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समिति

सूची समिति

किसी विषय पर विचार के लिये बनाया गया लोगों का समूह समिति (committee or commission) कहलाती है। प्रायः यह किसी अन्य सभा के आधीन होता है। समितियाँ भिन्न-भिन्न तरह के कार्यों के लिये बनायी जातीं हैं-.

4 संबंधों: परियोजना, प्रबन्धन, गणपूरक, कोरम

परियोजना

किसी व्यापार, विज्ञान या इंजीनियरिंग में किसी विशेष लक्ष्य की प्राप्ति हेतु जो विस्तृत कार्य-योजना बनायी और कार्यान्वित की जाती है उसे परियोजना (project) कहते हैं। इसके अन्तर्गत पूरे कार्य को छोटे-छोटे कार्यों के रूप में विभक्त करके उनका समयबद्ध क्रम प्रस्तुत किया जाता है। कौन सा काम कब आरम्भ होगा; कब समाप्त हो जायेगा; कितना धन और अन्य संसाधन लगेगा; समाप्ति पर मिलने वाला परिणाम क्या है; आदि का उल्लेख किया जाता है। परियोजना में कार्य की समयसीमा (डेडलाइन) तय करना जरूरी है। इसके साथ ही हर परियोजना के लिये एक निश्चित राशि (बजट) निर्धारित होता है। .

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प्रबन्धन

व्यवसाय एवं संगठन के सन्दर्भ में प्रबन्धन (Management) का अर्थ है - उपलब्ध संसाधनों का दक्षतापूर्वक तथा प्रभावपूर्ण तरीके से उपयोग करते हुए लोगों के कार्यों में समन्वय करना ताकि लक्ष्यों की प्राप्ति सुनिश्चित की जा सके। प्रबन्धन के अन्तर्गत आयोजन (planning), संगठन-निर्माण (organizing), स्टाफिंग (staffing), नेतृत्व करना (leading या directing), तथा संगठन अथवा पहल का नियंत्रण करना आदि आते हैं। संगठन भले ही बड़ा हो या छोटा, लाभ के लिए हो अथवा गैर-लाभ वाला, सेवा प्रदान करता हो अथवा विनिर्माणकर्ता, प्रबंध सभी के लिए आवश्यक है। प्रबंध इसलिए आवश्यक है कि व्यक्ति सामूहिक उद्देश्यों की पूर्ति में अपना श्रेष्ठतम योगदान दे सकें। प्रबंध में पारस्परिक रूप से संबंधित वह कार्य सम्मिलित हैं जिन्हें सभी प्रबंधक करते हैं। प्रबंधक अलग-अलग कार्यों पर भिन्न समय लगाते हैं। संगठन के उच्चस्तर पर बैठे प्रबंधक नियोजन एवं संगठन पर नीचे स्तर के प्रबंधकों की तुलना में अधिक समय लगाते हैं। kisi bhi business ko start krne se phle prabandh yaani ke managements ki jaroort hoti h .

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गणपूरक

आधुनिक शब्दावली में यह कोरम का पर्याय है। भारत में यह प्रथा अति प्राचीन काल से प्रचलित थी। विनयपिटक में बौद्ध संघ की सभाओं की कार्यप्रक्रिया का जो वर्णन है उनसे ज्ञात होता है कि संघ की सभाओं के नियम में एक यह भी था कि सदस्यों की निश्चित न्यूनतम उपस्थिति संख्या निर्दिष्ट विषय पर विचार करने के लिए बैठकों में अवश्य शामिल हो। ऐसा न होने पर उन बैठकों को वैध नहीं माना जाता था, फलत: उनके निर्णय भविष्य में किसी भी पूर्ण सभा द्वारा अवैध और अमान्य घोषित किए जा सकते थे। अत: इस व्यवस्था की पूर्ति आवश्यक थी। यह प्रथा प्राचीन भारतीय गणतंत्रों की केंद्रीय सभाओं में भी प्रचलित थी। संभवत: इसी कारण इसे गणपूर्ति की संज्ञा भी दी गई। बौद्धसंघ की स्थानीय सभाओं की बैठकों में बीस भिक्षुओं की उपस्थिति से गणपूर्ति की जाती थी। भगवान बुद्ध ने कहा था, हे भिक्षुओं! यदि कोई कार्य अवैध ढंग से गणपूर्ति के बिना ही कर लिया गया है तो उसे सही कार्य नहीं कह सकते और उसे नहीं किया जाना चाहिए था। इस व्यवस्था की सफलता के लिये एक अधिकारी नियुक्त किया जाता था, उसे गणपूरक कहते थे। बैठकों में गणपूर्ति सर्वदा बनी रहे, यही प्रयत्न करना उसका काम होता था, जिसमें वे कहीं भविष्य में अवैध न घोषित कर दी जाए। काशीप्रसाद जायसवाल ने बुद्धकालीन गणपूरक को आधुनिक ससंद अथवा विधानसभा का ह्विप (सचेतक) कहा है। बौद्ध संघ की भिन्न भिन्न बैठकों के निमित्त संभवत: अन्यान्य भिक्षु गणपूरक नियुक्त किए जाते थे। श्रेणी:प्राचीन भारत श्रेणी:बैठक श्रेणी:लोकतंत्र.

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कोरम

कोरम (Quorum) किसी सभा, संसद, सीमित या कार्यकारिणी की बैठक में लिये आगत न्यूनतम आवश्यक सदस्यों की संख्या को कोरम कहते हैं। इस न्यूनतम आवश्यक संख्या की उपस्थिति के बिना सभा या समिति या विधायिनी के कार्य को वैधानिकता प्राप्त नहीं हो सकती। अत: इस न्यूनतमक संख्या में सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य है। ग्रेट ब्रिटेन में हाउस ऑफ कॉमन्स के लिये न्यूनतम सदस्यों की उपस्थिति ४० की मानी गई तथा हाउस ऑव्‌ लार्ड्‌ स के लिये ३ सदस्यों की उपस्थिति पर्याप्त है। भारतीय गणतंत्र के संविधान की वर्तमान व्यवस्था के अनुसार दशांश सदस्यों का कोरम राज्यपरिषद के लिये तथा दशांश सदस्यों का कोरम लोकसभा के लिये निश्चित किया गया है। यदि किसी समय कोरम न हो तो सभापति या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह सदन को स्थगित कर दे या उसे तब तक निलंबित रखे जब तक कोरम पूरा न हो जाए। यह शब्द मूलत: लातीनी भाषा का है जो अंग्रेजी में भी व्यवहृत होता है और भारतीय भाषाओं में भी इस शब्द को ले लिया गया है। रोम के नगरों में शांति और सुव्यवस्था बनाए रखने के लिए कुछ लोगों की नियुक्ति की जाती थी जिन्हें कोरम के न्यायाधीश के नाम से संबोधित किया जाता था। ये एक दूसरे की उपस्थिति के बिना कोई कार्य करने के अधिकारी नहीं थे। सभी कार्यों के लिये कोरम के न्यायाधीश सामूहिक और वैयक्तिक रूप से उत्तरदायी होते थे। धीरे-धीरे यह शब्द सभी न्यायाधीशों के लिये व्यवहृत होने लगा। कालांतर में इस शब्द में और अर्थातहर हुआ जिससे अब कोरम उपर्युक्त अर्थ में प्रयुक्त होता है। .

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