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यशोदा

सूची यशोदा

यशोदा और नंद कृष्ण को झुलाते हुए। बालक कृष्ण को स्नान कराती यशोदा- भागवद पुराण की एक हस्तलिपि से १५वीं शती। यशोदा को पौराणिक ग्रंथों में नंद की पत्नी कहा गया है। भागवत पुराण में यह कहा गया है देवकी के पुत्र भगवान श्रीकृष्ण का जन्म देवकी के गर्भ से मथुरा के राजा कंस के कारागार में हुआ। कंस से रक्षा करने के लिए जब वासुदेव जन्म के बाद आधी रात में ही उन्हें यशोदा के घर गोकुल में छोड़ आए तो उनका का पालन पोषण यशोदा ने किया। .

8 संबंधों: एकांगा, देवकी, नंद, बलराम, भागवत पुराण, मथुरा, रोहिणी नक्षत्र, सुभद्रा

एकांगा

एकांगा यशोदा की पुत्री का नाम है जो कृष्ण और बलराम कि बहन थीं।यशोदा और देवकी आपस में सगे संबंधी थे। इनका वर्णन इसलिए नहीं हो पाया की इन्होने एकांतवाश ग्रहण कर लिया था जिन्हे योगमाया भी कहते हैं जो यादवों की कुल देवि मानी जाती हैं श्रेणी:कृष्ण.

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देवकी

कृष्ण और बलराम का माता-पिता से मिलनः राजा रवि वर्मा की कलाकृतिदेवकी महाभारत काल में मथुरा के राजा उग्रसेन के भाई देवक की कन्या थी और श्रीकृष्ण और बलराम की माता थीं। उनको अदिति का अवतार भी माना जाता है। यह भी माना जाता है कि उनका पुनर्जन्म पृष्णि के रूप में हुआ और उस जन्म में उनका विवाह राज सुतपस से हुआ। देवकी के रूप में इनका विवाह वसुदेव से हुआ। उग्रसेन के क्रूर बेटे कंस को जब यह भविष्यवाणी सुना कि उसका वध देवकी के आठवें बेटे के हाथों होगा तो उसने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया और उनके छ: बेटों की जन्म होते ही हत्या कर दी। बलराम इनके सातवें पुत्र थे। आठवें बच्चे कृष्ण (जो वास्तव में भगवान विष्णु का अवतार थे) का जन्म होते ही वसुदेव उसे पास में ही एक दूसरे गाँव गोकुल में छोड़ आए जहाँ नंद और उनकी पत्नी यशोदा ने उसका पालन-पोषण किया। लौटते समय वसुदेव यशोदा की कन्या महामाया को अपने साथ लेते आए। कहते हैं कि जब कंस ने उसको मारने की चेष्टा की तो वह हाथ से छूट गई और आकाश की ओर जाते हुआ उसने भविष्यवाणी कि कि तुझे मारनेवाला तो गोकुल में जन्म ले चुका है। जब कंस को पता चला कि देवकी का आठवाँ पुत्र गायब हो चुका है तो उसने वसुदेव और देवकी को कारागार से मुक्त कर दिया। मुक्त होने के बाद वे लोग मथुरा में रहने लगे। वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी से सुभद्रा नामक कृष्ण की एक बहन थीं। इसका विवाह अर्जुन से हुआ और अभिमन्यु की माता थीं। .

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नंद

कोई विवरण नहीं।

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बलराम

पांचरात्र शास्त्रों के अनुसार बलराम (बलभद्र) भगवान वासुदेव के ब्यूह या स्वरूप हैं। उनका कृष्ण के अग्रज और शेष का अवतार होना ब्राह्मण धर्म को अभिमत है। जैनों के मत में उनका संबंध तीर्थकर नेमिनाथ से है। बलराम या संकर्षण का पूजन बहुत पहले से चला आ रहा था, पर इनकी सर्वप्राचीन मूर्तियाँ मथुरा और ग्वालियर के क्षेत्र से प्राप्त हुई हैं। ये शुंगकालीन हैं। कुषाणकालीन बलराम की मूर्तियों में कुछ व्यूह मूर्तियाँ अर्थात् विष्णु के समान चतुर्भुज प्रतिमाए हैं और कुछ उनके शेष से संबंधित होने की पृष्ठभूमि पर बनाई गई हैं। ऐसी मूर्तियों में वे द्विभुज हैं और उनका मस्तक मंगलचिह्नों से शोभित सर्पफणों से अलंकृत है। बलराम का दाहिना हाथ अभयमुद्रा में उठा हुआ है और बाएँ में मदिरा का चषक है। बहुधा मूर्तियों के पीछे की ओर सर्प का आभोग दिखलाया गया है। कुषाण काल के मध्य में ही व्यूहमूर्तियों का और अवतारमूर्तियों का भेद समाप्तप्राय हो गया था, परिणामत: बलराम की ऐसी मूर्तियाँ भी बनने लगीं जिनमें नागफणाओं के साथ ही उन्हें हल मूसल से युक्त दिखलाया जाने लगा। गुप्तकाल में बलराम की मूर्तियों में विशेष परिवर्तन नहीं हुआ। उनके द्विभुज और चतुर्भुज दोनों रूप चलते थे। कभी-कभी उनका एक ही कुंडल पहने रहना "बृहत्संहिता" से अनुमोदित था। स्वतंत्र रूप के अतिरिक्त बलराम तीर्थंकर नेमिनाथ के साथ, देवी एकानंशा के साथ, कभी दशावतारों की पंक्ति में दिखलाई पड़ते हैं। कुषाण और गुप्तकाल की कुछ मूर्तियों में बलराम को सिंहशीर्ष से युक्त हल पकड़े हुए अथवा सिंहकुंडल पहिने हुए दिखलाया गया है। इनका सिंह से संबंध कदाचित् जैन परंपरा पर आधारित है। मध्यकाल में पहुँचते-पहुँचते ब्रज क्षेत्र के अतिरिक्त - जहाँ कुषाणकालीन मदिरा पीने वाले द्विभुज बलराम मूर्तियों की परंपरा ही चलती रही - बलराम की प्रतिमा का स्वरूप बहुत कुछ स्थिर हो गया। हल, मूसल तथा मद्यपात्र धारण करनेवाले सर्पफणाओं से सुशोभित बलदेव बहुधा समपद स्थिति में अथवा कभी एक घुटने को किंचित झुकाकर खड़े दिखलाई पड़ते हैं। कभी-कभी रेवती भी साथ में रहती हैं। .

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भागवत पुराण

सन १५०० में लिखित एक भागवत पुराण मे यशोदा कृष्ण को स्नान कराते हुए भागवत पुराण (Bhaagwat Puraana) हिन्दुओं के अट्ठारह पुराणों में से एक है। इसे श्रीमद्भागवतम् (Shrimadbhaagwatam) या केवल भागवतम् (Bhaagwatam) भी कहते हैं। इसका मुख्य वर्ण्य विषय भक्ति योग है, जिसमें कृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। इसके अतिरिक्त इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरुपण भी किया गया है। परंपरागत तौर पर इस पुराण का रचयिता वेद व्यास को माना जाता है। श्रीमद्भागवत भारतीय वाङ्मय का मुकुटमणि है। भगवान शुकदेव द्वारा महाराज परीक्षित को सुनाया गया भक्तिमार्ग तो मानो सोपान ही है। इसके प्रत्येक श्लोक में श्रीकृष्ण-प्रेम की सुगन्धि है। इसमें साधन-ज्ञान, सिद्धज्ञान, साधन-भक्ति, सिद्धा-भक्ति, मर्यादा-मार्ग, अनुग्रह-मार्ग, द्वैत, अद्वैत समन्वय के साथ प्रेरणादायी विविध उपाख्यानों का अद्भुत संग्रह है। .

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मथुरा

मथुरा उत्तरप्रदेश प्रान्त का एक जिला है। मथुरा एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। लंबे समय से मथुरा प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का केंद्र रहा है। भारतीय धर्म,दर्शन कला एवं साहित्य के निर्माण तथा विकास में मथुरा का महत्त्वपूर्ण योगदान सदा से रहा है। आज भी महाकवि सूरदास, संगीत के आचार्य स्वामी हरिदास, स्वामी दयानंद के गुरु स्वामी विरजानंद, कवि रसखान आदि महान आत्माओं से इस नगरी का नाम जुड़ा हुआ है। मथुरा को श्रीकृष्ण जन्म भूमि के नाम से भी जाना जाता है। .

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रोहिणी नक्षत्र

रोहिणी नक्षत्र रोहिणी नक्षत्र को वृष राशि का मस्तक कहा गया है। इस नक्षत्र में तारों की संख्या पाँच है। भूसे वाली गाड़ी जैसी आकृति का यह नक्षत्र फरवरी के मध्य भाग में मध्याकाश में पश्चिम दिशा की तरफ रात को 6 से 9 बजे के बीच दिखाई देता है। यह कृत्तिका नक्षत्र के पूर्व में दक्षिण भाग में दिखता है। नक्षत्रों के क्रम में चौथे स्थान पर आने वाला नक्षत्र वृष राशि के 10 डिग्री-0'-1 से 23 डिग्री-20'-0 के बीच है। किसी भी वर्ष की 26 मई से 8 जून तक के 14 दिनों में इस नक्षत्र से सूर्य गुजरता है। इस प्रकार रोहिणी के प्रत्येक चरण में सूर्य लगभग साढ़े तीन दिन रहता है। इस नक्षत्र का स्वामी शुक्र है। योग- सौभाग्य, जाति- स्त्री, स्वभाव से शुभ, वर्ण- शूद्र है और उसका विंशोतरी दशा स्वामी ग्रह चंद्र है। रोहिणी नक्षत्र किसी भी स्थान के मध्यवर्ती प्रदेश को संकेत करता है। इस कारण किसी भी स्थल के मध्य भाग के प्रदेश में बनने वाली घटनाओं या कारणों के लिए रोहिणी में होने वाले ग्रहाचार को देखा जाना चाहिए। पुराण कथा के अनुसार रोहिणी चंद्र की सत्ताईस पत्नियों में सबसे सुंदर, तेजस्वी, सुंदर वस्त्र धारण करने वाली है। ज्यों-ज्यों चंद्र रोहिणी के पास जाता है, त्यों-त्यों उसका रूप अधिक खिल उठता है। चंद्र के साथ एकाकार होकर छुप भी जाती है। रोहिणी के देवता ब्रह्माजी हैं। रोहिणी जातक सुंदर, शुभ्र, पति प्रेम, संपादन करने वाले, तेजस्वी, संवेदनशील, संवेदनाओं से जीते जा सकने वाले, सम्मोहक तथा सदा ही प्रगतिशील होते हैं। मुँह, जीभ, तलवा, गर्दन और गर्दन की हड्डी और उसमें आने वाले अवयव इसके क्षेत्र हैं। इस नक्षत्र के जातक पतले, स्वार्थी, झूठे, सामाजिक, मित्राचार वाले, दृढ़ मनोबल वाले, बुद्धिशाली, पद-प्रतिष्ठा वाले, रसवृत्ति वाले, सुखी, संगीत कला इत्यादि ललित कलाओं में रस रखने वाले, देव-देवियों में आराध्य वाले मिलते हैं। जातक मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं। एजेंट्स, जज, फैंसी आइटमों के व्यापारी, जमीन, खेती, राजकीय प्रवृत्तियों द्वारा, साहित्य आदि से धन-वैभव और सत्ता प्राप्त करते हैं। जिस स्त्री का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ हो वह स्त्री सुंदर, सावधान, पवित्र, पति की आज्ञाकारिणी, माता-पिता की भक्त और सेवाभावी पुत्र-पुत्रियों से युक्त, ऐश्वर्यवान होती है। रोहिणी शुभ ग्रहों से युक्त या संबंधित होने के कारण नक्षत्र सूचित अंग, उपांग तथा मुँह, गले, जीभ, गर्दन, गर्दन के मणके के रोगों का प्रभाव होता है। रोहिणी की पहचान उसकी विशाल आँखें हैं। (.

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सुभद्रा

कृष्ण और बलराम की बहन, महाभारत की एक पात्र। कृष्ण के सुझाव पर सुभद्रा का विवाह अर्जुन से हुआ था, अभिमन्यु इनका ही पुत्र था। श्रेणी:महाभारत के पात्र.

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