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लाउडस्पीकर

सूची लाउडस्पीकर

एक सस्ता, कम विश्वस्तता 3½ इंच स्पीकर, आमतौर पर छोटे रेडियो में पाया जाता है। एक चतुर्मार्गी, उच्च विश्वस्तता लाउडस्पीकर सिस्टम. एक लाउडस्पीकर (या "स्पीकर") एक विद्युत-ध्वनिक ऊर्जा परिवर्तित्र है, जो वैद्युत संकेतों को ध्वनि में परिवर्तित करता है। स्पीकर वैद्युत संकेतों के परिवर्तनों के अनुसार चलता है तथा वायु या जल के माध्यम से ध्वनि तरंगों का संचार करवाता है। श्रवण क्षेत्रों की ध्वनिकी के बाद, लाउडस्पीकर (तथा अन्य विद्युत-ध्वनि ऊर्जा परिवर्तित्र) आधुनिक श्रव्य प्रणालियों में सर्वाधिक परिवर्तनशील तत्व हैं तथा ध्वनि प्रणालियों की तुलना करते समय प्रायः यही सर्वाधिक विरूपणों और श्रव्य असमानताओं के लिए उत्तरदायी होते हैं। .

35 संबंधों: चाँदी, चुम्बक, चीन, ऐलेक्ज़ैन्डर ग्राहम बेल, झाग, ताम्र, थॉमस ऐल्वा एडीसन, द्विभूयाति जारेय, दूरभाष, ध्वनि, नियोडाइमियम, निकोला टेस्ला, प्रतिरोधक, प्रवर्धक, प्रकाशीय तन्तु, प्लाज़्मा (भौतिकी), फेराइट, बाँस, बैकेलाइट, बेल प्रयोगशाला, रेडियो आवृत्ति, संधारित्र, संकेत प्रसंस्करण, सीसा, हिलियम, घड़ी, विद्युत, विद्युत चुम्बक, विद्युत प्रतिरोध, विद्युत प्रदायी, विवर्तन, ग्रामोफ़ोन, ओज़ोन, इलैक्ट्रॉनिक्स, अनुनाद

चाँदी

चाँदी एक चमकीली व बहुमूल्य धातु है। इसका परमाणु क्रमांक 47 व परमाणु द्रव्यमान 107.9 है यह एक तन्य धातु है,अतः इसका उपयोग तार व आभूषण बनाने में होता है। इसका परमाण्विक इलेक्ट्रोन विन्यास-1s22s22p63s23p63d104s24p64d105s1 है। चाँदी सर्वाधिक विद्युतचालक व ऊष्माचालक धातु है। इसमे जल व कार्बन डाई ऑक्साइड व सल्फर डाई ऑक्साइड से अभिक्रिया से जंग उत्पन्न होती है, जो काले रंग की होती है। .

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चुम्बक

एक छड़ चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा आकर्षित हुई लौह-धुरि (iron-filings) एक परिनालिका (सॉलिनॉयड) द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय बल रेखाएँ फेराइट चुम्बक चुम्बक (मैग्नेट्) वह पदार्थ या वस्तु है जो चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। चुम्बकीय क्षेत्र अदृश्य होता है और चुम्बक का प्रमुख गुण - आस-पास की चुम्बकीय पदार्थों को अपनी ओर खींचने एवं दूसरे चुम्बकों को आकर्षित या प्रतिकर्षित करने का गुण, इसी के कारण होता है। .

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चीन

---- right चीन विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है जो एशियाई महाद्वीप के पू‍र्व में स्थित है। चीन की सभ्यता एवं संस्कृति छठी शताब्दी से भी पुरानी है। चीन की लिखित भाषा प्रणाली विश्व की सबसे पुरानी है जो आज तक उपयोग में लायी जा रही है और जो कई आविष्कारों का स्रोत भी है। ब्रिटिश विद्वान और जीव-रसायन शास्त्री जोसफ नीधम ने प्राचीन चीन के चार महान अविष्कार बताये जो हैं:- कागज़, कम्पास, बारूद और मुद्रण। ऐतिहासिक रूप से चीनी संस्कृति का प्रभाव पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों पर रहा है और चीनी धर्म, रिवाज़ और लेखन प्रणाली को इन देशों में अलग-अलग स्तर तक अपनाया गया है। चीन में प्रथम मानवीय उपस्थिति के प्रमाण झोऊ कोऊ दियन गुफा के समीप मिलते हैं और जो होमो इरेक्टस के प्रथम नमूने भी है जिसे हम 'पेकिंग मानव' के नाम से जानते हैं। अनुमान है कि ये इस क्षेत्र में ३,००,००० से ५,००,००० वर्ष पूर्व यहाँ रहते थे और कुछ शोधों से ये महत्वपूर्ण जानकारी भी मिली है कि पेकिंग मानव आग जलाने की और उसे नियंत्रित करने की कला जानते थे। चीन के गृह युद्ध के कारण इसके दो भाग हो गये - (१) जनवादी गणराज्य चीन जो मुख्य चीनी भूभाग पर स्थापित समाजवादी सरकार द्वारा शासित क्षेत्रों को कहते हैं। इसके अन्तर्गत चीन का बहुतायत भाग आता है। (२) चीनी गणराज्य - जो मुख्य भूमि से हटकर ताईवान सहित कुछ अन्य द्वीपों से बना देश है। इसका मुख्यालय ताइवान है। चीन की आबादी दुनिया में सर्वाधिक है। प्राचीन चीन मानव सभ्यता के सबसे पुरानी शरणस्थलियों में से एक है। वैज्ञानिक कार्बन डेटिंग के अनुसार यहाँ पर मानव २२ लाख से २५ लाख वर्ष पहले आये थे। .

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ऐलेक्ज़ैन्डर ग्राहम बेल

अलेक्ज़ांडर ग्राहम बेल अलेक्जेंडर ग्राहम बेल (Alexander Graham Bell) (3 मार्च 1847 – 2 अगस्त 1922) को पूरी दुनिया आमतौर पर टेलीफोन के आविष्कारक के रूप में ही ज्यादा जानती है। बहुत कम लोग ही यह जानते हैं कि ग्राहम बेल ने न केवल टेलीफोन, बल्कि कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में कई और भी उपयोगी आविष्कार किए हैं। ऑप्टिकल-फाइबर सिस्टम, फोटोफोन, बेल और डेसिबॅल यूनिट, मेटल-डिटेक्टर आदि के आविष्कार का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। ये सभी ऐसी तकनीक पर आधारित हैं, जिसके बिना संचार-क्रंति की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। .

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झाग

सागर का झाग, पास से देखने पर फेनित एल्युमिनियम झाग या फेन वह वस्तु होती है जो द्रव या ठोस में गैस के बुलबुलों को फँसाने से प्राप्त होती है। साबुन को पानी में मिलाने से बना झाग (फ़ोम) इसका सबसे आम उदाहरण है। पर यह शब्द इस जैसी अन्य घटनाओं के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है जैसे क्वांटम फेन। द्रव के बने फेन को कलिल (कोलाइड) का एक प्रकार भी माना जा सकता है। जब ऐसे द्रव को जमा दिया जाता है तो ठोस बनता है जो फेन का यथावत हिमीकृत रूप होता है। ऐसे ठोस फेन के उदाहरणों में फेनित अल्युमीनियम का नाम लिया जा सकता है (चित्र दाहिनी ओर दिया गया है)। ठोस में गैस के बुलबुलों से बने झाग के एक अन्य उदाहरण के रूप में खाने की वस्तु पाव (ब्रेड) बहुधा प्रयुक्त होती है। फ़ोम रासायनिक कारखानों का एक आम सह-उत्पाद है जो अक्सर अवांछित होता है। सिलिकोन तेल एक साधारण विफेनक है जो फेन को अवांछित तरल में बनने से रोकता है। 20 वीं सदी की शुरुआत से, विशेष रूप से निर्मित ठोस फेन, विभिन्न प्रकार के प्रयोग में आने शुरु हो गये थे। इन फेनों के कम घनत्व के कारण इन्हें उष्मा कुचालक और प्लवन उपकरणों बनाने में प्रयुक्त किया गया और इनके कम भार और संपीडकता के चलते यह पैकिंग और भराई पदार्थ के रूप में आदर्श बन गये। कुछ तरल फेन को, अग्नि रोधक फेन भी कहते हैं और इनका प्रयोग आग बुझाने, विशेष रूप से तेल की आग को बुझाने में किया जाता है। .

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ताम्र

तांबा (ताम्र) एक भौतिक तत्त्व है। इसका संकेत Cu (अंग्रेज़ी - Copper) है। इसकी परमाणु संख्या 29 और परमाणु भार 63.5 है। यह एक तन्य धातु है जिसका प्रयोग विद्युत के चालक के रूप में प्रधानता से किया जाता है। मानव सभ्यता के इतिहास में तांबे का एक प्रमुख स्थान है क्योंकि प्राचीन काल में मानव द्वारा सबसे पहले प्रयुक्त धातुओं और मिश्रधातुओं में तांबा और कांसे (जो कि तांबे और टिन से मिलकर बनता है) का नाम आता है। .

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थॉमस ऐल्वा एडीसन

थॉमस एल्वा एडिसन (११ फ़रवरी १८४७ - १८ अक्टूबर १९३१) महान अमरीकी आविष्कारक एवं व्यवसायी थे। एडिसन ने फोनोग्राफ एवं विद्युत बल्ब सहित अनेकों युक्तियाँ विकसित कीं जिनसे संसार भर में लोगों के जीवन में भारी बदलाव आये। "मेन्लो पार्क के जादूगर" के नाम से प्रख्यात, भारी मात्रा में उत्पादन के सिद्धान्त एवं विशाल टीम को लगाकर अन्वेषण-कार्य को आजमाने वाले वे पहले अनुसंधानकर्ता थे। इसलिये एडिसन को ही प्रथम औद्योगिक प्रयोगशाला स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। अमेरिका में अकेले १०९३ पेटेन्ट कराने वाले एडिसन विश्व के सबसे महान आविष्कारकों में गिने जाते हैं। .

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द्विभूयाति जारेय

द्विभूयाति जारेय (नाइट्रस जारेय, नाइट्रस ऑक्साइड), जिसे प्रायह हैपी गैस, लाफिंग गैस, या NOX कहा जाता है, एक रासायनिक अकार्बनिक यौगिक है, जिसका रासायनिक सूत्र भू२जा है। सामान्य तापमान पर यह रंगहीन, अज्वलनशील गैर एक मोहक गंध और हल्के मीठे स्वाद लिये होती है। इसका प्रयोग शल्य क्रिया और दंत चिकित्सा में इसकी एनेस्थीसिया और एनल्जेसिक प्रभाव के कारण होता है। श्रेणी:नाइट्रोजन यौगिक श्रेणी:एनेस्थीसिया श्रेणी:ग्रीनहाउस गैसें श्रेणी:रॉकेट ऑक्सीकारक.

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दूरभाष

टच टोन, एकल लाइन, व्यापारिक दूरभाष दूरभाष या टेलीफोन, दूरसंचार का एक उपकरण है। यह दो या कभी-कभी अधिक व्यक्तियों के बीच बातचीत करने के काम आता है। विश्व भर में आजकल यह सर्वाधिक प्रचलित घरेलू उपकरण है। .

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ध्वनि

ड्रम की झिल्ली में कंपन पैदा होता होता जो जो हवा के सम्पर्क में आकर ध्वनि तरंगें पैदा करती है मानव एवं अन्य जन्तु ध्वनि को कैसे सुनते हैं? -- ('''नीला''': ध्वनि तरंग, '''लाल''': कान का पर्दा, '''पीला''': कान की वह मेकेनिज्म जो ध्वनि को संकेतों में बदल देती है। '''हरा''': श्रवण तंत्रिकाएँ, '''नीललोहित''' (पर्पल): ध्वनि संकेत का आवृति स्पेक्ट्रम, '''नारंगी''': तंत्रिका में गया संकेत) ध्वनि (Sound) एक प्रकार का कम्पन या विक्षोभ है जो किसी ठोस, द्रव या गैस से होकर संचारित होती है। किन्तु मुख्य रूप से उन कम्पनों को ही ध्वनि कहते हैं जो मानव के कान (Ear) से सुनायी पडती हैं। .

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नियोडाइमियम

नियोडाइमियम (Neodymium) एक रासायनिक तत्व है जिसका प्रतीक Nd है। इसका का परमाणु क्रमांक 60 और परमाणु भार 144.242 है। आवर्त सारणी में इसे लेन्थेनाइड तत्त्वों के साथ में रखा गया है। ऑस्ट्रिया के वैज्ञानिक 'वेल्स बैच' ने 1885 में इसकी खोज की थी। इसका गलनांक 934 डिग्री सेल्सियस तथा क्वथनांक 3480 डिग्री सेल्सियस है। श्रेणी:रासायनिक तत्व श्रेणी:लैन्थनाइड.

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निकोला टेस्ला

निकोला टेस्ला (अंग्रेजी: Nikola Tesla; सर्बियाई सिरिलिक: Никола Тесла, 10 जुलाई 1856 - 7 जनवरी 1943) एक सर्बियाई अमेरिकी आविष्कारक, भौतिक विज्ञानी, यांत्रिक अभियन्ता, विद्युत अभियन्ता और भविष्यवादी थे। टेस्ला की प्रसिद्धि उनके आधुनिक प्रत्यावर्ती धारा (एसी) विद्युत आपूर्ति प्रणाली के क्षेत्र में दिये गये अभूतपूर्व योगदान के कारण है। टेस्ला के विभिन्न पेटेंट और सैद्धांतिक कार्य, बेतार संचार और रेडियो के विकास का आधार साबित हुये हैं। वैद्युत चुंबकत्व के क्षेत्र में किये गये उनके कई क्रांतिकारी विकास कार्य, माइकल फैराडे के विद्युत प्रौद्योगिकी के सिद्धांतों पर आधारित थे। .

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प्रतिरोधक

नियत मान वाले कुछ प्रतिरोधक प्रतिरोधक (resistor) दो सिरों वाला वैद्युत अवयव है जिसके सिरों के बीच विभवान्तर उससे बहने वाली तात्कालिक धारा के समानुपाती (या लगभग समानुपाती) होता है। ये विभिन्न आकार-प्रकार के होते हैं। इनसे होकर धारा बहने पर इनके अन्दर उष्मा उत्पन्न होती है। कुछ प्रतिरोधक ओम के नियम का पालन करते हैं जिसका अर्थ है कि -; V .

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प्रवर्धक

एक सामान्य प्रवर्धक बक्सा जिसमें इनपुट और आउटपुट के लिए बाहर पिन दिए होते हैं। प्रवर्धक और रिपीटर जो संकेत की शक्ति को बढ़ाकर उन्हें 'उपयोग के लायक' बनाते हैं। प्रवर्धक या एम्प्लिफायर (amplifier) ऐसी युक्ति है जो किसी विद्युत संकेत का मान (अम्प्लीच्यूड) बदल दे (प्रायः संकेत का मान बड़ा करने की आवश्यकता अधिक पड़ती है।) विद्युत संकेत विभवान्तर (वोल्टेज) या धारा (करेंट) के रूप में हो सकते है। आजकल सामान्य प्रचलन में प्रवर्धक से आशय किसी 'इलेक्ट्रॉनिक प्रवर्धक' से ही होता है। .

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प्रकाशीय तन्तु

प्रकाशीय तंतु एक TOSLINK प्रकाश तंतु श्रव्य केबल एक सिरे से प्रदीप्त किया हुआ है प्रकाशीय तंतु (या केवल तंतु) कांच या प्लास्टिक से निर्मित एक तंतु होता है जिसके लम्बाई की दिशा में प्रकाश का संचरण हो सकता है। आजकल इनका संचार में खूब प्रयोग हो रहा है क्योंकि इनकी सहायता से अधिक दूरी तक बिना संकेत को परिवर्धित किये लेजाया जा सकता है। ये किसी विद्युतचुम्बकीय इन्टरफेरेन्स से भी बहुत कम प्रभावित होते है। .

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प्लाज़्मा (भौतिकी)

प्लाज्मा दीप भौतिकी और रसायन शास्त्र में, प्लाज्मा आंशिक रूप से आयनीकृत एक गैस है, जिसमें इलेक्ट्रॉनों का एक निश्चित अनुपात किसी परमाणु या अणु के साथ बंधे होने के बजाय स्वतंत्र होता है। प्लाज्मा में धनावेश और ऋणावेश की स्वतंत्र रूप से गमन करने की क्षमता प्लाज्मा को विद्युत चालक बनाती है जिसके परिणामस्वरूप यह दृढ़ता से विद्युत चुम्बकीय क्षेत्रों से प्रतिक्रिया कर पाता है। प्लाज्मा के गुण ठोस, द्रव या गैस के गुणों से काफी विपरीत हैं और इसलिए इसे पदार्थ की एक भिन्न अवस्था माना जाता है। प्लाज्मा आमतौर पर, एक तटस्थ-गैस के बादलों का रूप ले लेता है, जैसे सितारों में। गैस की तरह प्लाज्मा का कोई निश्चित आकार या निश्चित आयतन नहीं होता जब तक इसे किसी पात्र में बंद न कर दिया जाए लेकिन गैस के विपरीत किसी चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव में यह एक फिलामेंट, पुंज या दोहरी परत जैसी संरचनाओं का निर्माण करता है। प्लाज़्मा ग्लोब एक सजावटी वस्तु होती है, जिसमें एक कांच के गोले में कई गैसों के मिश्रण में इलेक्ट्रोड द्वारा गोले तक कई रंगों की किरणें चलती दिखाई देती हैं। प्लाज्मा की पहचान सबसे पहले एक क्रूक्स नली में १८७९ मे सर विलियम क्रूक्स द्वारा की गई थी उन्होंने इसे “चमकते पदार्थ” का नाम दिया था। क्रूक्स नली की प्रकृति "कैथोड रे" की पहचान इसके बाद ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी सर जे जे थॉमसन द्वारा १८९७ में द्वारा की गयी। १९२८ में इरविंग लैंगम्युइर ने इसे प्लाज्मा नाम दिया, शायद इसने उन्हें रक्त प्लाविका (प्लाज्मा) की याद दिलाई थी। .

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फेराइट

फेराइत के बने स्थायी चुम्बक फेराइट (ferrite) सिरामिक चुम्बकीय पदार्थ हैं। इनकी वैद्युत प्रतिरोधकता (लगभग 10E6 Ohm-m) बहुत अधिक होती है। इस कारण अधिक आवृत्ति पर काम करने वाले ट्रान्सफार्मर एवं प्रेरकत्व (चोक) के निर्माण में इनका उपयोग किया जाता है क्योंकि अधिक प्रतिरोधकता के कारण इनमें भंवर-धारा-हानियाँ बहुत कम होतीं हैं। इनके स्थायी चुम्बक भी बनाये जाते हैं। .

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बाँस

बाँस, ग्रामिनीई (Gramineae) कुल की एक अत्यंत उपयोगी घास है, जो भारत के प्रत्येक क्षेत्र में पाई जाती है। बाँस एक सामूहिक शब्द है, जिसमें अनेक जातियाँ सम्मिलित हैं। मुख्य जातियाँ, बैंब्यूसा (Bambusa), डेंड्रोकेलैमस (नर बाँस) (Dendrocalamus) आदि हैं। बैंब्यूसा शब्द मराठी बैंबू का लैटिन नाम है। इसके लगभग २४ वंश भारत में पाए जाते हैं। बाँस एक सपुष्पक, आवृतबीजी, एक बीजपत्री पोएसी कुल का पादप है। इसके परिवार के अन्य महत्वपूर्ण सदस्य दूब, गेहूँ, मक्का, जौ और धान हैं। यह पृथ्वी पर सबसे तेज बढ़ने वाला काष्ठीय पौधा है। इसकी कुछ प्रजातियाँ एक दिन (२४ घंटे) में १२१ सेंटीमीटर (४७.६ इंच) तक बढ़ जाती हैं। थोड़े समय के लिए ही सही पर कभी-कभी तो इसके बढ़ने की रफ्तार १ मीटर (३९ मीटर) प्रति घंटा तक पहुँच जाती है। इसका तना, लम्बा, पर्वसन्धि युक्त, प्रायः खोखला एवं शाखान्वित होता है। तने को निचले गांठों से अपस्थानिक जड़े निकलती है। तने पर स्पष्ट पर्व एवं पर्वसन्धियाँ रहती हैं। पर्वसन्धियाँ ठोस एवं खोखली होती हैं। इस प्रकार के तने को सन्धि-स्तम्भ कहते हैं। इसकी जड़े अस्थानिक एवं रेशेदार होती है। इसकी पत्तियाँ सरल होती हैं, इनके शीर्ष भाग भाले के समान नुकीले होते हैं। पत्तियाँ वृन्त युक्त होती हैं तथा इनमें सामानान्तर विन्यास होता है। यह पौधा अपने जीवन में एक बार ही फल धारण करता है। फूल सफेद आता है। पश्चिमी एशिया एवं दक्षिण-पश्चिमी एशिया में बाँस एक महत्वपूर्ण पौधा है। इसका आर्थिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। इससे घर तो बनाए ही जाते हैं, यह भोजन का भी स्रोत है। सौ ग्राम बाँस के बीज में ६०.३६ ग्राम कार्बोहाइड्रेट और २६५.६ किलो कैलोरी ऊर्जा रहती है। इतने अधिक कार्बोहाइड्रेट और इतनी अधिक ऊर्जा वाला कोई भी पदार्थ स्वास्थ्यवर्धक अवश्य होगा। ७० से अधिक वंशो वाले बाँस की १००० से अधिक प्रजातियाँ है। ठंडे पहाड़ी प्रदेशों से लेकर उष्ण कटिबंधों तक, संपूर्ण पूर्वी एशिया में, ५०० उत्तरी अक्षांश से लेकर उत्तरी आस्ट्रेलिया तथा पश्चिम में, भारत तथा हिमालय में, अफ्रीका के उपसहारा क्षेत्रों तथा अमेरिका में दक्षिण-पूर्व अमेरिका से लेकर अर्जेन्टीना एवं चिली में (४७० दक्षिण अक्षांश) तक बाँस के वन पाए जाते हैं। बाँस की खेती कर कोई भी व्यक्ति लखपति बन सकता है। एक बार बाँस खेत में लगा दिया जायें तो ५ साल बाद वह उपज देने लगता है। अन्य फसलों पर सूखे एवं कीट बीमारियो का प्रकोप हो सकता है। जिसके कारण किसान को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। लेकिन बाँस एक ऐसी फसल है जिस पर सूखे एवं वर्षा का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है। बाँस का पेड़ अन्य पेड़ों की अपेक्षा ३० प्रतिशत अधिक ऑक्सीजन छोड़ता और कार्बन डाईऑक्साइड खींचता है साथ ही यह पीपल के पेड़ की तरह दिन में कार्बन डाईऑक्साइड खींचता है और रात में आक्सीजन छोड़ता है। .

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बैकेलाइट

बैकेलाइट का पेपर नाइफ़, १९२० बैकेलाइट, या पॉलीऑक्सीबेन्ज़ाइलमेथाइलीनग्लाइकोऐनहाइड्राइड, एक आरंभिक प्लास्टिक था। यह थर्मोसेटिंग फिनॉल फॉर्मैल्डिहाइड रेसिन होता है, जो फिनॉल के फॉर्मैल्डिहाइड से एलिमिनेशन प्रतिक्रिया पर बनता है। इसकी खोज १९०७-१९०९ के बीच बेल्जियम के रसायनज्ञ लियो बैकेलैंड ने की थी। श्रेणी:थर्मोसेटिंग प्लास्टिक.

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बेल प्रयोगशाला

मुर्रे हिल्स, न्यू जर्सी स्थित बेल प्रयोगशाला बेल्ल प्रयोगशाला (Bell Laboratoris) एक अनुसंधान एवं विकास की प्रयोगशाला है। इसे "बेल्ल लैब्स" भी कहते हैं। पहले इसे "एटी&टी बेल लैबोरेटरीज" के नाम से और "बेल टेलीफोन लैबोरेटरीज" के नाम से जाना जाता था। इस समय यह अल्काटेल-लुसेन्ट के स्वामित्व में है। इसके पहले यह अमेरिकन टेलीफोन एवं टेलीग्राफ कम्पनी (AT&T) के स्वामित्व में थी। बेल प्रयोगशाला का मुख्यालय मुर्रे हिल्ल, न्यू जर्सी में है। इसके अनुसंधान एवं विकास केन्द्र विश्व भर में फैले हुए हैं। .

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रेडियो आवृत्ति

3 किलोहर्ट्ज से 300 गीगा हर्ट्ज़ की आवृत्ति वाली तरंगों को रेडियो आवृत्ति (RF) कहते हैं। रेडियो तरंगें, रेडियो आवृत्ति की तरंगे ही होतीं हैं। रेडियो आवृत्ति के कम्पन - यांत्रिक कम्पन और वैद्युत कम्पन दोनों हो सकते हैं किन्तु प्रायः रेडियो आवृत्ति से आशय विद्युत कम्पन से ही होता है न कि यांत्रिक कम्पन से। .

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संधारित्र

विभिन्न प्रकार के आधुनिक संधारित्र समान्तर प्लेट संधारित्र का एक सरल रूप संधारित्र या कैपेसिटर (Capacitor), विद्युत परिपथ में प्रयुक्त होने वाला दो सिरों वाला एक प्रमुख अवयव है। यदि दो या दो से अधिक चालकों को एक विद्युत्रोधी माध्यम द्वारा अलग करके समीप रखा जाए, तो यह व्यवस्था संधारित्र कहलाती है। इन चालकों पर बराबर तथा विपरीत आवेश होते हैं। यदि संधारित्र को एक बैटरी से जोड़ा जाए, तो इसमें से धारा का प्रवाह नहीं होगा, परंतु इसकी प्लेटों पर बराबर मात्रा में घनात्मक एवं ऋणात्मक आवेश संचय हो जाएँगे। विद्युत् संधारित्र का उपयोग विद्युत् आवेश, अथवा स्थिर वैद्युत उर्जा, का संचय करने के लिए तथा वैद्युत फिल्टर, स्नबर (शक्ति इलेक्ट्रॉनिकी) आदि में होता है। संधारित्र में धातु की दो प्लेटें होतीं हैं जिनके बीच के स्थान में कोई कुचालक डाइएलेक्ट्रिक पदार्थ (जैसे कागज, पॉलीथीन, माइका आदि) भरा होता है। संधारित्र के प्लेटों के बीच धारा का प्रवाह तभी होता है जब इसके दोनों प्लेटों के बीच का विभवान्तर समय के साथ बदले। इस कारण नियत डीसी विभवान्तर लगाने पर स्थायी अवस्था में संधारित्र में कोई धारा नहीं बहती। किन्तु संधारित्र के दोनो सिरों के बीच प्रत्यावर्ती विभवान्तर लगाने पर उसके प्लेटों पर संचित आवेश कम या अधिक होता रहता है जिसके कारण वाह्य परिपथ में धारा बहती है। संधारित्र से होकर डीसी धारा नही बह सकती। संधारित्र की धारा और उसके प्लेटों के बीच में विभवान्तर का सम्बन्ध निम्नांकित समीकरण से दिया जाता है- जहाँ: .

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संकेत प्रसंस्करण

संकेत प्रक्रमण (सिग्नल प्रोसेसिंग) यद्यपि संकेत गैर-विद्युत प्रकृति के भी हो सकते हैं किन्तु अधिकांश संकेत विद्युत संकेत होते हैं या उन्हें संवेदक (सेंसर), संसूचक (डिटेक्टर) या परिवर्तक (ट्रन्स्ड्यूसर) की मदद से विद्युत स्वरूप में बदल दिया जाता है। इसके बाद विद्युत संकेतों को अधिक उपयोगी बनाने के लिये उन्हें अनेक प्रकार से परिवर्तित एवं संस्कारित किया जाता है। इस क्रिया को संकेत प्रसंस्करण (Signal processing) कहते हैं। .

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सीसा

विद्युत अपघटन द्वारा शुद्ध किया हुआ सीस; १ घन सेमी से घन के साथ (तुलना के लिए) सीस, सीसा या लेड (अंग्रेजी: Lead, संकेत: Pb लैटिन शब्द प्लंबम / Plumbum से) एक धातु एवं तत्त्व है। काटने पर यह नीलिमा लिए सफ़ेद होता है, लेकिन हवा का स्पर्श होने पर स्लेटी हो जाता है। इसे इमारतें बनाने, विद्युत कोषों, बंदूक की गोलियाँ और वजन बनाने में प्रयुक्त किया जाता है। यह सोल्डर में भी मौजूद होता है। यह सबसे घना स्थिर तत्त्व है। यह एक पोस्ट-ट्रांज़िशन धातु है। इसका परमाणु क्रमांक ८२, परमाणु भार २०७.२१, घनत्व ११.३६, गलनांक ३,२७.४ डिग्री सें., क्वथनांक १६२०डिग्री से.

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हिलियम

तरलीकृत हीलियम शुद्ध हीलियम से भरी गैस डिस्चार्ज ट्यूब हिलियम (Helium) एक रासायनिक तत्त्व है जो प्रायः गैसीय अवस्था में रहता है। यह एक निष्क्रिय गैस या नोबेल गैस (Noble gas) है तथा रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन, विष-हीन (नॉन-टॉक्सिक) भी है। इसका परमाणु क्रमांक २ है। सभी तत्वों में इसका क्वथनांक (boiling point) एवं गलनांक (melting point) सबसे कम है। द्रव हिलियम का प्रयोग पदार्थों को अत्यन्त कम ताप तक ठण्डा करने के लिये किया जाता है; जैसे अतिचालक तारों को १.९ डिग्री केल्विन तक ठण्डा करने के लिये। हीलियम अक्रिय गैसों का एक प्रमुख सदस्य है। इसका संकेत He, परमाणुभार ४, परमाणुसंख्या २, घनत्व ०.१७८५, क्रांतिक ताप -२६७.९०० और क्रांतिक दबाव २ २६ वायुमंडल, क्वथनांक -२६८.९० सें.

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घड़ी

एक घड़ी घड़ी वह यंत्र है जो संपूर्ण स्वयंचालित प्रणाली द्वारा किसी न किसी रूप में वर्तमान समय को प्रदर्शित करती है। घड़ियाँ कई सिद्धान्तों से बनायी जाती हैं। जैसे धूप घड़ी, यांत्रिक घड़ी, एलेक्ट्रॉनिक घड़ी आदि अधिकतर घड़ियों में नियमित रूप से आवर्तक (recurring) क्रियाएँ उत्पन्न करने की स्वयंचालित व्यवस्था होती है, जैसे लोलक का दोलन, सर्पिल कमानियों (spiral springs) तथा संतुलन चक्रों (balancewheels) को दोलन, दाबविद्युत् मणिभों (piezo-electric crystals) का दोलन, अथवा उच्च आवृत्तिवाले संकेतों की परमाणुओं की मूलअवस्था की अतिसूक्ष्म संरचना (hyperfine structure) से तुलना इत्यादि। प्राचीन काल में धूप के कारण पड़नेवाली किसी वृक्ष अथवा अन्य स्थिर वस्तु की छाया के द्वारा समय के अनुमान किया जाता था। ऐसी धूपधड़ियों का प्रचलन अत्यंत प्राचीन काल से होता आ रहा है जिनमें आकाश में सूर्य के भ्रमण के करण किसी पत्थर या लोहे के स्थिर टुकड़े की परछाई की गति में होनेवाले परिवर्तन के द्वारा "घड़ी" या "प्रहर" का अनुमान किया जाता था। बदली के दिनों में, अथवा रात में, समय जानने के लिय जल घड़ी का आविष्कार चीन देशवासियों ने लगभग तीन हजार वर्ष पहले किया था। कालांतर में यह विधि मिस्रियों, यूनानियों एवं रोमनों को भी ज्ञात हुई। जलघड़ी में दो पात्रों का प्रयोग होता था। एक पात्र में पानी भर दिया जाता या और उसकी तली में छेद कर दिया जाता था। उसमें से थोड़ा थोड़ा जल नियंत्रित बूँदों के रूप में नीचे रखे हुए दूसरे पात्र में गिरता था। इस पात्र में एकत्र जल की मात्रा नाप कर समय अनुमान किया जाता था। बाद में पानी के स्थान पर बालू का प्रयोग होने लगा। इंग्लैंड के ऐल्फ्रेड महान ने मोमबत्ती द्वारा समय का ज्ञान करने की विधि आविष्कृत की। उसने एक मोमबत्ती पर, लंबाई की ओर समान दूरियों पर चिह्र अंकित कर दिए थे। प्रत्येक चिह्र तक मोमबत्ती के जलने पर निश्चित समय व्यतीत होने का ज्ञान होता था। यांत्रिक घड़ियों में अनेक पहिए होते हैं, जो किसी कमानी, लटकते हुए भार अथवा अन्य उपायों द्वारा चलाए जाते हैं। इन्हें किसी दोलनशील व्यवस्था द्वारा इस प्रकार निंयत्रित किया जाता है कि इनकी गति समांग (uniform) होती है। इनके साथ ही इसमें घंटी या घंटा (gong) भी होता है, जो निश्चित अवधियों पर स्वयं ही बज उठता है और समय की सूचना देता है। .

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विद्युत

वायुमण्डलीय विद्युत विद्युत आवेशों के मौजूदगी और बहाव से जुड़े भौतिक परिघटनाओं के समुच्चय को विद्युत (Electricity) कहा जाता है। विद्युत से अनेक जानी-मानी घटनाएं जुड़ी है जैसे कि तडित, स्थैतिक विद्युत, विद्युतचुम्बकीय प्रेरण, तथा विद्युत धारा। इसके अतिरिक्त, विद्युत के द्वारा ही वैद्युतचुम्बकीय तरंगो (जैसे रेडियो तरंग) का सृजन एवं प्राप्ति सम्भव होता है? विद्युत के साथ चुम्बकत्व जुड़ी हुई घटना है। विद्युत आवेश वैद्युतचुम्बकीय क्षेत्र पैदा करते हैं। विद्युत क्षेत्र में रखे विद्युत आवेशों पर बल लगता है। समस्त विद्युत का आधार इलेक्ट्रॉन हैं। इलेक्ट्रानों के हस्तानान्तरण के कारण ही कोई वस्तु आवेशित होती है। आवेश की गति ही विद्युत धारा है। विद्युत के अनेक प्रभाव हैं जैसे चुम्बकीय क्षेत्र, ऊष्मा, रासायनिक प्रभाव आदि। जब विद्युत और चुम्बकत्व का एक साथ अध्ययन किया जाता है तो इसे विद्युत चुम्बकत्व कहते हैं। विद्युत को अनेकों प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है किन्तु सरल शब्दों में कहा जाये तो विद्युत आवेश की उपस्थिति तथा बहाव के परिणामस्वरूप उत्पन्न उस सामान्य अवस्था को विद्युत कहते हैं जिसमें अनेकों कार्यों को सम्पन्न करने की क्षमता होती है। विद्युत चल अथवा अचल इलेक्ट्रान या प्रोटान से सम्बद्ध एक भौतिक घटना है। किसी चालक में विद्युत आवेशों के बहाव से उत्पन्न उर्जा को विद्युत कहते हैं। .

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विद्युत चुम्बक

विद्युत धारा के प्रभाव से जिस लोहे में चुंबकत्व उत्पन्न होता है, उसे विद्युत चुंबक (Electromagnet) कहते हैं। इसके लिये लोहे पर तार लपेटकर उस तार से विद्युत् धारा बहाकर लोहे को चुंबकित किया जा सकता है। (लोहे पर चुंबक रगड़कर लोहे को चुंबकीय किया जा सकता है जो विद्युत चुम्बकत्व नहीं है) .

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विद्युत प्रतिरोध

आदर्श प्रतिरोधक का V-I वैशिष्ट्य। जिन प्रतिरोधकों का V-I वैशिष्ट्य रैखिक नहीं होता, उन्हें अनओमिक प्रतिरोधक (नॉन-ओमिक रेजिस्टर) कहते हैं। किसी प्रतिरोधक के सिरों के बीच विभवान्तर तथा उससे प्रवाहित विद्युत धारा के अनुपात को उसका विद्युत प्रतिरोध (electrical resistannce) कहते हैं।इसे ओह्म में मापा जाता है। इसकी प्रतिलोमीय मात्रा है विद्युत चालकता, जिसकी इकाई है साइमन्स। जहां बहुत सारी वस्तुओं में, प्रतिरोध विद्युत धारा या विभवांतर पर निर्भर नहीं होता, यानी उनका प्रतिरोध स्थिर रहता है। right समान धारा घनत्व मानते हुए, किसी वस्तु का विद्युत प्रतिरोध, उसकी भौतिक ज्यामिति (लम्बाई, क्षेत्रफल आदि) और वस्तु जिस पदार्थ से बना है उसकी प्रतिरोधकता का फलन है। जहाँ इसकी खोज जार्ज ओह्म ने सन 1820 ई. में की।, विद्युत प्रतिरोध यांत्रिक घर्षण के कुछ कुछ समतुल्य है। इसकी SI इकाई है ओह्म (चिन्ह Ω).

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विद्युत प्रदायी

व्यक्तिगत कम्प्यूटर (पीसी) की पॉवर सप्लाई विद्युत शक्ति के किसी स्रोत को सामान्य रूप से विद्युत प्रदायी या 'विद्युत प्रदायक' या 'पॉवर सप्लाई' कहा जाता है। यह शब्द अधिकांशतः वैद्युत शक्ति आपूर्ति के सन्दर्भ में ही प्रयुक्त होता है; यांत्रिक शक्ति के सन्दर्भ में यह बहुत कम प्रयुक्त होता है; अन्य उर्जा के सन्दर्भ में लगभग इसका कभी भी उपयोग नहीं होता।.

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विवर्तन

एक वर्गाकार द्वारक (aperture) से विवर्तन के परिणामस्वरूप पर्दे पर निर्मित विवर्तन पैटर्न जब प्रकाश या ध्वनि तरंगे किसी अवरोध से टकराती हैं, तो वे अवरोध के किनारों पर मुड जाती हैं और अवरोधक के की ज्यामितिय छाया में प्रवेश कर जती हैं। तरंगो के इस प्रकार मुड़ने की घटना को विवर्तन (Diffraction) कहते हैं। ऐसा पाया गया है कि लघु आकार के अवरोधों से टकराने के बाद तरंगें मुड़ जातीं हैं तथा जब लघु आकार के छिद्रों (openings) से होकर तरंग गुजरती है तो यह फैल जाती है। सभी प्रकार की तरंगों से विवर्तन होता है (ध्वनि, जल तरंग, विद्युतचुम्बकीय तरंग आदि)। .

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ग्रामोफ़ोन

एडिसन का बेलन फोनोग्राफ (cylinder phonograph; सन् 1899) ग्रामोफोन (gramophone) ध्वनि उत्पन्न करनेवाला एक यंत्र है, जो एक सूई के दोलनों को वायु में संचारित कर ध्वनि उत्पन्न करता है। सूई एक घूमते हुए रिकार्ड में बने घुमावदार खाँचे के संपर्क में होती है। ग्रामोफोनयूनानी भाषा में "ग्रामो" का अर्थ है अक्षर और "फोन" का अर्थ है ध्वनि। व्यापक अर्थ में किसी भी ऐसे यंत्र को ग्रामोफोन कहते हैं जिससे ध्वनि का अभिलेखन और बाद में पुनरुत्पादन होता है। .

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ओज़ोन

'ओजोन'OZONE' (O3) आक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनने वाली एक गैस है जो वायुमण्डल में बहुत कम मत्रा (०.०२%) में पाई जाती हैं। यह तीखे गंध वाली अत्यन्त विषैली गैस है। जमीन के सतह के उपर अर्थात निचले वायुमंडल में यह एक खतरनाक दूषक है, जबकि वायुमंडल की उपरी परत ओजोन परत के रूप में यह सूर्य के पराबैंगनी विकिरण से पृथ्वी पर जीवन को बचाती है, जहां इसका निर्माण ऑक्सीजन पर पराबैंगनी किरणों के प्रभावस्वरूप होता है। ओजोन ऑक्सीजन का एक अपररूप है। यह समुद्री वायु में उपस्थित होती है। .

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इलैक्ट्रॉनिक्स

तल पर जुड़ने वाले (सरफेस माउंट) एलेक्ट्रानिक अवयव विज्ञान के अन्तर्गत इलेक्ट्रॉनिक्स या इलेक्ट्रॉनिकी विज्ञान और प्रौद्योगिकी का वह क्षेत्र है जो विभिन्न प्रकार के माध्यमों (निर्वात, गैस, धातु, अर्धचालक, नैनो-संरचना आदि) से होकर आवेश (मुख्यतः इलेक्ट्रॉन) के प्रवाह एवं उन पर आधारित युक्तिओं का अध्ययन करता है। प्रौद्योगिकी के रूप में इलेक्ट्रॉनिकी वह क्षेत्र है जो विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों (प्रतिरोध, संधारित्र, इन्डक्टर, इलेक्ट्रॉन ट्यूब, डायोड, ट्रान्जिस्टर, एकीकृत परिपथ (IC) आदि) का प्रयोग करके उपयुक्त विद्युत परिपथ का निर्माण करने एवं उनके द्वारा विद्युत संकेतों को वांछित तरीके से बदलने (manipulation) से संबंधित है। इसमें तरह-तरह की युक्तियों का अध्ययन, उनमें सुधार तथा नयी युक्तियों का निर्माण आदि भी शामिल है। ऐतिहासिक रूप से इलेक्ट्रॉनिकी एवं वैद्युत प्रौद्योगिकी का क्षेत्र समान रहा है और दोनो को एक दूसरे से अलग नही माना जाता था। किन्तु अब नयी-नयी युक्तियों, परिपथों एवं उनके द्वारा सम्पादित कार्यों में अत्यधिक विस्तार हो जाने से एलेक्ट्रानिक्स को वैद्युत प्रौद्योगिकी से अलग शाखा के रूप में पढाया जाने लगा है। इस दृष्टि से अधिक विद्युत-शक्ति से सम्बन्धित क्षेत्रों (पावर सिस्टम, विद्युत मशीनरी, पावर इलेक्ट्रॉनिकी आदि) को विद्युत प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत माना जाता है जबकि कम विद्युत शक्ति एवं विद्युत संकेतों के भांति-भातिं के परिवर्तनों (प्रवर्धन, फिल्टरिंग, मॉड्युलेश, एनालाग से डिजिटल कन्वर्शन आदि) से सम्बन्धित क्षेत्र को इलेक्ट्रॉनिकी कहा जाता है। .

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अनुनाद

जैसे-जैसे आवृत्ति, अनुनाद आवृत्ति के पास पहुँचती है, आयाम बढता जाता है भौतिकी में बहुत से तंत्रों (सिस्टम्स्) की ऐसी प्रवृत्ति होती है कि वे कुछ आवृत्तियों पर बहुत अधिक आयाम के साथ दोलन करते हैं। इस स्थिति को अनुनाद (रिजोनेन्स) कहते हैं। जिस आवृत्ति पर सबसे अधिक आयाम वाले दोलन की प्रवृत्ति पायी जाती है, उस आवृत्ति को अनुनाद आवृत्ति (रेसोनेन्स फ्रिक्वेन्सी) कहते हैं। सभी प्रकार के कम्पनों या तरंगों के साथ अनुनाद की घटना जुड़ी हुई है। अर्थात यांत्रिक, ध्वनि, विद्युतचुम्बकीय अथवा क्वांटम तरंग फलनों के साथ अनुनाद हो सकती है। कोई छोटे आयाम का भी आवर्ती बल, जो अनुनाद आवृत्ति वाला या उसके लगभग बराबर आवृत्ति वाला हो, उस तंत्र में बहुत अधिक आयाम के दोलन पैदा कर सकता है। अनुनादी तंत्रों के बहुत से उपयोग हैं। इनका उपयोग किसी वांछित आवृत्ति पर कम्पन (दोलन) पैदा करने के लिया किया जा सकता है; अथवा किसी जटिल कम्पन (जिसमें बहुत सी आवृत्तियों का मिश्रण हो; जैसे रेडियो या टीवी सिगनल) में से किसी चुनी हुई आवृत्ति को छाटने (फिल्टर करने) के लिये किया जा सकता है।; अनुनाद होने के लिये तीन चींजें जरूरी हैं- १) एक वस्तु या तन्त्र - जिसकी कोई प्राकृतिक आवृत्ति हो; २) वाहक या कारक बल (ड्राइविंग फोर्स) - जिसकी आवृत्ति, तन्त्र की प्राकृतिक आवृत्ति के समान हो; ३) इस तंत्र में उर्जा नष्ट करने वाला अवयव कम से कम हो (कम डैम्पिंग हो)। (घर्षण, प्रतिरोध (रेजिस्टैन्स), श्यानता (विस्कासिटी) आदि किसी तन्त्र में उर्जा ह्रास के लिये जिम्मेदार होते हैं।) .

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