लेश्या की परिभाषा कृष्ण आदि छः प्रकार के पुद्गल द्रव्यों के सहयोग से स्फटिक के परिणमन की तरह होने वाला आत्म-परिणाम लेश्या है।(उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य बृहद्वृत्ति पृष्ठ ६५६) स्वामी श्रीमन्नेमीचन्द्रसैद्धांतिचक्रवर्ती जी ने गोम्मटसारजी जीवकांड में बताया है कि:- लिपंइ अप्पीकीरइ एदीए णियअपुण्णपुण्णं च ! जीवोत्ति होदि लेस्सा लेस्सागुणजाणयक्खादा !!४८८!! अर्थात, - जो लिम्पन करती है, याने को कर्मों को आत्मा से लिप्त करती है, वह लेश्या है ! - जिसके द्वारा आत्मा पुण्य-पाप से अपने को लिप्त करती है, वह लेश्या हैं ! - जो कर्म-स्कंध से आत्मा को लिप्त करता है, वह लेश्या है ! जैसे, मिट्टी,गेरू आदि के द्वारा दीवार रंगी जाती है, उसी प्रकार शुभ-अशुभ भाव रूप लेप के द्वारा आत्मा का परिणाम लिप्त किया जाता है !!! यह भी कह सकते हैं कि:- मनुष्य के अच्छे-बुरे भावों को लेश्या कहते हैं ! आगे जिस प्रकार थर्मामीटर से शरीर का ताप नाप जाता है, उसी प्रकार "भावों के द्वारा" आत्मा का ताप अर्थात उसकी लेश्या का पता चलता है !!! - कषायों के उदय से अनुरंजित मन-वचन-काय की प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं !!! श्रेणी:जैन दर्शन.
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