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2 संबंधों: तीव्र मध्यम, शास्त्रीय संगीत।
तीव्र मध्यम
भारतीय शास्त्रीय संगीत में जब कोई स्वर अपनी शुद्धावस्था से ऊपर होता है तब उसे तीव्र विकृत स्वर कहते हैं। ऐसा स्वर मध्यम है। जिसे म के लघु रूप में भी जाना जाता है। अनेक रागों में शुद्ध के साथ अथवा केवल तीव्र मध्यम का प्रयोग होता है। उदाहरण के लिए राग हिंडोल में केवल तीव्र मध्यम का प्रयोग होता है। जिसका अर्थ है हिंडोल राग में मध्यम स्वर अपने निश्चित स्थान से ऊपर की ओर प्रयोग किया जाता है। राग यमन कल्याण में शुद्ध और तीव्र दोनों मध्यम प्रयोग किए जाते हैं। श्रेणी:भारतीय संगीत के स्वर.
देखें मध्यम और तीव्र मध्यम
शास्त्रीय संगीत
भारतीय शास्त्रीय संगीत या मार्ग, भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है। शास्त्रीय संगीत को ही ‘क्लासिकल म्जूजिक’ भी कहते हैं। शास्त्रीय गायन ध्वनि-प्रधान होता है, शब्द-प्रधान नहीं। इसमें महत्व ध्वनि का होता है (उसके चढ़ाव-उतार का, शब्द और अर्थ का नहीं)। इसको जहाँ शास्त्रीय संगीत-ध्वनि विषयक साधना के अभ्यस्त कान ही समझ सकते हैं, अनभ्यस्त कान भी शब्दों का अर्थ जानने मात्र से देशी गानों या लोकगीत का सुख ले सकते हैं। इससे अनेक लोग स्वाभाविक ही ऊब भी जाते हैं पर इसके ऊबने का कारण उस संगीतज्ञ की कमजोरी नहीं, लोगों में जानकारी की कमी है। .
देखें मध्यम और शास्त्रीय संगीत