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नाटक

सूची नाटक

नाटक, काव्य का एक रूप है। जो रचना श्रवण द्वारा ही नहीं अपितु दृष्टि द्वारा भी दर्शकों के हृदय में रसानुभूति कराती है उसे नाटक या दृश्य-काव्य कहते हैं। नाटक में श्रव्य काव्य से अधिक रमणीयता होती है। श्रव्य काव्य होने के कारण यह लोक चेतना से अपेक्षाकृत अधिक घनिष्ठ रूप से संबद्ध है। नाट्यशास्त्र में लोक चेतना को नाटक के लेखन और मंचन की मूल प्रेरणा माना गया है। .

372 संबंधों: चन्द्रशेखर कम्बार, चन्द्रगुप्त (नाटक), चरित्र चित्रण, चश्मे बदूर (टीवी धारावाहिक), चौबोला, चौसठ कलाएँ, चेत रे चिकायेना, टी एस एलियट, टीन वुल्फ़, ऍल पचिनो, एन. ईबोबी सिंह, एकांकी, ऐवन पीटर्स, झांसी की रानी (टीवी धारावाहिक), झवेरचन्द मेघाणी, डिटेक्टिव दीदी, डैरन क्रिस, डोली अरमानों की, तत्ती तवी दा सच्च, तलेदंड, तुम्हारी पाखी, तेरे शहर में, तेरी मेरी लव स्टोरी, तेलुगू साहित्य, द प्रिंस ऑफ़ इजिप्ट, द लकी वन (फ़िल्म), द लकी वन (उपन्यास), दया प्रकाश सिन्हा, दामोदर राव, दिङ्नाग, दुर्गाप्रसाद मिश्र, दुखान्त नाटक, द्विजेन्द्रलाल राय, देव-डी, दो दिल बंधे इक डोरी से, दीनू भाई पंत, धनिक, धर्ती–अ–जो–साद, ध्रुवस्वामिनी (नाटक), नट सम्राट, नरहरि पटेल, नरेन्द्र कोहली, नाटक त्रुचे, नाटककार, नाट्य शास्त्र, नानालाल, नाबोङखाउ, नायक नायिका भेद, नारायण प्रसाद 'बेताब', नारायणप्रसाद 'बेताब', ..., नागानन्द, निकोलाई गोगोल, नजीब महफ़ूज़, नवगोपाल मित्र, नव्योत्तर काल, नुक्‍कड़ नाटक, नेपाली भाषाएँ एवं साहित्य, नीलदर्पण, पर इस दिल को कैसे समझाएँ, पश्चिम गंग वंश, पात्र, पादताडितकम्, पारसी रंगमंच, पारसी खातिर, पागल लोक, पिचिरान्दयार, पवित्र रिश्ता, पंचरात्र (नाटक), पंचरात्र (बहुविकल्पी), पुनर्विवाह, प्रतिमानाटक, प्रभाकर श्रोत्रिय, प्रियदर्शिका, प्रिज़न ब्रेक, प्रेमचंद, प्रेमचंद की रचनाएँ, प्रीति ज़िंटा, पीटर ब्रुक, फ़ायरफ़्लाई, फ़ाइनल सॉल्यूशन्स एंड अदर प्लेज़, फ़ाउस्ट (गेटे), फ़ैशन, फिर सुबह होगी, फैनी बर्नी, बढ़ो बहू, बदरीनारायण चौधरी उपाध्याय 'प्रेमघन', बर्फी!, बरॉक, बलवंत पांडुरंग अण्णा साहब किर्लोस्कर, बलवंत मोरेश्वर पुरंदरे, बानप्रस्‍थ, बालकृष्ण भट्ट, बिचित्र नाटक, ब्रजबुलि, ब्रूस ली, बृज नारायण चकबस्त, बेन जॉन्सन, बेवाच, बेगम क़ुदसिया जैदी, बेइंतहा, बो मॅरचोफ़, बोधिसत्व (नाटक), भारत दुर्दशा, भारतमाता, भारतेन्दु युग, भारतेन्दु हरिश्चंद्र, भारतीदासन, भारतीय नैयायिक, भारतीय महाकाव्य, भारतीय रंगमंच, भारतीय संगीत का इतिहास, भास, भांड, भांड पाथेर, भिखारी ठाकुर, भवभूति, भुवनेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव, भोगला सोरेन, मचामा, मणिपुरी साहित्य, मनोरंजन, मनोरंजन दास, ममता कालिया, महाभारत के विभिन्न संस्करण, महाराज कृष्ण रैना, महारक्षक आर्यन, महाकाव्य (एपिक), महेश दत्तानी, माधव शुक्ल, मानविकी, माला मुदम, मालविकाग्निमित्रम्, मित्तर पिआर, मिसिस कौशिक की पाँच बहुएँ, मुद्राराक्षस, मुखपृष्ठ/सुसान जेनिफर लनेर, मृच्छकटिकम्, मृदुला गर्ग, मैथिली साहित्य, मेरी आशिकी तुम से ही, मोतीलाल केमु, यहाँ मैं घर घर खेली, यक्षगान, यूनानी भाषा, यूरोपीय नाट्यशालाएँ, योहान वुल्फगांग फान गेटे, रब से सोणा इश्‍क, रबिलाल टुडू, रस (काव्य शास्त्र), रसिकलाल सी. पारीख, राधाचरण गोस्‍वामी, राधाकृष्ण दास, राधेश्याम कथावाचक, राम दयाल मुंडा, राम लीला, रामनरेश त्रिपाठी, राही रांवाक् काना, राजशेखर, रिजवान ज़हीर उस्मान, रिवेंज (टीवी शृंखला), रिवेंज के प्रकरणों की सूची, रघुविलास, रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कृतियाँ, रंगमंच, रंगरसिया (धारावाहिक), रूपक अलंकार, रेत पर लिखे नाम, रॉकी (फ़िल्म), रोज केरकेट्टा, लारेंस बिन्यन, लाला हरदयाल, लागी तुझसे लगन, लिसन... अमाया, लक बाय चांस, लक्ष्मण श्रीमल, लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा, लैटिन साहित्य, लेपाकले, लेव तोलस्तोय, शर्विलक, शास्त्री सिस्टर्स, शाका लाका बूम बूम, शिव कुमार बटालवी, शिवराम महादेव परांजपे, शंकर शेष, शंकरदेव, श्याम जयसिंघाणी, श्रिया सरन, श्रीभार्गवराघवीयम्, शौरसेनी, शूद्रक, शीतलाप्रसाद त्रिपाठी, सच्चिदानंद राउतराय, सट्टक, सत्य हरिश्चन्द्र, सदानन्द घिल्डियाल, सपने सुहाने लड़कपन के, सर्विस वाली बहू, ससुराल सिमर का, ससुराल गेंदा फुल, सामुराई जैक, सावित्री बाई खानोलकर, सिरिसंपिगे, सिंहविष्णु, सजूद सैलानी, संतसिंह सेखों, संस्कार भारती, संस्कृत नाटक, संवाद सूक्त, संगीत नाटक अकादमी, सुय्या, सुंग वंश, स्वदेश दीपक, स्वप्नवासवदत्ता, स्वरागिनी - 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चन्द्रशेखर कम्बार

चंद्रशेखर कंबार (ಚಂದ್ರಶೇಖರ ಕಂಬಾರ; जन्म: २ जनवरी १९३७) एक कन्नड़ भाषा के कवि, नाटककार एवं लोकसाहित्यकार हैं। उन्होंने कन्नड़ भाषा में फिल्मों का निर्देशन भी किया है और वे हम्पी में कन्नड़ विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति भी रहे हैं। उनके उल्लेखनीय साहित्यिक योगदान के आलोक में उन्हें 2010 के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की गई है। इनके द्वारा रचित एक नाटक सिरिसंपिगे के लिये उन्हें सन् १९९१ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कन्नड़) से सम्मानित किया गया। .

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चन्द्रगुप्त (नाटक)

चन्द्रगुप्त (सन् 1931 में रचित) हिन्दी के प्रसिद्ध नाटककार जयशंकर प्रसाद का प्रमुख नाटक है। इसमें विदेशियों से भारत का संघर्ष और उस संघर्ष में भारत की विजय की थीम उठायी गयी है। प्रसाद जी के मन में भारत की गुलामी को लेकर गहरी व्यथा थी। इस ऐतिहासिक प्रसंग के माध्यम से उन्होंने अपने इसी विश्वास को वाणी दी है। शिल्प की दृष्टि से इसकी गति अपेक्षाकृत शिथिल है। इसकी कथा में वह संगठन, संतुलन और एकतानता नहीं है, जो ‘स्कंदगुप्त’ में है। अंक और दृश्यों का विभाजन भी असंगत है। चरित्रों का विकास भी ठीक तरह से नहीं हो पाया है। फिर भी ‘चंद्रगुप्त’ हिंदी की एक श्रेष्ठ नाट्यकृति है, प्रसाद जी की प्रतिभा ने इसकी त्रुटियों को ढंक दिया है। ‘चन्द्रगुप्त’, जय शंकर प्रसाद जी द्वारा लिखित नाटक है जो हिंदी-साहित्य के क्षेत्र में बहुत ही नामी-गिरामी पुस्तक है। यह नाटक मौर्य साम्राज्य के संस्थापक ‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ के उत्थान की कथा नाट्य रूप में कहता है। यह नाटक ‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ के उत्थान के साथ-साथ उस समय के महाशक्तिशाली राज्य ‘मगध’ के राजा ‘धनानंद’ के पतन की कहानी भी कहता है। यह नाटक ‘चाणक्य’ के प्रतिशोध और विश्वास की कहानी भी कहता है। यह नाटक राजनीति, कूटनीति, षड़यंत्र, घात-आघात-प्रतिघात, द्वेष, घृणा, महत्वाकांक्षा, बलिदान और राष्ट्र-प्रेम की कहानी भी कहता है। यह नाटक ग्रीक के विश्वविजेता सिकंदर या अलेक्सेंडर या अलक्षेन्द्र के लालच, कूटनीति एवं डर की कहानी भी कहता है। यह नाटक प्रेम और प्रेम के लिए दिए गए बलिदान की कहानी भी कहता है। यह नाटक त्याग और त्याग से सिद्ध हुए राष्ट्रीय एकता की कहानी भी कहता है। ‘चन्द्रगुप्त’ और ‘चाणक्य’ के ऊपर कई विदेशी और देशी लेखकों ने बहुत कुछ लिखा है। अलग-अलग प्रकार की कहानियां और उनसे निकलने वाला अलग-अलग प्रकार का निचोड़ मन में भ्रम पैदा करने के लिए काफी है। लेकिन, यह नाटक सभी पुस्तकों से कुछ भिन्न है। जो पाठक इस नाटक को पढना चाहते हैं उनके लिए महत्वपूर्ण सलाह यह की नाटक से पहले इसकी भूमिका जरूर पढ़ें। जय शंकर प्रसाद जी ने इस नाटक की भूमिका लिखने के लिए जिस प्रकार का शोध किया है वह काबिलेतारीफ है जबकि मुझे लगता है की तारीफ के लिए शब्द ही नहीं है। लगभग सभी देशी और विदेशी लेखकों के पुस्तकों से महतवपूर्ण बिन्दुओं को उठाकर उन्होंने चन्द्रगुप्त के जन्म से लेकर उसके राज्याभिषेक तक की गतिविधियों को अलग-अलग रूप से प्रस्तुत किया है। इस नाटक की भूमिका ही अपने आप में शोध-पत्र से कम नहीं है। जो इतिहास का पोस्टमॉर्टेम उन्होंने अपनी इस भूमिका में सभी देशी-विदेशी इतिहासकार द्वारा लिखित पुस्तकों का अध्ययन करके, सभी का रिफरेन्स देकर तुलना करते हुए ‘चन्द्रगुप्त’ से सम्बंधित हर प्रकार की घटना को उल्लेखित किया है, वह कहीं और आपको देखने को नहीं मिलेगा। नाटक का प्रस्तुतीकरण एवं उसमे प्रयोग की गयी सरल हिंदी भाषा इस नाटक को पठनीय बनाती है। वहीँ नाटक के बीच-बीच में कई गीत ऐसे हैं जो आपके दिल में सदा के लिए बस जाने इच्छुक होते हैं। प्रत्येक पात्र का सौंदर्य एवं चरित्र चित्रण करने में वे सफल रहे हैं। साथ ही घटनाओं को एक ही धागे में पिरोने से यह नाटक पढने में रोमांचक हो चला है। मेरी इच्छा है की कभी भविष्य में मैं इसका नाट्य-मंचन भी देख सकूँ ताकि इसे पूरी तरह से जी सकूँ। इस नाटक और भूमिका में सीखने के लिए बहुत कुछ है। भूमिका आपके दिमाग के ऊपर जमी सभी प्रकार के धुल को हटाने में मदद करती है जो ‘चन्द्रगुप्त एवं चाणक्य’ के ऊपर आधारित कई पुस्तकों को पढने से आ गए थे। भूमिका एक प्रकार से इस विषय पर बनाया गया वह मिश्रण है जिसे पीने के बाद या यूँ कहूँ पढने के बाद होश में आ जाते हैं। वहीँ नाटक में मनुष्य के विभिन्न रूपों को देखकर हम बहुत कुछ सीख जाते हैं। चाणक्य के कई नीतियों को हम आसानी से नाटक में देख सकते हैं और शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। जय शंकर प्रसाद की यह रचना सही मायने में एक ज्ञानवर्धक एवं मनोरंजक पुस्तक है जिसे सभी वर्ग के पाठकों को जरूर पढना चाहिए। .

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चरित्र चित्रण

किसी नाटक, कथा आदि में आये पात्रों के सोच, कार्यपद्धति, आदि के बारे में सूचना देना उस पात्र का चरित्रचित्रण (Characterisation) कहलाता है। पात्रों का वर्णन करने के लिये उनके कार्यों, वक्तव्य, एवं विचारों आदि का सहारा लिया जाता है। .

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चश्मे बदूर (टीवी धारावाहिक)

चश्मे बद्दूर 1998 में ज़ी टीवी चैनल पर प्रसारित हिन्दी भाषा का धारावाहिक है। यह धारावाहिक भारत के लोकप्रिय टेलीविजन निर्माता मनिष गोस्वामी द्वारा निर्मित है। इसकी कहानी एक ऐसी महिला की है जिसका जीवन शानदार किशोरावस्था और मध्यम आयु की विषम में आ चुका है और वह नहीं जानती कि इसके साथ कैसे जिया जाये। .

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चौबोला

'सुल्ताना डाकू' नामक मशहूर नौटंकी का एक प्रदर्शन - नौटंकियों में चौबोले बहुत प्रयोग होते हैं चौबोला या चौबोल उत्तर भारत और पाकिस्तान की काव्य परम्परा में प्रयोग होने वाली चार पंक्तियों की एक छंद शैली है, जो अक्सर लोक-गीत में प्रयोग की जाती है। .

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चौसठ कलाएँ

दण्डी ने काव्यादर्श में कला को 'कामार्थसंश्रयाः' कहा है (अर्थात् काम और अर्थ कला के ऊपर आश्रय पाते हैं।) - नृत्यगीतप्रभृतयः कलाः कामार्थसंश्रयाः। भारतीय साहित्य में कलाओं की अलग-अलग गणना दी गयी है। कामसूत्र में ६४ कलाओं का वर्णन है। इसके अतिरिक्त 'प्रबन्ध कोश' तथा 'शुक्रनीति सार' में भी कलाओं की संख्या ६४ ही है। 'ललितविस्तर' में तो ८६ कलाएँ गिनायी गयी हैं। शैव तन्त्रों में चौंसठ कलाओं का उल्लेख मिलता है। कामसूत्र में वर्णित ६४ कलायें निम्नलिखित हैं- 1- गानविद्या 2- वाद्य - भांति-भांति के बाजे बजाना 3- नृत्य 4- नाट्य 5- चित्रकारी 6- बेल-बूटे बनाना 7- चावल और पुष्पादि से पूजा के उपहार की रचना करना 8- फूलों की सेज बनान 9- दांत, वस्त्र और अंगों को रंगना 10- मणियों की फर्श बनाना 11- शय्या-रचना (बिस्तर की सज्जा) 12- जल को बांध देना 13- विचित्र सिद्धियाँ दिखलाना 14- हार-माला आदि बनाना 15- कान और चोटी के फूलों के गहने बनाना 16- कपड़े और गहने बनाना 17- फूलों के आभूषणों से श्रृंगार करना 18- कानों के पत्तों की रचना करना 19- सुगंध वस्तुएं-इत्र, तैल आदि बनाना 20- इंद्रजाल-जादूगरी 21- चाहे जैसा वेष धारण कर लेना 22- हाथ की फुती के काम 23- तरह-तरह खाने की वस्तुएं बनाना 24- तरह-तरह पीने के पदार्थ बनाना 25- सूई का काम 26- कठपुतली बनाना, नाचना 27- पहली 28- प्रतिमा आदि बनाना 29- कूटनीति 30- ग्रंथों के पढ़ाने की चातुरी 31- नाटक आख्यायिका आदि की रचना करना 32- समस्यापूर्ति करना 33- पट्टी, बेंत, बाण आदि बनाना 34- गलीचे, दरी आदि बनाना 35- बढ़ई की कारीगरी 36- गृह आदि बनाने की कारीगरी 37- सोने, चांदी आदि धातु तथा हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा 38- सोना-चांदी आदि बना लेना 39- मणियों के रंग को पहचानना 40- खानों की पहचान 41- वृक्षों की चिकित्सा 42- भेड़ा, मुर्गा, बटेर आदि को लड़ाने की रीति 43- तोता-मैना आदि की बोलियां बोलना 44- उच्चाटनकी विधि 45- केशों की सफाई का कौशल 46- मुट्ठी की चीज या मनकी बात बता देना 47- म्लेच्छित-कुतर्क-विकल्प 48- विभिन्न देशों की भाषा का ज्ञान 49- शकुन-अपशकुन जानना, प्रश्नों उत्तर में शुभाशुभ बतलाना 50- नाना प्रकार के मातृकायन्त्र बनाना 51- रत्नों को नाना प्रकार के आकारों में काटना 52- सांकेतिक भाषा बनाना 53- मनमें कटकरचना करना 54- नयी-नयी बातें निकालना 55- छल से काम निकालना 56- समस्त कोशों का ज्ञान 57- समस्त छन्दों का ज्ञान 58- वस्त्रों को छिपाने या बदलने की विद्या 59- द्यू्त क्रीड़ा 60- दूरके मनुष्य या वस्तुओं का आकर्षण 61- बालकों के खेल 62- मन्त्रविद्या 63- विजय प्राप्त कराने वाली विद्या 64- बेताल आदि को वश में रखने की विद्या वात्स्यायन ने जिन ६४ कलाओं की नामावली कामसूत्र में प्रस्तुत की है उन सभी कलाओं के नाम यजुर्वेद के तीसवें अध्याय में मिलते हैं। इस अध्याय में कुल २२ मन्त्र हैं जिनमें से चौथे मंत्र से लेकर बाईसवें मंत्र तक उन्हीं कलाओं और कलाकारों का उल्लेख है। .

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चेत रे चिकायेना

चेत रे चिकायेना संताली भाषा के विख्यात साहित्यकार खेरवाल सोरेन द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 2007 में संताली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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टी एस एलियट

टी० एस० एलियट (Thomas Stearns Eliot; १८८-१९६५) १९४८ के नोबेल-पुरस्कार-विजेता(साहित्य) तथा आधुनिक युग की महानतम अंग्रेजी साहित्यिक विभूतियों में से थे। २६ वर्ष की आयु में आप अपनी मातृभूमि अमरीका छोड़कर इंग्लैंड में बस गए और १९२७ में ब्रिटिश नागरिक बन गए। आपने नाटक, कविता और आलोचना तीनों क्षेत्रों में महान् ख्याति प्राप्त की है तथा आधुनिक युग के प्राय: सभी प्रसद्धि लेखकों को प्रभावित किया है। वे स्वयं डन, एज़रा पाउंड तथा फ्रांसीसी प्रतीकवादी कवि लॉफोर्ज़ द्वारा सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।८ .

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टीन वुल्फ़

टीन वुल्फ़ (Teen Wolf) अमेरिकी अलौकिक, प्रहसन व किशोर नाटक टेलिविज़न शृंखला है। यह शिथिल रूप से इसी नाम से 1985 में बनी फ़िल्म पर आधारित है। जैफ डेविस द्वारा विकसित इस धारावाहिक का प्रसारण जून 5, 2011, को 2011 एमटीवी मूवी अवार्ड्स के ठीक बाद एमटीवी चैनल पर शुरू हुआ। डेविस साथ ही धारावाहिक के कार्यकारी निर्माता के रूप में भी योगदान देते हैं। इसकी कहानी का मुख्य किरदार उच्च विद्यालय छात्र स्कॉट मैकॉल (टायलर पोज़ी) है जिसे एक वेयरवुल्फ़ काट लेता है। स्कॉट एक साधारण विद्यार्थी के रूप में अपना जीवन जीने और अपने वेयरवुल्फ़ होने का रहस्य छिपाने का प्रयास करता है। उसका घनिष्ठ मित्र "स्टाइल्स" स्टिलिनस्की (डिलन ओ 'ब्रायन) उसकी उसके जीवन और शरीर में आए बदलावों से निपटने में मदद करता है। कहानी के आगे बढ़ने पर अन्य किरदार जुड़ते चले जाते हैं। शृंखला के दूसरा सत्र का प्रीमियर जून 3, 2012, को 2012 एमटीवी मूवी अवार्ड्स के पश्चात हुआ। तीसरे सत्र का प्रीमियर जून 3, 2013, की रात्री 10 बजे हुआ। धारावाहिक को आलोचकों से आम तौर पर सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है जिसमें इसने मेटाक्रिटिक पर 100 में से 61 स्कोर अर्जित किया। शृंखला ने विभन्न पुरुस्कार समारोहों में नामांकन और जीत प्राप्त की है, जिनमें शामिल हैं: टीन च्वाइस पुरस्कार, एल्मा पुरुस्कार, सैटर्न अवार्ड, यंग हॉलीवुड अवार्ड, आदि। .

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ऍल पचिनो

अल्फ्रेडो जेम्स "ऍल" पचिनो (जन्म 25 अप्रैल 1940) एक अमरीकी फिल्म और रंगमंच अभिनेता और निर्देशक हैं। फिल्म द गॉडफादर ट्रिलोजी में माइकल कोरलीओनी, डॉग डे आफ्टरनून में सोनी वॉटजिक, स्कारफेस में टोनी मोंटाना, 1993 फिल्म में बनी फ़िल्म कार्लितोज वे में कार्लितो ब्रिगंते, सर्पिको में फ्रैंक सर्पिको, सेंट ऑफ़ अ वूमन में लेफ्टिनेंट कर्नल फ्रैंक स्लेड और एंजेल्स इन अमरीका में रॉय कोहन की भूमिकाओं के लिए वे खास तौर पर जाने जाते हैं। पूर्ववर्ती सात बार नामांकनों के बाद उन्होंने 1992 में सेंट ऑफ़ अ वूमन में अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का एकेडमी अवार्ड जीता.

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एन. ईबोबी सिंह

एन.

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एकांकी

एक अंक वाले नाटकों को एकांकी कहते हैं। अंग्रेजी के "वन ऐक्ट प्ले" शब्द के लिए हिंदी में "एकांकी नाटक" और "एकांकी" दोनों ही शब्दों का समान रूप से व्यवहार होता है। पश्चिम में एकांकी २० वीं शताब्दी में, विशेषत: प्रथम महायुद्ध के बाद, अत्यंत प्रचलित और लोकप्रिय हुआ। हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में उसका व्यापक प्रचलन इस शताब्दी के चौथे दशक में हुआ। इसका यह अर्थ नहीं कि एकांकी साहित्य की सर्वथा आभिजात्यहीन विधा है। पूर्व और पश्चिम दोनों के नाट्य साहित्य में उसके निकटवर्ती रूप मिलते हैं। सस्कृंत नाट्यशास्त्र में नायक के चरित, इतिवृत्त, रस आदि के आधार पर रूपकों और उपरूपकों के जो भेद किए गए उनमें से अनेक को डॉ॰ कीथ ने एकांकी नाटक कहा है। इस प्रकार "दशरूपक" और "साहित्यदर्पण" में वर्णित व्यायोग, प्रहसन, भाग, वीथी, नाटिका, गोष्ठी, सट्टक, नाटयरासक, प्रकाशिका, उल्लाप्य, काव्य प्रेंखण, श्रीगदित, विलासिका, प्रकरणिका, हल्लीश आदि रूपकों और उपरूपकों को आधुनिक एकांकी के निकट संबंधी कहना अनुचित न होगा। "साहित्यदर्पण में "एकांक" शब्द का प्रयोग भी हुआ है: भाण: स्याद् धूर्तचरितो नानावस्थांतरात्मक:। एकांक एक एवात्र निपुण: पण्डितो विट:।। और ख्यातेतिवृत्तो व्यायोग: स्वल्पस्त्रीजनसंयुत:। हीनो गर्भविमर्शाभ्यां नरैर्बहुभिराश्रित:।। एकांककश्च भवेत्‌...

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ऐवन पीटर्स

ऐवन थॉमस पीटर्स (जन्म: जनवरी 20, 1987) अमेरिकी अभिनेता हैं, जो मुख्यतः FX की पद्यावली हॉरर-ड्रामा गल्प टेलीविज़न शृंखला अमेरिकन हॉरर स्टोरी में निभाई गई अपनी टेट लैंगडन, एबीसी विज्ञान गल्प इनवेज़न में जॅसी वारन और एबीसी की ही ड्रामा द डेज़ की अपनी कूपर डे की भूमिकाओं के लिए जाने जाते हैं। .

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झांसी की रानी (टीवी धारावाहिक)

झांसी की रानी एक भारतीय ऐतहासिक धारावाहिक है जो झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जीवन पर आधारित है। यह धारावाहिक जितेन्द्र श्रीवास्तव के निर्देशन में बना है। इसका प्रथम प्रसारण ज़ी टीवी पर 18 अगस्त 2009 को किया गया था। रानी लक्ष्मीबाई के बाल जीवन की भूमिका उल्का गुप्ता नामक बाल अभिनेत्री ने निभाई। 08 जून 2010 को धारावाहिक की कहानी ने कई साल बाद का मोड़ लिया। तत्पश्चात् कृतिका सेंगर ने युवा रानी की भूमिका निभाई। कार्यक्रम का अंतिम अध्याय 19 जून 2011 को प्रसारित हुआ। .

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झवेरचन्द मेघाणी

झवेरचंद मेघाणी (१८९६ - १९४७) गुजराती साहित्यकार तथा पत्रकार थे। गुजराती-लोकसाहित्य के क्षेत्र में मेघाणी का स्थान सर्वोपरि है। वे सफल कवि ही नहीं, उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार, निबंधकार, जीवनीलेखक तथा अनुवादक भी थे। .

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डिटेक्टिव दीदी

डिटेक्टिव दीदी एक भारतीय टेलीविज़न श्रृंखला धारावाहिक है। जो 9 दिसंबर 2017 से जी टीवी पर प्रसारित प्रसारित हो रहा है। इस कार्यक्रम के निर्माता त्रिकोलोजी क्रिकोस प्रोड्क्शन्स .

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डैरन क्रिस

डैरन एवरॅट क्रिस (Darren Everett Criss) अमेरिकी अभिनेता, गायक, गीतकार, संगीतकार और वादक हैं। यह शिकागो में आधारित एक मीडिया और संगीत रंगमंच उत्पादन कंपनी स्टारकिड प्रोडक्शंस के संस्थापक सदस्य और सह-स्वामी भी हैं। यह मुख्यतः फॉक्स चैनल की कॉमेडी-ड्रामा टेलीविज़न शृंखला ग्ली में अपनी एक समलैंगिक हाई स्कूल विद्यार्थी ब्लेन एंडरसन की निभाई गई भूमिका के लिए प्रसिद्ध हैं। .

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डोली अरमानों की

डोली अरमानों की डोली अरमानों की एक भारतीय धारावाहिक है, जो ज़ी टीवी पर 2 दिसम्बर 2013 से चल रहा है। यह धारावाहिक सोमवार से शुक्रवार तक देता है। इसमें मुख्य किरदार में मोहित मलिक और नेहा मर्दा हैं। .

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तत्ती तवी दा सच्च

तत्ती तवी दा सच्च पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार आतमजीत द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 2009 में पंजाबी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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तलेदंड

तलेदंड कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार गिरीश कार्नाड द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1994 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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तुम्हारी पाखी

तुम्हारी पाखी एक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक है जो लाइफ ओके पर प्रसारित होता है। 11 नवम्बर 2013 को इसका प्रथम प्रसारण किया गया। यह धारावाहिक शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास नवा विधान पर आधारित है। धारावाहिक के कुछ प्रकरणों का रक्षण नई दिल्ली में भी हुआ है। .

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तेरे शहर में

तेरे शहर में भारतीय हिन्दी धारावाहिक है, जिसका प्रसारण स्टार प्लस पर 2 मार्च 2015 से शुरू हुआ। .

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तेरी मेरी लव स्टोरी

तेरी मेरी लव स्टोरी एक भारतीय हिन्दी धारावाहिक है, जिसका प्रसारण स्टार प्लस में 11 अगस्त 2012 से शुरू हुआ और 7 अक्टूबर 2012 को समाप्त हुआ। .

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तेलुगू साहित्य

तेलुगु का साहित्य (तेलुगु: తెలుగు సాహిత్యం / तेलुगु साहित्यम्) अत्यन्त समृद्ध एवं प्राचीन है। इसमें काव्य, उपन्यास, नाटक, लघुकथाएँ, तथा पुराण आते हैं। तेलुगु साहित्य की परम्परा ११वीं शताब्दी के आरम्भिक काल से शुरू होती है जब महाभारत का संस्कृत से नन्नय्य द्वारा तेलुगु में अनुवाद किया गया। विजयनगर साम्राज्य के समय यह पल्लवित-पुष्पित हुई। .

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द प्रिंस ऑफ़ इजिप्ट

द प्रिंस ऑफ़ इजिप्ट (The Prince of Egypt) १९९८ में बनी अमेरिकी एनिमेटेड संगीत ड्रामा फ़िल्म है। यह ड्रीमवर्क्स द्वारा पारंपरिक तरीके से निर्मित पहली एनीमेशन फ़िल्म है। यह एक्सोडस की पुस्तर पर आधारित है व मोसेस के जीवन की कहानी बयां करती है जो इजिप्ट के एक राजकुमार से किस तरह इज़राइल के बच्चों को इजिप्ट से बाहर ले गया। फ़िल्म का निर्देशन ब्रेंडा चैपमैन, सिमोन वेल्स और स्टीव हिक्नर ने किया था। फ़िल्म में स्टीफन श्वार्त्ज़ द्वारा लिखित व हांस ज़िमर द्वारा ध्वनित गीत शामिल है। फ़िल्म में हॉलीवुड के कई दिग्गज अभिनेताओं की आवाज़ शामिल है। फ़िल्म को "व्हेन यु बिलीव" गीत के लिए १९९९ के अकादमी पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ नया गीत और सर्वश्रेष्ठ ध्वनि के लिए नामांकन मिला था। इसका पॉप संस्करण समारोह के दौरान व्हिटनी होस्टन और मारिया केरी ने गाया था। फ़िल्म को सिनेमाघरों में १८ दिसम्बर १९९८ को रिलीज़ किया गया था। इसने विश्व भर में $२१८,६१३,१८८ का व्यवसाय किया जिससे यह $१०० मिलियन का आंकड़ा पार करने वाली दूसरी गैर-डिज़्नी फ़िल्म बन गई। .

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द लकी वन (फ़िल्म)

द लकी वन (The Lucky One) २०१२ में बनी रोमांस-ड्रामा फ़िल्म है जिसका निर्देशन स्कॉट हिक्स द्वारा किया गया है व इसे अप्रैल २०१२ में रिलीज़ किया गया। यह २००८ में प्रकाशित इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है जिसे निकोलस स्पार्क्स ने लिखा है। फ़िल्म में ज़ैक ऍफ़्रॉन, टायलर शिलिंग और ब्लिदे डेनर मुख्य भूमिकाओं में है। .

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द लकी वन (उपन्यास)

द लकी वन (The Lucky One) अमेरिकी लेखक निकोलस स्पार्क्स द्वारा लिखित उपन्यास है जिसे ३० सितंबर २००८ में रिलीज़ किया गया था। इसकी कहानी एक अमेरिकी मरीन लोगन थिबौल्ट पर केंद्रित है जिसे इराक में एक मुस्कुराती हुई युवा महिला का चित्र मिलता है। अपने इराक के तिन दौरों के दौरान वह उस चित्र को अपने अच्छे नसीब की कुंजी के तौर पर ले जाता है। अपने दौरों में वह कई नसीब-पूर्ण घटनाओं से गुज़रता है और अंततः वापस लौटने पर उस महिला को धन्यवाद करने के लिए खोजता है। इस उपन्यास को २०१२ में स्कॉट हिक्स द्वारा इसी नाम की फ़िल्म में परिवर्तित किया गया है।.

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दया प्रकाश सिन्हा

दया प्रकाश सिन्हा (जन्म: २ मई १९३५, कासगंज, जिला एटा, उत्तर प्रदेश) एक अवकाशप्राप्त आई०ए०एस० अधिकारी होने के साथ-साथ हिन्दी भाषा के प्रतिष्ठित लेखक, नाटककार, नाट्यकर्मी, निर्देशक व चर्चित इतिहासकार हैं। प्राच्य इतिहास, पुरातत्व व संस्कृति में एम० ए० की डिग्री तथा लोक प्रशासन में मास्टर्स डिप्लोमा प्राप्त सिन्हा जी विभिन्न राज्यों की प्रशासनिक सेवाओं में रहे। साहित्य कला परिषद, दिल्ली प्रशासन के सचिव, भारतीय उच्चायुक्त, फिजी के प्रथम सांस्कृतिक सचिव, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी व ललित कला अकादमी के अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ के निदेशक जैसे अनेकानेक उच्च पदों पर रहने के पश्चात सन् १९९३ में भारत भवन, भोपाल के निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए। नाट्य-लेखन के साथ-साथ रंगमंच पर अभिनय एवं नाट्य-निर्देशन के क्षेत्र में लगभग ५० वर्षों तक सक्रिय रहे सिन्हा जी की नाट्य कृतियाँ निरन्तर प्रकाशित, प्रसारित व मंचित होती रही हैं। अनेक देशों में भारत के सांस्कृतिक प्रतिनिधि के रूप में भ्रमण कर चुके श्री सिन्हा को कई पुरस्कार व सम्मान भी मिल चुके हैं। .

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दामोदर राव

दामोदर  राव (जन्म २१ अगस्त १९७७)  एक भारतीय गायक, संगीतकार व अभिनेता हैं, इनके पिता का नाम रामधनी राव और माता का नाम लालपरी देवी है, इन्होंने गायकी और संगीत में लगभग ९५ भोजपुरी और हिंदी सिनेमा तथा ८०० वीडियो एल्बम किये है और इन्हें भोजपुरी के सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों में से जाना जाता है, इनका संगीत मधुर और कर्णप्रिय होता है।  .

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दिङ्नाग

दिंनाग दिङ्नाग (चीनी भाषा: 域龍, तिब्बती भाषा: ཕྲོགས་ཀྱི་གླང་པོ་; 480-540 ई.) भारतीय दार्शनिक एवं बौद्ध न्याय के संस्थापकों में से एक। प्रमाणसमुच्चय उनकी प्रसिद्ध रचना है। दिङ्नाग संस्कृत के एक प्रसिद्ध कवि थे। वे रामकथा पर आश्रित कुन्दमाला नामक नाटक के रचयिता माने जाते हैं। कुन्दमाला में प्राप्त आन्तरिक प्रमाणों से यह प्रतीत होता है कि कुन्दमाला के रचयिता कवि (दिंनाग) दक्षिण भारत अथवा श्रीलंका के निवासी थे। कुन्दमाला की रचना उत्तररामचरित से पहले हुयी थी। उसमें प्रयुक्त प्राकृत भाषा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कुन्दमाला की रचना पाँचवीं शताब्दी में किसी समय हुयी होगी। .

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दुर्गाप्रसाद मिश्र

दुर्गाप्रसाद मिश्र (31 अक्टूबर 1860 -1910) हिन्दी के पत्रकार थे। 19वीं सदी की हिंदी पत्रकारिता में दुर्गाप्रसाद मिश्र का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। वे हिंदी के ऐसे पत्रकार रहे हैं जिन्हें हिंदी पत्रकारिता के जन्मदाताओं एवं प्रचारकों में शुमार किया जाता है। हिंदी पत्रकारिता को क्रांति एवं राष्ट्रहित के मार्ग पर ले जाने के लिए अनेकों पत्रकारों ने अहोरात्र संघर्ष किया। पं॰ दुर्गाप्रसाद मिश्र ऐसे ही पत्रकार थे। .

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दुखान्त नाटक

दु:खांत नाटक (ट्रेजेडी) ऐसे नाटकों को कहते हैं जिनमें नायक प्रतिकूल परिस्थितियों और शक्तियों से संघर्ष करता हुआ तथा संकट झेलता हुअ अंत में विनष्ट हो जाता है। .

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द्विजेन्द्रलाल राय

द्विजेन्द्रलाल राय द्विजेन्द्रलाल राय ((19 जुलाई 1863–17 मई 1913) बांग्ला के विशिष्ट नाटककार, कवि तथा संगीतकार थे। वे अपने पौराणिक एवं ऐतिहासिक राष्ट्रवादी नाटकों एवं ५०० से अधिक 'द्विजेन्द्रगीति' नामक गीतों के लिए प्रसिद्ध हैं। नाटक में कला तथा निस्पृह सौंदर्य की दृष्टि से, न कि भावुकता की दृष्टि से, वह कई बार रवींद्रनाथ से आगे निकल गए, ऐसा बहुत से समालोचक मानते हैं। रवींद्र के समसामयिक होते हुए भी उनकी शैली संपूर्ण रूप से रवींद्र के प्रभाव से मुक्त थी। उनका विख्यात गान "धनधान्ये पुष्पे भरा", "बंग आमार! जननी आमार! धात्री आमार! आमार देश" इत्यादि आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं। उनके नाटक चार श्रेणियों में विन्यस्त हैं - प्रहसन, काव्यनाट्य, ऐतिहासिक नाटक और सामाजिक नाटक। उनके द्वारा रचित काव्यग्रन्थों में 'आर्यगाथा' (प्रथम और द्वितीय भाग) तथा 'मन्द्र' विख्यात हैं। द्बिजेन्द्रलाल राय के प्रसिद्ध नाटकों में उल्लेखनीय हैं- एकघरे, कल्कि-अबतार, बिरह, सीता, ताराबाई, दुर्गादास, राणा प्रतापसिंह, मेबार-पतन, नूरजाहान, साजाहान, चन्द्रगुप्त, सिंहल-बिजय़ इत्यादि। .

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देव-डी

देव-डी, 6 फ़रवरी 2009 को प्रदर्शित एक हिन्दी रोमांटिक नाटक फिल्म है। फिल्म का लेखन और निर्देशन अनुराग कश्यप ने किया है। फिल्म शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के कालजयी बंगाली उपन्यास देवदास का आधुनिक संस्करण है। इसके अलावा इस उपन्यास पर आधारित अन्य फ़िल्में पी सी ब्रूवा, बिमल रॉय और संजय लीला भंसाली बना चुके हैं। इस फ़िल्म को समालोचकों और जनता ने पसंद किया और जिस तरीके से इसने अपने आप को पेश किया उसके लिए इसे हिंदी की पथ तोड़ने वाली फिल्मों में से एक माना गया। .

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दो दिल बंधे इक डोरी से

दो दिल बंधे इक डोरी से एक भारतीय टेलीविज़न धारावाहिक है जिसका प्रथम प्रसारण 12 अगस्त 2013 को हुआ था। यह ज़ी टीवी पर सोमवार से शुक्रवार रात्रिकालीन समय में प्रसारित किया जाता था। इसके समापन के बाद इसके स्थान पर जमाई राजा नामक धारावाहिक आरंभ हुआ है। .

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दीनू भाई पंत

दीनू भाई पंत डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक अयोधिया के लिये उन्हें सन् 1985 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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धनिक

धनिक, नाट्यशास्त्र के ग्रंथ 'दशरूप' के टीकाकार हैं। दशरूप के प्रथम प्रकाश के अंत में 'इति विष्णुसूनोर्धनिकस्य कृतौ दशरूपावलोके' इस निर्देश से ज्ञात होता है कि धनिक दशरूपक के रचयिता, विष्णुसुत धनंजय के भाई थे। दोनों भाई मुंजराज के सभापंडित थे। मुँज (वाक्पतिराज द्वितीय) और उसके उत्तराधिकारी के शासनकाल के अनुसार इनका समय ईसा की दसवीं शताब्दी का अंत और ग्यारहवीं का प्रारंभ माना जाता है। दशरूप 'मुंजमहीशगोष्ठी' के विद्वानों के मन को प्रसन्नता और प्रेम से निबद्ध करनेवाला कहा गया है। धनिक द्वारा इसकी 'अवलोक' नाम की टीका मुंज के उत्तराधिकारी के शासनकाल में लिखी गई। दशरूप मुख्यत: भरतनाट्यशास्त्र का अनुगामी है और उसका एक प्रकार से संक्षिप्त रूप है। चार प्रकाशों में यह ग्रंथ विभक्त है। प्रारंभ के तीन प्रकाशों में नाट्य के भेद, उपभेद, नायक आदि का वर्णन है और चतुर्थ प्रकाश के रसों का। दशरूप में रंगमंच पर विवेचन नहीं किया गया है और न धनिक ने ही इसपर विचार किया है। धनिक की टीका गद्य में है और मूल ग्रंथ के अनुसार है। अनेक काव्यों और नाटकों से संकलित उदाहरणों आदि द्वारा यह मूल ग्रंथ को पूर्ण, बोधगम्य और सरल करती है। कुछ परवर्ती विद्वानों ने धनिक को ही 'दशरूप' का रचयिता माना है और उन्हीं के नाम से 'दशरूप' की कारिकाएँ उद्धृत की हैं, यह भ्रमात्मक है। धनिक अभिधावादी और ध्वनिविरोधी हैं। रसनिष्पत्ति के संबंध में वे भट्टनायक के मत को मानते हैं, पर उसमें भट्ट लोल्लट और शंकुक के मतों का मिश्रण कर देते हैं। इस प्रकार इनका एक स्वतंत्र मत हो जाता है। दशरूप के चतुर्थ प्रकाश में धनिक ने इसपर विस्तृत रूप से विचार किया है। नाटक में शांत रस को धनिक ने स्वीकार नहीं किया है और आठ रस ही माने हैं। शांत को ये अभिनय में सर्वथा निषिद्ध करते हैं, अत: शम को स्थायी भी नहीं मानते। धनिक कवि थे और इन्होंने संस्कृत-प्राकृत काव्य भी लिखा है। 'अवलोक' में इनके अनेक ललित पद्य इधर-उधर उदाहरणों के रूप में बिखरे पड़े हैं। 'अवलोक' से ही यह भी ज्ञात होता है कि धनिक ने साहित्यशास्त्र का एक ग्रंथ और लिखा जिसका नाम 'काव्यनिर्णय' है। दशरूप के चतुर्थ प्रकाश की ३७वीं कारिका की व्याख्या में धनिक ने 'यथावोचाम काव्यनिर्णये' कहा है और उसकी सात कारिकाएँ उद्धृत की हैं। इनमें व्यंजनावादियों के पूर्वपक्ष को उद्धृत कर उनका खंडन किया गया है। श्रेणी:संस्कृत साहित्यकार.

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धर्ती–अ–जो–साद

धर्ती–अ–जो–साद सिन्धी भाषा के विख्यात साहित्यकार कीरत बाबाणी द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 2006 में सिन्धी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ध्रुवस्वामिनी (नाटक)

ध्रुवस्वामिनी जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित प्रसिद्ध हिन्दी नाटक है। यह प्रसाद की अंतिम और श्रेष्ठ नाट्य-कृति है। इसका कथानक गुप्तकाल से सम्बद्ध और शोध द्वारा इतिहाससम्मत है। यह नाटक इतिहास की प्राचीनता में वर्तमान काल की समस्या को प्रस्तुत करता है। प्रसाद ने इतिहास को अपनी नाट्याभिव्यक्ति का माध्यम बनाकर शाश्वत मानव-जीवन का स्वरुप दिखाया है, युग-समस्याओं के हल दिए हैं, वर्तमान के धुंधलके में एक ज्योति दी है, राष्ट्रीयता के साथ-साथ विश्व-प्रेम का सन्देश दिया है। इसलिए उन्होंने इतिहास में कल्पना का संयोजन कर इतिहास को वर्त्तमान से जोड़ने का प्रयास किया है। रंगमंच की दृष्टि से तीन अंकों का यह नाटक प्रसाद का सर्वोत्तम नाटक है। इसके पात्रों की संख्या सीमित है। इसके संवाद भी पात्रा अनुकूल और लघु हैं। भाषा पात्रों की भाषा के अनुकूल है। मसलन ध्रुवस्वामिनी की भाषा में वीरांगना की ओजस्विता है। इस नाटक में अनेक स्थलों पर अर्धवाक्यों की योजना है जो नाटक में सौंदर्य और गहरे अर्थ की सृष्टि करती है। .

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नट सम्राट

नट सम्राट मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार विष्णु वामन शिरवाडकर द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1974 में मराठी भाषा के लिए मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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नरहरि पटेल

नरहरि पटेल, मालवा के गीतकार, लोक संस्कृति के लेखक, कला समीक्षक, वरिष्ठ रंगकर्मी एवं कवि हैं। .

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नरेन्द्र कोहली

डॉ॰ नरेन्द्र कोहली (जन्म ६ जनवरी १९४०) प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार हैं। कोहली जी ने साहित्य के सभी प्रमुख विधाओं (यथा उपन्यास, व्यंग्य, नाटक, कहानी) एवं गौण विधाओं (यथा संस्मरण, निबंध, पत्र आदि) और आलोचनात्मक साहित्य में अपनी लेखनी चलाई है। उन्होंने शताधिक श्रेष्ठ ग्रंथों का सृजन किया है। हिन्दी साहित्य में 'महाकाव्यात्मक उपन्यास' की विधा को प्रारंभ करने का श्रेय नरेंद्र कोहली को ही जाता है। पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों की गुत्थियों को सुलझाते हुए उनके माध्यम से आधुनिक सामाज की समस्याओं एवं उनके समाधान को समाज के समक्ष प्रस्तुत करना कोहली की अन्यतम विशेषता है। कोहलीजी सांस्कृतिक राष्ट्रवादी साहित्यकार हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतीय जीवन-शैली एवं दर्शन का सम्यक् परिचय करवाया है। जनवरी, २०१७ में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। .

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नाटक त्रुचे

नाटक त्रुचे कश्मीरी भाषा के विख्यात साहित्यकार मोतीलाल केमु द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1982 में कश्मीरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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नाटककार

निबंधकार वह है जो साहित्य और रंगमंच की एक विधा नाटक लिखने का व्यावसायिक काम करता है। श्रेणी:साहित्य.

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नाट्य शास्त्र

250px नाटकों के संबंध में शास्त्रीय जानकारी को नाट्य शास्त्र कहते हैं। इस जानकारी का सबसे पुराना ग्रंथ भी नाट्यशास्त्र के नाम से जाना जाता है जिसके रचयिता भरत मुनि थे। भरत मुनि का काल ४०० ई के निकट माना जाता है। संगीत, नाटक और अभिनय के संपूर्ण ग्रंथ के रूप में भारतमुनि के नाट्य शास्त्र का आज भी बहुत सम्मान है। उनका मानना है कि नाट्य शास्त्र में केवल नाट्य रचना के नियमों का आकलन नहीं होता बल्कि अभिनेता रंगमंच और प्रेक्षक इन तीनों तत्वों की पूर्ति के साधनों का विवेचन होता है। 37 अध्यायों में भरतमुनि ने रंगमंच अभिनेता अभिनय नृत्यगीतवाद्य, दर्शक, दशरूपक और रस निष्पत्ति से संबंधित सभी तथ्यों का विवेचन किया है। भरत के नाट्य शास्त्र के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि नाटक की सफलता केवल लेखक की प्रतिभा पर आधारित नहीं होती बल्कि विभिन्न कलाओं और कलाकारों के सम्यक के सहयोग से ही होती है। .

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नानालाल

सुप्रसिद्ध कवीश्वर दलपतराय के पुत्र नानालाल (१८७७-१९४६ ई.) आधुनिक गुजराती साहित्य में सांस्कृतिक चेतना और भावसमृद्धि की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। जब तक उनका नाम रहेगा उनके द्वारा प्रवर्तित अपद्यागद्य या 'डोलनशैली' की सत्ता भी बनी रहेगी। गुजराती काव्य के क्षेत्र में उन्होंने अपने पिता से भी अधिक ख्याति प्राप्त की। पिता पुत्र का ऐसा यशस्वी कवियुग्म साहित्य के इतिहास में प्राय: दुर्लभ है। उन्होंने देश-विदेश के बहुसंख्यक नाटकों और महाकाव्यों का अनुशीलन करके अपने काव्य को गौरवान्वित किया। अपनी भाषा के अतिरिक्त वे संस्कृत, फारसी और अंगरेजी पर भी विशेष अधिकार रखते थे। .

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नाबोङखाउ

नाबोङखाउ मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार जी. सी. तोम्ब्रा द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1978 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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नायक नायिका भेद

संस्कृत साहित्य में भरत के नाट्य शास्त्र में अधिकांशत: नाटकीय पात्रों के वर्गीकरण प्रस्तुत हुए हैं और वात्स्यायन के कामसूत्र में एतद्विषयक भेद प्रभेद किए गए हैं जिनका संबंध प्राय: स्त्री-पुरुष के यौन व्यापारों से है। "अग्निपुराण" में प्रथम बार नायक-नायिका का विवेचन शृंगार रस के आलंबन विभावों के रूप में किया गया है। संस्कृत और हिंदी के परवर्ती लेखकों ने "अग्निपुराण" का स्थिति स्वीकार करते हुए श्रृंगाररस की सीमाओं में ही इस विषय का विस्तार किया है। इन सीमाओं का, जिनका अतिक्रमण केवल अपवाद के रूप में किया गया है, इस प्रकार समझा जा सकता है.

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नारायण प्रसाद 'बेताब'

नारायणप्रसाद 'बेताब' (१८७२ - १५ सितंबर, १९४५) प्रसिद्ध नाटककार थे। .

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नारायणप्रसाद 'बेताब'

नारायणप्रसाद 'बेताब' (संवत् १९२९ - १५ सितंबर १९४५ ई.) हिन्दी के प्रसिद्ध नाटककार एवं साहित्यकार थे। .

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नागानन्द

नागानन्द (नागों का आनन्द) राजा हर्षवर्धन (606 C.E. - 748 C.E.) द्वारा रचित संस्कृत नाटक है। यह संस्कृत के सर्वश्रेष्ठ नाटकों में से है। यह नाटक पाँच अंकों में है। इसमें गरुड़ देवता को खुश करने के लिये नागों की बलि देने को रोकने के लिये राजकुमार जिमुतवाहन द्वारा अपना शरीर त्याग की कहानी है। .

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निकोलाई गोगोल

निकोलाई गोगोल (पूरा नाम- निकोलाई वसील्येविच गोगोल, अन्य उच्चारण- निकोलाय गोगल, निकोलाई वसीलिविच गोगल; २० मार्च, १८०९- २१ फरवरी, १८५२ ई०) यूक्रेन मूल के रूसी साहित्यकार थे जिन्होंने कहानी, लघु उपन्यास एवं नाटक आदि विधाओं में युगीन आवश्यकताओं के अनुरूप प्रभूत लेखन किया है। गोगोल रूसी साहित्य में प्रगतिशील विचारधारा के आरंभिक प्रयोगकर्ताओं में प्रमुख थे व उनकी साहित्यिक प्राथमिकता जनोन्मुखता का पर्याय थी। आरंभिक लेखन में प्रेम-प्रसंग तत्त्व के आधिक्य होने पर भी बहुत जल्दी गोगोल सामाजिक जीवन का व्यापकता तथा गहराई से बहुआयामी चित्रण की ओर केंद्रित होते गये। मीरगोरोद में संकलित कहानियाँ इस तथ्य का जीवंत साक्ष्य हैं। पीटर्सबर्ग की कहानियाँ में संकलित रचनाओं में भी विसंगतियों एवं विडंबनाओं का मार्मिक चित्रण हास्य एवं सूक्ष्म व्यंग्य के माध्यम से अद्भुत है; और इनकी बड़ी विशेषता सामान्य जन के साथ-साथ साहित्यकारों की एक पूरी पीढ़ी को प्रभावित करना भी है। कहानियों के साथ-साथ नाटकों के माध्यम से गोगोल का मुख्य प्रकार्य युगीन आवश्यकताओं को इस प्रकार साहित्य में ढालना रहा है जिससे जन-सामान्य की स्थिति में परिवर्तनकारी भूमिका निभाने के साथ-साथ वस्तुतः साहित्य की 'साहित्यिकता' भी सुरक्षित रहे, और इसमें आलोचकों ने उसे सफल माना है। .

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नजीब महफ़ूज़

नजीब महफूज़ (अरबी: نجيب محفوظ, अंग्रेज़ी: Naguib Mahfouz) एक मिस्री लेखक व साहित्यकार थे जिन्होंने सन् १९८८ में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार जीता। तौफ़ीक़ अल-हकीम के साथ, उन्हें २०वी शताब्दी के दूसरे भाग में उभरने वाले समकालीन अस्तित्ववादी अरबी लेखकों के सर्वप्रथम गुट में माना जाता है। अपने ७० साल के लेखन में उन्होंने ३४ उपन्यास, ३५० लघुकथाएँ, दर्ज़नों फ़िल्मों की पटकथाएँ और पाँच नाटक लिखे। उनकी कई कृतियों को मिस्री व विदेशी फ़िल्मों में ढाला जा चुका है। .

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नवगोपाल मित्र

नवगोपाल मित्र (1840–1894) भारतीय नाटककार, कवि, निबन्धकार तथा देशभक्त थे। हिन्दू राष्ट्रीयता के संस्थापकों में उनका महत्वपूर्ण स्थान है। ऋषि राजनारायण बसु आदि के साथ मिलकर उन्होने हिन्दू मेले की स्थापना की थी। उन्होने नेशनल प्रेस, नेशनल पेपर, नेशनल सोसायटी, नेशनल थिएटर, नेशनल जिम्नेजियम (राष्ट्रीय व्यायामशाला), नेशनल सर्कस आदि की स्थापना की जिनसे उनका नाम ही 'नेशनल मित्र' पड़ गया। .

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नव्योत्तर काल

हिन्दी साहित्य के नव्योत्तर काल (पोस्ट-माडर्न) की कई धाराएं हैं -.

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नुक्‍कड़ नाटक

पुणे के एक पार्क में नुक्कड़-नाटक का दृश्य नुक्‍कड़ नाटक एक ऐसी नाट्य विधा है, जो परंपरागत रंगमंचीय नाटकों से भिन्‍न है। यह रंगमंच पर नहीं खेला जाता तथा आमतौर पर इसकी रचना किसी एक लेखक द्वारा नहीं की जाती, बल्कि सामाजिक परिस्थितियों और संदर्भों से उपजे विषयों को इनके द्वारा उठा लिया जाता है। जैसा कि नाम से जाहिर है इसे किसी सड़क, गली, चौराहे या किसी संस्‍थान के गेट अथवा किसी भी सार्वजनिक स्‍थल पर खेला जाता है। इसकी तुलना सड़क के किनारे मजमा लगा कर तमाशा दिखाने वाले मदारी के खेल से भी की जा सकती है। अंतर यह है कि यह मजमा बुद्धिजीवियों द्वारा किसी उद्देश्‍य को सामने रख कर लगाया जाता है। भारत में आधुनिक नुक्कड़ नाटक को लोकप्रिय बनाने का श्रेय सफ़दर हाशमी को जाता है। उनके जन्म दिवस १२ अप्रैल को देशभर में राष्ट्रीय नुक्कड़ नाटक दिवस के रूप में मनाया जाता है। .

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नेपाली भाषाएँ एवं साहित्य

नेपाल में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं, जैसे किराँती, गुरुंग, तामंग, मगर, नेवारी, गोरखाली आदि। काठमांडो उपत्यका में सदा से बसी हुई नेवार जाति, जो प्रागैतिहासिक गंधर्वों और प्राचीन युग के लिच्छवियों की आधुनिक प्रतिनिधि मानी जा सकती है, अपनी भाषा को नेपाल भाषा कहती रही है जिसे बोलनेबालों की संख्या उपत्यका में लगभग 65 प्रतिशत है। नेपाली, तथा अंग्रेजी भाषाओं में प्रकाशित समाचार पत्रों के ही समान नेवारी भाषा के दैनिक पत्र का भी प्रकाशन होता है, तथापि आज नेपाल की सर्वमान्य राष्ट्रभाषा नेपाली ही है जिसे पहले परवतिया "गोरखाली" या खस-कुरा (खस (संस्कृत: कश्यप; कुराउ, संस्कृत: काकली) भी कहते थे। .

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नीलदर्पण

नीलदर्पण बांग्ला का प्रसिद्ध नाटक है जिसके रचयिता दीनबन्धु मित्र हैं। इसकी रचना १८५८-५९ में हुई। यह बंगाल में नील विद्रोह का अन्दोलन का कारण बना। यह बंगाली रंगमंच के विकास का अग्रदूत भी बना। कोलकाता के 'नेशनल थिएटर' में सन् १८७२ में खेला गया यह पहला व्यावसायिक नाटक था। .

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पर इस दिल को कैसे समझाएँ

पर इस दिल को कैसे समझाएँ हिन्दी भाषा में बनी भारतीय धारावाहिक है, जिसका प्रसारण सोनी पर 29 मार्च 2002 से शुरू हुआ। जो हर शुक्रवार रात 8:30 बजे देता था और 20 सितम्बर 2002 तक चला। .

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पश्चिम गंग वंश

पश्चिम गंग वंश (३५०-१००० ई.) (ಪಶ್ಚಿಮ ಗಂಗ ಸಂಸ್ಥಾನ) प्राचीन कर्नाटक का एक राजवंश था। ये पूर्वी गंग वंश से अलग थे। पूर्वी गंग जिन्होंने बाद के वर्षों में ओडिशा पर राज्य किया। आम धारण के अनुसार पश्चिम गंग वंश ने शसन तब संभाला जब पल्लव वंश के पतन उपरांत बहुत से स्वतंत्र शासक उठ खड़े हुए थे। इसका एक कारण समुद्रगुप्त से युद्ध भी रहे थे। इस वंश ने ३५० ई से ५५० ई तक सार्वभौम राज किया था। इनकी राजधानी पहले कोलार रही जो समय के साथ बदल कर आधुनिक युग के मैसूर जिला में कावेरी नदी के तट पर तालकाड स्थानांतरित हो गयी थी। .

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पात्र

* किसी नाटक, कहानी अथवा फिल्म के चरित्रों को पात्र कहते हैं, जैसे हीरामन तीसरी कसम का प्रमुख पात्र था।.

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पादताडितकम्

पादताडितकम् (शब्दार्थ .

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पारसी रंगमंच

; 'पारसी रंगमंच' से 'फारसी भाषा का रंगमंच' या 'इरान का रंगमंच' का अर्थ न समझें। यह अलग है जो भारत से संबन्धित है। ---- अंग्रेजों के शासनकाल में भारत की राजधानी जब कलकत्ता (1911) थी, वहां 1854 में पहली बार अंग्रेजी नाटक मंचित हुआ। इससे प्रेरित होकर नवशिक्षित भारतीयों में अपना रंगमंच बनाने की इच्छा जगी। मंदिरों में होनेवाले नृत्य, गीत आदि आम आदमी के मनोरंजन के साधन थे। इनके अलावा रामायण तथा महाभारत जैसी धार्मिक कृतियों, पारंपरिक लोक नाटकों, हरिकथाओं, धार्मिक गीतों, जात्राओं जैसे पारंपरिक मंच प्रदर्शनों से भी लोग मनोरंजन करते थे। पारसी थियेटक से लोक रंगमंच का जन्म हुआ। एक समय में सम्पन्न पारसियों ने नाटक कंपनी खोलने की पहल की और धीरे-धीरे यह मनोरंजन का एक लोकप्रिय माध्यम बनता चला गया। इसकी जड़ें इतनी गहरी थीं कि आधुनिक सिनेमा आज भी इस प्रभाव से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाया है। पारसी रंगमंच, 19वीं शताब्दी के ब्रिटिश रंगमंच के मॉडल पर आधारित था। इसे पारसी रंगमंच इसलिए कहा जाता था क्योंकि इससे पारसी व्यापारी जुड़े थे। वे इससे अपना धन लगाते थे। उन्होंने पारसी रंगमंच की अपनी पूरी तकनीक ब्रिटेन से मंगायी। इसमें प्रोसेनियम स्टेज से लेकर बैक स्टेज की जटिल मशीनरी भी थी। लेकिन लोक रंगमंच-गीतों, नृत्यों परंपरागत लोक हास-परिहास के कुछ आवश्यक तत्वों और इनकी प्रारंभ तथा अंत की रवाइतों को पारसी रंगमंच ने अपनी कथा कहने की शैली में शामिल कर लिया था। दो श्रेष्ठ परंपराओं का यह संगम था और तमाम मंचीय प्रदर्शन पौराणिक विषयों पर होते थे जिनमें परंपरागत गीतों और प्रभावी मंचीय युक्तियों का प्रयोग अधिक होता था। कथानक गढ़े हुए और मंचीय होते थे जिसमें भ्रमवश एक व्यक्ति को दूसरा समझा जाता था, घटनाओं में संयोग की भूमिका होती थी, जोशीले भाषण होते थे, चट्टानों से लटकने का रोमांच होता था और अंतिम क्षण में उनका बचाव किया जाता था, सच्चरित्र नायक की दुष्चरित्र खलनायक पर जीत दिखायी जाती थी और इन सभी को गीत-संगीत के साथ विश्वसनीय बनाया जाता था। औपनिवेशिक काल में भारत के हिन्दी क्षेत्र के विशेष लोकप्रिय कला माध्यमों में आज के आधुनिक रंगमंच और फिल्मों की जगह आल्हा, कव्वाली मुख्य थे। लेकिन पारसी थियेटर आने के बाद दर्शकों में गाने के माध्यम से बहुत सी बातें कहने की परंपरा चल पड़ी जो दर्शकों में लोकप्रिय होती चली गयी। बाद में 1930 के दशक में आवाज रिकॉर्ड करने की सुविधा शुरू हुई और फिल्मों में भी इस विरासत को नये तरह से अपना लिया गया। वर्ष 1853 में अपनी शुरुआत के बाद से पारसी थियेटर धीरे-धीरे एक 'चलित थियेटर' का रूप लेता चला गया और लोग घूम-घूम कर नाटक देश के हर कोने में ले जाने लगे। पारसी थियेटर के अभिनय में ‘‘मेलोड्रामा’’ अहम तत्व था और संवाद अदायगी बड़े नाटकीय तरीके से होती थी। उन्होंने कहा कि आज भी फिल्मों के अभिनय में पारसी नाटक के तत्व दिखाई देते हैं। 80 वर्ष तक पारसी रंगमंच और इसके अनेक उपरूपों ने मनोरंजन के क्षेत्र में अपना सिक्का जमाए रखा। फिल्म के आगमन के बाद पारसी रंगमंच ने विधिवत् अपनी परंपरा सिनेमा को सौंप दी। पेशेवर रंगमंच के अनेक नायक, नायिकाएं सहयोगी कलाकार, गीतकार, निर्देशक, संगीतकार सिनेमा के क्षेत्र में आए। आर्देशिर ईरानी, वाजिया ब्रदर्स, पृथ्वीराज कपूर, सोहराब मोदी और अनेक महान दिग्गज रंगमंचकी प्रतिभाएं थीं जिन्होंने शुरुआती तौर में भारतीय फिल्मों को समृद्ध किया। .

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पारसी खातिर

पारसी खातिर संताली भाषा के विख्यात साहित्यकार रबिलाल टुडू द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 2015 में संताली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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पागल लोक

पागल लोक पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार कपूर सिंह घुम्मन द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1984 में पंजाबी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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पिचिरान्दयार

पिचिरान्दयार तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार भारतीदासन द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1969 में तमिल भाषा के लिए मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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पवित्र रिश्ता

पवित्र रिश्ता एक अत्यंत लोकप्रिय भारतीय दैनिक धारावाहिक था जो ज़ी टीवी पर प्रसारित और एकता कपूर की बालाजी टेलीफिल्म्स द्वारा निर्मित था। पवित्र रिश्ता मुंबई शहर और दैनिक समस्याओं को जो वे सामना करने के लिए दिन के आम मध्यम वर्ग के परिवारों के सरल जीवन का चित्रण है। कहानी दो प्रेमी मानव और अर्चना की यात्रा पर विशेष रूप से केंद्रित है। .

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पंचरात्र (नाटक)

पंचरात्र भास द्वारा विरचित संस्कृत का नाटक ग्रंथ है। इसकी कथा महाभारत पर आधारित है। .

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पंचरात्र (बहुविकल्पी)

पंचरात्र या पंचरात्र का निम्नलिखित सन्दर्भों में प्रयोग हो सकता है-.

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पुनर्विवाह

पुनर्विवाह - ज़िन्दगी मिलेगी दोबारा एक हिन्दुस्तानी टेलविजन नाटक श्रृंखला है कि वर्तमान में ज़ी टीवी पर अकड़ है। यह २० सन २०१२ को प्रीमियर और भागोंवाली बांटे अपनी तक़दीर की जगह.

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प्रतिमानाटक

प्रतिमानाटक, संस्कृत का प्रसिद्ध नाटक है। यह भास के सर्वोत्तम नाटकों में से एक है। सात अंकों के इस नाटक में भास की कला पर्याप्त ऊँचाईं को प्राप्त कर चुकी है। इसमें भास ने राम वनगमन से लेकर रावणवध तथा राम राज्याभिषेक तक की घटनाओं को स्थान दिया है। महाराज दशरथ की मृत्यु के उपरान्त ननिहाल से लौट रहे भरत अयोध्या के पास मार्ग में स्थित देवकुल में पूर्वजों की प्रतिमायें देखते हैं, वहाँ दशरथ की प्रतिमा देखकर वे उनकी मृत्यु का अनुमान कर लेते हैं। प्रतिमा दर्शन की घटना प्रधान होने से इसका नाम प्रतिमा नाटक रखा गया है। इस नाटक में भास ने पात्रों का चारित्रिक उत्कर्ष दिखाने का भरसक प्रयास किया है। इतिवृत्त तथा चरित्रचित्रण दोनों दृष्टियों से यह नाटक सफल हुआ है। भावों के अनुकूल भाषा तथा लघु विस्तारी वाक्य भास के नाटकों की अपनी विशेषताएँ हैं। यह करुण रस प्रधान नाटक है तथा अन्य रस इसी में सहायक बनकर आये हैं। प्रतिमा निर्माण की कथा भास की अपनी मौलिकता है। भास ने इस नाटक में मौलिकता लाने में प्रचलित रामचरित से पर्याप्त पार्थक्य ला दिया है। यद्यपि ये सारी घटनायें प्रचलित कथा से भिन्न हैं, पर नाटकीय दृष्टि से इनका महत्व सुतरां ऊँचा है और पाठक अथवा दर्शक की कौतुहल वृद्धि में ये घटनायें सहायक हुई हैं। इस नाटक में रामायणीय कथा से भिन्नतायें इस प्रकार हैं - प्रथम अंक में सीता द्वारा परिहास में वल्कल पहनना भास की मौलिकता है। तृतीय अंक में प्रतिमा का सम्पूर्ण प्रकरण ही कवि कल्पित है और यह कल्पना ही नाटक की आधारभूमि बनायी गयी है। पाँचवें अंक में सीता का हरण भी यहाँ नवीन ढंग से बताया गया है। यहाँ राम के उटज में वर्तमान रहने पर ही रावण वहाँ आता है और दशरथ के श्राद्ध के लिए उन्हें कांचनपार्श्व मृग लाने को कहता है तथा उन्हें कांचन मृग दिखाकर दूर हटाता है। यह सम्पूर्ण प्रसंग नाटककार द्वारा गढ़ा गया है। पांचवें अंक में सुमंत्र का वन में जाना तथा लौटकर भरत से सीताहरण बताना कवि कल्पना का प्रसाद है। कैकयी द्वारा यह कहना भी कि उसने ऋषिवचन सत्य करने के लिए राम को वन भेजा, भास की प्रसृति है। अन्ततः सप्तम अंक में राम का वन में ही राज्याभिषेक इस नाटक में मौलिक ही है। .

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प्रभाकर श्रोत्रिय

डॉ॰ प्रभाकर श्रोत्रिय (जन्म १९ दिसम्बर १९३८) हिन्दी साहित्यकार, आलोचक तथा नाटककार हैं। हिंदी आलोचना में प्रभाकर श्रोत्रिय एक महत्वपूर्ण नाम है पर आलोचना से परे भी साहित्य में उनका प्रमुख योगदान रहा है, खासकर नाटकों के क्षेत्र में। उन्होंने कम नाटक लिखे पर जो भी लिखे उसने हिंदी नाटकों को नई दिशा दी। पूर्व में मध्यप्रदेश साहित्य परिषद के सचिव एवं 'साक्षात्कार' व 'अक्षरा' के संपादक रहे हैं एवं विगत सात वर्षों से भारतीय भाषा परिषद के निदेशक एवं 'वागर्थ' के संपादक पद पर कार्य करने के साथ-साथ वे भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्ली के निदेशक पद पर भी कार्य कर चुके हैं। वे अनेक महत्वपूर्ण संस्थानों के सदस्य हैं। .

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प्रियदर्शिका

प्रियदर्शिका हर्ष द्वारा रचित एक संस्कृत नाटक है जिसमें राजा उदयन और राजकुमारी प्रियदर्शिका की कहानी वर्णित है। .

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प्रिज़न ब्रेक

प्रिज़न ब्रेक पॉल शिउरिंग के द्वारा सृजित एक नाटकीय टेलीविजन सीरिज़ है जो फॉक्स ब्रॉडकास्टिंग कंपनी पर 29 अगस्त 2005 को प्रदर्शित हुआ। यह सीरिज़ दो भाईयों के इर्द-गिर्द घूमती है जिसमें से एक भाई को निरपराधी होने पर भी सजा-ए-मौत मिलती है एवं दूसरा भाई अपने भाई को जेल से भागने में मदद करने के लिए विस्तृत योजना बनाता है। यह सीरिज़ ऑरिजिनल टेलीविजन और 20-एथ सेंचुरी फॉक्स टेलीविजन के सहयोग से एडेलस्टीन-पेरुज़ प्रोडक्शन द्वारा निर्मित किया गया है। इसके वर्तमान प्रबंधक प्रस्तुतकर्ता क्रमश: मुख्य लेखक शिउरिंग, सह-लेखक मैट ओल्म्सटिड, केविन हूक्स, मार्टी एडेलस्टीन, डॉन पाराउज, नील.एच.मोर्टिज़ एवं ब्रेट रैटनर हैं। इस सीरिज़ के थीम म्यूजिक के संगीतकार रामीन जावडी है जिनका नामांकन 2006 में प्राइमटाइम एम्मी एवार्ड के लिए हुआ था। मूलरूप से यह सीरिज़ फॉक्स द्वारा 2003 में धीमी कर दी गयी जिसे दीर्घ काल तक चलने वाले सीरिज़ के रूप में चलाने को सोचा गया। प्राइम टाइम टेलीविजन का धारावाहिक लोस्ट और 24 की सीरिज़ की प्रसिद्धि को देखते हुए फॉक्स ने 2004 में इसके निर्माण को समर्थन देने का निश्चय किया। पहले सीज़न को सामान्य रूप से अनुकूल समीक्षा मिली तथा रेटिंग की दृष्टि से भी इसने अच्छा प्रदर्शन किया। प्रथम सीज़न को मूलरूप से 13 प्रसंगों तक चलाने की योजना बनायी गयी, लेकिन इसकी प्रसिद्धि के कारण इसके नौ अतिरिक्त प्रसंगों को शामिल कर बढ़ाया गया। प्रिज़न ब्रेक का नामांकन विभिन्न इंडसट्री अवार्डों के लिए हुआ था और 2006 में इसने पसंदीदा नया टीवी ड्रामा के लिए पीपुल्स च्वायस अवार्ड जीता.

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प्रेमचंद

प्रेमचंद (३१ जुलाई १८८० – ८ अक्टूबर १९३६) हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। मूल नाम धनपत राय प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्‍य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्‍यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं। .

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प्रेमचंद की रचनाएँ

मुंशी प्रेमचंद की रचना-दृष्टि विभिन्न साहित्य रूपों में प्रवृत्त हुई। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की। प्रमुखतया उनकी ख्याति कथाकार के तौर पर हुई और अपने जीवन काल में ही वे ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि से सम्मानित हुए। उन्होंने कुल १५ उपन्यास, ३०० से कुछ अधिक कहानियाँ, ३ नाटक, १० अनुवाद, ७ बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की। .

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प्रीति ज़िंटा

प्रीटी ज़िंटा (जन्म ३१ जनवरी १९७५) एक भारतीय फ़िल्म अभिनेत्री है। वे हिन्दी, तेलगू, पंजाबी व अंग्रेज़ी फ़िल्मों में कार्य कर चुकी है। मनोविज्ञान में उपाधी ग्रहण करने के बाद ज़िंटा ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत दिल से.. में १९९८ से की और उसी वर्ष फ़िल्म सोल्जर में पुनः दिखी। इन फ़िल्मों में अभिनय के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ नई अदाकारा का पुरस्कार प्रदान किया गया और आगे चलकर उन्हें फ़िल्म क्या कहना में कुँवारी माँ के किरदार के लिए काफ़ी सराहा गया। उन्होंने आगे चलकर भिन्न-भिन्न प्रकार के किरदार अदा किए व उनके अभिनय व किरदारों ने हिन्दी फ़िल्म अभिनेत्रियों की एक नई कल्पना को जन्म दिया। जिंटा को २००३ में फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार कल हो ना हो फ़िल्म में उनके अभिनय के लिए प्रदान किया गया। उन्होंने सर्वाधिक कमाई वाली दो भारतीय फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमे काल्पनिक विज्ञान पर आधारित फ़िल्म कोई... मिल गया (२००३) और रोमांस फ़िल्म वीर-ज़ारा (२००४) शमिल है जिसके लिए उन्हें समीक्षकों द्वारा बेहद सराहा गया। उन्होंने आधुनिक भारतीय नारी का किरदार फ़िल्म सलाम नमस्ते और कभी अलविदा ना कहना में निभाया जो अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में उच्च-कमाई वाली फ़िल्में रही। इन उपलब्धियों ने उन्हें हिन्दी सिनेमा के मुख्य अभिनेत्रियों में से एक बना दिया। उनका पहला अंतर्राष्ट्रीय किरदार कनेडियाई फ़िल्म हेवन ऑन अर्थ में था जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का सिल्वर ह्यूगो पुरस्कार २००८ के शिकागो अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में प्रदान किया गया। फ़िल्मों में अभिनय के आलावा जिंटा ने बीबीसी न्यूज़ ऑनलाइन में कई लेख लिखे है, साथ ही वे एक सामाजिक कार्यकर्त्ता, टेलिविज़न मेज़बान और नियमित मंच प्रदर्शनकर्ता है। वे पीज़ेडएनज़ेड इण्डिया प्रोडक्शन कंपनी की संस्थापक भी है जिसकी स्थापना उन्होंने अपने पूर्व-साथी नेस वाडिया के साथ की है और दोनों साथ-ही-साथ इंडियन प्रीमियर लीग की क्रिकेट टीम किंग्स XI पंजाब के मालिक भी है। .

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पीटर ब्रुक

पीटर ब्रुक पीटर ब्रुक (1925-) अंग्रेज़ नाटक निर्देशक जिसने महाभारत का निर्देशन किया। मल्लिका साराभाई ने पीटर ब्रुक के नाटक महाभारत में द्रोपदी की भूमिका निभाई। इस नाटक पर बाद मै फिल्म भी बनी।.

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फ़ायरफ़्लाई

फ़ायरफ्लाई (Firefly) एक अमेरिकी अंतरिक्ष में घटने वाली धारावाहिक शृंखला है जिसका लेखन व निर्देशन जोस व्हेडन द्वारा अपने लेबल म्यूटेंट एनिमी प्रोडक्शंस के अंतर्गत किया गया है। व्हेडन टीम मीनार के साथ इसके बाह्य निर्माता भी है। शृंखला २५१७ में घटती है जहां मनुष्यों ने एक नए तारामंडल में रहना शुरू कर दिया है और इस तारामंडल में शृंखला की कथा एक "फायरफ्लाई-श्रेणी" के बाघी अंतरिक्षयान सेरेनिटी व उसके कर्मिदलों के रोमांच पर केंद्रित है। इसमें नौ पात्र है जो सेरेनिटी पर रहते है। व्हेडन ने इस शो को इस तरह समझाया है की "नौ लोग अंतरिक्ष के अँधेरे में नौ अलग-अलग चीज़ें देखते है"। यह शो कुछ उन लोगो के जीवन पर ध्यान केंद्रित करता है जिन्होंने एक हारे हुए गृह युद्ध में हिस्सा लिया था और उन कुछ लोगो के जीवन पर जो अब सभ्यता के बाहरी छोर पर ज़िंदगी जीते है जो एक ऐसी सभ्यता है जो तारामंडल के अंत पर स्थित है। इसके साथ ही यह एक ऐसा भविष्य है जहां जीवित बचे दो शक्तिशाली राष्ट्रों, अमेरिका व चीन, ने मिलकर एक नई केन्द्रीय सरकार का निर्माण किया है जिसे अलायंस कहते है जो दोनों सभ्यताओं के मिश्रण से बना है। फ़ायरफ़्लाई का प्रसारण अमेरिका में फॉक्स नेटवर्क पर २० सितंबर २००२ से शुरू हुआ। बड़ी अपेक्षाओं के बावजूद फ़ायरफ़्लाई को बड़ी तादाद में दर्शक नहीं मिले और इसके चलते चौदह निर्मित एपिसोडों में से केवल ग्यारह ही प्रसारित किए गए। इसके छोटे प्रसारण काल के बावजूद इसकी डीवीडी की बिक्री बढ़िया रही। इसे २००३ का किसी शृंखला में बेहतरीन स्पेशल इफेक्ट्स का एमी पुरस्कार प्रदान किया गया। प्रसारण के बाद की सफलता के चलते व्हेडन और यूनिवर्सल पिक्चर्स ने शृंखला पर आधारित फ़िल्म सेरेनिटी का निर्माण किया। .

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फ़ाइनल सॉल्यूशन्स एंड अदर प्लेज़

फ़ाइनल सॉल्यूशन्स एंड अदर प्लेज़ अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार महेश दत्तानी द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1998 में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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फ़ाउस्ट (गेटे)

फ़ाउस्ट (Faust) जर्मनी के महान कवि योहान वुल्फगांग फान गेटे द्वारा रचित दुखान्त नाटक है। यह दो अंकों में है। इसे जर्मन साहित्य की महान कृति माना जाता है। यह गेटे की सर्वश्रेष्ठ कृति है। जर्मनी में मंचित होने पर इसे देखने वाल की संख्या सर्वाधिक है। गेटे ने इसके प्रथम अंक का आरम्भिक संस्करण सन् १८०६ में पूरा किया था और दूसरा भाग १९३२ में। इसी वर्ष उसकी मृत्यु भी हुई। .

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फ़ैशन

फ़ैशन 2008 की भारतीय ड्रामा फ़िल्म है। इसके सह-निर्माता और सह-लेखक मधुर भंडारकर हैं तथा इसमें मुख्य भूमिका में प्रियंका चोपड़ा और कंगना राणावत, मुग्धा गोडसे, अर्जन बाजवा और अरबाज़ ख़ान सहायक भूमिका में हैं। इसके साथ-साथ कई असल जीवन की फ़ैशन मॉडल ने अपने आपको फ़िल्म में किरदार के तौर पर निभाया है। फ़िल्म की कहानी एक छोटे शहर की महत्वाकांक्षी मॉडल मेघना माथुर (चोपड़ा) के इर्दगिर्द घूमती है। फ़िल्म दर्शाती है कि कैसे माथुर एक सुपरमॉडल बनती है और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसे जीवन में कितनी कठिनाईयां झेलनी पड़ती हैं। फ़ैशन में भारतीय फ़ैशन उद्योग और कई मॉडल के कैरियर के उतार-चढ़ाव को भी दिखाया गया है। .

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फिर सुबह होगी

फिर सुबह होगी एक भारतीय नाटक ऑपेरा श्रृंखला है कि वर्तमान में बुंदेलखंड क्षेत्र की बेदिया समुदाय, मध्य प्रदेश के बारे में ज़ी टीवी पर ऐर जाता है पर प्रीमियर हुआ ૧૭ अप्रैल, ૨૦૧૨। यह हर सोम - शुक्र ૦૯:૩૦ ऐर। यह महाबलेश्वर के पास वाई गांव में गोली मार दी जा रही है। .

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फैनी बर्नी

फैनी बर्नी फैनी बर्नी (Fanny Burney / 13 जून 1752 – 6 जनवरी 1840) अंग्रेजी उपन्यासकार तथा नाटककार थीं। वे 'फ्रांसेज बर्नी' (Frances Burney) के नाम से भी जानी जाती हैं। विवाह के बाद वे मेडम डाब्ले (Madame d’Arblay) के नाम से भी जानी जाती थीं। उनकी पैनी दृष्टि मनुष्यों की त्रुटियों तथा हास्यापद विचित्रताओं को सहज ही लक्ष्य कर लेती थी और उनकी लेखनी कुशल चित्रकार की तूलिका के समान उनका समन्वय करके मनोरंजक चित्रों का सर्जन करती थी। इस तरह के व्यंग्यात्मक चित्र उनके उपन्यासों में भरे पड़े हैं। मैडम डाब्ले के उपन्यासों का महत्व ऐतिहासिक है क्योंकि उनमें स्त्रियों के स्वतंत्र दृष्टिकोण का समावेश है और घरेलू जीवन ही उनका केंद्रबिंदु है। उन्होंने उस परंपरा का श्रीगणेश किया जिसकी पराकष्ठा जेन आस्टिन की परिपक्व कृतियों मे पाई जाती है। .

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बढ़ो बहू

बढ़ो बहू एक भारतीय हिन्दी प्रेमलीला धारावाहिक है, जिसका प्रसारण एण्ड टीवी पर हो रहा है। यह धारावाहिक १२ सितंबर २०१६ को आरम्भ हुआ था एवं सोमवार से शुक्रवार रात्रि ९ बजे हुआ करता है। एस धारावाहिक का निर्माण सनी साइड अप एवं हम तुम टेलीफ़िल्म्स प्रा.

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बदरीनारायण चौधरी उपाध्याय 'प्रेमघन'

बदीनारायण चौधरी उपाध्याय "प्रेमधन" हिन्दी साहित्यकार थे। वे भारतेंदु मंडल के उज्वलतम नक्षत्र थे। .

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बर्फी!

बर्फी! 2012 में प्रदर्शित रोमेंटिक हास्य-नाटक हिन्दी फ़िल्म है जिसके लेखक, निर्देशक व सह-निर्माता अनुराग बसु हैं। 1970 के दशक में घटित फ़िल्म की कहानी दार्जिलिंग के एक गूंगे और बहरे व्यक्ति मर्फी "बर्फी" जॉनसन के जीवन और उसके दो महिलाओं श्रुति और मंदबुद्धि के साथ सम्बन्धों को दर्शाती है। फ़िल्म में मुख्य भूमिका में रणबीर कपूर, प्रियंका चोपड़ा और इलियाना डी'क्रूज़ हैं तथा सहायक अभिनय करने वाले सौरभ शुक्ला, आशीष विद्यार्थी और रूपा गांगुली हैं। लगभग के बजट में बनी, बर्फी! विश्व स्तर पर 14 सितम्बर 2012 को व्यापक समीक्षकों की प्रशंसा के साथ प्रदर्शित हुई। समीक्षकों ने अभिनय, निर्देशन, पटकथा, छायांकन, संगीत और शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के सकारात्मक चित्रण की प्रशंसा की। फ़िल्म को बॉक्स-ऑफिस पर बड़ी सफ़लता प्राप्त हुई, परिणामस्वरूप यह भारत और विदेशों में 2012 की उच्चतम अर्जक बॉलीवुड फ़िल्मों की श्रेणी में शामिल हुई तथा तीन सप्ताह पश्चात बॉक्स ऑफिस इंडिया द्वारा इसे "सूपर हिट" (उत्तम सफलता) घोषित कर दिया गया। दुनिया भर में फ़िल्म ने अर्जित किए। फ़िल्म को 85वें अकादमी पुरस्कारों की सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फ़िल्म श्रेणी के नामांकन के लिए भारतीय आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना गया। बर्फी ने भारत भर के विभिन्न पुरस्कार समारोहों में कई पुरस्कार और नामांकन अर्जित किए। 58वें फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों में इस फ़िल्म ने 13 नामांकन प्राप्त किए और इसने सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, कपूर को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता तथा प्रीतम को मिले सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक पुरस्कार सहित सात (अन्य किसी भी फ़िल्म से अधिक) पुरस्कार जीते। .

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बरॉक

पीटर पॉल रूबेंस द्वारा आराधना. जिआन लॉरेंजों बर्निनी द्वारा रूपांकित सैंट'एंड्रिया एल क्युरिनेल का चर्च. बरॉक (bə-), यूरोप में 16वीं सदी के अंत और 18वीं सदी के आरंभ में प्रचलित एक कलात्मक शैली है। इसे अधिकतर "मैनेरिस्ट और रोकोको युगों में यूरोप की एक प्रभावशाली शैली के रूप में परिभाषित किया जाता है, एक ऐसी शैली, जिसे गतिशील आन्दोलन, खुली भावना और आत्मविश्वासी अलंकार विद्या" के रूप में जाना जाता है। बरॉक शैली की लोकप्रियता और सफलता को रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा प्रोत्साहित किया गया, जिसने प्रोटेस्टेंट सुधार की प्रतिक्रिया में, काउंसिल ऑफ ट्रेंट के समय यह निर्णय लिया था, कि कला को प्रत्यक्ष और भावनात्मक जुड़ाव के साथ धार्मिक प्रकरणों को संचारित करना चाहिए। अभिजात वर्ग ने भी बरॉक वास्तुकला की नाटकीय शैली और कला को आगंतुकों को प्रभावित करने और विजयी शक्ति और नियंत्रण को अभिव्यक्त करने वाले माध्यम के रूप में देखा। बरॉक महलों को परिसर के प्रवेश द्वार, भव्य सीढ़ियों और क्रमानुसार समृद्धि को बढ़ाने वाले स्वागत कक्ष के आस पास निर्मित किया जाता है। .

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बलवंत पांडुरंग अण्णा साहब किर्लोस्कर

अण्णा साहब किर्लोस्कर बलवंत पांडुरंग अण्णा साहब किर्लोस्कर (1843-1885 ई0) मराठी रंगमंच के आदि संगीत-नाटककार थे। आपका जन्म महाराष्ट्र के बेलगाँव जिले के एक गाँव में हुआ था। विद्याध्ययन के लिए 1863 में पूना भेजे गए किंतु संगीत और नाटक में आरंभ से ही रुचि होने के कारण स्कूली पढ़ाई में मन नहीं लगा। पढ़ाई छोड़कर आपने अध्यापक, सिपाही आदि की नौकरी की पर उनके जीवन का विकास नाटक के क्षेत्र में ही हुआ। उन्होंने 1866 में भारत शास्त्रोत्तेजक मंडली की स्थापना की और अपने लिखे नाटक श्री शंकर-दिग्विजय और 'अलाउद्दीन' का मंचन किया। इसमें उन्हें पर्याप्त सफलता मिली। इससे उत्साहित होकर उन्होंने अपने सहकर्मियों के साथ मिलकर किर्लोस्कर संगीत नाटक मंडली के नाम से एक व्यावसायिक संस्था की स्थापना की और 1880 ई. में पूना में अभिज्ञान शाकुंतल का मराठी संगीत रूपक संगीत शाकुंतल प्रस्तुत किया। इस नाटक की सफलता ने मराठी रंगमंच में एक नया युग उपस्थित कर दिया। किर्लोस्कर ने 'संगीत शाकुंतल' के अतिरिक्त सौभद्र रामराज्य वियोग आदि अन्य कई नाटक लिखे और वे सभी समादरित हुए। 42 वर्ष की अवस्था में आपका 1885 ई. में देहांत हो गया। .

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बलवंत मोरेश्वर पुरंदरे

बाबासाहेब पुरन्दरे बलवंत मोरेश्वर पुरन्दरे उपाख्य बाबासाहेब पुरंदरे (जन्म: २९ जुलाई १९२२) मराठी साहित्यकार, नाटककार तथा इतिहास लेखक हैं। महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें राज्य के सर्वोच्च सम्मान 'महाराष्ट्र भूषण' से सम्मानित किया है। वे शिवाजी से सम्बन्धित इतिहास शोध के लिये प्रसिद्ध हैं। प्रसिद्ध नाटक जाणता राजा (विवेकशील राजा) उनकी ही कृति है। .

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बानप्रस्‍थ

बानप्रस्‍थ ओड़िया भाषा के विख्यात साहित्यकार विजय मिश्र द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 2013 में ओड़िया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बालकृष्ण भट्ट

पंडित बाल कृष्ण भट्ट (३ जून १८४४- २० जुलाई १९१४) हिन्दी के सफल पत्रकार, नाटककार और निबंधकार थे। उन्हें आज की गद्य प्रधान कविता का जनक माना जा सकता है। हिन्दी गद्य साहित्य के निर्माताओं में भी उनका प्रमुख स्थान है। .

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बिचित्र नाटक

बचित्तर नाटक या बिचित्तर नाटक (ਬਚਿੱਤਰ ਨਾਟਕ) गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा रचित दशम ग्रन्थ का एक भाग है। वास्तव में इसमें कोई 'नाटक' का वर्णन नहीं है बल्कि गुरुजी ने इसमें उस समय की परिस्थितियों तथा इतिहास की एक झलक दी है और दिखाया है कि उस समय हिन्दू समाज पर पर मंडरा रहे संकटों से मुक्ति पाने के लिये कितने अधिक साहस और शक्ति की जरूरत थी। श्रेणी:सिख धर्म.

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ब्रजबुलि

ब्रजबुलि उस काव्यभाषा का नाम है जिसका उपयोग उत्तर भारत के पूर्वी प्रदेशों अर्थात् मिथिला, बंगाल, आसाम तथा उड़ीसा के भक्त कवि प्रधान रूप से कृष्ण की लीलाओं के वर्णन के लिए करते रहे हैं। नेपाल में भी ब्रजबुलि में लिखे कुछ काव्य तथा नाटकग्रंथ मिले हैं। इस काव्यभाषा का उपयोग शताब्दियों तक होता रहा है। ईसवी सन् की 15वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक इस काव्यभाषा में लिखे पद मिलते हैं। यद्यपि "ब्रजबुलि साहित्य" की लंबी परंपरा रही हैं, फिर भी "ब्रजबुलि" शब्द का प्रयोग ईसवी सन् की 19वीं शताब्दी में मिलता है। इस शब्द का प्रयोग अभी तक केवल बंगाली कवि ईश्वरचंद्र गुप्त की रचना में ही मिला है। .

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ब्रूस ली

ब्रूस ली (जून फान,李振藩,李小龙; पिनयिन: Lǐ Zhènfān, Lǐ Xiăolóng; 27 नवंबर, 1940 - 20 जुलाई, 1973) अमेरिका में जन्मे, चीनी हांगकांग अभिनेता, मार्शल कलाकार, दार्शनिक, फ़िल्म निर्देशक, पटकथा लेखक, विंग चुन के अभ्यासकर्ता और जीत कुन डो अवधारणा के संस्थापक थे। कई लोग उन्हें 20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली मार्शल कलाकार और एक सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में मानते हैं। वे अभिनेता ब्रैनडन ली और अभिनेत्री शैनन ली के पिता भी थे। उनका छोटा भाई रॉबर्ट एक संगीतकार और द थंडरबर्ड्स नामक हांगकांग के एक लोकप्रिय बीट बैंड का सदस्य था। ली सैन फ्रांसिस्को, कैलिफ़ोर्निया में पैदा हुए थे और किशोर वय के अंत से कुछ पहले तक हांगकांग में पले-बढ़े. उनकी हांगकांग और हॉलीवुड निर्मित फ़िल्मों ने, परंपरागत हांगकांग मार्शल आर्ट फ़िल्मों को लोकप्रियता और ख्याति के एक नए स्तर पर पहुंचा दिया और पश्चिम में चीनी मार्शल आर्ट के प्रति दिलचस्पी की दूसरी प्रमुख लहर छेड़ दी। उनकी फ़िल्मों की दिशा और लहजे ने मार्शल आर्ट तथा हांगकांग के साथ-साथ बाक़ी दुनिया में मार्शल आर्ट फ़िल्मों को परिवर्तित और प्रभावित किया। वे मुख्य रूप से पांच फ़ीचर फ़िल्मों में अपने अभिनय के लिए जाने जाते हैं, लो वाई की द बिग बॉस (1971) और फ़िस्ट ऑफ़ फ़्यूरी (1972); ब्रूस ली द्वारा निर्देशित और लिखित वे ऑफ़ द ड्रैगन (1972); वार्नर ब्रदर्स की एंटर द ड्रैगन (1973), रॉबर्ट क्लाउस द्वारा निर्देशित और द गेम ऑफ़ डेथ (1978). ली एक अनुकरणीय व्यक्तित्व बन गए, विशेष रूप से चीनियों में, क्योंकि उन्होंने अपनी फिल्मों में चीनी राष्ट्रीय गौरव और चीनी राष्ट्रवाद का चित्रण किया। वे मुख्यतः चीनी मार्शल आर्ट, विशेषकर विंग चुन, का अभ्यास करते थे (लोकप्रिय पाश्चात्यीकृत शब्दावली में "कुंग फू, ") .

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बृज नारायण चकबस्त

ब्रजनारायण चकबस्त (1882–1926) उर्दू कवि थे। वे प्रसिद्ध तथा सम्मानित कश्मीरी परिवार के थे। यद्यपि इनके पूर्वज लखनऊ के निवासी थे तथापि इनका जन्म फैजाबाद में सन्‌ 1882 ई. में हुआ था। इनके पिता पं॰ उदित नारायण जी इनकी अल्पावस्था ही में गत हो गए। इनकी माता तथा बड़े भाई महाराजनारायण ने इन्हें अच्छी शिक्षा दिलाई, जिससे ये सन्‌ 1907 ई. में वकालत परीक्षा में उत्तीर्ण होकर सफल वकील हुए। ये समाजसुधारक थे और सेवाकार्यो में सदा संनद्ध रहा करते थे। उर्दू कविता भी करने लगे थे और शीघ्र ही इसमें ऐसी योग्यता प्राप्त कर ली कि उर्दू के कवियों की प्रथम पंक्ति में इन्हें स्थान मिल गया। एक मुकदमे से रायबरेली से लौटते समय 12 फ़रवरी सन्‌ 1926 ई. को स्टेशन पर ही फालिज का ऐसा आक्रमण हुआ कि कुछ ही घंटों में इनकी मृत्यु हो गई। इनकी मृत्यु से उर्दू भाषा तथा कविता को विशेष क्षति पहुँची। चकबस्त लखनऊ के व्यवहार आदि के अच्छे आदर्श थे। इनके स्वभाव में ऐसी विनम्रता, मिलनसारी, सज्जनता तथा सुव्यवहारशीलता थी कि ये सर्वजन प्रिय हो गए थे। धार्मिक कट्टरता इनमें नाम को भी नहीं थी। इन्होंने पूर्ववर्ती कवियों की उर्दू कविताएँ बहुत पढ़ी थी और इनपर अनीस, आतिश तथा गालिब का प्रभाव अच्छा पड़ा था। उर्दू में प्राय: कविगण गजलों से ही कविता करना आरंभ करते हैं परंतु इन्होंने नज्म द्वारा आपनी कविता आरंभ की और फिर गज़लें भी ऐसी लिखीं जो उर्दू काव्यक्षेत्र में अपना जोड़ नहीं रखती। इनकी कविता में बौद्धिक कौशल अधिक है अर्थात्‌ केवल सुनकर आनंद लेने योग्य नहीं है प्रत्युत्‌ पढ़कर मनन करने योग्य है। इन्होंने अपने समय के नेताओं के जो मर्सिए लिखे हैं उन्हें पढ़ने से पाठकों के हृदय में देशभक्ति जाग्रत होती है। दृश्यवर्णन भी इनका उच्च कोटि का हुआ है और इसके लिये भाषा भी साफ सुथरी रखी है। इनकी वर्णनशैली में लखनऊ की रंगीनी तथा दिल्ली की सादगी और प्रभावोत्पादकता का सुंदर मेल है। उपदेश तथा ज्ञान की बातें भी ऐसे अच्छे ढंग से कहीं गई हैं कि सुननेवाले ऊबते नहीं। पद्य के सिवा गद्य भी इन्होंने बहुत लिखा है, जो मुजामीने चकबस्त में संगृहीत हैं। इनमें आलोचनात्मक तथा राष्ट्रोन्नति संबंधी लेख हैं जो ध्यानपूर्वक पढ़ने योग्य है। गंभीर, विद्वत्तापूर्ण्‌ तथा विशिष्ट गद्य लिखने का इन्होंने नया मार्ग निकाला और देश की भिन्न भिन्न जातियों में तथा व्यवहार का संबंध दृढ़ किया। सुबहे वतन में इनकी कविताओं का संग्रह है। इन्होंने कमला नामक एक नाटक लिखा है। .

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बेन जॉन्सन

बेंजामिन जॉन्सन (बेन जॉन्सन; १५७२ - १६३७) अंग्रेजी के प्रसिद्ध नाटककार, कवि तथा समीक्षक थे। वे अपने काल के अत्यंत प्रतिष्ठित एवं प्रतिनिधि साहित्यकार थे। .

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बेवाच

बेवाच (Baywatch) एक अमेरिकी एक्शन ड्रामा शृंखला है जो लॉस एंजिलिस काउंटी के जीवनरक्षकों पर आधारित है जो लॉस एंजिलिस काउंटी, कैलिफोर्निया के समुद्री तट पर कार्य करते हैं। इसमें डेविड हैसलहोफ मुख्य भूमिका में है। यह कार्यक्रम का प्रसारण १९८९ से १९९९ के बिच किया गया। १९९९-२००१ के बिच इसका नाम बदल कर बेवाच हवाई कर दिया गया व पात्रों में भी भारी बदलाव किए गए। .

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बेगम क़ुदसिया जैदी

बेगम क़ुदसिया ज़ैदी (२३ दिसम्बर १९१४ - मृत्यु १९६०) स्वतंत्र भारत में पहली पेशेवर थियेटर कम्पनी आरम्भ करने वाली स्वतंत्र विचारों वाली महिला थीं। उन्होने १९५७ में हिन्दुस्तान थियेटर की स्थापना की और अनेक संस्कृत नाटकों तथा जर्मन नाटकों का हिन्दुस्तानी भाषा में उअनुवाद उपलब्ध कराया। .

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बेइंतहा

बेइंतहा एक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक है जो 30 दिसम्बर 2013 से प्रसारित हुआ था। यह कलर्स टीवी पर प्रसारित हुआ था। यह मुस्लिम समाज की पृष्ठभूमि पर बनाया गया धारावाहिक है। .

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बो मॅरचोफ़

विलियम बो मॅरचोफ़ (William Beau Mirchoff) (जन्म: जनवरी 13, 1989) अमेरिकी में जन्में कनाडाई अभिनेता हैं। यह एबीसी ड्रामा-कॉमेडी डैस्पेरेट हाउसवाइफ़स् के छठे सत्र (2009–2010) में निभाई गई अपनी डैनी बॉलन व एमटीवी के ड्रामा-रोमांटिक कॉमेडी ऑकवर्ड की अपनी मैटी मॅककिबेन की भूमिकाओं के लिए प्रसिद्ध हैं। .

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बोधिसत्व (नाटक)

बोधिसत्त्व (नाटक) प्रसिद्ध इतिहासकार डी डी कौशाम्बी द्वारा रचित एक मराठी नाटक है। यह ग्रन्थ प्रथमतया 1945 में प्रकाशित हुआ था। इसकी प्रस्तावना दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर ने लिखी थी। इस नाटक में चार अंक हैं। .

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भारत दुर्दशा

भारत दुर्दशा नाटक की रचना 1875 इ. में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा की गई थी। इसमें भारतेन्दु ने प्रतीकों के माध्यम से भारत की तत्कालीन स्थिती का चित्रण किया है। वे भारतवासियों से भारत की दुर्दशा पर रोने और फिर इस दुर्दशा का अंत करने का प्रयास करने का आह्वान करते हैं। वे ब्रिटिश राज और आपसी कलह को भारत दुर्दशा का मुख्य कारण मानते हैं। तत्पश्चात वे कुरीतियाँ, रोग, आलस्य, मदिरा, अंधकार, धर्म, संतोष, अपव्यय, फैशन, सिफारिश, लोभ, भय, स्वार्थपरता, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, अकाल, बाढ़ आदि को भी भारत दुर्दशा का कारण मानते हैं। लेकिन सबसे बड़ा कारण अंग्रेजों की भारत को लूटने की नीति को मानते हैं। .

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भारतमाता

'''भारतमाता की कांस्य मूर्ति''' भारत को मातृदेवी के रूप में चित्रित करके भारतमाता या 'भारतम्बा' कहा जाता है। भारतमाता को प्राय: केसरिया या नारंगी रंग की साड़ी पहने, हाथ में भगवा ध्वज लिये हुए चित्रित किया जाता है तथा साथ में सिंह होता है। भारत में भारतमाता के बहुत से मन्दिर हैं। काशी का भारतमाता मन्दिर अत्यन्त प्रसिद्ध है जिसका उद्घाटन सन् १९३६ में स्वयं महात्मा गांधी ने किया था। हरिद्वार का भारतमाता मन्दिर भी बहुत प्रसिद्ध है। .

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भारतेन्दु युग

जिस समय खड़ी बोली गद्य अपने प्रारिम्भक रूप में थी, उस समय हिन्दी के सौभाग्य से भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने साहित्य के क्षेत्र में प्रवेश किया। उन्होंने राजा शिवप्रसाद तथा राजा लक्ष्मण सिंह की आपस में विरोधी शैलियों में समन्वय स्थापित किया और मध्यम मार्ग अपनाया। इस काल में हिन्दी के प्रचार में जिन पत्र-पत्रिकाओं ने विशेष योग दिया, उनमें उदन्त मार्तण्ड, कवि वचन सुधा, हरिश्चन्द्र मैगजीन अग्रणी हैं। इस समय हिन्दी गद्य की सर्वांगीण प्रगति हुई और उसमें उपन्यास, कहानी, नाटक, निबन्ध, आलोचना, जीवनी आदि विधाओं में अनूदित तथा मौलिक रचनाएं लिखी गयीं। .

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भारतेन्दु हरिश्चंद्र

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (९ सितंबर १८५०-७ जनवरी १८८५) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी। उनका कार्यकाल युग की सन्धि पर खड़ा है। उन्होंने रीतिकाल की विकृत सामन्ती संस्कृति की पोषक वृत्तियों को छोड़कर स्वस्थ्य परम्परा की भूमि अपनाई और नवीनता के बीज बोए। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में प्रसिद्ध भारतेन्दु जी ने देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण का चित्रण को ही अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग किया। भारतेन्दु बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हिंदी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा। हिंदी में नाटकों का प्रारंभ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। भारतेन्दु के नाटक लिखने की शुरुआत बंगला के विद्यासुंदर (१८६७) नाटक के अनुवाद से होती है। यद्यपि नाटक उनके पहले भी लिखे जाते रहे किंतु नियमित रूप से खड़ीबोली में अनेक नाटक लिखकर भारतेन्दु ने ही हिंदी नाटक की नींव को सुदृढ़ बनाया। उन्होंने 'हरिश्चंद्र पत्रिका', 'कविवचन सुधा' और 'बाल विबोधिनी' पत्रिकाओं का संपादन भी किया। वे एक उत्कृष्ट कवि, सशक्त व्यंग्यकार, सफल नाटककार, जागरूक पत्रकार तथा ओजस्वी गद्यकार थे। इसके अलावा वे लेखक, कवि, संपादक, निबंधकार, एवं कुशल वक्ता भी थे।। वेबदुनिया। स्मृति जोशी भारतेन्दु जी ने मात्र ३४ वर्ष की अल्पायु में ही विशाल साहित्य की रचना की। पैंतीस वर्ष की आयु (सन् १८८५) में उन्होंने मात्रा और गुणवत्ता की दृष्टि से इतना लिखा, इतनी दिशाओं में काम किया कि उनका समूचा रचनाकर्म पथदर्शक बन गया। .

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भारतीदासन

भारतीदासन तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक पिचिरान्दयार के लिये उन्हें सन् 1969 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित(मरणोपरांत) किया गया। .

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भारतीय नैयायिक

न्याय दर्शन के विद्वान नैयायिक कहलाते हैं। ब्राह्मण न्याय (वैदिक न्याय), जैन न्याय और बौद्ध न्याय के अत्यंत सुप्रसिद्ध नैयायिक विद्वानों में निम्नलिखित हैं: .

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भारतीय महाकाव्य

भारत में संस्कृत तथा अन्य भाषाओं में अनेक महाकाव्यों की रचना हुई है। भारत के महाकाव्यों में वाल्मीकि रामायण, व्यास द्वैपायन रचित महाभारत, तुलसीदासरचित रामचरितमानस, आदि ग्रन्थ परमुख हैं। .

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भारतीय रंगमंच

'कुडियट्टम' में सुग्रीव की भूमिका में एक कलाकार भारत में रंगमंच का इतिहास बहुत पुराना है। ऐसा समझा जाता है कि नाट्यकला का विकास सर्वप्रथम भारत में ही हुआ। ऋग्वेद के कतिपय सूत्रों में यम और यमी, पुरुरवा और उर्वशी आदि के कुछ संवाद हैं। इन संवादों में लोग नाटक के विकास का चिह्न पाते हैं। अनुमान किया जाता है कि इन्हीं संवादों से प्रेरणा ग्रहण कर लागों ने नाटक की रचना की और नाट्यकला का विकास हुआ। यथासमय भरतमुनि ने उसे शास्त्रीय रूप दिया। .

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भारतीय संगीत का इतिहास

पाँच गन्धर्व (चौथी-पाँचवीं शताब्दी, भारत के उत्तर-पश्चिम भाग से प्राप्त) प्रगैतिहासिक काल से ही भारत में संगीत कीसमृद्ध परम्परा रही है। गिने-चुने देशों में ही संगीत की इतनी पुरानी एवं इतनी समृद्ध परम्परा पायी जाती है। माना जाता है कि संगीत का प्रारम्भ सिंधु घाटी की सभ्यता के काल में हुआ हालांकि इस दावे के एकमात्र साक्ष्य हैं उस समय की एक नृत्य बाला की मुद्रा में कांस्य मूर्ति और नृत्य, नाटक और संगीत के देवता रूद्र अथवा शिव की पूजा का प्रचलन। सिंधु घाटी की सभ्यता के पतन के पश्चात् वैदिक संगीत की अवस्था का प्रारम्भ हुआ जिसमें संगीत की शैली में भजनों और मंत्रों के उच्चारण से ईश्वर की पूजा और अर्चना की जाती थी। इसके अतिरिक्त दो भारतीय महाकाव्यों - रामायण और महाभारत की रचना में संगीत का मुख्य प्रभाव रहा। भारत में सांस्कृतिक काल से लेकर आधुनिक युग तक आते-आते संगीत की शैली और पद्धति में जबरदस्त परिवर्तन हुआ है। भारतीय संगीत के इतिहास के महान संगीतकारों जैसे कि स्वामी हरिदास, तानसेन, अमीर खुसरो आदि ने भारतीय संगीत की उन्नति में बहुत योगदान किया है जिसकी कीर्ति को पंडित रवि शंकर, भीमसेन गुरूराज जोशी, पंडित जसराज, प्रभा अत्रे, सुल्तान खान आदि जैसे संगीत प्रेमियों ने आज के युग में भी कायम रखा हुआ है। भारतीय संगीत में यह माना गया है कि संगीत के आदि प्रेरक शिव और सरस्वती है। इसका तात्पर्य यही जान पड़ता है कि मानव इतनी उच्च कला को बिना किसी दैवी प्रेरणा के, केवल अपने बल पर, विकसित नहीं कर सकता। .

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भास

भास संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध नाटककार थे जिनके जीवनकाल के बारे में अधिक पता नहीं है। स्वप्नवासवदत्ता उनके द्वारा लिखित सबसे चर्चित नाटक है जिसमें एक राजा के अपने रानी के प्रति अविरहनीय प्रेम और पुनर्मिलन की कहानी है। कालिदास जो गुप्तकालीन समझे जाते हैं, ने भास का नाम अपने नाटक में लिया है, जिससे लगता है कि वो गुप्तकाल से पहले रहे होंगे पर इससे भी उनके जीवनकाल का अधिक ठोस प्रमाण नहीं मिलता। आज कई नाटकों में उनका नाम लेखक के रूप में उल्लिखित है पर १९१२ में त्रिवेंद्रम में गणपति शास्त्री ने नाटकों की लेखन शैली में समानता देखकर उन्हें भास-लिखित बताया। इससे पहले भास का नाम संस्कृत नाटककार के रूप में विस्मृत हो गया था। .

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भांड

भांड (उर्दू:, पंजाबी: ਭਾਂਡ, अंग्रेज़ी: Bhand) उत्तर भारत, पाकिस्तान, नेपाल और बंगलादेश के पारम्परिक समाजों में लोक-मनोरंजन करने वाले लोगों को कहा जाता है जो समय के साथ एक भिन्न जाति बन चुकी है। भांडों द्वारा किये प्रदर्शन को कभी-कभी स्वांग कहा जाता है।, Manohar Laxman Varadpande, Abhinav Publications, 1992, ISBN 978-81-7017-278-9,...

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भांड पाथेर

भांड पाथेर कश्मीर की लोक कला है। भांड पाथेर सदियों से कश्मीर के लोगों का मनोरंजन करती आ रही है। जब प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का चलन नहीं था तो उस समय कश्मीरी समाज में सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक संदेश प्रसारित करने का अपना अनोखा तरीका था। व्यंग्यात्मक लहजे में पेश की जाने वाली कश्मीर की लोक कला 'बांध पाथेर' राजनीतिक प्रतिरोध और ज्वलंत मुद्दों को अपने अनोखे अंदाज में उठाती थी। लोक कला के इस माध्यम में घाटी के संघर्ष, भ्रष्टाचार और दूसरी सामाजिक बुराइयों का चित्रण किया जाता है। इसके साथ ही साथ ये समाज की कड़वी सच्चाइयों और शिकायतों को भी सरकार और लोगों के सामने लाती है। भांड पाथेर के नाटकों में अधिकांशतः विचारोत्तेजक वेश-भूषा, संवादों, भाव-भंगिमाओं और भावनाओं का प्रयोग किया जाता है। ये नाटक घंटों लोगों का ध्यान बांधे रखते हैं। लोकप्रियता भांड पाथेर में आमतौर पर कथ्य का अहसास कराने वाले पोशाकों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे लोगों का घंटों ध्यान बंधा रहता है। भांड पाथेर हिंदू शासकों के समय में हिंदू मंदिरों में खेला जाता था। कल्हण अपनी रचना 'राजतरंगिणी' में उस समय में इसकी लोकप्रियता का वर्णन करते हैं। .

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भिखारी ठाकुर

भोजपुरी के अमर कलाकार '''भिखारी ठाकुर''' भिखारी ठाकुर (१८ दिसम्बर १८८७ - १० जुलाई सन १९७१) भोजपुरी के समर्थ लोक कलाकार, रंगकर्मी लोक जागरण के सन्देश वाहक, लोक गीत तथा भजन कीर्तन के अनन्य साधक थे। वे बहु आयामी प्रतिभा के व्यक्ति थे। वे भोजपुरी गीतों एवं नाटकों की रचना एवं अपने सामाजिक कार्यों के लिये प्रसिद्ध हैं। वे एक महान लोक कलाकार थे जिन्हें 'भोजपुरी का शेक्शपीयर' कहा जाता है। वे एक ही साथ कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे। भिखारी ठाकुर की मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने भोजपुरी को ही अपने काव्य और नाटक की भाषा बनाया। .

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भवभूति

भवभूति, संस्कृत के महान कवि एवं सर्वश्रेष्ठ नाटककार थे। उनके नाटक, कालिदास के नाटकों के समतुल्य माने जाते हैं। भवभूति ने अपने संबंध में महावीरचरित्‌ की प्रस्तावना में लिखा है। ये विदर्भ देश के 'पद्मपुर' नामक स्थान के निवासी श्री भट्टगोपाल के पुत्र थे। इनके पिता का नाम नीलकंठ और माता का नाम जतुकर्णी था। इन्होंने अपना उल्लेख 'भट्टश्रीकंठ पछलांछनी भवभूतिर्नाम' से किया है। इनके गुरु का नाम 'ज्ञाननिधि' था। मालतीमाधव की पुरातन प्रति में प्राप्त 'भट्ट श्री कुमारिल शिष्येण विरचित मिंद प्रकरणम्‌' तथा 'भट्ट श्री कुमारिल प्रसादात्प्राप्त वाग्वैभवस्य उम्बेकाचार्यस्येयं कृति' इस उल्लेख से ज्ञात होता है कि श्रीकंठ के गुरु कुमारिल थे जिनका 'ज्ञाननिधि' भी नाम था और भवभूति ही मीमांसक उम्बेकाचार्य थे जिनका उल्लेख दर्शन ग्रंथों में प्राप्त होता है और इन्होंने कुमारिल के श्लोकवार्तिक की टीका भी की थी। संस्कृत साहित्य में महान्‌ दार्शनिक और नाटककार होने के नाते ये अद्वितीय हैं। पांडित्य और विदग्धता का यह अनुपम योग संस्कृत साहित्य में दुर्लभ है। शंकरदिग्विजय से ज्ञात होता है कि उम्बेक, मंडन सुरेश्वर, एक ही व्यक्ति के नाम थे। भवभूति का एक नाम 'उम्बेक' प्राप्त होता है अत: नाटककार भवभूति, मीमांसक उम्बेक और अद्वैतमत में दीक्षित सुरेश्वराचार्य एक ही हैं, ऐसा कुछ विद्वानों का मत है। राजतरंगिणी के उल्लेख से इनका समय एक प्रकार से निश्चित सा है। ये कान्यकुब्ज के नरेश यशोवर्मन के सभापंडित थे, जिन्हें ललितादित्य ने पराजित किया था। 'गउडवहो' के निर्माता वाक्यपतिराज भी उसी दरबार में थे अत: इनका समय आठवीं शताब्दी का पूर्वार्ध सिद्ध होता है। .

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भुवनेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव

भुवनेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव (१९११ - १९५७) हिन्दी साहित्यकार थे। .

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भोगला सोरेन

भोगला सोरेन संताली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक राही रांवाक् काना के लिये उन्हें सन् 2010 में साहित्य अकादमीपुरस्कार से सम्मानित किया गया। इनकी प्रमुख कृतियां है- राही रांवाक काना (नाटक), सूडा साकोम (नाटक), राही चेतान ते (नाटक), खोबोर कागोज (नाटक), सोसनो: (नाटक), बिटलाहा (नाटक), मान दिसोम पोरान परायनी (नाटक), उपाल (उपन्यास), चापोय (उपन्यास) एवं संताली भाषा लिपि और साहित्य का विकास (लेख)। .

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मचामा

मचामा कश्मीरी भाषा के विख्यात साहित्यकार पुष्कर भान द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1976 में कश्मीरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मणिपुरी साहित्य

बांग्ला लिपि में लिखी जाने वाली मणिपुरी को विष्णुप्रिया मणिपुरी भी कहा जाता है। मणिपुरी भाषा का साहित्य भी समृद्ध है। १९७३ से आज तक ३९ मणिपुरी साहित्यकारों को साहित्य अकादमी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। मणिपुरी साहित्य में वैष्णव भक्ति तथा मणिपुर की कला / संस्कृति झलकती है। कहानी, उपन्यास, काव्य, प्रवास वर्णन, नाटक आदि सभी विधाओं में मणिपुरी साहित्य ने अपनी पहचान बनाई है। मखोनमनी मोंड्साबा, जोड़ छी सनसम, क्षेत्री वीर, एम्नव किशोर सिंह आदि मणिपुरी के प्रसिद्ध लेखक हैं। मणिपुरी साहित्य की यात्रा १९२५ में फाल्गुनी सिंह द्वारा मीताई तथा बिष्णुप्रिया मणिपुरी भाषा की द्बिभाषिक सामयिकी ”जागरन” के प्रकाशन के रूप में आरम्भ हुआ। इसी समय और भी कई द्बिभाषिक पत्रिकाएँ प्रकाशित हुईं। इनमें ”मेखली”(१९३३), ”मणिपुरी” (१९३८), क्षत्रियज्योति (१९४४) इत्यदि अन्यतम हैं। .

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मनोरंजन

मनोरंजन एक ऐसी क्रिया है जिसमें सम्मिलित होने वाले को आनन्द आता है एवं मन श्रान्त होता हैं। मनोरंजन सीधे भाग लेकर हो सकता है या कुछ लोगों को कुछ करते हुए देखने से हो सकता है। .

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मनोरंजन दास

मनोरंजन दास ओड़िया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक अरण्य फ़सल के लिये उन्हें सन् 1971 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ममता कालिया

ममता कालिया (02 नवम्बर,1940) एक प्रमुख भारतीय लेखिका हैं। वे कहानी, नाटक, उपन्यास, निबंध, कविता और पत्रकारिता अर्थात साहित्य की लगभग सभी विधाओं में हस्तक्षेप रखती हैं। हिन्दी कहानी के परिदृश्य पर उनकी उपस्थिति सातवें दशक से निरन्तर बनी हुई है। लगभग आधी सदी के काल खण्ड में उन्होंने 200 से अधिक कहानियों की रचना की है। वर्तमान में वे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की त्रैमासिक पत्रिका "हिन्दी" की संपादिका हैं। .

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महाभारत के विभिन्न संस्करण

महाभारत सर्वप्रथम महामुनि व्यास की रचना के रूप में प्रसिद्ध है। महामुनि व्यास से लेकर अब तक अनेक लेखकों द्वारा अनेक रूपों में महाभारत की रचना होती रही है। यह विभिन्न भाषाओं तथा साहित्य के विभिन्न रूपों काव्य, महाकाव्य, नाटक, चम्पू आदि के रूप में रचित होते रहा है। .

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महाराज कृष्ण रैना

महाराज कृष्ण रैना, या आम प्रचलित एम॰ के॰ रैना भारतीय रंगमंच के प्रसिद्ध निर्देशक, अभिनेता एवं जाने-माने चलचित्र कलाकार हैं। १९७० में उन्होंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से स्नातक किया और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में सम्मानित किए गए। इसके बाद १९७२ से वे स्वतंत्र रंगकर्मी के रूप में सक्रीय हैं। उन्होंने फ़िल्मों सहित भारत की विभिन्न भाषाओं के नाटकों और पारंपरिक नाट्य रूपों पर काम किया है। भारतीय संगीत नाट्य अकादमी ने १९९५ ई. में उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशन का पुरस्कार प्रदान किया। श्रेणी:भारतीय रंगकर्मी श्रेणी:रंगमंच श्रेणी:संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार श्रेणी:रंग निर्देशक श्रेणी:1948 में जन्मे लोग श्रेणी:हिंदी रंगकर्मी श्रेणी:हिन्दी अभिनेता श्रेणी:भारतीय टेलिविज़न अभिनेता.

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महारक्षक आर्यन

महारक्षक आर्यन यह ज़ी टीवी पर प्रसारित होने वाला एक धारावाहिक है। यह एक नवम्बर से ज़ी टीवी पर शनिवार व रविवार को ७ बजे दिखाया जाएगा। .

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महाकाव्य (एपिक)

वृहद् आकार की तथा किसी महान कार्य का वर्णन करने वाली काव्यरचना को महाकाव्य (epic) कहते हैं। .

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महेश दत्तानी

महेश दत्तानी अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक फ़ाइनल सॉल्यूशन्स एंड अदर प्लेज़ के लिये उन्हें सन् 1998 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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माधव शुक्ल

माधव शुक्ल (1881 - 1943) हिन्दी साहित्यकार थे। वे प्रयाग के निवासी और मालवीय ब्राह्मण थे। इनका कंठ बड़ा मधुर था और ये अभिनय कला में पूर्ण दक्ष थे। ये सफल नाटककार होने के साथ ही साथ अच्छे अभिनेता भी थे। इनकी राष्ट्रीय कविताओं के दो संग्रह 'भारत गीतंजलि' और 'राष्ट्रीय गान' जब प्रकाशित हुए तो हिंदी पाठकवर्ग ने उनका सोत्साह स्वागत किया। बहुत इधर आकर भारत और चीन में युद्ध छिड़ने पर इनकी राष्ट्रीय कविताओं का संकलन 'उठो हिंद संतान' नाम से प्रकाशित हुआ था। कविताओं की विशेषता यह है कि आज की स्थिति में भी वे उतनी ही उपयोगी एवं उत्साहवर्धक हैं जितनी अपनी रचना के समय थीं। सन् १८९८ ई० में इन्होंने 'सीय स्वयंबर', सन् १९१६ ई० में 'महाभारत पूर्वाध' और 'भामाशाह की राजभक्ति' नामक नाटकों की रचना की। इनमें केवल एक ही नाटक 'महाभारत पूवार्ध' प्रकाशित हुआ। ये सभी नाटक इनके समय में ही सफलता के साथ खेले गए थे और इन्होंने अभिनय में भाग भी लिया था। प्रयाग के अतिरिक्त ये नाटक कलकत्ता में भी खेले गए थे और उससे शुक्ल जी को काफी ख्याति मिली थी। इन्होंने जौनपुर और लखनऊ में नाटक मंडलियाँ स्थापित की थीं अैर कलकत्ते में हिंदी-नाट्य-परिषद् की प्रतिष्ठा की थी। इनके मन में देश की पराधीनता से मुक्ति की और सामाजिक सुधार की प्रबल आकांक्षा थी। तत्कालीन राष्ट्रीय आंदोलनों में सक्रिय भाग लेने के कारण इन्हें ब्रिटिश शासन का कोपभाजन बनकर कई बार करागार का दंड भी भुगतना पड़ा था। नाटक के प्रति उस समय हिंदी भाषी जनता की सुप्त रुचि को जगाने का बहुत बड़ा श्रेय शुक्ल जी को है। श्रेणी:हिन्दी नाटककार.

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मानविकी

सिलानिओं द्वारा दार्शनिक प्लेटो का चित्र मानविकी वे शैक्षणिक विषय हैं जिनमें प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों के मुख्यतः अनुभवजन्य दृष्टिकोणों के विपरीत, मुख्य रूप से विश्लेषणात्मक, आलोचनात्मक या काल्पनिक विधियों का इस्तेमाल कर मानवीय स्थिति का अध्ययन किया जाता है। प्राचीन और आधुनिक भाषाएं, साहित्य, कानून, इतिहास, दर्शन, धर्म और दृश्य एवं अभिनय कला (संगीत सहित) मानविकी संबंधी विषयों के उदाहरण हैं। मानविकी में कभी-कभी शामिल किये जाने वाले अतिरिक्त विषय हैं प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी), मानव-शास्त्र (एन्थ्रोपोलॉजी), क्षेत्र अध्ययन (एरिया स्टडीज), संचार अध्ययन (कम्युनिकेशन स्टडीज), सांस्कृतिक अध्ययन (कल्चरल स्टडीज) और भाषा विज्ञान (लिंग्विस्टिक्स), हालांकि इन्हें अक्सर सामाजिक विज्ञान (सोशल साइंस) के रूप में माना जाता है। मानविकी पर काम कर रहे विद्वानों का उल्लेख कभी-कभी "मानवतावादी (ह्यूमनिस्ट)" के रूप में भी किया जाता है। हालांकि यह शब्द मानवतावाद की दार्शनिक स्थिति का भी वर्णन करता है जिसे मानविकी के कुछ "मानवतावाद विरोधी" विद्वान अस्वीकार करते हैं। .

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माला मुदम

माला मुदम संताली भाषा के विख्यात साहित्यकार जमादार किस्‍कू द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 2014 में संताली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मालविकाग्निमित्रम्

मालविकाग्निमित्रम् कालिदास द्वारा रचित संस्कृत नाटक है। यह पाँच अंकों का नाटक है जिसमे मालवदेश की राजकुमारी मालविका तथा विदिशा के राजा अग्निमित्र का प्रेम और उनके विवाह का वर्णन है। वस्तुत: यह नाटक राजमहलों में चलने वाले प्रणय षड़्यन्त्रों का उन्मूलक है तथा इसमें नाट्यक्रिया का समग्र सूत्र विदूषक के हाथों में समर्पित है। यह शृंगार रस प्रधान नाटक है और कालिदास की प्रथम नाट्य कृति माना जाता है। ऐसा इसलिये माना जाता है क्योंकि इसमें वह लालित्य, माधुर्य एवं भावगाम्भीर्य दृष्टिगोचर नहीं होता जो विक्रमोर्वशीय अथवा अभिज्ञानशाकुन्तलम् में है। कालिदास ने प्रारम्भ में ही सूत्रधार से कहलवाया है - अर्थात पुरानी होने से ही न तो सभी वस्तुएँ अच्छी होती हैं और न नयी होने से बुरी तथा हेय। विवेकशील व्यक्ति अपनी बुद्धि से परीक्षा करके श्रेष्ठकर वस्तु को अंगीकार कर लेते हैं और मूर्ख लोग दूसरों द्वारा बताने पर ग्राह्य अथवा अग्राह्य का निर्णय करते हैं। वस्तुत: यह नाटक नाट्य-साहित्य के वैभवशाली अध्याय का प्रथम पृष्ठ है। .

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मित्तर पिआर

मित्तर पिआर पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार संतसिंह सेखों द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1972 में पंजाबी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मिसिस कौशिक की पाँच बहुएँ

मिसिस कौशिक की पाँच बहुएँ एक भारतीय टेलीविजन श्रृंखला हैं कि ज़ी टीवी पर अकड़ है। शो ૨૦ जून ૨૦૧૧ को प्रीमियर हुआ। यह मूलतः सोम - गुरु से प्रसारित किया, लेकिन अब ३ अक्टूबर ૨૦૧૧ के रूप में सोमवार - शुक्रवार ऐर है। रंग से कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद हिट से शो उत्तराँ और बालाजी टेलीफिल्म्स, लोकप्रिय शो सोनी टीवी पर क्या हुआ तेरा वादा, इस शो अच्छा २.५-२.६ की औसत टीआरपी लाभ और यह रहा यह कमाता से तीसरे ज़ी टीवी पर सबसे बेहतरीन शो इसकी।ه .

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मुद्राराक्षस

मुद्राराक्षस संस्कृत का ऐतिहासिक नाटक है जिसके रचयिता विशाखदत्त हैं। इसकी रचना चौथी शताब्दी में हुई थी। इसमें चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य संबंधी ख्यात वृत्त के आधार पर चाणक्य की राजनीतिक सफलताओं का अपूर्व विश्लेषण मिलता है। इस कृति की रचना पूर्ववर्ती संस्कृत-नाट्य परंपरा से सर्वथा भिन्न रूप में हुई है- लेखक ने भावुकता, कल्पना आदि के स्थान पर जीवन-संघर्ष के यथार्थ अंकन पर बल दिया है। इस महत्वपूर्ण नाटक को हिंदी में सर्वप्रथम अनूदित करने का श्रेय भारतेंदु हरिश्चंद्र को है। यों उनके बाद कुछ अन्य लेखकों ने भी इस कृति का अनुवाद किया, किंतु जो ख्याति भारतेंदु हरिश्चंद्र के अनुवाद को प्राप्त हुई, वह किसी अन्य को नहीं मिल सकी। इसमें इतिहास और राजनीति का सुन्दर समन्वय प्रस्तुत किया गया है। इसमें नन्दवंश के नाश, चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण, राक्षस के सक्रिय विरोध, चाणक्य की राजनीति विषयक सजगता और अन्ततः राक्षस द्वारा चन्द्रगुप्त के प्रभुत्व की स्वीकृति का उल्लेख हुआ है। इसमें साहित्य और राजनीति के तत्त्वों का मणिकांचन योग मिलता है, जिसका कारण सम्भवतः यह है कि विशाखदत्त का जन्म राजकुल में हुआ था। वे सामन्त बटेश्वरदत्त के पौत्र और महाराज पृथु के पुत्र थे। ‘मुद्राराक्षस’ की कुछ प्रतियों के अनुसार वे महाराज भास्करदत्त के पुत्र थे। इस नाटक के रचना-काल के विषय में तीव्र मतभेद हैं, अधिकांश विद्धान इसे चौथी-पाँचवी शती की रचना मानते हैं, किन्तु कुछ ने इसे सातवीं-आठवीं शती की कृति माना है। संस्कृत की भाँति हिन्दी में भी ‘मुद्राराक्षस’ के कथानक को लोकप्रियता प्राप्त हुई है, जिसका श्रेय भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को है। .

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मुखपृष्ठ/सुसान जेनिफर लनेर

लेनियर की काव्य शिल्प के बारे में सबसे अधिक बार गौर की गई बात यह थी कि उन्होंने एक कल्पित तरीके से कविता की रचना की और अपने किसी भी काम को संशोधित नहीं किया; स्वांसोंग को प्रकाशक को पहली मसौदा प्रति के रूप में भेजा गया, और न्यूयॉर्क टाइम्स में उन्होंने उद्धृत किया, "'मैं सिर्फ कविताओं को सीधे बाहर लिखति हूं।सबसे पहले मैंने कुछ सुधारने की कोशिश की और मुझे सुधार पसंद नहीं आई, इसलिए मैं इसे और नहीं करती हूं।लॉस एंजिल्स टाइम्स ने "लिस्ट ऑफ वेस्ट में सबसे तेज़ स्क्रॉल" के रूप में उन्हें संदर्भित किया।उनकी पहली कविताएं, और विशेषकर जॉन न्यूटन की कविता की चैम्पियनशिप की तत्काल और प्रफुल्लित प्रशंसा की आलोचना की गई थी, डेविड होलब्रुक, जॉन न्यूटन, ब्लॉब्समी और पोएटिक स्वाद की पुस्तक में।.

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मृच्छकटिकम्

राजा रवि वर्मा द्वारा चित्रित '''वसन्तसेना''' मृच्छकटिकम् (अर्थात्, मिट्टी की गाड़ी) संस्कृत नाट्य साहित्य में सबसे अधिक लोकप्रिय रूपक है। इसमें 10 अंक है। इसके रचनाकार महाराज शूद्रक हैं। नाटक की पृष्टभूमि पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) है। भरत के अनुसार दस रूपों में से यह 'मिश्र प्रकरण' का सर्वोत्तम निदर्शन है। ‘मृच्छकटिकम’ नाटक इसका प्रमाण है कि अंतिम आदमी को साहित्य में जगह देने की परम्परा भारत को विरासत में मिली है जहाँ चोर, गणिका, गरीब ब्राह्मण, दासी, नाई जैसे लोग दुष्ट राजा की सत्ता पलट कर गणराज्य स्थापित कर अंतिम आदमी से नायकत्व को प्राप्त होते हैं। .

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मृदुला गर्ग

मृदुला गर्ग (जन्म:२५ अक्टूबर, १९३८) कोलकाता में जन्मी, हिंदी की सबसे लोकप्रिय लेखिकाओं में से एक हैं। उपन्यास, कहानी संग्रह, नाटक तथा निबंध संग्रह सब मिलाकर उन्होंने २० से अधिक पुस्तकों की रचना की है। १९६० में अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि लेने के बाद उन्होंने ३ साल तक दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन भी किया है। उनके उपन्यासों को अपने कथानक की विविधता और नयेपन के कारण समालोचकों की बड़ी स्वीकृति और सराहना मिली। उनके उपन्यास और कहानियों का अनेक हिंदी भाषाओं तथा जर्मन, चेक, जापानी और अँग्रेजी में अनुवाद हुआ है। वे स्तंभकार रही हैं, पर्यावरण के प्रति सजगता प्रकट करती रही हैं तथा महिलाओं तथा बच्चों के हित में समाज सेवा के काम करती रही हैं। उनका उपन्यास 'चितकोबरा' नारी-पुरुष के संबंधों में शरीर को मन के समांतर खड़ा करने और इस पर एक नारीवाद या पुरुष-प्रधानता विरोधी दृष्टिकोण रखने के लिए काफी चर्चित और विवादास्पद रहा था। उन्होंने इंडिया टुडे के हिन्दी संस्करण में २००३ से २०१० तक 'कटाक्ष' नामक स्तंभ लिखा है जो अपने तीखे व्यंग्य के कारण खूब चर्चा में रहा। उनके आठ उपन्यास- उसके हिस्से की धूप, वंशज, चित्तकोबरा, अनित्य, 'मैं और मैं', कठगुलाब, 'मिलजुल मन' और 'वसु का कुटुम'। ग्यारह कहानी संग्रह- 'कितनी कैदें', 'टुकड़ा टुकड़ा आदमी', 'डैफ़ोडिल जल रहे हैं', 'ग्लेशियर से', 'उर्फ सैम', 'शहर के नाम', 'चर्चित कहानियाँ', समागम, 'मेरे देश की मिट्टी अहा', 'संगति विसंगति', 'जूते का जोड़ गोभी का तोड़', चार नाटक- 'एक और अजनबी', 'जादू का कालीन', 'तीन कैदें' और 'सामदाम दंड भेद', तीन निबंध संग्रह- 'रंग ढंग','चुकते नहीं सवाल' तथा 'कृति और कृतिकार', एक यात्रा संस्मरण- 'कुछ अटके कुछ भटके' तथा दो व्यंग्य संग्रह- 'कर लेंगे सब हज़म' तथा 'खेद नहीं है' प्रकाशित हुए हैं। .

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मैथिली साहित्य

मैथिली मुख्यतः भारत के उत्तर-पूर्व बिहार एवम् नेपाल के तराई क्षेत्र की भाषा है।Yadava, Y. P. (2013).

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मेरी आशिकी तुम से ही

मेरी आशिकी तुम से ही एक भारतीय टेलीविजन कार्यक्रम है इसका प्रसारण कलर्स टीवी पर 19 जून 2014 से 19 फरवरी 2016 तक हुआ। .

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मोतीलाल केमु

मोतीलाल केमु कश्मीरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक नाटक त्रुचे के लिये उन्हें सन् 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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यहाँ मैं घर घर खेली

यहाँ मैं घर घर खेली एक हिन्दुस्तानी टीवी नाटक श्रृंखला कि वर्तमान में ज़ी टीवी पर अकड़ था। .

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यक्षगान

यक्षगान कर्णाटक प्रदेश की एक संप्रदायिक नाटक और नृत्य शैली है। यह आट, बयलाट कि नाम्सेभि जानिजाति है। श्रेणी:शास्त्रीय नृत्य श्रेणी:संस्कृति.

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यूनानी भाषा

यूनानी या ग्रीक (Ελληνικά या Ελληνική γλώσσα), हिन्द-यूरोपीय (भारोपीय) भाषा परिवार की स्वतंत्र शाखा है, जो ग्रीक (यूनानी) लोगों द्वारा बोली जाती है। दक्षिण बाल्कन से निकली इस भाषा का अन्य भारोपीय भाषा की तुलना में सबसे लंबा इतिहास है, जो लेखन इतिहास के 34 शताब्दियों में फैला हुआ है। अपने प्राचीन रूप में यह प्राचीन यूनानी साहित्य और ईसाईयों के बाइबल के न्यू टेस्टामेंट की भाषा है। आधुनिक स्वरूप में यह यूनान और साइप्रस की आधिकारिक भाषा है और करीबन 2 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है। लेखन में यूनानी अक्षरों का उपयोग किया जाता है। यूनानी भाषा के दो ख़ास मतलब हो सकते हैं.

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यूरोपीय नाट्यशालाएँ

यूरोप में नाट्यशाला का इतिहास प्राय: 3,200 ई.पू.

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योहान वुल्फगांग फान गेटे

गेटे योहान वुल्फगांग फान गेटे (Johann Wolfgang von Goethe) (२८ अगस्त १७४९ - २२ मार्च १८३२) जर्मनी के लेखक, दार्शनिक‎ और विचारक थे। उन्होने कविता, नाटक, धर्म, मानवता और विज्ञान जैसे विविध क्षेत्रों में कार्य किया। उनका लिखा नाटक फ़ाउस्ट (Faust) विश्व साहित्य में उच्च स्थान रखता है। गोथे की दूसरी रचनाओं में "सोरॉ ऑफ यंग वर्टर" शामिल है। गोथे जर्मनी के महानतम साहित्यिक हस्तियों में से एक माने जाते हैं, जिन्होंने अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में विमर क्लासिसिज्म (Weimar Classicism) नाम से विख्यात आंदोलन की शुरुआत की। वेमर आंदोलन बोध, संवेदना और रोमांटिज्म का मिलाजुला रूप है। जोहान वुल्फगांग गेटे उन्होने कालिदास के अभिज्ञान शाकुन्तलम् का जर्मन भाषा में अनुवाद किया। गेटे ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् के बारे में कहा था- .

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रब से सोणा इश्‍क

रब से सोणा इश्क एक भारतीय हिन्दी धारावाहिक है, जिसका प्रसारण ज़ी टीवी पर १६ जुलाई २०१२ से शुरू हुआ। जय प्रोडक्शन जय मेहता द्वारा निर्मित किया जा रहा है शो लोकप्रिय और लंबे समय से चल रहे धारावाहिक यहाँ मैं घर घर खेली की जगह। .

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रबिलाल टुडू

रबिलाल टुडू संताली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक पारसी खातिर के लिये उन्हें सन् 2015 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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रस (काव्य शास्त्र)

श्रव्य काव्य के पठन अथवा श्रवण एवं दृश्य काव्य के दर्शन तथा श्रवण में जो अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है, वही काव्य में रस कहलाता है। रस से जिस भाव की अनुभूति होती है वह रस का स्थायी भाव होता है। रस, छंद और अलंकार - काव्य रचना के आवश्यक अवयव हैं। रस का शाब्दिक अर्थ है - निचोड़। काव्य में जो आनन्द आता है वह ही काव्य का रस है। काव्य में आने वाला आनन्द अर्थात् रस लौकिक न होकर अलौकिक होता है। रस काव्य की आत्मा है। संस्कृत में कहा गया है कि "रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्" अर्थात् रसयुक्त वाक्य ही काव्य है। रस अन्त:करण की वह शक्ति है, जिसके कारण इन्द्रियाँ अपना कार्य करती हैं, मन कल्पना करता है, स्वप्न की स्मृति रहती है। रस आनंद रूप है और यही आनंद विशाल का, विराट का अनुभव भी है। यही आनंद अन्य सभी अनुभवों का अतिक्रमण भी है। आदमी इन्द्रियों पर संयम करता है, तो विषयों से अपने आप हट जाता है। परंतु उन विषयों के प्रति लगाव नहीं छूटता। रस का प्रयोग सार तत्त्व के अर्थ में चरक, सुश्रुत में मिलता है। दूसरे अर्थ में, अवयव तत्त्व के रूप में मिलता है। सब कुछ नष्ट हो जाय, व्यर्थ हो जाय पर जो भाव रूप तथा वस्तु रूप में बचा रहे, वही रस है। रस के रूप में जिसकी निष्पत्ति होती है, वह भाव ही है। जब रस बन जाता है, तो भाव नहीं रहता। केवल रस रहता है। उसकी भावता अपना रूपांतर कर लेती है। रस अपूर्व की उत्पत्ति है। नाट्य की प्रस्तुति में सब कुछ पहले से दिया रहता है, ज्ञात रहता है, सुना हुआ या देखा हुआ होता है। इसके बावजूद कुछ नया अनुभव मिलता है। वह अनुभव दूसरे अनुभवों को पीछे छोड़ देता है। अकेले एक शिखर पर पहुँचा देता है। रस का यह अपूर्व रूप अप्रमेय और अनिर्वचनीय है। .

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रसिकलाल सी. पारीख

रसिकलाल सी.

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राधाचरण गोस्‍वामी

राधाचरण गोस्‍वामी (२५ फरवरी १८५९ - १२ दिसम्बर १९२५) हिन्दी के भारतेन्दु मण्डल के साहित्यकार जिन्होने ब्रजभाषा-समर्थक कवि, निबन्धकार, नाटकरकार, पत्रकार, समाजसुधारक, देशप्रेमी आदि भूमिकाओं में भाषा, समाज और देश को अपना महत्वपूर्ण अवदान दिया। आपने अच्छे प्रहसन लिखे हैं। .

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राधाकृष्ण दास

राधाकृष्ण दास (१८६५- २ अप्रैल १९०७) हिन्दी के प्रमुख सेवक तथा साहित्यकार थे। वे भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के फुफेरे भाई थे। शारीरिक कारणों से औपचारिक शिक्षा कम होते हुए भी स्वाध्याय से इन्होने हिन्दी, बंगला, गुजराती, उर्दू, आदि का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। वे प्रसिद्ध सरस्वती पत्रिका के सम्पादक मडल में रहे। वे नागरी प्रचारिणी सभा के प्रथम अध्यक्ष भी थे। इनके पिता का नाम कल्याणदास तथा माता का नाम गंगाबीबी था, जो भारतेंदु हरिश्चंद्र की बूआ थीं। शरीर से प्रकृत्या अस्वस्थ तथा अशक्त होने के कारण इनकी शिक्षा साधारण ही रही पर विद्याध्ययन की ओर रुचि होने से इन्होंने हिंदी, बँगला, उर्दू आदि में अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली। पंद्रह वर्ष की अवस्था में ही 'दुःखिनी बाला' नामक छोटा रूपक लिखा। इसके एक ही वर्ष बाद 'निस्सहाय हिंदू' नामक सामाजिक उपन्यास लिखा। इसी के अनंतर 'स्वर्णजता' आदि पुस्तकों का बँगला से हिंदी में अनुवाद किया। भारतीय इतिहास की ओर रुचि हो जाने से इसी काल में 'आर्यचरितामृत' रूप में बाप्पा रावल की जीवनी तथा 'महारानी पद्मावती' रूपक भी लिखा। समाजसुधार पर भी इन्होंने कई लेख लिखे। यह अत्यन्त कृष्णभक्त थे। 'धर्मालाप' रचना में अनेक धर्मों का वार्तालाप कराकर हरिभक्ति को ही अंत में प्रधानता दी है। इन्होंने तीर्थयात्रा कर अनेक कृष्णलीला-भूमियों का दर्शन किया और उनका जो विवरण लिया है वह बड़ा हृदयग्राही है। काशी नागरीप्रचारिणी सभा, हरिश्चन्द्र विद्यालय आदि अनेक सभा संथाओं के उन्नयन में इन्होंने सहयोग दिया। सरस्वती पत्रिका का प्रकाशनारम्भ इन्हीं के सम्पादकत्व में हुआ और अदालतों में नागरी के प्रचार के लिए भी इन्होंने प्रयत्न किया। सभा के हिन्दी पुस्तकों के खोज विभाग के कार्य का शुभारम्भ इन्हीं के द्वारा हुआ। स्वास्थ्य ठीक न रहने से रोगाक्रान्त होकर यह बहत्तर वर्ष की अवस्था में १ अप्रैल, सन् १९०७ ई. को गोलोक सिधारे। इनकी अन्य रचनाएँ नागरीदास का जीवन चरित, हिंदी भाषा के पत्रों का सामयिक इतिहास, राजस्थान केसरी वा महाराणा प्रताप सिंह नाटक, भारतेन्दु जी की जीवनी, रहिमन विलास आदि हैं। 'दुःखिनी बाला', 'पद्मावती' तथा 'महाराणा प्रताप' नामक उनके नाटक बहुत प्रसिद्ध हुए। १८८९ में लिखित उपन्यास 'निस्सहाय हिन्दू' में हिन्दुओं की निस्सहायता और मुसलमानों की धार्मिक कट्टरता का चित्रण है। भारतेन्दु विरचित अपूर्ण हिन्दी नाटक 'सती प्रताप' को इन्होने इस योग्यता से पूर्ण किया है कि पाठकों को दोनों की शैलियों में कोई अन्तर ही नहीं प्रतीत होता। .

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राधेश्याम कथावाचक

राधेश्याम कथावाचक (1890 - 1963) पारसी रंगमंच शैली के हिन्दी नाटककारों में एक प्रमुख नाम है। उनका जन्म 25 नवम्बर 1890 को उत्तर-प्रदेश राज्य के बरेली शहर में हुआ था। अल्फ्रेड कम्पनी से जुड़कर उन्होंने वीर अभिमन्यु, भक्त प्रहलाद, श्रीकृष्णावतार आदि अनेक नाटक लिखे। परन्तु सामान्य जनता में उनकी ख्याति राम कथा की एक विशिष्ट शैली के कारण फैली। लोक नाट्य शैली को आधार बनाकर खड़ी बोली में उन्होंने रामायण की कथा को 25 खण्डों में पद्यबद्ध किया। इस ग्रन्थ को राधेश्याम रामायण के रूप में जाना जाता है। आगे चलकर उनकी यह रामायण उत्तरप्रदेश में होने वाली रामलीलाओं का आधार ग्रन्थ बनी। 26 अगस्त 1963 को 73 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। 24 नवम्बर 2012 दैनिक ट्रिब्यून, अभिगमन तिथि: 27 दिसम्बर 2013 .

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राम दयाल मुंडा

आरडी मुंडा के नाम से पूरी दुनिया में लोकप्रिय राम दयाल मुंडा (23 अगस्त 1939-30 सितंबर 2011) भारत के एक प्रमुख बौद्धिक और सांस्कृतिक शख्सियत थे। आदिवासी अधिकारों के लिए रांची, पटना, दिल्ली से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों तक उन्होंने आवाज उठायी, दुनिया के आदिवासी समुदायों को संगठित किया और देश व अपने गृहराज्य झारखंड में जमीनी सांस्कृतिक आंदोलनों को नेतृत्व प्रदान किया। 2007 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी का सम्मान मिला, तो 22 मार्च 2010 में राज्यसभा के सांसद बनाए गए और 2010 में ही वे पद्मश्री से सम्मानित हुए। भारत सरकार ने बहुत उपेक्षा के बाद जब उन्हें सम्मान दिया तब तक कैंसर ने उन्हें जकड़ लिया था जिससे उनके सपने अधूरे रह गए। वे रांची विश्वविद्यालय, रांची के कुलपति भी रहे। उनका निधन कैंसर से 30 सितंबर शुक्रवार, 2011 को हुआ। .

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राम लीला

रामलीला का एक दृश्य। रामलीला उत्तरी भारत में परम्परागत रूप से खेला जाने वाला राम के चरित पर आधारित नाटक है। यह प्रायः विजयादशमी के अवसर पर खेला जाता है। .

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रामनरेश त्रिपाठी

रामनरेश त्रिपाठी (4 मार्च, 1889 - 16 जनवरी, 1962) हिन्दी भाषा के 'पूर्व छायावाद युग' के कवि थे। कविता, कहानी, उपन्यास, जीवनी, संस्मरण, बाल साहित्य सभी पर उन्होंने कलम चलाई। अपने 72 वर्ष के जीवन काल में उन्होंने लगभग सौ पुस्तकें लिखीं। ग्राम गीतों का संकलन करने वाले वह हिंदी के प्रथम कवि थे जिसे 'कविता कौमुदी' के नाम से जाना जाता है। इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर, रात-रात भर घरों के पिछवाड़े बैठकर सोहर और विवाह गीतों को सुना और चुना। वह गांधी के जीवन और कार्यो से अत्यंत प्रभावित थे। उनका कहना था कि मेरे साथ गांधी जी का प्रेम 'लरिकाई को प्रेम' है और मेरी पूरी मनोभूमिका को सत्याग्रह युग ने निर्मित किया है। 'बा और बापू' उनके द्वारा लिखा गया हिंदी का पहला एकांकी नाटक है। ‘स्वप्न’ पर इन्हें हिंदुस्तान अकादमी का पुरस्कार मिला। .

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राही रांवाक् काना

राही रांवाक् काना संताली भाषा के विख्यात साहित्यकार भोगला सोरेन द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 2010 में संताली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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राजशेखर

राजशेखर (विक्रमाब्द 930- 977 तक) काव्यशास्त्र के पण्डित थे। वे गुर्जरवंशीय नरेश महेन्द्रपाल प्रथम एवं उनके बेटे महिपाल के गुरू एवं मंत्री थे। उनके पूर्वज भी प्रख्यात पण्डित एवं साहित्यमनीषी रहे थे। काव्यमीमांसा उनकी प्रसिद्ध रचना है। समूचे संस्कृत साहित्य में कुन्तक और राजशेखर ये दो ऐसे आचार्य हैं जो परंपरागत संस्कृत पंडितों के मानस में उतने महत्त्वपूर्ण नहीं हैं जितने रसवादी या अलंकारवादी अथवा ध्वनिवादी हैं। राजशेखर लीक से हट कर अपनी बात कहते हैं और कुन्तक विपरीत धारा में बहने का साहस रखने वाले आचार्य हैं। .

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रिजवान ज़हीर उस्मान

रिजवान ज़हीर उस्मान (12 अगस्त 1948- 03 नवंबर 2012) राजस्थान के एक भारतीय साहित्यकार और नाट्यकर्मी थे। वे हिंदी के आधुनिक नाटककारों में अपनी मौलिक नाटकीयता के कारण जाने जाते हैं। उन्होने 100 से अधिक कहानियों और 150 नाटकों के लेखन के अलावा कला, साहित्य, कहानी, और नाटक के क्षेत्र में जीवनभर योगदान दिया था। उन्होंने करीब डेढ़ सौ से अधिक नाटकों का मंचन व प्रदर्शन किया और स्वयं अभिनय करते 50 से अधिक नाटकों का निर्देशन भी किया। उन्हें संगीत नाटक अकादमी द्वारा नाट्य लेखन एवं निर्देशन के लिए 'लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित किया जा चुका है। साहित्य अकादमी द्वारा नाटक ’कल्पना पिशाच’ के लिये 'देवीलाल सामर नाट्य लेखन पुरस्कार’ दिया जा चुका है। जयपुर के जवाहर कला केन्द्र द्वारा आयोजित पूर्वांकी नाट्य-लेखन में सर्वश्रेष्ठ नाटक ‘वही हुआ जिसका डर था तितली कों‘ पुरस्कृत किया गया था। किडनी की समस्या के कारण लम्बी बीमारी के बाद उनके पैतृक निवास भूत-महल मोहल्ले में हाथीपोल उदयपुर में उनका निधन हो गया। उस्मान सही अर्थों में एक आधुनिक/ उत्तर-आधुनिक रंगकर्मी थे, जिनकी नाट्य-दृष्टि अगर आधुनिक साहित्य, खास तौर पर कविताओं से प्रेरणा लेती थी तो बहुधा उसका विसर्जन राजनीति के ज्वलंत सवालों से टकराहट में होता था । उस्मान मूलतः राजनैतिक मंतव्यों के नाट्य-शिल्पी थे और उनका पक्ष स्पष्ट – कि नाटक महज़ मनोरंजन की विधा नहीं, उसका एक सन्देश भी है, मानव-संवेदना के परिष्कार के पक्ष में एक साफ़-सुथरा उद्देश्य भी । मनुष्य की नियति और अवस्थिति की वह बड़े गहरी समझ वाले निर्देशक और लेखक थे । विडम्बना, असमानता, हिंसा, हत्या, शोषण, लालच, वासना, ईर्ष्या, पूंजीवाद, संहार, युद्ध उनके लिए सिर्फ शब्द नहीं थे- इन सब के नाट्य-प्रतीक उस्मान ने अपने नाटकों में इतनी भिन्नता से रचे कि देख कर ताज्जुब में पड़ जाना होता है। इतिहास, परंपरा और संस्कृति पर उनकी स्वयं की एक अंतर्दृष्टि थी और एक अल्पसंख्यक होते हुए भी उनका सम्पूर्ण लेखन हर तरह की सीमित साम्प्रदायिकता, ओछे धार्मिक-वैमनस्य और सामजिक-प्रतिहिंसा के कीटाणुओं से पूरी तरह मुक्त था। नाटक बनाने सोचने लिखने और मंच पर लाने की उनकी एक खास 'स्टाइल' थी, और उनकी शैली की नक़ल लगभग असंभव। उनके नाट्य-प्रयोग और उनके नाटकों के अनेकानेक दृश्यबंध ही नहीं, पात्र और उनके नाम तक उस्मान के अपने निहायत मौलिक हस्ताक्षरों की अप्रतिमता का इज़हार करते जान पड़ते हैं। तोता, कोरस, आद, छठी इन्द्रिय, हक्का, पैसे वाली पार्टी, लेबर, ईगो, योद्धा, दिवंगत दादाजान, मामा, बहुत बड़ा सांप........आदि उस्मान के‘पात्रों’ में शुमार हैं। हर पात्र की अपनी अंतर्कथा और चरित्र है- हर पात्र नाटक में ज़रूरी पात्र है और कथानक में उसकी अपनी जगह अप्रतिम। ‘राजस्थान साहित्य अकादमी’ उदयपुर ने इनके कुछ नाटकों- 'आखेट-कथा',,'अनहद नाद' दोनों सही, दोनों गलत', 'बंसी टेलर', 'भीड़', 'चन्द्रसिंह गढ़वाली', 'छलांग' 'दिन में आधी रात', 'एकतरफा यातायात', 'लोमड़ियाँ', ' माँ का बेटा और कटार वाले नर्तक', 'मेरे गुनाहों को बच्चे माफ़ करें', 'पुत्र', 'रहम दिल सौदागर', 'यहाँ एक जंगल था श्रीमान' को ‘मधुमती’ में समय-समय पर प्रकाशित किया है.

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रिवेंज (टीवी शृंखला)

रिवेंज (Revenge) एक अमेरिकी टेलिविज़न ड्रामा शृंखला है, जिसकी रचना माइक कॅली ने की है तथा जिसमें मुख्य भूमिका में हैं मैडेलिन स्टो व एमिली वैन-कैंप। शृंखला का प्रिमीयर सितम्बर 21, 2012 को एबीसी चॅनल पर हुआ था। मुख्य कथानक फ्रांसीसी लेखक अलेक्जेंडर ड्यूमा द्वारा रचित द काउंट ऑफ़ मॉन्टे क्रिस्टो‎ उपन्यास से प्रेरित है। शृंखला की कहानी न्यू यॉर्क के लॉन्ग आइलैंड के हॅम्पटन शहर में रहने वाले धनी व समृद्ध ग्रेसन परिवार के आसपास घूमती है। कई वर्ष पहले, कॉनरेड और विक्टोरिया ग्रेसन ने अपने मित्र डेविड क्लार्क को आतंकवादी होने व एक विमान दुर्घटना के लिए, जिसमें कई लोगों की जान गई थी, जिम्मेदार होने के लिए फसा दिया था। डेविड को इस अपराध के लिए सजा होती है और जेल में रहते हुए उसकी मृत्यु ही जाती है। वर्षों बाद डेविड की पुत्री अमेंडा क्लार्क अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए एमिली थॉर्न के नाम के साथ हॅम्पटन शहर वापस आती है। शृंखला को आलोचकों ने सराहा था तथा इसे अच्छी टेलिविज़न रेटिंग प्राप्त हुई। अक्टूबर 13, 2011, तक कार्यक्रम के चार एपिसोड पूरें होने के पश्चात एबीसी ने शृंखला को पूरे 22 एपिसोड तक के लिए नवीकृत कर दिया था। मैडेलिन स्टो को कार्यक्रम में अपनी निभाई गई विक्टोरिया ग्रेसन की भूमिका के लिए गोल्डन ग्लोब की बेस्ट ऐक्ट्रेस ड्रामा सीरीज़ (सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री ड्रामा शृंखला) श्रेणी में नामित किया गया था। .

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रिवेंज के प्रकरणों की सूची

रिवेंज (Revenge) एक अमेरिकी टेलिविज़न ड्रामा शृंखला है, जिसकी रचना माइक कॅली ने की है तथा जिसमें मुख्य भूमिका में हैं मैडेलिन स्टो व एमिली वैन-कैंप। शृंखला का प्रिमीयर सितम्बर 21, 2012 को एबीसी चॅनल पर हुआ था। .

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रघुविलास

रघुविलास एक संस्कृत नाटक है जिसके रचयिता जैन नाट्यकार रामचन्द्र सूरि थे। वे आचार्य हेमचंद्र के शिष्य थे। रामचन्द्र सूरि का समय संवत ११४५ से १२३० का है। उन्होंने संस्कृत में ११ नाटक लिखे है। उनके अनुसार यह उनकी चार सर्वोतम कृतियों में से एक है। .

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कृतियाँ

रबीन्द्रनाथ ठाकुर रवीन्द्रनाथ ठाकुर का सृष्टिकर्म काव्य, उपन्यास, लघुकथा, नाटक, प्रबन्ध, चित्रकला और संगीत आदि अनेकानेक क्षेत्रों फैला हुआ है। .

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रंगमंच

न्यूयॉर्क स्टेट थिएटर के अन्दर का दृष्य रंगमंच (थिएटर) वह स्थान है जहाँ नृत्य, नाटक, खेल आदि हों। रंगमंच शब्द रंग और मंच दो शब्दों के मिलने से बना है। रंग इसलिए प्रयुक्त हुआ है कि दृश्य को आकर्षक बनाने के लिए दीवारों, छतों और पर्दों पर विविध प्रकार की चित्रकारी की जाती है और अभिनेताओं की वेशभूषा तथा सज्जा में भी विविध रंगों का प्रयोग होता है और मंच इसलिए प्रयुक्त हुआ है कि दर्शकों की सुविधा के लिए रंगमंच का तल फर्श से कुछ ऊँचा रहता है। दर्शकों के बैठने के स्थान को प्रेक्षागार और रंगमंच सहित समूचे भवन को प्रेक्षागृह, रंगशाला, या नाट्यशाला (या नृत्यशाला) कहते हैं। पश्चिमी देशों में इसे थिएटर या ऑपेरा नाम दिया जाता है। .

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रंगरसिया (धारावाहिक)

रंगरसिया एक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक है जो कलर्स टीवी पर प्रसारित होता था। यह धारावाहिक एक ग्रामीण लड़की पार्वती (सनाया ईरानी) एवं एक सीमा सुरक्षा दल के अधिकारी रूद्र (आशीष शर्मा) पर आधारित है। रंगरसिया जैसलमेर और जोधपुर जैसे स्थानों पर फिल्माया गया है। .

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रूपक अलंकार

रूपक साहित्य में एक प्रकार का अर्थालंकार है जिसमें बहुत अधिक साम्य के आधार पर प्रस्तुत में अप्रस्तुत का आरोप करके अर्थात् उपमेय या उपमान के साधर्म्य का आरोप करके और दोंनों भेदों का अभाव दिखाते हुए उपमेय या उपमान के रूप में ही वर्णन किया जाता है। इसके सांग रूपक, अभेद रुपक, तद्रूप रूपक, न्यून रूपक, परम्परित रूपक आदि अनेक भेद हैं। उदाहरण- चरन कमल बन्दउँ हरिराई; अन्य अर्थ व्युत्पत्ति: जिसका कोई रूप हो। रूप से युक्त। रूपी। .

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रेत पर लिखे नाम

रेत पर लिखे नाम कमलेश्वर का एक नाटक है। श्रेणी:कमलेश्वर श्रेणी:हिन्दी नाटक.

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रॉकी (फ़िल्म)

रॉकी (Rocky) १९७६ में बनी अमेरिकी खेल ड्रामा फ़िल्म है जिसका निर्देशन जॉन जी, एविल्डसन द्वारा किया गया है व जिसकी कहानी व मुख्य पात्र सिल्वेस्टर स्टेलोन ने लिखे व साकारे है। यह रॉकी बैल्बोआ की गरीबी से अमीरी तक के सपने की कहानी बयाँ करती है। रॉकी, जो फिलाडेल्फिया, पेंसिल्वेनिया के एक जागीरदार के लिए वसूली का काम करता है, की जिंदगी बदल जाती है जब उस जैसे साधारण क्लब मुष्टियोद्धा को विश्व हेवीवेट चैम्पियनशिप के ख़िताब के लिए लड़ने का मौका मिलता है। $१०,००००० से कम बजट पर बनी व २८ दिन में पुरी हुई इस फ़िल्म ने $२२,५०,००००० का व्यवसाय किया वह एक हीट फ़िल्म साबित हुई और इसे सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के साथ कुल तिन अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुए। आगे चलकर इसके पाँच भाग: रॉकी II, रॉकी III, रॉकी IV, रॉकी V और 'रॉकी बैल्बोआ बनाए जा चुके है। .

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रोज केरकेट्टा

रोज केरकेट्टा (5 दिसंबर, 1940) आदिवासी भाषा खड़िया और हिन्दी की एक प्रमुख लेखिका, शिक्षाविद्, आंदोलनकारी और मानवाधिकारकर्मी हैं। आपका जन्म सिमडेगा (झारखंड) के कइसरा सुंदरा टोली गांव में खड़िया आदिवासी समुदाय में हुआ। झारखंड की आदि जिजीविषा और समाज के महत्वपूर्ण सवालों को सृजनशील अभिव्यक्ति देने के साथ ही जनांदोलनों को बौद्धिक नेतृत्व प्रदान करने तथा संघर्ष की हर राह में आप अग्रिम पंक्ति में रही हैं। आदिवासी भाषा-साहित्य, संस्कृति और स्त्री सवालों पर डा.

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लारेंस बिन्यन

लारेंस बिन्यन रॉबट लारेंस बिन्यन (Robert Laurence Binyon; 1869 - 1943) अंग्रेज कवि, नाटककार, चित्रकला तथा वास्तुकला विशेषज्ञ था। .

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लाला हरदयाल

लाला हरदयाल (१४ अक्टूबर १८८४, दिल्ली -४ मार्च १९३९) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के उन अग्रणी क्रान्तिकारियों में थे जिन्होंने विदेश में रहने वाले भारतीयों को देश की आजादी की लडाई में योगदान के लिये प्रेरित व प्रोत्साहित किया। इसके लिये उन्होंने अमरीका में जाकर गदर पार्टी की स्थापना की। वहाँ उन्होंने प्रवासी भारतीयों के बीच देशभक्ति की भावना जागृत की। काकोरी काण्ड का ऐतिहासिक फैसला आने के बाद मई, सन् १९२७ में लाला हरदयाल को भारत लाने का प्रयास किया गया किन्तु ब्रिटिश सरकार ने अनुमति नहीं दी। इसके बाद सन् १९३८ में पुन: प्रयास करने पर अनुमति भी मिली परन्तु भारत लौटते हुए रास्ते में ही ४ मार्च १९३९ को अमेरिका के महानगर फिलाडेल्फिया में उनकी रहस्यमय मृत्यु हो गयी। उनके सरल जीवन और बौद्धिक कौशल ने प्रथम विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़ने के लिए कनाडा और अमेरिका में रहने वाले कई प्रवासी भारतीयों को प्रेरित किया। .

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लागी तुझसे लगन

लागी तुझसे लगन एक भारतीय हिन्दी धारावाहिक है, जिसका प्रसारण कलर्स पर 28 सितम्बर 2009 से 6 जनवरी 2012 तक हुआ। इसका निर्माण परेश रावल, स्वरूप सम्पत और हेमल ठक्कर ने किया है। .

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लिसन... अमाया

लिसन...

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लक बाय चांस

लक बाय चांस ज़ोया अख्तर द्वारा निर्देशित बॉलीवुड नाटकीय फ़िल्म है। जिसमें मुख्य अभिनय फरहान अख्तर, कोंकणा सेन शर्मा, ऋतिक रोशन, जूही चावला, ऋषि कपूर, संजय कपूर, डिम्पल कपाड़िया, ईशा शरवानी और शाहरुख खान ने किया है। फ़िल्म 30 जनवरी 2009 को प्रदर्शित की गई। .

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लक्ष्मण श्रीमल

लक्ष्मण श्रीमल नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक करफ्यू के लिये उन्हें सन् 2007 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा

लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा (जन्म १२ नवम्बर १९०९, मृत्यु १४ सितम्बर १९५९) नेपाली साहित्य के महाकवि हैं। देवकोटा नेपाली साहित्य के बिभिन्न विधाओं में कलम चलाने वाले बहुमुखी प्रतिभाशाली थे। उनके द्वारा लिखित कविता और निबन्ध उच्च कोटि के माने जाते हैं। उन्होंने मुनामदन, सुलोचना, शाकुन्तल जैसे अमर काव्य लिखे जिसके कारण नेपाली साहित्यको समृद्धि मिली। नेपाली साहित्य में मुनामदन सर्वोत्कृष्ट काव्य माना जाता है। .

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लैटिन साहित्य

लैटिन साहित्य के अंतर्गत लैटिन भाषा में रचित निबन्ध, इतिहास, कविता, नाटक आदि आते हैं। लैटिन भाषा का चलन ईसापूर्व तीसरी शताब्दी में आरम्भ हुआ था और इसे प्राचीन रोम की प्रमुख भाषा बनने में २०० वर्ष लग गये। यहाँ तक कि मार्कस औरेलिअस (121–180 AD) के समय में भी बहुत से शिक्षित लोग प्राचीन ग्रीक में ही लिखते-पढ़ते थे। कई अर्थों में लैटिन साहित्य, प्राचीन ग्रीक साहित्य का ही सांतत्य (continuation) था। लैटिन, प्राचीन रोमवासियों की भाषा थी किन्तु यह पूरे मध्य युग में यूरोप की जनभाषा (लिंगुआ फ्रांका) भी थी। अतः लैटिन साहित्य के अन्दर केवल रोम के लेखक (सिसरो, वर्जिल, ओविद, होरेस आदि) ही नहीं आते बल्कि रोमन साम्राज्य के पतन के बाद के यूरोपीय लेखक (एक्विनास (1225–1274), फ्रांसिस बेकन (1561–1626), बरुच स्पिनोजा (1632–1677) और आइज़क न्यूटन (1642–1727) आदि) भी आते हैं।.

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लेपाकले

लेपाकले मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार अरांबम समरेन्द्र सिंह द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1995 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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लेव तोलस्तोय

लेव तोलस्तोय (रूसी:Лев Никола́евич Толсто́й, 9 सितम्बर 1828 - 20 नवंबर 1910) उन्नीसवीं सदी के सर्वाधिक सम्मानित लेखकों में से एक हैं। उनका जन्म रूस के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उन्होंने रूसी सेना में भर्ती होकर क्रीमियाई युद्ध (1855) में भाग लिया, लेकिन अगले ही वर्ष सेना छोड़ दी। लेखन के प्रति उनकी रुचि सेना में भर्ती होने से पहले ही जाग चुकी थी। उनके उपन्यास युद्ध और शान्ति (1865-69) तथा आन्ना करेनिना (1875-77) साहित्यिक जगत में क्लासिक रचनाएँ मानी जाती है। धन-दौलत व साहित्यिक प्रतिभा के बावजूद तोलस्तोय मन की शांति के लिए तरसते रहे। अंततः 1890 में उन्होंने अपनी धन-संपत्ति त्याग दी। अपने परिवार को छोड़कर वे ईश्वर व गरीबों की सेवा करने हेतु निकल पड़े। उनके स्वास्थ्य ने अधिक दिनों तक उनका साथ नहीं दिया। आखिरकार 20 नवम्बर 1910 को अस्तापवा नामक एक छोटे से रेलवे स्टेशन पर इस धनिक पुत्र ने एक गरीब, निराश्रित, बीमार वृद्ध के रूप में मौत का आलिंगन कर लिया। .

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शर्विलक

शर्विलक गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार रसिकलाल सी. पारीख द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1960 में गुजराती भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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शास्त्री सिस्टर्स

शास्त्री सिस्टर्स एक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक हो। .

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शाका लाका बूम बूम

शाका लाका बूम बूम एक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक है जो पहले दूरदर्शन नेशनल पर प्रसारित होता था। बाद में इसका प्रसारण स्टार प्लस द्वारा किया गया। .

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शिव कुमार बटालवी

शिव कुमार 'बटालवी' (ਸ਼ਿਵ ਕੁਮਾਰ ਬਟਾਲਵੀ) (1936 -1973) पंजाबी भाषा के एक विख्यात कवि थे, जो उन रोमांटिक कविताओं के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं, जिनमें भावनाओं का उभार, करुणा, जुदाई और प्रेमी के दर्द का बखूबी चित्रण है। वे 1967 में वे साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले सबसे कम उम्र के साहित्यकार बन गये। साहित्य अकादमी (भारत की साहित्य अकादमी) ने यह सम्मान पूरण भगत की प्राचीन कथा पर आधारित उनके महाकाव्य नाटिका लूणा (1965) के लिए दिया, जिसे आधुनिक पंजाबी साहित्य की एक महान कृति माना जाता है और जिसने आधुनिक पंजाबी किस्सागोई की एक नई शैली की स्थापना की। आज उनकी कविता आधुनिक पंजाबी कविता के अमृता प्रीतम और मोहन सिंह जैसे दिग्गजों के बीच बराबरी के स्तर पर खड़ी है,जिनमें से सभी भारत- पाकिस्तान सीमा के दोनों पक्षों में लोकप्रिय हैं।.

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शिवराम महादेव परांजपे

शिवराम महादेव परांजपे (1864-1929 ई.) मराठी के प्रतिभाशाली साहित्यकार, वक्ता, पत्रकार और ध्येयनिष्ठ राजनीतिज्ञ थे। उन्होने 'काल' नामक साप्ताहिक द्वारा महाराष्ट्र में ब्रितानी शासन के विरुद्ध जनचेतना के निर्माण में सफलता पायी। .

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शंकर शेष

शंकर शेष (1933-1981) हिन्दी की साठोत्तरी पीढ़ी के सुप्रसिद्ध नाटककार थे। समकालीन जीवन की ज्वलंत समस्याओं से जूझते व्यक्ति की त्रासदी शंकर शेष के बहुसंख्यक नाटकों के केंद्र में रहती है। वे मोहन राकेश के बाद की पीढ़ी के महत्वपूर्ण नाटककार के रूप में मान्य हैं। फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से सम्मानित डॉ० शेष ने फिल्मों के लिए कहानियाँ भी लिखी हैं। .

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शंकरदेव

श्रीमन्त शंकरदेव असमिया भाषा के अत्यंत प्रसिद्ध कवि, नाटककार तथा हिन्दू समाजसुधारक थे। .

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श्याम जयसिंघाणी

श्याम जयसिंघाणी सिन्धी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक ज़लज़लों के लिये उन्हें सन् 1998 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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श्रिया सरन

श्रिया सरन (जन्म 11 सितंबर 1982) एक भारतीय फ़िल्म अभिनेत्री हैं। उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत संगीत वीडियो में अभिनय द्वारा की, साथ ही कलाकार बनने का अपना सपना पूरा करने के लिए, वे एक अभिनय स्टूडियो में भाग लेती रहीं। 2001 में इष्टम के साथ श्रीगणेश करते हुए, 2002 में अपनी पहली ज़बरदस्त हिट फ़िल्म संतोषम में भानु की भूमिका के ज़रिए उन्होंने तेलुगू सिनेमा का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। इस फ़िल्म के बाद वे कई तेलुगू फ़िल्मों में प्रमुख कलाकारों के साथ नज़र आईं, जबकि, साथ ही बॉलीवुड और तमिल फ़िल्म उद्योग में भी प्रवेश किया। 2007 में, शिवाजी: द बॉस में रजनीकांत के साथ अभिनय करने के बाद श्रिया सरन एक राष्ट्रीय हस्ती बन गईं, जिसके पश्चात उन्होंने कई बॉलीवुड, कॉलीवुड और हॉलीवुड फ़िल्म भी साईन कीं.

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श्रीभार्गवराघवीयम्

श्रीभार्गवराघवीयम् (२००२), शब्दार्थ परशुराम और राम का, जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००२ ई में रचित एक संस्कृत महाकाव्य है। इसकी रचना ४० संस्कृत और प्राकृत छन्दों में रचित २१२१ श्लोकों में हुई है और यह २१ सर्गों (प्रत्येक १०१ श्लोक) में विभक्त है।महाकाव्य में परब्रह्म भगवान श्रीराम के दो अवतारों परशुराम और राम की कथाएँ वर्णित हैं, जो रामायण और अन्य हिंदू ग्रंथों में उपलब्ध हैं। भार्गव शब्द परशुराम को संदर्भित करता है, क्योंकि वह भृगु ऋषि के वंश में अवतीर्ण हुए थे, जबकि राघव शब्द राम को संदर्भित करता है क्योंकि वह राजा रघु के राजवंश में अवतीर्ण हुए थे। इस रचना के लिए, कवि को संस्कृत साहित्य अकादमी पुरस्कार (२००५) तथा अनेक अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। महाकाव्य की एक प्रति, कवि की स्वयं की हिन्दी टीका के साथ, जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा ३० अक्टूबर २००२ को किया गया था। .

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शौरसेनी

शौरसेनी नामक प्राकृत मध्यकाल में उत्तरी भारत की एक प्रमुख भाषा थी। यह नाटकों में प्रयुक्त होती थी (वस्तुतः संस्कृत नाटकों में, विशिष्ट प्रसंगों में)। बाद में इससे हिंदी-भाषा-समूह व पंजाबी विकसित हुए। दिगंबर जैन परंपरा के सभी जैनाचार्यों ने अपने महाकाव्य शौरसेनी में ही लिखे जो उनके आदृत महाकाव्य हैं। शौरसेनी उस प्राकृत भाषा का नाम है जो प्राचीन काल में मध्यप्रदेश में प्रचलित थी और जिसका केंद्र शूरसेन अर्थात् मथुरा और उसके आसपास का प्रदेश था। सामान्यत: उन समस्त लोकभाषाओं का नाम प्राकृत था जो मध्यकाल (ई. पू. ६०० से ई. सन् १००० तक) में समस्त उत्तर भारत में प्रचलित हुईं। मूलत: प्रदेशभेद से ही वर्णोच्चारण, व्याकरण तथा शैली की दृष्टि से प्राकृत के अनेक भेद थे, जिनमें से प्रधान थे - पूर्व देश की मागधी एवं अर्ध मागधी प्राकृत, पश्चिमोत्तर प्रदेश की पैशाची प्राकृत तथा मध्यप्रदेश की शौरसेनी प्राकृत। मौर्य सम्राट् अशोक से लेकर अलभ्य प्राचीनतम लेखों तथा साहित्य में इन्हीं प्राकृतों और विशेषत: शौरसेनी का ही प्रयोग पाया जाता है। भरत नाट्यशास्त्र में विधान है कि नाटक में शौरसेनी प्राकृत भाषा का प्रयोग किया जाए अथवा प्रयोक्ताओं के इच्छानुसार अन्य देशभाषाओं का भी (शौरसेनं समाश्रत्य भाषा कार्या तु नाटके, अथवा छंदत: कार्या देशभाषाप्रयोक्तृभि - नाट्यशास्त्र १८,३४)। प्राचीनतम नाटक अश्वघोषकृत हैं (प्रथम शताब्दी ई.) उनके जो खंडावशेष उपलब्ध हुए हैं उनमें मुख्यत: शौरसेनी तथा कुछ अंशों में मागधी और अर्धमागधी का प्रयोग पाया जाता है। भास के नाटकों में भी मुख्यत: शौरसेनी का ही प्रयोग पाया जाता है। पश्चात्कालीन नाटकों की प्रवृत्ति गद्य में शौरसेनी और पद्य में महाराष्ट्री की ओर पाई जाती है। आधुनिक विद्वानों का मत है कि शौरसेनी प्राकृत से ही कालांतर में भाषाविकास के क्रमानुसार उन विशेषताओं की उत्पत्ति हुई जो महाराष्ट्री प्राकृत के लक्षण माने जाते हैं। वररुचि, हेमचंद्र आदि वैयाकरणों ने अपने-अपने प्राकृत व्याकरणों में पहले विस्तार से प्राकृत सामान्य के लक्षण बतलाए हैं और तत्पश्चात् शौरसेनी आदि प्रकृतों के विशेष लक्षण निर्दिष्ट किए हैं। इनमें शौरसेनी प्राकृत के मुख्य लक्षण दो स्वरों के बीच में आनेवाले त् के स्थान पर द् तथा थ् के स्थान पर ध्। जैसे अतीत > अदीद, कथं > कधं; इसी प्रकार ही क्रियापदों में भवति > भोदि, होदि; भूत्वा > भोदूण, होदूण। भाषाविज्ञान के अनुसार ईसा की दूसरी शती के लगभग शब्दों के मध्य में आनेवाले त् तथा द् एव क् ग् आदि वर्णों का भी लोप होने लगा और यही महाराष्ट्री प्राकृत की विशेषता मानी गई। प्राकृत का उपलभ्य साहित्य रचना की दृष्टि से इस काल से परवर्ती ही है। अतएव उसमें शौरसेनी का उक्त शुद्ध रूप न मिलकर महाराष्ट्री मिश्रित रूप प्राप्त होता है और इसी कारण पिशल आदि विद्वानों ने उसे उक्त प्रवृत्तियों की बहुलतानुसार जैन शौरसेनी या जैन महाराष्ट्री नाम दिया है। जैन शौरसेनी साहित्य दिंगबर जैन परंपरा का पाया जाता है। प्रमुख रचनाएँ ये हैं - सबसे प्राचीन पुष्पदंत एव भूतवलिकृत षट्खंडागम तथा गुणधरकृत कषाय प्राभृत नामक सूत्रग्रंथ हैं (समय लगभग द्वितीय शती ई.)। वीरसेन तथा जिनसेनकृत इनकी विशाल टीकाएँ भी शौरसेनी प्राकृत में लिखी गई है (९वीं शती ई.)। ये सब रचनाएँ गद्यात्मक हैं। पद्य में सबसे प्राचीन रचनाएँ कुंदकुंदाचार्यकृत हैं (अनुमानत: तीसरी शती ई.)। उनके बारह तेरह ग्रंथ प्रकाश में आ चुके हैं, जिनके नाम हैं - समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार, रयणसार, बारस अणुवेक्खा तथा दर्शन, बोध पाहुडादि अष्ट पाहुड। इन ग्रंथों में मुख्यतया जैन दर्शन, अध्यात्म एवं आचार का प्रतिपादन किया गया है। मुनि आचार संबंधी मुख्य रचनाएँ हैं- शिवार्य कृत भगवती आराधना और वट्टकेर कृत मूलाचार। अनुप्रेक्षा अर्थात् अनित्य, अशरण आदि बारह भावनाएँ भावशुद्धि के लिए जैन मुनियों के विशेष चिंतन और अभ्यास के विषय हैं। इन भावनाओं का संक्षेप में प्रतिपादन तो कुंदकुंदाचार्य ने अपनी 'बारस अणुवेक्खा' नामक रचना में किया है, उन्हीं का विस्तार से भले प्रकार वर्णन कार्त्तिकेयानुप्रेक्षा में पाया जाता है, जिसके कर्ता का नाम स्वामी कार्त्तिकेय है। (लगभग चौथी पाँचवीं शती ई.)। (१) यति वृषभाचार्यकृत तिलोयपण्णत्ति (९वीं शती ई. से पूर्व) में जैन मान्यतानुसार त्रैलाक्य का विस्तार से वर्णन किया गया है, तथा पद्मनंदीकृत जंबूदीवपण्णत्ति में जंबूद्वीप का। (२) स्याद्वाद और नय जैन न्यायशास्त्र का प्राण है। इसका प्रतिपादन शौरसेनी प्राकृत में देवसेनकृत लघु और बृहत् नयचक्र नामक रचनाओं में पाया जाता है (१०वीं शती ई.)। जैन कर्म सिद्धांत का प्रतिपादन करनेवाला शौरसेनी प्राकृत ग्रन्थ है- नेमिचंद्रसिद्धांत चक्रवर्ती कृत गोम्मटसार, जिसकी रचना गंगनरेश मारसिंह के राज्यकाल में उनके उन्हीं महामंत्री चामुंडराय की प्रेरणा से हुई थी, जिन्होंने मैसूर प्रदेश के श्रवणबेलगोला नगर में उस सुप्रसिद्ध विशाल बाहुबलि की मूर्ति का उद्घाटन कराया था (११वीं शती ई.)। उपर्युक्त समस्त रचनाएँ प्राकृत-गाथा-निबद्ध हैं। जैन साहित्य के अतिरक्त शौरसेनी प्राकृत का प्रयोग राजशेखरकृत कर्पूरमंजरी, रद्रदासकृत चंद्रलेखा, घनश्यामकृत आनंदसुंदरी नामक सट्टकों में भी पाया जाता है। यद्यपि कर्पूरमंजरी के प्रथम विद्वान् संपादक डा.

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शूद्रक

शूद्रक नामक राजा का संस्कृत साहित्य में बहुत उल्लेख है। ‘मृच्छकटिकम्’ इनकी ही रचना है। जिस प्रकार विक्रमादित्य के विषय में अनेक दंतकथाएँ प्रचलित हैं वैसे ही शूद्रक के विषय में भी अनेक दंतकथाएँ हैं। कादम्बरी में विदिशा में, कथासरित्सागर में शोभावती तथा वेतालपंचविंशति में वर्धन नामक नगर में शूद्रक के राजा होने का उल्लेख है। मृच्छकटिकम् में कई उल्लेखों से ज्ञात होता है कि शूद्रक दक्षिण भारतीय थे तथा उन्हें प्राकृत तथा अपभ्रंश भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान था। वे वर्ण व्यवस्था में विश्वास रखते थे तथा गायों और ब्राह्मणों का विशेष आदर करते थे। शूद्रक का समय छठी शताब्दी था। मृच्छकटिकम के अतिरिक्त उन्होने वासवदत्ता, पद्मप्रभृतका आदि की रचना भी की। राजा शूद्रक बड़ा कवि था। कुछ लोग कहते हैं, शूद्रक कोई था ही नहीं, एक कल्पित पात्र है। परन्तु पुराने समय में शूद्रक कोई राजा था इसका उल्लेख हमें स्कन्दपुराण में मिलता है। महाकवि भास ने एक नाटक लिखा है जिसका नाम ‘दरिद्र चारुदत्त’ है। ‘दरिद्र चारुदत्त’ भाषा और कला की दृष्टि से ‘मृच्छकटिक’ से पुराना नाटक है। निश्चयपूर्वक शूद्रक के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। बाण ने अपनी ‘कादम्बरी’ में राजा शूद्रक को अपना पात्र बनाया है, पर यह नहीं कहा कि वह कवि भी था। बाण का समय छठी शती है। ऐसा लगता है कि शूद्रक कोई कवि था, जो राजा भी था। वह बहुत पुराना था। परन्तु कालिदास के समय तक उसे प्रधानता नहीं दी गई थी, या कहें कि जिस कालिदास ने सौमिल्ल, भास और कविपुत्र का नाम अपने से पहले बड़े लेखकों में गिनाया है, उसने सबकी सूची नहीं दी थी। शूद्रक का बनाया नाटक पुराना था, जो निरन्तर सम्पादित होता रहा और बाद में प्रसिद्ध हो गया। हो सकता है वह भास के बाद हुआ हो। भास का समय ईसा की पहली या दूसरी शती माना जाता है। .

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शीतलाप्रसाद त्रिपाठी

ड्रामा शीतलाप्रसाद त्रिपाठी (?? - जनवरी, १८९५) भारतेंदु के सहयोगी, साहित्यसेवी विद्वान् तथा हिंदी के प्रथम अभिनीत नाटक 'जानकीमंगल' के रचयिता थे। वे ग्रियर्सन के भी सहयोगी थे। .

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सच्चिदानंद राउतराय

सच्चिदानंद राउतराय एक उड़िया साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह कविता–1962 के लिये उन्हें सन् १९६३ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (ओड़िया) से सम्मानित किया गया। इन्हें १९८६ में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। स्वाधीनता-संग्राम सहित अनेक आन्दोलनों में भाग लेने के कारण कई बार जेल-यात्रा। स्नातक करने के उपरान्त बीस वर्ष कोलकाता में नौकरी और फिर कटक-वास। .

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सट्टक

प्राकृत में लिखे नाटकों को सट्टक कहा गया है। प्राकृत भाषा में पाँच सट्टकों की प्रसिद्धि है.

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सत्य हरिश्चन्द्र

सत्य हरिश्चंद्र भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा लिखित चार अंकों का नाटक है। काशी पत्रिका नामक पाक्षिक हिन्दी पत्र में प्रकाशित यह नाटक पहली बार १८७६ ई. में बनारस न्यु मेडिकल हाल प्रेस में पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। .

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सदानन्द घिल्डियाल

सदानंद घिल्डियाल (1898-1928) जन्म क्टूलस्यू गाँव खोला में हुआ। वे आयुर्वेद के विद्वान् ही नहीं शुद्ध साहित्यिक भी थे। उनका "प्रायश्चित्त" शीर्षक हिंदी नाटक तथा "भावकुसुमांजलि" शीर्षक अप्रकाशित कविताएँ उनकी साहित्यिक प्रतिभा का प्रमाण प्रस्तुत करती हैं। विशुद्ध साहित्यसाधना के अतिरिक्त उन्होंने आयुर्वेद के कई ग्रंथों पर टीकाएँ लिखीं तथा "रसतरंगिणी" नामक आयुर्वेद विषयक ग्रंथ की रचना की। संस्कृत की कोमल कांत पदावली में लिखे इस ग्रंथ की विद्वानों ने भूरि भूरि प्रशंसा की है। श्रेणी:हिन्दी साहित्यकार.

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सपने सुहाने लड़कपन के

सपने सुहाने लड़कपन के एक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक है जिसे 21 मई 2012 से ज़ी टीवी पर प्रसारित किया गया और इसने धारावाहिक छोटी बहू 2 की जगह ली है। यह दो चचेरी बहनों रचना और गुंजन की कहानी है। रचना एक साधारण लड़की है, जबकि गुंजन एक मुक्त उत्साही और खुश रहने वाली लड़की है जो मुंबई से आई है और रचना के परिवार के साथ रहती है। .

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सर्विस वाली बहू

सर्विस वाली बहू (हिन्दी: नौकरी वाली बहू) ज़ी टीवी पर प्रसारित होने वाला एक धारावाहिक है। जिसका निर्माण राकेश पासवान ने किया है। यह धारावाहिक 23 फरवरी 2015 से शुरू हुआ। इस धारावाहिक में कृतिका सेंगर एक मुख्य भूमिका में कार्य कर रही हैं। .

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ससुराल सिमर का

ससुराल सिमर का एक भारतीय धारावाहिक है जो कलर्स टीवी प्रसारित किया जाता था। इसका प्रथम प्रसारण 25 अप्रैल 2011 को किया गया था। इसका निर्माण रश्मि शर्मा टेलीफिल्मस् द्वारा किया गया था। इसमें दीपिका कक्कर, अविका गोर, शोएब इब्राहीम, धीरज धूपर, मनीष रायसिन्घन, कीर्ति केलकर, वैशाली टक्कर, सिद्धार्थ शिवपुरी, वरुण शर्मा, निक्की शर्मा, मोनिका शर्मा, कृषन बरेटो, रोहन मेहरा, मजहेर सायद और ज्याति भाटिया ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थीं। यह छठा सबसे लंबे समय के लिए प्रसारित होने वाला भारतीय टेलीविजन शो है। इसका अन्तिम प्रसारण 2 मार्च 2018 को किया गया था। यह शो 2063 एपिसोड्स सफलतापूर्वक पूरा करके समाप्त हुआ। यह कार्यक्रम पहले तो दो बहनों, सिमर एवं रोली की कहानी व्यक्त करता था जिनका विवाह एक ही परिवार में दो भाइयों, क्रमश: प्रेम एवं सिद्धान्त के साथ हुआ था। बाद में, यह कार्यक्रम सिमर - प्रेम और उनके तीन बच्चों - अंजलि, संजना और पियूष की कहानी व्यक्त करता था। .

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ससुराल गेंदा फुल

ससुराल गेंदा फूल एक टेलीविजन धारावाहिक है जिसका प्रसारण १ मार्च २०१० को स्टार प्लस पर शुरू हुआ था। यह घरेलु धारावाही, हास्य रोमांस और ड्रामा की श्रेणी का धारावाहिक है। ससुराल गेंदा फूल पुरानी दिल्ली में रचा गया है। यह लोकप्रिय बंगाली कार्यक्रम ओगो बोधु शुन्दोरी की पुनार्निर्मिति है जो स्टार जलशा पर प्रसारित होता है। इस कार्यक्रम का शीर्षक फ़िल्म दिल्ली 6 के गीत "गेंदा फूल" से प्रेरित है जो इस धारावाहिक का शुरूआती गीत भी है। इसके अबतक ५०० से अधिक प्रकरण बनाए जा चुके है। .

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सामुराई जैक

सामुराई जैक (Samurai Jack) एक अमेरिकी एनिमेटेड टेलीविजन शृंखला है जिसकी रचना गेनेडी तर्ताकोव्सकी ने की है और इसका प्रसारण कार्टून नेटवर्क व टूनामी पर २००१ से २००४ के बिच किया गया था। .

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सावित्री बाई खानोलकर

सावित्री बाई खानोलकर या खानोलंकार (जन्म के समय का नाम इवा योन्ने लिण्डा माडे-डे-मारोज़) भारतीय इतिहास के ऐसे व्यक्तियों में से हैं जिनका जन्म तो पश्चिम में हुआ किंतु उन्होंने अपनी इच्छा से भारतीय संस्कृति को अपनाया और भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। सावित्री बाई खानोलकर को सर्वोच्च भारतीय सैनिक अलंकरण परमवीर चक्र के रूपांकन का गौरव प्राप्त है। सावित्री बाई खानोलकर .

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सिरिसंपिगे

सिरिसंपिगे कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार चंद्रशेखर कंबार द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1991 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सिंहविष्णु

सिंहविष्णु पल्लव वंश का एक राजा था जिसने पल्लव वंश के गौरव का पुनः उत्थान किया। वह 'अवनिसिंह' के नाम से भी प्रसिद्ध है। वह सिंहवर्मन तृतीय का पुत्र था। वह पहला पल्लव राजा था जिसका राज्य काँचीपुरम के दक्षिण तक पहुँच गया था। महेन्द्रवर्मन प्रथम द्वारा रचित मत्तविलास प्रहसन नामक नाटक में उसे महान विजेता बताया गया है। श्रेणी:भारत के राजा.

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सजूद सैलानी

सजूद सैलानी कश्मीरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक कैज़ राथ के लिये उन्हें सन् 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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संतसिंह सेखों

संतसिंह सेखों पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक मित्तर पिआर के लिये उन्हें सन् 1972 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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संस्कार भारती

संस्कार भारती, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक अनुसांगिक संस्था है संस्कार भारती, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक अनुसांगिक संस्था है संस्कार भारती, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक अनुसांगिक संस्था है। इसकी स्थापना ललित कला के क्षेत्र में राष्ट्रीय चेतना लाने का उद्देश्य सामने रखकर की गयी थी। इसकी पृष्ठभूमि में भाऊराव देवरस, हरिभाऊ वाकणकर, नानाजी देशमुख, माधवराव देवले और योगेन्द्र जी जैसे मनीषियों का चिन्तन तथा अथक परिश्रम था। १९५४ से संस्कार भारती की परिकल्पना विकसित होती गयी और १९८१ में लखनऊ में इसकी बिधिवत स्थापना हुई। १९८८ में फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी (रंगभरी एकादशी) को मीरजापुर इकाई का गठन किया गया। सा कला या विमुक्तये अर्थात् "कला वह है जो बुराइयों के बन्धन काटकर मुक्ति प्रदान करती है" के घोष-वाक्य के साथ आज देशभर में संस्कार भारती की १२०० से अधिक इकाइयाँ कार्य कर रही हैं। समाज के विभिन्न वर्गों में कला के द्वारा राष्ट्रभक्ति एवं योग्य संस्कार जगाने, विभिन्न कलाओं का प्रशिक्षण व नवोदित कलाकारों को प्रोत्साहन देकर इनके माध्यम से सांस्कृतिक प्रदूषण रोकने के उद्देश्य से संस्कार भारती कार्य कर रही है। १९९० से संस्कार भारती के वार्षिक अधिवेशन कला साधक संगम के रूप में आयोजित किये जाते हैं जिनमें संगीत, नाटक, चित्रकला, काव्य, साहित्य और नृत्य विधाओं से जुड़े देशभर के स्थापित व नवोदित कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। भारतीय संस्कृति के उत्कृष्ट मूल्यों की प्रतिष्ठा करने की दृष्टि से राष्ट्रीय गीत प्रतियोगिता, कृष्ण रूप-सज्जा प्रतियोगिता, राष्ट्रभावना जगाने वाले नुक्कड़ नाटक, नृत्य, रंगोली, मेंहदी, चित्रकला, काव्य-यात्रा, स्थान-स्थान पर राष्ट्रीय कवि सम्मेलन आदि बहुविध कार्यक्रमों का आयोजन संस्कार भारती द्वारा किया जाता है। संस्कार भारती प्रतिवर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा मनाये जाने वाले छह उत्सवों को भी मनाती है। .

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संस्कृत नाटक

संस्कृत नाटक (कोडियट्टम) में सुग्रीव की भूमिका संस्कृत नाटक रसप्रधान होते हैं। इनमें समय और स्थान की अन्विति नही पाई जाती। अपनी रचना-प्रक्रिया में नाटक मूलतः काव्य का ही एक प्रकार है। सूसन के लैंगर के अनुसार भी नाटक रंगमंच का काव्य ही नहीं, रंगमंच में काव्य भी है। संस्कृत नाट्यपरम्परा में भी नाटक काव्य है और एक विशेष प्रकार का काव्य है,..दृश्यकाव्य। ‘काव्येषु नाटकं रम्यम्’ कहकर उसकी विशिष्टता ही रेखांकित की गयी है। लेखन से लेकर प्रस्तुतीकरण तक नाटक में कई कलाओं का संश्लिष्ट रूप होता है-तब कहीं वह अखण्ड सत्य और काव्यात्मक सौन्दर्य की विलक्षण सृष्टि कर पाता है। रंगमंच पर भी एक काव्य की सृष्टि होती है विभिन्न माध्यमों से, कलाओं से जिससे रंगमंच एक कार्य का, कृति का रूप लेता है। आस्वादन और सम्प्रेषण दोनों साथ-साथ चलते हैं। अनेक प्रकार के भावों, अवस्थाओं से युक्त, रस भाव, क्रियाओं के अभिनय, कर्म द्वारा संसार को सुख-शान्ति देने वाला यह नाट्य इसीलिए हमारे यहाँ विलक्षण कृति माना गया है। आचार्य भरत ने नाट्यशास्त्र के प्रथम अध्याय में नाट्य को तीनों लोकों के विशाल भावों का अनुकीर्तन कहा है तथा इसे सार्ववर्णिक पंचम वेद बतलाया है। भरत के अनुसार ऐसा कोई ज्ञान शिल्प, विद्या, योग एवं कर्म नहीं है जो नाटक में दिखाई न पड़े - .

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संवाद सूक्त

संवाद सूक्त अर्थात वे सूक्त, जिनमें दो या दो से अधिक देवताओं, ऋषियों या किन्हीं और के मध्य वार्तालाप की शैली में विषय को प्रस्तुत किया गया हो। वेदों में विभिन्न सूक्तों के माध्यम से विभिन्न देवताओं की स्तुति तथा विभिन्न विषयों को प्रस्तुत किया गया है उनमें कुछ सूक्त संवाद-सूक्त के नाम से जाने जाते हैं प्रमुख संवाद सूक्त ऋग्वेद में प्राप्त होते हैं । संवाद सूक्तों की व्याख्या और तात्पर्य वैदिक विद्वानों का एक विचारणीय विषय रहा है; क्योंकि वार्तालाप करने वालों को मात्र व्यक्ति मानना सम्भव नहीं है। इन आख्यानों और संवादों में निहित तत्त्वों से उत्तरकाल में साहित्य की कथा और नाटक विधाओं की उत्पत्ति हुर्इ है। .

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संगीत नाटक अकादमी

संगीत नाटक अकादमी भारत सरकार द्वारा स्थापित भारत की संगीत एवं नाटक की राष्ट्रीय स्तर की सबसे बड़ी अकादमी है। इसका मुख्यालय दिल्ली में है। .

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सुय्या

सुय्या कश्मीरी भाषा के विख्यात साहित्यकार अली मोहम्मद लोण द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1972 में कश्मीरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सुंग वंश

सुंगवंश मौर्य वंश के अंतिम सम्राट् बृहद्रथ के प्रधान सेनापति पुष्यामित्र द्वारा प्रतिष्ठित एक प्राचीन राजवंश। ईसा से १८४ वर्ष पूर्व पुष्यमित्र सुंग ने बृहद्रथ को मारकर मौर्य साम्राज्य पर अपना अधिकार जमाया। यह राजा वैदिक या सनातनी धर्म का पक्का अनुयायी था, जिस समय पुष्यमित्र मगध के सिंहासन पर बैठा, उस समय साम्राज्य नर्मदा के किनारे तक था और उसके अंतर्गत आधुनिक बिहार, संयुक्त प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि थे। कलिंग के राजा खारवेल्ल तथा पंजाब और काबुल के यवन (यूनानी) राजा मिनांडर (बौद्ध मिलिंद) ने सुंग राज्य पर कई बार चढ़ाइयाँ की, पर वे हटा दिए गए। यवनों का जो प्रसिद्ध आक्रमण साकेत (अयोध्या) पर हुआ था, वह पुष्यामित्र के ही राजत्व काल में हुआ। पुष्यमित्र के समय का उसी के किसी सामंत या कर्मचारी का एक शिलालेख अभी हाल में अयोध्या में मिला है जो पालि लिपि में होने पर भी मुुुुख्यतया संस्कृत में है, यह लेख नागरीप्रचारिणी पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है इससे जान पड़ता है कि पुष्यामित्र कभी कभी साकेत (अयोध्या) में भी रहता था और वह उस समय एक समृद्धिशाली नगर था। पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र ने विदर्भ के राजा को परास्त करके दक्षिण में वरदा नदी तक अपने पिता के राज्य का विस्तार बढ़ाया। जैसा कालिदास के मालविकाग्निमित्र नाटक से प्रकट है, अग्निमित्र ने विदिशा को अपनी राजधानी बनाया था जो वेत्रवती और विदिशा नदी के संगम पर एक अत्यंत सुंदर पुरी थी। इस पुरी के खँडहर भिलसा (ग्वालियर) से थोड़ी दूर पर दूर तक फैले हुए हैं। चक्रवर्ती सम्राट् बनने की कामना से पुष्यामित्र ने इसी समय बड़ी धूमधाम से अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया। इस यज्ञ के समय महाभाष्यकार पतंजलि जी विद्यमान थे। अश्वरक्षा का भार पुष्यामित्र के पौत्र (अग्निमित्र के पुत्र) वसुमित्र को सौंपा गया जिसने सिंधु नदी के किनारे यवनों को परास्त किया। पुष्यमित्र के समय में वैदिक या सनातन धर्म का फिर से उत्थान हुआ और बौद्ध धर्म दबने लगा। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार पुष्यमित्र ने बौद्धों पर उनकी यवन प्रेमी राजद्रोही, देशद्रोही एवं जनद्रोही प्रवृत्तियों के कारण बड़ा अत्याचार किया और वे देेेेशद्रोही धर्मद्रोही विलासी बौद्ध राज्य छोड़कर भागने लगे। ईसा से १४८ वर्ष पहले पुष्यमित्र की मृत्यु हुई और उसका पुत्र अग्निमित्र सिंहासन पर बैठा। उसके पीछे पुष्यमित्र का भाई सुज्येष्ठ और फिर अग्निमित्र का पुत्र वसुमित्र गद्दी पर बैठा। फिर धीरे धीरे इस वंश का प्रताप घटता गया और वसुदेव ने विश्वासघात करके 'कण्व' नामक ब्राह्मण राजवंश की प्रतिष्ठा की। श्रेणी:भारत का प्राचीन इतिहास श्रेणी:भारत के राजवंश.

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स्वदेश दीपक

स्वदेश दीपक (१९४२ -) एक भारतीय नाटककार, उपन्यासकार और लघु कहानी लेखक है। उन्होंने १५ से भी अधिक प्रकाशित पुस्तके लिखी हैं। स्वदेश दीपक हिंदी साहित्यिक परिदृश्य पर १९६० के दशक के मध्य से सक्रिय है। उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की थी। छब्बीस साल उन्होंने अम्बाला के गांधी मेमोरियल कालेज मे अंग्रेजी साहित्य पढ़ाया। उन्हें संगीत नाटक अकादमी सम्मान (२००४) से सम्मानिय किया गया। वे २ जून २००६ को, सुबह की सैर के लिए निकले और आज तक वापस नही आए। .

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स्वप्नवासवदत्ता

स्वप्नवासवदत्ता (वासवदत्ता का स्वप्न), महाकवि भास का प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है। इसमें छः अंक हैं। भास के नाटकों में यह सबसे उत्कृष्ट है। क्षेमेन्द्र के बृहत्कथामंजरी तथा सोमदेव के कथासरित्सागर पर आधारित यह नाटक समग्र संस्कृतवांमय के दृश्यकाव्यों में आदर्श कृति माना जाता है। भास विरचित रूपकों में यह सर्वश्रेष्ठ है। वस्तुतः यह भास की नाट्यकला का चूडान्त निदर्शन है। यह छः अंकों का नाटक है। इसमें प्रतिज्ञायौगन्धारायण से आगे की कथा का वर्णन है। इस नाटक का नामकरण राजा उदयन के द्वारा इइस्वप्न में वासवदत्ता के दर्शन पर आधारित है। स्वप्न वाला दृश्य संस्कृत नाट्य साहित्य में अपना विषेष स्थान रखता है। यह नाटक नाट्यकला की सर्वोत्तम परिणिति है। वस्तु, नेता एवं रस - तीनों ही दृष्टि से यह उत्तम कोटि का है। नाटकीय संविधान, कथोपकथन, चरित्र-चित्रण, प्रकृति वर्णन तथा रसों का सुन्दर सामन्जस्य इस नाटक में पूर्ण परिपाक को प्राप्त हुये हैं। मानव हृदय की सूक्ष्मातिसूक्ष्म भावदशाओं का चित्रण इस नाटक में सर्वत्र देखा जा सकता है। नाटक का प्रधान रस श्रृंगार है तथा हास्य की भी सुन्दर उद्भावना हुई है। .

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स्वरागिनी - जोड़ें रिश्तों के सुर

स्वरागिनी - जोड़ें रिश्तों के सुर एक भारतीय हिन्दी धारावाहिक है, जो कलर्स पर 2 मार्च 2015 से सोमवार से शुक्रवार प्रसारित हो रहा है। यह रात 9:30 बजे देता है। इस धारावाहिक के निर्माता रश्मि शर्मा हैं। .

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स्वामी अछूतानन्द

स्वामी अछूतानन्द(1879 - 1933) दलित चेतना प्रसारक साहित्यकार तथा समाजसुधारक थे। उनका मूल नाम 'हीरालाल' था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ था। उन्होने 'आदि-हिन्दू' आन्दोलन चलाया। .

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सूत्रधार

सूत्रधार नाटक के सभी सूत्र अपने हाथों में धारण करता है। वही नाटक का प्रारंभ करता है और वही अंत भी करता है। कभी कभी नाटक के बीच में भी उसकी उपस्थिति होती है। कभी कभी वह मंच के पीछे अर्थात नेपथ्य से भी नाटक का संचालन करता है। भारतीय रंगपरंपरा में सूत्रधार को अपने नाम के अनुरूप महत्व प्राप्त है। भारतीय समाज में संसार को रंगमंच, जीवन को नाट्य, मनुष्य या जीव को अभिनेता और ईश्वर को सूत्रधार कहा जाता है। यह माना जाता है कि ईश्वर ही वह सूत्रधार है, जिसके हाथ में सारे सूत्र होते हैं और वह मनुष्य या जीव रूपी अभिनेता को संसार के रंगमंच पर जीवन के नाट्य में संचालित करता है। सूत्रधार की यह नियामक भूमिका हमारी रंगपरंपरा में स्पष्ट देखने को मिलती है। वह एक शक्तिशाली रंगरूढ़ि के रूप में संस्कृत रंगमंच पर उपलब्ध रहा है। पारंपारिक नाट्यरूपों के निर्माण और विकास में भी सूत्रधार के योगदान को रेखांकित किया जा सकता है। आधुनिक रंगकर्म के लिए सूत्रधार अनेक रंगयुक्तियों को रचने में सक्षम है, जिसके कारण रंगमंच के नए आयाम सामने आ सकते हैं। यह एक ऐसा रूढ़ चरित्र है, जिसे बार-बार आविष्कृत करने का प्रयास किया गया है और आज भी वह नई रंगजिज्ञासा पैदा करने में समर्थ है। वह अभिनेता, दर्शक और नाटक के बीच सूत्र बनाए रखने का महत्वपूर्ण काम करता है। सूत्रधार के सूत्र संस्कृत रंगपरंपरा से गहरे जुड़े हुए हैं। वहाँ इसे संपूर्ण अर्थ का प्रकाशक, नांदी के पश्चात मंच पर संचरण करने वाला पात्र तथा शिल्पी कहा गया है। सूचक और बीजदर्शक के रूप में भी सूत्रधार को मान्यता मिली है। सूत्रभृत, सूत्री और सूत्रकृत आदि नामों से भी यह संबोधित किया जाता रहा है। 'भाव' का संबोधन भी इसे मिला है। अमरकोष 'भाव' को विद्वान का पर्याय मानता है। नाट्याचार्य भी सूत्रधार के पर्याय के रूप में प्रयुक्त होता रहा है। पर्याय के रूप में प्रयुक्त होने वाले सूत्रधार के विविध नामों के भीतर छिपे गुणों के आधार पर लक्षणग्रंथों और शास्त्रों में सूत्रधार की विवेचना होती रही है। नाट्यशास्त्र में भरत मुनि सूत्रधार को भावयुक्त गीतों, वाद्य तथा पाठ्य के सूत्रों का ज्ञाता मानते हैं और उपदेष्टा भी कहते हैं। नाट्याचार्य की उपाधि उसे उपदेष्टा होने के कारण प्राप्त हुई। प्राचीन आचार्यों ने सूत्रधार के लक्षणों की विवेचना करते हुए उसे 'संगीत सर्वस्व' भी माना है। नृत्य, नाट्य और कथा के सूत्रों को आपस में गूँथने के कारण भी उसे सूत्रधार की संज्ञा दी गई। वह प्रस्तुत किए जाने वाले काव्य (रूपक) की वस्तु, नेता और रस को सूत्र रूप में सूचित करता है। नायक और कवि (रूपककार या नाटककार) तथा वस्तु के वैशिष्ट्य को भी सूत्रबद्ध करता है। वह प्रसाधन में दक्ष (रंगप्रसाधन प्रौढः) होता है। रूपक की प्रस्तावना को उपस्थापित करने वाला यह चरित्र सभी अभिनेताओं का प्रधान माना गया है। सूत्रधार के स्वरूप का विश्लेषण करते हुए नाट्यशास्त्र के आचार्य मातृगुप्त उसे चार प्रकार के प्रकाश में निष्णात, अनेक भाषाओं का ज्ञाता, विविध प्रकार के भाषणों (संवादों) का तत्वज्ञ, नीतिशास्त्र वेत्ता, वेशभूषा का जानकार, समाज का दीर्घदर्शी, गतिप्रचार जानने वाला, रसभाव विशारद, नाट्य-प्रयोग तथा विविध शिल्प कलाओं में दक्ष, छंदोविधान का मर्मज्ञ, शास्त्रों का पंडित, गीतों के लिए लय-ताल का ज्ञाता और दूसरों को शिक्षित करने में निपुण माना है। प्राचीन आचार्य शांतकर्णि सूत्रधार के लक्षणों को प्रतिपादित करते हुए अनुष्ठान (रंग अनुष्ठान) को प्रयोग का सूत्र और उसे धारण करने वाले को सूत्रधार मानते हैं। हालाँकि सूत्रधार की भूमिका को किंचित संकुचित करते हुए शांतकर्णि मानते हैं कि वह नाटक में कोई भूमिका नहीं करता, अतः वह बाह्य-पात्र है। आचार्य कोहल यह माँग करते हैं कि सूत्रधार को नांदी संबोधित किया जाना चाहिए क्योंकि वह नांदी पाठ करता है। भास उसे प्रस्तावना, प्रस्तुति और समापन-तीनों का नियामक मानते हैं। .

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सेठ गोविंद दास

सेठ गोविंददास (1896 – 1974) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सांसद तथा हिन्दी के साहित्यकार थे। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६१ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी के वे प्रबल समर्थक थे। सेठ गोविंददास हिन्दी के अनन्य साधक, भारतीय संस्कृति में अटल विश्वास रखने वाले, कला-मर्मज्ञ एवं विपुल मात्रा में साहित्य-रचना करने वाले, हिन्दी के उत्कृष्ट नाट्यकार ही नहीं थे, अपितु सार्वजनिक जीवन में अत्यंत स्वच्छ, नीति-व्यवहार में सुलझे हुए, सेवाभावी राजनीतिज्ञ भी थे। सन् १९४७ से १९७४ तक वे जबलपुर से सांसद रहे। वे महात्मा गांधी के निकट सहयोगी थे। उनको दमोह में आठ माह का कारावास झेलना पड़ा था जहाँ उन्होने चार नाटक लिखे- "प्रकाश" (सामाजिक), "कर्तव्य" (पौराणिक), "नवरस" (दार्शनिक) तथा "स्पर्धा" (एकांकी)। .

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सेवन डेज़ (टीवी शृंखला)

सेवन डेज़ (Seven Days) या जिसे ७ डेज़ (7 Days) भी लिखा जाता है, एक काल्पनिक विज्ञान पर आधारित टेलिविज़न धारावाहिक है जो समय यात्रा के सिद्धांत पर रची गई है। इसका निर्माण युपीएन ने १९९८ से २००१ के बिच किया था। इसका प्रसारण स्लेयूथ चैनल ने २ अगस्त २००९ से इसका पुनः प्रसारण शुरू किया है। .

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सेक्स एंड द सिटी

सेक्स एंड द सिटी (Sex and the City) एक अमेरिकी हास्य-ड्रामा टेलीविजन शृंखला है जिसकी रचना डेरेन स्टार ने की व निर्माण एचबीओ ने किया। इसका प्रसारण १९९८ से २००४ के बिच किया गया व इसके मुख्य प्रसारण में कुल चौरानवे प्रकरण थे। इसके छः साल के प्रसारण में इसे कई निर्मातओं, लेखकों व निर्देशकों का सहकार्य मिला जिनमे मुख्यतः माइकल पैट्रिक किंग की मदद उल्लेखनीय है। न्यू यॉर्क शहर में घटित व चित्रित व कैंडेस बुश्नेल द्वारा लिखित इसी नाम के उपन्यास पर आधारित यह कार्यक्रम चार औरतों के समूह के जीवन पर प्रकाश डालता है, जिनमे से तिन अपनी तीस की उम्र व एक चालीस की उम्र की है, जो अपने अलग व्यवहार व बदलते सेक्स जीवन के बावजूद एक दूसरे से सारी बाते बांटती है। इसमें सराह जेसिका पार्कर, किम केत्रल, क्रिस्टिन डेविस और सिंथिया निक्सन मुख्य भूमिकाओं में है। यह शृंखला अनेक कहानियों के साठ सम्भोग, सम्भोग जनित बीमारियाँ, सुरक्षित सम्भोग व महिलाओं से सम्बंधित घटनाओं पर ध्यान देती है और मित्रता व रिश्तों के बिच अंतर को दर्शाती है। इस शृंखला को काफ़ी सराहा गया है और इसके विषय व पात्रों की समीक्षा की गई है। इसके साथ ही इसे दो फ़िल्मों सेक्स एंड द सिटी (२००८) व उसका अगला भाग सेक्स एंड द सिटी २ (२०१०) में परिवर्तित किया जा चूका है। अपने ५४ एमी पुरस्कार नामांकनो में से इसे ७ में, २४ गोल्डन ग्लोब पुरस्कार नामांकनो में से ८ में और ११ स्क्रीन एक्टर्स गिल्ड अवार्ड्स नामांकनो में से ३ में विजय प्राप्त हुई है। .

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सीता जोस्यम

सीता जोस्यम तेलुगू भाषा के विख्यात साहित्यकार वी. आर. नार्ला द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1980 में तेलुगू भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सीआईडी (धारावाहिक)

सीआईडी सोनी चैनल पर प्रसारित होने वाला हिन्दी भाषा का एक धारावाहिक है, जिसे भारत का सबसे लंबा चलने वाला धारावाहिक होने का श्रेय प्राप्त है। अपराध व जासूसी शैली पर आधारित इस धारावाहिक में शिवाजी साटम, दयानन्द शेट्टी और आदित्य श्रीवास्तव मुख्य किरदार निभा रहे हैं। इसके सर्जक, निर्देशक और लेखक बृजेन्द्र पाल सिंह हैं। इसका निर्माण फायरवर्क्स नामक कंपनी ने किया है जिसके संस्थापक बृजेन्द्र पाल सिंह और प्रदीप उपूर हैं। २१ जनवरी १९९८ से शुरु होकर यह धारावाहिक अब तक लगातार चल रहा है। इसका प्रसारण प्रत्येक शनिवार और रविवार को रात १० बजे होता है। इसका पुनः प्रसारण सोनी पल चैनल पर रात ९ बजे होता है जिसमें इसके पुराने प्रकरण दिखाये जाते हैं। इस धारावाहिक ने २१ जनवरी २०१८ को अपने प्रसारण के २० वर्ष पूर्ण किये और २१वें वर्ष में प्रवेश किया। इससे पहले, २७ सितम्बर २०१३ को इस धारावाहिक ने अपनी १०००वीं कड़ी पूरी की। इस धारावाहिक को कई अन्य भाषाओं में भी भाषांतरित किया गया है। .

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हरि नारायण आपटे

हरि नारायण आपटे हरि नारायण आपटे (१८६४-१९१९ ई.) मराठी के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कवि, नाटककार थे। .

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हास्य रस तथा उसका साहित्य

जैसे जिह्वा के आस्वाद के छह रस प्रसिद्ध हैं उसी प्रकार हृदय के आस्वाद के नौ रस प्रसिद्ध हैं। जिह्वा के आस्वाद को लौकिक आनंद की कोटि में रखा गया है क्योंकि उसका सीधा संबंध लौकिक वस्तुओं से है। हृदय के आस्वाद को अलौकिक आनंद की कोटि में माना जाता है क्योंकि उसका सीधा संब .

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हिटलर दीदी

हिटलर दीदी (जेंरल दीदी भी कहा जनता है) एक भारतीय टेलीविजन नाटक ज़ी टीवी पर। .

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हिन्दी नाटक

हिंदी में नाटकों का प्रारंभ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। उस काल के भारतेन्दु तथा उनके समकालीन नाटककारों ने लोक चेतना के विकास के लिए नाटकों की रचना की इसलिए उस समय की सामाजिक समस्याओं को नाटकों में अभिव्यक्त होने का अच्छा अवसर मिला। जैसाकि कहा जा चुका है, हिन्दी में अव्यावसायिक साहित्यिक रंगमंच के निर्माण का श्रीगणेश आगाहसन ‘अमानत’ लखनवी के ‘इंदर सभा’ नामक गीति-रूपक से माना जा सकता है। पर सच तो यह है कि ‘इंदर सभा’ की वास्तव में रंगमंचीय कृति नहीं थी। इसमें शामियाने के नीचे खुला स्टेज रहता था। नौटंकी की तरह तीन ओर दर्शक बैठते थे, एक ओर तख्त पर राजा इंदर का आसन लगा दिया जाता था, साथ में परियों के लिए कुर्सियाँ रखी जाती थीं। साजिंदों के पीछे एक लाल रंग का पर्दा लटका दिया जाता था। इसी के पीछे से पात्रों का प्रवेश कराया जाता था। राजा इंदर, परियाँ आदि पात्र एक बार आकर वहीं उपस्थित रहते थे। वे अपने संवाद बोलकर वापस नहीं जाते थे। उस समय नाट्यारंगन इतना लोकप्रिय हुआ कि अमानत की ‘इंदर सभा’ के अनुकरण पर कई सभाएँ रची गई, जैसे ‘मदारीलाल की इंदर सभा’, ‘दर्याई इंदर सभा’, ‘हवाई इंदर सभा’ आदि। पारसी नाटक मंडलियों ने भी इन सभाओं और मजलिसेपरिस्तान को अपनाया। ये रचनाएँ नाटक नहीं थी और न ही इनसे हिन्दी का रंगमंच निर्मित हुआ। इसी से भारतेन्दु हरिश्चन्द्र इनको 'नाटकाभास' कहते थे। उन्होंने इनकी पैरोडी के रूप में ‘बंदर सभा’ लिखी थी। .

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हिन्दी पत्रिकाएँ

हिन्दी पत्रिकाएँ सामाजिक व्‍यवस्‍था के लिए चतुर्थ स्‍तम्‍भ का कार्य करती हैं और अपनी बात को मनवाने के लिए एवं अपने पक्ष में साफ-सूथरा वातावरण तैयार करने में सदैव अमोघ अस्‍त्र का कार्य करती है। हिन्दी के विविध आन्‍दोलन और साहित्‍यिक प्रवृत्तियाँ एवं अन्‍य सामाजिक गतिविधियों को सक्रिय करने में हिन्दी पत्रिकाओं की अग्रणी भूमिका रही है।; प्रमुख हिन्दी पत्रिकाएँ- .

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हिन्दी प्रदीप

हिन्दी प्रदीप, हिन्दी का प्रसिद्ध समाचार पत्र था। इसके सम्पादक बालकृष्ण भट्ट थे। हिंदी प्रदीप में नाटक, उपन्यास, समाचार और निबंध सभी छपते थे। हिंदी प्रदीप के मुखपृष्ठ पर लिखा था- प्रदीप से कई लेखकों का अभ्युदय हुआ। इनमें राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, आगम शरण, पंडित माधव शुक्ल, मदन मोहन शुक्ल, परसन और श्रीधर पाठक आदि थे। इनके अतिरिक्त बाबू रतन चंद्र, सावित्री देवी, महावीर प्रसाद द्विवेदी, जगदंबा प्रसाद उनके प्रभाव में थे। पुरुषोत्तम दास टंडन की प्रदीप में 12 रचनाएं प्रकाशित हुई। जो उन्होंने 1899 से लेकर 1905 के बीच लिखी थी। हिंदी प्रदीप में बहुत ही खरी बातें प्रकाशित होती थी। 1909 अप्रैल के चौथे अंक में माधव शुक्ल ने 'बम क्या है' नामक कविता लिखी जो अंग्रेज सरकार को नागवार लगी और उन्होंने पत्रिका पर तीन हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया। उस समय भट्ट जी के पास भोजन तक के पैसे नहीं थे, जमानत कहां से भरते। विवश होकर उन्हें पत्रिका बंद करनी पड़ी। .

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हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकायें

हिंदी की साहित्यिक पत्रिकाएँ, हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं के विकास और संवर्द्धन में उल्लेखनीय भूमिका निभाती रहीं हैं। कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध, नाटक, आलोचना, यात्रावृत्तांत, जीवनी, आत्मकथा तथा शोध से संबंधित आलेखों का नियमित तौर पर प्रकाशन इनका मूल उद्देश्य है। अधिकांश पत्रिकाओं का संपादन कार्य अवैतनिक होता है। भाषा, साहित्य तथा संस्कृति अध्ययन के क्षेत्र में साहित्यिक पत्रिकाओं का उल्लेखनीय योगदान रहा है। वर्तमान में प्रकाशित कुछ प्रमुख पत्रिकाओं की सूची निम्नवत है: .

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हिन्दी की सौ श्रेष्ठ पुस्तकें

चित्र:|350px|हिन्दी की सौ श्रेष्ठ पुस्तकें जयप्रकाश भारती की रचना है। इसमें सौ श्रेष्ठ हिन्दी पुस्तकों का प्रत्येक के लिये तीन-चार पृष्ठों में सकारात्मक परिचय दिया गया है। किताब में विवेचित अधिकतर पुस्तकें पुरस्कृत हैं और अपने विषय और प्रस्तुति में अनूठी हैं। इसमें स्वाधीनता से पहले की चौबीस और बाद की चौहत्तर पुस्तकों की चर्चा है। इस पुस्तक में हिन्दी के बाइस काव्यों और पच्चीस उपन्यासों पर चर्चा है। पुस्तक में रचनाओं का परिचय देते हुए लेखक की शब्द-संपदा, शैली और भाषा प्रवाह की झलक के लिए जहां-तहां उनकी कुछ पंक्तियां उद्धृत की हैं। हर पुस्तक का प्रथम प्रकाशन-वर्ष भी दिया है और पुस्तक को प्राप्त प्रमुख पुरस्कार-सम्मान का उल्लेख भी है। कृति-विशेष का परिचय देने के बाद लेखक की कुछ अन्य पुस्तकों का उल्लेख भी अंत में किया गया है। .

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हिंदोस्ता हमारा

हिंदोस्ता हमारा कमलेश्वर का एक नाटक है। श्रेणी:कमलेश्वर श्रेणी:हिन्दी नाटक.

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हिंदी रंगमंच

हिंदी रंगमंच से अभिप्राय हिंदी और उसकी बोलियों के रंगमंच से है। हिन्दी रंगमंच की जड़ें रामलीला और रासलीला से आरम्भ होती हैं। हिन्दी रंगमंच पर संस्कृत नाटकों का भी प्रभाव है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र हिन्दी रंगमंच के पुरोधा हैं। .

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हैमलेट

हैमलेट (Hamlet) शेक्सपियर का एक दु:खांत नाटक है, जिसका अभिनय सर्वप्रथम सन् १६०३ ई. तथा प्रकाशन सन् १६०४ ई. के लगभग हुआ था। .

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हैरल्ड पिंटर

हैरल्ड पिंटर हैरल्ड पिंटर नोबेल पुरस्कार विजेता और मशहूर ब्रितानी नाटककार थे। उनका २५ दिसम्बर को ७८ वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे लिवर कैंसर से पीड़ित थे। है‍रल्ड पिंटर का जन्म लंदन में एक यहूदी टेलर के घर १० अक्टूबर १९३० को हुआ था। उनका पहला नाटक था 'द रूम' जो उन्होंने 1957 में लिखा था। उन्हें २००५ में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से नवाज़ा गया था। उन्होंने ३० से ज़्यादा नाटक लिखे जिनमें द केयरटेकर, द होम कमिंग और द डंब वेटर शामिल है। उन्होंने कई फ़िल्मों और टीवी नाटकों के लिए पटकथा लेखन भी किया है जिसमें द फ़्रेंच लेफ़्टिनेंट वूमन शामिल है। हैरल्ड पिंटर को न सिर्फ़ उनके साहित्य के लिए बल्कि अपने राजनीतिक विचारों को खुलकर प्रकट करने के लिए जाना जाता रहा है। इराक़ के ख़िलाफ़ लड़ाई छेड़ने का उन्होंने जमकर विरोध किया था। .

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हैरी मुलिश

हैरी मुलिश (सन् २०१० में) हैरी कुर्त विक्तर मुलिश (Harry Kurt Victor Mulisch) (29 जुलाई 1927 – 30 अक्टूबर 2010) डच लेखक एवं साहित्यकार थे। उन्होने ३० से अधिक उपन्यास, नाटक, निबन्ध, कविताएँ एवं दार्शनिक लेख लिखे। इनकी कृतियों का बीसों भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। विश्वयुद्धोत्तर डच लेखन में ड्ब्ल्यू एफ हर्मन्स, गेराल्ड रिव एवं मुलिश को सम्मिलित रूप से 'महान तिकड़ी' कहा जाता है। .

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हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन

हैंस अंडर्सन हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन (Hans Christian Andersen; २ अप्रैल १८०५ - ४ अगस्त १८७५) डेनमार्क के एक प्रसिद्ध लेखक एवं कवि थे। वे बच्चों की कहानियों के लिये प्रसिद्ध हैं। अपने जीवन में विश्व भर के बच्चों का मनोरंजन करने के लिये वे प्रसिद्ध थे। उनकी कविताएँ एवं कहानियाँ विश्व की १५० से अधिक भाषाओं में अनुदित हुई हैं। इनकी कृतियों को लेकर चलचित्र, नाटक, एवं एनिमेटेड फिल्में बनी हैं। .

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जमादार किस्‍कू

जमादार किस्‍कू संताली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक माला मुदम के लिये उन्हें सन् 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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जयप्रकाश पंड्या ज्योतिपुंज

जयप्रकाश पंड्या ज्योतिपुंज राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक कंकू कबंध के लिये उन्हें सन् 2000 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1890 - 15 नवम्बर 1937)अंतरंग संस्मरणों में जयशंकर 'प्रसाद', सं०-पुरुषोत्तमदास मोदी, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी; संस्करण-2001ई०,पृ०-2(तिथि एवं संवत् के लिए)।(क)हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास, भाग-10, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी; संस्करण-1971ई०, पृ०-145(तारीख एवं ईस्वी के लिए)। (ख)www.drikpanchang.com (30.1.1890 का पंचांग; तिथ्यादि से अंग्रेजी तारीख आदि के मिलान के लिए)।, हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और कामायनी तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया। बाद के प्रगतिशील एवं नयी कविता दोनों धाराओं के प्रमुख आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीकृति दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ कि खड़ीबोली हिन्दी काव्य की निर्विवाद सिद्ध भाषा बन गयी। आधुनिक हिन्दी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है। वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिंदी को गौरवान्वित होने योग्य कृतियाँ दीं। कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के प्रमुख स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं; नाटक लेखन में भारतेंदु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी पाठक न केवल चाव से पढ़ते हैं, बल्कि उनकी अर्थगर्भिता तथा रंगमंचीय प्रासंगिकता भी दिनानुदिन बढ़ती ही गयी है। इस दृष्टि से उनकी महत्ता पहचानने एवं स्थापित करने में वीरेन्द्र नारायण, शांता गाँधी, सत्येन्द्र तनेजा एवं अब कई दृष्टियों से सबसे बढ़कर महेश आनन्द का प्रशंसनीय ऐतिहासिक योगदान रहा है। इसके अलावा कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई यादगार कृतियाँ दीं। विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करुणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन। ४८ वर्षो के छोटे से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ की। उन्हें 'कामायनी' पर मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था। उन्होंने जीवन में कभी साहित्य को अर्जन का माध्यम नहीं बनाया, अपितु वे साधना समझकर ही साहित्य की रचना करते रहे। कुल मिलाकर ऐसी बहुआयामी प्रतिभा का साहित्यकार हिंदी में कम ही मिलेगा जिसने साहित्य के सभी अंगों को अपनी कृतियों से न केवल समृद्ध किया हो, बल्कि उन सभी विधाओं में काफी ऊँचा स्थान भी रखता हो। .

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जर्मन भाषा का साहित्य

जर्मन साहित्य, संसार के प्रौढ़तम साहित्यों में से एक है। जर्मन साहित्य सामान्यत: छह-छह सौ वर्षों के व्यवधान (600, 1200, 1800 ई.) में विभक्त माना जाता है। प्राचीन काल में मौखिक एवं लिखित दो धाराएँ थीं। ईसाई मिशनरियों ने जर्मनों को रुने (Rune) वर्णमाला दी। प्रारंभ में (900 ई.) ईसामसीह पर आधारित साहित्य (अनुवाद एवं चंपू) रचा गया। प्रारंभ में वीरकाव्य (एपिक) मिलते हैं। स्काप्स का "डासहिल्डे ब्रांडस्ल्डि", (पिता पुत्र के बीच मरणांतक युद्धकथा) जर्मन बैलेड साहित्य की उल्लेख्य कृति है। ओल्ड टेस्टामेंट के अनेक अनुवाद हुए। जर्मन साहित्य के विभिन्न काल ImageSize .

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ज़लज़लों

ज़लज़लों सिन्धी भाषा के विख्यात साहित्यकार श्याम जयसिंघाणी द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1998 में सिन्धी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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जगद्गुरु रामभद्राचार्य ग्रंथसूची

जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य (जगद्गुरु रामभद्राचार्य अथवा स्वामी रामभद्राचार्य के रूप में अधिक प्रसिद्ध) चित्रकूट धाम, भारत के एक हिंदू धार्मिकनेता, शिक्षाविद्, संस्कृतविद्वान, बहुभाषाविद, कवि, लेखक, टीकाकार, दार्शनिक, संगीतकार, गायक, नाटककार और कथाकलाकार हैं। उनकी रचनाओं में कविताएँ, नाटक, शोध-निबंध, टीकाएँ, प्रवचन और अपने ग्रंथों पर स्वयं सृजित संगीतबद्ध प्रस्तुतियाँ सम्मिलित हैं। वे ९० से अधिक साहित्यिक कृतियों की रचना कर चुके हैं, जिनमें प्रकाशित पुस्तकें और अप्रकाशित पांडुलिपियां, चार महाकाव्य,संस्कृत और हिंदी में दो प्रत्येक। तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस पर एक हिंदी भाष्य,अष्टाध्यायी पर पद्यरूप में संस्कृत भाष्य और प्रस्थानत्रयी शास्त्रों पर संस्कृत टीकाएँ शामिल हैं।दिनकर २००८, प्रप्र.

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जगदीशचंद्र माथुर

जगदीशचंद्र माथुर (जन्म १६ जुलाई, १९१७ -- १९७८) हिंदी के लेखक एवं नाटककार थे। वे उन साहित्यकारों में से हैं जिन्होंने आकाशवाणी में काम करते हुए हिन्दी की लोकप्रयता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। रंगमंच के निर्माण, निर्देशन, अभिनय, संकेत आदि के सम्बन्ध में आपको विशेष सफलता मिली है। परिवर्तन और राष्ट्र निर्माण के ऐसे ऐतिहासिक समय में जगदीशचंद्र माथुर, आईसीएस, ऑल इंडिया रेडियो के डायरेक्टर जनरल थे। उन्होंने ही 'एआईआर' का नामकरण आकाशवाणी किया था। टेलीविज़न उन्हीं के जमाने में वर्ष १९५९ में शुरू हुआ था। हिंदी और भारतीय भाषाओं के तमाम बड़े लेखकों को वे ही रेडियो में लेकर आए थे। सुमित्रानंदन पंत से लेकर दिनकर और बालकृष्ण शर्मा नवीन जैसे दिग्गज साहित्यकारों के साथ उन्होंने हिंदी के माध्यम से सांस्कृतिक पुनर्जागरण का सूचना संचार तंत्र विकसित और स्थापित किया था। जगदीश चंद्र माथुर- उपन्यास --- यादों का पहाड़,आधा पुल,मुठ्ठी भर कांकर,कभी न छोड़ें खेत,धरती धन न अपना .

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जगन्नाथ प्रसाद 'मिलिन्द'

जगन्नाथ प्रसाद 'मिलिन्द' (1907-1986) हिन्दी के कवि एवं नाटककार थे। जगन्नाथप्रसाद 'मिलिंद' का जन्म ग्वालियर के मुरार में हुआ था। उच्च शिक्षा काशी में हुई। आप हिंदी, उर्दू, बंगला, मराठी, गुजराती, संस्कृत और अंग्रेजी के ज्ञाता थे। इन्होंने शांति निकेतन तथा महिला आश्रम, वर्धा में अध्यापन किया एवं भारत के स्वतंत्रता आंदोलन तथा राजनीति में भाग लिया। श्री जगन्नाथ प्रसाद "मिलिंद" ने राष्ट्र के यौवन को बलि-पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा दी- .

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जुलियस सीजर (नाटक)

जूलियस सीज़र अंग्रेजी भाषा का एक दुःखान्त नाटक है। शेक्सपियर ने इसे अपने साहित्यिक जीवन के तीसरे काल सन् 1601 से 1604 ई. के बीच लिखा था, तथा उसमें निराशा, वेदना और तिक्तता अधिक मिलती है। .

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जैन दर्शन

जैन दर्शन एक प्राचीन भारतीय दर्शन है। इसमें अहिंसा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। जैन धर्म की मान्यता अनुसार 24 तीर्थंकर समय-समय पर संसार चक्र में फसें जीवों के कल्याण के लिए उपदेश देने इस धरती पर आते है। लगभग छठी शताब्दी ई॰ पू॰ में अंतिम तीर्थंकर, भगवान महावीर के द्वारा जैन दर्शन का पुनराव्रण हुआ । इसमें वेद की प्रामाणिकता को कर्मकाण्ड की अधिकता और जड़ता के कारण मिथ्या बताया गया। जैन दर्शन के अनुसार जीव और कर्मो का यह सम्बन्ध अनादि काल से है। जब जीव इन कर्मो को अपनी आत्मा से सम्पूर्ण रूप से मुक्त कर देता हे तो वह स्वयं भगवान बन जाता है। लेकिन इसके लिए उसे सम्यक पुरुषार्थ करना पड़ता है। यह जैन धर्म की मौलिक मान्यता है। सत्य का अनुसंधान करने वाले 'जैन' शब्द की व्युत्पत्ति ‘जिन’ से मानी गई है, जिसका अर्थ होता है- विजेता अर्थात् वह व्यक्ति जिसने इच्छाओं (कामनाओं) एवं मन पर विजय प्राप्त करके हमेशा के लिए संसार के आवागमन से मुक्ति प्राप्त कर ली है। इन्हीं जिनो के उपदेशों को मानने वाले जैन तथा उनके साम्प्रदायिक सिद्धान्त जैन दर्शन के रूप में प्रख्यात हुए। जैन दर्शन ‘अर्हत दर्शन’ के नाम से भी जाना जाता है। जैन धर्म में चौबीस तीर्थंकर (महापुरूष, जैनों के ईश्वर) हुए जिनमें प्रथम ऋषभदेव तथा अन्तिम महावीर (वर्धमान) हुए। इनके कुछ तीर्थकरों के नाम ऋग्वेद में भी मिलते हैं, जिससे इनकी प्राचीनता प्रमाणित होती है। जैन दर्शन के प्रमुख ग्रन्थ प्राकृत (मागधी) भाषा में लिखे गये हैं। बाद में कुछ जैन विद्धानों ने संस्कृत में भी ग्रन्थ लिखे। उनमें १०० ई॰ के आसपास आचार्य उमास्वामी द्वारा रचित तत्त्वार्थ सूत्र बड़ा महत्वपूर्ण है। वह पहला ग्रन्थ है जिसमें संस्कृत भाषा के माध्यम से जैन सिद्धान्तों के सभी अंगों का पूर्ण रूप से वर्णन किया गया है। इसके पश्चात् अनेक जैन विद्वानों ने संस्कृत में व्याकरण, दर्शन, काव्य, नाटक आदि की रचना की। संक्षेप में इनके सिद्धान्त इस प्रकार हैं- .

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जूल्स वर्न

जूल्स वर्न जूल्स वर्न (Jules Verne) (8 फ़रवरी 1828 – 24 मार्च 1905) महान विज्ञान कथाकार का जन्मदिन है। जूल्स वर्न और सुप्रसिद्ध अंग्रेज विज्ञान कथाकार एच.जी.

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जॉन ड्राइडेन

जॉन ड्राइडेन जॉन ड्राइडेन (John Dryden; 9 अगस्त 1631 – 12 मई 1700) आंग्ल कवि, साहित्यिक समालोचक तथा नाटककार था। १६६८ में उसे राष्ट्रकवि (Poet Laureate) बनाया गया। .

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जी. सी. तोम्ब्रा

जी.

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घासीराम कोतवाल (नाटक)

घासीराम कोतवाल विजय तेंदुलकर द्वारा लिखित मराठी नाटक है। यह ब्राह्मणों के गढ़ पूना में रोजगार की तलाश में गए एक हिंदी भाषी ब्राह्मण घासीराम के त्रासदी की कहानी है। ब्राह्मणों से अपमानित घासीराम मराठा पेशवा नाना फड़नबीस से अपनी बेटी के विवाह का सौदा करता है और पूना की कोतवाली हासिल कर उन ब्राह्मणों से बदला लेता है। किंतु नाना उसकी बेटी की हत्या कर देता है। घासीराम चाहकर भी इसका बदला नहीं ले पाता। उल्टे नाना उसकी हत्या करवा देता है। इस नाटक के मूल मराठी स्वरूप का पहली बार प्रदर्शन 16 दिसंबर, 1972 को पूना में ‘प्रोग्रेसिव ड्रामाटिक एसोसिएशन’ द्वारा भरत नाट्य मन्दिर में हुआ। निर्देशक थे डॉ॰ जब्बार पटेल। .

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वत्सराज

वत्सराज संस्कृत नाटककार एवं कवि थे।कालिंजर के राजा परमार्दिदेव (११६३-१२०३) के शासन में यह मंत्री थे। .

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वयलर रामवर्मा

वयलर रामवर्मा या वयलर राम वर्मा (25 मार्च 1928 – 27 अक्टूबर 1975) मलयालम भाषा के कवि थे। यह मुख्य रूप से वयलर के नाम से जाने जाते थे। कलम तलवार की अपेक्षा शक्ति- युक्त और तेज़ है। इसका उत्तम उदाहरण है- साहित्य। मलयालम साहित्य के एक युग पुरुष थे- वयलार रामवर्मा। वयलार रामवर्मा मलयालम के सुप्रसिद्ध गानरचयिता थे। उन्होंने मलयालम में अनेक मार्मिक कविताएँ लिखी है। वे कवि एवं समाज सुधारक थे। समाज में प्रचलित अधंविश्वासों और कुरीतियों को दूर करने के लिए सदा ही उन्होंने अपनी कलम चलाई थी। वे आज भी जन हृदय में निर्भर है। .

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वाल्टर स्काट

वाल्टर स्कॉट सर वाल्टर स्काट (Sir Walter Scott, 1st Baronet, FRSE; १७७१ - १८३२ ई.) अंग्रेजी के प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यासकार, नाटककार तथा कवि थे। स्कॉट अंग्रेजी भाषा के प्रथम साहित्यकार थे जिन्हें अपने जीवनकाल में ही अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हो गयी थी। .

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वासवदत्ता

वासवदत्ता एक संस्कृत नाटक है। वासवदत्ता नामक राजकुमारी इसकी प्रमुख पात्र है। इसके रचयिता सुबन्धु हैं। .

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विदूषक

कूडियाट्टम् में विदूषक विदूषक, भारतीय नाटकों में एक हँसाने वाला पात्र होता है। मंच पर उसके आने मात्र से ही माहौल हास्यास्पद बन जाता है। वह स्वयं अपना एवं अपने परिवेश का मजाक उडाता है। उसके कथन एक तरफ हास्य को जन्म देते हैं और दूसरी तरफ उनमें कटु सत्य का पुट होता है। .

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विधा

विधा (फ्रेंच: जीनर / genre) का साधारण अर्थ प्रकार, किस्म, वर्ग या श्रेणी है। यह शब्द विविध प्रकार की रचनाओं को वर्ग या श्रेणी में बांटने से उस विधा के गुणधर्मो को समझने में सुविधा होती है। यह वैसे ही है जैसे जीवविज्ञान में जीवों का वर्गीकरण किया जाता है। साहित्य एवं भाषण में विधा शब्द का प्रयोग एक वर्गकारक (CATEGORIZER) के रूप में किया जाता है। किन्तु सामान्य रूप से यह किसी भी कला के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है। विधाओं की उपविधाएँ भी होती हैं। उदाहरण के लिये हम कहते हैं कि निबन्ध, गद्य की एक विधा है।. विधाएँ अस्पष्ट (vague) श्रेणीयाँ हैं और इनकी कोई निश्चित सीमा-रेखा नहीं होती। ये समय के साथ कुछ मान्यताओं के आधार पर इनकिइ पहचान निर्मित हो जाती है। .

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विन्सेंट जॉन पीटर सल्दान्हा

विन्सेंट जॉन पीटर सल्दान्हा (Vincent John Peter Saldanha; कन्नड: ವಿನ್ಸೆಂಟ್ ಜಾನ್ ಪೀಟರ್ ಸಲ್ದಂಹ; 9 जून् 1925 – 22 फरवरी 2000)) कोंकणी भाषा के साहित्यकार, नाटककार, उपन्यासकार और कवि थे। उन्होने कोंकणी साहित्य के प्रति अन्य महत्त्वपूर्ण योगदान दिए हैं। सल्दान्हा ने अपने हर लेखन रचना में अपने कैथलिक पहचान को अच्छे तरह से बनाया रखा था। वह अक्सर अपने ही जात के लोगों के बारे मे लिखते थे। वह 'खदप' या 'रॉक' नाम से लोकप्रीय थे। श्रेणी:कोंकणी साहित्यकार.

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विलियम शेक्सपीयर

विलियम शेक्सपीयर विलियम शेक्सपीयर (William Shakespeare; 23 अप्रैल 1564 (बपतिस्मा हुआ) – 23 अप्रैल 1616) अंग्रेजी के कवि, काव्यात्मकता के विद्वान नाटककार तथा अभिनेता थे। उनके नाटकों का लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हुआ है। शेक्सपियर में अत्यंत उच्च कोटि की सर्जनात्मक प्रतिभा थी और साथ ही उन्हें कला के नियमों का सहज ज्ञान भी था। प्रकृति से उन्हें मानो वरदान मिला था अत: उन्होंने जो कुछ छू दिया वह सोना हो गया। उनकी रचनाएँ न केवल अंग्रेज जाति के लिए गौरव की वस्तु हैं वरन् विश्ववांमय की भी अमर विभूति हैं। शेक्सपियर की कल्पना जितनी प्रखर थी उतना ही गंभीर उनके जीवन का अनुभव भी था। अत: जहाँ एक ओर उनके नाटकों तथा उनकी कविताओं से आनंद की उपलब्धि होती है वहीं दूसरी ओर उनकी रचनाओं से हमको गंभीर जीवनदर्शन भी प्राप्त होता है। विश्वसाहित्य के इतिहास में शेक्सपियर के समकक्ष रखे जानेवाले विरले ही कवि मिलते हैं। .

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विशाखदत्त

विशाखदत्त संस्कृत भाषा के सुप्रसिद्ध नाटककार थे। विशाखदत्त गुप्तकाल की विभूति थे। विशाखदत्त की दो अन्य रचनाओं- देवी चन्द्रगुप्तम्, तथा राघवानन्द नाटकम् - का भी उल्लेख मिलता है, किन्तु उनकी प्रसिद्धि का मूलाधार ‘मुद्राराक्षस’ ही है। इनकी रचनाऔ मैं रसो की प्रधानता होती थी श्रेणी:संस्कृत साहित्यकार.

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विष्णु प्रभाकर

विष्णु प्रभाकर (२१ जून १९१२- ११ अप्रैल २००९) हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक थे जिन्होने अनेकों लघु कथाएँ, उपन्यास, नाटक तथा यात्रा संस्मरण लिखे। उनकी कृतियों में देशप्रेम, राष्ट्रवाद, तथा सामाजिक विकास मुख्य भाव हैं। .

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विष्णु वामन शिरवाडकर

विष्णु वामन शिरवाडकर मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक नट सम्राट के लिये उन्हें सन् 1974 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित(मरणोपरांत) किया गया। .

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विष्णुधर्मोत्तर पुराण

विष्णुधर्मोत्तर पुराण एक उपपुराण है। इसकी प्रकृति विश्वकोशीय है। कथाओं के अतिरिक्त इसमें ब्रह्माण्ड, भूगोल, खगोलशास्त्र, ज्योतिष, काल-विभाजन, कूपित ग्रहों एवं नक्षत्रों को शान्त करना, प्रथाएँ, तपस्या, वैष्णवों के कर्तव्य, कानून एवं राजनीति, युद्धनीति, मानव एवं पशुओं के रोगों की चिकित्सा, खानपान, व्याकरण, छन्द, शब्दकोश, भाषणकला, नाटक, नृत्य, संगीत और अनेकानेक कलाओं की चर्चा की गयी है। यह विष्णुपुराण का परिशिष्‍ट माना जाता है। वृहद्धर्म पुराण में दी हुई १८ पुराणों की सूची में विष्णुधर्मोत्तर पुराण भी है। विष्णुधर्मोत्तर पुराण के 'चित्रसूत्र' नामक अध्याय में चित्रकला का महत्त्व इन शब्दों में बताया गया है- (अर्थ: कलाओं में चित्रकला सबसे ऊँची है जिसमें धर्म, अर्थ, काम एवम् मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः जिस घर में चित्रों की प्रतिष्ठा अधिक रहती है, वहाँ सदा मंगल की उपस्थिति मानी गई है।) .

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विष्णुप्रसाद राभा

विष्णुप्रसाद राभा (বিষ্ণুপ্ৰসাদ ৰাভা) असम के एक प्रसिद्ध साहित्यकार एवं संस्कृतिकर्मी थे। वे 'लोक संस्कृति आन्दोलन' के पक्षधर थे और इसलिए उन्होने शास्त्रीय एवं लोक संस्कृति पर बहुत ध्यान दिया। स्थानीय लोग उन्हें 'कलागुरु' कहते हैं। वे एक मेधावी विद्यार्थी थे किन्तु भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने के कारण उनकी शिक्षा अधूरी रह गयी। ब्रितानी पुलिस ने उन्हें बहुत सारी यातनाएँ दीं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में उनके नटरा नृत्य पर मुग्ध होकर तत्कालीन उपकुलपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने बिष्णुप्रसाद राभा को 'कलागुरु' की उपाधि दी थी। .

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विजय तेंडुलकर

विजय तेंडुलकर विजय तेंडुलकर (६ जनवरी १९२८ - १९ मई २००८) प्रसिद्ध मराठी नाटककार, लेखक, निबंधकार, फिल्म व टीवी पठकथालेखक, राजनैतिक पत्रकार और सामाजिक टीपकार थे। भारतीय नाट्य व साहित्य जगत में उनका उच्च स्थान रहा है। वे सिनेमा और टेलीविजन की दुनिया में पटकथा लेखक के रूप में भी पहचाने जाते हैं। .

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वजूद

वजूद 1998 की भारतीय हिन्दी फिल्म है। फिल्म में मुख्य भूमिकाओं में नाना पाटेकर और माधुरी दीक्षित शामिल हैं। इसका निर्देशन, कहानी लेखन और निर्माण एन चन्द्रा ने किया है। .

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वृन्दगान

बर्लिन में बच्चों का वृंदगान (सन् १९३२) वृन्दगान या कोरस (Chorus या Choir) दो अथवा दो से अधिक व्यक्तियों का सामूहिक रूप से गान अथवा सहगान मंडली। यह शब्द मूलत: यूनानी है और अंगरेजी के माध्यम से भारतीय भाषाओं में प्रविष्ट हुआ है तथा नाटक अथवा सार्वजनिक स्टेज पर सामूहिक रूप में किए जानेवाले गायन के लिये प्रयुक्त होता है। यूनानी भाषा में इस शब्द का प्रयोग संगीतयुक्त ऐसे धार्मिक नृत्यों के लिये होता था जो विशेष अवसरों अथवा त्योहारों पर किए जाते थे। शास्त्रीय संगीत में वृन्दगान की परंपरा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। ब्राह्मणों द्वारा मन्त्रों का सामूहिक उच्चारण, देवालय में सामूहिक प्रार्थना, कीर्तन, भजन, अथवा लोक में विभिन्न अवसरों पर गाये जाने वाले लोकगीत समूह गान या समवेत गान के अंतर्गत आते हैं।सभी वृन्दगानों का विषय प्रायः राष्ट्रीय, सामाजिक अथवा सांस्कृतिक होता है। पारंपरिक एकता, राष्ट्र के प्रति प्रेम, समाज की गौरवशाली परम्पराओं का उद्घोष वृन्दगान के द्वारा ही उद्घाटित होता है। .

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वृंदावनलाल वर्मा

वृन्दावनलाल वर्मा (०९ जनवरी, १८८९ - २३ फरवरी, १९६९) हिन्दी नाटककार तथा उपन्यासकार थे। हिन्दी उपन्यास के विकास में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने एक तरफ प्रेमचंद की सामाजिक परंपरा को आगे बढ़ाया है तो दूसरी तरफ हिन्दी में ऐतिहासिक उपन्यास की धारा को उत्कर्ष तक पहुँचाया है। इतिहास, कला, पुरातत्व, मनोविज्ञान, मूर्तिकला और चित्रकला में भी इनकी विशेष रुचि रही। 'अपनी कहानी' में आपने अपने संघर्षमय जीवन की गाथा कही है। .

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वैदिक व्याकरण

संस्कृत का सबसे प्राचीन (वेदकालीन) व्याकरण 'वैदिक व्याकरण' कहलाता है। यह पाणिनीय व्याकरण से कुछ भिन्न था। .

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वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति

वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति ये भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा रचित एक नाटक है। इस प्रहसन में भारतेंदु ने परंपरागत नाट्य शैली को अपनाकर मांसाहार के कारण की जाने वाली हिंसा पर व्यंग्य किया गया है। नाटक का आरम्भ नांदी के दोहा गायन के साथ होआ है - .

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वेणीसंहार

वेणीसंहारम्, भट्टनारायण द्वारा रचित प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है। भट्टनारायण ने महाभारत को 'वेणीसंहार' का आधार बनाया है। 'वेणी' का अर्थ है, स्त्रियों का केश अर्थात् 'चोटी' और 'संहार' का अर्थ है सजाना, व्यवस्थित करना या, गुंफन करना। वेणीसंहार नाटक को नाटयकला का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है और भटटनारायण को एक सफल नाटककार के रूप में स्मरण किया जाता है। नाट्यशास्त्र की नियमावली का विधिवत पालन करने के कारण नाटयशास्त्र के आचार्यों ने भटटनारायण को बहुत महत्त्व दिया है। दुःशासन, द्रौपदी के खुले हुए केश पकड़ के बलपूर्वक घसीटता हुआ द्युतसभा में लाता है, तभी द्रौपदी प्रतिज्ञा करती है कि जबतक दुःशासन के रक्त से अपने बालों को भिगोएगी नहीं तब तक अपने बाल ऐसे ही बिखरे हुए रखेगी। भट्टनारायण रचित इस नाटक के अंत में भीम दुःशासन का वध करके उसका रक्त द्रौपदी के खुले केश में लगाते हैं और चोटी का गुंफन करते हैं। इसी प्रसंग के आधार भट्ट नारायण ने इस नाटक का शीर्षक 'वेणीसंहार' रखा है। छः अंक के कथावस्तु वाले इस 'वेणीसंहार' नाटक की मुख्य और सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें महाभारत की सम्पूर्ण युद्धकथा को समाविष्ट किया गया है। 'वेणीसंहार' नाटक की दूसरी विशेषता तृतीय अंक का प्रसंग कर्ण और अश्वत्थामा का कलह है। नाटक का नायक दुर्योधन है, क्योंकि उसको लक्ष्य में रखकर समस्त घटनाएं चित्रित हैं। इसीलिए उसके दु:ख, पराभव और मृत्यु का वर्णन होने से यह एक दुःखान्त नाटक माना जाता है। कुछ विद्वान भीम को नाटक का नायक मानने के पक्ष में हैं, क्योंकि इसमें वीर रस की प्रधानता है तथा नाटक की कथा भीम की प्रतिज्ञाओं पर आधारित है। भीमसेन का चरित्र प्रभावशाली और आकर्षक है। उनके भाषणों से उनकी वीरता और पराक्रम का पता लगता है। उसमें आत्मविश्वास का अतिरेक है। अश्वत्थामा अपने गुणों को प्रकट किये बिना अपूर्ण व्यक्तित्व सा है। नाटककार निस्सन्देह घटना-संयोजन में अत्यन्त दक्ष हैं। उनके वर्णन सार्थक और स्वाभाविक हैं। नाटक का प्रधान रस, वीर है। गौड़ी रीति, ओज गुण और प्रभावी भाषा-उसकी अन्य विशेषताएं हैं। कर्ण का वक्तव्य देखिये- .

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वोल्टेयर

वोल्टेयर वोल्टेयर (21 नवम्बर 1694 30 मई 1778) फ्रांस का बौद्धिक जागरण (Enlightenment) के युग का महान लेखक, नाटककार एवं दार्शनिक था। उसका वास्तविक नाम "फ़्रांस्वा-मैरी आहुए" (François-Marie Arouet) था। वह अपनी प्रत्युत्पन्नमति (wit), दार्शनिक भावना तथा नागरिक स्वतंत्रता (धर्म की स्वतंत्रता एवं मुक्त व्यापार) के समर्थन के लिये भी विख्यात है वोल्टेयर ने साहित्य की लगभग हर विधा में लेखन किया। उसने नाटक, कविता, उपन्यास, निबन्ध, ऐतिहासिक एवं वैज्ञानिक लेखन और बीस हजार से अधिक पत्र और पत्रक (pamphlet) लिखे। यद्यपि उसके समय में फ्रांस में अभिव्यक्ति पर तरह-तरह की बंदिशे थीं फिर भी वह सामाजिक सुधारों के पक्ष में खुलकर बोलता था। अपनी रचनाओं के माध्यम से वह रोमन कैथोलिक चर्च के कठमुल्लापन एवं अन्य फ्रांसीसी संस्थाओं की खुलकर खिल्ली उड़ाता था। बौद्धिक जागरण युग के अन्य हस्तियों (मांटेस्क्यू, जॉन लॉक, थॉमस हॉब्स, रूसो आदि) के साथ-साथ वोल्टेयर के कृतियों एवं विचारों का अमेरिकी क्रान्ति तथा फ्रांसीसी क्रान्ति के प्रमुख विचारकों पर गहरा असर पड़ा था। .

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वी. आर. नार्ला

वी.

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खड्गविलास प्रेस

खड्गविलास छापाखाना, पटना का प्रसिद्ध प्रेस था। उन्नीसवीं सदी के उतरार्ध में पटना का वह प्रेस बिहार का गौरव था। उस प्रेस और प्रकाशन संस्था पर शोध करके डाक्टरेट की उपाधि हासिल करने वाले डॉ॰ धीरेंद्र नाथ सिंह लिखते हैं, ‘आधुनिक हिंदी साहित्य को उजागर करने में इस प्रेस के योगदान का ऐतिहासिक मूल्य है।’ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा विरचित नाटक सत्य हरिश्चन्द्र इसी प्रेस से छपा था। इसी नाटक को पढ़कर गांधीजी के जीवन में निर्णायक मोड़ आया था। अब वह प्रेस तो नहीं है, पर आधुनिक हिंदी को उस प्रेस का योगदान अद्भुत है। उत्तर प्रदेश के बलिया निवासी महाराजकुमार राम दीन सिंह ने सन् 1880 में पटना के बांकीपुर में खड्ग विलास प्रेस की स्थापना की थी। उन्होंने अपना जीवन शिक्षक के रूप में आरम्भ किया था तथा पाठ्य पुस्तकों और हिंदी पुस्तकों के अभाव ने उन्हें प्रकाशन व्यवसाय के लिए प्रेरित किया था। उन्होंने स्वयं पाठ्य पुस्तकें तैयार कीं और अन्य लोगों से पुस्तकें लिखवाईं। इन कृतियों का प्रकाशन खड्ग विलास प्रेस ने किया। भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र और उनके युग के लेखक यदि आधुनिक हिंदी साहित्य के निर्माता हैं तो निश्चय ही खड्ग विलास प्रेस और उसके संस्थापक को उनका एकमात्र प्रकाशक माना जाना उचित होगा। यदि महाराज कुमार राम दीन सिंह का सद्भाव और सहयोग न मिला होता तो भारतेंदु हरिश्चंद्र और उनके समकालीन साहित्यकारों को अपनी रचनाओं के व्यवस्थित प्रकाशन का इतना अच्छा सुयोग नहीं मिला होता।’ ‘इस प्रकाशन संस्थान ने भारतेंदु हरिश्चंद्र, पंडित प्रताप नारायण मिश्र, पंडित अम्बिका दत्त व्यास, पंडित शीतला प्रसाद त्रिपाठी, भारतीय सिविल सेवा में हिंदी के प्रतिष्ठापक फ्रेडरिक पिंकाट, आधुनिक हिंदी खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्य प्रियप्रवास के प्रणेता पंडित अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔंध’, पंडित दामोदर शास्त्री सप्रे, लाल खड्ग बहादुर मल्ल, शिव नंदन सहाय प्रभृति साहित्यकारों को प्रकाशकीय संरक्षण प्रदान किया और उनकी कृतियों के प्रकाशन पर मुक्तहस्त से व्यय किया।’ ‘हिंदी भाषी प्रदेशों में सबसे पहले बिहार प्रदेश में सन् 1835 में हिंदी आंदोलन शुरू हुआ था। इस अनवरत प्रयास के फलस्वरूप सन् 1875 में बिहार में कचहरियों और स्कूलों में हिंदी प्रतिष्ठित हुई, किंतु पाठ्य पुस्तकों का सर्वथा अभाव था। खड्ग विलास प्रेस ने विभिन्न विषयों में पाठ्य पुस्तकें तैयार करा कर इनका प्रकाशन किया। साहब प्रसाद सिंह, उमानाथ मिश्र, चण्डी प्रसाद सिंह, काली प्रसाद मिश्र, प्रेमन पांडेय प्रभृति लेखकों ने इस दिशा में सक्रिय रूप से सहयोग किया था। साहब प्रसाद सिंह की ‘भाषा सार’ नामक पुस्तक सन् 1884 से 1936 तक बिहार के स्कूलों और कालेजों में पढाई जाती रही। राम दीन सिंह का बचपन पटना जिले के तारणपुर गांव में बीता जहां उनके मामा का घर था। राम दीन सिंह के पुत्र सारंगधर सिंह भी एक बुद्धिजीवी राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी थे। वे सन् 1937 में डॉ॰ श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में बने मंत्रिमंडल में संसदीय सचिव थे। बाद में वे बिहार से संविधान सभा के सदस्य बने। उन्होंने 1952 से 1962 तक पटना को लोक सभा में प्रतिनिधित्व किया। .

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खेरवाल सोरेन

खेरवाल सोरेन संताली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक चेत रे चिकायेना के लिये उन्हें सन् 2007 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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गाब्रिएल दाँनुतस्यो

300px गाब्रिएल दाँनुतस्यो (Gabriele D'Annunzio; इतालवी उच्चारण:; 12 मार्च, 1863 – 01 मार्च 1938) इटली का लेखक, कवि, पत्रकार, नाटककार, तथा प्रथम विश्वयुद्ध का योद्धा त्था। १८८९ से १९१० तक इतालवी साहित्य में तथा १९१४ से १०२४ तक इटली के राजनीतिक जीवन में उसका प्रमुख स्थान था। उसको प्रायः इल वाटे (Il Vate .

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गिप्पी

गिप्पी सोनम नैर द्वारा निर्देशित एवं करण जौहर द्वारा निर्मित 2013 की हिन्दी नाटक फ़िल्म है, जो 10 मई 2013 को जारी की गयी है। फ़िल्म में रिया विज और ताह शाह फ़िल्म में मुख्य भूमिका में हैं। .

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गिरिजाकुमार माथुर

गिरिजा कुमार माथुर (२२ अगस्त १९१९ - १० जनवरी १९९४) का जन्म ग्वालियर जिले के अशोक नगर कस्बे में हुआ। वे एक कवि, नाटककार और समालोचक के रूप में जाने जाते हैं। उनके पिता देवीचरण माथुर स्कूल अध्यापक थे तथा साहित्य एवं संगीत के शौकीन थे। वे कविता भी लिखा करते थे। सितार बजाने में प्रवीण थे। माता लक्ष्मीदेवी मालवा की रहने वाली थीं और शिक्षित थीं। गिरिजाकुमार की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। उनके पिता ने घर ही अंग्रेजी, इतिहास, भूगोल आदि पढाया। स्थानीय कॉलेज से इण्टरमीडिएट करने के बाद १९३६ में स्नातक उपाधि के लिए ग्वालियरचले गये। १९३८ में उन्होंने बी.ए. किया, १९४१ में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में एम.ए. किया तथा वकालत की परीक्षा भी पास की। सन १९४० में उनका विवाह दिल्ली में कवयित्री शकुन्त माथुर से हुआ। गिरिजाकुमार की काव्यात्मक शुरुआत १९३४ में ब्रजभाषा के परम्परागत कवित्त-सवैया लेखन से हुई। वे विद्रोही काव्य परम्परा के रचनाकार माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन आदि की रचनाओं से अत्यधिक प्रभावित हुए और १९४१ में प्रकाशित अपने प्रथम काव्य संग्रह 'मंजीर' की भूमिका उन्होंने निराला से लिखवायी। उनकी रचना का प्रारम्भ द्वितीय विश्वयुद्ध की घटनाओं से उत्पन्न प्रतिक्रियाओं से युक्त है तथा भारत में चल रहे राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन से प्रभावित है। सन १९४३ में अज्ञेय द्वारा सम्पादित एवं प्रकाशित 'तारसप्तक' के सात कवियों में से एक कवि गिरिजाकुमार भी हैं। यहाँ उनकी रचनाओं में प्रयोगशीलता देखी जा सकती है। कविता के अतिरिक्त वे एकांकी नाटक, आलोचना, गीति-काव्य तथा शास्त्रीय विषयों पर भी लिखते रहे हैं। उनके द्वारा रचित मंदार, मंजीर, नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले आदि काव्य-संग्रह तथा खंड काव्य पृथ्वीकल्प प्रकाशित हुए हैं। भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद की साहित्यिक पत्रिका 'गगनांचल' का संपादन करने के अलावा उन्होंने कहानी, नाटक तथा आलोचनाएँ भी लिखी हैं। उनका ही लिखा एक भावान्तर गीत "हम होंगे कामयाब" समूह गान के रूप में अत्यंत लोकप्रिय है। १९९१ में आपको कविता-संग्रह "मै वक्त के सामने" के लिए हिंदी का साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा १९९३ में के के बिरला फ़ाउंडेशन द्वारा दिया जाने वाला प्रतिष्ठित व्यास सम्मान प्रदान किया गया। उन्हें शलाका सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है। गिरिजाकुमार माथुर की समग्र काव्य-यात्रा से परिचित होने के लिए उनकी पुस्तक "मुझे और अभी कहना है" अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। .

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गंगाप्रसाद श्रीवास्तव

गंगाप्रसाद श्रीवास्तव या गंगा बाबू (23 अप्रैल 1889–30 अगस्त 1976) हिन्दी साहित्यकार थे। जीपी बाबू अच्छे कथाकार, कहानीकार के अलावा एक बेहतर अभिनेता थे। कई नाटकों में उन्होंने सशक्त अभिनय किया। उस दौरान वे एकांकी के सशक्त अभिनेता थे। सरलता एवं अभिनय के गुण से परिपक्व, एकांकी लिखने में माहिर गंगा बाबू का नाम हिंदी के शुरुआती एकांकीकार के रूप में जाना जाता है। गंगा बाबू को ‘साहित्य वारिधि’ व ‘साहित्य महारथी’ जैसे अलंकरण से विभूषित किया गया। हास्य सम्राट गंगा बाबू की याद में पूर्वोत्तर रेलवे ने गोंडा-बहराइच रेल खंड पर 'गंगाधाम' स्टेशन का निर्माण कराया। .

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गुन्नर गुन्नर्सन

गुन्नर गुन्नर्सन (18 मई 1889 – 21 नवम्बर 1975) डेनिश भाषा के उपन्यासकार, नाटककार, कवि तथा कहानी लेखक थे। इनका जन्म आइसलैंड में १८८९ ई. में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। १८ वर्ष की आयु में लेखक बनने की बलवती इच्छा लेकर डेनमार्क गए और कठिन संघर्ष के बाद डेनिश भाषा के अच्छे लेखक के रूप में स्थान बनाने में सफल हुए। १९३९ ई. में आइसलैंड लौट आए। इनकी रचनाओं में आइसलैंड की सामान्य जनता के दु:ख सुख का बड़ा ही सुंदर चित्रण हुआ है। इनमें अपने देश के प्रति अनुराग है और वहां के रहनेवालों के प्रति संमान का भाव। चरित्रों के आंतरिक भावों का बड़ा सूक्ष्म अध्ययन इनकी रचनाओं में मिलता है। इनकी मुख्य रचनाएँ हैं- ‘द स्टोरी ऑव द बॉर्ग फेमिली’ (Borgslaegtens Historie) (1912-14); ‘स्वोर्न ब्रदर्स’ (Edbrodre) (१९१८); ‘सेवेन डेज़ डार्कनेस’ (Salige de enfoldige) (१९२०); ‘द चर्च ऑन द माउंटेन’ (Kirket par Bjerget) (१९२३-२८)। श्रेणी:डेनिश साहित्यकार.

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गुलमोहर ग्रैंड

गुलमोहर ग्रैंड एक भारतीय टेलीविजन श्रृंखला है, जिस का स्टार प्लस पर मई 2015 को 3 प्रीमियर हुआ। शो सनशाइन प्रोडक्शंस द्वारा निर्मित है। यह एक मिनी श्रृंखला है जी होटल उद्योग पर आधारित है। यह एक साप्ताहिक शो है जिसका रविवार रात को प्रसारण किया जाता है। भारतीय टेलीविजन अभिनेता असीम गुलाटी, आकांक्षा सिंह और गौरव चोपड़ा ने इस श्रृंखला के लिए हस्ताक्षर किए हैं। .

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गुलाब खंडेलवाल

गुलाब खण्डेलवाल एक भारतीय कवि हैं। .

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गुजराती साहित्य

गुजराती भाषा आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में से एक है और इसका विकास शौरसेनी प्राकृत के परवर्ती रूप 'नागर अपभ्रंश' से हुआ है। गुजराती भाषा का क्षेत्र गुजरात, सौराष्ट्र और कच्छ के अतिरिक्त महाराष्ट्र का सीमावर्ती प्रदेश तथा राजस्थान का दक्षिण पश्चिमी भाग भी है। सौराष्ट्री तथा कच्छी इसकी अन्य प्रमुख बोलियाँ हैं। हेमचंद्र सूरि ने अपने ग्रंथों में जिस अपभ्रंश का संकेत किया है, उसका परवर्ती रूप 'गुर्जर अपभ्रंश' के नाम से प्रसिद्ध है और इसमें अनेक साहित्यिक कृतियाँ मिलती हैं। इस अपभ्रंश का क्षेत्र मूलत: गुजरात और पश्चिमी राजस्थान था और इस दृष्टि से पश्चिमी राजस्थानी अथवा मारवाड़ी, गुजराती भाषा से घनिष्ठतया संबद्ध है। गुजराती साहित्य में दो युग माने जाते हैं-.

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ग्रिम

ग्रिम अमेरिकी पुलिस प्रक्रियात्मक फंतासी टेलिविज़न ड्रामा शृंखला है। अमेरिका में इसका प्रारम्भ एनबीसी पर अक्टूबर 28, 2011, को हुआ था। कार्यक्रम की कहानी पुलिस अधिकारी निक बर्कहार्ट के चारो ओर घूमती है। प्रथम प्रकरण में निक को अपनी आंटी से पता चलता है कि वह एक ग्रिम है तथा उसके भाग्य में अलौकिक जीवो व विभिन्न प्रकार के शैतानो से लड़ना है। शृंखला के अधिकतर पात्र ग्रिम की परी कथाओं से प्रेरित हैं। हालांकि इसकी कहानियाँ और कई पात्र अन्य स्रोतो से भी लिए गए हैं। .

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ग्रीन लैंटर्ण: द एनिमेटेड सीरीज़

ग्रीन लैंटर्ण: द एनिमेटेड सीरीज़ (Green Lantern: The Animated Series) एक अमेरिकी कम्प्यूटर-एनिमेटेड दूरदर्शन धारावाहीक है। यह पहली ग्रीन लैंटर्ण टेलीविजन श्रृंखला और पहले सीजीआई डीसी/पश्चिम बंगाल श्रृंखला है। इसे कार्टून नेटवर्क पर हिन्दी में डब करके भारत में प्रसारित किया गया। आधिकारिक तौर पर 4 नवम्बर 2012 को हुआ। धारावाहीक की कमजोर माँग को देखते हुए लाइव एक्शन फिल्म ने इसे एक सीजन के बाद में बन्द कर दिया। .

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गेम ऑफ़ थ्रोन्स प्रकरणों की सूची

गेम ऑफ़ थ्रोन्स डेविड बेनिऑफ़ और डी बी वीस द्वारा निर्मित एक अमेरिकी फ़न्तासी नाटक टेलीविजन शृंखला हैं। यह शृंखला लेखक जॉर्ज आर आर मार्टिन के अ सॉन्ग ऑफ़ आइस एंड फायर उपन्यासों पर आधारित हैं। .

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गोपालदेव

गोपालदेव (1540 - 1611 ई.) पूर्वी असम के प्रमुख कवि, नाटककार तथा वैष्णव सम्प्रदाय के मुख्य उपदेशक थे। श्रेणी:हिन्दू सन्त श्रेणी:वैष्णव सन्त श्रेणी:असमिया साहित्यकार.

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गीत

स्वर, पद और ताल से युक्त जो गान होता है वह गीत कहलाता है। गीत, सहित्य की एक लोकप्रिय विधा है। इसमें एक मुखड़ा तथा कुछ अंतरे होते हैं। प्रत्येक अंतरे के बाद मुखड़े को दोहराया जाता है। गीत को गाया भी जाता है। .

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ओपेरा (गीतिनाटक)

मिलान (इटली) का '''टीएट्रो अल्ला स्काला''' (Teatro alla Scala) नामक ओपेरागृह; सन् १७७८ ई में स्थापित यह ओपेरा हाउस विश्व के सर्वाधिक प्रसिद्ध ओपेरागृहों में से एक है। गान नाट्य (गीतिनाटक) को ओपेरा (Opera) कहते हैं। ओपेरा का उद्भव 1594 ई. में इटली के फ़्लोरेंस नगर में "ला दाफ़्ने" नामक ओपेरा के प्रदर्शन से हुआ था, यद्यपि इस ओपेरा के प्रस्तुतकर्ता स्वयं यह नहीं जानते थे कि वे अनजाने किस महत्वपूर्ण कला की विधा को जन्म दे रहे हैं। गत चार शताब्दियों में ओपेरा की अनेक व्याख्याएँ प्रस्तुत की गई। लेकिन परंपरा और अनुभव के आधार पर यही माना जाता है कि ओपेरा गानबद्ध नाटक होता है, जिसमें वार्तालाप के स्थान पर गाया जाता है। इसका ऐतिहासिक कारण यह है कि 16वीं सदी तक यह माना जाता था कि नाटक पद्य में होना चाहिए। नाटक के लिए पद्य यदि अनिवार्य है तो संगीत के लिए भूमि स्वत: तैयार हो जाती है। क्योंकि काव्य और संगीत पूरक कलाएँ हैं, दोनों ही अमूर्त भावनाओं तथा कल्पनालोकों से अधिक संबंधित हैं। इसलिए जब तक नाटक काव्य में लिखे जाते रहे तब तक विशेष कठिनाई नहीं हुई, लेकिन कालांतर में नाटक की विधा ने गद्य का रूप लिया तथा यथार्थोन्मुख हुई। तभी से ओपेराकारों के लिए कठिनाइयाँ बढ़ती गई। चूँकि ओपेरा का जन्म इटली में हुआ था इसलिए उसके सारे अंगों पर इटली का प्रभुत्व स्वाभाविक था। लेकिन फ्रांस तथा जर्मनी की भी प्रतिभा ओपेरा को सुषमित तथा विकसित करने में लगी थी, इसलिए ओपेरा कालांतर में अनेक प्रशाखाओं में पल्लवित हुआ। .

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औन-ज़ारा

औन-ज़ारा (उर्दू: عون زارا), एक पाकिस्तानी धारावाहिक है जिसका प्रसारण पाकिस्तान के ए-प्लस एंटरटेनमेंट पर हर गुरुवार को किया जाता था। भारत में इसका प्रसारण ज़िंदगी (टीवी चैनल) पर प्रतिदिन किया जाता था। यह धारावाहिक ज़िंदगी टीवी चैनल के शुरुआती कार्यक्रमों से एक था। इस धारावाहिक की कहानी एक शादीशुदा जोड़े के आसपास घूमती है। यह पाकिस्तानी लेखक फाइज़ा इफ्तिखार के उपन्यास, 'हिसार-ए-मोहब्बत' पर आधारित है और इसका निर्देशन हैस्साम हुसैन द्वारा किया गया है। प्रमुख भूमिकाओं को माया अली और उस्मान खालिद बट ने निभाया है। .

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और प्यार हो गया (धारावाहिक)

और प्यार हो गया एक ज़ी टीवी पर प्रसारित होने वाला भारतीय धारावाहिक था। यह 6 जनवरी 2014 से 2 दिसम्बर 2014 तक चला। इसके पश्चात इसके स्थान पर सतरंगी ससुराल देने लगा। .

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आतमजीत

आतमजीत पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक तत्ती तवी दा सच्च के लिये उन्हें सन् 2009 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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आधुनिक काल

हिंदी साहित्य का आधुनिक काल तत्कालीन राजनैतिक गतिविधियों से प्रभावित हुआ। इसको हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ युग माना जा सकता है, जिसमें पद्य के साथ-साथ गद्य, समालोचना, कहानी, नाटक व पत्रकारिता का भी विकास हुआ। सं 1800 वि.

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आधे अधूरे

यह नाटक संबंधी लेख है। धारावाहिक संबंधी लेख देखने के लिए देखें - आधे अधूरे (धारावाहिक)। आधे अधूरे मोहन राकेश द्वारा लिखित हिंदी का प्रसिद्ध नाटक है। यह मध्यवर्गीय जीवन पर आधारित नाटक है। इसमें ६ पुरुष औ्र तीन स्त्री पात्र हैं। पाँच पुरुषों की भूमिका एक ही व्यक्ति निभाता है। हिंदी नाटक में यह अलग ढंग का प्रयोग है। यह १९६९ ई में प्रकाशित हुआ। यह पूर्णता की तलाश का नाटक है। .

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आप के आ जाने से

आप के आ जाने से एक भारतीय टीवी धारावाहिक है! श्रेणी:भारतीय टीवी कार्यक्रम.

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आम्रपाली (नृत्यांगना)

आम्रपाली बौद्ध काल में वैशाली के वृज्जिसंघ की इतिहास प्रसिद्ध लिच्छवि राजनृत्यांगना थी। इनका एक नाम 'अम्बपाली' या 'अम्बपालिका' भी है। आम्रपाली अत्यन्त सुन्दर थी और कहते हैं जो भी उसे एक बार देख लेता वह उसपर मुग्ध हो जाता था। अजातशत्रु उसके प्रेमियों में था और उस समय के उपलब्ध सहित्य में अजातशत्रु के पिता बिंबसार को भी गुप्त रूप से उसका प्रणयार्थी बताया गया है। आम्रपाली को लेकर भारतीय भाषाओं में बहुत से काव्य, नाटक और उपन्यास लिखे गए हैं। अंबपाली बुद्ध के प्रभाव से उनकी शिष्या हुई और उसने अनेक प्रकार के दान से बौद्ध संघ का महत् उपकार किया। उस युग में राजनर्तकी का पद बड़ा गौरवपूर्ण और सम्मानित माना जाता था। साधारण जन तो उस तक पहुँच भी नहीं सकते थे। समाज के उच्च वर्ग के लोग भी उसके कृपाकटाक्ष के लिए लालायित रहते थे। कहते हैं, भगवान तथागत ने भी उसे "आर्या अंबा" कहकर संबोधित किया था तथा उसका आतिथ्य ग्रहण किया था। धम्मसंघ में पहले भिक्षुणियाँ नहीं ली जाती थीं, यशोधरा को भी बुद्ध ने भिक्षुणी बनाने से मना कर दिया था, किंतु आम्रपाली की श्रद्धा, भक्ति और मन की विरक्ति से प्रभावित होकर नारियों को भी उन्होंने संघ में प्रवेश का अधिकार प्रदान किया। .

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आर्थर मिलर

आर्थर मिलर (१७ अक्टूबर १९१५- १० फरवरी २००५) अमेरिका के प्रमुख नाटककार और लेखक थे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सामाजिक विषयों पर नाटक लिखने वाले मिलर ने बहुचर्चित 'द अमेरिकन ड्रीम' यानि 'सपनों के अमरीका' की कई ख़ामियाँ अमरीकी जनता और विश्व के सामने रखीं। इसी कारण उनकी आलोचना भी हुई लेकिन उसकी परवाह किए बिना उन्होंने अपने नाटकों में आधुनिक समाज पर अपना नज़रिया रखा। १९४९ में अपने नाटक एक सेल्समैन की मौत ('डेथ ऑफ़ ए सेल्समैन') का मंचन हुआ तो वे रातों-रात ही लोकप्रिय हो गए। यह एक आम व्यक्ति विली लोमैन की कहानी थी, जिसका अमरीका के पूँजीवाद में पूरा विश्वास है और जो व्यवसायिक सफलता के लिए काम करते हुए, भारी दबावों से घिरा हुआ, दम तोड़ देता है। इसी नाटक के लिए उन्हें १९४९ में पुलिट्ज़र पुरस्कार भी मिला। मिलर की ये योग्यता थी कि वे बिलकुल निजी या व्यक्तिगत कहानियों को भी व्यापक सामाजिक स्वरूप प्रदान कर देते थे। .

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आशिकी 2

Seetesh & Neeraj loves each other | name .

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इच्छाप्यारी नागिन

इच्छाप्यारी नागिन भारतीय हिन्दी धारावाहिक है, जिसका प्रसारण सब टीवी पर 27 सितम्बर 2016 से सोमवार से शुक्रवार रात 8 बजे होने वाला है। इसका निर्माण सिद्धार्थ मल्होत्रा ने किया है। यह बालवीर के स्थान पर प्रसारित होगा। .

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इन्दिरा दाँगी

इन्दिरा दाँगी (अंग्रेजी:Indira Dangi (जन्म १३ फरबरी १९८०)) हिंदी भाषा की लेखिका हैं। वे साहित्य अकादमी द्वारा सन् २०१५ के युवा पुरस्कार से सम्मानित हैं। .

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इश्क’ बाझ नमाज़ दा हज नाही

इश्क’ बाझ नमाज़ दा हज नाही पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार अजमेर सिंह औलख द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 2006 में पंजाबी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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इंदर सभा

इंदर सभा एक उर्दू का नाटक और ओपेरा है जिसे लखनऊ के अवध दरबार से सम्बन्ध रखने वाले लेखक व कवि आग़ा हसन अमानत​ ने लिखा और जिसे मंच पर सबसे पहले सन् १८५३ में प्रस्तुत किया गया।, Amaresh Datta, Sahitya Akademi, 2006, ISBN 978-81-260-1194-0,...

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इक्यावन

इक्यावन एक भारतीय टेलीविजन श्रृंखला है, जिसे स्टार प्लस पर प्रसारित किया जाता है और हॉटस्टार पर स्ट्रीम किया जाता है। यह 13 नवंबर 2017 को प्रीमियर हुआ। इस शो में प्रमुख भूमिकाओं में नामिश तनेजा और प्राची तेहलान हैं। यह शो अहमदाबाद में स्थापित है, और सुजाना घई द्वारा निर्मित है। .

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कथानक

कथांतर्गत "कार्यव्यापार की योजना" को कथानक (Plot) कहते हैं। "कथानक" और "कथा" दोनों ही शब्द संस्कृत "कथ" धातु से उत्पन्न हैं। संस्कृत साहित्यशास्त्र में "कथा' शब्द का प्रयोग एक निश्चित काव्यरूप के अर्थ में किया जाता रहा है किंतु कथा शब्द का सामान्य अर्थ है-"वह जो कहा जाए'। यहाँ कहनेवाले के साथ-साथ सुननेवाले की उपस्थिति भी अंतर्भुक्त है कयोंकि "कहना' शब्द तभी सार्थक होता है जब उसे सुननेवाला भी कोई हो। श्रोता के अभाव में केवल "बोलने' या "बड़बड़ाने' की कल्पना की जा सकती है, "कहने' की नहीं। इसके साथ ही, वह सभी कुछ "जो कहा जाए' कथा की परिसीमाओं में नहीं सिमट पाता। अत: कथा का तात्पर्य किसी ऐसी "कथित घटना' के कहने या वर्णन करने से होता है जिसका एक निश्चित क्रम एवं परिणाम हो। ई.एम.

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कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी

कन्हैयालाल मुंशी कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी (२९ दिसंबर, १८८७ - ८ फरवरी, १९७१) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, राजनेता, गुजराती एवं हिन्दी के ख्यातिनाम साहित्यकार तथा शिक्षाविद थे। उन्होने भारतीय विद्या भवन की स्थापना की। .

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कपूर सिंह घुम्मन

कपूर सिंह घुम्मन पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक पागल लोक के लिये उन्हें सन् 1984 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कपोलकल्पना

कपोलकल्पना या काल्पनिक साहित्य (fiction; हिन्दी में फ़िक्शन) एक कहानी या अभिविन्यास हैं जो कल्पना से व्युत्पन्न होती हैं ― अन्य शब्दों में, जो इतिहास या तथ्यों पर सख्ती से आधारित न हो।William Harmon and C. Hugh Holman A Handbook to Literature (7th edition).

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करफ्यू

करफ्यू नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार लक्ष्मण श्रीमल द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 2007 में नेपाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कर्ण पर्व

कर्ण पर्व कोंकणी भाषा के विख्यात साहित्यकार उदय भेंब्रे द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 2015 में कोंकणी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कर्णगी ममा अमसुङ्कर्णगी अरोइबा याहिप

कर्णगी ममा अमसुंकर्णगी अरोइबा याहिप मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार एन. ईबोबी सिंह द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1983 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कर्पूरमंजरी

कर्पूरमंजरी संस्कृत के प्रसिद्ध नाटककार एवं काव्यमीमांसक राजशेखर द्वारा रचित प्राकृत का नाटक (सट्टक) है। प्राकृत भाषा की विशुद्ध साहित्यिक रचनाओं में इस कृति का विशिष्ट स्थान है। .

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करेल चपेक

करेल चपेक करेल चपेक (Capek karel) (१८९०-१९३८) चेक लेखक एवं पत्रकार थे। उनका चेक साहित्य में गौरवपूर्ण स्थान है। उनकी सभी प्रमुख कृतियों के असंख्य विदेशी भाषाओं में अनुवाद किए गए थे। चपेक की लोकप्रियता इस बात का प्रमाण है कि उनकी लेखकीय प्रतिभा उद्भुत, अनोखी तथा अत्यंत गंभीर है। चपेक का मानवतापूर्ण दृष्टिकोण सभी रचनाओं में स्पष्टता से विद्यमान है। वे नाटक, उपन्यास, कहानियाँ, निबंध आदि लिखते थे। चपेक ने बहुत भ्रमण किया। उनके 'इंग्लैंड से पत्र', 'हॉलैंड से पत्र', आदि संग्रह अति प्रिय हैं। 'माँ' नामक नाटक अनेक भाषाओं में अनूदित हो चुका है। भारतीय भाषाओं में बँगला और मराठी में भी यह नाटक अनुवाद के रूप में मिलता है। 'माँ' नाटक में लेखक नाज़ी सत्ता के विरुद्ध लड़ाई करने को प्रोत्साहन देता है। उनकी बालोपयोगी पुस्तकें उनके भाई योसेफ चपेक के चित्रों से सुसज्जित हैं। अन्य महत्वपूर्ण कृतियाँ: 'इसे कैसे करता हूँ' (निबंध), 'क्रकतित' (उपन्यास), 'र.उ.र.' (नाटक), 'एक जेल की कहानियाँ', 'दूसरी जेल की कहानियाँ', 'माली का वर्ष' (निबंध), 'कीटाणू जीवन' (नाटक)। श्रेणी:चेक साहित्यकार.

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कलश-एक विश्वास

कलश-एक विश्वास एक भारतीय हिन्दी धारावाहिक है, जो 23 मार्च 2015 से लाइफ ओके पर प्रसारित हो रहा है। इसमें कृप सूरी और अपर्णा दीक्षित मुख्य किरदार निभा रहे हैं। .

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कलानाथ शास्त्री

कलानाथ शास्त्री (जन्म: 15 जुलाई 1936) संस्कृत के जाने माने विद्वान,भाषाविद्, एवं बहुप्रकाशित लेखक हैं। आप राष्ट्रपति द्वारा वैदुष्य के लिए अलंकृत, केन्द्रीय साहित्य अकादमी, संस्कृत अकादमी आदि से पुरस्कृत, अनेक उपाधियों से सम्मानित व कई भाषाओँ में ग्रंथों के रचयिता हैं। वे विश्वविख्यात साहित्यकार तथा संस्कृत के युगांतरकारी कवि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री के ज्येष्ठ पुत्र हैं। .

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कामन्दकीय नीतिसार

कामंदकीय नीतिसार राज्यशास्त्र का एक संस्कृत ग्रंथ है। इसके रचयिता का नाम 'कामंदकि' अथवा 'कामंदक' है जिससे यह साधारणत: 'कामन्दकीय' नाम से प्रसिद्ध है। वास्तव में यह ग्रंथ कौटिल्य के अर्थशास्त्र के सारभूत सिद्धांतों (मुख्यत: राजनीति विद्या) का प्रतिपादन करता है। यह श्लोकों में रूप में है। इसकी भाषा अत्यन्त सरल है। नीतिसार के आरम्भ में ही विष्णुगुप्त चाणक्य की प्रशंशा की गयी है- वंशे विशालवंश्यानाम् ऋषीणामिव भूयसाम्। अप्रतिग्राहकाणां यो बभूव भुवि विश्रुतः ॥ जातवेदा इवार्चिष्मान् वेदान् वेदविदांवरः। योधीतवान् सुचतुरः चतुरोऽप्येकवेदवत् ॥ यस्याभिचारवज्रेण वज्रज्वलनतेजसः। पपात मूलतः श्रीमान् सुपर्वा नन्दपर्वतः ॥ एकाकी मन्त्रशक्त्या यः शक्त्या शक्तिधरोपमः। आजहार नृचन्द्राय चन्द्रगुप्ताय मेदिनीम्।। नीतिशास्त्रामृतं धीमान् अर्थशास्त्रमहोदधेः। समुद्दद्ध्रे नमस्तस्मै विष्णुगुप्ताय वेधसे ॥ इति ॥ .

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काय पो छे!

काय पो छे! चेतन भगत के उपन्यास द ३ मिस्टेक्स ऑफ माई लाइफ पर आधारित अभिषेक कपूर द्वारा निर्देशित 2013 की भारतीय नाटक फ़िल्म है। .

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कार्ल गुत्स्‌को

कार्ल गुत्स्‌को कार्ल गुत्स्‌को (Karl Ferdinand Gutzkow; १७ मार्च १८११ - १६ दिसम्बर्१८७८) उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य के तरुण जर्मन आन्दोलन के उल्लेखनीय जर्मन साहित्यकार थे। इनका जन्म एक निर्धन परिवार में हुआ था। लेकिन उनमें प्रतिभा और महत्वाकांक्षा थी। साहित्यजगत में सफलता प्राप्त करने का उन्होंने निश्चय कर लिया था। जर्मनी के प्रगतिशील विचारोंवाले युवक लेखकों के ये नेता हो गए। 1835 ई. में उनका उपन्यास ‘वैली दि डाउटर’ छपा जिसके माध्यम से इन्होंने बड़े साहस के साथ जीवन की भैतिक आवश्यकताओं पर बल दिया। इस पुस्तक की तीव्र आलोचना हुई और अनैतिकता के दोष का तर्क देकर तत्कालीन शासन ने इसपर प्रतिबंध लगा दिया। गुत्स्‌कों को भी जेल की सजा हुई। एक दूसरा उपन्यास 'नेबेनियांद ईरा' (Nebeneind era) में उन्होंने जर्मनी के तत्कालीन सामाजिक जीवन का बड़ा व्यापक चित्र प्रस्तुत किया है। इन्होंने नाटक भी लिखे। ‘वील ए कोस्ता’ (Weil a Costa) में इन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता की आवाज उठाई है। इनका एक उपन्यास ‘द नाइटस ऑव द स्पिरिट’ है जिसमें राजनीतिक शक्ति के प्रश्न का विवेचन है। .

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कालिदास

कालिदास संस्कृत भाषा के महान कवि और नाटककार थे। उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएं की और उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्व निरूपित हैं। कालिदास अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्र की समग्र राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि माने जाते हैं और कुछ विद्वान उन्हें राष्ट्रीय कवि का स्थान तक देते हैं। अभिज्ञानशाकुंतलम् कालिदास की सबसे प्रसिद्ध रचना है। यह नाटक कुछ उन भारतीय साहित्यिक कृतियों में से है जिनका सबसे पहले यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हुआ था। यह पूरे विश्व साहित्य में अग्रगण्य रचना मानी जाती है। मेघदूतम् कालिदास की सर्वश्रेष्ठ रचना है जिसमें कवि की कल्पनाशक्ति और अभिव्यंजनावादभावाभिव्यन्जना शक्ति अपने सर्वोत्कृष्ट स्तर पर है और प्रकृति के मानवीकरण का अद्भुत रखंडकाव्ये से खंडकाव्य में दिखता है। कालिदास वैदर्भी रीति के कवि हैं और तदनुरूप वे अपनी अलंकार युक्त किन्तु सरल और मधुर भाषा के लिये विशेष रूप से जाने जाते हैं। उनके प्रकृति वर्णन अद्वितीय हैं और विशेष रूप से अपनी उपमाओं के लिये जाने जाते हैं। साहित्य में औदार्य गुण के प्रति कालिदास का विशेष प्रेम है और उन्होंने अपने शृंगार रस प्रधान साहित्य में भी आदर्शवादी परंपरा और नैतिक मूल्यों का समुचित ध्यान रखा है। कालिदास के परवर्ती कवि बाणभट्ट ने उनकी सूक्तियों की विशेष रूप से प्रशंसा की है। thumb .

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काजल ओझा वैद्य

काजल ओझा वैद्य गुजराती साहित्यकार है, जिन्होंने मीडिया, थिएटर और टेलीविजन पर विविध भूमिकाएँ निभाई हैं। उन्होंने सात लोकप्रिय नाटक तथा तेरह उपन्यास भी लिखे हैं। ‘संबंध...

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काज़ुओ इशिगुरो

काज़ुओ इशिगुरो ओबीई FRSA FRSL (カズオ・イシグロ या; जन्म 8 नवंबर 1954) एक ब्रिटिश उपन्यासकार, पटकथा लेखक, और लघु कहानी लेखक है। वह  नागासाकी, जापान में पैदा हुआ था; उसका परिवार 1960 में  इंग्लैंड में स्थानांतरित कर गया था, जब वह पांच साल का था। ईशिगुरु ने 1978 में अंग्रेजी और दर्शन में स्नातक की डिग्री के साथ केंट विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और 1980 में ईस्ट एंग्लिया के रचनात्मक लेखन पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय से मास्टर की उपाधि प्राप्त की। इशिगुरो को अंग्रेजी भाषाई दुनिया में मशहूर समकालीन कथालेखकों में से एक माना जाते है, इन्होनें चार मैन बुकर पुरस्कार नामांकन और 1989 के अपने उपन्यास 'The Remains of the Day' के लिए एक पुरस्कार भी जीत चुके हैं। उनका 2005 का उपन्यास, नेवर लेट मी गो, को 2005 के सर्वश्रेष्ठ उपन्यास के रूप में टाइम मैग्जिन द्वारा नामित किया गया था और 1923 से 2005 तक 100 सर्वश्रेष्ठ अंग्रेजी-भाषा के उपन्यासों की सूची में शामिल किया गया था। 2017 में, स्वीडिश अकादमी ने इशिगुरो को साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया, जिसमें उन्होंने एक लेखक के रूप में उनके प्रशस्ति पत्र में "महान भावनात्मक बल के उपन्यासों में, दुनिया के साथ संबंध के हमारे विवेकपूर्ण भावनाओं को गहराई से खोल कर रख दिया" लिखा था। .

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काज़ी नज़रुल इस्लाम

काजी नज़रुल इस्लाम (কাজী নজরুল ইসলাম), (२४ मई १८९९ - २९ अगस्त १९७६) अग्रणी बांग्ला कवि, संगीतज्ञ, संगीतस्रष्टा और दार्शनिक थे। वे बांग्ला भाषा के अन्यतम साहित्यकार, देशप्रेमी तथा बंगलादेश के राष्ट्रीय कवि हैं। पश्चिम बंगाल और बंगलादेश दोनो ही जगह उनकी कविता और गान को समान आदर प्राप्त है। उनकी कविता में विद्रोह के स्वर होने के कारण उनको 'विद्रोही कवि' के नाम से जाना जाता है। उनकी कविता का वर्ण्यविषय 'मनुष्य के ऊपर मनुष्य का अत्याचार' तथा 'सामाजिक अनाचार तथा शोषण के विरुद्ध सोच्चार प्रतिवाद'। .

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काव्य

काव्य, कविता या पद्य, साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ भरतमुनि से समझा जा सकता है। कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है। काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो। अर्थात् वहजिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। रसगंगाधर में 'रमणीय' अर्थ के प्रतिपादक शब्द को 'काव्य' कहा है। 'अर्थ की रमणीयता' के अंतर्गत शब्द की रमणीयता (शब्दलंकार) भी समझकर लोग इस लक्षण को स्वीकार करते हैं। पर 'अर्थ' की 'रमणीयता' कई प्रकार की हो सकती है। इससे यह लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं है। साहित्य दर्पणाकार विश्वनाथ का लक्षण ही सबसे ठीक जँचता है। उसके अनुसार 'रसात्मक वाक्य ही काव्य है'। रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की आत्मा है। काव्यप्रकाश में काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र। ध्वनि वह है जिस, में शब्दों से निकले हुए अर्थ (वाच्य) की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय (व्यंग्य) प्रधान हो। गुणीभूत ब्यंग्य वह है जिसमें गौण हो। चित्र या अलंकार वह है जिसमें बिना ब्यंग्य के चमत्कार हो। इन तीनों को क्रमशः उत्तम, मध्यम और अधम भी कहते हैं। काव्यप्रकाशकार का जोर छिपे हुए भाव पर अधिक जान पड़ता है, रस के उद्रेक पर नहीं। काव्य के दो और भेद किए गए हैं, महाकाव्य और खंड काव्य। महाकाव्य सर्गबद्ध और उसका नायक कोई देवता, राजा या धीरोदात्त गुंण संपन्न क्षत्रिय होना चाहिए। उसमें शृंगार, वीर या शांत रसों में से कोई रस प्रधान होना चाहिए। बीच बीच में करुणा; हास्य इत्यादि और रस तथा और और लोगों के प्रसंग भी आने चाहिए। कम से कम आठ सर्ग होने चाहिए। महाकाव्य में संध्या, सूर्य, चंद्र, रात्रि, प्रभात, मृगया, पर्वत, वन, ऋतु, सागर, संयोग, विप्रलम्भ, मुनि, पुर, यज्ञ, रणप्रयाण, विवाह आदि का यथास्थान सन्निवेश होना चाहिए। काव्य दो प्रकार का माना गया है, दृश्य और श्रव्य। दृश्य काव्य वह है जो अभिनय द्वारा दिखलाया जाय, जैसे, नाटक, प्रहसन, आदि जो पढ़ने और सुनेन योग्य हो, वह श्रव्य है। श्रव्य काव्य दो प्रकार का होता है, गद्य और पद्य। पद्य काव्य के महाकाव्य और खंडकाव्य दो भेद कहे जा चुके हैं। गद्य काव्य के भी दो भेद किए गए हैं- कथा और आख्यायिका। चंपू, विरुद और कारंभक तीन प्रकार के काव्य और माने गए है। .

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काव्य नाटक

काव्य-नाट्य, नाटक और काव्य की एक मिली-जुली विधा है। इसमें काव्य और नाटक दोनों के तत्वों का समन्वय रहता है। हिंदी में इस विधा को गीति-काव्य, काव्य-नाटक, दृश्य-काव्य आदि कई नामों से पुकारा जाता है। आज काव्य भी छन्द मुक्त होकर नाटक के समीप आ गया है। डॉ॰ दशरथ ओझा इसे ‘गीति-नाट्य’ ‘गीति-रूपक’, ‘काव्य-रूपक, संगीत रूपक’, ‘गीति-नाटक के पर्याय के रूप में प्रयुक्त करते हैं। सर्वाधिक उपयुक्त नाटक काव्य नाटक है। डी.

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काव्यशास्त्र

काव्यशास्त्र काव्य और साहित्य का दर्शन तथा विज्ञान है। यह काव्यकृतियों के विश्लेषण के आधार पर समय-समय पर उद्भावित सिद्धांतों की ज्ञानराशि है। युगानुरूप परिस्थितियों के अनुसार काव्य और साहित्य का कथ्य और शिल्प बदलता रहता है; फलत: काव्यशास्त्रीय सिद्धांतों में भी निरंतर परिवर्तन होता रहा है। भारत में भरत के सिद्धांतों से लेकर आज तक और पश्चिम में सुकरात और उसके शिष्य प्लेटो से लेकर अद्यतन "नवआलोचना' (नियो-क्रिटिसिज्म़) तक के सिद्धांतों के ऐतिहासिक अनुशीलन से यह बात साफ हो जाती है। भारत में काव्य नाटकादि कृतियों को 'लक्ष्य ग्रंथ' तथा सैद्धांतिक ग्रंथों को 'लक्षण ग्रंथ' कहा जाता है। ये लक्षण ग्रंथ सदा लक्ष्य ग्रंथ के पश्चाद्भावनी तथा अनुगामी है और महान्‌ कवि इनकी लीक को चुनौती देते देखे जाते हैं। काव्यशास्त्र के लिए पुराने नाम 'साहित्यशास्त्र' तथा 'अलंकारशास्त्र' हैं और साहित्य के व्यापक रचनात्मक वाङमय को समेटने पर इसे 'समीक्षाशास्त्र' भी कहा जाने लगा। मूलत: काव्यशास्त्रीय चिंतन शब्दकाव्य (महाकाव्य एवं मुक्तक) तथा दृश्यकाव्य (नाटक) के ही सम्बंध में सिद्धांत स्थिर करता देखा जाता है। अरस्तू के "पोयटिक्स" में कामेडी, ट्रैजेडी, तथा एपिक की समीक्षात्मक कसौटी का आकलन है और भरत का नाट्यशास्त्र केवल रूपक या दृश्यकाव्य की ही समीक्षा के सिद्धांत प्रस्तुत करता है। भारत और पश्चिम में यह चिंतन ई.पू.

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किरन चन्द्र बन्दोपाध्याय

किरन चन्द्र बन्दोपाध्याय बंगला साहित्यकार थे। उनके द्वारा रचित नाटक भारतमाता बहुत लोकप्रिय हुआ। श्रेणी:बांग्ला साहित्यकार‎.

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किस देश में है मेरा दिल

किस देश में है मेरा दिल एक भारतीय नाट्य-श्रृंखला है जिसका प्रसारण स्टार प्लस पर होता था। यह श्रृंखला प्रसिद्ध भारतीय सोप ओपेरा निर्माता, बालाजी टेलीफ़िल्म्स की एकता कपूर द्वारा बनाई गई थी। आरंभिक कहानी हीर और प्रेम के रोमांस और रोमियो और जूलियट के जैसे उनके अमिट प्रेम पर केन्द्रित है। .

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किंग लीयर (शेक्सपीयर कृत)

तूफान में किंग लियर और मूर्ख किंग लियर (King Lear), इंगलैंड के प्राचीन इतिहास से संबंधित शेक्स्पियर का एक दु:खांत नाटक (ट्रेजेडी) है। इसका प्रथम अभिनय सन् १६०६ ई. तथा प्रथम प्रकाशन सन् १६०८ ई. में हुआ। इस कृति में दैवी और आसुरी प्रवृत्तियों का घोर संघर्ष व्यक्त किया गया है। इस नाटक से करुणा और भय की तीव्र अनुभूति होती है। काव्यात्मक प्रभाव के लिए यह अनुपम है। .

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कंकू कबंध

कंकू कबंध राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार जयप्रकाश पंड्या ‘ज्योतिपुंज’ द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 2000 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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क्रीडा

''बच्चों के खेल'' (१५६० में पीतर ब्रुगेल द्वारा चित्रित) 300px कोई भी कार्य जिनमें नियमों की संरचना हो और जिसको आनन्द प्राप्ति के लिये या कभी-कभी शिक्षा प्रदान करने के लिये किया जाता है, क्रीडा या खेल (game) कहलाता है। खेल की सबसे पहली विशेषता है कि खेल आमोद-प्रमोद है। खेल में मजा आता है। कोई भी ऐसा कार्यकलाप जिससे बच्चों को आनंद मिलता है, खेल है। खेल बच्चे की स्वाभाविक क्रिया है। भिन्न-भिन्न आयु वर्ग के बच्चे विभिन्न प्रकार के खेल खेलते है ये विभिन्न प्रकार के खेल बच्चों के समपूर्ण विकास में सहायक होते हैं। खेलों के प्रकारों में अन्वेषणात्मक, संरचनात्मक, काल्पनिक और नियमबद्ध खेल शामिल हैं। खेलों में सांस्कृतिक विभिन्नताएं भी देखी जाती हैं। खेल से बच्चों का शारीरिक, संज्ञानात्मक, संवेगात्मक, सामाजिक एवम् नैतिक विकास को बढ़ावा मिलता हैं किन्तु अभिभावकों की खेल के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति एवम् क्रियाकलाप ने बुरी तरह प्रभावित किया हैं। अतः यह अनिवार्य हैं कि शिक्षक और माता-पिता खेल के महत्व को समझें। खेल के बारे में आम धारणा यह है कि यह काम का विलोम है। खेल एक ऐसी स्थिति है जिसमें लोग कोई उपयोगी या विशिष्ट काम नहीं कर रहे होते हैं। खेल के बारे में एक सोच यह भी है कि यह आनन्ददायक, मुक्त और अनायास होता है। यह दृष्टिकोण छोटे बच्चे के विकास में खेल के महत्व को नकारता है। कई सालों से कई मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तकार बच्चे के विकास में खेल के महत्व पर जोर देने लगे हैं। इन्होंने खेल के अनेक पक्षों पर बल दिया है और बताया है कि खेल कैसे मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करता है। मनोवैज्ञानिकों की दृष्टि में खेल अतीत से मुक्त और पुर्नजीवन का रास्ता है। यह खोज, पहल और स्वतंत्रता है। खेल से मनुष्य की मनोवैज्ञानिक जरूरतें पूरी होती हैं। तथा वह मनुष्य को सामाजिक कौशलों के विकास का भी अवसर देता है। पियाजे के अनुसार खेल बच्चों की मानसिक क्षमताओं के विकास में भी एक बड़ी भूमिका निभाते हैं। पहले चरण में बच्चा वस्तुओं के साथ संवेदन प्राप्त करने व कार्य संचालन करने का प्रयास करता है। दूसरे चरण में बच्चा कल्पनाओं को रूप देने के लिए वस्तुओं को किसी के प्रतीक के रूप में उपयोग करने लगता है। अन्तिम चरण में (7 से 11 वर्ष) काल्पनिक भूमिकाओं के खेलों की तुलना में बच्चा नियमबद्ध खेल (या क्रीड़ाओं) में संलग्न रहता है। खेलों से तार्किक क्षमता व स्कूल सम्बन्धी कौशलों को विकसित होने में मदद मिलती है। वाइगोत्स्की उसके विचारों से प्रेरित शोधकर्त्ता यह नहीं मानते कि खेलों में उम्र के साथ सहज परिवर्तन हो जाता है। वे वयस्कों व सामाजिक सन्दर्भों से मिलने वाले मार्गदर्शन को इसके लिए महत्त्वपूर्ण मानते हैं। उनके अनुसार बच्चों के खेल के स्तर को वयस्क बढ़ा सकते हैं। वाइगोत्स्की के अनुसार - जटिल भूमिकाओं वाले खेलों में बच्चों का अपने व्यवहार को संगठित करने का बेहतर व सुरक्षित अवसर मिलता है जो वास्तविक स्थितियों में नहीं मिलता। इस तरह खेल बच्चे के लिए निकट विकास का क्षेत्र बनाते है। स्कूली स्थिति की तुलना में खेल के दौरान बच्चों की एकाग्रता, स्मृति आदि उच्चतर स्तर पर काम करती हैं। खेल में बच्चे की नई विकासमान दक्षताएँ पहले उभर कर आती हैं। खेल नाटकों में बच्चा अपने आन्तरिक विचार के अनुसार काम करता है और मूर्त रूप में दिखने वाली चीज़ों से बँधा नहीं रहता। यहीं से उसमें अमूर्त चिन्तन व विचार करने की तैयारी होने लगती है। यह लेखन की भी तैयारी होती है क्योंकि लिखित रूप में शब्द वस्तु जैसा नहीं होता, उसके विचार का प्रतीक होता है। जितनी उम्र तक खेल में जटिल और विस्तृत भूमिकाओं व भाषा का प्रयोग होता है वह बच्चे के विकास के लिए एक प्रमुख गतिविधि बना रहता है। यह स्थिति 10-11 साल तक के बच्चों में कम रह सकती है। धीरे-धीरे इसका महत्व कम होने लगता है। शिक्षक बच्चों को खेलने का पर्याप्त समय व साधन देकर विषयों का सुझाव देकर, झगड़ों का समाधान करके खेल को और समृद्ध बना सकते हैं। .

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क्लिक (२००६ फ़िल्म)

क्लिक (अंग्रेज़ी: Click) एक २००६ अमेरिकी कॉमेडी नाटक फिल्म। फिल्म पर उत्तरी अमेरिका में जारी किया गया था २३ जून, २००६। यह कोलंबिया पिक्चर्स द्वारा वितरित किया गया। यह उसी वर्ष भारत में जारी किया गया था। .

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कौमुदी महोत्सव

कौमुदी महोत्सव प्राचीन भारत में मनाया जाने वाला एक उत्सव था। यह कौमुदी के दिन (अर्थात् कार्तिक मास की पूर्णिमा) मनाया जाता था। 'कौमुदीमहोत्सवम्' नाम का एक नाटक भी है जो विज्जिका अथवा विजयभट्टारिका अथवा विजयाम्बिका की रचना है जो कर्नाट की रानी थीं। यह नाटक पाँच काण्डों में है। नाटक पाटलिपुत्र के राजकुमार कल्याणवर्मन के जीवन पर आधारित है। .

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कृष्णाजी प्रभाकर खाडिलकर

कृष्णजी प्रभाकर खाडिलकर (1872 - 1948 ई.) मराठी साहित्यकार, नाट्याचार्य, पत्रकार तथा लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के सहयोगी थे। वे काका साहब खाडिलकर के नाम से विशेष प्रसिद्ध थे। एक महान् देशभक्त के रूप में आज भी उनका पर्याप्त सम्मान है। मराठी नाटय-सृष्टि में उन्होंने बहुमूल्य कार्य किया। मराठी नाट्य प्रेमियों ने अत्यंत स्नेह भाव से उन्हें ‘नाट्याचार्य’ की पदवी से विभूषित किया। महाराष्ट्र में आधुनिक पत्रकारिता की नींव उन्हीं ने डाली थी। वे श्रेष्ठ चिंतक तथा वैदिक साहित्य के अभ्यासक थे। वे सादगी, सदाचार और ईमानदारी, देशभक्ति, स्वाभिमान व नेकी आदि गुणों की प्रत्यक्ष मूर्ति ही थे। .

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कैलाश वाजपेयी

कैलाश वाजपेयी (11 नवंबर 1936 - 01 अप्रैल, 2015) हिन्दी साहित्यकार थे। उनका जन्म हमीरपुर उत्तर-प्रदेश में हुआ। उनके कविता संग्रह ‘हवा में हस्ताक्षर’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था। .

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कैज़ राथ

कैज़ राथ कश्मीरी भाषा के विख्यात साहित्यकार सजूद सैलानी द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1994 में कश्मीरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कूडियाट्टम्

प्राचीन संस्कृत नाटकों का पुरातन केरलीय नाट्य रूप कूडियाट्टम कहलाता है। दो हज़ार वर्ष पुराने कूडियाट्टम को युनेस्को ने 'वैश्विक पुरातन कला' के रूप में स्वीकार किया है। यह मंदिर-कला है जिसे चाक्यार और नंपियार समुदाय के लोग प्रस्तुत करते हैं। साधारणतः कूत्तंपलम नामक मंदिर से जुडे नाट्यगृहों में इस कला का मंचन होता है। कूडियाट्टम प्रस्तुत करने के लिए दीर्घकालीन प्रशिक्षण की आवश्यकता है। कूडियाट्टम शब्द का अर्थ है - 'संघ नाट्य' अथवा अभिनय अथवा संघटित नाटक या अभिनय। कूडियाट्टम में अभिनय को प्राधान्य दिया जाता है। भारत के नाट्यशास्त्र में अभिनय की चार रीति बताई गयी है - आंगिक, वाचिक, सात्विक और आहार्य। ये चारों रीतियाँ कूडियाट्टम में सम्मिलित रूप में जुडी हैं। कूडियाट्टम में हस्तमुद्राओं का प्रयोग करते हुए विशद अभिनय किया जाता है। इसमें इलकियाट्टम, पकर्न्नाट्टम, इरुन्नाट्टम आदि विशेष अभिनय रीतियाँ भी अपनाई जाती हैं। कूडियाट्टम में संस्कृत नाटकों की प्रस्तुति होती है, लेकिन पूरा नाटक प्रस्तुत नहीं किया जाता। प्रायः एक अंक का ही अभिनय किया जाता है। अंकों को प्रमुखता दिय्र जाने के कारण प्रायः कूडियाट्टम अंकों के नाम से जाना जाता है। इसी कारण से विच्छिन्नाभिषेकांक, माया सीतांक, शूर्पणखा अंक आदि नाम प्रचलित हो गये। कूडियाट्टम के लिए प्रयुक्त संस्कृत नाटकों के नाम इस प्रकार हैं - भास का 'प्रतिमानाटकम्', 'अभिषेकम्', 'स्वप्नवासवदत्ता', 'प्रतिज्ञायोगंधरायणम्', 'ऊरुभंगम', 'मध्यमव्यायोगम्', 'दूतवाक्यम' आदि। श्रीहर्ष का 'नागानन्द', शक्तिभद्र का 'आश्चर्यचूडामणि', कुलशेखरवर्मन के 'सुभद्राधनंजयम', 'तपती संवरणम्', नीलकंठ का 'कल्याण सौगंधिकम्', महेन्द्रविक्रमन का 'मत्तविलासम', बोधायनन का 'भगवद्दज्जुकीयम'। नाटक का एक पूरा अंक कूडियाट्टम में प्रस्तुत करने के लिए लगभग आठ दिन का समय लगता है। पुराने ज़माने में 41 दिन तक की मंचीय प्रस्तुति हुआ करती थी। किन्तु आज यह प्रथा लुप्त होगई है। कूत्तंपलम (नाट्यगृह) में भद्रदीप के सम्मुख कलाकार नाट्य प्रस्तुति करते हैं। अभिनय करने के संदर्भ में बैठने की आवश्यकता भी पड़ सकती है। इसीलिए दो-एक पीठ भी रखे जाते हैं। जब कलाकार मंच पर प्रवेश करता है तब यवनिका पकडी जाती है। कूडियाट्टम का प्रधान वाद्य मिष़ाव नामक बाजा है। इडक्का, शंख, कुरुम्कुष़ल, कुष़ितालम् आदि दूसरे वाद्यंत्र हैं। विशेष रूप में निर्मित कूत्तंपलम् कूडियाट्टम की परंपरागत रंगवेदी है। कूत्तंपलम मंदिर के प्रांगण ही निर्मित होता था। कूत्तंपलम से युक्त मंदिरों के नाम इस तरह हैं - 1.

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के वी सुब्बण्ण

कुन्तगोडु विभूति सुब्बण्ण (20 फरवरी 1932 – 16 जुलाई 2005) प्रसिद्ध कन्नड लेखक एवं नाटककार थे। उन्होने विश्वप्रसिद्ध 'नीनासं (नीलकण्ठ नाट्य संघ) की स्थापना की। इनके द्वारा रचित एक निबंध–संग्रह कविराज मार्ग मत्तु कन्नड जगत्तु के लिये उन्हें सन् २००३ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कन्नड़) से सम्मानित किया गया। .

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केट विंसलेट

केट एलिज़ाबेथ विंसलेट (जन्म, 5 अक्टूबर 1975), एक अंग्रेज़ अभिनेत्री और अनियमित गायिका हैं। विंसलेट ने अपने फ़िल्मी-जीवन की शुरूआत उन्नीस वर्ष की उम्र में पीटर जैक्सन की हेवेनली क्रीएचर्स (1994) से की.

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कोंकणी भाषा

कोंकणी गोवा, महाराष्ट्र के दक्षिणी भाग, कर्नाटक के उत्तरी भाग, केरल के कुछ क्षेत्रों में बोली जाती है। भाषायी तौर पर यह 'आर्य' भाषा परिवार से संबंधित है और मराठी से इसका काफी निकट का संबंध है। राजनैतिक तौर पर इस भाषा को अपनी पहचान के लिये मराठी भाषा से काफी संघर्ष करना पड़ा है। अब भारतीय संविधान के तहत कोंकणी को आठवीं अनुसूची में स्थान प्राप्त है। १९८७ में गोवा में कोंकणी को मराठी के बराबर राजभाषा का दर्जा दिया गया किन्तु लिपि पर असहमति के कारण आजतक इस पर अमल नहीं किया जा सका। कोंकणी अनेक लिपियों में लिखी जाती रही है; जैसे - देवनागरी, कन्नड, मलयालम और रोमन। गोवा को राज्य का दर्जा मिलने के बाद दवनागरी लिपि में कोंकणी को वहाँ की राजभाषा घोषित किया गया है। .

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कीरत बाबाणी

कीरत बाबाणी सिन्धी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक धर्ती–अ–जो–साद के लिये उन्हें सन् 2006 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अधूरी आवाज

अधूरी आवाज कमलेश्वर का एक नाटक है। आवाज, अधूरी आवाज, अधूरी आवाज, अधूरी श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अनुवाद

किसी भाषा में कही या लिखी गयी बात का किसी दूसरी भाषा में सार्थक परिवर्तन अनुवाद (Translation) कहलाता है। अनुवाद का कार्य बहुत पुराने समय से होता आया है। संस्कृत में 'अनुवाद' शब्द का उपयोग शिष्य द्वारा गुरु की बात के दुहराए जाने, पुनः कथन, समर्थन के लिए प्रयुक्त कथन, आवृत्ति जैसे कई संदर्भों में किया गया है। संस्कृत के ’वद्‘ धातु से ’अनुवाद‘ शब्द का निर्माण हुआ है। ’वद्‘ का अर्थ है बोलना। ’वद्‘ धातु में 'अ' प्रत्यय जोड़ देने पर भाववाचक संज्ञा में इसका परिवर्तित रूप है 'वाद' जिसका अर्थ है- 'कहने की क्रिया' या 'कही हुई बात'। 'वाद' में 'अनु' उपसर्ग उपसर्ग जोड़कर 'अनुवाद' शब्द बना है, जिसका अर्थ है, प्राप्त कथन को पुनः कहना। इसका प्रयोग पहली बार मोनियर विलियम्स ने अँग्रेजी शब्द टांंसलेशन (translation) के पर्याय के रूप में किया। इसके बाद ही 'अनुवाद' शब्द का प्रयोग एक भाषा में किसी के द्वारा प्रस्तुत की गई सामग्री की दूसरी भाषा में पुनः प्रस्तुति के संदर्भ में किया गया। वास्तव में अनुवाद भाषा के इन्द्रधनुषी रूप की पहचान का समर्थतम मार्ग है। अनुवाद की अनिवार्यता को किसी भाषा की समृद्धि का शोर मचा कर टाला नहीं जा सकता और न अनुवाद की बहुकोणीय उपयोगिता से इन्कार किया जा सकता है। ज्त्।छैस्।ज्प्व्छ के पर्यायस्वरूप ’अनुवाद‘ शब्द का स्वीकृत अर्थ है, एक भाषा की विचार सामग्री को दूसरी भाषा में पहुँचना। अनुवाद के लिए हिंदी में 'उल्था' का प्रचलन भी है।अँग्रेजी में TRANSLATION के साथ ही TRANSCRIPTION का प्रचलन भी है, जिसे हिंदी में 'लिप्यन्तरण' कहा जाता है। अनुवाद और लिप्यंतरण का अंतर इस उदाहरण से स्पष्ट है- इससे स्पष्ट है कि 'अनुवाद' में हिंदी वाक्य को अँग्रेजी में प्रस्तुत किया गया है जबकि लिप्यंतरण में नागरी लिपि में लिखी गयी बात को मात्र रोमन लिपि में रख दिया गया है। अनुवाद के लिए 'भाषांतर' और 'रूपांतर' का प्रयोग भी किया जाता रहा है। लेकिन अब इन दोनों ही शब्दों के नए अर्थ और उपयोग प्रचलित हैं। 'भाषांतर' और 'रूपांतर' का प्रयोग अँग्रेजी के INTERPRETATION शब्द के पर्याय-स्वरूप होता है, जिसका अर्थ है दो व्यक्तियों के बीच भाषिक संपर्क स्थापित करना। कन्नडभाषी व्यक्ति और असमियाभाषी व्यक्ति के बीच की भाषिक दूरी को भाषांतरण के द्वारा ही दूर किया जाता है। 'रूपांतर' शब्द इन दिनों प्रायः किसी एक विधा की रचना की अन्य विधा में प्रस्तुति के लिए प्रयुक्त है। जैस, प्रेमचन्द के उपन्यास 'गोदान' का रूपांतरण 'होरी' नाटक के रूप में किया गया है। किसी भाषा में अभिव्यक्त विचारों को दूसरी भाषा में यथावत् प्रस्तुत करना अनुवाद है। इस विशेष अर्थ में ही 'अनुवाद' शब्द का अभिप्राय सुनिश्चित है। जिस भाषा से अनुवाद किया जाता है, वह मूलभाषा या स्रोतभाषा है। उससे जिस नई भाषा में अनुवाद करना है, वह 'प्रस्तुत भाषा' या 'लक्ष्य भाषा' है। इस तरह, स्रोत भाषा में प्रस्तुत भाव या विचार को बिना किसी परिवर्तन के लक्ष्यभाषा में प्रस्तुत करना ही अनुवाद है।ज .

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अफ़सर बिटिया

अफ़सर बिटिया ज़ी टीवी पर एक हिन्दुस्तानी तेलेविजन् ओपेरा प्रसारण है। .

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अभिनय

अभिनय करती हुई श्रीनिका पुरोहित अभिनय किसी अभिनेता या अभिनेत्री के द्वारा किया जाने वाला वह कार्य है जिसके द्वारा वे किसी कथा को दर्शाते हैं, साधारणतया किसी पात्र के माध्यम से। अभिनय का मूल ग्रन्थ नाट्यशास्त्र माना जाता है। इसके रचयिता भरतमुनि थे। जब प्रसिद्ध या कल्पित कथा के आधार पर नाट्यकार द्वारा रचित रूपक में निर्दिष्ट संवाद और क्रिया के अनुसार नाट्यप्रयोक्ता द्वारा सिखाए जाने पर या स्वयं नट अपनी वाणी, शारीरिक चेष्टा, भावभंगी, मुखमुद्रा वेषभूषा के द्वारा दर्शकों को, शब्दों को शब्दों के भावों का प्रिज्ञान और रस की अनुभूति कराते हैं तब उस संपूर्ण समन्वित व्यापार को अभिनय कहते हैं। भरत ने नाट्यकारों में अभिनय शब्द की निरुक्ति करते हुए कहा है: "अभिनय शब्द 'णीं' धातु में 'अभि' उपसर्ग लगाकर बना है। अभिनय का उद्देश्य होता है किसी पद या शब्द के भाव को मुख्य अर्थ तक पहुँचा देना; अर्थात्‌ दर्शकों या सामाजिकों के हृदय में भाव या अर्थ से अभिभूत करना"। कविराज विश्वनाथ ने सहित्य दर्पण के छठे परिच्छेद के आरम्भ में कहा है: 'भवेदभिनयोSवस्थानुकार:' अर्थात् अवस्था का अनुकरण ही अभिनय कहलाता है। अभिनय करने की प्रवृत्ति बचपन से ही मनुष्य में तथा अन्य अनेक जीवों में होती है। हाथ, पैर, आँख, मुंह, सिर चलाकर अपने भाव प्रकट करने की प्रवृत्ति सभ्य और असभ्य जातियों में समान रूप से पाई जाती है। उनके अनुकरण कृत्यों का एक उद्देश्य तो यह रहता है कि इससे उन्हें वास्तविक अनुभव जैसा आनंद मिलता है और दूसरा यह कि इससे उन्हें दूसरों को अपना भाव बताने में सहायता मिलती है। इसी दूसरे उद्देश्य के कारण शारीरिक या आंगिक चेष्टाओं और मुखमुद्राओं का विकास हुआ जो जंगली जातियों में बोली हुई भाषा के बदले या उसकी सहायक होकर अभिनय प्रयोग में आती है। .

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अभिज्ञानशाकुन्तलम्

शकुंतला राजा रवि वर्मा की कृति. दुष्यन्त को पत्र लिखती शकुंतलाराजा रवि वर्मा की कृति. हताश शकुंतलाराजा रवि वर्मा की कृति. अभिज्ञान शाकुन्तलम् महाकवि कालिदास का विश्वविख्यात नाटक है ‌जिसका अनुवाद प्राय: सभी विदेशी भाषाओं में हो चुका है। इसमें राजा दुष्यन्त तथा शकुन्तला के प्रणय, विवाह, विरह, प्रत्याख्यान तथा पुनर्मिलन की एक सुन्दर कहानी है। पौराणिक कथा में दुष्यन्त को आकाशवाणी द्वारा बोध होता है पर इस नाटक में कवि ने मुद्रिका द्वारा इसका बोध कराया है। इसकी नाटकीयता, इसके सुन्दर कथोपकथन, इसकी काव्य-सौंदर्य से भरी उपमाएँ और स्थान-स्थान पर प्रयुक्त हुई समयोचित सूक्तियाँ; और इन सबसे बढ़कर विविध प्रसंगों की ध्वन्यात्मकता इतनी अद्भुत है कि इन दृष्टियों से देखने पर संस्कृत के भी अन्य नाटक अभिज्ञान शाकुन्तल से टक्कर नहीं ले सकते; फिर अन्य भाषाओं का तो कहना ही क्या ! तो यहीं सबसे ज्यादा अच्छा है। .

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अमेरिकन हॉरर स्टोरी

अमेरिकन हॉरर स्टोरी (American Horror Story) अमेरिकी पद्यावली हॉरर-ड्रामा गल्प टेलीविज़न शृंखला है जिसका निर्माण रायन मर्फी और ब्रैड फॅलचक ने किया है। धारावाहिक का पहला सत्र हार्मन परिवार पर केन्द्रित है। परिवार में तीन सदस्य हैं: बॅन, विविएन और उनकी पुत्री वायलेट। परिवार विविएन के गर्भपात व बॅन के विवाहेतर संबंध के बाद नई शरुआत के लिए बोस्टन से लॉस एंजिल्स रहने चला जाता है। लॉस एंजिल्स में वे एक बहाल की हुई हवेली में रहने लगते हैं, इस तथ्य से अनजान कि घर उसके पूर्व निवासियों द्वारा प्रेतवाधित है। शृंखला का संयुक्त राज्य अमेरिका में केबल टेलीविज़न चैनल FX पर प्रसारण होता है। इसका प्रीमियर अक्टूबर 5, 2011, को हुआ था और यह अपने छह सत्र पूरे कर चुकी है। अक्टूबर 2011 के अंत में FX ने घोषणा की थी कि शृंखला का दूसरे सत्र के लिए नवीकरण कर दिया गया है, व इसमें 13 प्रकरण होंगे जो बढ़ भी सकते हैं। दिसंबर 2011 में मर्फी ने अपनी दूसरे सत्र के लिए पात्रों और स्थान को बदलने की योजना की घोषणा की। अमेरिकन हॉरर स्टोरी को टेलीविज़न आलोचकों और प्रशंसकों द्वारा सराहा गया था। कलाकारों की सामान्यतः सराहना की गई थी, विशेष रूप से जेसिका लैंग। शृंखला ने लगातार FX नॅटवर्क के लिए उच्च रेटिंग प्राप्त करीं, तथा अपने पहले सत्र के अंत के पश्चात यह वर्ष की सबसे बड़ी नई केबल शृंखला के रूप में उभरी। .

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अयोधिया

अयोधिया डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार दीनू भाई पंत द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1985 में डोगरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अरण्य फ़सल

अरण्य फ़सल ओड़िया भाषा के विख्यात साहित्यकार मनोरंजन दास द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1971 में ओड़िया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अरस्तु

अरस्तु अरस्तु (384 ईपू – 322 ईपू) यूनानी दार्शनिक थे। वे प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु थे। उनका जन्म स्टेगेरिया नामक नगर में हुआ था ।  अरस्तु ने भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीतिशास्त्र, जीव विज्ञान सहित कई विषयों पर रचना की। अरस्तु ने अपने गुरु प्लेटो के कार्य को आगे बढ़ाया। प्लेटो, सुकरात और अरस्तु पश्चिमी दर्शनशास्त्र के सबसे महान दार्शनिकों में एक थे।  उन्होंने पश्चिमी दर्शनशास्त्र पर पहली व्यापक रचना की, जिसमें नीति, तर्क, विज्ञान, राजनीति और आध्यात्म का मेलजोल था।  भौतिक विज्ञान पर अरस्तु के विचार ने मध्ययुगीन शिक्षा पर व्यापक प्रभाव डाला और इसका प्रभाव पुनर्जागरण पर भी पड़ा।  अंतिम रूप से न्यूटन के भौतिकवाद ने इसकी जगह ले लिया। जीव विज्ञान उनके कुछ संकल्पनाओं की पुष्टि उन्नीसवीं सदी में हुई।  उनके तर्कशास्त्र आज भी प्रासांगिक हैं।  उनकी आध्यात्मिक रचनाओं ने मध्ययुग में इस्लामिक और यहूदी विचारधारा को प्रभावित किया और वे आज भी क्रिश्चियन, खासकर रोमन कैथोलिक चर्च को प्रभावित कर रही हैं।  उनके दर्शन आज भी उच्च कक्षाओं में पढ़ाये जाते हैं।  अरस्तु ने अनेक रचनाएं की थी, जिसमें कई नष्ट हो गई। अरस्तु का राजनीति पर प्रसिद्ध ग्रंथ पोलिटिक्स है। .

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अरांबम समरेन्द्र सिंह

अरांबम समरेन्द्र सिंह मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक लेपाकले के लिये उन्हें सन् 1995 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अल्फाज़

अल्फाज़ (Alphas) एक अमेरिकी विज्ञान कथा नाटकीय टेलीविजन श्रृंखला है जिसका निर्माण जेक पेन और माइकल केर्नो ने किया है। श्रृंखला कुछ अतिमानवीय क्षमताओं के लोगों के समूह पे आधारित है जिन्हें "अल्फास" के रूप में जाना जाता है और ये अन्य अल्फास द्वारा किये गये अपराधों को रोकने का काम करते हैं। श्रृंखला संयुक्त राज्य अमेरिका में साईफाई केबल चैनल पर प्रसारित होती है और बर्मनब्रौन व यूनिवर्सल केबल प्रोडक्शंस के बीच का सह-उत्पादन है। इसका प्रीमियर जुलाई 11, 2011 को हुआ था। प्रारंभिक रिपोर्टों के बाद कि शो रद्द कर दिया गया था, अल्फास सितंबर 11, 2011, को अपने दूसरे सत्र के लिए 13 प्रकरणों के साथ नवीकृत कर दिया गया। .

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अलौकिक ड्रामा

अलौकिक ड्रामा या अलौकिक नाटक फैंटेसी का उप-प्रकार है जिसमें अलौकिक गल्प व ड्रामा के तत्वों का संयोजन होता है। यह शैली भूत और अन्य असाधारण विषयों के साथ संबंधित है, लेकिन हॉरर शैली के साथ संबद्ध रखने वाले स्वर और भय के बिना। अलौकिक ड्रामा की कहानी हमेशा जादू या अस्पष्टीकृत घटना के आसपास केन्द्रित होती है, जिसे विज्ञान के सिद्धांतों से तार्किक नहीं करा जा सकता, परन्तु उसका पॅगन या अलौकिक स्पष्टीकरण होता है। .

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अली मोहम्मद लोण

अली मोहम्मद लोण कश्मीरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक सुय्या के लिये उन्हें सन् 1972 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अष्टावक्र (महाकाव्य)

अष्टावक्र (२०१०) जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०–) द्वारा २००९ में रचित एक हिन्दी महाकाव्य है। इस महाकाव्य में १०८-१०८ पदों के आठ सर्ग हैं और इस प्रकार कुल ८६४ पद हैं। महाकाव्य ऋषि अष्टावक्र की कथा प्रस्तुत करता है, जो कि रामायण और महाभारत आदि हिन्दू ग्रंथों में उपलब्ध है। महाकाव्य की एक प्रति का प्रकाशन जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा किया गया था। पुस्तक का विमोचन जनवरी १४, २०१० को कवि के षष्टिपूर्ति महोत्सव के दिन किया गया। इस काव्य के नायक अष्टावक्र अपने शरीर के आठों अंगों से विकलांग हैं। महाकाव्य अष्टावक्र ऋषि की संपूर्ण जीवन यात्रा को प्रस्तुत करता है जोकि संकट से प्रारम्भ होकर सफलता से होते हुए उनके उद्धार तक जाती है। महाकवि, जो स्वयं दो मास की अल्पायु से प्रज्ञाचक्षु हैं, के अनुसार इस महाकाव्य में विकलांगों की सार्वभौम समस्याओं के समाधानात्मक सूत्र प्रस्तुत किए गए हैं। उनके अनुसार महाकाव्य के आठ सर्ग विकलांगों की आठ मनोवृत्तियों के विश्लेषण मात्र हैं।रामभद्राचार्य २०१०, पृष्ठ क-ग। .

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अस्मिता

अस्मिता दिल्ली स्थित रंगमंच कर्मियों की एक नाट्य संस्था (थियेटर ग्रुप) है। अस्मिता नाट्य संस्था ने नुक्कड़ नाटकॉ के साथ- साथ दो दशकों में 60 से अधिक मंच नाटक किये है। संस्था सामाजिक-राजनीतिक दृष्टि से प्रासंगिक व समकालीन मुद्दों पर नाटक करने के लिए प्रतिबद्ध है। इन दिनो अरविन्द गौड़ अस्मिता थियेटर ग्रुप के निदेशक के रूप मे कार्यरत है। .

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अजमेर सिंह औलख

अजमेर सिंह औलख 19 अगस्त 1942 - 15 जून 2017) पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक इश्क बाझ नमाज़ दा हज नाही के लिये उन्हें सन् 2006 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अंग्रेजी नाटक

इब्सन के प्रचार ने अंग्रेजी नाटक को नई दिशा दी। उसके नाटकों की कुछ विशेषताएँ ये थीं- समाज और व्यक्ति की साधारण समस्याएँ; पुरानी नैतिकता की आलोचना; बाहरी संघर्षों के स्थान पर आंतरिक संघर्ष; रंगमंच पर यथार्थवाद; विवरणात्मक साज-सज्जा; स्वगत का बहिष्कार; बोलचाल की भाषा से निकटता; प्रतीकवाद। इब्सन के नाटक समस्या नाटक हैं। 20वीं शताब्दी के प्रारंभिक नाटककारों पर इब्सन के अतिरिक्त चेखव का भी गहरा असर पड़ा। ऐसे नाटककारों में सबसे प्रमुख शॉ और गाल्सवर्दी के अतिरिक्त ग्रैनबिल बार्कर, सेंट जॉन हैंकिन, जॉन मेसफील्ड, सेंट जॉन अर्विन, आर्नल्ड बेनेट इत्यादि हैं। इस युग में कॉमेडी ऑव मैनर्स की परंपरा भी विकसित हुई है। 19वीं शताब्दी के अंत में ऑस्कर वाइल्ड ने इसको पुनरुज्जीवित किया था। 20वीं शताब्दी में इसके प्रमुख लेखकों में शॉ, मॉम, लांसडेल, सेंट अर्विन, मुनरो, नोएल काअर्ड, ट्रैवर्स, रैटिगन इत्यादि हैं। समस्या नाटकों की परंपरा भा आगे बढ़ी है। उनके लेखकों में सबसे प्रसिद्ध ओफ़ कैसी के अतिरिक्त शेरिफ, मिल्न, प्रीस्टले और जॉन व्हॉन ड्रटेन हैं। इस युग के ऐतिहासिक नाटककारों में सबसे प्रसिद्ध डिं्रकवाटर, बैक्स और जेम्स ब्रिडी हैं। काव्य नाटकों का विकास भी अनेक लेखकों ने किया है। उनमें स्टीफेन फिलिप्स, येट्स, मेसफील्ड, डिं्रकवाटर, बाम्ली, फ्लेकर, अबरक्रुंबी, टी.एस.

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अंग्रेजी साहित्य

अंग्रेजी साहित्य के प्राचीन एवं अर्वाचीन काल कई आयामों में विभक्त किए जा सकते हैं। यह विभाजन केवल अध्ययन की सुविधा के लिए किया जाता है; इससे अंग्रेजी साहित्य प्रवाह को अक्षुण्णता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। प्राचीन युग के अंग्रेजी साहित्य के तीन स्पष्ट आयाम है: ऐंग्लो-सैक्सन; नार्मन विजय से चॉसर तक; चॉसर से अंग्रेजी पुनर्जागरण काल तक। .

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उड़ान (2014 टीवी धारावाहिक)

उड़ान एक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक है जो कलर्स टीवी पर प्रसारित होता है। .

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उड़ान (धारावाहिक)

उड़ान किरण बेदी के जीवन से प्रेरित दूरदर्शन पर प्रसारित एक लोकप्रिय टेलिविज़न धारावाहिक था जिसके निर्देशन के साथ साथ केंद्रीय भूमिका कविता चौधरी ने निभाई थी। कविता इससे पहले एक साबुन की विज्ञापन फिल्म में ललिता जी के नाम से पहचानी जाती थीं। इस धारावाहिक में साधाराण परिवार की एक लड़की के एक आईपीएस अफसर बनने का सफर दिखाया गया था। धारावाहिक में विक्रम गोखले और शेखर कपूर भी महत्वपूर्ण भूमिका में थे। श्रेणी:भारतीय टेलीविजन धारावाहिक श्रेणी:दूरदर्शन धारावाहिक.

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उडुपी राजगोपालाचार्य अनंतमूर्ति

उडुपी राजगोपालाचार्य अनंतमूर्ति (२१ दिसम्बर १९३२ - २२ अगस्त २०१४) समकालीन कन्नड़ साहित्यकार, आलोचक और शिक्षाविद् हैं। इन्हें कन्नड़ साहित्य के नव्या आंदोलन का प्रणेता माना जाता है। इनकी सबसे प्रसिद्ध रचना संस्कार है। ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले आठ कन्नड़ साहित्यकारों में वे छठे हैं। उन्होंने महात्मा गांधी विश्वविद्यालय तिरुअनन्तपुरम् और केंद्रीय विश्वविद्यालय गुलबर्गा के कुलपति के रूप में भी काम किया था। साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सन १९९८ में भारत सरकार द्वारा इन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। २०१३ के मैन बुकर पुरस्कार पाने वाले उम्मीदवारों की अंतिम सूची में इन्हें भी चुना गया था। २२ अगस्त २०१४ को ८१ वर्ष की अवस्था में बंगलूर (कर्नाटक) में इनका निधन हो गया। <ref>मशहूर साहित्यकार अनंतमूर्ति का निधन - BBC Hindi - भारत http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2014/08/140822_ananthamurthy_obituary_du.shtml </ref> .

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उण्यायि वारियर

उण्यायि वारियर उण्णायि वारियर (१७वीं शताब्दी का उत्तरार्ध) मलयालम कवि, नाटककार, लेखक एवं विद्वान थे। उन्होने कथकली को अमूल्य योगदान दिया। उनकी 'नलचरितम्' नामक अट्टकथा अत्यन्त प्रसिद्ध है। .

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उत्तररामचरितम्

उत्तररामचरितम् महाकवि भवभूति का प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है, जिसके सात अंकों में राम के उत्तर जीवन की कथा है। भवभूति एक सफल नाटककार हैं। उत्तररामचरितम् में उन्होने ऐसे नायक से संबंधित इतिवृत्त का चयन किया है जो भारतीय संस्कृति की आत्मा है। इस कथानक का आकर्षण भारत के साथ साथ विदेशी जनमानस में भी सदा से रहा है और रहेगा। अपनी लेखनी चातुर्य से कवि ने राम के पत्नी परित्याग रूपी चरित्र के दोष को सदा के लिये दूर करदिया। साथ ही सीता को वनवास देने वाले राम का रुदन दिखाकर कवि ने सीता के अपमानित तथा दुःख भरे हृदय को बहुत शान्त किया हैं। साहित्य शास्त्र में जहॉं नाटकों में श्रृंगार अथवा वीर रस की प्रधानता का विधान है वही भवभूति ने उसके विपरीत करुण रस प्रधान नाटक लिखकर नाट्यजगत में एक अपूर्व क्रान्ति ला दी। भवभूति तो यहॉं तक कहते हैं कि करुण ही एकमात्र रस है। वही करुण निमित्त भेद से अन्य रूपों में व्यक्त हुआ है। विवाह से पूर्व नायक नायिका का श्रृंगार वर्णन तो प्रायः सभी कवियों ने सफलता के साथ किया है परन्तु भवभूति ने दाम्पत्य प्रेम का जैसा उज्जवल एवं विशद चित्र खींचा है वैसा अन्यत्र दुलर्भ है। सात अंकों में निबद्ध उत्तररामचरितम भवभूति की सर्वश्रेष्ठ नाट्यकृति है। इसमें रामराज्यमिषेक के पश्चात् जीवन का लोकोत्तर चरित वर्णित है जो महावीरचरित का ही उत्तर भाग माना जाता है।। संस्कृत नाट्यसाहित्य में मर्यादापुरषोत्तम श्री रामचन्द्र के पावन चरित्र से सम्बद्ध अनेक नाटक है किन्तु उनमें भवभूति का उत्तरराम चरितम् अपना एक अलग ही वैशिष्ट्य रखता है। काव्य शास्त्र में जहॉं नाटकों में श्रृंगार अथवा वीर रस की प्रधानता का विधान है वहीं भवभूति ने उसके विपरीत करुण रस प्रधान नाटक रचकर नाट्यजगत में एक अपूर्व क्रान्तिला दी है। उत्तररामचरितम् में प्रेम का जैसा शुद्ध रूप देखने को मिलता है वैसा अन्य कवियों की कृत्तियों में दुर्लभ है। कवि ने इस नाटक के माध्यम से राजा का वह आदर्श रूप प्रस्तुत किया है जो स्वार्थ और त्याग की मूर्ति है तथा प्रजारंजन ही जिसका प्रधान धर्म है। प्रजा सुख के लिये प्राणप्रिया पत्नी का भी त्याग करने में जिसे कोई हिचक नहीं है। इस नाटक में प्रकृति के कोमल तथा मधुर रूप के वर्णन की अपेक्षा उसके गम्भीर तथा विकट रूप का अधिक वर्णन हुआ है जो अद्वितीय एवं श्लाघनीय हैं। वास्तव में यह नाटक अन्य नाटकों की तुलना में निराला ही है। इसी कारण संस्कृत नाट्य जगत में इसका विशेष स्थान है। सार रूप में यही कहा जा सकता है कि विश्वास की महिमा में, प्रेम की पवित्रता में, भावनाओं की तरंगक्रीड़ा में, भाषा के गम्भीर्य में और हृदय के माहात्म्य में उत्तररामचरितम् श्रेष्ठ एवं अतुलनीय नाटक है। .

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उदय भेंब्रे

उदय भेंब्रे कोंकणी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक कर्ण पर्व के लिये उन्हें सन् 2015 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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उपशास्त्रीय संगीत

उपशास्त्रीय संगीत में शास्त्रीय संगीत तथा लोक संगीत अथवा शास्त्रीय संगीत और लोकप्रिय संगीत जैसे पश्चिमी या पॉप का मिश्रण होता है। ऐसा संगीत को लोकप्रिय बनाने या विशेष प्रभाव उत्पन्न करने के लिए फ़िल्मों या नाटकों में किया जाता है। लोकगीतों में ध्रुपद, धमार, होली व चैती आदि अनेक विधाएँ हैं जो पहले लोक संगीत की भांति प्रकाश में आए और बाद में उनका शास्त्रीयकरण किया गया। इनके शास्त्रीय रूप का विद्वान पूरी तरह पालन करते हैं, लेकिन आज भी लोक-संगीतकार इनके शास्त्रीय रूप का गंभीरता से पालन किए बिना इन्हें सुंदरता से प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार के मिश्रण को उपशास्त्रीय संगीत कहते हैं। श्रेणी:संगीत.

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उपसंहार

अचछा उपसंहार् बेन जॉनसन सामान्यत: किसी रचना (विशेष रूप से गद्य अथवा नाटकीय) के अन्त में प्रस्तुत किया जानेवाला वह हिस्सा जिसमें सम्पूर्ण कृति का सार, उसका अभिप्राय और स्पष्टीकरण (कभी-कभी निबंध के लिए॰प्रसंगेतर लेकिन तत्संबंधी आवश्यक, अतिरिक्त सूचनाएँ) समाविष्ट हों, उपसंहार (या, पुश्तलेख, या अन्त्यलेख; अंग्रेजी में - ए॰िलॉग) कहलाता है। मूलत: इसका उपयोग नाटकों में होता था जिनमें प्राय: नाटक के अन्त में नाटक का सूत्रधार अथवा कोई पात्र नाटक के बारे में श्रोताओं की धारणा को अनुकूल बनाने के लिए॰ए॰ संक्षिप्त वक्तव्य प्रस्तुत करता था। शेक्सपियर के ए॰ाध नाटकों में इस प्रकार के उपसंहारों का महत्वपूर्ण स्थान है। बेन जानसन के नाटकों में इस पद्धति के नियमित व्यवहार का ए॰ कारण यह भी कहा जा सकता है कि वह प्राय: श्रोताओं के सामने नाटक के दोषों को छिपाने के लिए॰ही इनकी योजना करता था। 1660 तक आते-आते जब नाटकों की परंपरा का ह्रास होने लगा तो इनका महत्व बहुत ज्यादा हो गया-यहाँ तक कि प्राय: नाटककार अथवा नाट्यनिर्देशक प्रसिद्ध कवियों से यह भाग लिखवाने लगे। इस स्थिति में की अच्छी समीक्षा ड्राइडन ने अपने विख्यात निबंध 'डिफेंस ऑव ए॰ीलोग' में की है। वर्तमान समय के नाटककारों ने इसे इतना महत्व नहीं दिया। वर्तमान साहत्य में इसने नाटकों की अपेक्षा विचारात्मक और विवेचनात्मक और गवेषणात्मक निबंधों में वैज्ञानिकों, दार्शनिकों और अन्य विचारकों ने इसका पर्याप्त उपयोग किया है। कोश साहित्य और वैज्ञानिक अथवा गणनाप्रधान आलेखों में नए तथ्यों को बिना समूची पुस्तक को बदले अतिरिक्त पृष्ठों में सामग्री का आकलन कर सकना सहज हो गया है। सामान्यत: उपसंहार का उपयोग विवेचनात्मक साहित्य में अधिक होता है और अन्त्यलेख अथवा पुश्तलेख का उपयोग कोश अथवा अन्य तकनीकी साहित्य में। श्रेणी:साहित्य.

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उपेन्द्रनाथ अश्क

उपेन्द्र नाथ अश्क (१९१०- १९ जनवरी १९९६) उर्दू एवं हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार तथा उपन्यासकार थे। ये अपनी पुस्तक स्वयं ही प्रकाशित करते थे। .

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उर्वशी (महाकाव्य)

उर्वशी रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा रचित काव्य नाटक है। १९६१ ई. में प्रकाशित इस काव्य में दिनकर ने उर्वशी और पुरुरवा के प्राचीन आख्यान को एक नये अर्थ से जोड़ना चाहा है। अन्य रचनाओं से इतर उर्वशी राष्ट्रवाद और वीर रस प्रधान रचना है। इसके लिए १९७२ में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। इस कृति में पुरुरवा और उर्वशी अलग-अलग तरह की प्यास लेकर आये हैं। पुरुरवा धरती पुत्र है और उर्वशी देवलोक से उतरी हुई नारी है। पुरुरवा के भीतर देवत्व की तृष्णा और उर्वशी सहज निश्चित भाव से पृथ्वी का सुख भोगना चाहती है। उर्वशी प्रेम और सौन्दर्य का काव्य है। प्रेम और सौन्दर्य की मूल धारा में जीवन दर्शन सम्बन्धी अन्य छोटी-छोटी धाराएँ आकर मिल जाती हैं। प्रेम और सुन्दर का विधान कवि ने बहुत व्यापक धरातल पर किया है। कवि ने प्रेम की छवियों को मनोवैज्ञानिक धरातल पर पहचाना है। दिनकर की भाषा में हमेशा एक प्रत्यक्षता और सादगी दिखी है, परन्तु उर्वशी में भाषा की सादगी अलंकृति और आभिजात्य की चमक पहन कर आयी है-शायद यह इस कृति को वस्तु की माँग रही हो। .

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2009 की बॉलीवुड फिल्में

8x10 तस्वीर नामक फ़िल्म के प्रदर्शन के बाद इस वर्ष फ़िल्म निर्माताओं की हड़ताल आरम्भ हो गई थी जिसका कारण टिकटघर से सम्बंधित है, यह हड़ताल जून माह के शुरू में बन्द हुई। .

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2010 की बॉलीवुड फिल्में

यह पृष्ठ २०१० में निर्मित बॉलीवुड फ़िल्मों की एक सूची है। टिकट खिड़की पर 30 उच्चतम अर्जक फ़िल्मों की सूची में छः फ़िल्में शामिल हुई। इस वर्ष की उच्चतम 10 फ़िल्मों द्वारा अर्जित राशी थी, जो 2009 में आर्जित राशी से तुलना करने पर इसमें प्रतिशत वृद्धि 11.71% हुई। 2010 में पहली बार यह आँकड़ा पार हुआ केवल उच्चतम अर्जक 10 फ़िल्में के अंक को पार कर गई। यह बॉलीवुड के इतिहास में पहली बार था कि दो फ़िल्में दबंग और गोलमाल 3 ने से अधिक धन अर्जित किया। निम्नलिखित 10 फ़िल्में बॉलीवुड की 2010 की सर्वश्रेष्ठ अर्जक फ़िल्में हैं। .

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2013 की बॉलीवुड फिल्में

साल 2013 में बॉलीवुड ने 100 वर्ष पुर किये। .

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2015 की बॉलीवुड फ़िल्में

यह वर्ष 2015 में प्रदर्शित हुई बॉलीवुड फ़िल्मों की सूची है। .

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21 जम्प स्ट्रीट

21 जम्प स्ट्रीट (21 Jump Street) एक अमेरिकी पुलिस जुर्म ड्रामा टेलिविज़न शृंखला है जो फॉक्स नेटवर्क पर १२ अप्रैल १९८७ से २७ अप्रैल १९९१ के बिच प्रसारित हुई थी व इसमें कुल १०३ प्रकरण थे। शृंखला में नौजवान दिखने वाले अंडरकवर पुलिस अफसर हाई स्कूलों, कॉलेजों और अन्य युवा स्थानों में होने जुर्मो की छानबीन करते है। इसे पहले जम्प स्ट्रीट चैपल का शीर्षक दिया जाना था क्योंकि इसका कार्यालय एक चर्च में होता है परन्तु फॉक्स से अनुरोध किया की यह नाम बदल दिया जाए क्योंकि वे नहीं चाहते थे की दर्शक इसे कोई धार्मिक कार्यक्रम समझें। यह कार्यक्रम शुरुआत में ही एक हीट कार्यक्रम साबित हुआ और युवा दर्शकों को आकर्षित करने में सफल रहा.

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24 (टीवी शृंखला)

२४ (24) एक अमेरिकी टेलिविज़न धारावाहिक है जिसका निर्माण फॉक्स नेटवर्क और सिंडिकेट वर्ल्डवाइड ने किया है। इसमें कीफर सदरलैंड एक दहशत विरोधी दस्ते के एजंट जैक बेउर के रूप में है। हर २३ एपिसोडों का प्रकरण बेउर के जीवन के २४ घंटे दिखाता है जिसमे वास्तविक समय के अनुसार कहानी बताई जाती है। इसकी शुरुआत ६ नवम्बर २००१ को हुई थी और अबतक इसके १९२ एपिसोड आठ संस्करणों में दिखाए जा चुके है व इसका अंतिम एपिसोड २४ मई २०१० को प्रसारित कर इस शृंखला का अंत कर दिया गया। इसके साथ ही एक फ़िल्म २४: रिडेम्पशन को छठे और सातवे प्रकरण के बिच प्रसारित किया गया था और इसी नाम की एक मुख्य फ़िल्म को २०१२ में फ़िल्मांकन करने की योजना है। बेउर एक मात्र ऐसा पात्र है जो इस शृंखला के हर एपिसोड में है। शृंखला की शुरुआत में वह लॉस एंजिंल्स में स्थित एक दशत विरोधी दस्ते के लिए कार्य करता है जिसमे वह बेहद कामयाब व निपुण एजंट है व इस बात में विशवास रखता है की "अंत भला तो सब भला" और इसके लिए किसी भी हरकत को अंजाम देने के लिए तत्पर रहता है। शृंखला में मुख्यतः सभी घटनाएं राजनीतिक समस्याओं से जुडी होती है। एक साधारण कहानी में बेउर समय के साथ लड़ते हुए कई आतंकवादी योजनाओं को नाकाम करता है जिनमे राष्ट्रपती पर जानलेवा हमले की साजिशें, परमाणु, जैविक व रासायनिक खतरे, सायबर हमले व कॉर्पोरेट और सरकार में मिले हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना शामिल है। हालांकि इसे समीक्षकों द्वारा बेहद सराहा गया है परन्तु इस शृंखला को यातना के प्रयोग का सही व मुस्लिमों को गलत धारणाओं से दिखाने के लिए टिका की गई है। इन सब के बावजूद इसे अपने आठ प्रकरणों में कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चूका है जिनमे २००३ में सर्वश्रेष्ठ ड्रामा शृंखला का गोल्डन ग्लोब पुरस्कार और २००६ में बेहतरीन ड्रामा शृंखला का प्राइमटाइम एमी पुरस्कार शामिल है। अपने आठवें प्रकरण के अंत के बाद २४ अबतक का सबसे लम्बा चलने वाला जासूसी पर आधारित टेलीविजन धारावाहिक बन गया और इसने मिशन: इम्पोसिबल और द ऐवेंजर्स को पीछे छोड दिया। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

ड्रामा, आधुनिक हिंदी नाटक का इतिहास

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