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सनाढ्य ब्राह्मण

सूची सनाढ्य ब्राह्मण

सनाढ्य का शाब्दिक अर्थ दो शब्दों से मिलकर बना है,सन्+आढय जिसका अर्थ सन् अर्थात तप और आढ्य अर्थात ब्रम्हा। ब्रम्हा के तप से उत्पन्न ब्राम्हण और तपस्या में रत रहने बाले अर्थात तपस्वी। ब्राह्मणों को सनाढ्य की उपाधी, स्वयं भगवान श्री राम द्वारा दी गई थी। जब भगवान श्री राम लंका विजय कर लोटे, तो उनपर रावण के वध के कारण ब्रह्म हत्या का दोष लगा। जिसको की पूजा अनुष्ठान ओर दान आदि से प्रायश्चित करने का उपाय गुरु वशिष्ठ जी ने दिया। इसपर ब्राह्मणों को आमंत्रण दिया गया,परन्तु ब्राह्मण इसके लिए सहमत नही हुए और सरयू नदी पार करके,स्नान आदि के बहाने चले गए।इसपर भगवान श्रीराम बहुत दुखी हुए और व्याकुल हो गए। उन्होंने ब्राह्मणों से करबद्ध प्रार्थना की ओर ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति दिलाने की अधीर प्रार्थना की। भगवान श्रीराम की व्याकुलता ब्राह्मणों से देखी नही गई और उन्होंने वापस आकर पूजा अनुष्ठान दान आदि प्राप्त करके भगवान श्री राम को ब्रह्महत्या से मुक्त किया। ब्राह्मणों के इस विशाल हृदय को देख भगवान श्रीराम करुणा से भर गए और उन्होंने ब्राह्मणों को सनाढ्य की उपाधि दी। साथ ही सरयू के पास की ज़मीन पर सनाढ्य ब्राह्मणों को बसने के लिए 10 गांव दान किये। श्रेणी:ब्राह्मण श्रेणी:गोत्र 'सनाढ्य' शब्द में ब्राह्मणत्व के सभी महान आदर्श सन्निहित है | 'ब्रह्म' शब्द परमात्मा और वेद का वाचक है | परात्म तत्त्व, वैदिक ज्ञान, तप और विद्या की शिष्टता ही ब्राह्मण के स्वरूपाधायक गुण है | 'सन:' शब्द के भी तप, वेद विद्या अदि अर्थ है | निरंतारार्थक अनन्य में भी 'सना' शब्द का पाठ है | 'आढ्य' का अर्थ होता है धनी | फलतः जो तप, वेद, और विद्या के द्वारा निरंतर पूर्ण है, उसे ही "सनाढ्य" कहते है - उपर्युक्त रीति से 'सनाढ्य' शब्द में ब्राह्मणत्व के सभी प्रकार अनुगत होने पर जो सनाढ्य है वे ब्राह्मण है और जो ब्राह्मण है वे सनाढ्य है | यह निर्विवाद सिद्ध है | अर्थात एसा कौन ब्राह्मण होगा, जो 'सनाढ्य' नहीं होना चाहेगा | भारतीय संस्कृति की महान धाराओं के निर्माण में सनाढ्यो का अप्रतिभ योगदान रहा है | वे अपने सुखो की उपेक्षा कर दीपबत्ती की तरह तिलतिल कर जल कर समाज के लिए मिटते रहे है |.

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