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लोकार्ड सिद्धान्त

सूची लोकार्ड सिद्धान्त

लोकार्ड विनिमय सिद्धान्त न्यायालयिक विज्ञान का एक सिद्धान्त जिसे डॉ एडमोंड लोकार्ड ने १८७७-१९६६ में दिया था। यह सिद्धान्त दर्शाता है की अगर दो चीजें एक-दूसरे के संपर्क में आती हैं तो उन दोनों में आदान-प्रदान होता है। अगर दो चीज़े एक दुसरे के संपर्क में आई है तो उनमे पहली वस्तु का कुछ भाग दूसरी वस्तु के पास और दूसरी वस्तु का कुछ भाग पहले के पास जाना सामान्य बात है। और यह नियम हर एक वस्तु पर लागु होता है। लोकार्ड सिद्धान्त यह भी दर्शाता है की हर एक सबूत अपना निशान छोड़ता है। अगर कोई अपराधी किसी भी घटना स्थल पर जाता है तो वह उससे सतर्कता से या अनजाने में कुछ सुराग रह जाते हैं जो की उसके वहाँ होने का सबूत देते हैं। जैसे की घटनास्थल पर अपराधी के उंगलियों के निशान, उसके पाँव की छाप, जूतों पर लगी मिट्टी, या फिर घटनास्थल पर पाई जाने वाली वस्तुओं का अपराधी के कपड़ों से लगना।यह सब सुराग लोकार्ड सिद्धान्त को दर्शाते है। यह सभी भौतिक-शास्त्र से जड़े ऐसे पहलू हैं जो घटनास्थल से बरामद किए जाते हैं तो यह १००% सच्चाई बयान करते हैं। इन भौतिक-शास्त्रियों की मदद से ही अपराध के होने और अपराधी का पता लगाया जाता है। जब कोई न्यायालयिक वैज्ञानिक किसी भी घटनास्थल पर जाँच के लिए जाता है तो वह सबसे पहले वहाँ पर मौजूद भौतिक वस्तुओं को ही देखता है जिससे कि वह यह अनुमान लगा लेता है की जो भी कथित घटना हुई है वह सच है या झूठ और इसके साथ-साथ वह यह भी अनुमान लगा लेता है की अपराधी कौन हो सकता है। यह सब लोकार्ड एक्सचेंज प्रिंसिपल की सहायता से ही सम्भव है। .

2 संबंधों: न्यायिक विज्ञान, अंगुलि छाप

न्यायिक विज्ञान

अमेरिकी सेना के सीआईडी विभाग के लोग एक अपराध के घटना-स्थल की छानबीन करते हुए न्यायिक विज्ञान या न्यायालयिक विज्ञान (Forensic science) भिन्न-भिन्न प्रकार के विज्ञानों का उपयोग करके न्यायिक प्रक्रिया की सहायता करने वाले प्रश्नों का उत्तर देने वाला विज्ञान है। ये न्यायिक प्रश्न किसी अपराध से सम्बन्धित हो सकते हैं या किसी दीवानी (civil) मामले से जुड़े हो सकते हैं। न्यायालयीय विज्ञान मुख्यतः अपराध की जांच के लिए वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुप्रयोग से संबंधित है। फॉरेंसिक वैज्ञानिक अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से अपराध स्थल से एकत्र किए गए सुरागों को अदालत में प्रस्तुत करने के वास्ते स्वीकार्य सबूत के तौर पर इन्हें परिवर्तित करते हैं। यह प्रक्रिया अदालतों या कानूनी कार्यवाहियों में विज्ञान का प्रयोग या अनुप्रयोग है। फ़ॉरेंसिक वैज्ञानिक अपराध स्थल से एकत्र किए जाने वाले प्रभावित व्यक्ति के शारीरिक सबूतों का, विश्लेषण करते हैं तथा संदिग्ध व्यक्ति से संबंधित सबूतों से उसकी तुलना करते हैं और न्यायालय में विशेषज्ञ प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। इन सबूतों में रक्त के चिह्न, लार, शरीर का अन्य कोई तरल पदार्थ, बाल, उंगलियों के निशान, जूते तथा टायरों के निशान, विस्फोटक, जहर, रक्त और पेशाब के ऊतक आदि सम्मिलित हो सकते हैं। उनकी विशेषज्ञता इन सबूतों के प्रयोग से तथ्य निर्धारण करने में ही निहित होती है। उन्हें अपनी जांच की रिपोर्ट तैयार करनी पड़ती है तथा सबूत देने के लिए अदालत में पेश होना पड़ता है। वे अदालत में स्वीकार्य वैज्ञानिक सबूत उपलब्ध कराने के लिए पुलिस के साथ निकटता से काम करते हैं। .

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अंगुलि छाप

अंगुलि छाप पहचान के प्रयोजनों के लिए उंगलियों के निशान के अध्ययन को अंगुलि चिह्न अध्ययन (Dactylography / डेकटायलोग्राफी) कहा जाता है। मनुष्य के हाथों तथा पैरों के तलबों में उभरी तथा गहरी महीन रेखाएँ दृष्टिगत होती हैं। ये हल चलाए खेत की भाँति दिखतीं हैं। वैसे तो वे रेखाएँ इतनी सूक्ष्म होती हैं कि सामान्यत: इनकी ओर ध्यान भी नहीं जाता, किंतु इनके विशेष अध्ययन ने एक विज्ञान को जन्म दिया है जिसे अंगुलि-छाप-विज्ञान कहते हैं। इस विज्ञान में अंगुलियों के ऊपरी पोरों की उन्नत रेखाओं का विशेष महत्व है। कुछ सामान्य लक्षणों के आधार पर किए गए विश्लेषण के फलस्वरूप, इनसे बनने वाले आकार चार प्रकार के माने गए हैं: (1) शंख (लूप), (2) चक्र (व्होर्ल), (3) चाप (आर्च) तथा (4) मिश्रित (र्केपोजिट)। .

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