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सुंधा माता

सूची सुंधा माता

हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूजा के दौरान किसी कारणवश मूर्ति के खंड होने पर उसकी आराधना नहीं होती है, लेकिन राजस्थान में एक पर्वत ऐसा भी है जहाँ खंडित मूर्तियों को रखना पवित्र माना जाता है। विभिन्न राज्यों से सुंधा माता के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु अपने साथ खंडित देवी मूर्तियाँ साथ लाते है। इन प्रतिमाओं को पहाड़ की शिलाओं के नीचे जहाँ उचित समझते है, वहीं रख कर चले जाते हैं। .

13 संबंधों: चामुंडा, भरद्वाज, महाराणा प्रताप, मारवाड़, मेवाड़, राजस्थान, हल्दीघाटी, हिन्दू, जालौर, जोधपुर, गुजरात, अलाउद्दीन खिलजी, अक्षय तृतीया

चामुंडा

300px चामुंडा माता पार्वती का ही एक रूप है। माता का नाम चामुण्ड़ा पडने के पीछे एक कथा प्रचलित है। दूर्गा सप्तशती में माता के नाम की उत्पत्ति कथा वर्णित है। हजारों वर्ष पूर्व धरती पर शुम्भ और निशुम्भ नामक दो दैत्यो का राज था। उनके द्वारा धरती व स्वर्ग पर काफी अत्याचार किया गया। जिसके फलस्वरूप देवताओं व मनुष्यो ने देवी दूर्गा कि आराधना की और देवी दूर्गा ने उन सभी को वरदान दिया कि वह अवश्य ही इन दोनों दैत्यो से उनकी रक्षा करेंगी। इसके पश्चात देवी दूर्गा ने कोशिकी नाम से अवतार ग्रहण किया। माता कोशिकी को शुम्भ और निशुम्भ के दूतो ने देख लिया और उन दोनो से कहा महाराज आप तीनों लोको के राजा है। आपके यहां पर सभी अमूल्य रत्‍न सुशोभित है। इन्द्र का एरावत हाथी भी आप ही के पास है। इस कारण आपके पास ऐसी दिव्य और आकर्षक नारी भी होनी चाहिए जो कि तीनों लोकों में सर्वसुन्दर है। यह वचन सुन कर शुम्भ और निशुम्भ ने अपना एक दूत देवी कोशिकी के पास भेजा और उस दूत से कहा कि तुम उस सुन्दरी से जाकर कहना कि शुम्भ और निशुम्भ तीनो लोके के राजा है और वो दोनो तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहते हैं। यह सुन दूत माता कोशिकी के पास गया और दोनो दैत्यो द्वारा कहे गये वचन माता को सुना दिये। माता ने कहा मैं मानती हूं कि शुम्भ और निशुम्भ दोनों ही महान बलशली है। परन्तु मैं एक प्रण ले चूंकि हूं कि जो व्यक्ति मुझे युद्ध में हरा देगा मैं उसी से विवाह करूंगी। यह सारी बाते दूत ने शुम्भ और निशुम्भ को बताई। तो वह दोनो कोशिकी के वचन सुन कर उस पर क्रोधित हो गये और कहा उस नारी का यह दूस्‍साहस कि वह हमें युद्ध के लिए ललकारे। तभी उन्होंने चण्ड और मुण्ड नामक दो असुरो को भेजा और कहा कि उसके केश पकड़कर हमारे पास ले आओ। चण्ड और मुण्ड देवी कोशिकी के पास गये और उसे अपने साथ चलने के लिए कहा। देवी के मना करने पर उन्होंने देवी पर प्रहार किया। तब देवी ने अपना काली रूप धारण कर लिया और असुरो को यमलोक पहुंचा दिया। उन दोनो असुरो को मारने के कारण माता का नाम चामुण्डा पड गया।.

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भरद्वाज

भरद्वाज प्राचीन भारतीय ऋषि थे। चरक संहिता के अनुसार भरद्वाज ने इन्द्र से आयुर्वेद का ज्ञान पाया। ऋक्तंत्र के अनुसार वे ब्रह्मा, बृहस्पति एवं इन्द्र के बाद वे चौथे व्याकरण-प्रवक्ता थे। उन्होंने व्याकरण का ज्ञान इन्द्र से प्राप्त किया था (प्राक्तंत्र 1.4) तो महर्षि भृगु ने उन्हें धर्मशास्त्र का उपदेश दिया। तमसा-तट पर क्रौंचवध के समय भरद्वाज वाल्मीकि के साथ थे। महर्षि भरद्वाज व्याकरण, आयुर्वेद संहित, धनुर्वेद, राजनीतिशास्त्र, यंत्रसर्वस्व, अर्थशास्त्र, पुराण, शिक्षा आदि पर अनेक ग्रंथों के रचयिता हैं। पर आज यंत्र सर्वस्व तथा शिक्षा ही उपलब्ध हैं। वायुपुराण के अनुसार उन्होंने एक पुस्तक आयुर्वेद संहिता लिखी थी, जिसके आठ भाग करके अपने शिष्यों को सिखाया था। चरक संहिता के अनुसार उन्होंने आत्रेय पुनर्वसु को कायचिकित्सा का ज्ञान प्रदान किया था। ऋषि भरद्वाज को प्रयाग का प्रथम वासी माना जाता है अर्थात ऋषि भरद्वाज ने ही प्रयाग को बसाया था। प्रयाग में ही उन्होंने घरती के सबसे बड़े गुरूकुल(विश्वविद्यालय) की स्थापना की थी और हजारों वर्षों तक विद्या दान करते रहे। वे शिक्षाशास्त्री, राजतंत्र मर्मज्ञ, अर्थशास्त्री, शस्त्रविद्या विशारद, आयुर्वेेद विशारद,विधि वेत्ता, अभियाँत्रिकी विशेषज्ञ, विज्ञानवेत्ता और मँत्र द्रष्टा थे। ऋग्वेेद के छठे मंडल के द्रष्टाऋषि भरद्वाज ही हैं। इस मंडल में 765 मंत्र हैं। अथर्ववेद में भी ऋषि भरद्वाज के 23 मंत्र हैं। वैदिक ऋषियों में इनका ऊँचा स्थान है। आपके पिता वृहस्पति और माता ममता थीं। ऋषि भरद्वाज को आयुर्वेद और सावित्र्य अग्नि विद्या का ज्ञान इन्द्र और कालान्तर में भगवान श्री ब्रम्हा जी द्वारा प्राप्त हुआ था। अग्नि के सामर्थ्य को आत्मसात कर ऋषि ने अमृत तत्व प्राप्त किया था और स्वर्ग लोक जाकर आदित्य से सायुज्य प्राप्त किया था। (तैoब्राम्हण3/10/11) सम्भवतः इसी कारण ऋषि भरद्वाज सर्वाधिक आयु प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक थे। चरक ऋषि ने उन्हें अपरिमित आयु वाला बताया है। (सूत्र-स्थान1/26) ऋषि भरद्वाज ने प्रयाग के अधिष्ठाता भगवान श्री माधव जो साक्षात श्री हरि हैं, की पावन परिक्रमा की स्थापना भगवान श्री शिव जी के आशीर्वाद से की थी। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री द्वादश माधव परिक्रमा सँसार की पहली परिक्रमा है। ऋषि भरद्वाज ने इस परिक्रमा की तीन स्थापनाएं दी हैं- 1-जन्मों के संचित पाप का क्षय होगा, जिससे पुण्य का उदय होगा। 2-सभी मनोरथ की पूर्ति होगी। 3-प्रयाग में किया गया कोई भी अनुष्ठान/कर्मकाण्ड जैसे अस्थि विसर्जन, तर्पण, पिण्डदान, कोई संस्कार यथा मुण्डन यज्ञोपवीत आदि, पूजा पाठ, तीर्थाटन,तीर्थ प्रवास, कल्पवास आदि पूर्ण और फलित नहीं होंगे जबतक स्थान देेेेवता अर्थात भगवान श्री द्वादश माधव की परिक्रमा न की जाए। आयुर्वेद सँहिता, भरद्वाज स्मृति, भरद्वाज सँहिता, राजशास्त्र, यँत्र-सर्वस्व(विमान अभियाँत्रिकी) आदि ऋषि भरद्वाज के रचित प्रमुख ग्रँथ हैं। ऋषि भरद्वाज खाण्डल विप्र समाज के अग्रज है।खाण्डल विप्रों के आदि प्रणेता ऋषि भरद्वाज हैं। मनुष्य को जगाने के लिए ऋषि एक स्थान पर कहते हैं-अग्नि को देखो यह मरणधर्मा मानवों स्थित अमर ज्योति है। यह अति विश्वकृष्टि है अर्थात सर्वमनुष्य रूप है। यह अग्नि सब कार्यों में प्रवीणतम ऋषि है जो मानव में रहती है। उसे प्रेरित करती है ऊपर उठने के लिए। अतः स्वयं को पहचानो। भाटुन्द गाँव के श्री आदोरजी महाराज भारद्वाज गोत्र के थे। सबसे ज्यादा जागीर वाले सेवड़ राजपुरोहितो की गोत्र भी भारद्वाज है, इनके आज भी कई ठिकाने, हवेलियां व कोटड़िया विद्यमान है। सेवड़ राजपुरोहितो का इतिहास बड़ा ही गौरव पूर्ण रहा इन्होंने कई युद्ध लड़े जिसके कारण इन्हें खूब जागीर mili.

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महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप सिंह (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत १५९७ तदानुसार ९ मई १५४०–१९ जनवरी १५९७) उदयपुर, मेवाड में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया। उनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जयवंत कँवर के घर हुआ था। १५७६ के हल्दीघाटी युद्ध में २०,००० राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के ८०,००० की सेना का सामना किया। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने आपने प्राण दे कर बचाया ओर महाराणा को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोला। शक्ति सिंह ने आपना अश्व दे कर महाराणा को बचाया। प्रिय अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें १७,००० लोग मारे गए। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिन चिंताजनक होती चली गई । २५,००० राजपूतों को १२ साल तक चले उतना अनुदान देकर भामा शाह भी अमर हुआ। .

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मारवाड़

मारवाड़ राजस्थान प्रांत के पश्चिम में थार के मरुस्थल में आंशिक रूप से स्थित है। मारवाड़ संस्कृत के मरूवाट शब्द से बना है जिसका अर्थ है मौत का भूभाग.

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मेवाड़

राजस्थान के अन्तर्गत मेवाड़ की स्थिति मेवाड़ राजस्थान के दक्षिण-मध्य में एक रियासत थी। इसे 'उदयपुर राज्य' के नाम से भी जाना जाता था। इसमें आधुनिक भारत के उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमंद, तथा चित्तौडगढ़ जिले थे। सैकड़ों सालों तक यहाँ रापपूतों का शासन रहा और इस पर गहलौत तथा सिसोदिया राजाओं ने १२०० साल तक राज किया। बाद में यह अंग्रेज़ों द्वारा शासित राज बना। १५५० के आसपास मेवाड़ की राजधानी थी चित्तौड़। राणा प्रताप सिंह यहीं का राजा था। अकबर की भारत विजय में केवल मेवाड़ का राणा प्रताप बाधक बना रहा। अकबर ने सन् 1576 से 1586 तक पूरी शक्ति के साथ मेवाड़ पर कई आक्रमण किए, पर उसका राणा प्रताप को अधीन करने का मनोरथ सिद्ध नहीं हुआ स्वयं अकबर, प्रताप की देश-भक्ति और दिलेरी से इतना प्रभावित हुआ कि प्रताप के मरने पर उसकी आँखों में आंसू भर आये। उसने स्वीकार किया कि विजय निश्चय ही राणा की हुई। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रताप जैसे महान देशप्रेमियों के जीवन से ही प्रेरणा प्राप्त कर अनेक देशभक्त हँसते-हँसते बलिवेदी पर चढ़ गए। महाराणा प्रताप की मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी अमर सिंह ने मुगल सम्राट जहांगीर से संधि कर ली। उसने अपने पाटवी पुत्र को मुगल दरबार में भेजना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार १०० वर्ष बाद मेवाड़ की स्वतंत्रता का भी अन्त हुआ। .

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राजस्थान

राजस्थान भारत गणराज्य का क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य है। इसके पश्चिम में पाकिस्तान, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात, दक्षिण-पूर्व में मध्यप्रदेश, उत्तर में पंजाब (भारत), उत्तर-पूर्व में उत्तरप्रदेश और हरियाणा है। राज्य का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग कि॰मी॰ (132139 वर्ग मील) है। 2011 की गणना के अनुसार राजस्थान की साक्षरता दर 66.11% हैं। जयपुर राज्य की राजधानी है। भौगोलिक विशेषताओं में पश्चिम में थार मरुस्थल और घग्गर नदी का अंतिम छोर है। विश्व की पुरातन श्रेणियों में प्रमुख अरावली श्रेणी राजस्थान की एक मात्र पर्वत श्रेणी है, जो कि पर्यटन का केन्द्र है, माउंट आबू और विश्वविख्यात दिलवाड़ा मंदिर सम्मिलित करती है। पूर्वी राजस्थान में दो बाघ अभयारण्य, रणथम्भौर एवं सरिस्का हैं और भरतपुर के समीप केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान है, जो सुदूर साइबेरिया से आने वाले सारसों और बड़ी संख्या में स्थानीय प्रजाति के अनेकानेक पक्षियों के संरक्षित-आवास के रूप में विकसित किया गया है। .

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हल्दीघाटी

हल्दीघाटी इतिहास में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुए युद्ध के लिए प्रसिद्ध है। यह राजस्थान में एकलिंगजी से 18 किलोमीटर की दूरी पर है। यह अरावली पर्वत शृंखला में एक दर्रा (pass) है। यह राजसमन्द और पाली जिलों को जोड़ता है। यह उदयपुर से ४० किमी की दूरी पर है। इसका नाम 'हल्दीघाटी' इसलिये पड़ा क्योंकि यहाँ की मिट्टी हल्दी जैसी पीली है। .

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हिन्दू

शब्द हिन्दू किसी भी ऐसे व्यक्ति का उल्लेख करता है जो खुद को सांस्कृतिक रूप से, मानव-जाति के अनुसार या नृवंशतया (एक विशिष्ट संस्कृति का अनुकरण करने वाले एक ही प्रजाति के लोग), या धार्मिक रूप से हिन्दू धर्म से जुड़ा हुआ मानते हैं।Jeffery D. Long (2007), A Vision for Hinduism, IB Tauris,, pages 35-37 यह शब्द ऐतिहासिक रूप से दक्षिण एशिया में स्वदेशी या स्थानीय लोगों के लिए एक भौगोलिक, सांस्कृतिक, और बाद में धार्मिक पहचानकर्ता के रूप में प्रयुक्त किया गया है। हिन्दू शब्द का ऐतिहासिक अर्थ समय के साथ विकसित हुआ है। प्रथम सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व में सिंधु की भूमि के लिए फारसी और ग्रीक संदर्भों के साथ, मध्ययुगीन युग के ग्रंथों के माध्यम से, हिंदू शब्द सिंधु (इंडस) नदी के चारों ओर या उसके पार भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले लोगों के लिए भौगोलिक रूप में, मानव-जाति के अनुसार (नृवंशतया), या सांस्कृतिक पहचानकर्ता के रूप में प्रयुक्त होने लगा था।John Stratton Hawley and Vasudha Narayanan (2006), The Life of Hinduism, University of California Press,, pages 10-11 16 वीं शताब्दी तक, इस शब्द ने उपमहाद्वीप के उन निवासियों का उल्लेख करना शुरू कर दिया, जो कि तुर्किक या मुस्लिम नहीं थे। .

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जालौर

जालौर राजस्थान राज्य का एक एतिहसिक शहर है। यह शहर प्राचीनकाल में 'जाबालिपुर' के नाम से जाना जाता था। जालौर जिला मुख्यालय यहाँ स्थित है। लूनी नदी की उपनदी सुकरी के दक्षिण में स्थित जालौर राजस्थान का ऐतिहासिक जिला है। पहलें बहुत बड़ी रियासतों मे ऐक थी। जालौर रियासत, चित्तौड़गढ़ रियासत के बाद मे अपना स्थान रखती थी। पच्चीमी राजस्थान (राजपुताना) मे प्रमुख रियासत थी। .

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जोधपुर

जोधपुर भारत के राज्य राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। इसकी जनसंख्या १० लाख के पार हो जाने के बाद इसे राजस्थान का दूसरा "महानगर " घोषित कर दिया गया था। यह यहां के ऐतिहासिक रजवाड़े मारवाड़ की इसी नाम की राजधानी भी हुआ करता था। जोधपुर थार के रेगिस्तान के बीच अपने ढेरों शानदार महलों, दुर्गों और मन्दिरों वाला प्रसिद्ध पर्यटन स्थल भी है। वर्ष पर्यन्त चमकते सूर्य वाले मौसम के कारण इसे "सूर्य नगरी" भी कहा जाता है। यहां स्थित मेहरानगढ़ दुर्ग को घेरे हुए हजारों नीले मकानों के कारण इसे "नीली नगरी" के नाम से भी जाना जाता था। यहां के पुराने शहर का अधिकांश भाग इस दुर्ग को घेरे हुए बसा है, जिसकी प्रहरी दीवार में कई द्वार बने हुए हैं, हालांकि पिछले कुछ दशकों में इस दीवार के बाहर भी नगर का वृहत प्रसार हुआ है। जोधपुर की भौगोलिक स्थिति राजस्थान के भौगोलिक केन्द्र के निकट ही है, जिसके कारण ये नगर पर्यटकों के लिये राज्य भर में भ्रमण के लिये उपयुक्त आधार केन्द्र का कार्य करता है। वर्ष २०१४ के विश्व के अति विशेष आवास स्थानों (मोस्ट एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी प्लेसेज़ ऑफ़ द वर्ल्ड) की सूची में प्रथम स्थान पाया था। एक तमिल फ़िल्म, आई, जो कि अब तक की भारतीय सिनेमा की सबसे महंगी फ़िल्मशोगी, की शूटिंग भी यहां हुई थी। .

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गुजरात

गुजरात (गुजराती:ગુજરાત)() पश्चिमी भारत में स्थित एक राज्य है। इसकी उत्तरी-पश्चिमी सीमा जो अन्तर्राष्ट्रीय सीमा भी है, पाकिस्तान से लगी है। राजस्थान और मध्य प्रदेश इसके क्रमशः उत्तर एवं उत्तर-पूर्व में स्थित राज्य हैं। महाराष्ट्र इसके दक्षिण में है। अरब सागर इसकी पश्चिमी-दक्षिणी सीमा बनाता है। इसकी दक्षिणी सीमा पर दादर एवं नगर-हवेली हैं। इस राज्य की राजधानी गांधीनगर है। गांधीनगर, राज्य के प्रमुख व्यवसायिक केन्द्र अहमदाबाद के समीप स्थित है। गुजरात का क्षेत्रफल १,९६,०७७ किलोमीटर है। गुजरात, भारत का अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य है। कच्छ, सौराष्ट्र, काठियावाड, हालार, पांचाल, गोहिलवाड, झालावाड और गुजरात उसके प्रादेशिक सांस्कृतिक अंग हैं। इनकी लोक संस्कृति और साहित्य का अनुबन्ध राजस्थान, सिंध और पंजाब, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के साथ है। विशाल सागर तट वाले इस राज्य में इतिहास युग के आरम्भ होने से पूर्व ही अनेक विदेशी जातियाँ थल और समुद्र मार्ग से आकर स्थायी रूप से बसी हुई हैं। इसके उपरांत गुजरात में अट्ठाइस आदिवासी जातियां हैं। जन-समाज के ऐसे वैविध्य के कारण इस प्रदेश को भाँति-भाँति की लोक संस्कृतियों का लाभ मिला है। .

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अलाउद्दीन खिलजी

अलाउद्दीन खिलजी (वास्तविक नाम अली गुरशास्प 1296-1316) दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का दूसरा शासक था। उसका साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर उत्तर-मध्य भारत तक फैला था। इसके बाद इतना बड़ा भारतीय साम्राज्य अगले तीन सौ सालों तक कोई भी शासक स्थापित नहीं कर पाया था। मेवाड़ चित्तौड़ का युद्धक अभियान इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। ऐसा माना जाता है कि वो चित्तौड़ की रानी पद्मिनी की सुन्दरता पर मोहित था। इसका वर्णन मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी रचना पद्मावत में किया है। उसके समय में उत्तर पूर्व से मंगोल आक्रमण भी हुए। उसने उसका भी डटकर सामना किया। अलाउद्दीन ख़िलजी के बचपन का नाम अली 'गुरशास्प' था। जलालुद्दीन खिलजी के तख्त पर बैठने के बाद उसे 'अमीर-ए-तुजुक' का पद मिला। मलिक छज्जू के विद्रोह को दबाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण जलालुद्दीन ने उसे कड़ा-मनिकपुर की सूबेदारी सौंप दी। भिलसा, चंदेरी एवं देवगिरि के सफल अभियानों से प्राप्त अपार धन ने उसकी स्थिति और मज़बूत कर दी। इस प्रकार उत्कर्ष पर पहुँचे अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या धोखे से 22 अक्टूबर 1296 को खुद से गले मिलते समय अपने दो सैनिकों (मुहम्मद सलीम तथा इख़्तियारुद्दीन हूद) द्वारा करवा दी। इस प्रकार उसने अपने सगे चाचा जो उसे अपने औलाद की भांति प्रेम करता था के साथ विश्वासघात कर खुद को सुल्तान घोषित कर दिया और दिल्ली में स्थित बलबन के लालमहल में अपना राज्याभिषेक 22 अक्टूबर 1296 को सम्पन्न करवाया। .

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अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है।। वेब दुनिया इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है।। नवभारत टाइम्स। २७ अप्रैल २००९। पं.केवल आनंद जोशी वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है। .

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