लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी

सूची साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी

साहित्य अकादमी पुरस्कार एक साहित्यिक सम्मान है जो कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं और मणिपुरी भाषा इन में से एक भाषा हैं। अकादमी ने १९७३ से इस भाषा के लिए पुरस्कारों को पेश किया। .

101 संबंधों: चेक्ला पाइखरबंदा, चीङलोन अमदगी अमदा, ट्रेन टू पाकिस्तान, ए. चित्रेश्वर शर्मा, ए. मीनकेतन सिंह, एच. गुनो सिंह, एन. ईबोबी सिंह, एन. कुंजमोहन सिंह, एम. नबकिशोर सिंह, एम॰के॰ बिनोदिनी देवी, एल. समरेन्द्र सिंह, ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम, तत्खवा पुन्सी–लैपुल, तीर्थ यात्रा, थरोशंबी, धर्मवीर भारती, नाबोङखाउ, नाओरेम विद्यासागर सिंह, नाओरेम वीरेन्द्रजित सिंह, निङोम्बम सुनिता, नंगबु ङाइबदा, नुमित्ति असुम थेङजील्लकलि, नूंगशिबी ग्रीस, नॉथोम्बम बीरेन सिंह, नोडदी तरक–खिदरे, नीलवीर शर्मा शास्त्री, पाचा मेहताई, पांगल शोनबी ऐशे, पिष्टाल अमा कुंदलेई अमा, पुन्सीगी मरुद्यान, प्रल्लयगी मेरि रक्तगी, प्रेमचंद, बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय, बी. एम. माइस्नाम्बा, भारतीय साहित्य अकादमी, भूत अमसुङमाखुम, मणिपुरी भाषा, मथओ कनवा डि एन ए, मधुशाला, मपाल नाइदबसिदा ऐ, ममांग लीकाई थंबाल शातले, मयाई कारबा शामु, महाभारत, महाश्वेता देवी, माखोनमनि मोङसाबा, मंगी इसेई, मे ममगेरा बुद्धि ममगेरा, यूमलेम्बम इबोमचा सिंह, रबीन्द्रनाथ ठाकुर, रस्किन बॉण्ड, ..., राजकुमार भुवनस्ना, राजकुमार मणि सिंह, रघु लैशाङथेम, लमबम वीरमणि सिंह, लाइतोंजम प्रेमचाँद सिंह, लौक्ङला, लैइ खरा पुंसि खरा, लेपाकले, शरतचंद थियम, शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय, साहित्य अकादमी पुरस्कार, सागोलसेम लनचेनबा मीतै, सुधीर नाउरेइबम, सूरज का सातवाँ घोड़ा, हरिवंश राय बच्चन, हि नङबू होन्देदा, जोध छी. सनसम, जी. सी. तोम्ब्रा, ई. दिनमणि सिंह, ई. नीलकांत सिंह, ई. रजनीकांत सिंह, ई. सोनामणि सिंह, विंग्स ऑफ़ फ़ायर: एन ऑटोबायोग्राफी, व्यास, वेदव्यास, वीर टीकेन्द्रजित रोड, खुमनथेम प्रकाश सिंह, खुशवन्त सिंह, ख्रुंगङी चिठि, खोङजि मखोल, गाइड (उपन्यास), गिरीश कर्नाड, आर के नारायण, आर. के. मधुबीर, इमासि नुराबी, इमागी फनेक मचेत, इरावती कर्वे, इलिसा आमागी महाओ, इंफ़ाल अमासुङ मागी नुङशित्की फिबम इशिंग, कमलेश्वर, कालेनथगी लीपकलेई, क्षेत्रि वीर, क्षेत्री राजन, कीशम प्रियकुमार, अटल बिहारी वाजपेयी, अराम्बम ओंबी मेमचौबी, अरांबम बीरेन सिंह, अरांबम समरेन्द्र सिंह, अशैबगी नित्याइपोद, अहिङना येकशिल्लिबा मङ, उडुपी राजगोपालाचार्य अनंतमूर्ति सूचकांक विस्तार (51 अधिक) »

चेक्ला पाइखरबंदा

चेक्ला पाइखरबंदा मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार लमबम वीरमणि सिंह द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1984 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और चेक्ला पाइखरबंदा · और देखें »

चीङलोन अमदगी अमदा

चीङलोन अमदगी अमदा मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार माखोनमनि मोङसाबा द्वारा रचित एक यात्रा-वृत्‍तांत है जिसके लिये उन्हें सन् 2013 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और चीङलोन अमदगी अमदा · और देखें »

ट्रेन टू पाकिस्तान

ट्रेन टू पाकिस्तान या पाकिस्तान मेल (Train To Pakistan) सुप्रसिद्ध अंग्रेजी उपन्यासकार खुशवंत सिंह का 1956 में अमेरिका के ग्रोव प्रेस अवार्ड से पुरुस्कृत उपन्यास है। यह अगस्त 1947 में भारत विभाजन की त्रासदी पर केन्द्रित है। ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ में पंजाब के एक कल्पित गांव ‘मनु माजरा’ की कहानी कहता है। यह गाँव भारत-पाक सीमा के क़रीब ही स्थित है यहाँ सदियों से मुसलमान और सिख मिल-जुल कर रह रहे हैं। पर देश के विभाजन के साथ ही स्थितियाँ बदल जाती हैं और लोग एक-दूसरे के ख़ून के प्यासे हो जाते हैं। यह सारा वृत्तांत एक प्रेम कहानी की पृष्ठभूमि में है। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और ट्रेन टू पाकिस्तान · और देखें »

ए. चित्रेश्वर शर्मा

ए. चित्रेश्वर शर्मा मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास थरोशंबी के लिये उन्हें सन् 1992 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और ए. चित्रेश्वर शर्मा · और देखें »

ए. मीनकेतन सिंह

ए. मीनकेतन सिंह मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह अशैबगी नित्याइपोद के लिये उन्हें सन् 1977 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और ए. मीनकेतन सिंह · और देखें »

एच. गुनो सिंह

एच.

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और एच. गुनो सिंह · और देखें »

एन. ईबोबी सिंह

एन.

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और एन. ईबोबी सिंह · और देखें »

एन. कुंजमोहन सिंह

एन.

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और एन. कुंजमोहन सिंह · और देखें »

एम. नबकिशोर सिंह

एम.

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और एम. नबकिशोर सिंह · और देखें »

एम॰के॰ बिनोदिनी देवी

महाराज कुमारी बिनोदिनी देवी (6 फ़रवरी 1922 – 17 जनवरी 2011) मणिपुरी भाषा की भारतीय लेखिका थीं। वे दक्षिण पूर्व हिमालयी राज्य पूर्वोत्तर भारत और मणिपुर के पूर्व शाही परिवार की सदस्या थीं।उन्हें साहित्य और शिक्षा के लिए वर्ष 1976 में भारत सरकार के द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और एम॰के॰ बिनोदिनी देवी · और देखें »

एल. समरेन्द्र सिंह

एल.

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और एल. समरेन्द्र सिंह · और देखें »

ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम

अबुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम अथवा ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम (A P J Abdul Kalam), (15 अक्टूबर 1931 - 27 जुलाई 2015) जिन्हें मिसाइल मैन और जनता के राष्ट्रपति के नाम से जाना जाता है, भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति थे। वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति, जानेमाने वैज्ञानिक और अभियंता (इंजीनियर) के रूप में विख्यात थे। इन्होंने मुख्य रूप से एक वैज्ञानिक और विज्ञान के व्यवस्थापक के रूप में चार दशकों तक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) संभाला व भारत के नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम और सैन्य मिसाइल के विकास के प्रयासों में भी शामिल रहे। इन्हें बैलेस्टिक मिसाइल और प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के विकास के कार्यों के लिए भारत में मिसाइल मैन के रूप में जाना जाने लगा। इन्होंने 1974 में भारत द्वारा पहले मूल परमाणु परीक्षण के बाद से दूसरी बार 1998 में भारत के पोखरान-द्वितीय परमाणु परीक्षण में एक निर्णायक, संगठनात्मक, तकनीकी और राजनैतिक भूमिका निभाई। कलाम सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी व विपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दोनों के समर्थन के साथ 2002 में भारत के राष्ट्रपति चुने गए। पांच वर्ष की अवधि की सेवा के बाद, वह शिक्षा, लेखन और सार्वजनिक सेवा के अपने नागरिक जीवन में लौट आए। इन्होंने भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त किये। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम · और देखें »

तत्खवा पुन्सी–लैपुल

तत्खवा पुन्सी–लैपुल मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार नीलवीर शर्मा शास्त्री द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1989 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और तत्खवा पुन्सी–लैपुल · और देखें »

तीर्थ यात्रा

तीर्थ यात्रा मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार ई. नीलकांत सिंह द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1987 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और तीर्थ यात्रा · और देखें »

थरोशंबी

थरोशंबी मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार ए. चित्रेश्वर शर्मा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1992 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और थरोशंबी · और देखें »

धर्मवीर भारती

धर्मवीर भारती (२५ दिसंबर, १९२६- ४ सितंबर, १९९७) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे। वे एक समय की प्रख्यात साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग के प्रधान संपादक भी थे। डॉ धर्मवीर भारती को १९७२ में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उनका उपन्यास गुनाहों का देवता सदाबहार रचना मानी जाती है। सूरज का सातवां घोड़ा को कहानी कहने का अनुपम प्रयोग माना जाता है, जिस श्याम बेनेगल ने इसी नाम की फिल्म बनायी, अंधा युग उनका प्रसिद्ध नाटक है।। इब्राहीम अलकाजी, राम गोपाल बजाज, अरविन्द गौड़, रतन थियम, एम के रैना, मोहन महर्षि और कई अन्य भारतीय रंगमंच निर्देशकों ने इसका मंचन किया है। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और धर्मवीर भारती · और देखें »

नाबोङखाउ

नाबोङखाउ मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार जी. सी. तोम्ब्रा द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1978 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और नाबोङखाउ · और देखें »

नाओरेम विद्यासागर सिंह

नाओरेम विद्यासागर सिंह मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता-संग्रह खुंगं अमसुं रिफ्यूजि के लिये उन्हें सन् 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और नाओरेम विद्यासागर सिंह · और देखें »

नाओरेम वीरेन्द्रजित सिंह

नाओरेम वीरेन्द्रजित सिंह मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह लांथेंनरिब लान्मी के लिये उन्हें सन् 2004 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और नाओरेम वीरेन्द्रजित सिंह · और देखें »

निङोम्बम सुनिता

निङोम्बम सुनिता मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह खोङजि मखोल के लिये उन्हें सन् 2001 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और निङोम्बम सुनिता · और देखें »

नंगबु ङाइबदा

नंगबु ङाइबदा मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार क्षेत्रि वीर द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2011 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और नंगबु ङाइबदा · और देखें »

नुमित्ति असुम थेङजील्लकलि

नुमित्ति असुम थेङजील्लकलि मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार यूमलेम्बम इबोमचा सिंह द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1991 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और नुमित्ति असुम थेङजील्लकलि · और देखें »

नूंगशिबी ग्रीस

नूंगशिबी ग्रीस मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार शरतचंद थियम द्वारा रचित एक यात्रा–संस्मरण है जिसके लिये उन्हें सन् 2006 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और नूंगशिबी ग्रीस · और देखें »

नॉथोम्बम बीरेन सिंह

नॉथोम्बम बीरेन सिंह मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह मपाल नाइदबसिदा ऐ के लिये उन्हें सन् 1990 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और नॉथोम्बम बीरेन सिंह · और देखें »

नोडदी तरक–खिदरे

नोडदी तरक–खिदरे मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार कीशम प्रियकुमार द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1998 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और नोडदी तरक–खिदरे · और देखें »

नीलवीर शर्मा शास्त्री

नीलवीर शर्मा शास्त्री मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह तत्खवा पुन्सी–लैपुल के लिये उन्हें सन् 1989 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और नीलवीर शर्मा शास्त्री · और देखें »

पाचा मेहताई

पाचा मेहताई मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास इंफ़ाल अमासुङ मागी नुङशित्की फिबम इशिंग के लिये उन्हें सन् 1973 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और पाचा मेहताई · और देखें »

पांगल शोनबी ऐशे

पांगल शोनबी ऐशे मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार एम. नबकिशोर सिंह द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2005 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और पांगल शोनबी ऐशे · और देखें »

पिष्टाल अमा कुंदलेई अमा

पिष्टाल अमा कुंदलेई अमा मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार ई. दिनमणि सिंह द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1982 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और पिष्टाल अमा कुंदलेई अमा · और देखें »

पुन्सीगी मरुद्यान

पुन्सीगी मरुद्यान मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार अरांबम बीरेन सिंह द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1993 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और पुन्सीगी मरुद्यान · और देखें »

प्रल्लयगी मेरि रक्तगी

प्रल्लयगी मेरि रक्तगी मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार आर. के. मधुबीर द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1996 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और प्रल्लयगी मेरि रक्तगी · और देखें »

प्रेमचंद

प्रेमचंद (३१ जुलाई १८८० – ८ अक्टूबर १९३६) हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। मूल नाम धनपत राय प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्‍य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्‍यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और प्रेमचंद · और देखें »

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय

'''वन्दे मातरम्''' के रचयिता बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय (बंगाली: বঙ্কিমচন্দ্র চট্টোপাধ্যায়) (२७ जून १८३८ - ८ अप्रैल १८९४) बंगाली के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार थे। भारत के राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्' उनकी ही रचना है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल में क्रान्तिकारियों का प्रेरणास्रोत बन गया था। रवीन्द्रनाथ ठाकुर के पूर्ववर्ती बांग्ला साहित्यकारों में उनका अन्यतम स्थान है। आधुनिक युग में बंगला साहित्य का उत्थान उन्नीसवीं सदी के मध्य से शुरु हुआ। इसमें राजा राममोहन राय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, प्यारीचाँद मित्र, माइकल मधुसुदन दत्त, बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय, रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अग्रणी भूमिका निभायी। इसके पहले बंगाल के साहित्यकार बंगला की जगह संस्कृत या अंग्रेजी में लिखना पसन्द करते थे। बंगला साहित्य में जनमानस तक पैठ बनाने वालों मे शायद बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय पहले साहित्यकार थे। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय · और देखें »

बी. एम. माइस्नाम्बा

बी.

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और बी. एम. माइस्नाम्बा · और देखें »

भारतीय साहित्य अकादमी

भारत की साहित्य अकादमी भारतीय साहित्य के विकास के लिये सक्रिय कार्य करने वाली राष्ट्रीय संस्था है। इसका गठन १२ मार्च १९५४ को भारत सरकार द्वारा किया गया था। इसका उद्देश्य उच्च साहित्यिक मानदंड स्थापित करना, भारतीय भाषाओं और भारत में होनेवाली साहित्यिक गतिविधियों का पोषण और समन्वय करना है। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और भारतीय साहित्य अकादमी · और देखें »

भूत अमसुङमाखुम

भूत अमसुङमाखुम मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार थांजम इबोपिशक सिंह द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1997 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और भूत अमसुङमाखुम · और देखें »

मणिपुरी भाषा

मणिपुरी (या मीतै भाषा, या मैतै भाषा) भारत के असम के निचले हिस्सों एवं मणिपुर प्रांत के लोगों द्वारा बोली जाने वाली प्रमुख भाषा है। इसकी कई उपभाषाएँ भी हैं। मणिपुरी भाषा, मेइतेइ मायेक लिपि में तथा पूर्वी नागरी लिपि में लिखी जाती है। मीतै लिपि में रचित एक पाण्डुलिपि .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और मणिपुरी भाषा · और देखें »

मथओ कनवा डि एन ए

मथओ कनवा डि एन ए मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार जोध छी. सनसम द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2012 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और मथओ कनवा डि एन ए · और देखें »

मधुशाला

मधुशाला हिंदी के बहुत प्रसिद्ध कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन (1907-2003) का अनुपम काव्य है। इसमें एक सौ पैंतीस रूबाइयां (यानी चार पंक्तियों वाली कविताएं) हैं। मधुशाला बीसवीं सदी की शुरुआत के हिन्दी साहित्य की अत्यंत महत्वपूर्ण रचना है, जिसमें सूफीवाद का दर्शन होता है। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और मधुशाला · और देखें »

मपाल नाइदबसिदा ऐ

मपाल नाइदबसिदा ऐ मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार नॉथोम्बम बीरेन सिंह द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1990 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और मपाल नाइदबसिदा ऐ · और देखें »

ममांग लीकाई थंबाल शातले

ममांग लीकाई थंबाल शातले मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार एल. समरेन्द्र सिंह द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1976 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और ममांग लीकाई थंबाल शातले · और देखें »

मयाई कारबा शामु

मयाई कारबा शामु मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार राजकुमार मणि सिंह द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1994 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और मयाई कारबा शामु · और देखें »

महाभारत

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और महाभारत · और देखें »

महाश्वेता देवी

महाश्वेता देवी (14 जनवरी 1926 – 28 जुलाई 2016) रेमन मैगसेसे पुरस्कार.

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और महाश्वेता देवी · और देखें »

माखोनमनि मोङसाबा

माखोनमनि मोङसाबा मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक यात्रा-वृत्‍तांत चीङलोन अमदगी अमदा के लिये उन्हें सन् 2013 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और माखोनमनि मोङसाबा · और देखें »

मंगी इसेई

मंगी इसेई मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार खुमनथेम प्रकाश सिंह द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1986 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और मंगी इसेई · और देखें »

मे ममगेरा बुद्धि ममगेरा

मे ममगेरा बुद्धि ममगेरा मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार राजकुमार भुवनस्ना द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2002 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और मे ममगेरा बुद्धि ममगेरा · और देखें »

यूमलेम्बम इबोमचा सिंह

यूमलेम्बम इबोमचा सिंह मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह नुमित्ति असुम थेङजील्लकलि के लिये उन्हें सन् 1991 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और यूमलेम्बम इबोमचा सिंह · और देखें »

रबीन्द्रनाथ ठाकुर

रवीन्द्रनाथ ठाकुर (बंगाली: রবীন্দ্রনাথ ঠাকুর रोबिन्द्रोनाथ ठाकुर) (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। वे विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के एकमात्र नोबल पुरस्कार विजेता हैं। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान जन गण मन और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान आमार सोनार बाँग्ला गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और रबीन्द्रनाथ ठाकुर · और देखें »

रस्किन बॉण्ड

रस्किन बॉण्ड (जन्म 19 मई 1934) अंग्रेजी भाषा के एक विश्वप्रसिद्ध भारतीय लेखक हैं। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और रस्किन बॉण्ड · और देखें »

राजकुमार भुवनस्ना

राजकुमार भुवनस्ना मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह मे ममगेरा बुद्धि ममगेरा के लिये उन्हें सन् 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और राजकुमार भुवनस्ना · और देखें »

राजकुमार मणि सिंह

राजकुमार मणि सिंह मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह मयाई कारबा शामु के लिये उन्हें सन् 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और राजकुमार मणि सिंह · और देखें »

रघु लैशाङथेम

रघु लैशाङथेम मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह ख्रुंगङी चिठि के लिये उन्हें सन् 2009 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और रघु लैशाङथेम · और देखें »

लमबम वीरमणि सिंह

लमबम वीरमणि सिंह मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह चेक्ला पाइखरबंदा के लिये उन्हें सन् 1984 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और लमबम वीरमणि सिंह · और देखें »

लाइतोंजम प्रेमचाँद सिंह

लाइतोंजम प्रेमचाँद सिंह मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह इमागी फनेक मचेत के लिये उन्हें सन् 2000 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और लाइतोंजम प्रेमचाँद सिंह · और देखें »

लौक्ङला

लौक्ङला मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार मोइरांथेम बरकन्या द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2010 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और लौक्ङला · और देखें »

लैइ खरा पुंसि खरा

लैइ खरा पुंसि खरा मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार सुधीर नाउरेइबम द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2003 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और लैइ खरा पुंसि खरा · और देखें »

लेपाकले

लेपाकले मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार अरांबम समरेन्द्र सिंह द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1995 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और लेपाकले · और देखें »

शरतचंद थियम

शरतचंद थियम मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक यात्रा–संस्मरण नूंगशिबी ग्रीस के लिये उन्हें सन् 2006 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और शरतचंद थियम · और देखें »

शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय

शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय (१५ सितंबर, १८७६ - १६ जनवरी, १९३८) बांग्ला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थे। उनका जन्म हुगली जिले के देवानंदपुर में हुआ। वे अपने माता-पिता की नौ संतानों में से एक थे। अठारह साल की अवस्था में उन्होंने इंट्रेंस पास किया। इन्हीं दिनों उन्होंने "बासा" (घर) नाम से एक उपन्यास लिख डाला, पर यह रचना प्रकाशित नहीं हुई। रवींद्रनाथ ठाकुर और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। शरतचन्द्र ललित कला के छात्र थे लेकिन आर्थिक तंगी के चलते वह इस विषय की पढ़ाई नहीं कर सके। रोजगार के तलाश में शरतचन्द्र बर्मा गए और लोक निर्माण विभाग में क्लर्क के रूप में काम किया। कुछ समय बर्मा रहकर कलकत्ता लौटने के बाद उन्होंने गंभीरता के साथ लेखन शुरू कर दिया। बर्मा से लौटने के बाद उन्होंने अपना प्रसिद्ध उपन्यास श्रीकांत लिखना शुरू किया। बर्मा में उनका संपर्क बंगचंद्र नामक एक व्यक्ति से हुआ जो था तो बड़ा विद्वान पर शराबी और उछृंखल था। यहीं से चरित्रहीन का बीज पड़ा, जिसमें मेस जीवन के वर्णन के साथ मेस की नौकरानी से प्रेम की कहानी है। जब वह एक बार बर्मा से कलकत्ता आए तो अपनी कुछ रचनाएँ कलकत्ते में एक मित्र के पास छोड़ गए। शरत को बिना बताए उनमें से एक रचना "बड़ी दीदी" का १९०७ में धारावाहिक प्रकाशन शुरु हो गया। दो एक किश्त निकलते ही लोगों में सनसनी फैल गई और वे कहने लगे कि शायद रवींद्रनाथ नाम बदलकर लिख रहे हैं। शरत को इसकी खबर साढ़े पाँच साल बाद मिली। कुछ भी हो ख्याति तो हो ही गई, फिर भी "चरित्रहीन" के छपने में बड़ी दिक्कत हुई। भारतवर्ष के संपादक कविवर द्विजेंद्रलाल राय ने इसे यह कहकर छापने से मना कर दिया किया कि यह सदाचार के विरुद्ध है। विष्णु प्रभाकर द्वारा आवारा मसीहा शीर्षक रचित से उनका प्रामाणिक जीवन परिचय बहुत प्रसिद्ध है। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय · और देखें »

साहित्य अकादमी पुरस्कार

साहित्य अकादमी पुरस्कार भारत में एक साहित्यिक सम्मान है, जो साहित्य अकादमी प्रतिवर्ष भारत की अपने द्वारा मान्यता प्रदत्त प्रमुख भाषाओं में से प्रत्येक में प्रकाशित सर्वोत्कृष्ट साहित्यिक कृति को पुरस्कार प्रदान करती है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल २२ भारतीय भाषाओं के अलावा ये राजस्थानी और अंग्रेज़ी भाषा; याने कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं। पहली बार ये पुरस्कार सन् 1955 में दिए गए। पुरस्कार की स्थापना के समय पुरस्कार राशि 5,000/- रुपए थी, जो सन् 1983 में ब़ढा कर 10,000/- रुपए कर दी गई और सन् 1988 में ब़ढा कर इसे 25,000/- रुपए कर दिया गया। सन् 2001 से यह राशि 40,000/- रुपए की गई थी। सन् 2003 से यह राशि 50,000/- रुपए कर दी गई है। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और साहित्य अकादमी पुरस्कार · और देखें »

सागोलसेम लनचेनबा मीतै

सागोलसेम लनचेनबा मीतै मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह हि नङबू होन्देदा के लिये उन्हें सन् 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और सागोलसेम लनचेनबा मीतै · और देखें »

सुधीर नाउरेइबम

सुधीर नाउरेइबम मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह लैइ खरा पुंसि खरा के लिये उन्हें सन् 2003 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और सुधीर नाउरेइबम · और देखें »

सूरज का सातवाँ घोड़ा

श्रेणी:हिन्दी उपन्यास श्रेणी:धर्मवीर भारती सूरज का सातवाँ घोड़ा धर्मवीर भारती का प्रसिद्ध उपन्यास है। धर्मवीर भारती की इस लघु औपन्यासिक रचना में हितोपदेश और पंचतंत्रवाली शैली में ७ दोपहरी में कही गई कहानियों के रूप में एक उपन्यास निर्मित किया गया है। यह पुस्तक के रूप में भारतीय ज्ञानपीठ से इसे लघु उपन्यास की संज्ञा दी गयी है। कथानक की बुनावट उपन्यास की विषय–वस्तु को नए आयाम प्रदान करती है। ‘सूरज का सातवॉं घोड़ा’ भी भारत-ईरान की प्राचीन  शैलियों से प्रभावित माना जाता है। लेकिन, पुरानी किस्सागोई का यह तरीका –अलिफलैला, पंचतंत्र, दशकुमारचरित अथवा कथासरित्सागर – ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ की ऊपरी त्वचा मात्र है, इसे कथानक का बुनियादी ढाँचा नहीं माना जा सकता। एक दूसरी शैली भी इसमें परिलक्षित की जा सकती है- वह है, वीरगाथाओं या अन्य महाकाव्यों जैसी शैली, जिसमें रचनाकार अपनी रचनाओं का रचयिता ही नहीं वरन् घटनाओं के बीच स्वयं भी उपस्थित है। वह भोक्ता और रचयिता दोनों है। इस प्रकार रचना तटस्थ होने, निजी अनुभूति को सार्वजनिक अनुभव में तब्दील करने का दायित्व बन जाती है। ‘पृथ्वीराज रासो’ के रचयिता चंदवरदायी इसके महत्त्वपूर्ण्  चरित्र भी हैं, ठीक उसी तरह जैसे वाल्मीकि और तुलसी खुद को अपनी रचनाओं में उपस्थित कर देते हैं या कि संजय महाभारत के घटनाचक्र में मौजूद है।        ‘सूरज का सातवाँ घोडा’ के किस्से माणिक मुल्ला सुनाते हैं, लेकिन वे इन कहानियों के वक्ता मात्र ही नहीं – वे इनके बीच बड़ी शिद्दत से मौजूद हैं। वे इन कहानियों के भोक्ता भी हैं, ठीक वाल्मीकि, संजय और चंद की तरह। कहा जाता है कि ‘रासो’ को चंदवरदायी ने पूरा न कर यह काम अपने बेटे जल्हण को सौंप दिया था। ‘रासो’ के अंतिम अंश उसी के द्वारा लिखे गए, ठीक इसी प्रकार ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ की कहानियाँ हैं तो सुनाई हुई माणिक मुल्ला की, परंतु उन्हें प्रस्तुत करता है उनका एक श्रोता ’मैं’। ‘मैं’ ही इसका मूल लेखक है लेकिन वह रामचरित मानस के तुलसी की तरह, जो रामकथा के शिव-पार्वती संवाद के प्रस्तोता मात्र बन जाते हैं- हमारे सामने आता है। वह माणिक द्वारा सुनाई कहानियों (जो अपनी श्रृंखलाबद्धता के चलते एक लघु उपन्यास का रुप धारण कर लेती हैं) के बारे में कहता है कि “अंत में मैं यह भी स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि इस लघु उपन्यास की विषय-वस्तु में जो कुछ भलाई-बुराई हो उसका जिम्मा मुझ पर नहीं माणिक मुल्ला पर ही है। मैंने सिर्फ अपने ढंग से वह कथा आपके सामने रख दी है’’। यह लेखक–प्रस्तोता भी कथा में भले ही एक मामूली हैसियत से-एक श्रोता के रूप में- मौजूद है। रचना और रचनाकार भारतीय परंपरा में सहज आवाजाही करते रहे हैं। यह उपन्यास भी अपने कथानक की बुनावट में कथा और कथाकार की तद्रूपता को संभव होने देता है। यथार्थ और कल्पना एक दूसरे के पूरक होने लगते हैं। यदि कहा जाय कि मध्यवर्ग आधा यथार्थ और आधा स्वप्न में जीने वाला वर्ग है तो गलत न होगा। सृजन के लिए भी कल्पना और हकीकत का संयोग एक अनिवार्य स्थिति है। इसलिए मध्यवर्ग सर्वाधिक सृजनशील, स्वप्नजीवी और बदलावमूलक होता है । ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ इसी मध्यवर्ग की दास्तान – उसकी अंतर्विरोधी स्थितियों के साथ – हमारे सामने प्रस्तुत करता है। इस रचना के कथानक को नए कलेवर में बुना गया है। शुरूआत उपोद्घात से हुई है। उपोद्घात यानी प्रस्तावना, भूमिका। मुख्य कथा-अध्यायों के बीच में चार अनध्याय भी जोड़े गए हैं। इनके अतिरिक्त पूरी कथा सात दोपहरों में विभक्त है। सात दोपहर की कथा माणिक मुल्ला की है और उपोद्घात समेत चार अनध्याय उनके श्रोता ‘मैं’ की टिप्पणियाँ हैं। कुल मिलाकर बारह भागों में विभाजित यह कथा माणिक मुल्ला के जीवन समेत उनके संपर्क में आए प्रमुख चरित्रों- जमुना, लिली और सत्ती की जिंदगी पर प्रकाश डालती है। साथ ही, यह भी पता चलता है कि इन पात्रों से जुड़े संदर्भों पर माणिक मुल्ला के श्रोताओं की प्रतिक्रिया कैसी थी। अपनी इन्हीं मिली-जुली घटनाओं को लेकर यह उपन्यास आकार ग्रहण करता है।उपोद्घात में हमें माणिक मुल्ला के व्यक्तित्व, उनकी अभिरुचियों, किस्से गढ़ने की उनकी क्षमता और उनको सुनाने के अंदाज के बारे में जानकारी मिलती है। यहीं हमें यह भी पता चलता है कि, ‘’अगर काफी फुरसत हो, पूरा घर अधिकार में हो, चार मित्र बैठे हों, तो निश्चित है कि घूम-फिरकर वार्ता राजनीति पर आ टिकेगी और जब राजनीति में दिलचस्पी खत्म होने लगेगी तो गोष्ठी की वार्ता ‘प्रेम’ पर आ टिकेगी।लेकिन जहाँ तक साहित्यिक वार्ता का प्रश्न था, वे (माणिक मुल्ला) प्रेम को तरजीह दिया करते थे। इन कथनों से पता चलता है कि उपन्यास लेखन के लिए जरूरी उपकरण कौन से हैं। वे हैं- फुरसत का समय, ऐसे लोग जो स्वयं फुरसत में हों और इसे काटने के लिए किस्सों का सहारा चाह रहे हों, ऐसी जगह जहाँ बाहरी व्यवधान न हो। राजनीति, प्रेम और साहित्य उपन्यास के सहज-स्वाभाविक विषय हो सकते हैं। ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ की रचना इन्हीं उपकरणों के सहारे होती है। इसलिये यह कृति विराट सामाजिक प्रश्नों को नज़रअंदाज कर वैयक्तिक संदर्भों से रची जाती है। इसे महाकाव्यात्मक उपन्यास की श्रेणी में न रखकर लघु उपन्यास की श्रेणी में रखा गया है। आदर्श की स्थापना के बजाय यथार्थ का उदघाटन ही इसके केन्द्र में है। यह यथार्थ भी अपनी संवेदना और भावभूमि में लघुता को ही, रोजमर्रा की आम घटनाओं को ही अधिक उभारता है। माणिक मुल्ला समेत सभी चरित्र एक औसत चरित्र हैं,  वे अपनी दैनिक घटनाओं से ही इतने अभिभूत हैं कि देश-दुनिया और समाज  को अपनी निजी निगाहों से जाँचने-परखने का काम करते है। इसीलिए बड़े सामाजिक दर्शन की एक रिड्यूस्ड समझ उनकी बनती है। गिरिजा कुमार माथुर ने ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ के रचना-विधान को तीन कथा-वृत्तों में विभाजित किया है। ‘प्रथम कथावृत्त का केंद्र माणिक मुल्ला है। जमुना, लिली और तन्ना केंद्र के उपग्रह। दूसरे कथा-वृत्त का केंद्र भी माणिक मुल्ला है, सती, महेसर और चमन सिंह केंद्र के उपग्रह। तीसरा कथा-वृत्त ‘मैं’ का है, जिसके एक ओर मार्क्सवादी सिद्धांतों का व्यंग्यपूर्ण चित्रण है और दूसरी ओर व्यक्तिवादी कला-पक्ष। यह वृत्त गौण है। गिरिजा कुमार माथुर ने आगे इसकी शिल्पगत विशेषताओं का उल्लेख करते हुए टिप्पणी की है कि, “अनध्याय में ‘मैं’ ने सबके चरित्र का विश्लेषण किसी न किसी रूप में किया है, किंतु माणिक मुल्ला से उसका इतना मोह है कि कहीं भी उनका संतुलित विश्लेषण उसने नहीं होने दिया है।अर्थात कहानी रचने वाला ‘मैं’ नामक जो श्रोता है, वह उपन्यास के भीतर दावा तो यह करता है कि मैं माणिक कथा को ज्यों-का-त्यों प्रस्तुत कर रहा हूँ और टेकनीक समेत बाकी सभी वस्तुओं के लिए उसने माणिक मुल्ला को ही जिम्मेदार ठहराया है, लेकिन वह तटस्थ नहीं रह सका। इस उपन्यास की संरचना में जैसे माणिक के बारे में प्रकाश का मत था कि, “हो न हो माणिक मुल्ला में भी हिंदी के अन्य कहानीकारों की तरह नारी के प्रति कुछ ऑब्सेशन है।” कुछ ऐसा ही ऑब्सेशन ‘मैं’ का माणिक के प्रति है। वह माणिक के विशिष्ट व्यक्तिव से अभिभूत है और संकल्पबद्ध होकर उनकी कहानियों को बचाने का उद्यम करता है । इस अनन्य श्रोता ‘मैं’ ने निश्चित ही इन कहानियों को महत्वपूर्ण माना है, इसीलिए माणिक मुल्ला के लापता होने पर उन्हें बचाने की दिशा में कलमबद्ध किया है। इसलिये ‘मैं’ को माणिक मुल्ला की कहानियों का तटस्थ प्रस्तोता नहीं माना जा सकता, वरन् ‘मैं’ और माणिक एक नहीं तो अधिकांशत: एक जैसे व्यक्ति हैं। इसीलिए माथुर तीसरे वृत्त को गौण मानते हैं। खैर, इस उपन्यास के मुख्य सरोकार माणिक की कहानियों के इर्द-गिर्द  ही विकसित होते हैं। वे देखने में सीमित लग सकते हैं लेकिन इससे कौन इंकार करेगा कि हमारी जिंदगी की अधिकतर ऊर्जा इन्हीं छोटी-मोटी समस्याओं को सुलझाने में निकल जाती है और मध्यवर्गी जनसमूह इन्हीं उपलब्धियों के द्वारा स्वयं को सार्थक महसूस कर पाता है। इसलिए ‘सूरज का सातवॉं घोड़ा’ लघुता में महत् के तलाश की उल्लेखनीय कृति बन जाती है, और मध्यवर्ग की अदम्य आकांक्षा को प्रतिबिंबित करती है।उपन्यास में लैाकिक मूल्यों की सक्रियता होती है। यथार्थवादी नजरिए के बिना उपन्यास की रचना संभव नहीं। उपन्यास को हम जीवन का कलात्मक विकल्प मान सकते हैं। एक उपन्यासकार घटनाओं, चरित्रों, परिस्थितियों, संवाद आदि के माध्यम से एक दुनिया अपने उपन्यास में बसाता है। ये चरित्र वास्तविक न होते हुए भी वास्तविकता का एहसास रचते हैं तथा ‘जीवन और समाज की जटिलताओं से जूझने का प्रमाण’ उपस्थित करते हैं। उपन्यासकार जिन विभिन्न तत्वों से अपनी औपन्यासिक दुनिया बनाता है, उनमें कथानक, कथोपकथन, देशकाल, शैली, और उद्देश्य महत्वपूर्ण होते हैं। नित्यानंद तिवारी का मानना है कि, “हर उपन्यासकार अपनी दृष्टि से जीवन की समस्याओं को चीरकर उनके भीतर से इन तत्वों का संगठन करता है। ये तत्व यांत्रिक फार्मूले नहीं । इनकी भूमिका नियामक नहीं, निर्देशक है। ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ में इन तत्वों की उपस्थिति एक संतुलित अनुपात में आती है, लेकिन निजता पूरे कथा-विन्यास में अधिक सक्रिय रहती है।‘.

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और सूरज का सातवाँ घोड़ा · और देखें »

हरिवंश राय बच्चन

हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन" (२७ नवम्बर १९०७ – १८ जनवरी २००३) हिन्दी भाषा के एक कवि और लेखक थे। इलाहाबाद के प्रवर्तक बच्चन हिन्दी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों मे से एक हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति मधुशाला है। भारतीय फिल्म उद्योग के प्रख्यात अभिनेता अमिताभ बच्चन उनके सुपुत्र हैं। उन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। बाद में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ रहे। अनन्तर राज्य सभा के मनोनीत सदस्य। बच्चन जी की गिनती हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में होती है। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और हरिवंश राय बच्चन · और देखें »

हि नङबू होन्देदा

हि नङबू होन्देदा मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार सागोलसेम लनचेनबा मीतै द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1999 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और हि नङबू होन्देदा · और देखें »

जोध छी. सनसम

जोध छी.

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और जोध छी. सनसम · और देखें »

जी. सी. तोम्ब्रा

जी.

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और जी. सी. तोम्ब्रा · और देखें »

ई. दिनमणि सिंह

ई. दिनमणि सिंह मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह पिष्टाल अमा कुंदलेई अमा के लिये उन्हें सन् 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और ई. दिनमणि सिंह · और देखें »

ई. नीलकांत सिंह

ई. नीलकांत सिंह मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह तीर्थ यात्रा के लिये उन्हें सन् 1987 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और ई. नीलकांत सिंह · और देखें »

ई. रजनीकांत सिंह

ई. रजनीकांत सिंह मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह कालेनथगी लीपकलेई के लिये उन्हें सन् 1981 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और ई. रजनीकांत सिंह · और देखें »

ई. सोनामणि सिंह

ई. सोनामणि सिंह मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह ममांथों लोल्लबदि मीनथोंदा लाक्उदना के लिये उन्हें सन् 1988 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और ई. सोनामणि सिंह · और देखें »

विंग्स ऑफ़ फ़ायर: एन ऑटोबायोग्राफी

विंग्स ऑफ फायर: एन आटोबायोग्राफी ऑफ एपीजे अब्दुल कलाम (१९९९), भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की आत्मकथा है। इसके सह-लेखक अरुण तिवारी हैं। इसमें अब्दुल कलाम के बचपन से लेकर लगभग १९९९ तक के जीवन सफर के बारे में बताया गया है। मूल रूप में अंग्रेजी में प्रकाशित यह किताब, विश्व की १३ भाषाओ में अनूदित हो चुकी है। जिसमे भारत की प्रमुख भाषाएँ हिंदी, गुजराती, तेलगु, तमिल, मराठी, मलयालम के साथ-साथ कोरियन, चीनी और ब्रेल लिपि भी शामिल है। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और विंग्स ऑफ़ फ़ायर: एन ऑटोबायोग्राफी · और देखें »

व्यास

कोई विवरण नहीं।

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और व्यास · और देखें »

वेदव्यास

ऋषि कृष्ण द्वेपायन वेदव्यास महाभारत ग्रंथ के रचयिता थे। महाभारत के बारे में कहा जाता है कि इसे महर्षि वेदव्यास के गणेश को बोलकर लिखवाया था। वेदव्यास महाभारत के रचयिता ही नहीं, बल्कि उन घटनाओं के साक्षी भी रहे हैं, जो क्रमानुसार घटित हुई हैं। अपने आश्रम से हस्तिनापुर की समस्त गतिविधियों की सूचना उन तक तो पहुंचती थी। वे उन घटनाओं पर अपना परामर्श भी देते थे। जब-जब अंतर्द्वंद्व और संकट की स्थिति आती थी, माता सत्यवती उनसे विचार-विमर्श के लिए कभी आश्रम पहुंचती, तो कभी हस्तिनापुर के राजभवन में आमंत्रित करती थी। प्रत्येक द्वापर युग में विष्णु व्यास के रूप में अवतरित होकर वेदों के विभाग प्रस्तुत करते हैं। पहले द्वापर में स्वयं ब्रह्मा वेदव्यास हुए, दूसरे में प्रजापति, तीसरे द्वापर में शुक्राचार्य, चौथे में बृहस्पति वेदव्यास हुए। इसी प्रकार सूर्य, मृत्यु, इन्द्र, धनजंय, कृष्ण द्वैपायन अश्वत्थामा आदि अट्ठाईस वेदव्यास हुए। इस प्रकार अट्ठाईस बार वेदों का विभाजन किया गया। उन्होने ही अट्ठारह पुराणों की भी रचना की, ऐसा माना जाता है। वेदव्यास यह व्यास मुनि तथा पाराशर इत्यादि नामों से भी जाने जाते है। वह पराशर मुनि के पुत्र थे, अत: व्यास 'पाराशर' नाम से भि जाने जाते है। महर्षि वेदव्यास को भगवान का ही रूप माना जाता है, इन श्लोकों से यह सिद्ध होता है। नमोऽस्तु ते व्यास विशालबुद्धे फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्र। येन त्वया भारततैलपूर्णः प्रज्ज्वालितो ज्ञानमयप्रदीपः।। अर्थात् - जिन्होंने महाभारत रूपी ज्ञान के दीप को प्रज्वलित किया ऐसे विशाल बुद्धि वाले महर्षि वेदव्यास को मेरा नमस्कार है। व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे। नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नम:।। अर्थात् - व्यास विष्णु के रूप है तथा विष्णु ही व्यास है ऐसे वसिष्ठ-मुनि के वंशज का मैं नमन करता हूँ। (वसिष्ठ के पुत्र थे 'शक्ति'; शक्ति के पुत्र पराशर, और पराशर के पुत्र पाराशर (तथा व्यास)) .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और वेदव्यास · और देखें »

वीर टीकेन्द्रजित रोड

वीर टीकेन्द्रजित रोड मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार एच. गुनो सिंह द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1985 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और वीर टीकेन्द्रजित रोड · और देखें »

खुमनथेम प्रकाश सिंह

खुमनथेम प्रकाश सिंह मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह मंगी इसेई के लिये उन्हें सन् 1986 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और खुमनथेम प्रकाश सिंह · और देखें »

खुशवन्त सिंह

खुशवन्त सिंह (जन्म: 2 फ़रवरी 1915, मृत्यु: 20 मार्च 2014) भारत के एक प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक, उपन्यासकार और इतिहासकार थे। एक पत्रकार के रूप में उन्हें बहुत लोकप्रियता मिली। उन्होंने पारम्परिक तरीका छोड़ नये तरीके की पत्रकारिता शुरू की। भारत सरकार के विदेश मन्त्रालय में भी उन्होंने काम किया। 1980 से 1986 तक वे राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे। खुशवन्त सिंह जितने भारत में लोकप्रिय थे उतने ही पाकिस्तान में भी लोकप्रिय थे। उनकी किताब ट्रेन टू पाकिस्तान बेहद लोकप्रिय हुई। इस पर फिल्म भी बन चुकी है। उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन एक जिन्दादिल इंसान की तरह पूरी कर्मठता के साथ जिया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और खुशवन्त सिंह · और देखें »

ख्रुंगङी चिठि

ख्रुंगङी चिठि मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार रघु लैशाङथेम द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2009 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और ख्रुंगङी चिठि · और देखें »

खोङजि मखोल

खोङजि मखोल मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार निङोम्बम सुनिता द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2001 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और खोङजि मखोल · और देखें »

गाइड (उपन्यास)

गाइड अंग्रेजी भाषा के महान भारतीय उपन्यासकार आर के नारायण का उपन्यास है। यह आर के नारायण का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। इसे देश और विदेशों में जबरदस्त सराहना मिली है। उनकी अधिकतर रचनाओं की तरह गाइड भी मालगुडी पर आधारित है। मालगुडी एक काल्पनिक स्थान है। प्रायः इसे दक्षिण भारत का एक काल्पनिक कस्बा माना जाता है; परंतु स्वयं लेखक के कथनानुसार "अगर मैं कहूँ कि मालगुडी दक्षिण भारत में एक कस्बा है तो यह भी अधूरी सच्चाई होगी, क्योंकि मालगुडी के लक्षण दुनिया में हर जगह मिल जाएँगे।" इस उपन्यास में राजू नामक एक सामान्य पथप्रदर्शक (टूर गाइड) के आध्यात्मिक गुरू बनने की कहानी है। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और गाइड (उपन्यास) · और देखें »

गिरीश कर्नाड

गिरीश कार्नाड (जन्म 19 मई, 1938 माथेरान, महाराष्ट्र) भारत के जाने माने समकालीन लेखक, अभिनेता, फ़िल्म निर्देशक और नाटककार हैं। कन्नड़ और अंग्रेजी भाषा दोनों में इनकी लेखनी समानाधिकार से चलती है। 1998 में ज्ञानपीठ सहित पद्मश्री व पद्मभूषण जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों के विजेता कार्नाड द्वारा रचित तुगलक, हयवदन, तलेदंड, नागमंडल व ययाति जैसे नाटक अत्यंत लोकप्रिय हुये और भारत की अनेकों भाषाओं में इनका अनुवाद व मंचन हुआ है। प्रमुख भारतीय निदेशको - इब्राहीम अलकाजी, प्रसन्ना, अरविन्द गौड़ और बी.वी. कारंत ने इनका अलग- अलग तरीके से प्रभावी व यादगार निर्देशन किया हैं। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और गिरीश कर्नाड · और देखें »

आर के नारायण

आर के नारायण (अक्टूबर 10, 1906- मई 13, 2001) का पूरा नाम रासीपुरम कृष्णस्वामी अय्यर नारायणस्वामी था। नारायण अंग्रेजी साहित्य के भारतीय लेखकों में तीन सबसे महान् उपन्यासकारों में गिने जाते हैं। मुल्कराज आनंद तथा राजा राव के साथ उनका नाम भारतीय अंग्रेजी लेखन के आरंभिक समय में 'बृहत्त्रयी' के रूप में प्रसिद्ध है। मुख्यतः उपन्यास तथा कहानी विधा को अपनाते हुए उन्होंने विभिन्न स्तरों तथा रूपों में मानवीय उत्थान-पतन की गाथा को अभिव्यक्त करते हुए अपने गंभीर यथार्थवाद के माध्यम से रचनात्मक कीर्तिमान स्थापित किया है। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और आर के नारायण · और देखें »

आर. के. मधुबीर

आर.

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और आर. के. मधुबीर · और देखें »

इमासि नुराबी

इमासि नुराबी मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार बी. एम. माइस्नाम्बा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2007 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और इमासि नुराबी · और देखें »

इमागी फनेक मचेत

इमागी फनेक मचेत मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार लाइतोंजम प्रेमचाँद सिंह द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2000 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और इमागी फनेक मचेत · और देखें »

इरावती कर्वे

इरावती कर्वे (15 दिसम्बर 1905 - 11 अगस्त 1970) भारत की शिक्षाशास्त्री, लेखिका एवं नृवैज्ञानिक (एंथ्रोपोलोजिस्ट) थीं। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और इरावती कर्वे · और देखें »

इलिसा आमागी महाओ

इलिसा आमागी महाओ मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार एन. कुंजमोहन सिंह द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1974 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और इलिसा आमागी महाओ · और देखें »

इंफ़ाल अमासुङ मागी नुङशित्की फिबम इशिंग

इंफ़ाल अमासुङ मागी नुङशित्की फिबम इशिंग मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार पाचा मेहताई द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1973 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और इंफ़ाल अमासुङ मागी नुङशित्की फिबम इशिंग · और देखें »

कमलेश्वर

कमलेश्वर (६ जनवरी१९३२-२७ जनवरी २००७) हिन्दी लेखक कमलेश्वर बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक समझे जाते हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। कमलेश्वर का लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा बल्कि उनके लेखन के कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। उनका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' हो या फिर भारतीय राजनीति का एक चेहरा दिखाती फ़िल्म 'आंधी' हो, कमलेश्वर का काम एक मानक के तौर पर देखा जाता रहा है। उन्होंने मुंबई में जो टीवी पत्रकारिता की, वो बेहद मायने रखती है। 'कामगार विश्व’ नाम के कार्यक्रम में उन्होंने ग़रीबों, मज़दूरों की पीड़ा-उनकी दुनिया को अपनी आवाज़ दी। कमलेश्वर का जन्म ६ जनवरी १९३२ को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ। उन्होंने १९५४ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। उन्होंने फिल्मों के लिए पटकथाएँ तो लिखी ही, उनके उपन्यासों पर फिल्में भी बनी। `आंधी', 'मौसम (फिल्म)', 'सारा आकाश', 'रजनीगंधा', 'छोटी सी बात', 'मिस्टर नटवरलाल', 'सौतन', 'लैला', 'रामबलराम' की पटकथाएँ उनकी कलम से ही लिखी गईं थीं। लोकप्रिय टीवी सीरियल 'चन्द्रकांता' के अलावा 'दर्पण' और 'एक कहानी' जैसे धारावाहिकों की पटकथा लिखने वाले भी कमलेश्वर ही थे। उन्होंने कई वृतचित्रों और कार्यक्रमों का निर्देशन भी किया। १९९५ में कमलेश्वर को 'पद्मभूषण' से नवाज़ा गया और २००३ में उन्हें 'कितने पाकिस्तान'(उपन्यास) के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे 'सारिका' 'धर्मयुग', 'जागरण' और 'दैनिक भास्कर' जैसे प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं के संपादक भी रहे। उन्होंने दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक जैसा महत्वपूर्ण दायित्व भी निभाया। कमलेश्वर ने अपने ७५ साल के जीवन में १२ उपन्यास, १७ कहानी संग्रह और क़रीब १०० फ़िल्मों की पटकथाएँ लिखीं। कमलेश्वर की अंतिम अधूरी रचना अंतिम सफर उपन्यास है, जिसे कमलेश्वर की पत्नी गायत्री कमलेश्वर के अनुरोध पर तेजपाल सिंह धामा ने पूरा किया और हिन्द पाकेट बुक्स ने उसे प्रकाशित किया और बेस्ट सेलर रहा। २७ जनवरी २००७ को उनका निधन हो गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और कमलेश्वर · और देखें »

कालेनथगी लीपकलेई

कालेनथगी लीपकलेई मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार ई. रजनीकांत सिंह द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1981 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और कालेनथगी लीपकलेई · और देखें »

क्षेत्रि वीर

क्षेत्रि वीर मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह नंगबु ङाइबदा के लिये उन्हें सन् 2011 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और क्षेत्रि वीर · और देखें »

क्षेत्री राजन

क्षेत्री राजन मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता अहिङना येकशिल्लिबा मङ के लिये उन्हें सन् 2015 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और क्षेत्री राजन · और देखें »

कीशम प्रियकुमार

कीशम प्रियकुमार मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह नोडदी तरक–खिदरे के लिये उन्हें सन् 1998 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और कीशम प्रियकुमार · और देखें »

अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpeyee), (जन्म: २५ दिसंबर, १९२४) भारत के पूर्व प्रधानमंत्री हैं। वे पहले १६ मई से १ जून १९९६ तथा फिर १९ मार्च १९९८ से २२ मई २००४ तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। वे हिन्दी कवि, पत्रकार व प्रखर वक्ता भी हैं। वे भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वाले महापुरुषों में से एक हैं और १९६८ से १९७३ तक उसके अध्यक्ष भी रहे। वे जीवन भर भारतीय राजनीति में सक्रिय रहे। उन्होंने लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया था और देश के सर्वोच्च पद पर पहुँचने तक उस संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया। वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के पहले प्रधानमन्त्री थे जिन्होंने गैर काँग्रेसी प्रधानमन्त्री पद के 5 साल बिना किसी समस्या के पूरे किए। उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मन्त्री थे। कभी किसी दल ने आनाकानी नहीं की। इससे उनकी नेतृत्व क्षमता का पता चलता है। सम्प्रति वे राजनीति से संन्यास ले चुके हैं और नई दिल्ली में ६-ए कृष्णामेनन मार्ग स्थित सरकारी आवास में रहते हैं। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और अटल बिहारी वाजपेयी · और देखें »

अराम्बम ओंबी मेमचौबी

अराम्बम ओंबी मेमचौबी मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह इदु निंथौ के लिये उन्हें सन् 2008 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और अराम्बम ओंबी मेमचौबी · और देखें »

अरांबम बीरेन सिंह

अरांबम बीरेन सिंह मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास पुन्सीगी मरुद्यान के लिये उन्हें सन् 1993 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और अरांबम बीरेन सिंह · और देखें »

अरांबम समरेन्द्र सिंह

अरांबम समरेन्द्र सिंह मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक लेपाकले के लिये उन्हें सन् 1995 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और अरांबम समरेन्द्र सिंह · और देखें »

अशैबगी नित्याइपोद

अशैबगी नित्याइपोद मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार ए. मीनकेतन सिंह द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1977 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और अशैबगी नित्याइपोद · और देखें »

अहिङना येकशिल्लिबा मङ

अहिङना येकशिल्लिबा मङ मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार क्षेत्री राजन द्वारा रचित एक कविता है जिसके लिये उन्हें सन् 2015 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और अहिङना येकशिल्लिबा मङ · और देखें »

उडुपी राजगोपालाचार्य अनंतमूर्ति

उडुपी राजगोपालाचार्य अनंतमूर्ति (२१ दिसम्बर १९३२ - २२ अगस्त २०१४) समकालीन कन्नड़ साहित्यकार, आलोचक और शिक्षाविद् हैं। इन्हें कन्नड़ साहित्य के नव्या आंदोलन का प्रणेता माना जाता है। इनकी सबसे प्रसिद्ध रचना संस्कार है। ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले आठ कन्नड़ साहित्यकारों में वे छठे हैं। उन्होंने महात्मा गांधी विश्वविद्यालय तिरुअनन्तपुरम् और केंद्रीय विश्वविद्यालय गुलबर्गा के कुलपति के रूप में भी काम किया था। साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सन १९९८ में भारत सरकार द्वारा इन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। २०१३ के मैन बुकर पुरस्कार पाने वाले उम्मीदवारों की अंतिम सूची में इन्हें भी चुना गया था। २२ अगस्त २०१४ को ८१ वर्ष की अवस्था में बंगलूर (कर्नाटक) में इनका निधन हो गया। <ref>मशहूर साहित्यकार अनंतमूर्ति का निधन - BBC Hindi - भारत http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2014/08/140822_ananthamurthy_obituary_du.shtml </ref> .

नई!!: साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी और उडुपी राजगोपालाचार्य अनंतमूर्ति · और देखें »

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »