सामग्री की तालिका
8 संबंधों: लातिन भाषा, जर्मन भाषा, घुटनों का दर्द, वातरक्त, ग्रैव अपकशेरुकता, आमवातीय संधिशोथ, अस्थिसंध्यार्ति, अंग्रेज़ी भाषा।
- आर्थ्राइटिस
लातिन भाषा
लातीना (Latina लातीना) प्राचीन रोमन साम्राज्य और प्राचीन रोमन धर्म की राजभाषा थी। आज ये एक मृत भाषा है, लेकिन फिर भी रोमन कैथोलिक चर्च की धर्मभाषा और वैटिकन सिटी शहर की राजभाषा है। ये एक शास्त्रीय भाषा है, संस्कृत की ही तरह, जिससे ये बहुत ज़्यादा मेल खाती है। लातीना हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की रोमांस शाखा में आती है। इसी से फ़्रांसिसी, इतालवी, स्पैनिश, रोमानियाई और पुर्तगाली भाषाओं का उद्गम हुआ है (पर अंग्रेज़ी का नहीं)। यूरोप में ईसाई धर्म के प्रभुत्व की वजह से लातीना मध्ययुगीन और पूर्व-आधुनिक कालों में लगभग सारे यूरोप की अंतर्राष्ट्रीय भाषा थी, जिसमें समस्त धर्म, विज्ञान, उच्च साहित्य, दर्शन और गणित की किताबें लिखी जाती थीं। .
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जर्मन भाषा
विश्व के जर्मन भाषी क्षेत्र जर्मन भाषा (डॉयट्श) संख्या के अनुसार यूरोप की सब से अधिक बोली जाने वाली भाषा है। ये जर्मनी, स्विट्ज़रलैंड और ऑस्ट्रिया की मुख्य- और राजभाषा है। ये रोमन लिपि में लिखी जाती है (अतिरिक्त चिन्हों के साथ)। ये हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में जर्मनिक शाखा में आती है। अंग्रेज़ी से इसका करीबी रिश्ता है। लेकिन रोमन लिपि के अक्षरों का इसकी ध्वनियों के साथ मेल अंग्रेज़ी के मुक़ाबले कहीं बेहतर है। आधुनिक मानकीकृत जर्मन को उच्च जर्मन कहते हैं। जर्मन भाषा भारोपीय परिवार के जर्मेनिक वर्ग की भाषा, सामान्यत: उच्च जर्मन का वह रूप है जो जर्मनी में सरकारी, शिक्षा, प्रेस आदि का माध्यम है। यह आस्ट्रिया में भी बोली जाती है। इसका उच्चारण १८९८ ई.
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घुटनों का दर्द
मानव शरीर में पैर जितने ही महत्त्वपूर्ण हैं, उतने ही उनके बीच में बने घुटने। उन्हीं से पैरों को मुड़ने की क्षमता मिलती है। इन्हिं घुटनों में कई कारणों से दर्द होने लग जाता है। इसके कई कारण हो सकते हैं: .
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वातरक्त
---- वातरक्त या गाउट (Gout) होने पर रोगी को तीव्र प्रदाह संधिशोथ (acute inflammatory arthritis) का बार-बार दर्द उठता है। गाउट के अधिकांश मामलों में पैर के अंगूठे के आधार पर स्थित प्रपदिक-अंगुल्यस्थि (metatarsal-phalangeal) प्रभावित होती है। लगभग आधे मामले इसी के होते हैं, जिसे पादग्रा (podagra) कहते हैं। किन्तु यह गुर्दे की पथरी, यूरेट वृक्कविकृति (urate nephropathy) या टोफी (tophi) के रूप में भी सामने आ सकती है। यह रोग रक्त में यूरिक अम्ल की मात्रा बढ़ जाने के कारण होता है। यूरिक अम्ल की बढ़ी हुई मात्रा क्रिस्टल के रूप में जोड़ों, कंडरा (tendons) तथा आसपास के ऊत्तकों पर जमा हो जाता है। यह रोग पाचन क्रिया से संबंधित है। इसके संबंध खून में मूत्रीय अम्ल का अत्यधिक उच्च मात्रा में पाए जाने से होता है। इसके कारण जोड़ों (प्रायः पादांगुष्ठ (ग्रेट टो)) में तथा कभी-कभी गुर्दे में भी क्रिस्टल भारी मात्रा में बढ़ता है। गठिया का रोग मसालेदार भोजन और शराब पीने से संबद्ध है। यूरिक अम्ल मूत्र की खराबी से उत्पन्न होता है। यह प्रायः गुर्दे से बाहर आता है। जब कभी गुर्दे से मूत्र कम आने (यह सामान्य कारण है) अथवा मूत्र अधिक बनने से सामान्य स्तर भंग होता है, तो यूरिक अम्ल का रक्त स्तर बढ़ जाता है और यूरिक अम्ल के क्रिस्टल भिन्न-भिन्न जोड़ों पर जमा (जोड़ों के स्थल) हो जाते है। रक्षात्मक कोशिकाएं इन क्रिस्टलों को ग्रहण कर लेते हैं जिसके कारण जोड़ों वाली जगहों पर दर्द देने वाले पदार्थ निर्मुक्त हो जाते हैं। इसी से प्रभावित जोड़ खराब होते हैं। .
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ग्रैव अपकशेरुकता
ग्रैव अपकशेरुकता (सर्वाइकल स्पाॉन्डिलाइसिस या सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस) ग्रीवा (गर्दन) के आसपास के मेरुदंड की हड्डियों की असामान्य बढ़ोतरी और सर्विकल वर्टेब के बीच के कुशनों (इसे इंटरवर्टेबल डिस्क के नाम से भी जाना जाता है) में कैल्शियम का डी-जेनरेशन, बहिःक्षेपण और अपने स्थान से सरकने की वजह से होता है। लगातार लंबे समय तक कंप्यूटर या लैपटॉप पर बैठे रहना, बेसिक या मोबाइल फोन पर गर्दन झुकाकर देर तक बात करना और फास्ट-फूड्स व जंक-फूड्स का सेवन, इस मर्ज के होने के कुछ प्रमुख कारण हैं।। याहू जागरण।।१८ फरवरी, २००८। डॉ॰ पंकज भारती, होलिस्टिक फिजीशियन प्रौढ़ और वृद्धों में सर्वाइकल मेरुदंड में डी-जेनरेटिव बदलाव साधारण क्रिया है और सामान्यतः इसके कोई लक्षण भी नहीं उभरते। वर्टेब के बीच के कुशनों के डी-जेनरेशन से नस पर दबाव पड़ता है और इससे सर्विकल स्पाॅन्डिलाइसिस के लक्षण दिखते हैं। सामान्यतः ५वीं और ६ठी (सी५/सी६), ६ठी और ७वीं (सी६/सी७) और ४थी और ५वीं (सी४/सी५) के बीच डिस्क का सर्विकल वर्टेब्रा प्रभावित होता है। .
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आमवातीय संधिशोथ
आमवातीय संधिशोथ या आमवातीय संध्यार्ति (अंग्रेज़ी:Rheumatoid arthritis) के आरंभिक अवस्था में जोड़ों में जलन होती है। आरंभिक अवस्था में यह काफी कम होती है। यह जलन एक समय में एक से अधिक संधियों (जोड़ों) में होती है। शुरुआत में छोटे-मोटे जोड़ जैसे- उंगलियों के जोड़ों में दर्द आरंभ होकर यह कलाई, घुटनों, अंगूठों में बढ़ता जाता है। गठिया संधि शोथ होने का सही कारण अभी तक अज्ञात है, आनुवांशिक पर्यावरण और हार्मोनल कारणों की वजह से होने वाले ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया से जलन शुरु होकर बाद में यह संधियों की विरूपता और उन्हें नष्ट करने का कारण बन जाती हैं। (शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रणाली अपनी ही कोशिकाओं को पहचान नहीं पाती हैं और इसलिए उसे संक्रमित कर देती है)। आनुवांशिकी कारक की वजह से रोग के होने की संभावना बनी रहती हैं। यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है। कुछ व्यक्तियों में पर्यावरणीय कारणों से भी यह रोग हो सकता है। कई संक्रामक अभिकरणों का पता चला है। रोग के बढ़ने या कम होने में हार्मोन विशेष भूमिका निभाते हैं। महिलाओं में रजोनिवृति के दौरान ऐसे मामले अधिकतर देखने में आते हैं।;आयु हालांकि यह रोग कभी भी हो सकता है परंतु २०-४० वर्ष के आयु वालों में यह रोग ज्यादा देखने में आया है।;लिंग महिलाओं, विशेषकर रजोनिवृत्ति को प्राप्त करने वाली महिलाओं में यह रोग पुरुषों की तुलना में तीन गुना अधिक पाया जाता है। .
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अस्थिसंध्यार्ति
अस्थिसंध्यार्ति की अवस्था में 'हाइबर्डेन के नोड' बन सकते हैं। अस्थिसंध्यार्ति (अस्थिसंधि + आर्ति .
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अंग्रेज़ी भाषा
अंग्रेज़ी भाषा (अंग्रेज़ी: English हिन्दी उच्चारण: इंग्लिश) हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में आती है और इस दृष्टि से हिंदी, उर्दू, फ़ारसी आदि के साथ इसका दूर का संबंध बनता है। ये इस परिवार की जर्मनिक शाखा में रखी जाती है। इसे दुनिया की सर्वप्रथम अन्तरराष्ट्रीय भाषा माना जाता है। ये दुनिया के कई देशों की मुख्य राजभाषा है और आज के दौर में कई देशों में (मुख्यतः भूतपूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में) विज्ञान, कम्प्यूटर, साहित्य, राजनीति और उच्च शिक्षा की भी मुख्य भाषा है। अंग्रेज़ी भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती है। यह एक पश्चिम जर्मेनिक भाषा है जिसकी उत्पत्ति एंग्लो-सेक्सन इंग्लैंड में हुई थी। संयुक्त राज्य अमेरिका के 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध और ब्रिटिश साम्राज्य के 18 वीं, 19 वीं और 20 वीं शताब्दी के सैन्य, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव के परिणाम स्वरूप यह दुनिया के कई भागों में सामान्य (बोलचाल की) भाषा बन गई है। कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रमंडल देशों में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल एक द्वितीय भाषा और अधिकारिक भाषा के रूप में होता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति ५वीं शताब्दी की शुरुआत से इंग्लैंड में बसने वाले एंग्लो-सेक्सन लोगों द्वारा लायी गयी अनेक बोलियों, जिन्हें अब पुरानी अंग्रेजी कहा जाता है, से हुई है। वाइकिंग हमलावरों की प्राचीन नोर्स भाषा का अंग्रेजी भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। नॉर्मन विजय के बाद पुरानी अंग्रेजी का विकास मध्य अंग्रेजी के रूप में हुआ, इसके लिए नॉर्मन शब्दावली और वर्तनी के नियमों का भारी मात्र में उपयोग हुआ। वहां से आधुनिक अंग्रेजी का विकास हुआ और अभी भी इसमें अनेक भाषाओँ से विदेशी शब्दों को अपनाने और साथ ही साथ नए शब्दों को गढ़ने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। एक बड़ी मात्र में अंग्रेजी के शब्दों, खासकर तकनीकी शब्दों, का गठन प्राचीन ग्रीक और लैटिन की जड़ों पर आधारित है। .
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यह भी देखें
आर्थ्राइटिस
संधिशोथ, गठिया, ऑर्थराइटिस के रूप में भी जाना जाता है।