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प्रकिण्व
ग्लायेक्सेलेज़ १। अपनी अभिक्रिया को कैटालाइज़ करने हेतु आवश्यक दो जस्ता आयन पर्पल गोले में दर्शित हैं और एक प्रकिण्व इन्हिबिटर, एस-हेक्साइलग्लूटाथाइओन स्पेस-फिलिंग-प्रतिरूप के रूप में दो सक्रिय स्थलों को भरता दिखाया गया है। प्रकिण्व (अंग्रेज़ी:एंज़ाइम) रासायनिक क्रियाओं को उत्प्रेरित करने वाले प्रोटीन को कहते हैं। इनके लिये एंज़ाइम शब्द का प्रयोग सन १८७८ में कुह्ने ने पहली बार किया था। प्रकिण्वों के स्रोत मुख्यतः सूक्ष्मजीव और फिर पौधे तथा जंतु होते हैं। किसी प्रकिण्व के अमीनो अम्ल में परिवर्तन द्वारा उसके गुणधर्म में उपयोगी परिवर्तन लाने हेतु अध्ययन को प्रकिण्व अभियांत्रिकी या एंज़ाइम इंजीनियरिंग कहते हैं। एंज़ाइम इंजीनियरिंग का एकमात्र उद्देश्य औद्योगिक अथवा अन्य उद्योगों के लिये अधिक क्रियाशील, स्थिर एवं उपयोगी एंज़ाइमों को प्राप्त करना है।। हिन्दुस्तान लाइव। २४ मई २०१० पशुओं से प्राप्त रेनेट भी एक प्रकिण्व ही होता है। ये शरीर में होने वाली जैविक क्रियाओं के उत्प्रेरक होने के साथ ही आवश्यक अभिक्रियाओं के लिए शरीर में विभिन्न प्रकार के प्रोटीन का निर्माण करते हैं। इनकी भूमिका इतनी महत्वपूर्ण है कि ये या तो शरीर की रासायनिक क्रियाओं को आरंभ करते हैं या फिर उनकी गति बढ़ाते हैं। इनका उत्प्रेरण का गुण एक चक्रीय प्रक्रिया है। सभी उत्प्रेरकों की ही भांति, प्रकिण्व भी अभिक्रिया की उत्प्रेरण ऊर्जा (Ea‡) को कम करने का कार्य करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अभिक्रिया की गति में वृद्धि हो जाती है। अधिकांश प्रकिण्वन अभिक्रियाएं अन्य गैर-उत्प्रेरित अभिक्रियाओं की तुलना में लाखों गुना तेज गति से होती हैं। इसी प्रकार अन्य सभि उत्प्रेरण अभिक्रियाओं की तरह ही प्रकिण्व भी अभिक्रिया में खपते नहीं हैं, न ही अभिक्रिया साम्य में परिवर्तन करते हैं। फिर भी प्रकिण्व अन्य अधिकां उत्प्रेरकों से इस बाट में अलग होते हैं, कि प्रकिण्व किसी विशेष अभिक्रिया के लिये विशिष्ट होते हैं। प्रकिण्वों द्वारा लगभग ४००० से अधिक ज्ञात जैवरासायनिक अभिक्रियाएं संपन्न होती हैं। कुछ आर एन ए अणु भी अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं, जिसका एक अच्छा उदाहरण है राइबोसोम के कुछ भागों में होती अभिक्रियाएं। कुछ कृत्रिम अणु भी प्रकिण्वों जैसी उत्प्रेरक क्रियाएं दिखाते हैं। इन्हें कृत्रिम प्रकिण्व कहते हैं। World fast enzyme - जाइमेज .
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वसा
lipid एक ट्राईग्लीसराइड अणु वसा अर्थात चिकनाई शरीर को क्रियाशील बनाए रखने में सहयोग करती है। वसा शरीर के लिए उपयोगी है, किंतु इसकी अधिकता हानिकारक भी हो सकती है। यह मांस तथा वनस्पति समूह दोनों प्रकार से प्राप्त होती है। इससे शरीर को दैनिक कार्यों के लिए शक्ति प्राप्त होती है। इसको शक्तिदायक ईंधन भी कहा जाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए १०० ग्राम चिकनाई का प्रयोग करना आवश्यक है। इसको पचाने में शरीर को काफ़ी समय लगता है। यह शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता को कम करने के लिए आवश्यक होती है। वसा का शरीर में अत्यधिक मात्रा में बढ़ जाना उचित नहीं होता। यह संतुलित आहार द्वारा आवश्यक मात्रा में ही शरीर को उपलब्ध कराई जानी चाहिए। अधिक मात्रा जानलेवा भी हो सकती है, यह ध्यान योग्य है। यह आमाशय की गतिशीलता में कमी ला देती है तथा भूख कम कर देती है। इससे आमाशय की वृद्धि होती है। चिकनाई कम हो जाने से रोगों का मुकाबला करने की शक्ति कम हो जाती है। अत्यधिक वसा सीधे स्रोत से हानिकारक है। इसकी संतुलित मात्रा लेना ही लाभदायक है। .
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उत्प्रेरण
जब किसी रासायनिक अभिक्रिया की गति किसी पदार्थ की उपस्थिति मात्र से बढ जाती है तो इसे उत्प्रेरण (Catalysis) कहते हैं। जिस पदार्थ की उपस्थिति से अभिक्रिया की गति बढ जाती है उसे उत्प्रेरक (catalyst) कहते हैं। उत्प्रेरक अभिक्रिया में भाग नहीं लेता, केवल क्रिया की गति को प्रभावित करता है। औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण रसायनों के निर्माण में उत्प्रेरकों की बहुत बड़ी भूमिका है, क्योंकि इनके प्रयोग से अभिक्रिया की गति बढ जाती है जिससे अनेक प्रकार से आर्थिक लाभ होता है और उत्पादन तेज होता है। इसलिये उत्प्रेरण के क्षेत्र में अनुसंधान के लिये बहुत सा धन एवं मानव श्रम लगा हुआ है। .
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