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युनिवर्सल मोटर

सूची युनिवर्सल मोटर

किसी छोटे युनिवर्सल मोटर की रोटर युनिवर्सल मोटर या सर्वविद्युत मोटर वह मोटर है जिसे एक-फेजी प्रत्यावर्ती धारा तथा दिष्ट धारा दोनों से चलाया जा सकता है। यह वास्तव में सिरीज डीसी मोटर होती है। इसे एसी कम्युटेटर मोटर की श्रेणी में रखा जाता है। घरों में उपयोग में आने वाला मिक्सर का मोटर यूनिवर्सल मोटर ही होता है। इसके अतिरिक्त रेलगाडी का इंजन खींचने के लिये (ट्रैक्शन मोटर) यूनिवर्सल मोटर का ही उपयोग किया जाता है क्योंकि इनकी चाल के साथ बलाघूर्ण के बदलने का सम्बन्ध (टॉर्क-स्पीड कैरेक्टरिस्टिक) इस काम के लिये बहुत उपयुक्त है। यह मोटर कम चाल पर बहुत अधिक बलाघूर्ण पैदा करता है जबकि चाल बढने पर इसके द्वारा उत्पन्न किया गया बलाघूर्ण क्रमशः कम होता जाता है। हैण्ड-ड्रिल में लगी युनिवर्सल मोटर .

9 संबंधों: दिष्ट धारा, दिष्टधारा मोटर, प्रत्यावर्ती धारा, बलाघूर्ण, रेलगाड़ी, विद्युत कर्षण, इंजन, कर्षण (इंजीनियरी), कर्षण मोटर

दिष्ट धारा

दिष्ट धारा वह धारा हैं जो सदैव एक ही दिशा में बहती हैं व जिसकी ध्रुवीयता नियत रहती हैं। इसकी तुलना प्रत्यावर्ती धारा से की जा सकती है जो अपनी ध्रुवीयता (जो कि धारा की दिशा से संबंधित है) निश्चित कालक्रम में बदलती रहती है। इन दोनों ही धाराओं का परिमाण निश्चित रहता है। श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:भौतिक शब्दावली.

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दिष्टधारा मोटर

डीसी मोटर का कार्यसिद्धान्त दिष्टधारा मोटर (DC motor) विद्युत मशीन है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलती है। .

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प्रत्यावर्ती धारा

प्रत्यावर्ती धारा वह धारा है जो किसी विद्युत परिपथ में अपनी दिशा बदलती रहती हैं। इसके विपरीत दिष्ट धारा समय के साथ अपनी दिशा नहीं बदलती। भारत में घरों में प्रयुक्त प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति ५० हर्ट्स होती हैं अर्थात यह एक सेकेण्ड में पचास बार अपनी दिशा बदलती है। वेस्टिंगहाउस का आरम्भिक दिनों का प्रत्यावर्ती धारा निकाय प्रत्यावर्ती धारा या पत्यावर्ती विभव का परिमाण (मैग्निट्यूड) समय के साथ बदलता रहता है और वह शून्य पर पहुंचकर विपरीत चिन्ह का (धनात्मक से ऋणात्मक या इसके उल्टा) भी हो जाता है। विभव या धारा के परिमाण में समय के साथ यह परिवर्तन कई तरह से सम्भव है। उदाहरण के लिये यह साइन-आकार (साइनस्वायडल) हो सकता है, त्रिभुजाकार हो सकता है, वर्गाकार हो सकता है, आदि। इनमें साइन-आकार का विभव या धारा का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। आजकल दुनिया के लगभग सभी देशों में बिजली का उत्पादन एवं वितरण प्रायः प्रत्यावर्ती धारा के रूप में ही किया जाता है, न कि दिष्ट-धारा (डीसी) के रूप में। इसका प्रमुख कारण है कि एसी का उत्पादन आसान है; इसके परिमाण को बिना कठिनाई के ट्रान्सफार्मर की सहायता से कम या अधिक किया जा सकता है; तरह-तरह की त्रि-फेजी मोटरों की सहायता से इसको यांत्रिक उर्जा में बदला जा सकता है। इसके अलावा श्रव्य आवृत्ति, रेडियो आवृत्ति, दृश्य आवृत्ति आदि भी प्रत्यावर्ती धारा के ही रूप हैं। .

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बलाघूर्ण

बल F, बलाघूर्ण τ, रेखीय संवेग p, तथा कोणीय संवेग L में संबन्ध; ध्यान दें कि यहाँ घूर्णन एक ही तल में सीमित है। right 'तौलना' वास्तव में दो बलों के आघूर्णों की समानता पर आधारित है। किसी बल द्वारा किसी वस्तु को किसी अक्ष के परितः घुमाने की प्रवृत्ति (tendency) को बलाघूर्ण (Torque, moment या moment of force) कहते हैं। पार्श्व चित्र में बल F का बिन्दु O के सापेक्ष बलाघूर्ण M है तो - जहां r बिन्दु O के सापेक्ष बल F की क्रियारेखा पर स्थित किसी बिन्दु का स्थिति सदिश (position vector) है। मोटे तौर पर बलाघूर्ण का अर्थ किसी वस्तु (बोल्ट या फ्लाईव्हील) पर लगने वाला 'घूर्नन बल' (घुमाने वाला बल) होता है। उदाहरण के लिये जब किसी पाने (रिंच) के हैंडिल को खींचते या धक्का देते हैं तो इससे एक बलाघूर्ण उत्पन्न होता है जो नट या बोल्ट को ढीला करता है या कसता है। .

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रेलगाड़ी

रेलगाड़ी रेलगाड़ी शब्द दो शब्द रेल और गाड़ी से मिलकर बना है जिसका अर्थ होता है रेल (अब हिन्दी में इसे रेल की पटरी या सिर्फ पटरी कहते हैं) पर चलने वाली गाड़ी। दूसरे शब्दों में एक रेलगाड़ी या ट्रेन वाहनों (डिब्बों) की एक जुड़ी हुई श्रृंखला है जो एक निश्चित स्थायी पथ पर चलकर माल और सवारियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाती है। यह पथ आमतौर पर दो पटरियों से बना होता है, लेकिन यह एक पटरीय या मेग्लेव गाइडवे भी हो सकता है। ट्रेन के लिए प्रणोदन एक अलग लोकोमोटिव या स्वयं-प्रणोदित एकाधिक ईकाइयों की विशिष्ट मोटरों के द्वारा प्रदान किया जाता है। अधिकतर आधुनिक गाड़ियों डीजल इंजन या बिजली के इंजन जिन्हें रेलगाड़ी के ऊपर से जा रहे बिजली के तारों से बिजली मिलती है, द्वारा चलाई जाती हैं पर 19 वीं सदी के मध्य से 20 वीं शताब्दी तक यह भाप के इंजनों से चलती थीं। ऊर्जा के अन्य स्रोत जैसे घोड़े, रस्सी या तार, गुरुत्वाकर्षण, न्युमेटिक और गैस टर्बाइन के द्वारा भी रेलगाड़ी चलाना संभव हैं। .

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विद्युत कर्षण

विद्युत गाड़ी रेलगाड़ी, ट्राम अथवा अन्य किसी प्रकार की गाड़ी को खींचने के लिए, विद्युत् शक्ति का उपयोग करने की विधि को विद्युत कर्षण (Electric Traction) कहते हैं। इस क्षेत्र में, वाष्प इंजन तथा अन्य दूसरे प्रकार के इंजन ही सामान्य रूप से प्रयोग किए जाते रहे हैं। विद्युत्‌ शक्ति का कर्षण के लिए प्रयोग सापेक्षतया नवीन है परंतु अपनी विशेष सुविधाओं के कारण, इसका प्रयोग बढ़ता गया और धीरे-धीरे अन्य साधनों का स्थान यह अब लेता जा रहा है। विद्युत्कर्षण में नियंत्रण की सुविधा तथा गाड़ियों का अधिक वेग से संचालन हो सकने के कारण उतने ही समय में अधिक यातायात की उपलब्धि हो सकती है। साथ ही कोयला, धुआँ अथवा हानिकारक गैसों के न होने से अधिक स्वच्छता रहती है और नगर की घनी आबादीवाले भागों में भी इसका प्रयोग संभव है। विद्युत्‌ कर्षण हमारे युग का एक अत्यंत महत्वपूर्ण साधन है, जिसका उपयोग अधिकाधिक बढ़ता जा रहा है। .

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इंजन

चार-स्ट्रोक वाला आन्तरिक दहन इंजन आजकल अधिकांश कामों में इस्तेमाल होता है इंजन या मोटर उस यंत्र या मशीन (या उसके भाग) को कहते हैं जिसकी सहायता से किसी भी प्रकार की ऊर्जा का यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरण होता है। इंजन की इस यांत्रिक ऊर्जा का उपयोग, कार्य करने के लिए किया जाता है। अर्थात् इंजन रासायनिक ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा, गतिज ऊर्जा या ऊष्मीय ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलने का कार्य करता है। वर्तमान युग में अंतर्दहन इंजन तथा विद्युत मोटरों का अत्यन्त महत्व है। .

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कर्षण (इंजीनियरी)

रोल करके चलती हुई वस्तु पर लगने वाले बल किसी वस्तु को किसी समतल पर चलाने के लिए लगाया गया बल कर्षण (Traction या tractive force) कहलाता है। यह बल मुख्यतः शुष्क घर्षण को जीतने के लिए लगाना पड़ता है। .

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कर्षण मोटर

इस चित्र में PRR DD1 विद्युत रेलगाड़ी के कर्षण मोटर तथा उससे जुड़े अवयव दिखाए गये हैं। स्पष्टता के लिए शेष भाग नहीं दिखाये गये है। वह विद्युत मोटर जो किसी गाड़ी (जैसे रेलगाड़ी या विद्युत से सड़क पर चलने वाली कोई गाड़ी) को चलाने (propulsion) के लिए उपयोग की जाती है, उसे कर्षण मोटर (traction motor) कहते हैं। सबसे पहले कर्षण के लिए डीसी सीरीज मोटर का उपयोग किया गया क्योंकि इसकी विशेषता है कि यह कम चाल पर अधिक बलाघ्र्ण (टॉर्क) उत्पन्न करती है और अधिक चाल पर कम बलाघूर्ण। और यही चीज गाड़ियों के लिए बहुत उपयोगी है (उन्हें कम चाल पर अधिक बलाघुर्ण लगाना पड़ता है और अधिक चाल पर कम बलाघुर्ण)। बाद में एक फेजी प्रत्यावर्ती धारा से चलने वाला सीरीज मोटर का उपयोग किया गया। रचना की दृष्टि से यह डीसी सीरीज मोटर ही है जो डीसी के बजाय एक-फेजी एसी से चलायी जाती है। चूंकि डॅसी सीरीज मोटर एसी और डीसी दोनों से चलायी जा सकती है, इसलिए इसे 'यूनिवर्सल मोटर' भी कहते हैं। किन्तु प्रत्यावर्ती धारा से चलायी जाने वाली मोटरों की कोर ठोस लोहे की नहीं बनायी जाती बल्कि पट्टलित लोहे की बनायी जाती है ताकि भंवर धारा तथा हिस्टेरिसिस से होने वाली विद्युत-शक्ति का ह्रास कम किया जा सके। कर्षण के लिए पहले प्रेरण मोटर तथा तुल्यकालिक मोटर का उपयोग नहीं किया जाता था क्योंकि इनकी बलाघूर्ण-चाल वैशिष्ट्य इस कार्य के लिए उपयुक्त नहीं था। किन्तु उत्कृष्ट अर्धचालक युक्तियों के आ जाने से और डिजिटल इलेक्ट्रॉनिकी में अत्यन्त विकास के परिणामस्वरूप अब परिवर्तनशील चाल ड्राइव का विकास हो गया है जिसके साथ अब ये मोटरें भी कर्षण के काम में आने लगीं हैं। श्रेणी:विद्युत मोटर.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

डीसी सीरीज मोटर, यूनिवर्सल मोटर

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