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राष्ट्रीय काव्य धारा

सूची राष्ट्रीय काव्य धारा

हिंदी साहित्य जिन दिनों छायावादी दौर से गुजर रहा था उन्हीं दिनों छायावादी काव्य धारा के समानांतर और उतनी ही शक्तिशाली एक और काव्यधारा भी प्रवाहमान थी। माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्णशर्मा नवीन, सुभद्राकुमारी चौहान आदि इस धारा के प्रतिनिधि कवि हैं। इन्होंने राष्ट््रिय और सांस्कृतिक संघर्ष को स्पष्ट और उग्र स्वर में व्यक्त किया है। छायावाद में राष्ट्रियता का स्वर प्रतीकात्मक रूप में तथा शक्ति और जागरण गीतों के रूप में मिलता है। इसके बजाय माखनलाल चतुर्वेदी अपने वीरव्रती शीर्षक कविता में लिखते हैं- मधुरी वंशी रणभेरी का डंका हो अब। नव तरुणाइ पर किसको क्या शंका हो अब। बाल कृष्णशर्मा नवीन विप्लव गान की रचना करते हैं- एक ओर कायरता काँपे गतानुगति विगलित हो जाय। अंधे मूढ़ विचारों की वह अचल शिला विचलित हो जाय़। सुभद्राकुमारी चौहान ने झाँसी की रानी के रूप में पूरा वीरचरित ही लिख दिया - जाओ रानी याद करेंगें ये कृतज्ञ भारतवासी। किंतु छायावाद की सीमारेखा इस धारा की सीमारेखा नहीं है। इसने पूर्ववर्ती मैथिलिशरण गुप्त और परवर्ती दौर में भी रामधारी सिंह दिनकर के साथ अपना स्वर प्रखर बनाए रखा।.

सामग्री की तालिका

  1. 6 संबंधों: माखनलाल चतुर्वेदी, रानी लक्ष्मीबाई, रामधारी सिंह 'दिनकर', सुभद्रा कुमारी चौहान, हिंदी साहित्य, छायावाद

माखनलाल चतुर्वेदी

माखनलाल चतुर्वेदी (४ अप्रैल १८८९-३० जनवरी १९६८) भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा। वे सच्चे देशप्रमी थे और १९२१-२२ के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। आपकी कविताओं में देशप्रेम के साथ साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण हुआ है। .

देखें राष्ट्रीय काव्य धारा और माखनलाल चतुर्वेदी

रानी लक्ष्मीबाई

रानी लक्ष्मीबाई (जन्म: 19 नवम्बर 1828 के अनुसार रानी लक्ष्मीबाई की जन्मतिथि 19 नवम्बर 1835 है – मृत्यु: 18 जून 1858) मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की वीरांगना थीं। उन्होंने सिर्फ़ 23 साल की उम्र में अंग्रेज़ साम्राज्य की सेना से जद्दोजहद की और रणभूमि में उनकी मौत हुई थी। .

देखें राष्ट्रीय काव्य धारा और रानी लक्ष्मीबाई

रामधारी सिंह 'दिनकर'

रामधारी सिंह 'दिनकर' (२३ सितंबर १९०८- २४ अप्रैल १९७४) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। बिहार प्रान्त के बेगुसराय जिले का सिमरिया घाट उनकी जन्मस्थली है। उन्होंने इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की। उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था। 'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तिय का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है। उर्वशी को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार जबकि कुरुक्षेत्र को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ काव्यों में ७४वाँ स्थान दिया गया। .

देखें राष्ट्रीय काव्य धारा और रामधारी सिंह 'दिनकर'

सुभद्रा कुमारी चौहान

सुभद्रा कुमारी चौहान (१६ अगस्त १९०४-१५ फरवरी १९४८) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। उनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए पर उनकी प्रसिद्धि झाँसी की रानी कविता के कारण है। ये राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं, किन्तु इन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के पश्चात अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया। वातावरण चित्रण-प्रधान शैली की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है, इस कारण इनकी रचना की सादगी हृदयग्राही है। .

देखें राष्ट्रीय काव्य धारा और सुभद्रा कुमारी चौहान

हिंदी साहित्य

चंद्रकांता का मुखपृष्ठ हिन्दी भारत और विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। उसकी जड़ें प्राचीन भारत की संस्कृत भाषा में तलाशी जा सकती हैं। परंतु हिन्दी साहित्य की जड़ें मध्ययुगीन भारत की ब्रजभाषा, अवधी, मैथिली और मारवाड़ी जैसी भाषाओं के साहित्य में पाई जाती हैं। हिंदी में गद्य का विकास बहुत बाद में हुआ और इसने अपनी शुरुआत कविता के माध्यम से जो कि ज्यादातर लोकभाषा के साथ प्रयोग कर विकसित की गई।हिंदी का आरंभिक साहित्य अपभ्रंश में मिलता है। हिंदी में तीन प्रकार का साहित्य मिलता है। गद्य पद्य और चम्पू। हिंदी की पहली रचना कौन सी है इस विषय में विवाद है लेकिन ज़्यादातर साहित्यकार देवकीनन्दन खत्री द्वारा लिखे गये उपन्यास चंद्रकांता को हिन्दी की पहली प्रामाणिक गद्य रचना मानते हैं। .

देखें राष्ट्रीय काव्य धारा और हिंदी साहित्य

छायावाद

छायावाद विशेष रूप से हिंदी साहित्य के रोमांटिक उत्थान की वह काव्य-धारा है जो लगभग ई.स. १९१८ से १९३६ तक की प्रमुख युगवाणी रही। इसमें जयशंकर प्रसाद, निराला, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा आदि मुख्य कवि हुए। छायावाद-चतुष्टय -- प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी के बाद हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवियों में महाकवि गुलाब खंडेलवाल की भी गणना होती है। छायावाद सामान्य रूप से भावोच्छवास प्रेरित स्वच्छन्द कल्पना-वैभव की वह स्वच्छन्द प्रवृत्ति है जो देश-कालगत वैशिष्ट्य के साथ संसार की सभी जातियों के विभिन्न उत्थानशील युगों की आशा, आकांक्षा में निरंतर व्यक्त होती रही है। स्वच्छन्दता की इस सामान्य भावधारा की विशेष अभिव्यक्ति का नाम हिंदी साहित्य में छायावाद पड़ा। छायावाद नामकरण का श्रेय मुकुटधर पाण्डेय को जाता है। इसके आधार पर हिंदी साहित्य में छायावादी युग और छायावादी आंदोलन को भी स्थान मिला। .

देखें राष्ट्रीय काव्य धारा और छायावाद