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अनुक्रमिक लॉजिक

सूची अनुक्रमिक लॉजिक

आंकिक परिपथों के संदर्भ में उन लॉजिक परिपथों को अनुक्रमिक लॉजिक (sequential logic) कहते हैं जिनका आउटपुट केवल वर्तमान इनपुटों पर ही निर्भर नहीं करता बल्कि इनपुट की पूर्व स्थितियों पर भी निर्भर करता है। फ्लिप-फ्लॉप इसका सबसे सरल उदाहरण है। ध्यातव्य है कि कम्बिनेशनल लॉजिकों (combinational logic) का आउटपुट केवल उनके इनपुटों की वर्तमान स्थितियों से ही निर्धारित होता है न कि उनके इनपुट की पूर्व स्थितियों से। उपरोक्त बात को यों भी कह सकते हैं कि अनुक्रमिक लॉजिक में स्मृति (memory) का गुण पाया जाता है (क्योंकि आउटपुट पिछली बातों से भी प्रभावित है।) इसलिये अनुक्रमिक लॉजिक का उपयोग संगणक स्मृति बनाने, अन्य प्रकार के देरी (delay) करने वाले तथा भंडारण करने वाले अवयवों के निर्माण, तथा सीमित अवस्था मशीन (finite state machines) के निर्माण के लिये किया जाता है। व्यवहार में आने वाली अधिकांश आंकिक परिपथों में कम्बिनेशनल तथा सेक्वेंशियल लॉजिक का मिश्रण होता है (केवल एक ही प्रकार के परिपथ से काम नहीं चलता)। अनुक्रमिक लॉजिक परिपथों से दो तरह के सीमित अवस्था मशीन बनाये जा सकते हैं-.

4 संबंधों: फ्लिप-फ्लॉप, संयोजन तर्क, स्मृति, कंप्यूटर स्मृति

फ्लिप-फ्लॉप

एक आर-एस द्विमानित्र (फ्लिप-फ्लॉप) का परिपथ; यह परिपथ दो 'नॉर' द्वारों (गेटों) को जोड़कर बनाया गया है। लाल का अर्थ तर्कसंगत (लॉजिकल) '''1''' है और काला का अर्थ तर्कसंगत '''0''' एलेक्ट्रॉनिकी में द्विमानित्र (फ्लिप-फ्लॉप) एक अंकीय (डिजिटल) परिपथ है जिसका निर्गम (आउटपुट) दो स्थाई अवस्थाओं में में से किसी एक में बना रहता है (जब तक उसे बदलने के लिये निवेश (इनपुट) में कुछ न किया जाय)। इसे 'लैच' (latch) भी कहते हैं। इस परिपथ एक या अधिक निवेश होते हैं जिन पर संकेत का उचित परिवर्तन करके निर्गम के अवस्‍था (स्टेट) को बदला जा सकता है। इसके एक एक या दो निर्गम होते हैं। द्विमानित्र कई प्रकार के होते हैं और आंकिक एलेक्ट्रॉनिकी की मूलभूत निर्माण-ईकाई हैं। ये आंकड़ा भंडारण के अवयव (अर्थात 'मेमोरी') तैयार करने के लिये प्रयुक्त होते हैं। ये 'अनुक्रमिक तर्क' की श्रेणी में आते हैं। इनका उपयोग स्‍पंदों (पल्सों) को गिनने (काउन्टर) के लिये तथा अलग-अलग समय पर पहुंचने वाले निवेश संकेतों को समकालिक बनाने (synchronizing) के लिये किया जाता है। .

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संयोजन तर्क

डिजिटल परिपथ के संदर्भ में उन परिपथों को संयोजन तर्क (कंबिनेशन लॉजिक) कहते हैं जिनका आउटपुट केवल उनके वर्तमान इनपुटों पर ही निर्भर करता है, उनके पूर्व अवस्थाओं पर नहीं। ऐण्ड गेट और ऑर गेट सरल संयोजन तर्क के दो सरल उदाहरण हैं। इसके विपरीत अनुक्रमिक लॉजिक का आउटपुट उसके वर्तमान इनपुट पर निर्भर होने के साथ-साथ उसके इनपुट की पूर्व अवस्थाओं पर भी निर्भर होता है। कुछ प्रमुख संयोजन तर्क.

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स्मृति

स्मृति हिन्दू धर्म के उन धर्मग्रन्थों का समूह है जिनकी मान्यता श्रुति से नीची श्रेणी की हैं और जो मानवों द्वारा उत्पन्न थे। इनमें वेद नहीं आते। स्मृति का शाब्दिक अर्थ है - "याद किया हुआ"। यद्यपि स्मृति को वेदों से नीचे का दर्ज़ा हासिल है लेकिन वे (रामायण, महाभारत, गीता, पुराण) अधिकांश हिन्दुओं द्वारा पढ़ी जाती हैं, क्योंकि वेदों को समझना बहुत कठिन है और स्मृतियों में आसान कहानियाँ और नैतिक उपदेश हैं। इसकी सीमा में विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों—गीता, महाभारत, विष्णुसहस्रनाम की भी गणना की जाने लगी। शंकराचार्य ने इन सभी ग्रन्थों को स्मृति ही माना है। मनु ने श्रुति तथा स्मृति महत्ता को समान माना है। गौतम ऋषि ने भी यही कहा है कि ‘वेदो धर्ममूल तद्धिदां च स्मृतिशीले'। हरदत्त ने गौतम की व्खाख्या करते हुए कहा कि स्मृति से अभिप्राय है मनुस्मृति से। परन्तु उनकी यह व्याख्या उचित नहीं प्रतीत होती क्योंकि स्मृति और शील इन शब्दों का प्रयोग स्रोत के रूप में किया है, किसी विशिष्ट स्मृति ग्रन्थ या शील के लिए नहीं। स्मृति से अभिप्राय है वेदविदों की स्मरण शक्ति में पड़ी उन रूढ़ि और परम्पराओं से जिनका उल्लेख वैदिक साहित्य में नहीं किया गया है तथा शील से अभिप्राय है उन विद्वानों के व्यवहार तथा आचार में उभरते प्रमाणों से। फिर भी आपस्तम्ब ने अपने धर्म-सूत्र के प्रारम्भ में ही कहा है ‘धर्मज्ञसमयः प्रमाणं वेदाश्च’। स्मृतियों की रचना वेदों की रचना के बाद लगभग ५०० ईसा पूर्व हुआ। छठी शताब्दी ई.पू.

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कंप्यूटर स्मृति

१ जीबी डीडीआर, रैंडम एक्सेस मेमोरी कंप्यूटर स्मृति या मैमोरी का कार्य किसी भी निर्देश, सूचना अथवा परिणाम को संचित करके रखना होता है। कम्प्यूटर के सी.पी.यू.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

सेक्वेंशियल लॉजिक, अनुक्रमिक तर्क

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