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व्यासाचार्य

सूची व्यासाचार्य

व्यासाचार्य विजयनगर के राजा कृष्णदेवराय के राजपुरोहित तथाचार्य का पुत्र था। वरुणमाला व्यासाचार्य की माता थी।.

सामग्री की तालिका

  1. 5 संबंधों: तथाचार्य, पुरोहित, वरुणमाला, विजयनगर, कृष्णदेवराय

तथाचार्य

तथाचार्य या तथाचारय विजयनगर के राजा कृष्णदेवराय का राजपुरोहित था।उसकी पत्नी का नाम वरुणमाला और बेटा व्यासाचार्य था।तथाचार्य का सही नाम व्यासतीर्थ तथाचार्य था। तथाचार्य के दो शिष्य 'धनीचार्य' और 'मनीचार्य' थे। वह तेनाली रामा से शत्रुता रखते थे। तथाचार्य जितना ज्ञानी था उससे अधिक पाखंडी था।.

देखें व्यासाचार्य और तथाचार्य

पुरोहित

पुरोहित: पुरोहित दो शब्दों से बना है:- 'पर' तथा 'हित', अर्थात ऐसा व्यक्ति जो दुसरो के कल्याण की चिंता करे। प्राचीन काल में आश्रम प्रमुख को पुरोहित कहते थे जहां शिक्षा दी जाती थी। हालांकि यज्ञ कर्म करने वाले मुख्‍य व्यक्ति को भी पुरोहित कहा जाता था। यह पुरोहित सभी तरह के संस्कार कराने के लिए भी नियुक्त होता है। प्रचीनकाल में किसी राजघराने से भी पुरोहित संबंधित होते थे। अर्थात राज दरबार में पुरोहित नियुक्त होते थे, जो धर्म-कर्म का कार्य देखने के साथ ही सलाहकार समीति में शामिल रहते थे। श्रेणी:हिन्दू धर्म.

देखें व्यासाचार्य और पुरोहित

वरुणमाला

वरुणमाला विजयनगर के राजा कृष्णदेवराय के राजपुरोहित तथाचार्य की पत्नी थी। व्यासाचार्य वरुणमाला और तथाचार्य का पुत्र था।.

देखें व्यासाचार्य और वरुणमाला

विजयनगर

विजयनगर साम्राज्य की राजधानी; अब यह हम्पी (पम्पा से निकला हुआ) नगर है। .

देखें व्यासाचार्य और विजयनगर

कृष्णदेवराय

कृष्णदेवराय की कांस्य प्रतिमा संगीतमय स्तम्भों से युक्त हम्पी स्थित विट्ठल मन्दिर; इसके होयसला शैली के बहुभुजाकार आधार पर ध्यान दीजिए। कृष्णदेवराय (1509-1529 ई.; राज्यकाल 1509-1529 ई) विजयनगर के सर्वाधिक कीर्तिवान राजा थे। वे स्वयं कवि और कवियों के संरक्षक थे। तेलुगु भाषा में उनका काव्य अमुक्तमाल्यद साहित्य का एक रत्न है। इनकी भारत के प्राचीन इतिहास पर आधारित पुस्तक वंशचरितावली तेलुगू  के साथ—साथ संस्कृत में भी मिलती है। संभवत तेलुगू का अनुवाद ही संस्कृत में हुआ है। प्रख्यात इतिहासकार तेजपाल सिंह धामा ने हिन्दी में इनके जीवन पर प्रामाणिक उपन्यास आंध्रभोज लिखा है। तेलुगु भाषा के आठ प्रसिद्ध कवि इनके दरबार में थे जो अष्टदिग्गज के नाम से प्रसिद्ध थे। स्वयं कृष्णदेवराय भी आंध्रभोज के नाम से विख्यात थे। .

देखें व्यासाचार्य और कृष्णदेवराय