लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
डाउनलोड
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

अपवर्तनांक

सूची अपवर्तनांक

एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाने पर प्रकाश की किरण सीधी न जाकर अभिलम्ब की तरफ या अभिलम्ब से दूर मुड़ जाती है। अभिलम्ब की तरफ मुड़ेगी या अभिलम्ब से दूर जायेगी - यह दोनों माध्यमों के अपवर्तनांक पर निर्भर करता है। किसी बिन्दु से निकलने वाले वेवफ्रॉण्ट जब कम अपवर्तनांक वाले माध्यम से अधिक अपवर्तनांक वाले माध्यम में प्रवेश करते हैं तो उनमें परिवर्तन होता है। ऊपर वाले वेवफ्रॉण्ट पूर्णतः वृत्ताकार हैं जबकि नीचे वाले वृत्ताकार न होकर लगभग अतिपरवलय के आकार के हैं। किसी माध्यम (जैसे जल, हवा, कांच आदि) का अपवर्तनांक (रिफ्रैक्टिव इण्डेक्स) वह संख्या है जो बताती है कि उस माध्यम में विद्युतचुम्बकीय तरंग (जैसे प्रकाश) की चाल किसी अन्य माध्यम की अपेक्षा कितने गुना कम या अधिक है। यदि प्रकाश के सन्दर्भ में बात करें तो सोडा-लाइम कांच का अपवर्तनांक लगभग 1.5 है जिसका अर्थ यह है कि कांच में प्रकाश की चाल निर्वात में प्रकाश की चाल की अपेक्षा 1.5 गुना कम अर्थात (1/1.5 .

21 संबंधों: थैलियम, द्विनेत्री दूरदर्शी, द्विअपवर्तन, प्रकाश का कणिका सिद्धान्त, पूर्ण आन्तरिक परावर्तन, फाइबर-ऑप्टिक संचारण, बोरोसिलिकेट काँच, मानव नेत्र, साधारण नमक, सिलिकन कार्बाइड, स्नेल का नियम, हेंड्रिक लारेंज़, ज्यामितीय प्रकाशिकी, ईथर माध्यम की परिकल्पना, विमाहीन संख्या, विस्तारात्मक तथा अविस्तारात्मक गुणधर्म, विकिरण मापी ग्रहण, क्रिस्टलीय ठोस, कौशी समीकरण, अपवर्तन, अपवर्तनांकों की सूची

थैलियम

थैलियम (Thallium) एक रासायनिक तत्त्व है। यह आवर्त सारणी के तृतीय मुख्य समूह का अंतिम तत्व है। इसके दो स्थिर समस्थानिक प्राप्त हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ २०३ एवं २०५ हैं। इसके अतिरिक्त इसके नौ अस्थिर समस्थानिक ज्ञात हैं। इनकी द्रव्यमान संख्याएँ १९९, २००, २०२, २०४, २०६, २०७, २०८, २०९ और २१० हैं। इनमें कुछ रेडियधर्मी अयस्कों में मिलते हैं और कुछ कृत्रिम साधनों द्वारा उपलब्ध हैं। इस तत्व की खोज अंग्रेज वैज्ञानिक विलियम क्रुक्स ने १८६१ ईo में एक विशेष सेलेनियम युक्त पायराइट (seleniferous pyrite) में वर्णक्रममापी (spectroscopic) उपकरण द्वारा की। उन्होंने भूर्जित (roasted) अयस्क की धूल के वर्णक्रममापी निरीक्षण में एक हल्के हरे रंग की रेखा देखी, जिसके कारण इस तत्व का नाम थैलियम रखा। इस तत्व को लैमी (Lamy) ने सर्वप्रथम पृथक् कर इसके गुणधर्म का निरीक्षण किया। अनेक पायराइट अयस्कों में थैलियम न्यून मात्रा में वर्तमान रहता है। केवल क्रुसाइट (Crookesite) नामक अयस्क में यह १७% मात्रा में उपस्थित रहता है। सामान्यत: यह कुछ अयस्कों की चिमनी (flue) धूल, या सल्फ्यूरिक अम्ल बनते समय प्रकोष्ठ कीच (chamber mud), से निकाला जाता है। कीच को उबलते जल से उपचारित करने पर थैलियम सल्फेट का विलयन बन जाता है, जिसे छानकर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल द्वारा क्लोराइड में परिवर्तित करते हैं। क्लोराइड को फिर सल्फ्यूरिक अम्ल की क्रिया द्वारा सल्फेट में परिणत करने से अन्य अपद्रव्य दूर हो जाते हैं। उबलते जल की क्रिया से केवल थैलियम सल्फेट ही घुलता है। विलयन के विद्युद्विश्लेषण अथवा यशद धातु की प्रक्रिया द्वारा थैलियम धातु मिलती है। .

नई!!: अपवर्तनांक और थैलियम · और देखें »

द्विनेत्री दूरदर्शी

एक विशिष्ट पोर्रो प्रिज़्म द्विनेत्री दूरदर्शी की डिजाइन फादर चेरुबिन डी'ऑर्लियंस द्वारा निर्मित द्विनेत्री दूरदर्शी, 1681, मुसी डेस कला एट मैटियर्स द्विनेत्री (binocular), फील्ड ग्लास अथवा द्विनेत्री दूरदर्शी (binocular telescope) समान अथवा दर्पण सममिति वाले दूरदर्शी-युग्म है, जो साथ-साथ लगे होते हैं तथा एक दिशा में देखने के लिए परिशुद्धता से लगाए जाते हैं। एक साधरण द्विनेत्री दूरदर्शी, गैलिलिओ किस्म के दो दूरदर्शियों का युग्म होता है। द्विनेत्री का उपयोग पार्थिव वस्तुओं के देखने में होता है, इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि इस प्रकार के द्विनेत्री में वस्तु का सीधा प्रतिबिंब बने। गैलिलियों किस्म के दूरदर्शी सीधा प्रतिबिंब बनाते हैं। इसलिए साधारण द्विनेत्री दूरदर्शी के निर्माण में इसी प्रकार के दूरदर्शी का उपयोग होता है। साधारण द्विनेत्री दूरदर्शी को नाट्य दूरबीन कहते हैं। टेलिस्कोप (मोनोक्युलर) के विपरीत दूरबीन (बाइनोक्युलर) उपयोगकर्ता को त्रि-आयामी छवि प्रस्तुत कराती है: अपेक्षाकृत नज़दीक की वस्तुओं को देखते समय दर्शक की दोनों आंखों के लिए थोड़े से अलग दृष्टिकोण से छवियां प्रस्तुत होती हैं जो कि मिल कर गहराई का प्रभाव प्रस्तुत करती हैं। मोनोक्युलर टेलिस्कोप के विपरीत इसमें भ्रम से बचने के लिए एक आंख को बंद अथवा ढकने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। दोनों आंखों के प्रयोग से दृष्टिसंबंधी तीव्रता (रिज़ोल्यूशन) काफी बढ़ जाती है और ऐसा काफी दूर की वस्तुओं के लिए भी होता है जहां गहराई का आभास स्पष्ट नहीं होता। .

नई!!: अपवर्तनांक और द्विनेत्री दूरदर्शी · और देखें »

द्विअपवर्तन

ग्राफ कागज पर रखे कैल्साइट क्रिस्टल से होकर देखने पर ग्राफ की नीली रेखाएँ दो-दो बार दिख रहीं हैं। द्विअपवर्तन (birefringence) पदार्थ का वह प्रकाशीय गुण है जिसमें उसका अपवर्तनांक प्रकाश के ध्रुवण तथा प्रकाश के दिशा के अनुसार अलग-अलग होता है। श्रेणी:प्रकाशिकी.

नई!!: अपवर्तनांक और द्विअपवर्तन · और देखें »

प्रकाश का कणिका सिद्धान्त

न्यूटन सबसे पहला, पूर्णत: वैज्ञानिक सिद्धांत विख्यात अँग्रेज वैज्ञानिक न्यूटन (सन्‌ 1642-1727) द्वारा प्रतिपादित हुआ था। इसमें यह माना गया था कि प्रदीप्त वस्तु में से प्रकाश अत्यंत सूक्ष्म एवं तीव्रगामी कणिकाओं के रूप में निकलता है। ये कणिकाएँ साधारण द्रव्य की नहीं होतीं, क्योंकि इनमें भार बिलकुल नहीं होता। विभिन्न रंगों के प्रकाश की कणिकाओं में भेद केवल उनके विस्तार का होता है: लाल प्रकाश की कणिकाएँ बड़ी होती हैं और बैंगनी की छोटी। इस परिकल्पना के द्वारा प्रकाश द्वारा उर्जा का संचारण, शून्यकाश में गमन, सरल रेखा गमन आदि बातें तो स्पष्ट: समझ में आ जाती हैं, क्योंकि ये घटनाएँ तो न्यूटन ही के सुप्रतिष्ठित गतिवैज्ञानिक नियमानुकूल हैं। इन कणिकाओं को पूर्णत: प्रत्यास्थी मान लेने से उन्हीं नियमों से परावर्तन के मुख्य नियम (परावर्तन कोण .

नई!!: अपवर्तनांक और प्रकाश का कणिका सिद्धान्त · और देखें »

पूर्ण आन्तरिक परावर्तन

पूर्ण आन्तरिक परावर्तन (लाल एवं पीला) पूर्ण आन्तरिक परावर्तन (Total internal reflection) एक प्रकाशीय परिघटना है जिसमें प्रकाश की किरण किसी माध्यम के तल पर ऐसे कोण पर आपतित होती है कि उसका परावर्तन उसी माध्यम में हो जाता है। इसके लिये आवश्यक शर्त यह है कि प्रकाश की किरण अधिक अपवर्तनांक के माध्यम से कम अपवर्तनांक के माध्यम में प्रवेश करे (अर्थात सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करे) तथा आपतन कोण का मान 'क्रान्तिक कोण' से अधिक हो।। प्रकाशीय तन्तुओं का कार्य पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के सिद्धान्त पर ही आधारित है। .

नई!!: अपवर्तनांक और पूर्ण आन्तरिक परावर्तन · और देखें »

फाइबर-ऑप्टिक संचारण

फाइबर ऑप्टिक संचार में, जानकारी ऑप्टिकल फाइबर के माध्यम से प्रकाश भेजने के द्वारा फैलता है। फाइबर-ऑप्टिक संचारण एक प्रणाली है जिसमें सूचनाओं की जानकारी एक स्थान से दूसरे स्थान में ऑप्टिकल फाइबर के माध्यम से प्रकाश बिन्दुओं के रूप में भेजी जाती हैं। प्रकाश एक विद्युत चुम्बकीय तरंग वाहक विकसित करता है जो विधिवत् रूप से जानकारी को साथ ले जाते हैं। 1970 के दशक में इसे सबसे पहले विकसित किया गया, फाइबर-ऑप्टिक संचार प्रणाली ने दूरसंचार उद्योग में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है और सूचना युग के आगमन में एक प्रमुख भूमिका निभाई है। विद्युत संचरण पर इसके फायदे के कारण, विकसित दुनिया में कोर नेटवर्क में ताबें की तारों की जगह काफी हद तक ऑप्टिकल फाइबर ने ले ली है। फाइबर-ऑप्टिक्स के उपयोग की संचारण प्रक्रिया में निम्नलिखित मूल चरण होते हैं: एक ट्रांसमीटर के प्रयोग को शामिल कर ऑप्टिकल संकेत बनाना, फाइबर के साथ संकेत प्रसार करना, सुनिश्चित करना कि संकेत विकृत अथवा कमजोर नहीं हो, ऑप्टिकल संकेत प्राप्त करना और उसे एक विद्युत संकेत में परिवर्तित करना। .

नई!!: अपवर्तनांक और फाइबर-ऑप्टिक संचारण · और देखें »

बोरोसिलिकेट काँच

बोरोसिलिकेट काँच से बनी एक वस्तु बोरोसिलिकेट काँच एक प्रकार का काँच होता है, जो सिलिका और बोरॉन ट्राईऑक्साइड से मिल कर बना एक यौगिक है। .

नई!!: अपवर्तनांक और बोरोसिलिकेट काँच · और देखें »

मानव नेत्र

मानव नेत्र के आन्तरिक भाग मानव नेत्र शरीर का वह अंग है जो विभिन्न उद्देश्यों से प्रकाश के प्रति क्रिया करता है। आँख वह इंद्रिय है जिसकी सहायता से देखते हैं। मानव नेत्र लगभग १ करोड़ रंगों में अन्तर कर सकता है। नेत्र शरीर की प्रमुख ज्ञानेंद्रिय हैं जिससे रूप-रंग का दर्शन होता है। मनुष्य के दो नेत्र होते हैं। .

नई!!: अपवर्तनांक और मानव नेत्र · और देखें »

साधारण नमक

नमक (Common Salt) से साधारणतया भोजन में प्रयुक्त होने वाले नमक का बोध होता है। रासायनिक दृष्टि से यह सोडियम क्लोराइड (NaCl) है जिसका क्रिस्टल पारदर्शक एवं घनाकार होता है। शुद्ध नमक रंगहीन होता है, किंतु लोहमय अपद्रव्यों के कारण इसका रंग पीला या लाल हो जाता है। समुद्र के खारापन के लिये उसमें मुख्यत: सोडियम क्लोराइड की उपस्थिति कारण होती है। भौमिकी में लवण को हैलाइट (Halite) कहते हैं। .

नई!!: अपवर्तनांक और साधारण नमक · और देखें »

सिलिकन कार्बाइड

सिलिकॉन कार्बाइड सिलिकन कार्बाइड (Silicon Carbide, SiC) अथवा कार्बोरंडम (Carborundum), सिलिकन तथा कार्बन का यौगिक है। इसकी खोज सन् 1891 में एडवर्ड ऑचेसन (Edward Acheson) ने की थी। .

नई!!: अपवर्तनांक और सिलिकन कार्बाइड · और देखें »

स्नेल का नियम

300px स्नेल का नियम तरंगों के अपवर्तन से सम्बन्धित एक सूत्र (फॉर्मूला) है जो आपतन कोण तथा अपवर्तन कोण के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है। यह नियम निम्नलिखित है- दूसरे शब्दों में, यहाँ प्रत्येक कोण \theta दोनों माध्यमों की सीमारेखा के अभिलम्ब के सापेक्ष मापा जाता है। v दोनों माध्यमों में प्रकाश का वेग है, n दोनों माध्यमों के अपवर्तनांक को अभिव्यक्त करता है। श्रेणी:प्रकाशिकी श्रेणी:भौतिकी.

नई!!: अपवर्तनांक और स्नेल का नियम · और देखें »

हेंड्रिक लारेंज़

हेंड्रिक ऐंतूँ लारेंज़ (Hendrik Antoon Lorentz, सन् १८५३-१९२८) प्रसिद्ध डच भौतिकीविद् थे जिन्हें १९०२ का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार दिया गया। .

नई!!: अपवर्तनांक और हेंड्रिक लारेंज़ · और देखें »

ज्यामितीय प्रकाशिकी

तेरहवीं शदी का एक डिजाइन जिसमें पानी से भरे गोलाकार बर्तन द्वारा प्रकाश के अपवर्तन द्वारा प्रतिबिम्ब निर्माण को दर्शाया गया है। प्रकाशिकी ज्यामितीय (Geometrical Optics) प्रकाशिकी का वह भाग है जो प्रकाश को 'किरण' जैसा मानकर उसकी गति का अध्ययन किया जाता है। इसलिये इसे 'किरण प्रकाशिकी' (ray optics) भी कहते हैं। किरण प्रकाशिकी की मान्यता के अनुसार जब तक समांगी माध्यम में प्रकाश गति करता है तब तक उसका मार्ग सीधी रेखा में होता है। जहाँ पर दो माध्यम मिलते हैं, वहाँ प्रकाश किरणे मुड़ जाती हैं (किरणे दो भागों में बंट भी सकतीं हैं।) वस्तुतः प्रकाशिकी का बड़ी सीमा तक सरलीकरण ही ज्यामितीय प्रकाशिकी है। ज्यामितीय प्रकाशिकी के अन्तर्गत प्रकाश के विवर्तन और व्यतिकरण की कोई व्याख्या नहीं दी जा सकती। किन्तु ज्यामितीय प्रकाशिकी छबियों के निर्माण एवं प्रकाशिक विपथम (optical aberrations) आदि की व्याख्या करने में सक्षम है। दूसरे शब्दों में, ज्यामितीय प्रकाशिकी के द्वारा परिणाम तब तक शुद्ध आते हैं जब तक वस्तुओं का आकार प्रकाश के तरंगदैर्घ्य की तुलना में काफी बड़ा हो। .

नई!!: अपवर्तनांक और ज्यामितीय प्रकाशिकी · और देखें »

ईथर माध्यम की परिकल्पना

19 वीं शताब्दि में, प्रकाशवाही ईथर सिद्धांत के अनुसार, ब्रह्माण्ड में एक ईथर माध्यम की परिकल्पना (Aether drag hypothesis) की गई। इसके अनुसार प्रकाश तरंगे ईथर माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान पर संचरित होती हैं। .

नई!!: अपवर्तनांक और ईथर माध्यम की परिकल्पना · और देखें »

विमाहीन संख्या

विमाहीन संख्या या अविम संख्या ऐसी संख्या को कहते हैं जिसकी कोई विमा नहीं होती है। ऐसी संख्याएँ पूर्ण रूप से केवल संख्या होती हैं। गणित, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रयुक्त कई संख्याएँ विमाहीन होती हैं। उदाहरण: π क्योंकि पाई, परिधि की लम्बाई तथा व्यास की लम्बाई का अनुपात है, अतः इसकी कोई विमा नही है। (लम्बाई/लम्बाई)। .

नई!!: अपवर्तनांक और विमाहीन संख्या · और देखें »

विस्तारात्मक तथा अविस्तारात्मक गुणधर्म

पदार्थों के भौतिक गुणों को प्रायः दो भागों में विभाजित किया जाता है - .

नई!!: अपवर्तनांक और विस्तारात्मक तथा अविस्तारात्मक गुणधर्म · और देखें »

विकिरण मापी ग्रहण

विकिरण मापी ग्रहण या रेडिओ ऑकल्टेशन Radio occultation (RO) एक सुदूर संवेदन तकनीक है जिसका इस्तेमाल किसी ग्रह के वायुमंडल या किसी ग्रह के बाहरी छल्लों (जैसे शनि ग्रह के छल्ले) के भौतिक व रासायनिक विशेषताओं को मापने के लिए किया जाता है। .

नई!!: अपवर्तनांक और विकिरण मापी ग्रहण · और देखें »

क्रिस्टलीय ठोस

क्रिस्टलीय ठोस साधारणतः लघु क्रिस्टलों की अत्यधिक संख्या से बना होता है, उनमें प्रत्येक क्रिस्टल का निश्चित ज्यामितीय आकार होता है। क्रिस्टल में परमाणुओं, अणुओं अथवा आयनों का क्रम सुव्यवस्थित होता है। इसमें दीर्घ परासी व्यवस्था होती है अर्थात् कणों की व्यवस्थाका खास पैटर्न होता है जिसकी निस्चित क्रम से पुनरावृत्ति होती है। क्रिस्टलीय ठोसो का गलनांक निश्चित होता है। क्रिस्टलीय ठोस विषमदैशिक प्रकृति के होते हैं अर्थात् उनके कुछ भौतिक गुण जैसे विद्युतीय प्रतिरोधकता और अपवर्तनांक एक ही क्रिस्टल में भिन-भिन दिशाओं में मापने पर भिन-भिन मान प्रदर्शित करते हैं। यह अलग- अलग दिशाओं में कणों की भिन व्यवस्था से उत्पन्न होता है। भिन-भिन दिशाओं में कणों की व्यवस्था अलग होने पर एक ही भौतिक गुण का मान प्रत्येक दिशा में भिन पाया जाता है। उदाहरण- सोडियम क्लोराइड, क्वार्ट्ज आदि। अधिकतर ठोस पदार्थ क्रिस्टलीय प्रकृति के होते हैं। उदाहरण के लिए सभी धात्विक तत्व; जैसे- लोहा, ताँबा और चाँदी; अधात्विक तत्व; जैसे-सल्फर, फॉसफोरस और आयोडीन एवं यौगिक जैसे सोडियम क्लोराइड, जिंक सल्पाइड और नेप्थेलीन क्रिस्टलीय ठोस हैं। .

नई!!: अपवर्तनांक और क्रिस्टलीय ठोस · और देखें »

कौशी समीकरण

कौशी समीकरण एक विशेष पारदर्शी पदार्थ के लिए प्रकाश के अपवर्तनांक और तरंगदैर्घ्य के मध्य आनुभाविक सम्बन्ध है। इसका नामकरण महान गणितज्ञ ऑगस्टिन लुइस कौशी के नाम से किया गया, जिन्होनें इसे १८३६ में परिभषित किया था। .

नई!!: अपवर्तनांक और कौशी समीकरण · और देखें »

अपवर्तन

अपवर्तन के कारण छड़ी टेढ़ी दिखती है। एक माध्यम से दूसरे माध्यम में पहुँचने तरंग की गति की दिशा में परिवर्तन हो जाता है जिसे अपवर्तन कहते हैं। .

नई!!: अपवर्तनांक और अपवर्तन · और देखें »

अपवर्तनांकों की सूची

कुछ प्रमुख पदार्थों के अपवर्तनांक नीचे की सारणी में दिये गये हैं। .

नई!!: अपवर्तनांक और अपवर्तनांकों की सूची · और देखें »

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »