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रेती (बैकशोर)

सूची रेती (बैकशोर)

रेती रेती (backshore), किसी जलनिकाय के अन्दर या उससे बाहर की ओर विस्तारित होने वाला, एक रेखीय (कुछ हद तक) स्थलरूप है जिसके संघटक आम तौर पर रेत, गाद या छोटे कंकड़ होते हैं। एक स्पिट या संकरी रेती, रेती का एक प्रकार है। रेतियों की विशेषता इनका लंबा और संकीर्ण (रैखिक) होना है और इनकी रचना उन स्थानों पर होती है जहाँ कोई जलधारा या समुद्रीधारा दानेदार (कणिकामय) पदार्थों के निक्षेपण को प्रेरित करती है। इन निक्षेपणों के फलस्वरूप उस स्थान विशेष पर जल उथला हो जाता है और धीरे-धीरे रेती का निर्माण होता है। रेतियां, समुद्र, झील या नदी सब स्थानों पर पाई जाती हैं। कई बार जब एक रेती किसी झील से समुद्र को अलग करती है तब इसे आयर कहा जाता है। रेतियां मुख्यत: रेत या बालू से बनी होती है इसीलिए इन्हें रेती कहा जाता है, पर इनके संधटन में वो सभी दानेदार वस्तुएं शामिल होती है जिन्हें कोई धारा बहा कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जा सकती है (जैसे मिट्टी, गाद, कंकड़, बटिया, समुद्री कंकड़ और कई बार तो गोलाश्म भी)। रेती की निर्माण सामग्री के कणों का आकार लहरों के आकार और जलधारा के वेग पर निर्भर करता है पर, निर्माण सामग्री की उपलब्धता जिसे कोई जलधारा स्थानांतरित करती है भी, समान रूप से महत्वपूर्ण है। .

सामग्री की तालिका

  1. 7 संबंधों: झील, नदी, बजरी, मृदा, रेत, स्पिट, गाद

  2. तटीय भूगोल
  3. भूगोल शब्दावली आधार

झील

एक अनूप झील बैकाल झील झील जल का वह स्थिर भाग है जो चारो तरफ से स्थलखंडों से घिरा होता है। झील की दूसरी विशेषता उसका स्थायित्व है। सामान्य रूप से झील भूतल के वे विस्तृत गड्ढे हैं जिनमें जल भरा होता है। झीलों का जल प्रायः स्थिर होता है। झीलों की एक महत्वपूर्ण विशेषता उनका खारापन होता है लेकिन अनेक झीलें मीठे पानी की भी होती हैं। झीलें भूपटल के किसी भी भाग पर हो सकती हैं। ये उच्च पर्वतों पर मिलती हैं, पठारों और मैदानों पर भी मिलती हैं तथा स्थल पर सागर तल से नीचे भी पाई जाती हैं। किसी अंतर्देशीय गर्त में पाई जानेवाली ऐसी प्रशांत जलराशि को झील कहते हैं जिसका समुद्र से किसी प्रकार का संबंध नहीं रहता। कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग नदियों के चौड़े और विस्तृत भाग के लिए तथा उन समुद्र तटीय जलराशियों के लिए भी किया जाता है, जिनका समुद्र से अप्रत्यक्ष संबंध रहता है। इनके विस्तार में भिन्नता पाई जाती है; छोटे छोटे तालाबों और सरोवर से लेकर मीठे पानीवाली विशाल सुपीरियर झील और लवणजलीय कैस्पियन सागर तक के भी झील के ही संज्ञा दी गई है। अधिकांशत: झीलें समुद्र की सतह से ऊपर पर्वतीय प्रदेशों में पाई जाती हैं, जिनमें मृत सागर, (डेड सी) जो समुद्र की सतह से नीचे स्थित है, अपवाद है। मैदानी भागों में सामान्यत: झीलें उन नदियों के समीप पाई जाती हैं जिनकी ढाल कम हो गई हो। झीलें मीठे पानीवाली तथा खारे पानीवाली, दोनों होती हैं। झीलों में पाया जानेवाला जल मुख्यत: वर्ष से, हिम के पिघलने से अथवा झरनों तथा नदियों से प्राप्त होता है। झीले बनती हैं, विकसित होती हैं, धीरे-धीरे तलछट से भरकर दलदल में बदल जाती हैं तथा उत्थान होंने पर समीपी स्थल के बराबर हो जाती हैं। ऐसी आशंका है कि संयुक्त राज्य अमेरिका की बृहत झीलें ४५,००० वर्षों में समाप्त हो जाएंगी। भू-तल पर अधिकांश झीलें उत्तरी गोलार्ध में स्थित हैं। फिनलैंड में तो इतनी अधिक झीलें हैं कि इसे झीलों का देश ही कहा जाता है। यहाँ पर १,८७,८८८ झीलें हैं जिसमें से ६०,००० झीलें बेहद बड़ी हैं। पृथ्वी पर अनेक झीलें कृत्रिम हैं जिन्हें मानव ने विद्युत उत्पादन के लिए, कृषि-कार्यों के लिए या अपने आमोद-प्रमोद के लिए बनाया है। झीलें उपयोगी भी होती हैं। स्थानीय जलवायु को वे सुहावना बना देती हैं। ये विपुल जलराशि को रोक लेती हैं, जिससे बाढ़ की संभावना घट जाती है। झीलों से मछलियाँ भी प्राप्त होती हैं। .

देखें रेती (बैकशोर) और झील

नदी

भागीरथी नदी, गंगोत्री में नदी भूतल पर प्रवाहित एक जलधारा है जिसका स्रोत प्रायः कोई झील, हिमनद, झरना या बारिश का पानी होता है तथा किसी सागर अथवा झील में गिरती है। नदी शब्द संस्कृत के नद्यः से आया है। संस्कृत में ही इसे सरिता भी कहते हैं। नदी दो प्रकार की होती है- सदानीरा या बरसाती। सदानीरा नदियों का स्रोत झील, झरना अथवा हिमनद होता है और वर्ष भर जलपूर्ण रहती हैं, जबकि बरसाती नदियाँ बरसात के पानी पर निर्भर करती हैं। गंगा, यमुना, कावेरी, ब्रह्मपुत्र, अमेज़न, नील आदि सदानीरा नदियाँ हैं। नदी के साथ मनुष्य का गहरा सम्बंध है। नदियों से केवल फसल ही नहीं उपजाई जाती है बल्कि वे सभ्यता को जन्म देती हैं अपितु उसका लालन-पालन भी करती हैं। इसलिए मनुष्य हमेशा नदी को देवी के रूप में देखता आया है। .

देखें रेती (बैकशोर) और नदी

बजरी

छोटे पत्थर जिनको कंकड़ कहा जा सकता है। छोटे-छोटे कंकड़ बहुत छोटे पत्थर को कंकड़ कहते हैं। शैलों के छोटे-छोटे टुकड़ों को बजरी या 'कंकड़' (Gravel) कहते हैं। यहेक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक पदार्थ है जो बहुत से कार्यों में प्रयुक्त होता है। यह सड़कों के उपरी तल पर बिछाने, प्लेटफॉर्म बनाने, कंक्रीट के निर्माण आदि के काम आता है। .

देखें रेती (बैकशोर) और बजरी

मृदा

पृथ्वी ऊपरी सतह पर मोटे, मध्यम और बारीक कार्बनिक तथा अकार्बनिक मिश्रित कणों को मृदा (मिट्टी / soil) कहते हैं। ऊपरी सतह पर से मिट्टी हटाने पर प्राय: चट्टान (शैल) पाई जाती है। कभी कभी थोड़ी गहराई पर ही चट्टान मिल जाती है। 'मृदा विज्ञान' (Pedology) भौतिक भूगोल की एक प्रमुख शाखा है जिसमें मृदा के निर्माण, उसकी विशेषताओं एवं धरातल पर उसके वितरण का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता हैं। पृथऽवी की ऊपरी सतह के कणों को ही (छोटे या बडे) soil कहा जाता है .

देखें रेती (बैकशोर) और मृदा

रेत

रेत के कई अर्थ हो सकते हैं.

देखें रेती (बैकशोर) और रेत

स्पिट

स्पिट एक प्रमुख सागरीय जल कृत निक्षेपात्मक स्थलरुप हैं। जब रोधिका तट के समानांतर न होकर तट के लम्बवत होती है उसे स्पिट कहते हैं इसे भू जिह्वा भी कहते हैं। स्पिट का एक हिस्सा तट से लगा रहता है तथा दूसरा सागर में। श्रेणी:सागरीय जल कृत स्थलाकृति श्रेणी:सागरीय जल कृत निक्षेपात्मक स्थलरुप.

देखें रेती (बैकशोर) और स्पिट

गाद

क्वार्ट्ज और फिल्ड्स्पार खनिजों से उत्पन्न कणिकामय पदार्थ को गादी (Silt) कहते हैं। इसके कणों का आकार बालू से छोटा किन्तु मृत्तिका (clay) से बड़ा होता है। यह भूमि के रूप में या जल में घुले अवसाद (sediment) के रूप में हो सकती है। इसके अतिरिक्त यह नदियों, तालाबों आदि के तल में भी जमा हो सकती है। श्रेणी:मृदा विज्ञान श्रेणी:अवसादी शैलें.

देखें रेती (बैकशोर) और गाद

यह भी देखें

तटीय भूगोल

भूगोल शब्दावली आधार