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विद्याधर (बहुविकल्पी)

सूची विद्याधर (बहुविकल्पी)

'विद्याधर' से निम्नलिखित का बोध होता है-.

8 संबंधों: हिमालय, जयपुर, विद्याधर, विद्याधर (चंदेल), विद्याधर (साहित्यशास्त्री), विद्याधर चक्रवर्ती, विद्याधर शास्त्री, विद्याधर सूरजप्रसाद नैपाल

हिमालय

हिमालय पर्वत की अवस्थिति का एक सरलीकृत निरूपण हिमालय एक पर्वत तन्त्र है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और तिब्बत से अलग करता है। यह पर्वत तन्त्र मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियों- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक से मिलकर बना है जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में लगभग 2400 कि॰मी॰ की लम्बाई में फैली हैं। इस चाप का उभार दक्षिण की ओर अर्थात उत्तरी भारत के मैदान की ओर है और केन्द्र तिब्बत के पठार की ओर। इन तीन मुख्य श्रेणियों के आलावा चौथी और सबसे उत्तरी श्रेणी को परा हिमालय या ट्रांस हिमालय कहा जाता है जिसमें कराकोरम तथा कैलाश श्रेणियाँ शामिल है। हिमालय पर्वत पाँच देशों की सीमाओं में फैला हैं। ये देश हैं- पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान और चीन। अन्तरिक्ष से लिया गया हिमालय का चित्र संसार की अधिकांश ऊँची पर्वत चोटियाँ हिमालय में ही स्थित हैं। विश्व के 100 सर्वोच्च शिखरों में हिमालय की अनेक चोटियाँ हैं। विश्व का सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट हिमालय का ही एक शिखर है। हिमालय में 100 से ज्यादा पर्वत शिखर हैं जो 7200 मीटर से ऊँचे हैं। हिमालय के कुछ प्रमुख शिखरों में सबसे महत्वपूर्ण सागरमाथा हिमाल, अन्नपूर्णा, गणेय, लांगतंग, मानसलू, रॊलवालिंग, जुगल, गौरीशंकर, कुंभू, धौलागिरी और कंचनजंघा है। हिमालय श्रेणी में 15 हजार से ज्यादा हिमनद हैं जो 12 हजार वर्ग किलॊमीटर में फैले हुए हैं। 72 किलोमीटर लंबा सियाचिन हिमनद विश्व का दूसरा सबसे लंबा हिमनद है। हिमालय की कुछ प्रमुख नदियों में शामिल हैं - सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और यांगतेज। भूनिर्माण के सिद्धांतों के अनुसार यह भारत-आस्ट्र प्लेटों के एशियाई प्लेट में टकराने से बना है। हिमालय के निर्माण में प्रथम उत्थान 650 लाख वर्ष पूर्व हुआ था और मध्य हिमालय का उत्थान 450 लाख वर्ष पूर्व हिमालय में कुछ महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी है। इनमें हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गोमुख, देव प्रयाग, ऋषिकेश, कैलाश, मानसरोवर तथा अमरनाथ प्रमुख हैं। भारतीय ग्रंथ गीता में भी इसका उल्लेख मिलता है (गीता:10.25)। .

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जयपुर

जयपुर जिसे गुलाबी नगर के नाम से भी जाना जाता है, भारत में राजस्थान राज्य की राजधानी है। आमेर के तौर पर यह जयपुर नाम से प्रसिद्ध प्राचीन रजवाड़े की भी राजधानी रहा है। इस शहर की स्थापना १७२८ में आमेर के महाराजा जयसिंह द्वितीय ने की थी। जयपुर अपनी समृद्ध भवन निर्माण-परंपरा, सरस-संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर तीन ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। जयपुर शहर की पहचान यहाँ के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से होती है जो यहाँ के स्थापत्य की खूबी है। १८७६ में तत्कालीन महाराज सवाई रामसिंह ने इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रिंस ऑफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से आच्छादित करवा दिया था। तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी पड़ा है। 2011 की जनगणना के अनुसार जयपुर भारत का दसवां सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर है। राजा जयसिंह द्वितीय के नाम पर ही इस शहर का नाम जयपुर पड़ा। जयपुर भारत के टूरिस्ट सर्किट गोल्डन ट्रायंगल (India's Golden Triangle) का हिस्सा भी है। इस गोल्डन ट्रायंगल में दिल्ली,आगरा और जयपुर आते हैं भारत के मानचित्र में उनकी स्थिति अर्थात लोकेशन को देखने पर यह एक त्रिभुज (Triangle) का आकार लेते हैं। इस कारण इन्हें भारत का स्वर्णिम त्रिभुज इंडियन गोल्डन ट्रायंगल कहते हैं। भारत की राजधानी दिल्ली से जयपुर की दूरी 280 किलोमीटर है। शहर चारों ओर से दीवारों और परकोटों से घिरा हुआ है, जिसमें प्रवेश के लिए सात दरवाजे हैं। बाद में एक और द्वार भी बना जो 'न्यू गेट' कहलाया। पूरा शहर करीब छह भागों में बँटा है और यह १११ फुट (३४ मी.) चौड़ी सड़कों से विभाजित है। पाँच भाग मध्य प्रासाद भाग को पूर्वी, दक्षिणी एवं पश्चिमी ओर से घेरे हुए हैं और छठा भाग एकदम पूर्व में स्थित है। प्रासाद भाग में हवा महल परिसर, व्यवस्थित उद्यान एवं एक छोटी झील हैं। पुराने शह के उत्तर-पश्चिमी ओर पहाड़ी पर नाहरगढ़ दुर्ग शहर के मुकुट के समान दिखता है। इसके अलावा यहां मध्य भाग में ही सवाई जयसिंह द्वारा बनावायी गईं वेधशाला, जंतर मंतर, जयपुर भी हैं। जयपुर को आधुनिक शहरी योजनाकारों द्वारा सबसे नियोजित और व्यवस्थित शहरों में से गिना जाता है। देश के सबसे प्रतिभाशाली वास्तुकारों में इस शहर के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य का नाम सम्मान से लिया जाता है। ब्रिटिश शासन के दौरान इस पर कछवाहा समुदाय के राजपूत शासकों का शासन था। १९वीं सदी में इस शहर का विस्तार शुरु हुआ तब इसकी जनसंख्या १,६०,००० थी जो अब बढ़ कर २००१ के आंकड़ों के अनुसार २३,३४,३१९ और २०१२ के बाद ३५ लाख हो चुकी है। यहाँ के मुख्य उद्योगों में धातु, संगमरमर, वस्त्र-छपाई, हस्त-कला, रत्न व आभूषण का आयात-निर्यात तथा पर्यटन-उद्योग आदि शामिल हैं। जयपुर को भारत का पेरिस भी कहा जाता है। इस शहर के वास्तु के बारे में कहा जाता है कि शहर को सूत से नाप लीजिये, नाप-जोख में एक बाल के बराबर भी फ़र्क नहीं मिलेगा। .

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विद्याधर

एक विद्याधर जोड़ी हिन्दू मान्यता के अनुसार विद्याधर हिमालय में रहने वाले उपदेव हैं। वे शिव के सहचर हैं। उनके पास चमत्कारिक शक्ति होती है। बौद्ध धर्म में भी विद्याधर की अवधारणा है। १८वी सदी में विद्याधर जयपुर नगर के वास्तुशिल्पी का नाम भी है| श्रेणी:भारतीय मिथक.

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विद्याधर (चंदेल)

विद्याधर (1018 - 1029) चन्देल वंश का सबसे प्रतापी राजा था जिसने खजुराहो का कन्दारिया महादेव मंदिर बनवाया था। मुसलमान लेखक उसको 'चन्द्र' एवं 'विदा' नाम से पुकारते हैं। वह अपने दादा (धंग) के सामान वीर और कुसल शासक था। अली इब्न उल-अतहर (Ali ibn al-Athir) के अनुसार विद्याधर के राज्य सीमा की सीमा भारत में सबसे बड़ी थी। उसके समय चंदेलों ने कलचुरी और परमारों पर विजय पाई और 1019 तथा 1022 में महमूद का मुकाबला किया। चंदेल राज्य की सीमा विस्तृत हो गई थी। विद्याधर के बाद चन्देल राज्य की कीर्ति और शक्ति घटने लगी। .

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विद्याधर (साहित्यशास्त्री)

विद्याधर 'एकावली' नामक ग्रंथ के रचयिता थे। एकावली साहित्यशास्त्र का महत्वपूर्ण एवं विवेचनात्मक ग्रंथ है। एकावली की कारिकाएँ उनपर वृत्ति और प्रयुक्त उदाहरण ग्रंथकार द्वारा निर्मित हैं। एकावली के आठ उन्मेष हैं। प्रथम उन्मेष में काव्यहेतु, काव्यलक्षण और भामह आदि पूर्ववर्ती आचार्यों के मत का विवेचन है। द्वितीय में शब्द, अर्थ और अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजना, तृतीय में ध्वनि एवं उसके भेद, चतुर्थ में गुणीभूत व्यंग्य, पंचम में तीन गुण और रीति, षष्ठ उन्मेष में दोष, सप्तम में शब्दालंकार और अष्टम उन्मेष में अर्थालंकारों का निरूपण किया गया है। विद्याधर ने रुय्यक द्वारा नवाविष्कृत परिणाम, विकल्प और विचित्र नाम के अलंकारों को भी स्वीकार किया है। विद्याधर ने एकावली में प्रयुक्त स्वनिर्मित उदाहरणों में उड़ीसा के नरेश नरसिंह का वर्णन एवं प्रशस्तिगान किया है। इसका राज्यकाल ई. १२८०-१३३४ माना जाता है। विद्याधर ने रुय्यक और नैषधकार का भी उल्लेख किया है जो १२वीं सदी के हैं। सिंहभूपाल (ई. १३३०) ने अपने ग्रंथ 'रसार्णव' में एकावली का उल्लेख किया है। अत: विद्याधर का समय संभवत: १२७५-१३२५ ई. के लगभग स्वीकार्य होता है। विद्याधर की एकावली पर तरला नाम की टीका प्रकाशित है। इसके टीककार कोलाचल मल्लिनाथ सूरि हैं, जिन्होंने, कालिदास, माघ, भारवि, श्रीहर्ष आदि के महाकाव्यों पर टीका की है। मल्लिनाथ का समय ईसा की १४वीं सदी का अंतिम चरण मान्य है। इन्होंने अपनी अन्य टीकाओं में भी एकावली के उद्धरण दिए हैं। .

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विद्याधर चक्रवर्ती

विद्याधर चक्रवर्ती। विद्याधर भट्टाचार्य (?)। विद्याधर (१६९३-१७५१) भारत के नगर-नियोजन के पुरोधा थे। आज से 286 साल पहले जयपुर जैसा सुव्यवस्थित और आधुनिक नगर बसाने के आमेर महाराजा सवाई जयसिंह के सपने को साकार करने में उनकी भूमिका सबसे निर्णायक और महत्वपूर्ण रही। गणित, शिल्पशास्त्र, ज्योतिष और संस्कृत आदि विषयों में उनकी असाधारण गति थी। विद्याधर बंगाल मूल के एक गौड़-ब्राह्मण थे, जिनके दस वैदिक ब्राह्मण पूर्वज आमेर-राज्य की कुलदेवी दुर्गा शिलादेवी की शिला खुलना-उपक्षेत्र के जैसोर (तब पूर्व बंगाल), अब बांग्लादेश) से लाने के समय जयपुर आये थे। उन्हीं में से एक के वंशज विद्याधर थे। .

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विद्याधर शास्त्री

विद्याधर शास्त्री (१९०१-१९८३) संस्कृत कवि और संस्कृत तथा हिन्दी भाषाओं के विद्वान थे। आपका जन्म राजस्थान के चूरु शहर में हुआ था। पंजाब विश्वविद्यालय (लाहौर) से शास्त्री की परीक्षा आपने सोलह वर्ष की आयु में उत्तीर्ण की थी। आगरा विश्वविद्यालय (वर्तमान डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय) से आपने संस्कृत कलाधिस्नातक परीक्षा में सफलता प्राप्त की। शिक्षण कार्य और अकादमिक प्रयासों के दौरान आपने बीकानेर शहर में जीवन व्यतीत किया। १९६२ में भारत के राष्ट्रपति द्वारा विद्यावाचस्पति की उपाधि से आपको सम्मानित किया गया था। .

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विद्याधर सूरजप्रसाद नैपाल

वी एस नाइपॉल या विद्याधर सूरजप्रसाद नैपालका जन्म १७ अगस्त सन १९३२ को ट्रिनिडाड के चगवानस (Chaguanas) में हुआ। उनहे नुतन अंग्रेज़ी छंद का गुरु कहा जाता है। वे कई साहित्यिक पुरस्कार से सम्मानित किये जा चुके हे, इनमे जोन लिलवेलीन रीज पुरस्कार (१९५८), दी सोमरसेट मोगम अवाङँ (१९८०), दी होवथोरडन पुरस्कार (1964), दी डबलु एच स्मिथ साहित्यिक अवाङँ (१९६८), दी बुकर पुरस्कार (१९७१), तथा दी डेविड कोहेन पुरस्कार (१९९३) ब्रिटिश साहित्य मे जीवन परयंत कायँ के लिए, प्रमुख है। वी एस नैपाल को २००१ मे साहित्य मे नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। २००८ मे दी टाईम्स ने वी एस नैपाल को अपनी ५० महान ब्रिटिश साहित्यकारो की सुची मे सातवां स्थान दिया। .

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