6 संबंधों: ब्राह्मण, लिंगायत मत, शिव, शैव दर्शन, हिन्दी में शैव काव्य, वैष्णव सम्प्रदाय।
ब्राह्मण
ब्राह्मण का शब्द दो शब्दों से बना है। ब्रह्म+रमण। इसके दो अर्थ होते हैं, ब्रह्मा देश अर्थात वर्तमान वर्मा देशवासी,द्वितीय ब्रह्म में रमण करने वाला।यदि ऋग्वेद के अनुसार ब्रह्म अर्थात ईश्वर को रमण करने वाला ब्राहमण होता है। । स्कन्दपुराण में षोडशोपचार पूजन के अंतर्गत अष्टम उपचार में ब्रह्मा द्वारा नारद को द्विज की उत्त्पत्ति बताई गई है जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्यते। शापानुग्रहसामर्थ्यं तथा क्रोधः प्रसन्नता। ब्राह्मण (आचार्य, विप्र, द्विज, द्विजोत्तम) यह वर्ण व्यवस्था का वर्ण है। एेतिहासिक रूप हिन्दु वर्ण व्यवस्था में चार वर्ण होते हैं। ब्राह्मण (ज्ञानी ओर आध्यात्मिकता के लिए उत्तरदायी), क्षत्रिय (धर्म रक्षक), वैश्य (व्यापारी) तथा शूद्र (सेवक, श्रमिक समाज)। यस्क मुनि की निरुक्त के अनुसार - ब्रह्म जानाति ब्राह्मण: -- ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म (अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान) को जानता है। अतः ब्राह्मण का अर्थ है - "ईश्वर का ज्ञाता"। सन:' शब्द के भी तप, वेद विद्या अदि अर्थ है | निरंतारार्थक अनन्य में भी 'सना' शब्द का पाठ है | 'आढ्य' का अर्थ होता है धनी | फलतः जो तप, वेद, और विद्या के द्वारा निरंतर पूर्ण है, उसे ही "सनाढ्य" कहते है - 'सनेन तपसा वेदेन च सना निरंतरमाढ्य: पूर्ण सनाढ्य:' उपर्युक्त रीति से 'सनाढ्य' शब्द में ब्राह्मणत्व के सभी प्रकार अनुगत होने पर जो सनाढ्य है वे ब्राह्मण है और जो ब्राह्मण है वे सनाढ्य है | यह निर्विवाद सिद्ध है | अर्थात ऐसा कौन ब्राह्मण होगा, जो 'सनाढ्य' नहीं होना चाहेगा | भारतीय संस्कृति की महान धाराओं के निर्माण में सनाढ्यो का अप्रतिभ योगदान रहा है | वे अपने सुखो की उपेक्षा कर दीपबत्ती की तरह तिलतिल कर जल कर समाज के लिए मिटते रहे है | .
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लिंगायत मत
बसवेश्वर की बहुत प्रतिष्ठा है। लिंगायत मत भारतवर्ष के प्राचीनतम सनातन हिन्दू धर्म का एक हिस्सा है। इस मत के ज्यादातर अनुयायी दक्षिण भारत में हैं। यह मत भगवान शिव की स्तुति आराधना पर आधारित है। भगवान शिव जो सत्य सुंदर और सनातन हैं, जिनसे सृष्टि का उद्गार हुआ, जो आदि अनंत हैं। हिन्दू धर्म में त्रिदेवों का वर्णन है जिनमें सर्वप्रथम भगवान शिव का ही नाम आता है। शिव जिनसे सृष्टि की उत्पत्ति हुई। इसके पश्चात भगवान ब्रह्मा की उत्पत्ति जो सम्पूर्ण जगत को जीवन प्रदान करते हैं। भगवान विष्णु जो सम्पूर्ण जगत के पालनहार हैं। तीसरे अंश भगवान महेश (शंकर) की उत्पत्ति जीवन अर्थात अमुक्त आत्माओं को नष्ट करके पुनः जीवन मुक्ति चक्र में स्थापित करना है। लिंगायत सम्प्रदाय भगवान शिव जो कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश, चराचर जगत के उत्पत्ति के कारक हैं उनकी स्तुति आराधना करता है। आप अन्य शब्दों में इन्हें शैव संप्रदाय को मानने वाले अनुयायी कह सकते हैं। इस सम्प्रदाय की स्थापना 12वीं शताब्दी में महात्मा बसवण्णां ने की थी। इस मत के उपासक लिंगायत (ಲಿಂಗಾಯತರು) कहलाते हैं। यह शब्द कन्नड़ शब्द लिंगवंत से व्युत्पन्न है। ये लोग मुख्यतः महात्मा बसवण्णा की शिक्षाओं के अनुगामी हैं। .
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शिव
शिव या महादेव हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ,गंगाधार के नाम से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। इनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं, तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं। शिव अधिक्तर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। कैलाश में उनका वास है। यह शैव मत के आधार है। इस मत में शिव के साथ शक्ति सर्व रूप में पूजित है। भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है। भगवान शिव सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। राम, रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। .
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शैव दर्शन
शैव दर्शन के अनुसार ३६ तत्त्व हैं। .
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हिन्दी में शैव काव्य
संस्कृत स्तोत्रों में वैदिक शतरुद्रि, उत्पलदेव की 'स्तोत्रावली', जगद्धर भट्ट की 'स्तुतिकुसुमांजलि', 'पुष्पदंत' का 'शिवमहिम्न स्तोत्र', रावणकृत 'तांडव स्तोत्र' एवं शंकराचार्य कृत 'शिवानंदलहरी' प्रमुख शैव रचनाएँ हैं। प्रबंधकाव्यों में कालिदासकृत 'कुमारसंभव' भारविकृत 'किरातार्जुनीयम्' मंखकरचित 'श्रीकंठचरितम्' एवं रत्नाकर प्रणीत 'हरविजय' उल्लेख्य हैं। हिंदी में भी शैवकाव्य की ये स्तोत्रात्मक एवं प्रबंधात्मक पद्धतियाँ चलीं पर इसके अतिरिक्त शिव के स्वरूपैश्वर्य का स्वतंत्र वर्णन, हास्य के आलंबन, शृंगार के उपमान एवं क्रांति और विनाश के प्रतीक के रूप में भी उनका चित्रण पर्याप्त रूप में हुआ है। मिथिला, पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान में शैव साधना एवं शैव भाव का विशेष महत्व रहा है। फलत: इन प्रदेशों में शैव काव्य का अखंड सृजन होता रहा। हिंदी साहित्य के आदिकाल में अपभ्रंश और लोकभाषा दोनों में शैव काव्य का प्रचुर प्रणयन हुआ। जैन कवि पुष्पदंत ने अपने 'णायकुमारचरिउ' में शिव द्वारा मदनदहन तथा ब्रह्मा के शिरोच्छेद की कथा का वर्णन किया है। इसके अतिरिक्त 'प्राकृतपैंगलम्' में ऐसे अनेक स्थल हैं जहाँ शिव के विराट् स्वरूप का स्वतंत्र रूप से विलक्षण वर्णन उपलब्ध होता है। सिद्ध कवि गुंडरीपा और सरहपा आदि ने भी शैव मत से प्रभावित होकर अनेक पद रचे। नाथपंथ शैवों का ही एक संप्रदाय था अत: गोरख की बानियों में सर्वत्र ही शिव शक्ति के सामरस्य एवं असंख्य कलायुक्त शिव को सहस्रार में ही देखने का संदेश दिया गया है। चौदहवीं शताब्दी में मिथिला के महाकवि विद्यापति ने शताधिक शैव गीतों का सृजन किया जो नचारी के नाम से प्रसिद्ध हैं। उनके गीतों में शिव के नटराज, अर्धनारीश्वर एवं हरिहर के एकात्म रूप का चित्रण है तथा शिव के प्रति व्यक्त एक भक्त के निश्छल हृदय की सहज भावनाओं का उद्रेक भी है। भक्तिकाल में मिथिला के कृष्णदास, गोविंद ठाकुर तथा हरिदास आदि ने स्वतंत्र रूप से शिवमहिमा एवं उनके ऐश्वर्यप्रतिपादक पदों का निर्माण किया। मिथिलेतर प्रदेशों के तानसेन, नरहरि एवं सेनापति ने भी शिव के प्रति भक्तिभाव से पूर्ण अनेक कवित्त रचे। सूफी कवि जायसी ने शैव मत से प्रभावित होकर पद्मावत में अनेक शैव तत्वों का पतिपादन किया। उन्होंने शिवशक्ति या रसायनवाद के सभी उपकरणों को मुक्त भाव से स्वीकार किया एवं रतनसेन को शिवानुग्रह से ही सिद्धि दिलाई। इसी भाँति कबीर आदि ज्ञानमार्गी संतों पर शैव मत एवं नाथपंथियों का प्रभाव है। उन्होंने निरंजन या शून्य को शिवरूप में ही ग्रहण किया। महाकवि तुलसीदास ने 'विनयपत्रिका' में शिव के प्रति भक्तिभाव से पूर्ण अनेक पदों की रचना की एवं 'पार्वतीमंगल' जैसे स्वतंत्र ग्रंथ में शिवविवाह की कथा को प्रथम बार लोकभाषा में प्रबंधात्मक रूप प्रदान किया। उनके 'रामचरितमानस' के आरंभ में ही शिवकथा कही गई है। मध्य में भी प्रसिद्ध शिवस्तुति है और शिव-उमा-संवाद के रूप में प्रस्तुत कर तुलसी ने रामकथा को शैव परिवेश प्रदान कर किया है। सूरदास ने भी सूरसागर में अंतर्कथा के रूप में शिवजीवन के अनेक प्रसंगों को गीतिप्रबंध का रूप देकर प्रस्तुत किया है। रीतिकालीन कवियों में प्राय: सबने शिव संबंधी काव्यप्रणयन किया जिनमें केशवदास, देव, पद्माकर, भिखारीदास और भूषण प्रमुख हैं। केशव और भिखारी आदि ने अपने लक्षमणग्रंथों के उदाहरण के लिए शिव का जहाँ अनेक स्थलों पर वर्णन किया है वहाँ मिथिला के अग्निप्रसाद सिंह, आनंद, उमानाथ, कुंजनदास, चंदनराम, जयरामदास, महीनाथ ठाकुर, लाल झा एवं हिमकर न स्वतंत्र रूप से शिवसंबंधी पद रचे। इनके अतिरिक्त इस काल में प्रणीत शैव काव्यग्रंथों में दीनदयाल गिरि का 'विश्वनाथ नवरत्न', दलेलसिंह का 'शिवसागर' (दो खंडों में दोहा चौपाई छंदों में रचित प्रबंधकाव्य) तथा बनारसी कवि की 'शिवपच्चीसी' आदि महत्वपूर्ण हैं। प्रबंध काव्यों में पं.
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वैष्णव सम्प्रदाय
वैष्णव सम्प्रदाय, भगवान विष्णु को ईश्वर मानने वालों का सम्प्रदाय है। इसके अन्तर्गत चार सम्प्रदाय मुख्य रूप से आते हैं। पहले हैं आचार्य रामानुज, निमबार्काचार्य, बल्लभाचार्य, माधवाचार्य। इसके अलावा उत्तर भारत में आचार्य रामानन्द भी वैष्णव सम्प्रदाय के आचार्य हुए और चैतन्यमहाप्रभु भी वैष्णव आचार्य है जो बंगाल में हुए। रामान्दाचार्य जी ने सर्व धर्म समभाव की भावना को बल देते हुए कबीर, रहीम सभी वर्णों (जाति) के व्यक्तियों को सगुण भक्ति का उपदेश किया। आगे रामानन्द संम्प्रदाय में गोस्वामी तुलसीदास हुए जिन्होने श्री रामचरितमानस की रचना करके जनसामान्य तक भगवत महिमा को पहुँचाया। उनकी अन्य रचनाएँ - विनय पत्रिका, दोहावली, गीतावली, बरवै रामायण एक ज्योतिष ग्रन्थ रामाज्ञा प्रश्नावली का भी निर्माण किया। .
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