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राजस्थान की महत्वपूर्ण कला-संस्कृति इकाइयां

सूची राजस्थान की महत्वपूर्ण कला-संस्कृति इकाइयां

नाम, स्थान, स्थापना राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर 25 जनवरी 1983 राजस्थान ब्रजभाषा अकादमी, जयपुर, 19 जनवरी 1986 राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर, 15 जुलाई 1969 राजस्थान संस्कृत अकादमी, जयपुर 1981 अरबी फारसी शोध संस्थान, टोंक दिसम्बर, 1978 राजस्थान सिन्धी अकादमी जयपुर 1979 विद्या भवन संस्थान उदयपुर 1931 राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर 23 जनवरी 1958 राजस्थान अभिलेखागार बीकानेर 1955 रुपायन संस्थान बोरुंदा (जोधपुर) 1960 रवीन्द्र रंगमंच जयपुर 15 अगस्त 1963 जयपुर कथक केन्द्र जयपुर 1978 राजस्थान संगीत नाटक अकादमी जोधपुर पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग जयपुर राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स जयपुर 1866 राजस्थान ललित कला अकादमी जयपुर 1957 राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर 1950 जवाहर कला केंद्र, जयपुर 8 अप्रैल 1983 राजस्थान उर्दू अकादमी जयपुर 1 सितम्बर 1976 श्रेणी:राजस्थान.

सामग्री की तालिका

  1. 5 संबंधों: राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, राजस्थान साहित्य अकादमी, राजस्थान संस्कृत अकादमी, राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, राजस्थान अभिलेखागार

राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान

राजस्थान स्थापना। राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान (Rajasthan Oriental Research Institute / RORI) राजस्थान सरकार द्वारा स्थापित एक संस्थान है जो राजस्थानी संस्कृति एवं विरासत को संरक्षित रखने एवं उसकी उन्नति करने के उद्देश्य से स्थापित किया है। इसकी स्थापना १९५४ में मुनि जिनविजय के मार्गदर्शन में की गयी थी। मुनि जिनविजय रॉयल एशियाटिक सोसायटी के सदस्य थे। भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने १९५५ में इसकी आधारशिला रखी। १४ सितम्बर १९५८ को इसका उद्घाटन हुआ। इसका मुख्यालय जोधपुर में है। पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत और अन्य भाषाओँ में लिखे गए विभिन्न अप्रकाशित पांडुलिपियों और प्राचीन ग्रंथों की खोज और उनके प्रकाशन के लिए उत्तरदायी राजस्थान शासन द्वारा जोधपुर में सन १९५० में संस्थापित एक पंजीकृत स्वायत्तशासी समिति (सांस्कृतिक संस्थान) है जिसके संस्थापक निदेशक पद्मश्री मुनि जिनविजय थे। यहाँ संरक्षित कुछ पांडुलिपियाँ इस लिंक पर देखी जा सकती हैं- .

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राजस्थान साहित्य अकादमी

राजस्थान साहित्य अकादमी की स्थापना २८ जनवरी १९५८ ई. राज्य सरकार द्वारा राज्य में साहित्य के विकास, प्रोत्साहन व प्रचार-प्रसार के उद्धेश्य से एक शासकीय इकाई के रूप में की गई और ८ नवम्बर १९६२ को इसे स्वायत्तता प्रदान की गई। तब से यह यह संस्थान अपने संविधान के अनुसार राजस्थान में साहित्य की प्रोन्नति तथा साहित्यिक संचेतना के प्रचार-प्रसार के लिए सतत् सक्रिय है। राजस्थान में सृजित साहित्य और यहां के साहित्यकारों की हिन्दी साहित्य के राष्ट्रीय फलक पर विशिष्ट पहचान स्थापित हुई है। अकादमी की स्वीकृत और अधिकृत योजनाओं की स्पष्टतः कुछ आधारभूत विशेषताएं हैं। अकादमी में रचनाधर्मियों की वाणी और विचार सृजन की स्वतंत्रता को पूरी तरह से संरक्षित और प्रोत्साहित किया गया है। अकादमी किसी भी प्रकार के वादों, घेरों, सम्प्रदायों और राजनीतिक दलबन्दियों से परे है। अकादमी को प्रारम्भ से ही उसका स्वरूप और व्यक्तित्व प्रदान किया गया है और इसका ध्येय, वाक्य और मुद्रा स्वीकृत है। राजस्थान साहित्य अकादमी की स्थापना साहित्य जगत हेतु एक सुखद अनुभूति है और राजस्थान के सांस्कृतिक और साहित्यिक पुनर्निर्माण एवं विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। .

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राजस्थान संस्कृत अकादमी

राजस्थान सरकार द्वारा संस्कृत साहित्य के उन्नयन और विकास के लिए 1981 में गठित स्वायत्तशासी अकादमी, जिसका मुख्यालय जयपुर में है। श्रेणी:राजस्थान के राजकीय विभाग श्रेणी:जयपुर के संस्थान श्रेणी:भारत में संस्कृत.

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राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी

राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी राजस्थान सरकार का स्वायत्तशासी संस्थान है जो हिन्‍दी माध्‍यम से उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त करने वाले विद्यार्थियों के लिए विभिन्‍न विषयों की पाठ्य एवं संदर्भ पुस्‍तकों की रचना करता है। .

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राजस्थान अभिलेखागार

बीकानेर स्थित राजस्थान राज्य अभिलेखागार देश के सबसे अच्‍छे और चर्चित अभिलेखागारों में से एक है। इस अभिलेखागार की स्‍थापना 1955 में हुई और यह अपनी विपुल व अमूल्‍य अभिलेख निधि के लिए प्रतिष्ठित है। अभिलेखागार देश का पहला ई अभिलेखागार है। 26 सितम्बर 2013, को जारी इनकी वेबसाइट के जरिए दूर दराज से शोध करने वाले विद्यार्थी और इतिहासकार सिर्फ एक क्लिक पर 35 लाख अभिलेखों का अध्ययन कर सकते हैं। वेबसाइट के जरिए बीकानेर रियासत के 12 लाख, जयपुर रियासत के 11 लाख और जोधपुर रियासत के 7.5 लाख 'अभिलेख' ऑनलाइन किए गए हैं। इसके साथ ही अलवर और सिरोही के महत्वपूर्ण रजिस्ट्री अभिलेखों और ऐतिहासिक फरमानों को भी डिजिटलाइज किया गया है। ई-रिकॉर्डिंग के रूप में यहाँ बैठ कर 246 स्वाधीनता सेनानियों के संस्मरण भी सुने जा सकते हैं। .

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