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3 संबंधों: राजस्व (प्रशासनिक) सेवा, राज्य सिविल सेवा, अफसरशाही।
राजस्व (प्रशासनिक) सेवा
राज्य सरकार द्वारा स्थायी नौकरशाही राज्य स्तर की सिविल सेवा राज्य सिविल सेवा के रूप में सदस्य बनने के लिये प्रदेश की राजस्व (प्रशासनिक) सेवा के अनुभवी अधिकारियों को भी प्रोन्नत किया जाता हैं यदि किसी वजह से व्यक्ति यूपीएससी के माध्यम से सिविल सेवक बनने से चूक जाए तो राज्य लोक सेवा आयोग एक अवसर मुहैया कराती है, सभी राज्यों की अपनी लोक सेवा आयोग होती है जो तीन स्तरों के सिविल सेवकों का चयन करते हैं- प्रशासनिक सेवा.
देखें राजस्व (प्रशासनिक) सेवा और राजस्व (प्रशासनिक) सेवा
राज्य सिविल सेवा
भारतीय सिविल सेवाके अनुरूप राज्य स्तर पर प्रशासन की सहायता के लिये राज्य सिविल सेवाऐं होती हैं, जिसे राज्य सिविल सेवा के रूप में भी जाना जाता है, यह राज्य स्तर की सिविल सेवा है और इसमें राज्य सरकार की स्थायी नौकरशाही होती हैं। 1947 से 50 की अवधि में इन सेवाओं की स्थापना तथा तत्संबंधी अन्य निश्चयों के साथ ही साथ संविधान सभा ने स्वतंत्र भारत के लिए एक संविधान का निर्माण कर दिया और विभिन्न रियासतों के विलयन के बाद देश में राजनीतिक एकता स्थापित हो गई। संविधान का स्वरूप, जिसके अधीन ये लोकसेवाएँ थीं, इन राजनीतिक परिवर्तनों को ध्यान में रखकर स्थिर किया गया था। राज्यों का ढाँचा संघात्मक बनाया गया था, तथापि सार्वजनिक सेवारत कर्मचारियों की मनमानी पदच्युति, स्थानांतरण, पदों के न्यूनीकरण आदि से बचाव के लिए सारे देश में एक जैसी व्यवस्था संविधान द्वारा की गई। समस्त देश में सार्वजनिक सेवाओं और पदों पर भरती और नियुक्ति लोकसेवा आयोगों के माध्यम से करने की व्यवस्था की गई। सेवा की स्थितियों, उन्नति, स्थानांतरण, अनुशासनिक कार्यवाही तथा सेवाकाल में हुई क्षति अथवा विवाद आदि की अवस्था में इन कर्मचारियों के अधिकारों से संबंधित नियमादि बनाने के संबंध में भी इन आयोगों की राय लेना आवश्यक माना गया।.
देखें राजस्व (प्रशासनिक) सेवा और राज्य सिविल सेवा
अफसरशाही
प्राचीन चीन की नौकरशाही में स्थान पाने के लिये विद्यार्थियों में स्पर्धा होती थी। किसी बड़ी संस्था या सरकार के परिचालन के लिये निर्धारित की गयी संरचनाओं एवं नियमों को समग्र रूप से अफसरशाही या ब्यूरोक्रैसी (Bureaucracy) कहते हैं। तदर्थशाही (adhocracy) के विपरीत इस तंत्र में सभी प्रक्रियाओं के लिये मानक विधियाँ निर्धारित की गयी होती हैं और उसी के अनुसार कार्यों का निष्पादन अपेक्षित होता है। शक्ति का औपचारिक रूप से विभाजन एवं पदानुक्रम (hierarchy) इसके अन्य लक्षण है। यह समाजशास्त्र का प्रमुख परिकल्पना (कांसेप्ट) है। अफरशाही की प्रमुख विशेषताएँ ये हैं-.