हम Google Play स्टोर पर Unionpedia ऐप को पुनर्स्थापित करने के लिए काम कर रहे हैं
निवर्तमानआने वाली
🌟हमने बेहतर नेविगेशन के लिए अपने डिज़ाइन को सरल बनाया!
Instagram Facebook X LinkedIn

बुरंजी

सूची बुरंजी

प्राचीन हस्थलिखि - बुरंजी। बुरंजी, असमिया भाषा में लिखी हुईं ऐतिहासिक कृतियाँ हैं। अहोम राज्य सभा के पुरातत्व लेखों का संकलन बुरंजी में हुआ है। प्रथम बुरंजी की रचना असम के प्रथम राजा सुकफा के आदेश पर लिखी गयी जिन्होने सन् १२२८ ई में असम राज्य की स्थापना की। आरंभ में अहोम भाषा में इनकी रचना होती थी, कालांतर में असमिया भाषा इन ऐतिहासिक लेखों की माध्यम हुई। इसमें राज्य की प्रमुख घटनाओं, युद्ध, संधि, राज्यघोषणा, राजदूत तथा राज्यपालों के विविध कार्य, शिष्टमंडल का आदान प्रदान आदि का उल्लेख प्राप्त होता है - राजा तथा मंत्री के दैनिक कार्यों के विवरण भी प्रकाश डाला गया है। असम प्रदेश में इनके अनेक वृहदाकार खंड प्राप्त हुए हैं। राजा अथवा राज्य के उच्चपदस्थ अधिकारी के निर्देशानुसार शासनतंत्र से पूर्ण परिचित विद्वान् अथवा शासन के योग्य पदाधिकारी इनकी रचना करते थे। घटनाओं का चित्रण सरल एवं स्पष्ट भाषा में किया गया है; इन कृतियों की भाषा में अलंकारिकता का अभाव है। सोलहवीं शती के आरंभ से उन्नीसवीं शती के अंत तक इनका आलेखन होता रहा। बुरंजी राष्ट्रीय असमिया साहित्य का अभिन्न अंग हैं। गदाधर सिंह के राजत्वकाल में पुरनि असम बुरंजी का निर्माण हुआ जिसका संपादन हेमचंद्र गोस्वामी ने किया है। पूर्वी असम की भाषा में इन बुरंजियों की रचना हुई है। "बुरंजी" मूलत: एक टाइ शब्द है, जिसका अर्थ है "अज्ञात कथाओं का भांडार"। इन बुरंजियों के माध्यम से असम प्रदेश के मध्ययुग का काफी व्यवस्थित इतिहास उपलब्ध है। बुरंजी साहित्य के अंतर्गत कामरूप बुरंजी, कछारी बुरंजी, आहोम बुरंजी, जयंतीय बुंरजी, बेलियार बुरंजी के नाम अपेक्षाकृत अधिक प्रसिद्ध हैं। इन बुरंजी ग्रंथों के अतिरिक्त राजवंशों की विस्तृत वंशावलियाँ भी इस काल में हुई। आहोम राजाओं के असम में स्थापित हो जाने पर उनके आश्रय में रचित साहित्य की प्रेरक प्रवृत्ति धार्मिक न होकर लौकिक हो गई। राजाओं का यशवर्णन इस काल के कवियों का एक प्रमुख कर्तव्य हो गया। वैसे भी अहोम राजाओं में इतिहासलेखन की परंपरा पहले से ही चली आती थी। कवियों की यशवर्णन की प्रवृत्ति को आश्रयदाता राजाओं ने इस ओर मोड़ दिया। पहले तो अहोम भाषा के इतिहास ग्रंथों (बुरंजियों) का अनुवाद असमिया में किया गया और फिर मौलिक रूप से बुरंजियों का सृजन होने लगा। .

सामग्री की तालिका

  1. 8 संबंधों: मदल पंजी, महावंश, राजतरंगिणी, श्रीलंका, जगन्नाथ मन्दिर, पुरी, कश्मीर, असम, असमिया भाषा

  2. आहोम साम्राज्य

मदल पंजी

मदल पंजी (Palm-leaf Chronicles) ओडिशा के जगन्नाथ पुरी के जगन्नाथ का इतिहास है। इसमें भगवान जगन्नाथ और जगन्नाथ मन्दिर से सम्बन्धित घटनाओं का वर्णन है। इस पंजी के आरम्भ होने की वास्तविक तिथि ज्ञात नहीं है किन्तु ऐसा अनुमान किया जाता है कि यह १३वीं या १४वीं शती में आरम्भ हुई होगी। यह पुस्तक साहित्यिक दृष्टि से अनूठी है। इसकी तुलना श्रीलंका के राजवंशम् से, कश्मीर के राजतरंगिणी से और असम के बुरुंजी से की जा सकती है। इसमें गद्य का प्रयोग हुआ है। .

देखें बुरंजी और मदल पंजी

महावंश

महावंश एक महान इतिहास के लिखि पद्य है। महावंश (शाब्दिक अर्थ: महान इतिहास) पालि भाषा में लिखी पद्य रचना है। इसमें श्रीलंका के राजाओं का वर्नन है। इसमें कलिंग के राजा विजय (५४३ ईसा पूर्व) के श्रीलंका आगमन से लेकर राजा महासेन (334–361) तक की अवधि का वर्णन है। यह सिंहल का प्रसिद्ध ऐतिहासिक महाकाव्य है। भारत का शायद ही कोई प्रदेश हो, जिसका इतिहास उतना सुरक्षित हो, जितना सिंहल का; डब्ल्यू गेगर की इस सम्मति का आधार महावंस ही है। महान लोगों के वंश का परिचय करानेवाला होने से तथा स्वयं भी महान होने से ही इसका नाम हुआ "महावंस" (महावंस टीका)। इस टीका ग्रंथ की रचना "महानाम" स्थविर के हाथों हुई। आप दीघसंद सेनापति के बनाए विहार में रहते थे (महावंस टीका, पृ.

देखें बुरंजी और महावंश

राजतरंगिणी

राजतरंगिणी, कल्हण द्वारा रचित एक संस्कृत ग्रन्थ है। 'राजतरंगिणी' का शाब्दिक अर्थ है - राजाओं की नदी, जिसका भावार्थ है - 'राजाओं का इतिहास या समय-प्रवाह'। यह कविता के रूप में है। इसमें कश्मीर का इतिहास वर्णित है जो महाभारत काल से आरम्भ होता है। इसका रचना काल सन ११४७ से ११४९ तक बताया जाता है। भारतीय इतिहास-लेखन में कल्हण की राजतरंगिणी पहली प्रामाणिक पुस्तक मानी जाती है। इस पुस्तक के अनुसार कश्मीर का नाम "कश्यपमेरु" था जो ब्रह्मा के पुत्र ऋषि मरीचि के पुत्र थे। राजतरंगिणी के प्रथम तरंग में बताया गया है कि सबसे पहले कश्मीर में पांडवों के सबसे छोटे भाई सहदेव ने राज्य की स्थापना की थी और उस समय कश्मीर में केवल वैदिक धर्म ही प्रचलित था। फिर सन 273 ईसा पूर्व कश्मीर में बौद्ध धर्म का आगमन हुआ। १९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में औरेल स्टीन (Aurel Stein) ने पण्डित गोविन्द कौल के सहयोग से राजतरंगिणी का अंग्रेजी अनुवाद कराया। राजतरंगिणी एक निष्पक्ष और निर्भय ऐतिहासिक कृति है। स्वयं कल्हण ने राजतरंगिणी में कहा है कि एक सच्चे इतिहास लेखक की वाणी को न्यायाधीश के समान राग-द्वेष-विनिर्मुक्त होना चाहिए, तभी उसकी प्रशंसा हो सकती है- .

देखें बुरंजी और राजतरंगिणी

श्रीलंका

श्रीलंका (आधिकारिक नाम श्रीलंका समाजवादी जनतांत्रिक गणराज्य) दक्षिण एशिया में हिन्द महासागर के उत्तरी भाग में स्थित एक द्वीपीय देश है। भारत के दक्षिण में स्थित इस देश की दूरी भारत से मात्र ३१ किलोमीटर है। १९७२ तक इसका नाम सीलोन (अंग्रेजी:Ceylon) था, जिसे १९७२ में बदलकर लंका तथा १९७८ में इसके आगे सम्मानसूचक शब्द "श्री" जोड़कर श्रीलंका कर दिया गया। श्रीलंका का सबसे बड़ा नगर कोलम्बो समुद्री परिवहन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण बन्दरगाह है। .

देखें बुरंजी और श्रीलंका

जगन्नाथ मन्दिर, पुरी

पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर एक हिन्दू मंदिर है, जो भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है। यह भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है। इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक गिना जाता है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव प्रसिद्ध है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं। मध्य-काल से ही यह उत्सव अतीव हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इसके साथ ही यह उत्सव भारत के ढेरों वैष्णव कृष्ण मंदिरों में मनाया जाता है, एवं यात्रा निकाली जाती है। यह मंदिर वैष्णव परंपराओं और संत रामानंद से जुड़ा हुआ है। यह गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के लिये खास महत्व रखता है। इस पंथ के संस्थापक श्री चैतन्य महाप्रभु भगवान की ओर आकर्षित हुए थे और कई वर्षों तक पुरी में रहे भी थे। .

देखें बुरंजी और जगन्नाथ मन्दिर, पुरी

कश्मीर

ये लेख कश्मीर की वादी के बारे में है। इस राज्य का लेख देखने के लिये यहाँ जायें: जम्मू और कश्मीर। एडवर्ड मॉलीनक्स द्वारा बनाया श्रीनगर का दृश्य कश्मीर (कश्मीरी: (नस्तालीक़), कॅशीर) भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे उत्तरी भौगोलिक क्षेत्र है। कश्मीर एक मुस्लिमबहुल प्रदेश है। आज ये आतंकवाद से जूझ रहा है। इसकी मुख्य भाषा कश्मीरी है। जम्मू और कश्मीर के बाक़ी दो खण्ड हैं जम्मू और लद्दाख़। .

देखें बुरंजी और कश्मीर

असम

असम या आसाम उत्तर पूर्वी भारत में एक राज्य है। असम अन्य उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों से घिरा हुआ है। असम भारत का एक सीमांत राज्य है जो चतुर्दिक, सुरम्य पर्वतश्रेणियों से घिरा है। यह भारत की पूर्वोत्तर सीमा २४° १' उ॰अ॰-२७° ५५' उ॰अ॰ तथा ८९° ४४' पू॰दे॰-९६° २' पू॰दे॰) पर स्थित है। संपूर्ण राज्य का क्षेत्रफल ७८,४६६ वर्ग कि॰मी॰ है। भारत - भूटान तथा भारत - बांग्लादेश सीमा कुछ भागो में असम से जुडी है। इस राज्य के उत्तर में अरुणाचल प्रदेश, पूर्व में नागालैंड तथा मणिपुर, दक्षिण में मिजोरम तथा मेघालय एवं पश्चिम में बंग्लादेश स्थित है। .

देखें बुरंजी और असम

असमिया भाषा

आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं की शृंखला में पूर्वी सीमा पर अवस्थित असम की भाषा को असमी, असमिया अथवा आसामी कहा जाता है। असमिया भारत के असम प्रांत की आधिकारिक भाषा तथा असम में बोली जाने वाली प्रमुख भाषा है। इसको बोलने वालों की संख्या डेढ़ करोड़ से अधिक है। भाषाई परिवार की दृष्टि से इसका संबंध आर्य भाषा परिवार से है और बांग्ला, मैथिली, उड़िया और नेपाली से इसका निकट का संबंध है। गियर्सन के वर्गीकरण की दृष्टि से यह बाहरी उपशाखा के पूर्वी समुदाय की भाषा है, पर सुनीतिकुमार चटर्जी के वर्गीकरण में प्राच्य समुदाय में इसका स्थान है। उड़िया तथा बंगला की भांति असमी की भी उत्पत्ति प्राकृत तथा अपभ्रंश से भी हुई है। यद्यपि असमिया भाषा की उत्पत्ति सत्रहवीं शताब्दी से मानी जाती है किंतु साहित्यिक अभिरुचियों का प्रदर्शन तेरहवीं शताब्दी में रुद्र कंदलि के द्रोण पर्व (महाभारत) तथा माधव कंदलि के रामायण से प्रारंभ हुआ। वैष्णवी आंदोलन ने प्रांतीय साहित्य को बल दिया। शंकर देव (१४४९-१५६८) ने अपनी लंबी जीवन-यात्रा में इस आंदोलन को स्वरचित काव्य, नाट्य व गीतों से जीवित रखा। सीमा की दृष्टि से असमिया क्षेत्र के पश्चिम में बंगला है। अन्य दिशाओं में कई विभिन्न परिवारों की भाषाएँ बोली जाती हैं। इनमें से तिब्बती, बर्मी तथा खासी प्रमुख हैं। इन सीमावर्ती भाषाओं का गहरा प्रभाव असमिया की मूल प्रकृति में देखा जा सकता है। अपने प्रदेश में भी असमिया एकमात्र बोली नहीं हैं। यह प्रमुखतः मैदानों की भाषा है। .

देखें बुरंजी और असमिया भाषा

यह भी देखें

आहोम साम्राज्य