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4 संबंधों: भारतीय नौसेना, लोथल, ज्वार-भाटा, गोदी।
- भारतीय नौसेना
भारतीय नौसेना
भारतीय नौसेना(Indian Navy) भारतीय सेना का सामुद्रिक अंग है जो कि ५६०० वर्षों के अपने गौरवशाली इतिहास के साथ न केवल भारतीय सामुद्रिक सीमाओं अपितु भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की भी रक्षक है। ५५,००० नौसेनिकों से लैस यह विश्व की पाँचवी सबसे बड़ी नौसेना भारतीय सीमा की सुरक्षा को प्रमुखता से निभाते हुए विश्व के अन्य प्रमुख मित्र राष्ट्रों के साथ सैन्य अभ्यास में भी सम्मिलित होती है। पिछले कुछ वर्षों से लागातार आधुनिकीकरण के अपने प्रयास से यह विश्व की एक प्रमुख शक्ति बनने की भारत की महत्त्वाकांक्षा को सफल बनाने की दिशा में है। जून २०१६ से एडमिरल सुनील लांबा भारत के नौसेनाध्यक्ष हैं। .
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लोथल
लोथल लोथल (गुजराती: લોથલ), प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों में से एक बहुत ही महत्वपूर्ण शहर है। लगभग 2400 ईसापूर्व पुराना यह शहर भारत के राज्य गुजरात के भाल क्षेत्र में स्थित है और इसकी खोज सन 1954 में हुई थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस शहर की खुदाई 13 फ़रवरी 1955 से लेकर 19 मई 1956 के मध्य की थी। लोथल, अहमदाबाद जिले के धोलका तालुका के गाँव सरागवाला के निकट स्थित है। अहमदाबाद-भावनगर रेलवे लाइन के स्टेशन लोथल भुरखी से यह दक्षिण पूर्व दिशा में 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। लोथल अहमदाबाद, राजकोट, भावनगर और धोलका शहरों से पक्की सड़क द्वारा जुड़ा है जिनमें से सबसे करीबी शहर धोलका और बगोदरा हैं। लोथल गोदी जो कि विश्व की प्राचीनतम ज्ञात गोदी है, सिंध में स्थित हड़प्पा के शहरों और सौराष्ट्र प्रायद्वीप के बीच बहने वाली साबरमती नदी की प्राचीन धारा के द्वारा शहर से जुड़ी थी, जो इन स्थानों के मध्य एक व्यापार मार्ग था। उस समय इसके आसपास का कच्छ का मरुस्थल, अरब सागर का एक हिस्सा था। प्राचीन समय में यह एक महत्वपूर्ण और संपन्न व्यापार केंद्र था जहाँ से मोती, जवाहरात और कीमती गहने पश्चिम एशिया और अफ्रीका के सुदूर कोनों तक भेजे जाते थे। मनकों को बनाने की तकनीक और उपकरणों का समुचित विकास हो चुका था और यहाँ का धातु विज्ञान पिछले 4000 साल से भी अधिक से समय की कसौटी पर खरा उतरा था। 1961 में भारतीय पुराततव सर्वेक्षण ने खुदाई का कार्य फिर से शुरु किया और टीले के पूर्वी और पश्चिमी पक्षों की खुदाई के दौरान उन वाहिकाओं और नालों को खोद निकाला जो नदी के द्वारा गोदी से जुड़े थे। प्रमुख खोजों में एक टीला, एक नगर, एक बाज़ार स्थल और एक गोदी शामिल है। उत्खनन स्थल के पास ही एक पुरात्तत्व संग्रहालय स्थित हैं जिसमें सिंधु घाटी से प्राप्त वस्तुएं प्रदर्शित की गयी हैं। .
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ज्वार-भाटा
धरती पर स्थित सागरों के जल-स्तर का सामान्य-स्तर से ऊपर उठना ज्वार तथा नीचे गिरना भाटा कहलाता है। ज्वार-भाटा की घटना केवल सागर पर ही लागू नहीं होती बल्कि उन सभी चीजों पर लागू होतीं हैं जिन पर समय एवं स्थान के साथ परिवर्तनशील गुरुत्व बल लगता है। (जैसे ठोस जमीन पर भी) पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति की क्रियाशीलता ही ज्वार-भाटा की उत्पत्ति का प्रमुख कारण हैं। .
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गोदी
सिंगापुर की शुष्क गोदी नौनिवेश या गोदी या 'डॉक' (Dock) जलयानों के ठहरने के स्थान को कहते हैं। यदि स्थान पूरी तरह घिरा हुआ नहीं है, बल्कि उसका मुख समुद्र से आने जाने के लिए सदा खुला रहता है, तो उसके लिए 'बेसिन' नाम अधिक उपयुक्त है, यद्यपि यह नाम सर्वव्यापी नहीं है। गोदियों के मुख पर फाटक या कोठियाँ लगी होती हैं, जिससे उनमें यथेच्छ तल तक पानी रखा जा सके। जिस गोदी में पानी प्राय: एक ही तल तक रहता है, वह सजल गोदी कहलाती है तथा जिस गोदी में से पानी बिलकुल खाली किया जा सकता है, वह 'सूखी गोदी' कहलाती है। सूखी गोदी में जहाज निरीक्षण करने या मरम्मत करने के लिए लाए जाते हैं। सूखी गोदी का ही एक रूप 'तिरती गोदी' है। यह तैरते हुए बड़े बड़े पीपों की संरचना होती है, जो भीतर पानी भरकर, या खाली करके, नीची या ऊँची की जा सकती है और जहाज उसपर रखकर पानी के ऊपर उठाया जा सकता है। जिन पत्तनों में प्रकृतिप्रदत्त सुरक्षित और गहरा विशाल बेसिन होता है, ज्वारभाटा कम आता है और समुद्र में तेज धाराएँ नहीं होतीं, वहाँ सजल गोदी की आवश्यकता नहीं होती, जैसे न्यूयॉर्क में। किंतु सूखी या तिरती गोदी सभी बड़े आधुनिक पत्तनों का अनिवार्य अंग होती है। .
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