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सुबिमल बसाक

सूची सुबिमल बसाक

सुबिमल बसाक (१५ दिसम्बर १९३९) (সুবিমল বসাক)बांग्ला साहित्य के प्रमुख उपन्यासकार है। 'भूखी पीढ़ी आन्दोलन' शुरु करनेवाले साहित्यिकों मे उनका प्रधान योगदान रहा है। उन्होने कहानीलेखन की एक नयी भाषा को जन्म दिया जो बिहार के रहनेवाले बांग्लाभाषी बोला करते हैं। सुबिमल बसाक ने हिन्दी से बहुत सारे उपन्यास अनुवाद किया। वर्ष २००८ में उन्हे साहित्य अकादमी पुरस्कार से सन्मानित किया गया। .

22 संबंधों: त्रिदिब मित्रा, देबी राय, प्रतिलिप्यधिकार, प्रेमचंद, फणीश्वर नाथ "रेणु", फालगुनि राय, बासुदेब दाशगुप्ता, बाङ्ला भाषा, बिहार, भारतीय साहित्य अकादमी, भीष्म साहनी, मलय रॉय चौधुरी, मोहन राकेश, यशपाल, शक्ति चट्टोपाध्याय, श्रीकांत वर्मा, समीर रायचौधुरी, हिन्दी, अनिल करनजय, अनुवाद, उत्पलकुमार बसु, उपन्यास

त्रिदिब मित्रा

त्रिदिब मित्रा (३१ दिसम्बर १९४०) बांग्ला साहित्य के भुखी पीढी (हंगरी जेनरेशन) आंदोलन के प्रख्यात कवि थे। वह और उनकि पत्नी आलो मित्रा दोनों मिलकर भुखी पीढी आंदोलन के दो पत्रिकायें चलाया करते थे; अंग्रेजी में वेस्ट्पेपर एवम बांग्ला में उन्मार्ग। बचपन में स्कुली परीक्षा के बाद वह एकबार घर से सात महिनें के लिये भाग गये थे। उस दौरान उनहे जो जीवन व्यतीत करना पडा उसका असर उनके और उनके लेखन में दिखायी देते हैं। उनके सम्पादित लघु पत्रिकायों के नाम से ही प्ता चल जाता है कि उनके मनन में क्या प्रभाव रहा होगा। भुखी पीढी अंदोलन में योग देने के पश्चात ही वह यातनामय स्मृति से उभर पाये थे। उनके लेखन में वह क्रोध झलकता है। बांग्ला संस्कृती में एक नयी आयाम का अनुप्रवेश घटाया था त्रिदिब मित्रा ने। श्मशान, कबरगाह, बाजर, रेल-स्टेशन, खालसिटोला के मद्यपों के बिच कविता पढने और ग्रन्थों का उन्मोचन करने का जो सिलसिला भुखी पीढी अंदोलन के बाद शुरु हुये, उस प्रक्रिया के जनक थे त्रिदिब मित्रा और आलो मित्रा। वे दोनों के कविता पठन के कार्ञक्रम में काफि भीड हुया करता था, क्यों कि पहलिबार कविता को ले जाया गया था आम आदमि के समाज में। अनिल करनजय के बनाये पोस्टरों को कोलकाता के दिवारों में वही दोनों बेझिझक चिपकया करते थे। भुखी पीढी ने जो मुखौटा कार्यक्रम शुरु किया था उसको अनजाम भी त्रिदिब और आलो ने दिये। उंचे पद के लोगों के दफतर में वही दोनों मुखौटा पहुंचाया था। जानवर, राक्षस, जोकर इत्यादि के मुखौटा पर लिखा होता था "कृपया अपना मुखौटा उतारे"। यह कार्यक्रम के कारण ही प्रधानत: कोलकाता प्रशासन भुखी पीढी के खिलाफ खफा हो गया था। त्रिदिब देखने मे सुंदर थे एवम इसि कारण उन्हे भुखी पीढी का राजकुमार कहा जाता था। .

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देबी राय

देबी राय (४-८-१९४०) (দেবী রায়)बांग्ला भाषा के प्रख्यात कवि एवम अनुवादक हैं। भुखी पीढी (हंगरि जेनरेशन) के प्रतिष्ठातायों में वह प्रधान हैं एवम आन्दोलनके बुलेटिन के सम्पादक रहे हैं। उन्होनें तिस से भी ज्यादा कवितापुस्तके लिखें। बांग्ला आधुनिक कविता के वह प्रथम निम्नबर्ग के कवि हैं। .

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प्रतिलिप्यधिकार

प्रतिलिप्यधिकार का लोगो प्रतिलिप्यधिकार या कॉपीराइट बौद्धिक संपदा का एक रूप है। जॊ एक मूल कृति के लेखक कॊ प्रकाशन, वितरण और अनुकूलन का निश्चित समय अवधि के लिए, विशेष अधिकार देता है। प्रतिलिप्यधिकार या कॉपीराइट किसी चीज के वर्णन में हैं। यदि आप कोई अच्छी कहानी लिखें, या कोई गाना संगीत-बद्ध करें, या पेन्टिंग करे तो यह किसी चीज़ का वर्णन होगा। उसमें आपका प्रतिलिप्यधिकार होगा। यदि उसे प्रकाशित करें तो कोई और उसे आपकी अनुमति के बिना प्रयोग नहीं कर सकता है। भारतवर्ष में प्रतिलिप्यधिकार के बारे में प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम, 1957 (The Copyright Act, 1957) कानून है। यहां प्रयुक्‍त कार्यों का अर्थ हैं:- साहित्यिक रचना:- इसमें कम्‍प्‍यूटर कार्यक्रम, सारणियां, संकलन और कम्‍प्‍यूटर डाटाबेस शामिल हैं। नाट्य रचना:- इसमें गायन, नृत्‍य रचना या किसी प्रदर्शन में मनोरंजन का कोई रूप, नाट्य प्रबंध या अभिनय जिसका रूप लिखित या किसी अन्‍य रूप में तय हो, शामिल हैं। संगीत रचना:- इसमें संगीत रचनाएं शामिल हैं, ऐसी रचनाओं का ग्राफीय रूप शामिल है लेकिन इसमें संगीत के साथ गाए, बोले या अभिनीत किए जाने वाले शब्‍द या अंगविक्षेप शामिल नहीं हैं। कलात्‍मक रचना:- इसका अर्थ है चित्र, मूर्ति, आलेख (जिसमें आरेख, मानचित्र, चार्ट या प्‍लान भी शामिल है), उत्‍कीर्णन, या फोटोग्राफ, भले ही उनमें कलात्‍मक गुण हों या न हों। इसमें स्‍थापत्‍य रचनाएं और कलात्‍मक कारीगरी की कोई अन्‍य रचनाएं भी शामिल हो सकती हैं। चलचित्र रचना:- इसका अर्थ है किसी ऐसी प्रक्रिया में जरिए, जिससे किसी भी तरह चलती-फिरती छवि निर्मित की जा सकती है, बनाए गए किसी माध्‍यम पर दृश्‍य रिकार्डिंग की कोई रचना। ध्‍वनि रिकार्डिंग:- इसका अर्थ है ध्‍वनियों की रिकार्डिंग जिससे ध्‍वनियां निर्मित की जा सकती हैं, उस माध्‍यम पर ध्‍यान दिए बिना, जिससे ध्‍वनियां निर्मित की गई हो। यहां 'संबंधित अधिकार या निकटवर्ती अधिकार' है कलाकारों (उदाहरणार्थ अभिनेताओं, गायकों और संगीतकारों), फोनोग्राम (ध्‍वनि रिकार्डिंग) के निर्माताओं और प्रसारण संगठनों के अधिकार। कॉपीलेफ्ट भी एक तरह का कॉपीराइट है। .

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प्रेमचंद

प्रेमचंद (३१ जुलाई १८८० – ८ अक्टूबर १९३६) हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। मूल नाम धनपत राय प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्‍य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्‍यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं। .

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फणीश्वर नाथ "रेणु"

फणीश्वर नाथ 'रेणु' (४ मार्च १९२१ औराही हिंगना, फारबिसगंज - ११ अप्रैल १९७७) एक हिन्दी भाषा के साहित्यकार थे। इनके पहले उपन्यास मैला आंचल को बहुत ख्याति मिली थी जिसके लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। .

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फालगुनि राय

Falguni Roy by Subimal Basak 1995 फालगुनि राय (जन्म ७-०६-१९४५—मृत्यु ३१-०५-१९८१) (ফালগুনি রায়) बांग्ला साहित्यके भुखी पीढी (हंगरि जेनरेशन) आन्दोलन के सबसे कम उमर के प्रमुख कवि हैं जो मात्र ३६ साल के अवधि में अपने मादक्सेवन एवम बोहेमियन जीवन के कारण तरुण लेखकों में किंबदन्ति बन गये हैं। उनके जीवनकाल में वह केवल एक ही काब्यग्रन्थ नष्टो आत्मार टेलिविशन प्रकाशित किये। १५ अगस्त १९७३ के दिन वह काव्यग्रन्थ का उन्मोचन खालासिटोला में किया गया था। आलोचकों का कहना है कि वह पुस्तक का प्रकाश का साल बांग्ला सहित्य में अपनेआप एक जलबिभाजक सा है; पुस्तक के प्रकाश से बांग्ला कविता में आधुनिकता के युग समप्त हो गये। अपने जीवनकाल में उन्होने जो सारे कवितायें लिखे वह अप्रकाशित कवितायें उनके म्ररणोपरान्त कोलकाता एवम ढाका से बारबार प्रकाशित हो रहे हैं। पश्चिम बंगाल एवम बांगलादेश में उनपर बहुत सारे शोध हो चुके हैं। .

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बासुदेब दाशगुप्ता

बासुदेब दाशगुप्ता (३१ दिसम्बर १९३८---३१ अगस्त २००५) (বাসুদেব দাশগুপ্ত) बांग्ला साहित्य के भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) के एक प्रमुख कहानीकार एवम उपन्यासकार हैं। सन १९६५ में प्रकाशित उनकी कहानी 'रन्धनशाला' को बांग्ला साहित्य की कालजयी रचना माना जाता है। वह पूर्वी बंगाल के मदारिपुर में पैदा हुये एवम पर्टिशन के समय भारत चले आये। अशोक्नगर रिफिउजि कलोनि में घर मिलने प्र वहिं बस गये, बि एड पढें और आजिवन वहिं कल्याण्गढ विद्यामन्दिर में पढाये। बीच में मार्क्सबाद के प्रति आकृष्ट हुये परन्तु क्रमश राजनीति से निर्मोह हो गये। अत्यधिक मादक सेवन एवम पीने के लत के कारण उनका स्वास्थ्य ढल गया और बिमार रहने लगे। .

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बाङ्ला भाषा

बाङ्ला भाषा अथवा बंगाली भाषा (बाङ्ला लिपि में: বাংলা ভাষা / बाङ्ला), बांग्लादेश और भारत के पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्वी भारत के त्रिपुरा तथा असम राज्यों के कुछ प्रान्तों में बोली जानेवाली एक प्रमुख भाषा है। भाषाई परिवार की दृष्टि से यह हिन्द यूरोपीय भाषा परिवार का सदस्य है। इस परिवार की अन्य प्रमुख भाषाओं में हिन्दी, नेपाली, पंजाबी, गुजराती, असमिया, ओड़िया, मैथिली इत्यादी भाषाएँ हैं। बंगाली बोलने वालों की सँख्या लगभग २३ करोड़ है और यह विश्व की छठी सबसे बड़ी भाषा है। इसके बोलने वाले बांग्लादेश और भारत के अलावा विश्व के बहुत से अन्य देशों में भी फ़ैले हैं। .

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बिहार

बिहार भारत का एक राज्य है। बिहार की राजधानी पटना है। बिहार के उत्तर में नेपाल, पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण में झारखण्ड स्थित है। बिहार नाम का प्रादुर्भाव बौद्ध सन्यासियों के ठहरने के स्थान विहार शब्द से हुआ, जिसे विहार के स्थान पर इसके अपभ्रंश रूप बिहार से संबोधित किया जाता है। यह क्षेत्र गंगा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ मैदानों में बसा है। प्राचीन काल के विशाल साम्राज्यों का गढ़ रहा यह प्रदेश, वर्तमान में देश की अर्थव्यवस्था के सबसे पिछड़े योगदाताओं में से एक बनकर रह गया है। .

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भारतीय साहित्य अकादमी

भारत की साहित्य अकादमी भारतीय साहित्य के विकास के लिये सक्रिय कार्य करने वाली राष्ट्रीय संस्था है। इसका गठन १२ मार्च १९५४ को भारत सरकार द्वारा किया गया था। इसका उद्देश्य उच्च साहित्यिक मानदंड स्थापित करना, भारतीय भाषाओं और भारत में होनेवाली साहित्यिक गतिविधियों का पोषण और समन्वय करना है। .

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भीष्म साहनी

रावलपिंडी पाकिस्तान में जन्मे भीष्म साहनी (८ अगस्त १९१५- ११ जुलाई २००३) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से थे। १९३७ में लाहौर गवर्नमेन्ट कॉलेज, लाहौर से अंग्रेजी साहित्य में एम ए करने के बाद साहनी ने १९५८ में पंजाब विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की। भारत पाकिस्तान विभाजन के पूर्व अवैतनिक शिक्षक होने के साथ-साथ ये व्यापार भी करते थे। विभाजन के बाद उन्होंने भारत आकर समाचारपत्रों में लिखने का काम किया। बाद में भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) से जा मिले। इसके पश्चात अंबाला और अमृतसर में भी अध्यापक रहने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में साहित्य के प्रोफेसर बने। १९५७ से १९६३ तक मास्को में विदेशी भाषा प्रकाशन गृह (फॉरेन लॅग्वेजेस पब्लिकेशन हाउस) में अनुवादक के काम में कार्यरत रहे। यहां उन्होंने करीब दो दर्जन रूसी किताबें जैसे टालस्टॉय आस्ट्रोवस्की इत्यादि लेखकों की किताबों का हिंदी में रूपांतर किया। १९६५ से १९६७ तक दो सालों में उन्होंने नयी कहानियां नामक पात्रिका का सम्पादन किया। वे प्रगतिशील लेखक संघ और अफ्रो-एशियायी लेखक संघ (एफ्रो एशियन राइटर्स असोसिएशन) से भी जुड़े रहे। १९९३ से ९७ तक वे साहित्य अकादमी के कार्यकारी समीति के सदस्य रहे। भीष्म साहनी को हिन्दी साहित्य में प्रेमचंद की परंपरा का अग्रणी लेखक माना जाता है। वे मानवीय मूल्यों के लिए हिमायती रहे और उन्होंने विचारधारा को अपने ऊपर कभी हावी नहीं होने दिया। वामपंथी विचारधारा के साथ जुड़े होने के साथ-साथ वे मानवीय मूल्यों को कभी आंखो से ओझल नहीं करते थे। आपाधापी और उठापटक के युग में भीष्म साहनी का व्यक्तित्व बिल्कुल अलग था। उन्हें उनके लेखन के लिए तो स्मरण किया ही जाएगा लेकिन अपनी सहृदयता के लिए वे चिरस्मरणीय रहेंगे। भीष्म साहनी हिन्दी फ़िल्मों के जाने माने अभिनेता बलराज साहनी के छोटे भाई थे। उन्हें १९७५ में तमस के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९७५ में शिरोमणि लेखक अवार्ड (पंजाब सरकार), १९८० में एफ्रो एशियन राइटर्स असोसिएशन का लोटस अवार्ड, १९८३ में सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड तथा १९९८ में भारत सरकार के पद्मभूषण अलंकरण से विभूषित किया गया। उनके उपन्यास तमस पर १९८६ में एक फिल्म का निर्माण भी किया गया था। .

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मलय रॉय चौधुरी

मलय रायचौधुरी (जन्म २९ अक्टूबर १९३९) (মলয় রায়চৌধুরী) बांग्ला साहित्य के प्रख्यात कवि एवम आलोचक है। वे साठ के दशक के सहित्य आन्दोलन भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) के जन्मदाता माने जाते है। इस आन्दोलन ने बांग्ला साहित्य को एक नयी दिशा दी और पूरे भारत में उथलपुथल मचायी। आन्दोलन के सिलसिले में मलय को उनहे कविता लिखने के कारण कारावास का दण्ड मिला था। वे अब तक सत्तर से ज्यादा कविताग्रन्थ, नाटक, उपन्यास एवम अनुवद के पुस्तक लिख चुके हैं। साठ के दशक मे जो बदलाव बांगला कविता मे आये, उन में एक बड़ा योगदान मलय रायचौधुरी का रहा है। उनके काव्यग्रन्थो मे ख्याति प्राप्त हैं मेधार वतानुकूल घुन्गुर। २००३ में उन्हें अनुवाद के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। .

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मोहन राकेश

मोहन राकेश(८ जनवरी १९२५ - ३ जनवरी, १९७२) नई कहानी आन्दोलन के सशक्त हस्ताक्षर थे। पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए किया। जीविकोपार्जन के लिये अध्यापन। कुछ वर्षो तक 'सारिका' के संपादक। 'आषाढ़ का एक दिन','आधे अधूरे' और लहरों के राजहंस के रचनाकार। 'संगीत नाटक अकादमी' से सम्मानित। ३ जनवरी १९७२ को नयी दिल्ली में आकस्मिक निधन। मोहन राकेश हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और उपन्यासकार हैं। समाज के संवेदनशील व्यक्ति और समय के प्रवाह से एक अनुभूति क्षण चुनकर उन दोनों के सार्थक सम्बन्ध को खोज निकालना, राकेश की कहानियों की विषय-वस्तु है। मोहन राकेश की डायरी हिंदी में इस विधा की सबसे सुंदर कृतियों में एक मानी जाती है। .

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यशपाल

---- यशपाल (३ दिसम्बर १९०३ - २६ दिसम्बर १९७६) का नाम आधुनिक हिन्दी साहित्य के कथाकारों में प्रमुख है। ये एक साथ ही क्रांतिकारी एवं लेखक दोनों रूपों में जाने जाते है। प्रेमचंद के बाद हिन्दी के सुप्रसिद्ध प्रगतिशील कथाकारों में इनका नाम लिया जाता है। अपने विद्यार्थी जीवन से ही यशपाल क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़े, इसके परिणामस्वरुप लम्बी फरारी और जेल में व्यतीत करना पड़ा। इसके बाद इन्होने साहित्य को अपना जीवन बनाया, जो काम कभी इन्होने बंदूक के माध्यम से किया था, अब वही काम इन्होने बुलेटिन के माध्यम से जनजागरण का काम शुरु किया। यशपाल को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७० में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। .

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शक्ति चट्टोपाध्याय

शक्ति चट्टोपाध्याय (जन्म २५ नवम्बर १९३४ - मृत्यु २३ मार्च १९९५) (শক্তি চট্টোপাধ্যায়) बांग्ला साहित्य के भुखी पीढी आन्दोलन के नेता माने जाते हैं, जो सन १९६१ में एक मेनिफेस्टो के जरिये कोलकाता को आश्चर्य चकित कर दिये थे। वह दक्षिण २४ परगणा के जयनगर-मजिलपुर गांव में एक गरीब परिबार में पैदा हुये। प्रेसिडेन्सि कालेज में बि॰ए॰ पढ्ते समय वह कविता लिखना शुरु किये एवम कालेज से गायब होकर चाइबासा अपने प्रिय मित्र समीर रायचौधुरी के घर जा कर बसे। चाइबासा में दो साल के जीवनकाल में उन्होने श्रेष्ठ कवितायें लिखे। उनको जीवनानंद दास के बाद के बांग्ला लिरिक कवियों में प्रधान माना गया है। अपने जीवनकाल में वह ३४ काव्यग्रन्थ प्रकाश किये। शान्तिनिकेतन में आधुनिकता पर पडाते समय १९९५ स्न मे उनका मृत्यु हुया। मरणोपरान्त उनके बहुत सारे अप्रकाशित कवितायों का संकलन उनके मित्र समीर सेनगुप्ता ने सम्पादित किये। सन १९८३ में जेते पारि किन्तु केनो जाबो काव्यग्रन्थ के लिये उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किय गया था। .

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श्रीकांत वर्मा

श्रीकांत वर्मा (Shrikant verma) (१८ नवंबर १९३१- १९८६) का जन्म बिलासपुर (bilaspur), मध्य प्रदेश में हुआ। वे गीतकार, कथाकार तथा समीक्षक के रूप में जाने जाते हैं। ये राजनीति से भी जुडे थे तथा लोकसभा के सदस्य रहे। १९५७ में प्रकाशित भटका मेघ, १९६७ में प्रकाशित मायादर्पण और दिनारम्भ, १९७३ में प्रकाशित जलसाघर और १९८४ में प्रकाशित मगध इनकी काव्य-कृतियाँ हैं। 'झाडियाँ तथा 'संवाद इनके कहानी-संग्रह है। 'बीसवीं शताब्दी के अंधेरे में एक आलोचनात्मक ग्रंथ है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बिलासपुर(bilaspur) तथा रायपुर(raipur) में हुई तथा नागपुर विश्वविद्यालय से १९५६ में उन्होंने हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। इसके बाद वे दिल्ली चले गए और वहाँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लगभग एक दशक तक पत्रकार के रूप में कार्य किया। १९६६ से १९७७ तक वे दिनमान के विशेष संवाददाता रहे। १९७६ में काँग्रेस के के टिकट पर चुनाव जीतकर वे राज्य सभा के सदस्य बने। और सत्तरवें दशक के उत्तरार्ध से ८०वें दशक के पूर्वार्ध तक पार्टी के प्रवक्ता के रूप में कार्य करते रहे। १९८० में वे इंदिरा गांधी के राष्ट्रीय चुनाव अभियान के प्रमुख प्रबंधक रहे और १९८४ में राजीव गांधी के परामर्शदाता तथा राजनीतिक विश्लेषक के रूप में कार्य करते रहे। कांग्रेस को अपना "गरीबी हटाओ" का अमर स्लोगन दिया.

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समीर रायचौधुरी

समीर रायचौधुरी समीर रायचौधुरी (१-११-१९३३) (সমীর রায়চৌধুরী) बांग्ला साहित्य के एक प्रमुख कवि, आलोचक, कहानीलेखक एवम दार्शनिक हैं। भुखी पीढी आन्दोलन के प्रथम मेनिफेस्टो घोषणाकारीयों में वह प्रधान थे। हवा ४९ साहित्यपत्र के वह सम्पादक रहे हैं। उन्होनें अंग्रेजि भाषा में भी कविता एवम कहानियों के संकलन सम्पाद्न किये हैं। उनके लिखे खुलजा सिमसिम कहानी संकलन को अधुनान्तिक कहा गया है। .

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हिन्दी

हिन्दी या भारतीय विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की राजभाषा है। केंद्रीय स्तर पर दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्द का प्रयोग अधिक हैं और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हालांकि, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की और नेपाल की जनता भी हिन्दी बोलती है।http://www.ethnologue.com/language/hin 2001 की भारतीय जनगणना में भारत में ४२ करोड़ २० लाख लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा बताया। भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 648,983; मॉरीशस में ६,८५,१७०; दक्षिण अफ्रीका में ८,९०,२९२; यमन में २,३२,७६०; युगांडा में १,४७,०००; सिंगापुर में ५,०००; नेपाल में ८ लाख; जर्मनी में ३०,००० हैं। न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसके अलावा भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १४ करोड़ १० लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, मौखिक रूप से हिन्दी के काफी सामान है। लोगों का एक विशाल बहुमत हिन्दी और उर्दू दोनों को ही समझता है। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की १४ आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग १ अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिंदी हिंदी बेल्ट का लिंगुआ फ़्रैंका है, और कुछ हद तक पूरे भारत (आमतौर पर एक सरल या पिज्जाइज्ड किस्म जैसे बाजार हिंदुस्तान या हाफ्लोंग हिंदी में)। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी। 'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिन्दवी', 'दक्खिनी', 'रेखता', 'आर्यभाषा' (स्वामी दयानन्द सरस्वती), 'हिन्दुस्तानी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि हिन्दी के अन्य नाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न सन्दर्भों में प्रयुक्त हुए हैं। .

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अनिल करनजय

अनिल करनजय (27 जून 1940 - 18 मार्च 2001) एक पूर्ण भारतीय कलाकार थे। पूर्व बंगाल में जन्म लेनेवाले करनजय ने बनारस में शिक्षा प्राप्त की, जहां उनका परिवार 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप के बंटवारे के बाद बस गया। एक छोटे बच्चे के रूप में वे मिट्टी के साथ खेलने, खिलौने और तीर बनाने में काफी समय बिताते थे। उन्होंने बहुत जल्दी ही जानवरों और पौधों का चित्र बनाना या जिस भी वस्तु ने उन्हें प्रेरित किया उसका चित्र बनाना भी शुरू कर दिया। 1956 में उन्होंने बंगाल स्कूल के एक गुरु और नेपाली मूल के करनमान सिंह की अध्यक्षता वाले भारतीय कला केन्द्र का पूर्णकालिक छात्र बनने के लिए स्कूल छोड़ दिया.

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अनुवाद

किसी भाषा में कही या लिखी गयी बात का किसी दूसरी भाषा में सार्थक परिवर्तन अनुवाद (Translation) कहलाता है। अनुवाद का कार्य बहुत पुराने समय से होता आया है। संस्कृत में 'अनुवाद' शब्द का उपयोग शिष्य द्वारा गुरु की बात के दुहराए जाने, पुनः कथन, समर्थन के लिए प्रयुक्त कथन, आवृत्ति जैसे कई संदर्भों में किया गया है। संस्कृत के ’वद्‘ धातु से ’अनुवाद‘ शब्द का निर्माण हुआ है। ’वद्‘ का अर्थ है बोलना। ’वद्‘ धातु में 'अ' प्रत्यय जोड़ देने पर भाववाचक संज्ञा में इसका परिवर्तित रूप है 'वाद' जिसका अर्थ है- 'कहने की क्रिया' या 'कही हुई बात'। 'वाद' में 'अनु' उपसर्ग उपसर्ग जोड़कर 'अनुवाद' शब्द बना है, जिसका अर्थ है, प्राप्त कथन को पुनः कहना। इसका प्रयोग पहली बार मोनियर विलियम्स ने अँग्रेजी शब्द टांंसलेशन (translation) के पर्याय के रूप में किया। इसके बाद ही 'अनुवाद' शब्द का प्रयोग एक भाषा में किसी के द्वारा प्रस्तुत की गई सामग्री की दूसरी भाषा में पुनः प्रस्तुति के संदर्भ में किया गया। वास्तव में अनुवाद भाषा के इन्द्रधनुषी रूप की पहचान का समर्थतम मार्ग है। अनुवाद की अनिवार्यता को किसी भाषा की समृद्धि का शोर मचा कर टाला नहीं जा सकता और न अनुवाद की बहुकोणीय उपयोगिता से इन्कार किया जा सकता है। ज्त्।छैस्।ज्प्व्छ के पर्यायस्वरूप ’अनुवाद‘ शब्द का स्वीकृत अर्थ है, एक भाषा की विचार सामग्री को दूसरी भाषा में पहुँचना। अनुवाद के लिए हिंदी में 'उल्था' का प्रचलन भी है।अँग्रेजी में TRANSLATION के साथ ही TRANSCRIPTION का प्रचलन भी है, जिसे हिंदी में 'लिप्यन्तरण' कहा जाता है। अनुवाद और लिप्यंतरण का अंतर इस उदाहरण से स्पष्ट है- इससे स्पष्ट है कि 'अनुवाद' में हिंदी वाक्य को अँग्रेजी में प्रस्तुत किया गया है जबकि लिप्यंतरण में नागरी लिपि में लिखी गयी बात को मात्र रोमन लिपि में रख दिया गया है। अनुवाद के लिए 'भाषांतर' और 'रूपांतर' का प्रयोग भी किया जाता रहा है। लेकिन अब इन दोनों ही शब्दों के नए अर्थ और उपयोग प्रचलित हैं। 'भाषांतर' और 'रूपांतर' का प्रयोग अँग्रेजी के INTERPRETATION शब्द के पर्याय-स्वरूप होता है, जिसका अर्थ है दो व्यक्तियों के बीच भाषिक संपर्क स्थापित करना। कन्नडभाषी व्यक्ति और असमियाभाषी व्यक्ति के बीच की भाषिक दूरी को भाषांतरण के द्वारा ही दूर किया जाता है। 'रूपांतर' शब्द इन दिनों प्रायः किसी एक विधा की रचना की अन्य विधा में प्रस्तुति के लिए प्रयुक्त है। जैस, प्रेमचन्द के उपन्यास 'गोदान' का रूपांतरण 'होरी' नाटक के रूप में किया गया है। किसी भाषा में अभिव्यक्त विचारों को दूसरी भाषा में यथावत् प्रस्तुत करना अनुवाद है। इस विशेष अर्थ में ही 'अनुवाद' शब्द का अभिप्राय सुनिश्चित है। जिस भाषा से अनुवाद किया जाता है, वह मूलभाषा या स्रोतभाषा है। उससे जिस नई भाषा में अनुवाद करना है, वह 'प्रस्तुत भाषा' या 'लक्ष्य भाषा' है। इस तरह, स्रोत भाषा में प्रस्तुत भाव या विचार को बिना किसी परिवर्तन के लक्ष्यभाषा में प्रस्तुत करना ही अनुवाद है।ज .

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उत्पलकुमार बसु

उत्पल कुमार बसु (३ अगस्त १९३९) (উৎপলকুমার বসু) बांग्ला सहित्य के भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) आन्दोलन के एक प्रमुख कवि हैं। १९६० तक वह कृत्तिवास गोष्ठी के सदस्य थे। भुखी पीढी आन्दोलन में योगदान के कारण उनके खिलाफ भी कोलकाता पुलिस समन निकाला था। इसके चलते उन्हे योगमाया देवी कालेज के प्राध्यापक के नौकरि से बरखास्त किया गया था। ततपश्चात वह विदेश चले गये एवम दस साल के लिये कविता लिखना त्याग दिया। दस साल बाद कोलकाता लौट कर उन्होने जो कवितायें प्रकाश करने लगे, साहित्य जगत में मानो तहलका मचा दिया। भुखी पीढी आन्दोलन के समय लिखे उनका पोपेर समाधि को सराहा गया है। .

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उपन्यास

उपन्यास गद्य लेखन की एक विधा है। .

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