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खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली

सूची खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली

यह पृष्ठ खगोलशास्त्र की शब्दावली है। खगोलशास्त्र वह वैज्ञानिक अध्ययन है जिसका सबंध पृथ्वी के वातावरण के बाहर उत्पन्न होने वाले खगोलीय पिंडों और घटनाओं से होता है। .

20 संबंधों: एरेसिबो वेधशाला, तारा, दक्षिण मीन तारामंडल, द्वितारा, दोहरा तारा, बौनी अंडाकार गैलेक्सी, बृहस्पति (ग्रह), मीनास्य तारा, रिया (उपग्रह), खगोल शास्त्र, आदिग्रह चक्र, कॉरोना, अधोरक्त खगोलशास्त्र, अम्ब्रिअल (उपग्रह), अंडाकार गैलेक्सी, अंतरतारकीय बादल, अंतरतारकीय माध्यम, अंतर्राष्ट्रीय खगोलिकी वर्ष, अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ, उपग्रही छल्ला

एरेसिबो वेधशाला

(विकिपीडिया अंग्रेजी से अनुवादित) एरेसिबो वेधशाला एरेसिबो वेधशाला (Arecibo Observatory) एक प्रकार की रेडियो दूरदर्शी है जो पुर्टो रिको के एरेसिबो शहर के नजदीक स्थापित की गई है। यह राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन के साथ सहयोग समझौते के तहत एस.

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तारा

तारे (Stars) स्वयंप्रकाशित (self-luminous) उष्ण गैस की द्रव्यमात्रा से भरपूर विशाल, खगोलीय पिंड हैं। इनका निजी गुरुत्वाकर्षण (gravitation) इनके द्रव्य को संघटित रखता है। मेघरहित आकाश में रात्रि के समय प्रकाश के बिंदुओं की तरह बिखरे हुए, टिमटिमाते प्रकाशवाले बहुत से तारे दिखलाई देते हैं। .

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दक्षिण मीन तारामंडल

दक्षिण मीन तारामंडल दक्षिण मीन या पाइसिस ऑस्ट्राइनस तारामंडल खगोलीय मध्य रेखा से दक्षिण में स्थित एक तारामंडल है। यह मीन तारामंडल के पास है लेकिन उस से दक्षिण में है। दूसरी शताब्दी ईसवी में टॉलमी ने जिन ४८ तारामंडलों की सूची बनाई थी यह उनमें से एक है और अन्तर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा जारी की गई ८८ तारामंडलों की सूची में भी यह शामिल है। फ़ुमलहौत इसका सब से रोशन तारा है। .

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द्वितारा

हबल दूरबीन से ली गयी व्याध तारे की तस्वीर जिसमें अमुख्य "व्याध बी" तारे का बिंदु (बाएँ, निचली तरफ़) मुख्य व्याघ तारे से अलग दिख रहा है द्वितारा या द्विसंगी तारा दो तारों का एक मंडल होता है जिसमें दोनों तारे अपने सांझे द्रव्यमान केंद्र (सॅन्टर ऑफ़ मास) की परिक्रमा करते हैं। द्वितारों में ज़्यादा रोशन तारे को मुख्य तारा बोलते हैं और कम रोशन तारे को अमुख्य तारा या "साथी तारा" बोलते हैं। कभी-कभी द्वितारा और दोहरा तारा का एक ही अर्थ निकला जाता है, लेकिन इन दोनों में भिन्नताएँ हैं। दोहरे तारे ऐसे दो तारे होते हैं जो पृथ्वी से इकठ्ठे नज़र आते हों। ऐसा या तो इसलिए हो सकता है क्योंकि वे वास्तव में द्वितारा मंडल में साथ-साथ हैं या इसलिए क्योंकि पृथ्वी पर बैठे हुए वे एक दुसरे के समीप लग रहे हैं लेकिन वास्तव में उनका एक दुसरे से कोई सम्बन्ध नहीं है। किसी दोहरे तारे में इनमें से कौनसी स्थिति है वह लंबन (पैरलैक्स) को मापने से जाँची जा सकती है। .

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दोहरा तारा

खगोलशास्त्र में दोहरा तारा दो तारों का ऐसा जोड़ा होता है जो पृथ्वी से दूरबीन के ज़रिये देखे जाने पर एक-दुसरे के समीप नज़र आते हैं। ऐसा दो कारणों से हो सकता है -.

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बौनी अंडाकार गैलेक्सी

ऍनजीसी १४७ एक बौनी अंडाकार गैलेक्सी है ऍम ३२ एक बौनी अंडाकार गैलेक्सी है और एण्ड्रोमेडा गैलेक्सी की एक उपग्रहीय गैलेक्सी भी है बौनी अंडाकार गैलेक्सी ऐसी बौने आकार की अंडाकार गैलेक्सी को कहते हैं जो अन्य अंडाकार गैलेक्सियों की तुलना में काफ़ी छोटी हो। इन्हें हबल अनुक्रम की चिह्नावली में dE की श्रेणी दी जाती है। बौनी अंडाकार गैलेक्सियाँ आम तौर पर अन्य गैलेक्सियों की उपग्रहीय गैलेक्सियों के रूप में मिलती हैं या फिर गैलेक्सियों के झुंडों में पाई जाती हैं। .

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बृहस्पति (ग्रह)

बृहस्पति सूर्य से पांचवाँ और हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह एक गैस दानव है जिसका द्रव्यमान सूर्य के हजारवें भाग के बराबर तथा सौरमंडल में मौजूद अन्य सात ग्रहों के कुल द्रव्यमान का ढाई गुना है। बृहस्पति को शनि, अरुण और वरुण के साथ एक गैसीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन चारों ग्रहों को बाहरी ग्रहों के रूप में जाना जाता है। यह ग्रह प्राचीन काल से ही खगोलविदों द्वारा जाना जाता रहा है तथा यह अनेकों संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के साथ जुड़ा हुआ था। रोमन सभ्यता ने अपने देवता जुपिटर के नाम पर इसका नाम रखा था। इसे जब पृथ्वी से देखा गया, बृहस्पति -2.94 के सापेक्ष कांतिमान तक पहुंच सकता है, छाया डालने लायक पर्याप्त उज्जवल, जो इसे चन्द्रमा और शुक्र के बाद आसमान की औसत तृतीय सर्वाधिक चमकीली वस्तु बनाता है। (मंगल ग्रह अपनी कक्षा के कुछ बिंदुओं पर बृहस्पति की चमक से मेल खाता है)। बृहस्पति एक चौथाई हीलियम द्रव्यमान के साथ मुख्य रूप से हाइड्रोजन से बना हुआ है और इसका भारी तत्वों से युक्त एक चट्टानी कोर हो सकता है।अपने तेज घूर्णन के कारण बृहस्पति का आकार एक चपटा उपगोल (भूमध्य रेखा के पास चारों ओर एक मामूली लेकिन ध्यान देने योग्य उभार लिए हुए) है। इसके बाहरी वातावरण में विभिन्न अक्षांशों पर कई पृथक दृश्य पट्टियां नजर आती है जो अपनी सीमाओं के साथ भिन्न भिन्न वातावरण के परिणामस्वरूप बनती है। बृहस्पति के विश्मयकारी 'महान लाल धब्बा' (Great Red Spot), जो कि एक विशाल तूफ़ान है, के अस्तित्व को १७ वीं सदी के बाद तब से ही जान लिया गया था जब इसे पहली बार दूरबीन से देखा गया था। यह ग्रह एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र और एक धुंधले ग्रहीय वलय प्रणाली से घिरा हुआ है। बृहस्पति के कम से कम ६४ चन्द्रमा है। इनमें वो चार सबसे बड़े चन्द्रमा भी शामिल है जिसे गेलीलियन चन्द्रमा कहा जाता है जिसे सन् १६१० में पहली बार गैलीलियो गैलिली द्वारा खोजा गया था। गैनिमीड सबसे बड़ा चन्द्रमा है जिसका व्यास बुध ग्रह से भी ज्यादा है। यहाँ चन्द्रमा का तात्पर्य उपग्रह से है। बृहस्पति का अनेक अवसरों पर रोबोटिक अंतरिक्ष यान द्वारा, विशेष रूप से पहले पायोनियर और वॉयजर मिशन के दौरान और बाद में गैलिलियो यान के द्वारा, अन्वेषण किया जाता रहा है। फरवरी २००७ में न्यू होराएज़न्ज़ प्लूटो सहित बृहस्पति की यात्रा करने वाला अंतिम अंतरिक्ष यान था। इस यान की गति बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल कर बढाई गई थी। इस बाहरी ग्रहीय प्रणाली के भविष्य के अन्वेषण के लिए संभवतः अगला लक्ष्य यूरोपा चंद्रमा पर बर्फ से ढके हुए तरल सागर शामिल हैं। .

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मीनास्य तारा

धूल के बादल में फ़ुमलहौत बी ग्रह परिक्रमा करता हुआ पाया गया (हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा ली गई तस्वीर) मीनास्य या फ़ुमलहौत, जिसे बायर नामांकन के अनुसार α पाइसिस ऑस्ट्राइनाइ (α PsA) कहा जाता है, दक्षिण मीन तारामंडल का भी सब से रोशन तारा है और पृथ्वी के आकाश में नज़र आने वाले तारों में से भी सब से ज़्यादा रोशन तारों में गिना जाता है। यह पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध (हॅमिस्फ़ेयर) में पतझड़ और सर्दी के मौसम में शाम के वक़्त दक्षिणी दिशा में आसमान में पाया जाता है। यह पृथ्वी से २५ प्रकाश-वर्ष की दूरी पर है और इस से अत्यधिक अधोरक्त (इन्फ़्रारॅड) प्रकाश उत्पन्न होता है, जिसका अर्थ यह है के यह एक मलबे के चक्र से घिरा हुआ है। ग़ैर-सौरीय ग्रहों की खोज में फ़ुमलहौत का ख़ास स्थान है क्योंकि यह पहला ग्रहीय मण्डल है जिसके एक ग्रह (फ़ुमलहौत बी) की तस्वीर खीची जा सकी थी।, Chris Kitchin, Springer, 2011, ISBN 978-1-4614-0643-3,...

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रिया (उपग्रह)

कैसीनी अंतरिक्ष यान द्वारा ली गयी रिया की तस्वीर पृथ्वी (दाएँ), हमारे चन्द्रमा (ऊपर बाएँ) और रिया (नीचे बाएँ) के आकारों की तुलना रिया हमारे सौर मण्डल के छठे ग्रह शनि का दूसरा सब से बड़ा उपग्रह है। रिया सौर मण्डल के सारे उपग्रहों में से नौवा सब से बड़ा उपग्रह है। इसकी खोज १६७२ में इटली के खगोलशास्त्री जिओवान्नी कैसीनी ने की थी। रिया के घनत्व को देखते हुए वैज्ञानिकों का अनुमान है के यह २५% पत्थर और ७५% पानी की बर्फ़ का बना हुआ है। इस उपग्रह का तापमान धूप पर निर्भर करता है। जहाँ धूप पड़ रही हो वहाँ इसका तापमान -१७४ डिग्री सेंटीग्रेड (९९ कैल्विन) है और जहाँ अँधेरा हो वहाँ यह गिरकर -२२० डिग्री सेंटीग्रेड (५३ कैल्विन) चला जाता है। इसकी सतह पर अंतरिक्ष से गिरे हुए उल्कापिंडों की वजह से बहुत से गढ्ढे हैं, जिनमें से दो तो बहुत ही बड़े हैं और ४०० से ५०० किमी का व्यास (डायामीटर) रखते हैं। .

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खगोल शास्त्र

चन्द्र संबंधी खगोल शास्त्र: यह बडा क्रेटर है डेडलस। १९६९ में चन्द्रमा की प्रदक्षिणा करते समय अपोलो ११ के चालक-दल (क्रू) ने यह चित्र लिया था। यह क्रेटर पृथ्वी के चन्द्रमा के मध्य के नज़दीक है और इसका व्यास (diameter) लगभग ९३ किलोमीटर या ५८ मील है। खगोल शास्त्र, एक ऐसा शास्त्र है जिसके अंतर्गत पृथ्वी और उसके वायुमण्डल के बाहर होने वाली घटनाओं का अवलोकन, विश्लेषण तथा उसकी व्याख्या (explanation) की जाती है। यह वह अनुशासन है जो आकाश में अवलोकित की जा सकने वाली तथा उनका समावेश करने वाली क्रियाओं के आरंभ, बदलाव और भौतिक तथा रासायनिक गुणों का अध्ययन करता है। बीसवीं शताब्दी के दौरान, व्यावसायिक खगोल शास्त्र को अवलोकिक खगोल शास्त्र तथा काल्पनिक खगोल तथा भौतिक शास्त्र में बाँटने की कोशिश की गई है। बहुत कम ऐसे खगोल शास्त्री है जो दोनो करते है क्योंकि दोनो क्षेत्रों में अलग अलग प्रवीणताओं की आवश्यकता होती है, पर ज़्यादातर व्यावसायिक खगोलशास्त्री अपने आप को दोनो में से एक पक्ष में पाते है। खगोल शास्त्र ज्योतिष शास्त्र से अलग है। ज्योतिष शास्त्र एक छद्म-विज्ञान (Pseudoscience) है जो किसी का भविष्य ग्रहों के चाल से जोड़कर बताने कि कोशिश करता है। हालाँकि दोनों शास्त्रों का आरंभ बिंदु एक है फिर भी वे काफ़ी अलग है। खगोल शास्त्री जहाँ वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करते हैं जबकि ज्योतिषी केवल अनुमान आधारित गणनाओं का सहारा लेते हैं। .

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आदिग्रह चक्र

एक चित्रकार द्वारा कल्पनित किसी तारे के इर्द-गिर्द परिक्रमा करता आदिग्रह चक्र आदिग्रह चक्र या प्रोटोप्लैनॅटेरी डिस्क या प्रॉपलिड एक नए जन्में तारे के इर्द-गिर्द घूमता घनी गैस का चक्र होता है। कभी-कभी इस चक्र में जगह-जगह पर पदार्थों का जमावड़ा हो जाने से पहले धूल के कण और फिर ग्रह जन्म ले लेते हैं। .

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कॉरोना

पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान, सौर कोरोना को नंगी आंखों से भी देखा जा सकता है। सूर्य के वर्णमंडल के परे के भाग को किरीट या कोरोना (Corona) कहते हैं। पूर्ण सूर्यग्रहण के समय वह श्वेत वर्ण का होता है और श्वेत डालिया के पुष्प के सदृश सुंदर लगता है। किरीट अत्यंत विस्तृत प्रदेश है और प्रकाश-मंडल के ऊपर उसकी ऊँचाई सूर्य के व्यास की कई गुनी होती है। कॉरोना चाँद या पानी की बूँदों के विवर्तन के द्वारा सूर्य के चारों ओर बनाई गई एक पस्टेल हेलो को कहते हैं। इसका निर्माण प्लाज़्मा द्वारा होता है। ऐसे सिरोस्टरटस के रूप में बादलों में बूंदों और बादल परत स्वयं को लगभग पूरी तरह से समान इस घटना के लिए आदेश में हो रहा होगा.

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अधोरक्त खगोलशास्त्र

हबल दूरदर्शी द्वारा करीना नेबुला (Carina Nebula) की इन्फ्रारेड प्रकाश में खिंची गयी तस्वीर IRAS overview अधोरक्त या इन्फ्रारेड खगोलशास्त्र (Infrared astronomy), खगोलशास्त्र और खगोलभौतिकी की एक शाखा है जिसमें खगोलीय निकायों को इन्फ्रारेड प्रकाश में देखकर अध्ययन किया जाता है। सन १८०० में विलियम हरशॅल ने इन्फ्रारेड प्रकाश की खोज की और इसके तीन दशक बाद सन १८३० में अधोरक्त खगोलशास्त्र की शुरुआत हुई। विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम में इन्फ्रारेड प्रकाश का तरंगदैर्ध्य विस्तार (०.७५ से ३०० माइक्रोमीटर), दृश्य प्रकाश तरंगदैर्घ्य विस्तार (३८० से ७५० नैनोमीटर) और सूक्ष्म तरंगदैर्घ्य तरंग के बीच होता है। इन्फ्रारेड खगोलशास्त्र और प्रकाशीय खगोलशास्त्र (optical astronomy) दोनों में ही प्रायः एक ही तरह केटेलिस्कोप और एक ही तरह के दर्पण या लेंस का प्रयोग किया जाता है क्योंकि इन्फ्रारेड और दृश्य प्रकाश दोनों ही विद्युतचुम्बकीय तरंगों का प्रकाशिकी व्यवहार सामान होता है। पृथ्वी के वातावरण में उपस्थित जल वाष्प द्वारा विभिन्न तरंगदैर्ध्यों वाली इन्फ्रारेड प्रकाश का अवशोषण कर लिया जाता है इसलिए अधिकतर इन्फ्रारेड टेलीस्कोपों की स्थापना संभावित अधिक से अधिक ऊँचे और सूखे स्थानों में की जाती है। ' स्पिट्जर अंतरीक्ष टेलिस्कोप '(Spitzer Space Telescope) और ' हरशॅल अंतरीक्ष वेधशाला ' (Herschel Space observatory) दोनों ही ऐसी इन्फ्रारेड वेधशालाएं है जिसे सूदुर अंतरीक्ष में स्थापित किया गया है। .

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अम्ब्रिअल (उपग्रह)

वॉयेजर द्वितीय यान द्वारा १९८६ को ली गयी एक अम्ब्रिअल की तस्वीर अम्ब्रिअल अरुण (युरेनस) ग्रह का एक उपग्रह है। अकार में यह अरुण का तीसरा सब से बड़ा उपग्रह है। अम्ब्रिअल का रंग अरुण के सारे उपग्रहों में से सब से गाढ़ा है। अरुण के अन्य बड़े चंद्रमाओं की तरह, अम्ब्रिअल भी बर्फ़ और पत्थर का बना हुआ है। इसकी सतह बर्फ़ीली और अन्दर का केंद्रीय भाग पत्थरीला है। इसकी सतह पर अंतरिक्ष से गिरे हुए उल्कापिंडों की वजह से बहुत से बड़े गढ्ढे भी हैं, जिनका व्यास २१० किमी तक पहुँचता है। कुछ टीले और खाइयाँ भी देखी गयी हैं। वॉयेजर द्वितीय यान के १९८६ में अरुण के पास से गुज़रने पर अम्ब्रिअल की सतह के लगभग ४०% हिस्से के नक्शे बनाए जा चुके हैं। .

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अंडाकार गैलेक्सी

इस चित्र के बीच में बड़े आकार में ई॰ऍस॰ओ॰ ३२५-जी००४ आकाशगंगा नज़र आ रही है, जो एक अंडाकार आकाशगंगा है (इस तस्वीर में और भी आकाशगंगाएँ देखी जा सकती हैं) अंडाकार आकाशगंगा किसी दीर्घवृत्ताभ (ऍलिप्सॉइड) आकार वाली आकाशगंगा को कहते हैं, जिसके हर भाग से लगभग बराबर की चमक आ रही हो। इनका आकार एक शुद्ध गोले से लेकर बहुत ही पिचके चपटे अंडे की तरह हो सकता है और इनमें दसियों करोड़ से लेकर दस खरब तारे हो सकते हैं। लेंसनुमा (लॅन्टिक्युलर, लेंस जैसी) और सर्पिल (स्पाइरल, सर्पिल आकार) आकाशगंगाओं के साथ, अंडाकार आकाशगंगाएँ हबल अनुक्रम की तीन मुख्य आकाशगंगाओं की श्रेणियां हैं। अंडाकार आकाशगंगाओं में पुराने तारे होते हैं और इनका अंतरतारकीय माध्यम ("इन्टरस्टॅलर मीडयम") कम घना होता है। इनमें नवजात तारे कम ही मिलते हैं। हमारे इर्द-गिर्द के ब्रह्माण्ड में लगभग १०-१५% आकाशगंगाएँ इस श्रेणी की होती हैं, लेकिन पूरे ब्रह्माण्ड में इनकी प्रतिशत संख्या इस से कम मानी जाती है। .

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अंतरतारकीय बादल

लगून नॅब्युला की सैर करिए - यह एक अंतरतारकीय बादल है खगोलशास्त्र में अंतरतारकीय बादल अंतरतारकीय माध्यम (इन्टरस्टॅलर स्पेस) में स्थित ऐसे बादल को कहते हैं जहाँ गैस, प्लाज़्मा और धूल का जमावड़ा हो। वैसे तो अंतरतारकीय माध्यम के व्योम में कुछ-कुछ कण, अणु और परमाणु तो होते ही हैं, लेकिन अंतरतारकीय बादल ऐसा क्षेत्र होता है जहाँ इन चीज़ों का घनत्व अंतरतारकीय व्योम के औसत घनत्व से ज़्यादा हो। इन बादलों के घनत्व, तापमान और आकार के अनुसार इन बादलों में मौजूद हाइड्रोजन (जो ब्रह्माण्ड का सब से अधिक मात्रा में मिलने वाला मूल तत्व है) या तो साधारण परमाणुओं के रूप में हो सकता है, आयनीकृत (आयोनाइज़्ड) प्लाज़्मा के रूप में हो सकता है या फिर अणुओं के रूप में हो सकता है। साधारण परमाणुओं वाले बादल को "एच १" (H I) क्षेत्र, प्लाज़्मा वाले बादल को "एच २" (H 2) क्षेत्र और अणुओं वाले बादल को "आणविक बादल" (मॉलॅक्यूलर क्लाउड) कहते हैं। परमाणुओं और प्लाज़्मा वाले बादलों को "छितरे" बादल भी बुलाया जाता है जबकि आणविक बादलों को "घने बादल" भी कहते हैं। .

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अंतरतारकीय माध्यम

से दिखाई देता है। यह अंतरतारकीय माध्यम स्वरूप फैला हुआ है। अंतरखगोलीय माध्यम या अंतरतारकीय माध्यम हाइड्रोजन और हिलीयम के कणों का मिश्रण होता है जो अत्यंत कम घनत्व की स्थिती मे सारे ब्रह्मांड मे फैला हुआ रहता है। आयनीकृत हाइड्रोजन के फैलाव (जिसे खगोलज्ञ पुरातन खगोलीय शब्दावली अनुसार H II कहते हैं) का पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध से विस्कन्सिन Hα मैपर द्वारा लिया गया हुआ चित्र दिखाया गया है। यह अंतरतारकीय माध्यम स्वरूप फैला हुआ है। .

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अंतर्राष्ट्रीय खगोलिकी वर्ष

अंतर्राष्ट्रीय खगोलिकी वर्ष 2009 का प्रतीक चिह्न1609 में गैलीलियो गैलिली द्वारा खगोलीय प्रेक्षण आरंभ करने की घटना की 400वीं जयंती के रूप में वर्ष 2009 को अंतर्राष्ट्रीय खगोलिकी वर्ष के रूप में मनाया गया था। .

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अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ

अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ का चिह्न अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (International Astronomical Union (IAU)), पेशेवर खगोलशास्त्रियों का एक संगठन है। इसका केंद्रीय सचिवालय पैरिस, फ़्रांस में है। इस संघ का ध्येय खगोलशास्त्र के क्षेत्र में अनुसन्धान और अध्ययन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देना है। जब भी ब्रह्माण्ड में कोई नई वस्तु पाई जाती है तो खगोलीय संघ द्वारा दिए गए नाम ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य होते हैं। .

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उपग्रही छल्ला

हमारे सौर मण्डल के शनि ग्रह के मशहूर उपग्रहीय छल्ले बर्फ़ और धूल के बने हैं खगोलशास्त्र में उपग्रही छल्ला किसी ग्रह के इर्द गिर्द घूमता हुआ पत्थरों, धुल, बर्फ़ और अन्य पदार्थों का बना हुआ छल्ला होता है। हमारे सौर मण्डल में इसकी सबसे बड़ी मिसाल शनि की परिक्रमा करते हुए उसके छल्ले हैं। हमारे सौर मण्डल के अन्य तीन गैस दानव ग्रहों - बृहस्पति, अरुण और वरुण - के इर्द-गिर्द भी उपग्रहीय छल्ले हैं लेकिन उनकी संख्या और चौड़ाई शनि के छल्लों से कई कम है। .

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