नाटक और वृन्दगान
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नाटक और वृन्दगान के बीच अंतर
नाटक vs. वृन्दगान
नाटक, काव्य का एक रूप है। जो रचना श्रवण द्वारा ही नहीं अपितु दृष्टि द्वारा भी दर्शकों के हृदय में रसानुभूति कराती है उसे नाटक या दृश्य-काव्य कहते हैं। नाटक में श्रव्य काव्य से अधिक रमणीयता होती है। श्रव्य काव्य होने के कारण यह लोक चेतना से अपेक्षाकृत अधिक घनिष्ठ रूप से संबद्ध है। नाट्यशास्त्र में लोक चेतना को नाटक के लेखन और मंचन की मूल प्रेरणा माना गया है। . बर्लिन में बच्चों का वृंदगान (सन् १९३२) वृन्दगान या कोरस (Chorus या Choir) दो अथवा दो से अधिक व्यक्तियों का सामूहिक रूप से गान अथवा सहगान मंडली। यह शब्द मूलत: यूनानी है और अंगरेजी के माध्यम से भारतीय भाषाओं में प्रविष्ट हुआ है तथा नाटक अथवा सार्वजनिक स्टेज पर सामूहिक रूप में किए जानेवाले गायन के लिये प्रयुक्त होता है। यूनानी भाषा में इस शब्द का प्रयोग संगीतयुक्त ऐसे धार्मिक नृत्यों के लिये होता था जो विशेष अवसरों अथवा त्योहारों पर किए जाते थे। शास्त्रीय संगीत में वृन्दगान की परंपरा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। ब्राह्मणों द्वारा मन्त्रों का सामूहिक उच्चारण, देवालय में सामूहिक प्रार्थना, कीर्तन, भजन, अथवा लोक में विभिन्न अवसरों पर गाये जाने वाले लोकगीत समूह गान या समवेत गान के अंतर्गत आते हैं।सभी वृन्दगानों का विषय प्रायः राष्ट्रीय, सामाजिक अथवा सांस्कृतिक होता है। पारंपरिक एकता, राष्ट्र के प्रति प्रेम, समाज की गौरवशाली परम्पराओं का उद्घोष वृन्दगान के द्वारा ही उद्घाटित होता है। .
नाटक और वृन्दगान के बीच समानता
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संदर्भ
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