लोक कथाएँ किसी समाज /सभ्यता की वे कथाएँ हैं जो की मौखिक तौर पर उस समाज / सभ्यता में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जाती हैं | ये कथाएँ किसी समाज/जाति/संप्रदाय/सभ्यता के किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की होती हैं या केवल आम कथाएँ किसी सामान्य व्यक्ति की | इन कथाओं का मुख्य उद्देश्य सभ्यता /समाज के ज्ञान, समझ, नैतिक मूल्यों और जानकारी को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे पहुंचाना होता है | हर देश में अलग अलग तरह की लोक कथाएँ मौजूद हैं जिनसे ज्ञान और समझ को आगे बढ़ाया जाता है, चूंकि हर प्रदेश का वातावरण, बौद्धिक विकास,और पर्यावरण अलग अलग होता है अतः उसी प्रकार से उन कथाओं में बदलाव समभाव है | कई बार एक ही तरह की कथाएँ अलग अलग क्षेत्र में अलग अलग नामों से भी प्रचलित हो जाती है, क्यूकी कई यात्री वे कथाएँ अपने सुनकर समझकर अपने साथ ले जाते हैं और अपने समाज में पहुँचकर उसे अपने आम बोलचाल के तरीके से प्रदर्शित करते हैं, जिससे की एक ही कहाँ अलग अलग क्षेत्रों में मिलती है | .
छह वर्ष के पश्चात् ग्यारह या बारह वर्ष की शिक्षा को 'प्रारंभिक शिक्षा (प्राइमरी एजूकेशन या एलीमेंटरी एजुकेशन) या बालशिक्षा (चाइल्ड एजुकेशन) कहते हैं। संसार के सभी प्रगतिशील देशों में प्रारंभिक शिक्षा अनिवार्य है। अत: कहीं छह वर्ष के पश्चात् और कहीं सात वर्ष से प्रारंभिक विद्यालयों में शिक्षा आरंभ की जाती है जो प्राय: पाँच वर्षों तक चलती है। तत्पश्चात् बच्चे माध्यमिक शिक्षा में प्रविष्ट होते हैं। इसके पहले के शिक्षा के स्तर को शिशुशिक्षा कहते हैं। .