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हीर राँझा

सूची हीर राँझा

टिल्ला जोगियाँ पहाड़ (यानि 'योगियों का टीला'), जहाँ रांझा बाबा गोरखनाथ की शरण में जोग लेने आया था झंग शहर में हीर-रांझा की मज़ार रांझे की क़ब्र का पत्थर हीर रांझा (पंजाबी भाषा:, ਹੀਰ ਰਾਂਝਾ) पंजाब की चार प्रसिद्ध प्रेम-कथाओं में से एक है। इसके अलावा मिर्ज़ा-साहिबा, सस्सी-पुन्नुँ और सोहनी-माहीवाल बाक़ी तीन हैं। इस कथा के कई वर्णन लिखे जा चुके हैं लेकिन सब से प्रसिद्ध बाबा वारिस शाह का क़िस्सा हीर-रांझा है। दामोदर दास अरोड़ा, मुकबाज़ और अहमद गुज्जर ने भी इसके अपने रूप लिखे हैं। .

9 संबंधों: चनाब नदी, टिल्ला जोगियाँ, झंग, पंजाब क्षेत्र, पंजाबी भाषा, पंजाबी साहित्य, सियाल, जाट, वारिस शाह

चनाब नदी

चिनाब नदी या चंद्रभागा नदी भारत के हिमाचल प्रदेश के लाहौल एवं स्पीति जिला में दो नदियों चंद्र नदी एवं भागा नदी के संगम से बनी है। यह आगे जम्मू व कश्मीर से होते हुए पाकिस्तान में सिंधु नदी से जाकर मिलती है। .

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टिल्ला जोगियाँ

नमक कोह के दुसरे सबसे ऊँचे पहाड़, टिल्ला जोगियाँ (यानि 'योगियों का टीला'), पर हिन्दू मंदिर योगियों की पाठशाला का मुख्य द्वार दूर से टिल्ला जोगियाँ का नज़ारा ढलान वाले रस्ते के साथ लगे दो बुर्ज टिल्ला जोगियाँ परिसर से दिखने वाला एक दृश्य टिल्ला जोगियाँ (ਟਿੱਲਾ ਜੋਗੀਆਂ, Tilla Jogian) पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के मध्य भाग में स्थित नमक कोह पर्वतमाला के पूर्वी भाग में एक ९७५ मीटर (३,२०० फ़ुट) ऊँचा पहाड़ है। यह नमक कोह शृंखला का सबसे ऊँचा पहाड़ भी है। प्रशासनिक रूप से टिल्ला जोगियाँ झेलम ज़िले में स्थित है और उस ज़िले का सबसे ऊँचा स्थान है। क्योंकि यह आसपास के सभी इलाक़ों से ऊँचा है इसलिए यहाँ से दूर-दूर तक देखा जा सकता है। नीचे से भी इसे चार ज़िलों - झेलम, चकवाल, गुजरात और मंडी बहाउद्दीन - के लोग देख सकते हैं। .

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झंग

पंजाब, पाकिस्तान का एक नगर। श्रेणी:पाकिस्तान के शहर.

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पंजाब क्षेत्र

पंजाब दक्षिण एशिया का क्षेत्र है जिसका फ़ारसी में मतलब पांच नदियों का क्षेत्र है। पंजाब ने भारतीय इतिहास को कई मोड़ दिये हैं। अतीत में शकों, हूणों, पठानों व मुगलों ने इसी पंजाब के रास्ते भारत में प्रवेश किया था। आर्यो का आगमन भी हिन्दुकुश पार कर इसी पंजाब के रास्ते ही हुआ था। पंजाब की सिन्धु नदी की घाटी में आर्यो की सभ्यता का विकास हुआ। उस समय इस भूख़ड का नाम सप्त सिन्धु अर्थात सात सागरों का देश था। समय के साथ सरस्वती जलस्रोत सूख् गया। अब रह गयीं पाँच नदियाँ-झेलम, चेनाब, राबी, व्यास और सतलज इन्हीं पाँच नदियों का प्रांत पंजाब हुआ। पंजाब का नामाकरण फारसी के दो शब्दों से हुआ है। पंज का अर्थ है पाँच और आब का अर्थ होता है जल। .

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पंजाबी भाषा

पंजाबी (गुरमुखी: ਪੰਜਾਬੀ; शाहमुखी: پنجابی) एक हिंद-आर्यन भाषा है और ऐतिहासिक पंजाब क्षेत्र (अब भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित) के निवासियों तथा प्रवासियों द्वारा बोली जाती है। इसके बोलने वालों में सिख, मुसलमान और हिंदू सभी शामिल हैं। पाकिस्तान की १९९८ की जनगणना और २००१ की भारत की जनगणना के अनुसार, भारत और पाकिस्तान में भाषा के कुल वक्ताओं की संख्या लगभग ९-१३ करोड़ है, जिसके अनुसार यह विश्व की ११वीं सबसे व्यापक भाषा है। कम से कम पिछले ३०० वर्षों से लिखित पंजाबी भाषा का मानक रूप, माझी बोली पर आधारित है, जो ऐतिहासिक माझा क्षेत्र की भाषा है। .

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पंजाबी साहित्य

पंजाबी साहित्य का आरंभ कब से होता है, इस विषय में विद्वानों का मतैक्य नहीं है। फरीद को पंजाबी का आदि कवि कहा जाता है; किंतु यदि इस बात को स्वीकार किया जाय कि जिन फरीद की बाणी "आदि ग्रंथ" में संगृहीत है वे फरीद सानी ही थे तो कहना पड़ेगा कि 16वीं शती से पहले का पंजाबी साहित्य उपलब्ध नहीं है। इस दृष्टि से गुरु नानक को ही पंजाबी का आदि कवि मानना होगा। "आदि ग्रंथ" पंजाबी का आदि ग्रंथ है। इसमें सात गुरुओं और 16 भक्तों की वाणियाँ संगृहीत हैं। पदों की कुल संख्या 3384 है। गुरु नानक की रचनाओं में सर्वप्रसिद्ध "जपुजी" है; इसके अतिरिक्त "आसा दी वार," "सोहिला" और "रहिरास" तथा लगभग 500 फुटकर पद और है। भाव और अभिव्यक्ति एवं कला और संगीत की दृष्टि से यह बाणी अत्यंत सुंदर और प्रभावपूर्ण है। भक्ति में "सिमरन" और जीवन में "सेवा" नानक की वाणी के दो प्रमुख स्वर हैं। परवर्ती सिक्ख गुरुओं ने गुरु नानक के भावों की प्राय: अनुकृति और व्याख्या की है। गुरु रामदास (1534-1581 ई.) की कविता में काव्यगुण अधिक है। गुरु अर्जुनदेव (1561-1606 ई.) की वाणी में ज्ञान और विचार की प्रधानता है। "आदि" ग्रंथ में सबसे अधिक पद (1000 से कुछ ऊपर) इन्हीं के हैं। यह बात विशेषत: उल्लेखनीय है कि पूरे ग्रंथ में कुल मिलाकर 350-400 पद पंजाबी के होंगे। गुरु गोविंदसिंह के "दशम ग्रंथ" में भी "चंडी दी वार" एकमात्र पंजाबी की कृति है, जो सिरखंडी छंद में रचना है। इसमें दुर्गा देवी और दैत्यों के युद्ध का वर्णन है। सिक्ख गुरुओं के अतिरिक्त भाई गुरुदास (1558-1637 ई.) की वाणी को गुरुमत साहित्य के अंतर्गत मान्यता दी जाती है। उनके कवित्त और सवैए ब्रजभाषा में हैं, वारें और गीत शुद्ध साहित्यिक पंजाबी में हैं। सूफी कवियों में फरीद के बाद लुत्फ अली का नाम आता है। इनकी रचना "सैफलमलूक" संवेदना, वैराग्य भावना और सरसता के लिए बहुत प्रसिद्ध है। परवर्ती सूफियों पर इसका बहुत अधिक प्रभाव रहा है। प्रेम, विरह और वैराग्य से भरे शाह हुसेन लाहौरी (1538-1599 ई.) के गीत बड़े प्रभावोत्पादक और कवित्वपूर्ण हैं। इनकी काफियों में निरपेक्ष प्रेम का स्वर है। इस्लाम की शरअ से विद्रोह करनेवाला दूसरा कवि सुल्तान बाहू (1629-1690 ई.) हुआ है। इसने अपनी "सीहर्फियों" में अहंकार के त्याग, गुरु की कृपा और सहायता, अंतर्निरीक्षण और आत्मचिंतन पर बल दिया है और उस दुनिया में रहने की आकांक्षा प्रकट की है जहाँ "मैं" और "मेरे" का बखेड़ा नहीं है। शाह शरफ की काफियों में रूपकों द्वारा इश्क हकीकी के रहस्य समझाए गए हैं। पंजाबी सूफी साहित्य के प्रसिद्धतम कवि बुल्लेशाह कसूरी प्रेम, साधना और मिलन के साधक हैं। उनकी कविता की सबे बड़ी विशेषता है भाषा का ओज और प्रभाव। अली हैदर (1690-1785 ई.) की सीहफिंयाँ और काफियाँ कुछ दुरूह और दार्शनिक होने के कारण सर्वप्रिय नहीं हैं। परवर्ती सूफियों में वजीद, फरीद (1720-90 ई.), गुलाम जीलानी (1749-1819), हाशिम (1753-1823), बहादुर (1750-1850 ई.) आदि प्रसिद्ध हैं। पंजाबी सूफी साहत्य प्राय: गेय मुक्तक काव्य है। इस युग का लौकिक साहित्य विशेषतया वारों और शृंगाररसप्रधान किस्सों के रूप में उपलब्ध है। हीर राँझा का किस्सा सबसे अधिक पुरातन और प्रसिद्ध है। सबसे श्रेष्ठ रचना बारिस शाह (1738-1798 ई.) की "हीर" है। वारिस शाह बड़े अनुभवी, प्रतिभाशाली और बहुज्ञ कवि थे। भाषा पर उनका पूर्ण अधिकार था। "मिरजा साहिबाँ" की प्रेमकथा को भी कई कवियों ने काव्यबद्ध किया, पर सबसे पुरातन और उत्तम किस्सा जहाँगीर और शाहजहाँ के राज्यकाल में पीलू ने लिखा। पीलू के बाद हाफिज बरखुरदार ने भी मिरजासाहिबाँ का किस्सा लिखा। उसने "यूसूफ-जुलेखा" और "सस्सी पुन्नू" की प्रेमकथाएँ भी लिखीं। सस्सी और पुन्नू बिलोचिस्तन के एवं जुलेखा और यूसुफ मिस्र के थे। हाशिम (1753-1823 ई.) की "सस्सी" इस नाम के किस्सों में सबसे अधिक लोकप्रिय है। इसके अतिरिक्त उनकी "सोहनी महीवाल," "शीरीं फरहाद" और "लैला मजनूँ" प्रबंध कृतियाँ हैं। पिछले दो किस्से फारसी से लिए गए हैं और "सोहनी महीवाल" गुजरात (पंजाब) की लोकवार्ता से। भावों की सूक्ष्म अभिव्यक्ति के लिए हाशिम अद्वितीय है। अहमदयार (1768-1845) ने 40 किस्से लिखे, जिनमें "हीर राँझा," "सस्सी पुन्नू," "कामरूप", "राजबीबी," "चंदरबदन" उच्च कोटि के हैं। इनके काव्य की विशेषता है वैचित्र्यपूर्ण घटनाओं का तारतम्य, संयत वर्णन एवं आलंकारिक भाषा शैली: किंतु विषय की मैलिकता कम है। अमामबख्श की कृतियों में "बहराम गोर" उत्तम काव्य के अंतर्गत गिना जाता है। इसी समय का एक और कवि कादरयार हुआ है। उसकी प्रसिद्धि "पूरनभगत" और "राजा रसालू" के किस्सों के कारण है। पूरन और रसालू दोनों स्यालकोट के राजा शालिवाहन के पुत्र थे। पंजाबी का वीर साहित्य बहुत समृद्ध है। इसके अंतर्गत गुरु गोविंदसिंह की "चंडी दी वार" शिरोमणि रचना है। नजाबत की "नादरशाह दी हीर" और शाह मुहम्मद (1782-1862 ई.) की अपने आश्रयदाता महाराजा रणजीतसिंह की कथा भी उल्लेखनीय है। मुकबल (1696 ई.) का "जगनामा", जिसमें हसन हुसैन और यजीद के युद्धों का मार्मिक वर्णन है, शिया मुसलमानों में बड़े चाव से पढ़ा जाता है। प्रारंभिक काल का पंजाबी गद्य साहित्य महापुरुषों की जन्मसाखियों, गोष्ठों और टीकाओं के रूप में प्राप्त होता है। भाई बालाकृत गुरु नानक की जन्मसाखी (1535 ई.) सबसे प्राचीन है। बाद में सेवासिंह (1588 ई.) और मनीसिंह (1737 ई.) ने भी गुरुनानक का जीवनचरित लिखा। भाई मनीसिंह की "ग्यान रतनावली" पंजाबी गद्य की उत्तम कृति है। उन्हीं की एक दूसरी गद्यरचना "भगत रतनावली" है जिसमें पहले पाँच गुरुओं के समकालीन कुछ प्रेमी भक्तों की कथाएँ है। इनके अतिरिक्त "पारसभाग," "भरथरी", "मैनावत," हजरत मुहम्मद साहब, कबीर और रविदास की जीवनियाँ, "सतयुग कथा," "पकी रोटी," "गीतासार", "लवकुश संवाद," "जपु परमार्थ" "सिंहासनबत्तीसी" और "विवेक" आदि छोटी बड़ी गद्यकृतियाँ उल्लेखनीय हैं। अमृता प्रीतम आधुनिक पंजाबी साहित्य मुख्यत: सिक्खों की देन हैं और उसमें सिक्खपन का अधिक स्थान मिला है। किंतु जीवन की एकांगिता रहते हुए भी साहित्य प्राय: लौकिक है। इस युग के आदि कवि भाई वीरसिंह (1872-1957 ई.) माने जाते हैं। उनका "राण सूरतसिंह" (1915) 35 सर्गों का अतुकांत प्रबंध काव्य है। इसका उद्देश्य सिक्ख सिद्धांतों की प्रतिष्ठा है। उनकी "लहराँ दे हार" रहस्यवादी रचना है। "मटक हुलारे" में प्रकृतिचित्रण और "बिजलियाँ दे हार" में देशप्रेम मिलता है। प्रो॰ पूर्ण सिंह (1882-1932 ई.) की कविता में वेदांती बौद्ध और पाश्चात्य विचारों का गूढ़ प्रभाव है। इनके विचारों और अलंकारों में अपनी मौलिकता भी स्पष्टत: लक्षित होती है। धनीराम चात्रिक (जन्म 1876 ई.) यथार्थवादी किंतु निराशावादी कवि हैं। उनके "भरथरी हरि" और "नल दमयंती" में शैली और विचारधारा पुरानी है, बाद की कविताओं में शहरी जीवन का चित्रण मौलिक ढंग से हुआ है। पंजाबी काव्य को नए मोड़ देनेवाले कवियों में प्रो॰ मोहनसिंह (जन्म 1905 ई.) सर्वविदित हैं। ईश्वर, जीवन, प्रेम, समाज और प्रकृति के प्रति उनकी नवीन और मौलिक दृष्टि है। "सावे पत्तर" "कसुंभड़े" में वे शरीरवादी और मानववादी हैं तो "अधवाटे" में समाजवादी और छायावादी बनकर आए हैं। मोहनसिंह गीतकार भी है और शैलीकार भी। काव्य में उन्होंने कई नए प्रयोग चलाए हैं। अमृता प्रीतम (जन्म 1909) के अनेक कवितासंग्रह प्रकाशित हैं। ये बड़ी सफल गीतकार हैं। इनकी कविता की प्रेरक शक्ति प्रेम है जो अब मानव प्रेम में परिवर्तित होता जा रहा है। गोपालसिंह दर्दी का "हनेरे सवेरे" काव्य संग्रह उल्लेखनीय है। वे समाज के पापों का चित्रण करने में दक्ष हैं। .

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सियाल

सियाल (Sial) पंजाब, सिंध और कुछ हद तक बलोचिस्तान में बसने वाली एक जाति है। सियाल मुस्लिम, सिख और हिन्दू तीनों धार्मिक समुदायों में मिलते हैं। भिन्न सियाल परिवार स्वयं को जाट, राजपूत या खत्री श्रेणियों में डालते हैं।, B.S. Nijjar, Atlantic Publishers & Dist, 2007, ISBN 978-81-269-0908-7,...

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जाट

जाट उत्तरी भारत और पाकिस्तान की एक जाति है। वर्ष 2016 तक, जाट, भारत की कुल जनसंख्या का 0.1 प्रतिशत हैं । एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार, .

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वारिस शाह

वारिस शाह (पंजाबी:, ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ) एक पंजाबी कवि थे जो मुख्य रूप से अपने "हीर राँझा" नामक काव्य-कथा के लिये मशहूर हैं। कहा जाता है कि उन्होंने हीर को "वारिस की हीर" बना कर अमर कर दिया। .

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