शैव और संध्यावन्दनम्
शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ।
शैव और संध्यावन्दनम् के बीच अंतर
शैव vs. संध्यावन्दनम्
भगवान शिव तथा उनके अवतारों को मानने वालों को शैव कहते हैं। शैव में शाक्त, नाथ, दसनामी, नाग आदि उप संप्रदाय हैं। महाभारत में माहेश्वरों (शैव) के चार सम्प्रदाय बतलाए गए हैं: (i) शैव (ii) पाशुपत (iii) कालदमन (iv) कापालिक। शैवमत का मूलरूप ॠग्वेद में रुद्र की आराधना में हैं। 12 रुद्रों में प्रमुख रुद्र ही आगे चलकर शिव, शंकर, भोलेनाथ और महादेव कहलाए। शैव धर्म से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी और तथ्य: (1) भगवान शिव की पूजा करने वालों को शैव और शिव से संबंधित धर्म को शैवधर्म कहा जाता है। (2) शिवलिंग उपासना का प्रारंभिक पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों से मिलता है। (3) ऋग्वेद में शिव के लिए रुद्र नामक देवता का उल्लेख है। (4) अथर्ववेद में शिव को भव, शर्व, पशुपति और भूपति कहा जाता है। (5) लिंगपूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मत्स्यपुराण में मिलता है। (6) महाभारत के अनुशासन पर्व से भी लिंग पूजा का वर्णन मिलता है। (7) वामन पुराण में शैव संप्रदाय की संख्या चार बताई गई है: (i) पाशुपत (ii) काल्पलिक (iii) कालमुख (iv) लिंगायत (7) पाशुपत संप्रदाय शैवों का सबसे प्राचीन संप्रदाय है। इसके संस्थापक लवकुलीश थे जिन्हें भगवान शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है। (8) पाशुपत संप्रदाय के अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया, इस मत का सैद्धांतिक ग्रंथ पाशुपत सूत्र है। (9) कापलिक संप्रदाय के ईष्ट देव भैरव थे, इस संप्रदाय का प्रमुख केंद्र शैल नामक स्थान था। (10) कालामुख संप्रदाय के अनुयायिओं को शिव पुराण में महाव्रतधर कहा जाता है। इस संप्रदाय के लोग नर-पकाल में ही भोजन, जल और सुरापान करते थे और शरीर पर चिता की भस्म मलते थे। (11) लिंगायत समुदाय दक्षिण में काफी प्रचलित था। इन्हें जंगम भी कहा जाता है, इस संप्रदाय के लोग शिव लिंग की उपासना करते थे। (12) बसव पुराण में लिंगायत समुदाय के प्रवर्तक वल्लभ प्रभु और उनके शिष्य बासव को बताया गया है, इस संप्रदाय को वीरशिव संप्रदाय भी कहा जाता था। (13) दसवीं शताब्दी में मत्स्येंद्रनाथ ने नाथ संप्रदाय की स्थापना की, इस संप्रदाय का व्यापक प्रचार प्रसार बाबा गोरखनाथ के समय में हुआ। (14) दक्षिण भारत में शैवधर्म चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव और चोलों के समय लोकप्रिय रहा। (15) नायनारों संतों की संख्या 63 बताई गई है। जिनमें उप्पार, तिरूज्ञान, संबंदर और सुंदर मूर्ति के नाम उल्लेखनीय है। (16) पल्लवकाल में शैव धर्म का प्रचार प्रसार नायनारों ने किया। (17) ऐलेरा के कैलाश मदिंर का निर्माण राष्ट्रकूटों ने करवाया। (18) चोल शालक राजराज प्रथम ने तंजौर में राजराजेश्वर शैव मंदिर का निर्माण करवाया था। (19) कुषाण शासकों की मुद्राओं पर शिंव और नंदी का एक साथ अंकन प्राप्त होता है। (20) शिव पुराण में शिव के दशावतारों के अलावा अन्य का वर्णन मिलता है। ये दसों अवतार तंत्रशास्त्र से संबंधित हैं: (i) महाकाल (ii) तारा (iii) भुवनेश (iv) षोडश (v) भैरव (vi) छिन्नमस्तक गिरिजा (vii) धूम्रवान (viii) बगलामुखी (ix) मातंग (x) कमल (21) शिव के अन्य ग्यारह अवतार हैं: (i) कपाली (ii) पिंगल (iii) भीम (iv) विरुपाक्ष (v) विलोहित (vi) शास्ता (vii) अजपाद (viii) आपिर्बुध्य (ix) शम्भ (x) चण्ड (xi) भव (22) शैव ग्रंथ इस प्रकार हैं: (i) श्वेताश्वतरा उपनिषद (ii) शिव पुराण (iii) आगम ग्रंथ (iv) तिरुमुराई (23) शैव तीर्थ इस प्रकार हैं: (i) बनारस (ii) केदारनाथ (iii) सोमनाथ (iv) रामेश्वरम (v) चिदम्बरम (vi) अमरनाथ (vii) कैलाश मानसरोवर (24) शैव सम्प्रदाय के संस्कार इस प्रकार हैं: (i) शैव संप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं। (ii) इसके संन्यासी जटा रखते हैं। (iii) इसमें सिर तो मुंडाते हैं, लेकिन चोटी नहीं रखते। (iv) इनके अनुष्ठान रात्रि में होते हैं। (v) इनके अपने तांत्रिक मंत्र होते हैं। (vi) यह निर्वस्त्र भी रहते हैं, भगवा वस्त्र भी पहनते हैं और हाथ में कमंडल, चिमटा रखकर धूनी भी रमाते हैं। (vii) शैव चंद्र पर आधारित व्रत उपवास करते हैं। (viii) शैव संप्रदाय में समाधि देने की परंपरा है। (ix) शैव मंदिर को शिवालय कहते हैं जहां सिर्फ शिवलिंग होता है। (x) यह भभूति तीलक आड़ा लगाते हैं। (25) शैव साधुओं को नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा,औघड़, योगी, सिद्ध कहा जाता है। . जिला तंजावुर, तमिल नाडु। संध्यावंदनम् या संध्यावंदन (संस्कृत) या संध्योपासनम् (संध्योपासन) उपनयन संस्कार द्वारा धार्मिक अनुष्ठान के लिए संस्कारित हिंदू धर्म में गुरू द्वारा उसके निष्पादन हेतु दिए गए निदेशानुसार की जाने वाली महत्वपूर्ण नित्य क्रिया है। संध्यावंदन में महान वेदों से उद्धरण शामिल हैं जिनका दिन में तीन बार पाठ किया जाता है। एक सूर्योदय के दौरान (जब रात्रि से दिन निकलता है), अगला दोपहर के दौरान (जब आरोही सूर्य से अवरोही सूर्य में संक्रमण होता है) और सूर्यास्त के दौरान (जब दिन के बाद रात आती है)। प्रत्येक समय इसे एक अलग नाम से जाना जाता है - प्रातःकाल में प्रातःसंध्या, दोपहर में मध्याह्निक और सायंकाल में सायंसंध्या। शिवप्रसाद भट्टाचार्य इसे “हिंदुओं की पूजन पद्धति संबंधी संहिता” के रूप में परिभाषित करते हैं। यह शब्द संस्कृत का एक संयुक्त शब्द है जिसमें संध्या, का अर्थ है “मिलन”। जिसका दिन और रात की संधि या मिलन किंवा संगम से आशय है और वंदन का अर्थ पूजन से होता है। प्रातःकाल और सायंकाल के अलावा, दोपहर को दिन का तीसरा संगम माना जाता है। इसलिए उन सभी समयों में दैनिक ध्यान और प्रार्थना की जाती है। स्वयं शब्द संध्या का उपयोग दैनिक अनुष्ठान के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है जिसका आशय दिन के आरंभ और अस्त के समय इन अर्चनाओं का किया जाना है। वेदों की ऋचाओं तथा श्लोकों के आधार पर आवाहन आदि करके गायत्री मंत्र का २८, ३२, ५४ या १०८ बार जाप करना संध्योपासन का अभिन्न अंग है (यह संध्यावंदन कर रहे व्यक्ति पर निर्भर करता है। वह किसी भी संख्या में मंत्र का जाप कर सकता है। "यथाशक्ति गायत्री मंत्र जपमहं करिष्ये।" ऐसा संध्यावन्दन के संकल्प में जोड़कर वह यथाशक्ति मंत्र का जाप कर सकता है।)। मंत्र के अलावा संध्या अनुष्ठान में विचारों को भटकने से रोकने तथा ध्यान को केंद्रित करने के लिए कुछ अन्य शुद्धिकारक तथा प्रारंभिक अनुष्ठान हैं (संस्कृत: मंत्र)। इनमें से कुछ में ग्रहों और हिन्दू पंचांग के महीनों के देवताओं को संध्यावंदन न कर पाने तथा पिछली संध्या के बाद से किए गए पापों के प्रायश्चित स्वरूप में जल अर्पित किया जाता है। इसके अतिरिक्त एक संध्यावंदन के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अनुष्ठानों में प्रातः सूर्य की तथा सायं वरुण की मित्रदेव के रूप में पूजा की जाती है। इसके अलावा, ब्रह्मचारियों के लिए सांध्यवंदन की समाप्ति पर हवन करना और समिधादान करना आवश्यक होता है। पूजा के अन्य पहलुओं में जो कि मुख्यतः संध्यावंदना में शामिल नहीं है, जिनमें ध्यान मंत्रों का उच्चारण (संस्कृतः जप) तथा आराधक द्वारा देवी-देवताओं की पूजा शामिल है। ध्यान-योग से संबंध के बारे में मोनियर-विलियम्स लिखते हैं कि यदि इसे ध्यान की क्रिया माना जाए तो संध्या शब्द की उत्पत्ति का संबंध सन-ध्याई के साथ हो सकता है। .
शैव और संध्यावन्दनम् के बीच समानता
शैव और संध्यावन्दनम् आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): वैष्णव सम्प्रदाय।
वैष्णव सम्प्रदाय, भगवान विष्णु को ईश्वर मानने वालों का सम्प्रदाय है। इसके अन्तर्गत चार सम्प्रदाय मुख्य रूप से आते हैं। पहले हैं आचार्य रामानुज, निमबार्काचार्य, बल्लभाचार्य, माधवाचार्य। इसके अलावा उत्तर भारत में आचार्य रामानन्द भी वैष्णव सम्प्रदाय के आचार्य हुए और चैतन्यमहाप्रभु भी वैष्णव आचार्य है जो बंगाल में हुए। रामान्दाचार्य जी ने सर्व धर्म समभाव की भावना को बल देते हुए कबीर, रहीम सभी वर्णों (जाति) के व्यक्तियों को सगुण भक्ति का उपदेश किया। आगे रामानन्द संम्प्रदाय में गोस्वामी तुलसीदास हुए जिन्होने श्री रामचरितमानस की रचना करके जनसामान्य तक भगवत महिमा को पहुँचाया। उनकी अन्य रचनाएँ - विनय पत्रिका, दोहावली, गीतावली, बरवै रामायण एक ज्योतिष ग्रन्थ रामाज्ञा प्रश्नावली का भी निर्माण किया। .
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- शैव और संध्यावन्दनम् के बीच समानता
शैव और संध्यावन्दनम् के बीच तुलना
शैव 6 संबंध है और संध्यावन्दनम् 27 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 3.03% है = 1 / (6 + 27)।
संदर्भ
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