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देखें विजय कुमार और संपादन
आलोचना
आलोचना या समालोचना (Criticism) किसी वस्तु/विषय की, उसके लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, उसके गुण-दोषों एवं उपयुक्ततता का विवेचन करने वालि साहित्यिक विधा है। हिंदी आलोचना की शुरुआत १९वीं सदी के उत्तरार्ध में भारतेन्दु युग से ही मानी जाती है। 'समालोचना' का शाब्दिक अर्थ है - 'अच्छी तरह देखना'। 'आलोचना' शब्द 'लुच' धातु से बना है। 'लुच' का अर्थ है 'देखना'। समीक्षा और समालोचना शब्दों का भी यही अर्थ है। अंग्रेजी के 'क्रिटिसिज्म' शब्द के समानार्थी रूप में 'आलोचना' का व्यवहार होता है। संस्कृत में प्रचलित 'टीका-व्याख्या' और 'काव्य-सिद्धान्तनिरूपण' के लिए भी आलोचना शब्द का प्रयोग कर लिया जाता है किन्तु आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का स्पष्ट मत है कि आधुनिक आलोचना, संस्कृत के काव्य-सिद्धान्तनिरूपण से स्वतंत्र चीज़ है। आलोचना का कार्य है किसी साहित्यक रचना की अच्छी तरह परीक्षा करके उसके रूप, गणु और अर्थव्यस्था का निर्धारण करना। डॉक्टर श्यामसुन्दर दास ने आलोचना की परिभाषा इन शब्दों में दी है: अर्थात् आलोचना का कर्तव्य साहित्यक कृति की विश्लेषण परक व्याख्या है। साहित्यकार जीवन और अनभुव के जिन तत्वों के संश्लेषण से साहित्य रचना करता है, आलोचना उन्हीं तत्वों का विश्लेषण करती है। साहित्य में जहाँ रागतत्व प्रधान है वहाँ आलोचना में बुद्धि तत्व। आलोचना ऐतिहासिक, सामाजिक, राजनीतिक परिस्थितियों और शिस्तयों का भी आकलन करती है और साहित्य पर उनके पड़ने वाले प्रभावों की विवेचना करती है। व्यक्तिगत रुचि के आधार पर किसी कृति की निन्दा या प्रशंसा करना आलोचना का धर्म नहीं है। कृति की व्याख्या और विश्लेषण के लिए आलोचना में पद्धति और प्रणाली का महत्त्व होता है। आलोचना करते समय आलोचक अपने व्यक्तिगत राग-द्वेष, रुचि-अरुचि से तभी बच सकता है जब पद्धति का अनुसरण करे, वह तभी वस्तुनिष्ठ होकर साहित्य के प्रति न्याय कर सकता है। इस दृष्टि से हिन्दी में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल को सर्वश्रेष्ठ आलोचक माना जाता है। .
देखें विजय कुमार और आलोचना
कवि
कवि वह है जो भावों को रसाभिषिक्त अभिव्यक्ति देता है और सामान्य अथवा स्पष्ट के परे गहन यथार्थ का वर्णन करता है। इसीलिये वैदिक काल में ऋषय: मन्त्रदृष्टार: कवय: क्रान्तदर्शिन: अर्थात् ऋषि को मन्त्रदृष्टा और कवि को क्रान्तदर्शी कहा गया है। "जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि" इस लोकोक्ति को एक दोहे के माध्यम से अभिव्यक्ति दी गयी है: "जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ, कवि पहुँचे तत्काल। दिन में कवि का काम क्या, निशि में करे कमाल।।" ('क्रान्त' कृत मुक्तकी से साभार) .
देखें विजय कुमार और कवि
१९४९
१९४९ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .
देखें विजय कुमार और १९४९
यह भी देखें
भारत के ओलम्पिक रजत पदक विजेता
- चरणजीत सिंह
- पी॰वी॰ सिंधु
- पृथीपाल सिंह मैनी
- राज्यवर्धन सिंह राठौड़
- लेस्ली क्लॉडियस
- साइखोम मीराबाई चानू
- सुशील कुमार (पहलवान)
भारतीय सैन्य अधिकारी
- अवतार सिंह चीमा
- उमर फ़ैयाज़ परे
- उमराव सिंह यादव
- कुलदीप सिंह चांदपुरी
- गगनदीप बक्शी
- गुरबचन सिंह सलारिया
- चेवांग रिंचेन
- जिन्सन जॉनसन
- दिव्या अजित कुमार
- देवेन्द्र पाल वत्स
- धनसिंह थापा
- नंद सिंह
- पद्मपाणि आचार्य
- फतेह सिंह (शूटर)
- बिक्रमजीत कंवरपाल
- भवानी सिंह
- मानवेन्द्र सिंह
- रणबीर सिंह (लेफ्टिनेंट जनरल)
- राज्यवर्धन सिंह राठौड़
- राम राघोबा राणे
- शैतान सिंह
- सौरभ कालिया
- हरि पाल सिंह अहलूवालिया
- होशियार सिंह
राजीव गांधी खेल रत्न के प्राप्तकर्ता
- अंजू बॉबी जॉर्ज
- अचंत शरत कमल
- अभिनव बिंद्रा
- कर्णम मल्लेश्वरी
- कुंजरानी देवी
- गगन नारंग
- गीत सेठी
- जीतू राय
- दीपा कर्मकार
- दीपा मलिक
- देवेन्द्र झाझड़िया
- धनराज पिल्ले
- नीरज चोपड़ा
- पंकज आडवाणी
- पीआर श्रीजेश
- पी॰वी॰ सिंधु
- पुल्लेला गोपीचंद
- मनिका बत्रा
- मरियप्पन थान्गावेलु
- महेंद्र सिंह धोनी
- मानवजीत सिंह सन्धू
- मिताली राज
- मैरी कॉम
- योगेश्वर दत्त
- राज्यवर्धन सिंह राठौड़
- रानी रामपाल
- रोहित शर्मा
- लिएंडर पेस
- विजेन्द्र सिंह
- विनेश फौगाट
- विराट कोहली
- विश्वनाथन आनंद
- सचिन तेंदुलकर
- सरदार सिंह
- साइखोम मीराबाई चानू
- साइना नेहवाल
- साक्षी मलिक
- सानिया मिर्ज़ा
- सुनील छेत्री
- सुशील कुमार (पहलवान)