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व्यक्ति-केन्द्रित चिकित्सा

सूची व्यक्ति-केन्द्रित चिकित्सा

उपचारार्थी केंद्रित मनश्चिकित्सा या व्यक्ति-केन्द्रित चिकित्सा (Person-centered therapy) या अनिर्देशात्मक चिकित्सा (नॉन-डायरेक्टिव थेरेपी) मानसिक उपचार की एक विधि है जिसमें रोगी को लगातार सक्रिय रखा जाता है और बिना कोई निर्देश दिए उसे निरोग बनाने का प्रयत्न किया जाता है। प्रकारांतर से यह स्वसंरक्षण है जिसमें न तो रोगी को चिकित्सक पर निर्भर रखा जाता है और न ही उसके सम्मुख परिस्थितियों को व्याख्या की जाती है इसके विपरीत रोगी को परोक्ष रूप से सहायता देकर उसके ज्ञानात्मक एवं संवेगात्मक क्षेत्र को परिपक्व बनाने की चेष्टा की जाती है ताकि वह अपने को वर्तमान तथा भविष्य की परिस्थितियों से समायोजित कर सके। इसमें चिकित्सक का दायित्व मात्र इतना होता है कि वह रोगी के लिए "स्वसंरक्षण"की व्यवस्था का उचित प्रबंध करता रहे क्योंकि रोगी के संवेगात्मक क्षेत्र में समायोजन लाने के लिए चिकित्सक का सहयोग वांछित ही नहीं, आवश्यक भी है। अनिर्देशात्मक चिकित्साविधि मनोविश्लेषण से काफी मिलती-जुलती है। दोनों में ही चेतन-अवचेतन-स्तर पर प्रस्तुत भावना इच्छाओं की अभिव्यक्ति के लिए पूरी आजादी रहती है। अंतर केवल यह है कि अनिर्देशात्मक उपचार में रोगी को वर्तमान की समस्याओं से परिचित रखा जाता है, जबकि मनोविश्लेषण में उसे अतीत की स्मृतियों अनुभूतियों की ओर ले जाया जाता है। मानसिक उपचार की यह विधि सफल रही है क्योंकि जैसे ही रोगी में एक विशिष्ट सूझ पैदा होती है, वह स्वस्थ हो जाता है। निर्देशात्मक चिकित्सा में कतिपय दोष भी हैं: (1) कुछ व्यक्तियों और रोगों पर इसका प्रभाव नहीं होता। (2) उच्च बौद्धिक स्तर वालों पर ही यह विधि सफल होती है। (3) वर्तमान परिस्थितियों से संबद्ध समस्याएँ ही इससे सुलझ सकती हैं, अतीत में विकसित मनोग्रंथियों पर इसका प्रभाव नहीं होता। .

सामग्री की तालिका

  1. 2 संबंधों: मनोविश्लेषण, कार्ल रोजर्स

मनोविश्लेषण

मनोविश्लेषण (Psychoanalysis), आस्ट्रिया के मनोवैज्ञानिक सिग्मंड फ्रायड द्वारा विकसित कुछ मनोवैज्ञानिक विचारों (उपायों) का समुच्चय है जिसमें कुछ अन्य मनोवैज्ञानिकों ने भी आगे योगदान किया। मनोविश्लेषण मुख्यत: मानव के मानसिक क्रियाओं एवं व्यवहारों के अध्ययन से सम्बन्धित है किन्तु इसे समाजों के ऊपर भी लागू किया जा सकता है। मनोविश्लेषण के तीन उपयोग हैं.

देखें व्यक्ति-केन्द्रित चिकित्सा और मनोविश्लेषण

कार्ल रोजर्स

कार्ल रोजर्स (Carl Ransom Rogers) (8 जनवरी 1902 – 4 फ़रवरी 1987) अमेरिका के प्रसिद्ध मनश्चिकित्सक थे। मनश्चिकित्सा में मानवीय संवेदना को स्थान देने के लिये प्रसीध हैं। उपचारार्थी केंद्रित मनश्चिकित्सा नामक मानसिक रोगों के निवारण की एक मनोवैज्ञानिक विधि कार्ल रोजर्स द्वारा प्रतिपादित की गई है। रोजर्स का स्व-वाद प्रसिद्ध है जो अधिकांशत: उपचार प्रक्रिया या परिस्थितियों से उद्भूत प्रदत्तों पर अवलंबित है। रोजर्स की मूल कल्पनाएँ स्वविकास, स्वज्ञान, स्वसंचालन, बाह्य तथा आंतरिक अनुभूतियों के साथ परिचय, सूझ का विकास करना, भावों की वास्तविक रूप में स्वीकृति इत्यादि संबंधी हैं। वस्तुत: व्यक्ति में वृद्धिविकास, अभियोजन एवं स्वास्थ्यलाभ तथा स्वस्फुटन की स्वाभाविक वृत्ति होती है। मानसिक संघर्ष तथा संवेगात्मक क्षोभ इस प्रकार की अनुभूति में बाधक होते हैं। इन अवरोधों का निवारण भावों के प्रकाशन और उनको अंगीकार करने से सूझ के उदय होने से हो जाता है। इस विधि में ऐसा वातावरण उपस्थित किया जाता है कि रोगी अधिक से अधिक सक्रिय रहे। वह स्वतंत्र होकर उपचारक के सम्मुख अपने भावों, इच्छाओं तथा तनाव संबंधी अनुभूतियों का अभिव्यक्तीकरण करे, उद्देश्य, प्रयोजन को समझे और संरक्षण के लिए दूसरे पर आश्रित न रह जाए। इसमें स्वसंरक्षण अथवा अपनी स्वयं देख देख आवश्यक होती है। उपचारक परोक्ष रूप से, बिना हस्तक्षेप के रोगी को वस्तुस्थिति की चेतना में केवल सहायता देता है जिससे उसके भावात्मक, ज्ञानात्मक क्षेत्र में प्रौढ़ता आए। वह निर्देश नहीं देता, न तो स्थिति की व्याख्या ही करता है। .

देखें व्यक्ति-केन्द्रित चिकित्सा और कार्ल रोजर्स

रोगी-केंद्रित चिकित्सा, उपचारार्थी केंद्रित मनश्चिकित्सा के रूप में भी जाना जाता है।