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भटकटैया

सूची भटकटैया

कंटकारी के फल भटकटैया या कंटकारी (वैज्ञानिक नाम: Solanum xanthocarpum; अंग्रेजी नाम: Yellow Berried Night shade) का फैलने वाला, बहुवर्षायु क्षुप होता है। इसके पत्ते लम्बे काँटो से युक्त हरे होते है; पुष्प नीले रंग के होते है; फल क्च्चे हरित वर्ण के और पकने पर पीले रंग के हो जाते है। बीज छोटे और चिकने होते है। यह पश्चिमोत्तर भारत मे शुष्कप्राय स्थानों पर होती है। .

2 संबंधों: सत्यानाशी, संस्कृत साहित्य

सत्यानाशी

सत्यानाशी के पौधे का उपरी भाग भड़भाड़, सत्यानाशी या घमोई एक अमेरिकी वनस्पति है, लेकिन भारत में यह सब स्थान पर पैदा होती है। सत्यानाशी के किसी भी अंग को तोड़ने से उसमें से स्वर्ण सदृश, पीतवर्ण (पीले रंग) का दूध निकलता है, इसलिए इसे स्वर्णक्षीरी भी कहते है। सत्यानाशी का फ़ल चौकोर, कंटकित, प्यालानुमा होता है, जिनमें राई की तरह छोटे-छोटे कृष्ण बीज भरे रहते हैं, जो जलते कोयलों पर डालने से भड़भड़ बोलते हैं। उत्तर प्रदेश में इसको भड़भांड़ या भड़भड़वा भी कहते है। वनस्पति के सारे पौंधों पर काटें होते है।आयुर्वेदिक ग्रंथ 'भावप्रकाश निघण्टु' में इस वनस्पति को स्वर्णक्षीरी या कटुपर्णी के नाम से लिखा है। इसके बीज जहरीले होते हैं। कभी-कभी सरसों में इसे मिला देने से उसके तेल का उपयोग करने वालों की मृत्यु भी हो जाती है।आयुर्वेदिक ग्रंथ 'भावप्रकाश निघण्टु' में इस वनस्पति को स्वर्णक्षीरी या कटुपर्णी .

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संस्कृत साहित्य

बिहार या नेपाल से प्राप्त देवीमाहात्म्य की यह पाण्डुलिपि संस्कृत की सबसे प्राचीन सुरक्षित बची पाण्डुलिपि है। (११वीं शताब्दी की) ऋग्वेदकाल से लेकर आज तक संस्कृत भाषा के माध्यम से सभी प्रकार के वाङ्मय का निर्माण होता आ रहा है। हिमालय से लेकर कन्याकुमारी के छोर तक किसी न किसी रूप में संस्कृत का अध्ययन अध्यापन अब तक होता चल रहा है। भारतीय संस्कृति और विचारधारा का माध्यम होकर भी यह भाषा अनेक दृष्टियों से धर्मनिरपेक्ष (सेक्यूलर) रही है। इस भाषा में धार्मिक, साहित्यिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक और मानविकी (ह्यूमैनिटी) आदि प्राय: समस्त प्रकार के वाङ्मय की रचना हुई। संस्कृत भाषा का साहित्य अनेक अमूल्य ग्रंथरत्नों का सागर है, इतना समृद्ध साहित्य किसी भी दूसरी प्राचीन भाषा का नहीं है और न ही किसी अन्य भाषा की परम्परा अविच्छिन्न प्रवाह के रूप में इतने दीर्घ काल तक रहने पाई है। अति प्राचीन होने पर भी इस भाषा की सृजन-शक्ति कुण्ठित नहीं हुई, इसका धातुपाठ नित्य नये शब्दों को गढ़ने में समर्थ रहा है। संस्कृत साहित्य इतना विशाल और scientific है तो भारत से संस्कृत भाषा विलुप्तप्राय कैसे हो गया? .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

कंटकारी

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