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भूमिहार

सूची भूमिहार

भूमिहार, भूमिहार ब्राह्मण या बाभन एक भारतीय जाति है, जो उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड तथा थोड़ी संख्या में अन्य प्रदेशों में निवास करती है। भूमिहार का अर्थ होता है "भूमिपति", "भूमिवाला" या भूमि से आहार अर्जित करने वाला (कृषक) । भूमिहार अपने आप को भगवान परशुराम का शिष्य मानते हैं, भूमिहार उत्तरप्रदेश के गाजीपुर व आजमगढ़़ जिले में सबसे ज्यादा हैं | बिहार में इनकी सबसे बड़ी आबादी है। तिवारी, त्रिपाठी, मिश्र, शुक्ल, उपाध्यय, शर्मा, पाठक दूबे, द्विवेदी आदि भूमिहर समाज की उपाधियाँ है। इसके अलावा राजपाठ और जमींदारी के कारण एक बड़ा भाग का राय, साही, सिन्हा, सिंह और ठाकुर उपनाम भी हैं। ये खेतिहर ब्राह्मण है हालांकि ब्राह्मणों का एक समुदाय भूमिहरों को ब्राह्मण मानने से इनकार करता है क्योंकि ये पूजा-पाठ का परम्परागत पेशा छोड़कर खेती करते हैं। कई विद्वानों का मानना है कि भूमिहार अंग्रेजों और मुग़लों के समय प्रमुखता से फौजी सेना में भर्ती हुए थे। इसके बदले में भूमिहरों को बड़ी सम्पत्ति मिली। चूँकि दिल्ली के आसपास रहने वाली त्यागी जाति भी अपने आप को परशुराम का शिष्य मानती है इसी से भूमिहर भी त्यागियों को अपनी ही जाति का मानते हैं। इस जाति के ज्यादातर लोग कृषक है और बाकी ब्राह्मणों की तरह दान नहीं लेते। इसलिए ये "अयाचक ब्राह्मण " कहे गए हैं। सन १८८५ में अयाचक ब्राह्मणों की महासभा की स्थापना काशी-नरेश के प्रयास से वाराणसी में हुई.

13 संबंधों: ठाकुर, त्यागी, परशुराम, मदारपुर का युद्ध, रामधारी सिंह 'दिनकर', राय, राहुल सांकृत्यायन, लंगड़ा आम, शारदा सिन्हा, शुनःशेप, सिंह, जयराम सिंह, जरासन्ध

ठाकुर

'ठाकुर' के निम्नलिखित अर्थ हो सकते हैं-.

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त्यागी

त्यागी अर्थात ब्राह्मण आदि वंशज यानि अयाचक ब्राह्मणों को सम्पूर्ण भारतवर्ष में विभिन्न उपनामों जैसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, दिल्ली, हरियाणा व राजस्थान के कुछ भागों में त्यागी, पूर्वी उत्तर प्रदेश, व बंगाल में ब्राह्मण, जम्मू कश्मीर, पंजाब व हरियाणा के कुछ भागों में महियाल, मध्य प्रदेश व राजस्थान में गालव, गुजरात में अनाविल, महाराष्ट्र में चितपावन एवं कार्वे, कर्नाटक में अयंगर एवं हेगडे, केरल में नम्बूदरीपाद, तमिलनाडु में अयंगर एवं अय्यर, आंध्र प्रदेश में नियोगी एवं राव आदि उपनामों से जाना जाता है। अयाचक ब्राह्मण अपने विभिन्न नामों के साथ भिन्न भिन्न क्षेत्रों में अभी तक तो अधिकतर कृषि कार्य करते थे, लेकिन पिछले कुछ समय से विभिन्न क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। अयाचक ब्राह्मणों की उत्पत्ति:- हमारे देश आर्यावर्त में 7200 विक्रमसम्वत् पूर्व देश, धर्म व संस्कृति की रक्षा हेतु एक विराट युद्ध सहस्रबाहु सहित समस्त आर्यावर्त के 21 राज्यों के क्षत्रिय राजाओ के विरूद्ध हुआ, जिसका नेतृत्व ऋषि जमदग्नि के पुत्र ब्रह्म भगवान परशुराम ने किया, इस युद्ध में आर्यावर्त के अधिकतर ब्राह्मणों ने भाग लिया और इस युद्ध में भगवान परशुराम की विजय हुई तथा इस युद्ध के उपरान्त अधिकतर ब्राह्मण अपना धर्मशास्त्र एवं ज्योतिषादि का कार्य त्यागकर समय-समय पर कृषि क्षेत्र में संलग्न होते गये, जिन्हे अयाचक ब्राह्मण व खांडवायन कहा जाने लगा जोकि कालान्तर में त्यागी, महियाल, गालव, चितपावन, नम्बूदरीपाद, नियोगी, अनाविल, कार्वे, राव, हेगडे, अयंगर एवं अय्यर आदि कई अन्य उपनामों से पहचाने जाने लगे। त्यागी ब्राह्मणों को महाभारत काल से ही जाना जाता है क्योकि महाभारत काल में इनका एक नगर था जो कांपिल्य नगर के नाम से जाना जाता था.

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परशुराम

परशुराम त्रेता युग (रामायण काल) के एक ब्राह्मण थे। उन्हें विष्णु का छठा अवतार भी कहा जाता है। पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। वे भगवान विष्णु के छठे अवतार थे। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये। आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से सारंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। तदनन्तर कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया। वे शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त "शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र" भी लिखा। इच्छित फल-प्रदाता परशुराम गायत्री है-"ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नोपरशुराम: प्रचोदयात्।" वे पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के पक्षधर थे। उन्होंने अत्रि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था। अवशेष कार्यो में कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है। .

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मदारपुर का युद्ध

मदारपुर का युद्ध मदारपुर नामक स्थान, जो कानपुर शहर के समीप है, मदारपुर के अधिपति राजभरो और बाबर की सेनाओं के बीच विक्रम संवत १५८४ (वर्ष १५२८) में हुआ था जिसमें बाबर की सेना विजयी रही । .

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रामधारी सिंह 'दिनकर'

रामधारी सिंह 'दिनकर' (२३ सितंबर १९०८- २४ अप्रैल १९७४) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। बिहार प्रान्त के बेगुसराय जिले का सिमरिया घाट उनकी जन्मस्थली है। उन्होंने इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की। उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था। 'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तिय का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है। उर्वशी को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार जबकि कुरुक्षेत्र को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ काव्यों में ७४वाँ स्थान दिया गया। .

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राय

१. एक भारतीय उपनाम।- यह पूर्वी उत्तर प्रदेश की भूमिहार जाति के लोगो का प्रमुख उप नाम है। इस उपनाम को और भी बहुत सी जातिया प्रयुक्त करती है। उदाहरण: सत्यजीत राय, राजा राम मोहन राय इत्यादि। २. मत | .

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राहुल सांकृत्यायन

राहुल सांकृत्यायन जिन्हें महापंडित की उपाधि दी जाती है हिन्दी के एक प्रमुख साहित्यकार थे। वे एक प्रतिष्ठित बहुभाषाविद् थे और बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में उन्होंने यात्रा वृतांत/यात्रा साहित्य तथा विश्व-दर्शन के क्षेत्र में साहित्यिक योगदान किए। वह हिंदी यात्रासहित्य के पितामह कहे जाते हैं। बौद्ध धर्म पर उनका शोध हिन्दी साहित्य में युगान्तरकारी माना जाता है, जिसके लिए उन्होंने तिब्बत से लेकर श्रीलंका तक भ्रमण किया था। इसके अलावा उन्होंने मध्य-एशिया तथा कॉकेशस भ्रमण पर भी यात्रा वृतांत लिखे जो साहित्यिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं। २१वीं सदी के इस दौर में जब संचार-क्रान्ति के साधनों ने समग्र विश्व को एक ‘ग्लोबल विलेज’ में परिवर्तित कर दिया हो एवं इण्टरनेट द्वारा ज्ञान का समूचा संसार क्षण भर में एक क्लिक पर सामने उपलब्ध हो, ऐसे में यह अनुमान लगाना कि कोई व्यक्ति दुर्लभ ग्रन्थों की खोज में हजारों मील दूर पहाड़ों व नदियों के बीच भटकने के बाद, उन ग्रन्थों को खच्चरों पर लादकर अपने देश में लाए, रोमांचक लगता है। पर ऐसे ही थे भारतीय मनीषा के अग्रणी विचारक, साम्यवादी चिन्तक, सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत, सार्वदेशिक दृष्टि एवं घुमक्कड़ी प्रवृत्ति के महान पुरूष राहुल सांकृत्यायन। राहुल सांकृत्यायन के जीवन का मूलमंत्र ही घुमक्कड़ी यानी गतिशीलता रही है। घुमक्कड़ी उनके लिए वृत्ति नहीं वरन् धर्म था। आधुनिक हिन्दी साहित्य में राहुल सांकृत्यायन एक यात्राकार, इतिहासविद्, तत्वान्वेषी, युगपरिवर्तनकार साहित्यकार के रूप में जाने जाते है। .

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लंगड़ा आम

बनारस का प्रसिद्ध लंगड़ा आम। वैसे तो बनारस आज भी बहुत-सी चीजों के लिए मशहूर है, पर जिस चीज के लिए वह सारे उत्तर भारत में प्रसिद्ध है, वह है बनारस का लंगड़ा आम, जिसे देखते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है और वे उसे किसी भी कीमत पर खरीदने को तैयार हो जाते हैं। बनारस के लंगड़ा आम की जन्म-कथा भी रोचक है। .

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शारदा सिन्हा

शारदा सिन्हा बिहार की एक लोकप्रिय गायिका हैं। इनका जन्म 1 अक्टुबर 1952 को हुआ। इन्होंने मैथिली, बज्जिका, भोजपुरी के अलावे हिन्दी गीत गाये हैं। मैंने प्यार किया तथा हम आपके हैं कौन जैसी फिल्मों में इनके द्वारा गाये गीत काफी प्रचलित हुए हैं। इनके गाये गीतों के कैसेट संगीत बाजार में सहजता से उपलब्ध है। दुल्हिन, पीरितिया, मेंहदी जैसे कैसेट्स काफी बिके हैं। बिहार एवं यहाँ से बाहर दुर्गा-पूजा, विवाह-समारोह या अन्य संगीत समारोहों में शारदा सिन्हा द्वारा गाये गीत अक्सर सुनाई देते हैं। लोकगीतों के लिए इन्हें 'बिहार-कोकिला', 'पद्म श्री' एवं 'पद्म भूषण' सम्मान से विभूषित किया गया है। .

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शुनःशेप

शुनःशेप ऐतरेय ब्राह्मण में स्थित एक आख्यान है। इसका सारांश यह है कि जब तक मृत्यु सामने न आये तब तक रूपान्तरण नहीं होता। यह आख्यान मानवीय लोभ, बेइमानी और उससे ऊपर उठने की क्षमता की कथा है। .

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सिंह

सिंह के कई अर्थ हो सकते हैं:-.

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जयराम सिंह

जयराम सिंह (8 अगस्त 1928-8 दिसंबर 2006) 'मगही भाषा के कवि हैं। इन्हें 'मगही कोकिल'के नाम से जाना जाता है। इनका जन्म वजीरगंज (गया) के कारीसोवा गांव में हुआ था। पेशे से प्राचार्य रहे जनकवि जयराम की चार पुस्तकें ‘भुरुकवा उग गेल’, ‘त्रिवेणी' ‘पुरहर पल्लो’और 'चिजोर' प्रकाशित हैं। मगही आलोचक और साहित्यकार डा.

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जरासन्ध

A painting from the Mahabharata Balabhadra fighting Jarasandha जरासंध महाभारत कालीन मगध राज्य का नरेश था। वह बहुत ही शक्तिशाली राजा था और उसका सपना चक्रवती सम्राट बनने का था। यद्यपि वह एक शक्तिशाली राजा तो था, लेकिन वह था बहुत क्रूर। अजेय हो क अपना सपना पूरा करने के लिए उसने बहुत से राजाओं को अपने कारागार में बंदी बनाकर रखा था। वह मथुरा के यदुवँशी नरेश कंस का ससुर एवं परम मित्र था उसकी दोनो पुत्रियो आसित एव्म प्रापित का विवाह कंस से हुआ था। श्रीकृष्ण से कंस वध का प्रतिशोध लेने के लिए उसने १७ बार मथुरा पर चढ़ाई की लेकिन हर बार उसे असफल होना पड़ा। जरासंध श्री कृष्ण का परम शत्रु और एक योद्धा था। .

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भूमिहर ब्राह्मण, भूमिहार ब्राह्मण

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