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श्री लक्ष्मीनृःसिंह नवग्रह वाटिका

सूची श्री लक्ष्मीनृःसिंह नवग्रह वाटिका

----‘यस्यां वृक्षावनस्पत्या ध्रुवास्तिष्ठन्ति विश्वहा’                                                    ।।अथर्ववेद।।                इस नवग्रह वाटिका की स्थापना श्री अथर्ववेद की इसी सूक्ति के आधार पर वेदी स्वरुप में की गयी है। इस वाटिका के  प्रत्येक वृक्ष को ज्योतिष में वर्णित सर्वार्ध- सिद्धि योगों के अन्तर्गत की गयी है। इस वाटिका के मध्य में सूर्य का प्रतीक मंदार वृक्ष स्थापित है और इसके चारों तरफ चन्द्रमा का प्रतीक पलाश, मंगल का खैर,  बुध का अपामार्ग, गुरू का पारसपीपल, शुक्र का गूलर, शनि का शमी, राहु का चन्दन और केतु का अश्वगंधा वृक्ष स्थापित किये गये हैं।                 ऐसा प्रतीत ही नहीं अपितु विश्वास होता है कि ग्रहों से पीड़ित व्यक्ति यहाँ आकर अवश्य ही शांति प्राप्त करेंगे और किंचित ग्रह प्रसन्नार्थ क्रिया करने पर ही वे विरोधी क्रूर ग्रह प्रसन्न हो लाभकारी दृष्टि अपनायेंगे। मुझे इन वृक्षों में दिव्यता का आभास इसी से होता है कि अनेकों कष्टों से पीड़ित व्यक्तियों को अल्प समय में ही लाभ होते हुए देखा गया है। इस नवग्रह वाटिका की स्थापना करते समय इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि वृक्षों की दूरी अधिक न हो जाये क्योंकि ? मेरा ऐसा विश्वास है कि किसी महापुरुष का हाथ यदि हमारे सिर के ऊपर रखा होगा तो हमारा संकट स्वतः ही नष्ट हो जावेगा। इसी कारण जिस समय ये वृक्ष अपनी दीर्घता को प्राप्त होगें तो आपस में समाहित हो जावेगें और इनके नीचे से प्रदक्षिणा करने वाले प्रत्येक भक्त को अपना आर्शीवाद प्रदान करेंगे जिससे उसका संकट दूर हो जावेगा। आईये इनकी पूजा करतें हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हमारे नक्षत्र मण्डल को नौ ग्रहों में समाहित किया गया है। ऊँ ब्रह्मा मुरारि स्त्रिपुरान्तकारी, भानुः शशिः भूमिसुतो बुधश्च। गुरूश्च शुक्रः शनि राहु  केतवः,  सर्वे ग्रहाः शांति करा भवन्तुः।। सर्व प्रथम श्री गिरिराज महाराज का स्मरण करने के पश्चात्य श्री सूर्यदेव को नमन करते हैं। तदोपरान्त श्री चन्द्रदेव, श्री मंगलदेव, श्री राहुदेव, श्री वृहस्पति देव, श्री शनिदेव, श्री बुधदेव, श्री केतुदेव, श्री शुक्रदेव का स्मरण कर प्रदक्षिणा करें। इस प्रदक्षिणा मार्ग में नवग्रह वाटिका के दक्षिण दिशा में ‘श्री नारद पुराण’ के अनुसार परमब्रह्म श्रीकृष्ण का वनस्पति रूप पीपल वृक्ष खड़ा हुआ है और निकट श्री बटुक भैरवदेव विराजमान हैं।                 जिस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा गीता के दशवें अध्याय के 26वें श्लोक में ‘अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां’ कहकर ‘वृक्षों में पीपल वृक्ष मैं हूँ’ कहा गया है। जो साक्षात् भक्तों को आर्शीवाद प्रदान करते रहते हैं। इनका और श्री बटुक भैरव जी (जिनकी अराधना से क्रूर ग्रह शनि, राहु, केतु और मंगल की एक साथ शान्ति हो जाती है। ऐसा मेरा निजी अनुभव है। क्योंकि ग्रहों से पीड़ित प्राणी शान्ति पाठ का लाभ लेते ही रहते हैं ?) का आर्षीवाद प्राप्त करते हुये आपकी प्रदक्षिणा पूर्ण हो जावेगी।                    मेरा उद्देष्य आपको इस पत्र के माध्यम से इस दिव्य स्थल का मानसिक चिंतन कराना है। यदि आपने सहृदय से मानसिक चिंतन किया तो निश्चित ही आपको क्षणिक आनन्द की अनुभूति अवश्य ही होगी। यदि आपको आनन्द की अनुभूति होती है तो मुझे एक यज्ञ के फल के बराबर आनन्द की प्राप्ति होगी। ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है।                इसी के साथ ही ‘‘मेरी परिकल्पना’’ प्रातः स्मरणीय सद्गुरुदेव के आर्शीवाद, मेरे प्रभु श्री गिरिराज महाराज, श्री नृःसिंह भगवान् की असीम कृपा आप सभी विद्वŸाजनों एवं दानदाताओं के सहयोग से साकार हो रही है।             !बोलिए श्री नृःसिंह भगवान की जय!                । ।यं यं चिन्तयते कामं, तं तं प्राप्नोति निश्चितम्।। (मनुष्य श्री नृःसिंह भगवान की आराधना जिन-जिन कार्यों को सोच कर करता है उन्हें अवश्य ही प्राप्त कर लेता है।)           मेरी कामना है कि मेरे भक्तवत्सल प्रभु इस श्री नृःसिंह लक्ष्मी नृःसिंह नवग्रह वाटिका के प्रागढ़ में आने वाले सभी भक्तों पर संकटों के निवारणार्थ उन पर अपनी करूणामयी कृपा दृष्टि अवश्य प्रदान करेंगे। ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है।            जय श्रीकृष्ण।    श्री नृःसिंह।           जीवन के हर संकट में श्री नरसिंह भगवान आपकी रक्षा करें.।.

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