6 संबंधों: दासप्रथा (पाश्चात्य), रंगभेद नीति, लेव तोलस्तोय, लेखक, जर्मन भाषा, उपन्यासकार।
दासप्रथा (पाश्चात्य)
मानव समाज में जितनी भी संस्थाओं का अस्तित्व रहा है उनमें सबसे भयावह दासता की प्रथा है। मनुष्य के हाथों मनुष्य का बड़े पैमाने पर उत्पीड़न इस प्रथा के अंर्तगत हुआ है। दासप्रथा को संस्थात्मक शोषण की पराकाष्ठा कहा जा सकता है। एशिया, यूरोप, अफ्रीका, अमरीका आदि सभी भूखंडों में उदय हानेवाली सभ्यताओं के इतिहास में दासता ने सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक व्यवस्थाओं के निर्माण एवं परिचालन में महत्वपूर्ण योगदान किया है। जो सभ्यताएँ प्रधानतया तलवार के बल पर बनी, बढ़ीं और टिकी थीं, उनमें दासता नग्न रूप में पाई जाती थी। पश्चिमी सभ्यता के विकास के इतिहास में दासप्रथा ने विशिष्ट भूमिका अदा की है। किसी अन्य सभ्यता के विकास में दासों ने संभवत: न तो इतना बड़ा योग दिया है और न अन्यत्र दासता के नाम पर मनुष्य द्वारा मनुष्य का इतना व्यापक शोषण तथा उत्पीड़न ही हुआ है। पाश्चात्य सभ्यता के सभी युगों में - यूनानी, रोमन, मध्यकालीन तथा आधुनिक- दासों ने सभ्यता की भव्य इमारत को अपने पसीने और रक्त से उठाया है। .
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रंगभेद नीति
''स्नान क्षेत्र जहाँ केवल श्वेत लोगों को स्नान की अनुमति थी'': १९८९ में डर्बन के समुद्र के किनारे तीन भाषाओं में लिखा एक बोर्ड दक्षिण अफ्रीका में नेशनल पार्टी की सरकार द्वारा सन् १९४८ में विधान बनाकर काले और गोरों लोगों को अलग निवास करने की प्रणाली लागू की गयी थी। इसे ही रंगभेद नीति या आपार्थैट (Apartheid) कहते हैं। अफ्रीका की भाषा में "अपार्थीड" का शाब्दिक अर्थ है - अलगाव या पृथकता। यह नीति सन् १९९४ में समाप्त कर दी गयी। इसके विरुद्ध नेल्सन मान्डेला ने बहुत संघर्ष किया जिसके लिये उन्हें लम्बे समय तक जेल में रखा गया। .
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लेव तोलस्तोय
लेव तोलस्तोय (रूसी:Лев Никола́евич Толсто́й, 9 सितम्बर 1828 - 20 नवंबर 1910) उन्नीसवीं सदी के सर्वाधिक सम्मानित लेखकों में से एक हैं। उनका जन्म रूस के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उन्होंने रूसी सेना में भर्ती होकर क्रीमियाई युद्ध (1855) में भाग लिया, लेकिन अगले ही वर्ष सेना छोड़ दी। लेखन के प्रति उनकी रुचि सेना में भर्ती होने से पहले ही जाग चुकी थी। उनके उपन्यास युद्ध और शान्ति (1865-69) तथा आन्ना करेनिना (1875-77) साहित्यिक जगत में क्लासिक रचनाएँ मानी जाती है। धन-दौलत व साहित्यिक प्रतिभा के बावजूद तोलस्तोय मन की शांति के लिए तरसते रहे। अंततः 1890 में उन्होंने अपनी धन-संपत्ति त्याग दी। अपने परिवार को छोड़कर वे ईश्वर व गरीबों की सेवा करने हेतु निकल पड़े। उनके स्वास्थ्य ने अधिक दिनों तक उनका साथ नहीं दिया। आखिरकार 20 नवम्बर 1910 को अस्तापवा नामक एक छोटे से रेलवे स्टेशन पर इस धनिक पुत्र ने एक गरीब, निराश्रित, बीमार वृद्ध के रूप में मौत का आलिंगन कर लिया। .
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लेखक
एक लेखक ही ओ इंसान है जो अपने लेखन के माध्यम से,अपनी संस्कृती,विचारधारा,इतिहास,और परंपरा को आगे के समाज को बताता है।दुनिया मे ऐसे कई लेखक है जिन्होंने अपने लेखन कार्य से समाज को एक नई दिशा दि है।तथा आदर्श जीवन जीने का तरीका बताया है।.
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जर्मन भाषा
विश्व के जर्मन भाषी क्षेत्र जर्मन भाषा (डॉयट्श) संख्या के अनुसार यूरोप की सब से अधिक बोली जाने वाली भाषा है। ये जर्मनी, स्विट्ज़रलैंड और ऑस्ट्रिया की मुख्य- और राजभाषा है। ये रोमन लिपि में लिखी जाती है (अतिरिक्त चिन्हों के साथ)। ये हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में जर्मनिक शाखा में आती है। अंग्रेज़ी से इसका करीबी रिश्ता है। लेकिन रोमन लिपि के अक्षरों का इसकी ध्वनियों के साथ मेल अंग्रेज़ी के मुक़ाबले कहीं बेहतर है। आधुनिक मानकीकृत जर्मन को उच्च जर्मन कहते हैं। जर्मन भाषा भारोपीय परिवार के जर्मेनिक वर्ग की भाषा, सामान्यत: उच्च जर्मन का वह रूप है जो जर्मनी में सरकारी, शिक्षा, प्रेस आदि का माध्यम है। यह आस्ट्रिया में भी बोली जाती है। इसका उच्चारण १८९८ ई. के एक कमीशन द्वारा निश्चित है। लिपि, फ्रेंच और अंग्रेजी से मिलती-जुलती है। वर्तमान जर्मन के शब्दादि में अघात होने पर काकल्यस्पर्श है। तान (टोन) अंग्रेजी जैसी है। उच्चारण अधिक सशक्त एवं शब्दक्रम अधिक निश्चित है। दार्शनिक एवं वैज्ञानिक शब्दावली से परिपूर्ण है। शब्दराशि अनेक स्रोतों से ली गई हैं। उच्च जर्मन, केंद्र, उत्तर एवं दक्षिण में बोली जानेवाली अपनी पश्चिमी शाखा (लो जर्मन-फ्रिजियन, अंग्रेजी) से लगभग छठी शताब्दी में अलग होने लगी थी। भाषा की दृष्टि से "प्राचीन हाई जर्मन" (७५०-१०५०), "मध्य हाई जर्मन" (१३५० ई. तक), "आधुनि हाई जर्मन" (१२०० ई. के आसपास से अब तक) तीन विकास चरण हैं। उच्च जर्मन की प्रमुख बोलियों में यिडिश, श्विज्टुन्श, आधुनिक प्रशन स्विस या उच्च अलेमैनिक, फ्रंकोनियन (पूर्वी और दक्षिणी), टिपृअरियन तथा साइलेसियन आदि हैं। .
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उपन्यासकार
उपन्यास के लेखक को उपन्यासकार कहते हैं। यह साहित्य की एक गद्य विधा है जिसमें किसी कहानी को विस्तृत रूप से कहा जाता है।। यह साहित्य की अत्यंत प्रचिलित विधा है इसलिये उपन्यासकार भी बहुत से मिलते हैं। उनमे से कुछ प्रमुख इस प्रकार से हैं - प्रेमचन्द नरेन्द्र कोहली शिवानी आचार्य चतुरसेन चार्ल्स डिकेंस आचार्य गणपतिचंद्र गुप्त ने उपन्यासों के वैज्ञानिक वर्गीकरण की चर्चा करते हुए निम्न वर्गीकरण किया है। श्रेणी:साहित्यकार.