदिक युग' के नाम से पुकारते हैं। ऋग्वेद के अत्यन्त प्राचीन युग से ही भारतीय विचारों में द्विविध प्रवृत्ति और द्विविध लक्ष्य के दर्शन हमें होते हैं। प्रथम प्रवृत्ति प्रतिभा या प्रज्ञामूलक है तथा द्वितीय प्रवृत्ति तर्कमूलक है। प्रज्ञा के बल से ही पहली प्रवृत्ति तत्त्वों के विवेचन में कृतकार्य होती है और दूसरी प्रवृत्ति तर्क के सहारे तत्त्वों के समीक्षण में समर्थ होती है। अंग्रेजी शब्दों में पहली की हम ‘इन्ट्यूशनिस्टिक’ कह सकते हैं और दूसरी को रैशनलिस्टिक। लक्ष्य भी आरम्भ से ही दो प्रकार के थे-धन का उपार्जन तथा ब्रह्म का साक्षात्कार। प्रज्ञामूलक और तर्क-मूलक प्रवृत्तियों के परस्पर सम्मिलन से आत्मा के औपनिषदिष्ठ तत्त्वज्ञान का स्फुट आविर्भाव हुआ। उपनिषदों के ज्ञान का पर्यवसान आत्मा और परमात्मा के एकीकरण को सिद्ध करने वाले प्रतिभामूलक वेदान्त में हुआ। भारतीय मनीषियों के उर्वर मस्तिष्क से जिस कर्म, ज्ञान और भक्तिमय त्रिपथगा का प्रवाह उद्भूत हुआ, उसने दूर-दूर के मानवों के आध्यात्मिक कल्मष को धोकर उन्हेंने पवित्र, नित्य-शुद्ध-बुद्ध और सदा स्वच्छ बनाकर मानवता के विकास में योगदान दिया है। इसी पतितपावनी धारा को लोग दर्शन के नाम से पुकारते हैं। अन्वेषकों का विचार है कि इस शब्द का वर्तमान अर्थ में सबसे पहला प्रयोग वैशेषिक दर्शन में हुआ। .

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भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन

* भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय आह्वानों, उत्तेजनाओं एवं प्रयत्नों से प्रेरित, भारतीय राजनैतिक संगठनों द्वारा संचालित अहिंसावादी और सैन्यवादी आन्दोलन था, जिनका एक समान उद्देश्य, अंग्रेजी शासन को भारतीय उपमहाद्वीप से जड़ से उखाड़ फेंकना था। इस आन्दोलन की शुरुआत १८५७ में हुए सिपाही विद्रोह को माना जाता है। स्वाधीनता के लिए हजारों लोगों ने अपने प्राणों की बलि दी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने १९३० कांग्रेस अधिवेशन में अंग्रेजो से पूर्ण स्वराज की मांग की थी। .

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भारतीयकरण

भारतीयकरण' का अर्थ है- जीवन के विविध क्षेत्रों में भारतीयता का पुनःप्रतिष्ठा। ‘भारतीयता’ शब्द ‘भारतीय’ विशेषण में ‘ता’ प्रत्यय लगाकर बनाया गया है जो संज्ञा (भाववाचक संज्ञा) रूप में परिणत हो जाता है। भारतीय का अर्थ है - भारत से संबंधित। भारतीयता से तात्पर्य उस विचार या भाव से है जिसमें भारत से जुड़ने का बोध होता हो या भारतीय तत्वों की झलक हो या जो भारतीय संस्कृति से संबंधित हो। भारतीयता का प्रयोग राष्ट्रीयता को व्यक्त करने के लिए भी होता है। भारतीयता के अनिवार्य तत्व हैं - भारतीय भूमि, जन, संप्रभुता, भाषा एवं संस्कृति। इसके अतिरिक्त अंतःकरण की शुचिता (आंतरिक व बाह्य शुचिता) तथा सतत सात्विकता पूर्ण आनन्दमयता भी भारतीयता के अनिवार्य तत्व हैं। भारतीय जीवन मूल्यों से निष्ठापूर्वक जीना तथा उनकी सतत रक्षा ही सच्ची भारतीयता की कसौटी है। संयम, अनाक्रमण, सहिष्णुता, त्याग, औदार्य (उदारता), रचनात्मकता, सह-अस्तित्व, बंधुत्व आदि प्रमुख भारतीय जीवन मूल्य हैं। .

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भवरलाल जैन

भवरलाल हीरालाल जैन (पद्म श्री), जैन इरीगेशन सिस्टम लिमिटेड (JISL) के संस्थापक थे। वह एक पक्के गांधीवादी थे और उन्होंने जलगाँव में गाँधी तीर्थ (म्यूजियम) की स्थापना थी। .

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महात्मा गांधी

मोहनदास करमचन्द गांधी (२ अक्टूबर १८६९ - ३० जनवरी १९४८) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें दुनिया में आम जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है। संस्कृत भाषा में महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द है। गांधी को महात्मा के नाम से सबसे पहले १९१५ में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था।। उन्हें बापू (गुजराती भाषा में બાપુ बापू यानी पिता) के नाम से भी याद किया जाता है। सुभाष चन्द्र बोस ने ६ जुलाई १९४४ को रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं। प्रति वर्ष २ अक्टूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयंती के रूप में और पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है। सबसे पहले गान्धी ने प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष हेतु सत्याग्रह करना शुरू किया। १९१५ में उनकी भारत वापसी हुई। उसके बाद उन्होंने यहाँ के किसानों, मजदूरों और शहरी श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया। १९२१ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने देशभर में गरीबी से राहत दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण व आत्मनिर्भरता के लिये अस्पृश्‍यता के विरोध में अनेकों कार्यक्रम चलाये। इन सबमें विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाला स्वराज की प्राप्ति वाला कार्यक्रम ही प्रमुख था। गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये नमक कर के विरोध में १९३० में नमक सत्याग्रह और इसके बाद १९४२ में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन से खासी प्रसिद्धि प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। गांधी जी ने सभी परिस्थितियों में अहिंसा और सत्य का पालन किया और सभी को इनका पालन करने के लिये वकालत भी की। उन्होंने साबरमती आश्रम में अपना जीवन गुजारा और परम्परागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनी जिसे वे स्वयं चरखे पर सूत कातकर हाथ से बनाते थे। उन्होंने सादा शाकाहारी भोजन खाया और आत्मशुद्धि के लिये लम्बे-लम्बे उपवास रखे। .

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महात्मा गांधी के एकादश व्रत

गांधी जी ने आश्रम में रहने वालों के लिए ग्यारह व्रतों का पालन अनिवार्य रखा था। यह ग्यारह व्रत है–.

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महाव्रत

जैन धर्म में निम्नलिखित पाँच व्रतों को महाव्रत कहा जाता है-.

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महावीर

भगवान महावीर जैन धर्म के चौंबीसवें (२४वें) तीर्थंकर है। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व), वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था। तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। १२ वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। ७२ वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुनिक और चेटक भी शामिल थे। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है। जैन ग्रन्थों के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गयी है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे और ऋषभदेव पहले। हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ गया, उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया। उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जो है– अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य। उन्होंने अनेकांतवाद, स्यादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत सिद्धांत दिए।महावीर के सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएँ नहीं थीं। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसंद हो। यही महावीर का 'जीयो और जीने दो' का सिद्धांत है। .

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महावीर जयन्ती

महावीर जयंती (महावीर स्वामी जन्म कल्याणक) चैत्र शुक्ल १३ को मनाया जाता है। यह पर्व जैन धर्म के २४वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक के उपलक्ष में मनाया जाता है। यह जैनों का सबसे प्रमुख पर्व है। .

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मानव बलि

एचिलिस के कब्र पर नीओप्टोलेमस के हाथ से पॉलीजिना मर गया" (एक प्राचीन कैमिया के बाद 1900 सदी का चित्र) किसी धार्मिक अनुष्ठान के भाग (अनुष्ठान हत्या) के रूप में किसी मानव की हत्या करने को मानव बलि कहते हैं। इसके अनेक प्रकार पशुओं को धार्मिक रीतियों में काटा जाना (पशु बलि) तथा आम धार्मिक बलियों जैसे ही थे। इतिहास में विभिन्न संस्कृतियों में मानव बलि की प्रथा रही है। इसके शिकार व्यक्ति को रीति-रिवाजों के अनुसार ऐसे मारा जाता था जिससे कि देवता प्रसन्न अथवा संतुष्ट हों, उदाहरण के तौर पर मृत व्यक्ति की आत्मा को देवता को संतुष्ट करने के लिए भेंट किया जाता था अथवा राजा के अनुचरों की बलि दी जाती थी ताकि वे अगले जन्म में भी अपने स्वामी की सेवा करते रह सकें.

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मार्क सैटिन

मार्क सैटिन (जन्म: 16 नवंबर 1946) एक अमेरिकी राजनीतिक सिद्धान्तवादी, लेखक और समाचार पत्र (न्यूज़लेटर) प्रकाशक है। वे तीन राजनीतिक दृष्टिकोणों के विकास और प्रसार में योगदान करने के लिए विख्यात है –१९६० दशक में नवशांतिवाद, १९७० और १९८० दशकों में नव युग राजनीति, और १९९० और २००० के दशकों में आमूलवादी केन्द्रवाद। .

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माइकल ग्रेगर

Greger in 2007 माइकल हर्शेल ग्रेगर एक अमेरिकी चिकित्सक, लेखक और सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दों, वनस्पति-आधारित आहार के अधियाचित लाभों और पशु उत्पादों की अधियाचित हानियों पर पेशेवर वक्ता हैं। अंतर्वस्तु .

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मिताहार

मिताहार (.

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मुख्तार अहमद अंसारी

डॉ॰ मुख्तार अहमद अंसारी (मुख़्तार अहमद अंसारी, مُختار احمد انصاری) एक भारतीय राष्ट्रवादी और राजनेता होने के साथ-साथ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के पूर्व अध्यक्ष थे। वे जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के संस्थापकों में से एक थे, 1928 से 1936 तक वे इसके कुलाधिपति भी रहे। .

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मृदु शक्ति

जोसेफ निये द्वारा लिखित पुस्तक: सॉफ्ट पॉवर अंतरराष्ट्रीय संबन्धों के सन्दर्भ में, सहयोग तथा किसी प्रकार के आकर्षण के द्वारा वांछित परिणाम प्राप्त करने की क्षमता सौम्य शक्ति या मृदु शक्ति (Soft power) कहलाती है। इसके विपरीत 'कठोर शक्ति' (hard power) उस क्षमता को कहते हैं जो बल (सैन्य बल) द्वारा या धन देकर इच्छित परिणाम प्राप्त करती है। मृदु शक्ति की अवधारणा हारवर्ड विश्वविद्यालय के जोसेफ निये (Joseph Nye) द्वारा विकसित की गयी। उन्होने 'सॉफ्ट पॉवर' शब्द का प्रयोग सबसे पहले १९९० में लिखित अपनी पुस्तक 'बाउण्ड टू लीड: द चेंजिंग नेचर ऑफ अमेरिकन पॉवर' में किया। उन्होने इसको 'सॉफ्ट पॉवर: द मीन्स तू सक्सेस इन वर्ल्द पॉलिटिक्स' नामक अपनी अगली पुस्तक में और विकसित किया। आजकल इस शब्द का प्रयोग अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों के सन्दर्भ में बहुत अधिक प्रयुक्त होता है। सन २०१३ के मोनोकिल सॉफ्ट पॉवर सर्वे के अनुसार जर्मनी सर्वाधिक सौम्य शक्ति (सॉफ्ट पॉवर) वाला देश है। .

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यम

; महर्षि पतंजलि द्वारा योगसूत्र में वर्णित पाँच यम-.

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यासीन मलिक

यासीन मलिक (जन्म: 1963) जम्मू और कश्मीर के एक अलगाववादी नेता हैं। वह कश्मीर लिबरेशन फ़्रंट के प्रमुख भी है। 1994 में उन्होंने हिंसक प्रदर्शन को छोड़ दिया और कश्मीर विवाद का समाधान ढूँढने में उन्होंने अहिंसा की गाँधीवादी अवधारणाएँ को अपनाया। .

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राम प्रसाद 'बिस्मिल'

राम प्रसाद 'बिस्मिल' (११ जून १८९७-१९ दिसम्बर १९२७) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे, जिन्हें ३० वर्ष की आयु में ब्रिटिश सरकार ने फाँसी दे दी। वे मैनपुरी षड्यन्त्र व काकोरी-काण्ड जैसी कई घटनाओं में शामिल थे तथा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य भी थे। राम प्रसाद एक कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे। बिस्मिल उनका उर्दू तखल्लुस (उपनाम) था जिसका हिन्दी में अर्थ होता है आत्मिक रूप से आहत। बिस्मिल के अतिरिक्त वे राम और अज्ञात के नाम से भी लेख व कवितायें लिखते थे। ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (निर्जला एकादशी) विक्रमी संवत् १९५४, शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में जन्मे राम प्रसाद ३० वर्ष की आयु में पौष कृष्ण एकादशी (सफला एकादशी), सोमवार, विक्रमी संवत् १९८४ को शहीद हुए। उन्होंने सन् १९१६ में १९ वर्ष की आयु में क्रान्तिकारी मार्ग में कदम रखा था। ११ वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और स्वयं ही उन्हें प्रकाशित किया। उन पुस्तकों को बेचकर जो पैसा मिला उससे उन्होंने हथियार खरीदे और उन हथियारों का उपयोग ब्रिटिश राज का विरोध करने के लिये किया। ११ पुस्तकें उनके जीवन काल में प्रकाशित हुईं, जिनमें से अधिकतर सरकार द्वारा ज़ब्त कर ली गयीं। --> बिस्मिल को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध की लखनऊ सेण्ट्रल जेल की ११ नम्बर बैरक--> में रखा गया था। इसी जेल में उनके दल के अन्य साथियोँ को एक साथ रखकर उन सभी पर ब्रिटिश राज के विरुद्ध साजिश रचने का ऐतिहासिक मुकदमा चलाया गया था। --> .

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शान्तिवाद

शांतिवाद (Pacifism) वह दर्शन है जो युद्ध एवं हिंसा का विरोध करती है। भारतीय धर्मों (हिन्दू, बौद्ध धर्म, जैन धर्म) में 'अहिंसा' का जो दर्शन है वही शान्तिवाद है। आधुनिक युग में फ्रांस के एमाइल अर्नाद (Émile Arnaud (1864–1921)) ने १९०१ में सबसे पहले यह शब्द उछाला था। .

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शांति सेना

शांति सेना भारत का गांधीजी के अनुयायियों का एक संगठन है। इस संस्था के अहिंसा के सिद्धान्तों को विश्व के अनेक संगठनों ने अपनाया है। श्रेणी:महात्मा गाँधी.

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शाकाहार

दुग्ध उत्पाद, फल, सब्जी, अनाज, बादाम आदि बीज सहित वनस्पति-आधारित भोजन को शाकाहार (शाक + आहार) कहते हैं। शाकाहारी व्यक्ति मांस नहीं खाता है, इसमें रेड मीट अर्थात पशुओं के मांस, शिकार मांस, मुर्गे-मुर्गियां, मछली, क्रस्टेशिया या कठिनी अर्थात केंकड़ा-झींगा आदि और घोंघा आदि सीपदार प्राणी शामिल हैं; और शाकाहारी चीज़ (पाश्चात्य पनीर), पनीर और जिलेटिन में पाए जाने वाले प्राणी-व्युत्पन्न जामन जैसे मारे गये पशुओं के उपोत्पाद से बने खाद्य से भी दूर रह सकते हैं। हालाँकि, इन्हें या अन्य अपरिचित पशु सामग्रियों का उपभोग अनजाने में कर सकते हैं। शाकाहार की एक अत्यंत तार्किक परिभाषा ये है कि शाकाहार में वे सभी चीजें शामिल हैं जो वनस्पति आधारित हैं, पेड़ पौधों से मिलती हैं एवं पशुओं से मिलने वाली चीजें जिनमें कोई प्राणी जन्म नहीं ले सकता। इसके अतिरिक्त शाकाहार में और कोई चीज़ शामिल नहीं है। इस परिभाषा की मदद से शाकाहार का निर्धारण किया जा सकता है। उदाहरण के लिये दूध, शहद आदि से बच्चे नहीं होते जबकि अंडे जिसे कुछ तथाकथित बुद्धजीवी शाकाहारी कहते है, उनसे बच्चे जन्म लेते हैं। अतः अंडे मांसाहार है। प्याज़ और लहसुन शाकाहार हैं किन्तु ये बदबू करते हैं अतः इन्हें खुशी के अवसरों पर प्रयोग नहीं किया जाता। यदि कोई मनुष्य अनजाने में, भूलवश, गलती से या किसी के दबाव में आकर मांसाहार कर लेता है तो भी उसे शाकाहारी ही माना जाता है। पूरी दुनिया का सबसे पुराना धर्म सनातन धर्म भी शाकाहार पर आधारित है। इसके अतिरिक्त जैन धर्म भी शाकाहार का समर्थन करता है। सनातन धर्म के अनुयायी जिन्हें हिन्दू भी कहा जाता है वे शाकाहारी होते हैं। यदि कोई व्यक्ति खुद को हिन्दू बताता है किंतु मांसाहार करता है तो वह धार्मिक तथ्यों से हिन्दू नहीं रह जाता। अपना पेट भरने के लिए या महज़ जीभ के स्वाद के लिए किसी प्राणी की हत्या करना मनुष्यता कदापि नहीं हो सकती। इसके अतिरिक्त एक अवधारणा यदि भी है कि शाकाहारियों में मासूमियत और बीमारियों से लड़ने की क्षमता ज़्यादा होती है। नैतिक, स्वास्थ्य, पर्यावरण, धार्मिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, सौंदर्य, आर्थिक, या अन्य कारणों से शाकाहार को अपनाया जा सकता है; और अनेक शाकाहारी आहार हैं। एक लैक्टो-शाकाहारी आहार में दुग्ध उत्पाद शामिल हैं लेकिन अंडे नहीं, एक ओवो-शाकाहारी के आहार में अंडे शामिल होते हैं लेकिन गोशाला उत्पाद नहीं और एक ओवो-लैक्टो शाकाहारी के आहार में अंडे और दुग्ध उत्पाद दोनों शामिल हैं। एक वेगन अर्थात अतिशुद्ध शाकाहारी आहार में कोई भी प्राणी उत्पाद शामिल नहीं हैं, जैसे कि दुग्ध उत्पाद, अंडे और सामान्यतः शहद। अनेक वेगन प्राणी-व्युत्पन्न किसी अन्य उत्पादों से भी दूर रहने की चेष्टा करते हैं, जैसे कि कपड़े और सौंदर्य प्रसाधन। अर्द्ध-शाकाहारी भोजन में बड़े पैमाने पर शाकाहारी खाद्य पदार्थ हुआ करते हैं, लेकिन उनमें मछली या अंडे शामिल हो सकते हैं, या यदा-कदा कोई अन्य मांस भी हो सकता है। एक पेसेटेरियन आहार में मछली होती है, मगर मांस नहीं। जिनके भोजन में मछली और अंडे-मुर्गे होते हैं वे "मांस" को स्तनपायी के गोश्त के रूप में परिभाषित कर सकते हैं और खुद की पहचान शाकाहार के रूप में कर सकते हैं। हालाँकि, शाकाहारी सोसाइटी जैसे शाकाहारी समूह का कहना है कि जिस भोजन में मछली और पोल्ट्री उत्पाद शामिल हों, वो शाकाहारी नहीं है, क्योंकि मछली और पक्षी भी प्राणी हैं।शाकाहारी मछली नहीं खाते हैं, शाकाहारी सोसाइटी, 2 मई 2010 को पुनःप्राप्त.

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शाकाहार का इतिहास

शाकाहार की जड़ें प्राचीन भारतीय सभ्यता तथा प्राचीन यूनानी सभ्यता से निकलीं हैं। शाकाहार के विस्तृत व्यवहार के सबसे प्राचीन आंकड़े प्राचीन भारत में और प्राचीन यूनान (दक्षिणी इटली तथा ग्रीस) में मिलते हैं। दोनों ही मामलों में आहार को जन्तुओं के प्रति अहिंसा के विचार को ध्यान में रखकर विचार किया गया था। .

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सत्य

सत्य (truth) के अलग-अलग सन्दर्भों में एवं अलग-अलग सिद्धान्तों में सर्वथा भिन्न-भिन्न अर्थ हैं। .

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सत्याग्रह

सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ सत्य के लिये आग्रह करना होता है। सत्याग्रह, उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में गांधी जी के दक्षिण अफ्रीका के भारतीयों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून भंग शुरु करने तक संसार" नि:शस्त्र पतिकार' अथवा निष्क्रिय प्रतिरोध (पैंसिव रेजिस्टेन्स) की युद्धनीति से ही परिचित था। यदि प्रतिपक्षी की शक्ति हमसे अधिक है तो सशस्त्र विरोध का कोई अर्थ नहीं रह जाता। सबल प्रतिपक्षी से बचने के लिए "नि:शस्त्र प्रतिकार' की युद्धनीति का अवलंबन किया जाता था। इंग्लैंड में स्त्रियों ने मताधिकार प्राप्त करने के लिए इसी "निष्क्रिय प्रतिरोध' का मार्ग अपनाया था। इस प्रकार प्रतिकार में प्रतिपक्षी पर शस्त्र से आक्रमण करने की बात छोड़कर उसे दूसरे हर प्रकार से तंग करना, छल कपट से उसे हानि पहुँचाना, अथवा उसके शत्रु से संधि करके उसे नीचा दिखाना आदि उचित समझा जाता था। गांधी जी को इस प्रकार की दुर्नीति पसंद नहीं थी। दक्षिण अफ्रीका में उनके आंदोलन की कार्यपद्धति बिल्कुल भिन्न थी उनका सारा दर्शन ही भिन्न था अत: अपनी युद्धनीति के लिए उनको नए शब्द की आवश्यकता महसूस हुई। सही शब्द प्राप्त करने के लिए उन्होंने एक प्रतियोगिता की जिसमें स्वर्गीय मगनलाल गांधी ने एक शब्द सुझाया "सदाग्रह' जिसमें थोड़ा परिवर्तन करके गांधी जी ने "सत्याग्रह' शब्द स्वीकार किया। अमरीका के दार्शनिक थोरो ने जिस सिविल डिसओबिडियेन्स (सविनय अवज्ञा) की टेकनिक का वर्णन किया है, "सत्याग्रह' शब्द उस प्रक्रिया से मिलता जुलता था। "सत्याग्रह' का मूल अर्थ है सत्य के प्रति आग्रह (सत्य अ आग्रह) सत्य को पकड़े रहना। अन्याय का सर्वथा विरोध करते हुए अन्यायी के प्रति वैरभाव न रखना, सत्याग्रह का मूल लक्षण है। हमें सत्य का पालन करते हुए निर्भयतापूर्वक मृत्य का वरण करना चाहिए और मरते मरते भी जिसके विरुद्ध सत्याग्रह कर रहे हैं, उसके प्रति वैरभाव या क्रोध नहीं करना चाहिए।' "सत्याग्रह' में अपने विरोधी के प्रति हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है। धैर्य एवं सहानुभूति से विरोधी को उसकी गलती से मुक्त करना चाहिए, क्योंकि जो एक को सत्य प्रतीत होता है, वहीं दूसरे को गलत दिखाई दे सकता है। धैर्य का तात्पर्य कष्टसहन से है। इसलिए इस सिद्धांत का अर्थ हो गया, "विरोधी को कष्ट अथवा पीड़ा देकर नहीं, बल्कि स्वयं कष्ट उठाकर सत्य का रक्षण।' महात्मा गांधी ने कहा था कि सत्याग्रह में एक पद "प्रेम' अध्याहत है। सत्याग्रह मध्यमपदलोपी समास है। सत्याग्रह यानी सत्य के लिए प्रेम द्वारा आग्रह (सत्य + प्रेम + आग्रह .

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समवशरण

तीर्थंकर का दिव्य समवशरण जैन धर्म में समवशरण "सबको शरण", तीर्थंकर के दिव्य उपदेश भवन के लिए प्रयोग किया जाता है| समवशरण दो शब्दों के मेल से बना है, "सम" (सबको) और "अवसर"। जहाँ सबको ज्ञान पाने का समान अवसर मिले, वह है समवशरण। यह तीर्थंकर के केवल ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् देवों द्वारा बनाया जाता है| समवशरण "जैन कला" में काफी प्रचलित है। .

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सराक

समाज क एक जैनधर्मावलंवी समुदाय है। इस समुदाय के लोग बिहार, झारखण्ड, बंगाल एवं उड़ीसा के लगभग १५ जिलों में निवास करते हैं। इनकी संख्या लगभग १५ लाख है। सराक संस्कृत के शब्द श्रावक का अपभ्रंश रूप है। जैनधर्म में आस्था रखने वाले श्रद्धालु को श्रावक कहते है। सराक जैनधर्म के २३वें तीर्थंकर, पार्श्वनाथ के तीर्थकाल के प्राचीन श्रावकों की वंश परंपरा के उत्तराधिकारी हैं। सराक जाति पिछले दो हज़ार वर्षों से देश में व्यवस्थित शासन के अभाव, अराजकता, नैतिक अस्थिरता आदि परिस्थितियों में धर्मद्रोहियों से बचने के लिए जंगलों में भटकती रही है। समय की मार, क्रूर शासको के अत्याचारों के साथ-साथ अनेक झंझावातों एवं विपरीत परिस्थितियों को झेलते हुए भी उन्होंने अपने मूल संस्कारों जैसे-नाम/ गोत्र/ भक्ति/ उपासना/ पुजपध्दति/ जलगालन/ रात्रिभोजन त्याग/ अहिंसा की भावना को नहीं छोड़ा। निर्ग्रन्थ साधुयों का साथ न मिलने के कारण वे जैन समाज की मूलधारा से कटकर आदिवासी और जनजाति की श्रेणी में आ गए l श्रेणी:जैन धर्म श्रेणी:भारतीय जनजाति.

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सालिम अली

सालिम मुईनुद्दीन अब्दुल अली (12 नवम्बर 1896 - 27 जुलाई 1987) एक भारतीय पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी थे। उन्हें "भारत के बर्डमैन" के रूप में जाना जाता है, सालिम अली भारत के ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत भर में व्यवस्थित रूप से पक्षी सर्वेक्षण का आयोजन किया और पक्षियों पर लिखी उनकी किताबों ने भारत में पक्षी-विज्ञान के विकास में काफी मदद की है। 1976 में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से उन्हें सम्मानित किया गया। 1947 के बाद वे बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के प्रमुख व्यक्ति बने और संस्था की खातिर सरकारी सहायता के लिए उन्होंने अपने प्रभावित किया और भरतपुर पक्षी अभयारण्य (केवलादेव नेशनल पार्क) के निर्माण और एक बाँध परियोजना को रुकवाने पर उन्होंने काफी जोर दिया जो कि साइलेंट वेली नेशनल पार्क के लिए एक खतरा थी। .

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संस्कृत मूल के अंग्रेज़ी शब्दों की सूची

यह संस्कृत मूल के अंग्रेजी शब्दों की सूची है। इनमें से कई शब्द सीधे संस्कृत से नहीं आये बल्कि ग्रीक, लैटिन, फारसी आदि से होते हुए आये हैं। इस यात्रा में कुछ शब्दों के अर्थ भी थोड़े-बहुत बदल गये हैं। .

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संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द

हिन्दी भाषी क्षेत्र में कतिपय संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द प्रचलित हैं। जैसे- सप्तऋषि, सप्तसिन्धु, पंच पीर, द्वादश वन, सत्ताईस नक्षत्र आदि। इनका प्रयोग भाषा में भी होता है। इन शब्दों के गूढ़ अर्थ जानना बहुत जरूरी हो जाता है। इनमें अनेक शब्द ऐसे हैं जिनका सम्बंध भारतीय संस्कृति से है। जब तक इनकी जानकारी नहीं होती तब तक इनके निहितार्थ को नहीं समझा जा सकता। यह लेख अभी निर्माणाधीन हॅ .

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ज्ञानसागर (छाणी)

आचार्य ज्ञानसागर एक प्रख्यात दिगम्बर जैन संत हैं। आचार्य ज्ञानसागर के प्रवचन सत्य, अहिंसा, संयम जैसे विषयों पर होते हैं। .

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जैन दर्शन

जैन दर्शन एक प्राचीन भारतीय दर्शन है। इसमें अहिंसा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। जैन धर्म की मान्यता अनुसार 24 तीर्थंकर समय-समय पर संसार चक्र में फसें जीवों के कल्याण के लिए उपदेश देने इस धरती पर आते है। लगभग छठी शताब्दी ई॰ पू॰ में अंतिम तीर्थंकर, भगवान महावीर के द्वारा जैन दर्शन का पुनराव्रण हुआ । इसमें वेद की प्रामाणिकता को कर्मकाण्ड की अधिकता और जड़ता के कारण मिथ्या बताया गया। जैन दर्शन के अनुसार जीव और कर्मो का यह सम्बन्ध अनादि काल से है। जब जीव इन कर्मो को अपनी आत्मा से सम्पूर्ण रूप से मुक्त कर देता हे तो वह स्वयं भगवान बन जाता है। लेकिन इसके लिए उसे सम्यक पुरुषार्थ करना पड़ता है। यह जैन धर्म की मौलिक मान्यता है। सत्य का अनुसंधान करने वाले 'जैन' शब्द की व्युत्पत्ति ‘जिन’ से मानी गई है, जिसका अर्थ होता है- विजेता अर्थात् वह व्यक्ति जिसने इच्छाओं (कामनाओं) एवं मन पर विजय प्राप्त करके हमेशा के लिए संसार के आवागमन से मुक्ति प्राप्त कर ली है। इन्हीं जिनो के उपदेशों को मानने वाले जैन तथा उनके साम्प्रदायिक सिद्धान्त जैन दर्शन के रूप में प्रख्यात हुए। जैन दर्शन ‘अर्हत दर्शन’ के नाम से भी जाना जाता है। जैन धर्म में चौबीस तीर्थंकर (महापुरूष, जैनों के ईश्वर) हुए जिनमें प्रथम ऋषभदेव तथा अन्तिम महावीर (वर्धमान) हुए। इनके कुछ तीर्थकरों के नाम ऋग्वेद में भी मिलते हैं, जिससे इनकी प्राचीनता प्रमाणित होती है। जैन दर्शन के प्रमुख ग्रन्थ प्राकृत (मागधी) भाषा में लिखे गये हैं। बाद में कुछ जैन विद्धानों ने संस्कृत में भी ग्रन्थ लिखे। उनमें १०० ई॰ के आसपास आचार्य उमास्वामी द्वारा रचित तत्त्वार्थ सूत्र बड़ा महत्वपूर्ण है। वह पहला ग्रन्थ है जिसमें संस्कृत भाषा के माध्यम से जैन सिद्धान्तों के सभी अंगों का पूर्ण रूप से वर्णन किया गया है। इसके पश्चात् अनेक जैन विद्वानों ने संस्कृत में व्याकरण, दर्शन, काव्य, नाटक आदि की रचना की। संक्षेप में इनके सिद्धान्त इस प्रकार हैं- .

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जैन धर्म

जैन ध्वज जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है। जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अ-जैन साहित्य और विशेषकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं। .

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जैन धर्म में अहिंसा

एक जैन मंदिर में एक चित्र जिस पर "''अहिंसा परमो धर्म''" (अहिंसा सर्वश्रेष्ठ धर्म हैं) लिखा हुआ हैं। जैन धर्म में अहिंसा एक मूलभूत सिद्धांत हैं जो अपनी नैतिकता और सिद्धांत की आधारशिला का गठन करता हैं। शब्द अहिंसा का अर्थ है हिंसा का अभाव, या अन्य जीवों को नुकसान पहुँचाने की इच्छा का अभाव। शाकाहार और जैनों की अन्य अहिंसक प्रथाएँ और अनुष्ठान अहिंसा के सिद्धांत से प्रवाहित होते हैं। अहिंसा की जैन अवधारणा अन्य दर्शन में पाई जानेवाली अहिंसा की अवधारणाओं से बहुत अलग हैं कि अवधारणा अहिंसा में पाया  है। आमतौर पर हिंसा को दूसरों को नुकसान पहुँचाने से जोड़ा जाता हैं। लेकिन जैन दर्शन के अनुसार, हिंसा का संदर्भ मुख्य रूप से स्वयं को आघात करने से हैं - अर्थात, वह व्यवहार जो आत्मा की अपनी क्षमता को मोक्ष  (जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति) प्राप्त करने से रोकता हैं। साथ ही, इसका मतलब दूसरों के प्रति हिंसा भी हैं, क्योंकि इस दूसरों को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति से अंततः स्वयं की आत्मा को ही हानि पहुँचती हैं। इसके अलावा, अहिंसा की अवधारणा का विस्तार जैनों ने न केवल मनुष्यों तक, बल्कि सभी जानवरों, पौधों, सूक्ष्म जीवों और सभी प्राणी जिनमे जीवन या जीवन की संभावना हो, तक करते हैं। प्रत्येक जीवन पवित्र है और हर किसी के पास अपनी अधिकतम क्षमता तक अभयपूर्वक जीने का अधिकार हैं।  जीवित प्राणियों को उन लोगों से भय नहीं रहता जिन्होंने अहिंसा का व्रत लिया हो। जैन धर्म के अनुसार, जीवन की सुरक्षा, जिसे "अभयदानम्" के रूप में भी जाना जाता हैं, सर्वोच्च दान हैं जो कोई व्यक्ति कर सकता हैं। "Giving protection always to living beings who are in fear of death is known as abhayadana" .

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जैन भोजन

जैन भोजन की समाविष्टि जैन धर्म के अंतर्गत हुई हैं, जो सात्विकता से परिपूर्ण, अहिंसक शाकाहारी भोजन हैं। जैन भोजन न केवल मांसाहार का त्याग करता हैं, बल्कि आम शाकाहार से वृहत्, वह कंदमूल (जमीकंद) को भी अभक्ष्य मानता हैं। .

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जैन मुनि

आचार्य भूतबली जी की प्रतिमा आचार्य विद्यासागर पिच्छी, कमंडल, शास्त्र जैन मुनि जैन धर्म में संन्यास धर्म का पालन करने वाले व्यक्तियों के लिए किया जाता हैं। जैन मुनि के लिए निर्ग्रन्थ शब्द का प्रयोग भी किया जाता हैं। मुनि शब्द का प्रयोग पुरुष संन्यासियों के लिए किया जाता हैं और आर्यिका शब्द का प्रयोग स्त्री संन्यासियों के लिए किया जाता हैं।Cort, John E. (2001).

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विद्यानंद

आचार्य Vidyanand जी (हिंदी: आचार्य विद्यानंद) (जन्म 22 अप्रैल 1925) के एक वरिष्ठ सबसे प्रमुख विचारक, दार्शनिक, लेखक, संगीतकार, संपादक, क्यूरेटर और एक बहुमुखी जैन साधु समर्पित किया है, जो अपने पूरे जीवन में उपदेश और अभ्यास महान अवधारणा की अहिंसा (अहिंसा) के माध्यम से जैन धर्महै। वह है के शिष्य आचार्य Deshbhushan.

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विकीर्णन (डायसपोरा)

विकीर्णन या डायस्पोरा (diaspora) से आशय है -किसी भौगोलिक क्षेत्र के मूल वासियों का किसी अन्य बहुगोलिक क्षेत्र में प्रवास करना (विकीर्ण होना)। किन्तु डायसपोरा का विशेष अर्थ ऐतिहासिक अनैच्छिक प्रकृति के बड़े पैमाने वाले विकीर्ण, जैसे जुडा से यहूदियों का निष्कासन। .

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व्रत (जैन)

सत्प्रवृत्ति और दोषनिवृत्ति को ही जैनधर्म में व्रत कहा जाता है। सत्कार्य में प्रवृत्त होने के व्रत का अर्थ है उसके विरोधी असत्कार्यों से पहले निवृत्त हो जाना। फिर असत्कार्यों से निवृत्त होने के व्रत का मतलब है, उसके विरोधी सत्कार्यों में मन, वचन और काय से प्रवृत्त होना। मुख्य व्रत पाँच हैं- अहिंसा, अमृषा, अस्तेय, अमैथुन और अपरिग्रह। .

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वेलुपिल्लई प्रभाकरन

वेलुपिल्लई प्रभाकरन வேலுப்பிள்ளை பிரபாகரன் नवंबर 26, 1954 - मई 19, 2009 लिबरेशन टाइगर्स तमिल ईलम (लिट्टे या तमिल टाइगर्स), आतंकवादी संगठन जिसने श्री लंका के उत्तर और पूर्व प्रांत में एक स्वतंत्र तमिल राज्य बनाने का प्रयास किया, के संस्थापक थे। लगभग 25 साल के लिए, लिट्टे ने एक हिंसक पृथकतावादी अभियान चलने की कोशिश की जिसके के कारण वे 32 देशों द्वारा आतंकवादी संगठन कहलाए.

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वीरचन्द गाँधी

वीरचन्द गाँधी (25 अगस्त 1864 - 7 अगस्त 1901) उन्नीसवीं सदी के एक जैन विद्वान थे, जो शिकागो के उस प्रसिद्ध धर्म-सम्मेलन में जैन-प्रतिनिधि बन कर गए थे जिससे स्वामी विवेकानन्द को ख्याति मिली थी। वीरचन्द गाँधी ने अहिंसा के सिद्धान्त को बहुत महत्वपूर्ण बताया था। .

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ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान

ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान (1890 - 20 जनवरी 1988) सीमाप्रांत और बलूचिस्तान के एक महान राजनेता थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और अपने कार्य और निष्ठा के कारण "सरहदी गांधी" (सीमान्त गांधी), "बच्चा खाँ" तथा "बादशाह खान" के नाम से पुकारे जाने लगे। वे भारतीय उपमहाद्वीप में अंग्रेज शासन के विरुद्ध अहिंसा के प्रयोग के लिए जाने जाते है। एक समय उनका लक्ष्य संयुक्त, स्वतन्त्र और धर्मनिरपेक्ष भारत था। इसके लिये उन्होने 1920 में खुदाई खिदमतगार नाम के संग्ठन की स्थापना की। यह संगठन "सुर्ख पोश" के नाम से भी जाने जाता है। .

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गांधीवाद

गांधीवाद मोहनदास करमचंद गांधी (जिन्हे ज्यादातर महात्मा गांधी के नाम से जाना जाता है) के आदर्शों, विश्वासों एवं दर्शन से उदभूत विचारों के संग्रह को कहा जाता है, जो स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेताओं में से थे। यह ऐसे उन सभी विचारों का एक समेकित रूप है जो गांधीजी ने जीवन पर्यंत जिया एवं किया था। जब किसी व्यक्ति या संस्थान को गांधीवादी कहकर संबोधित करते हैं तो उसका तात्पर्य होता है गांधीजी द्वारा स्थापित मूल्यों एवं आदर्शों का अनुपालन करनेवाला होता है। .

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गांधीगिरी

गांधीगिरी एक पुराना शब्द है जो गांधीवाद के मूल्यों की ओर इशारा करता है जिसमें सत्याग्रह एवं अहिंसा सबसे मुख्य है। इस शब्द को लोकप्रिय रूप तब मिला जब २००६ में हिंदी फिल्म लगे रहो मुन्नाभाई प्रदर्शित हुई। .

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आदर्शवाद (अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध)

फ्रांसीसी क्रांति (1789) व अमेरिकी क्रान्ति (1776) को अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों में आदर्शवादी उपागम (Idealist Approach) की प्रेरणा माना गया है। इसके प्रमुख समर्थक रहे हैं - कौण्डरसैट, वुडरो विल्सन, बटन फिल्ड, बनार्ड रसल आदि। इनके द्वारा एक आदर्श विश्व की रचना की गई है जो अहिंसा व नैतिक आधारों पर आधारित होगा व युद्धों को त्याग देगा। .

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अणुव्रत

अणुव्रत का अर्थ है लघुव्रत। जैन धर्म के अनुसार श्रावक, अणुव्रतों का पालन करते हैं। 'महाव्रत' साधुओं के लिए बनाए जाते हैं। यही अणुव्रत और महाव्रत में अंतर है, अन्यथा दोनों समान हैं। अणुव्रत इसलिए कहे जाते हैं कि साधुओं के महाव्रतों की अपेक्षा वे लघु होते हैं। महाव्रतों में सर्वत्याग की अपेक्षा रखते हुए सूक्ष्मता के साथ व्रतों का पालन होता है, जबकि अणु व्रतों का स्थूलता से पालन किया जाता है। अणुव्रत पाँच होते हैं- (1) अहिंसा, (2) सत्य, (3) अस्तेय, (4) ब्रह्मचर्य और (5) अपरिग्रह।.

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अपरिग्रह

अपरिग्रह गैर-अधिकार की भावना, गैर लोभी या गैर लोभ की अवधारणा है, जिसमें अधिकारात्मकता से मुक्ति पाई जाती है।। यह विचार मुख्य रूप से जैन धर्म तथा हिन्दू धर्म के राज योग का हिस्सा है। जैन धर्म के अनुसार "अहिंसा और अपरिग्रह जीवन के आधार हैं"। अपरिग्रह का अर्थ है कोई भी वस्तु संचित ना करना। .

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अलखनामी

कोई विवरण नहीं।

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अहिंसा पुरस्कार

अहिंसा पुरस्कार उन व्यक्तियों की पहचान के लिए जैनोलॉजी संस्थान द्वारा दिया गया एक वार्षिक पुरस्कार है जो अहिंसा के सिद्धांतों को सन्निहित करते हैं और बढ़ावा देते हैं। यह 2006 में स्थापित किया गया था और तब से 2 अक्टूबर को, महात्मा गांधी की जयंती के दिन, "अहिंसा दिवस" कार्यक्रम में प्रदान किया जाता था। यह जैनोलॉजी संस्थान के निदेशकों द्वारा दिया जाता है, जो कि ब्रिटेन में स्थित जैन धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाला एक अन्तरराष्ट्रीय संगठन है। .

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