लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
इंस्टॉल करें
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

भाई संतोख सिंह

सूची भाई संतोख सिंह

भाई संतोख सिंह (सन् 1788-1843) वेदांत और सिक्ख दर्शन के विद्वान् और ज्ञानी संप्रदाय के विचारक थे। आपके पूर्वज छिंवा या छिब्बर नाम के मोह्याल ब्राह्मण थे। आपका जन्म अमृतसर में हुआ। आपके पिता श्री देवसिंह निर्मला संतों के संपर्क में रहे। आपकी माता का नाम राजादेई (राजदेवी) था। आप रूढ़िवाद के कट्टर विरोधी थे। अपनी परिवारिक परंपराओं की अवमानना करके आपने रोहिल्ला परिवार में विवाह किया। आपके सुपुत्र अजयसिंह भी बड़े विद्वान् हुए। भाई साहब ने ज्ञानी संतसिंह से काव्याध्ययन किया। तदनंतर संस्कृत की शिक्षा काशी में प्राप्त की। सन् 1823 में आप पटियालानरेश महाराज कर्मसिंह के दरबारी कवि के रूप में पधारे। दो वर्ष बाद कैथल के रईस श्री उदयसिंह आपको अपने यहाँ लिवा ले आए। पटियाला की भाँति कैथल में भी आपका बड़ा सम्मान हुआ और वहाँ पर अनेक विद्वानों का सहयोग भी प्राप्त हुआ। .

17 संबंधों: चौपाई, दोहा, पटियाला, पंजाबी, फ़ारसी भाषा, ब्रजभाषा, सिख दर्शन, सवैया, संस्कृत भाषा, जपजी साहिब, घनाक्षरी, वाल्मीकि, वेदान्त दर्शन, गुरु नानक, कैथल, अमरकोश, अमृतसर

चौपाई

चौपाई मात्रिक सम छन्द का एक भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के १६ मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में चौपाइ छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में १६-१६ मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है। .

नई!!: भाई संतोख सिंह और चौपाई · और देखें »

दोहा

दोहा, मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में १३-१३ मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में ११-११ मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के आदि में प्राय: जगण (। ऽ।) टालते है, लेकिन इस की आवश्यकता नहीं है। 'बड़ा हुआ तो' पंक्ति का आरम्भ ज-गण से ही होता है.

नई!!: भाई संतोख सिंह और दोहा · और देखें »

पटियाला

पटियाला भारत के पंजाब प्रांत का एक नगर और भूतपूर्व राज्य है। पटियाला जिला पूर्ववर्ती पंजाब की एक प्रमुख रियासत थी। आज यह पंजाब राज्‍य का पांचवा सबसे बड़ा जिला है। पटियाला की सीमाएं उत्‍तर में फतेहगढ़, रूपनगर और चंडीगढ़ से, पश्चिम में संगरूर जिले से, पूर्व में अंबाला और कुरुक्षेत्र से और दक्षिण में कैथल से मिलती हैं। पटियाला पैग के लिए मशहूर यह स्‍थान शिक्षा के क्षेत्र में भी अग्रणी रहा। देश का पहला डिग्री कॉलेज मोहिंदर कॉलेज की स्‍थापना 1870 में पटियाला में ही हुई थी। पटियाला की अपनी एक अलग संस्‍कृति है जो यहां के लोगों की विशेषता को दर्शाती है। यहां के वास्‍तुशिल्‍प में राजपूत शैली का पुट दिखाई पड़ता है लेकिन यह शैली भी स्‍थानीय परंपराओं में ढ़लकर एक नया रूप ले चुकी है। पटियाला का किला मुबारक परिसर तो जैसे सुंदरता की खान है। एक ही जगह पर कई खूबसूरत इमारतों को देखना अपने आप के अनोखा अनुभव है। .

नई!!: भाई संतोख सिंह और पटियाला · और देखें »

पंजाबी

पंजाबी का इनमें से मतलब हो सकता: संस्कृति में.

नई!!: भाई संतोख सिंह और पंजाबी · और देखें »

फ़ारसी भाषा

फ़ारसी, एक भाषा है जो ईरान, ताजिकिस्तान, अफ़गानिस्तान और उज़बेकिस्तान में बोली जाती है। यह ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, ताजिकिस्तान की राजभाषा है और इसे ७.५ करोड़ लोग बोलते हैं। भाषाई परिवार के लिहाज़ से यह हिन्द यूरोपीय परिवार की हिन्द ईरानी (इंडो ईरानियन) शाखा की ईरानी उपशाखा का सदस्य है और हिन्दी की तरह इसमें क्रिया वाक्य के अंत में आती है। फ़ारसी संस्कृत से क़ाफ़ी मिलती-जुलती है और उर्दू (और हिन्दी) में इसके कई शब्द प्रयुक्त होते हैं। ये अरबी-फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है। अंग्रेज़ों के आगमन से पहले भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ारसी भाषा का प्रयोग दरबारी कामों तथा लेखन की भाषा के रूप में होता है। दरबार में प्रयुक्त होने के कारण ही अफ़गानिस्तान में इस दारी कहा जाता है। .

नई!!: भाई संतोख सिंह और फ़ारसी भाषा · और देखें »

ब्रजभाषा

ब्रजभाषा मूलत: ब्रज क्षेत्र की बोली है। (श्रीमद्भागवत के रचनाकाल में "व्रज" शब्द क्षेत्रवाची हो गया था। विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक भारत के मध्य देश की साहित्यिक भाषा रहने के कारण ब्रज की इस जनपदीय बोली ने अपने उत्थान एवं विकास के साथ आदरार्थ "भाषा" नाम प्राप्त किया और "ब्रजबोली" नाम से नहीं, अपितु "ब्रजभाषा" नाम से विख्यात हुई। अपने विशुद्ध रूप में यह आज भी आगरा, हिण्डौन सिटी,धौलपुर, मथुरा, मैनपुरी, एटा और अलीगढ़ जिलों में बोली जाती है। इसे हम "केंद्रीय ब्रजभाषा" भी कह सकते हैं। ब्रजभाषा में ही प्रारम्भ में काव्य की रचना हुई। सभी भक्त कवियों ने अपनी रचनाएं इसी भाषा में लिखी हैं जिनमें प्रमुख हैं सूरदास, रहीम, रसखान, केशव, घनानंद, बिहारी, इत्यादि। फिल्मों के गीतों में भी ब्रजभाषा के शब्दों का प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है। .

नई!!: भाई संतोख सिंह और ब्रजभाषा · और देखें »

सिख दर्शन

सिख धर्म का दर्शन, उनके पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रन्थ साहिब में अत्यन्त विस्तार से दिया हुआ है। सिख धर्म के अनुयायियों को जीवन-यापन के लिये विस्तृत मार्गदर्शन दिया गया है ताकि इसी जीवन में शान्ति और मुक्ति प्राप्त हो जाय। श्रेणी:सिख धर्म.

नई!!: भाई संतोख सिंह और सिख दर्शन · और देखें »

सवैया

सवैया एक छन्द है। यह चार चरणों का समपाद वर्णछंद है। वर्णिक वृत्तों में 22 से 26 अक्षर के चरण वाले जाति छन्दों को सामूहिक रूप से हिन्दी में सवैया कहने की परम्परा है। इस प्रकार सामान्य जाति-वृत्तों से बड़े और वर्णिक दण्डकों से छोटे छन्द को सवैया समझा जा सकता है। कवित्त - घनाक्षरी के समान ही हिन्दी रीतिकाल में विभिन्न प्रकार के सवैया प्रचलित रहे हैं। .

नई!!: भाई संतोख सिंह और सवैया · और देखें »

संस्कृत भाषा

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .

नई!!: भाई संतोख सिंह और संस्कृत भाषा · और देखें »

जपजी साहिब

आदि गुरु श्री गुरुग्रंथ साहब की मूलवाणी जपुजी जगतगुरु श्री गुरुनानकदेवजी द्वारा जनकल्याण हेतु उच्चारित की गई अमृतमयी वाणी है। 'जपुजी' एक विशुद्ध एक सूत्रमयी दार्शनिक वाणी है उसमें महत्वपूर्ण दार्शनिक सत्यों को सुंदर अर्थपूर्ण और संक्षिप्त भाषा में काव्यात्मक ढंग से अभिव्यक्त किया है। इसमें ब्रह्मज्ञान का अलौकिक ज्ञान प्रकाश है। इसका दिव्य दर्शन मानव जीवन का चिंतन है। इस वाणी में धर्म के सत्य, शाश्वत मूल्यों को बही मनोहारी ढंग से प्रस्तुत किया गया है। अतः महान गुरु की इस महान कृति की व्याख्या करना तो दूर इसे समझना भी आसान नहीं है। लकिन जो इसमें प्रयुक्त भाषाओं को जानते हैं उनके लिए इसका चिंतन, मनन करना उदात्तकारी एवं उदर्वोमुखी है। यह एक पहली धार्मिक और रहस्यवादी रचना है और आध्यात्मिक एवं साहित्यिक क्षेत्र में इसका अत्यधिक महत्व महान है। गुरु नानक की जन्म साखियों में इस बात का उल्लेख है कि जब गुरुजी सुलतानपुर में रहते थे, तो वे रोजाना निकटवर्ती वैई नदी में स्नान करने के लिए जाया करते थे। जब वे 27 वर्ष के थे, तब एक दिन प्रातःकाल वे नदी में स्नान करने के लिए गए और तीन दिन तक नदी में समाधिस्थ रहे। वृतांत में कहा है कि इस समय गुरुजी को ईश्वर का साक्षात्कार हुआ था। उन पर ईश्वर की कृपा हुई थी और देवी अनुकम्पा के प्रतीक रूप में ईश्वर ने गुरुजी को एक अमृत का प्याला प्रदान किया थ। वृतांतों में इस बात की साक्षी मौजूद है कि इस अलौकिक अनुभव की प्रेरणा से गुरुजी ने मूलमंत्र का उच्चारण किया था, जिससे जपुजी साहिब का आरंभ होता है। जपुजी का प्रारंभिक शब्द एक ओमकारी बीज मंत्र है जैसे उपनिषदों और गीता में ओम शब्द बीज मंत्र है। मूल मंत्र है, जिसमें प्रभु के गुण नाम कथन किए गए हैं। समस्त जपुजी को मोटे तौर पर चार भागों में विभक्त किया गया है-.

नई!!: भाई संतोख सिंह और जपजी साहिब · और देखें »

घनाक्षरी

घनाक्षरी या कवित्त एक वार्णिक छन्द है। हिन्दी साहित्य में घनाक्षरी के प्रथम दर्शन भक्तिकाल में होते हैं। निश्चित रूप से कहना कठिन है कि हिन्दी में घनाक्षरी वृत्तों का प्रचलन कब से हुआ। घनाक्षरी छंद में मधुर भावों की अभिव्यक्ति उतनी सफलता के साथ नहीं हो सकती जितनी ओजपूर्ण भावों की। इस छन्द में चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में १६, १५ के विराम से ३१ वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के अन्त में गुरू वर्ण होना चाहिये। छन्द की गति को ठीक रखने के लिये ८, ८, ८ और ७ वर्णों पर यति रहना चाहिये। जैसे – घनाक्षरी छंद का उदाहरण "चन्दा झा" रचित "मिथिला भाषा रामायण " से दिया जा सकता है। " नाव अरि लाब नहि,उतरक दाब नहि, एक बुद्धि आब नहि,साग़र अपार में। वीर अरि छोट नहि, संग एक गोट नहि, लंका लघु कोट नहि, विदित संसार में। " Dhanakshri chand...

नई!!: भाई संतोख सिंह और घनाक्षरी · और देखें »

वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीक (संस्कृत: महर्षि वाल्मीक) प्राचीन भारतीय महर्षि हैं। ये आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होने संस्कृत में रामायण की रचना की। उनके द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई। रामायण एक महाकाव्य है जो कि श्रीराम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य से, कर्तव्य से, परिचित करवाता है।http://timesofindia.indiatimes.com/india/Maharishi-Valmeki-was-never-a-dacoit-Punjab-Haryana-HC/articleshow/5960417.cms आदिकवि शब्द 'आदि' और 'कवि' के मेल से बना है। 'आदि' का अर्थ होता है 'प्रथम' और 'कवि' का अर्थ होता है 'काव्य का रचयिता'। वाल्मीकि ऋषि ने संस्कृत के प्रथम महाकाव्य की रचना की थी जो रामायण के नाम से प्रसिद्ध है। प्रथम संस्कृत महाकाव्य की रचना करने के कारण वाल्मीकि आदिकवि कहलाये। वाल्मीकि एक आदि कवि थे पर उनकी विशेषता यह थी कि वे कोई ब्राह्मण नहीं थे, बल्कि केवट थे।। .

नई!!: भाई संतोख सिंह और वाल्मीकि · और देखें »

वेदान्त दर्शन

वेदान्त ज्ञानयोग की एक शाखा है जो व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उत्प्रेरित करता है। इसका मुख्य स्रोत उपनिषद है जो वेद ग्रंथो और अरण्यक ग्रंथों का सार समझे जाते हैं। उपनिषद् वैदिक साहित्य का अंतिम भाग है, इसीलिए इसको वेदान्त कहते हैं। कर्मकांड और उपासना का मुख्यत: वर्णन मंत्र और ब्राह्मणों में है, ज्ञान का विवेचन उपनिषदों में। 'वेदान्त' का शाब्दिक अर्थ है - 'वेदों का अंत' (अथवा सार)। वेदान्त की तीन शाखाएँ जो सबसे ज्यादा जानी जाती हैं वे हैं: अद्वैत वेदान्त, विशिष्ट अद्वैत और द्वैत। आदि शंकराचार्य, रामानुज और श्री मध्वाचार्य जिनको क्रमश: इन तीनो शाखाओं का प्रवर्तक माना जाता है, इनके अलावा भी ज्ञानयोग की अन्य शाखाएँ हैं। ये शाखाएँ अपने प्रवर्तकों के नाम से जानी जाती हैं जिनमें भास्कर, वल्लभ, चैतन्य, निम्बारक, वाचस्पति मिश्र, सुरेश्वर और विज्ञान भिक्षु। आधुनिक काल में जो प्रमुख वेदान्ती हुये हैं उनमें रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, अरविंद घोष, स्वामी शिवानंद राजा राममोहन रॉय और रमण महर्षि उल्लेखनीय हैं। ये आधुनिक विचारक अद्वैत वेदान्त शाखा का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरे वेदान्तो के प्रवर्तकों ने भी अपने विचारों को भारत में भलिभाँति प्रचारित किया है परन्तु भारत के बाहर उन्हें बहुत कम जाना जाता है। .

नई!!: भाई संतोख सिंह और वेदान्त दर्शन · और देखें »

गुरु नानक

नानक (पंजाबी:ਨਾਨਕ) (15 अप्रैल 1469 – 22 सितंबर 1539) सिखों के प्रथम (आदि गुरु) हैं। इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं। लद्दाख व तिब्बत में इन्हें नानक लामा भी कहा जाता है। नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु - सभी के गुण समेटे हुए थे। .

नई!!: भाई संतोख सिंह और गुरु नानक · और देखें »

कैथल

कैथल हरियाणा प्रान्त का एक महाभारत कालीन ऐतिहासिक शहर है। इसकी सीमा करनाल, कुरुक्षेत्र, जीन्द और पंजाब के पटियाला जिले से मिली हुई है। पुराणों के अनुसार इसकी स्थापना युधिष्ठिर ने की थी। इसे वानर राज हनुमान का जन्म स्थान भी माना जाता है। इसीलिए पहले इसे कपिस्थल के नाम से जाना जाता था। आधुनिक कैथल पहले करनाल जिले का भाग था। लेकिन 1973 ई. में यह कुरूक्षेत्र में चला गया। बाद में हरियाणा सरकार ने इसे कुरूक्षेत्र से अलग कर 1 नवम्बर 1989 ई. को स्वतंत्र जिला घोषित कर दिया। यह राष्ट्रीय राजमार्ग 65 पर स्थित है। .

नई!!: भाई संतोख सिंह और कैथल · और देखें »

अमरकोश

अमरकोश संस्कृत के कोशों में अति लोकप्रिय और प्रसिद्ध है। इसे विश्व का पहला समान्तर कोश (थेसॉरस्) कहा जा सकता है। इसके रचनाकार अमरसिंह बताये जाते हैं जो चन्द्रगुप्त द्वितीय (चौथी शब्ताब्दी) के नवरत्नों में से एक थे। कुछ लोग अमरसिंह को विक्रमादित्य (सप्तम शताब्दी) का समकालीन बताते हैं। इस कोश में प्राय: दस हजार नाम हैं, जहाँ मेदिनी में केवल साढ़े चार हजार और हलायुध में आठ हजार हैं। इसी कारण पंडितों ने इसका आदर किया और इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई। .

नई!!: भाई संतोख सिंह और अमरकोश · और देखें »

अमृतसर

अमृतसर (पंजाबी:ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ) भारत के पंजाब राज्य का एक शहर है।http://amritsar.nic.in अमृतसर की आधिकारिक वैबसाईट अमृतसर पंजाब का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र शहर माना जाता है। पवित्र इसलिए माना जाता है क्योंकि सिक्खों का सबसे बड़ा गुरूद्वारा स्वर्ण मंदिर अमृतसर में ही है। ताजमहल के बाद सबसे ज्यादा पर्यटक अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को ही देखने आते हैं। स्वर्ण मंदिर अमृतसर का दिल माना जाता है। यह गुरू रामदास का डेरा हुआ करता था। अमृतसर का इतिहास गौरवमयी है। यह अपनी संस्कृति और लड़ाइयों के लिए बहुत प्रसिद्ध रहा है। अमृतसर अनेक त्रासदियों और दर्दनाक घटनाओं का गवाह रहा है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बड़ा नरसंहार अमृतसर के जलियांवाला बाग में ही हुआ था। इसके बाद भारत पाकिस्तान के बीच जो बंटवारा हुआ उस समय भी अमृतसर में बड़ा हत्याकांड हुआ। यहीं नहीं अफगान और मुगल शासकों ने इसके ऊपर अनेक आक्रमण किए और इसको बर्बाद कर दिया। इसके बावजूद सिक्खों ने अपने दृढ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति से दोबारा इसको बसाया। हालांकि अमृतसर में समय के साथ काफी बदलाव आए हैं लेकिन आज भी अमृतसर की गरिमा बरकरार है। .

नई!!: भाई संतोख सिंह और अमृतसर · और देखें »

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »