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बालनरसिंह कुँवर

सूची बालनरसिंह कुँवर

बालनरसिंह कुँवर वा बालनरसिंह कँवर नेपाल राज्य के एक काजी थे। उन्होंने राजा रण बहादुर शाहके हत्यारे सौतेला भाइ शेरबहादुर शाहकी ततपश्चात हत्या कि थि। उनके दादा जनरल गोरखाली सरदार रामकृष्ण कुँवर थे। उन्होंने काजी नैनसिंह थापा की पुत्री और मुख्तियार भीमसेन थापा के भतिजी गणेश कुमारी से विवाह किया था। गणेशकुमारके ज्येष्ठ पुत्र जंगबहादुर राणा ने बादमें राणा वंश का स्थापना किया और नेपाल अधिराज्यमें पारिवारिक शासन लागु कि थि। http://www.royalark.net/Nepal/lamb2.htm उनके पुत्रहरूः.

7 संबंधों: नेपाल अधिराज्य, भीमसेन थापा, रण बहादुर शाह, राणा वंश, रामकृष्ण कुँवर, जङ्गबहादुर राणा, काजी

नेपाल अधिराज्य

नेपाल राज्य (नेपाल अधिराज्य), जिसे गोरखा राज्य (गोरखा अधिराज्य) के नाम से भी जाना जाता है, 1768 में स्थापित एक राज्य था जिसे एकीकरण कर बनाया गया था, जिसे स्थापित करने वाले थे पृथ्वीनारायण शाह, जो गोरखा राज्य के राजा थें। यह राज्य 240 वर्षों तक अस्तित्व में रहा जब तक कि 2008 में नेपाली राजशाही की समाप्ति हो गई। इस दौरान नेपाल का शासन शाह वंश के हाथ में रहा। .

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भीमसेन थापा

भीमसेन थापा नेपालके सर्वाधिक लम्बे समय तकके मुख्तियार (प्रधानमन्त्री) हैं। भण्डरखाल पर्वके बादमें उन्होंने सारे उच्च अधिकारियोंकी हत्या करते हुए थापा वंशकी उदय कराया। .

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रण बहादुर शाह

रणबहादुर शाह नेपाल के तिस्रे शाहवंशीय राजा थे। प्रतापसिंह शाह के देहान्त बाद अढाई वर्षके बालक पुत्र रणबहादुर शाह नेपाल के राजा बनगए। उनकी माता रानी राजेन्द्र लक्ष्मी ने अभिभावक के रूपमें नायबी पद ग्रहण किया और शासनके वागडोर हातमें लिया। .

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राणा वंश

राणा वंश नेपाल का एक क्षत्रिय शासक वंश है। सन् १८४६ से १९५१ तक नेपाल अधिराज्य में शाह वंश ने नाम मात्र के शासक बनाकर निरंकुश शासन जमाया था। सन् १९५१ सालके क्रान्तिसे राणा शासनका अन्त्य हो गया और फिरसे राजा त्रिभुवन शक्तिशाली बनगए। इस वंश को काजी बालनरसिंह कुँवर के पुत्र जंगबहादुर राणा ने स्थापित किया था। थापा वंशके माथवरसिंह थापाकी हत्या करने के पश्चात कोत पर्व और भण्डरखाल पर्व दोनो हत्याकांड के बाद कुँवर परिवार का उदय हुआ था। बाद में उन्होनें कुँवर से राणा नाम लिखना सुरु किया था। .

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रामकृष्ण कुँवर

रामकृष्ण कुँवर गोरखाली सेनाके सरदार थे। उन्होंने गोरखा राज्यके लिए विभिन्न युद्धमें नेतृत्व किया था। उन्होंने २५ अगस्ट १७६७ के हरिहरपुरगढीके युद्धमें ब्रिटिस सेनाको परास्त किया था। http://www.royalark.net/Nepal/lamb2.htm उनके वंशजने नेपालके एक शक्तिशाली राणा वंश स्थापित किया था। उनके नाति काजी बालनरसिंह कुँवर थे जिनके पुत्र जंगबहादुर राणा नेपालके प्रधानमन्त्री एवम् कमाण्डर-इन-चिफ बन गए। .

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जङ्गबहादुर राणा

महाराजा जंगबहादुर कुंवर राणाजी (1816-1877; जङ्गबहादुर राणा) जो जंगबहादुर राणा के नाम से प्रसिद्ध हैं, नेपाल के पहले राणा प्रधानमन्त्री तथा राणा राजवंश के संस्थापक थे। उनका वास्तविक नाम वीर नरसिंह कुँवर था। इनके शासनकाल में नेपाल ने अंग्रजो से लड़ाई में खोया हुआ जमीन का कुछ हिस्सा (बांके, बर्दिया, कैलाली, कंचनपुर) वापस हासिल किया। जंगबहादुर राणा के जन्म क्षत्रिय कुंवर भारदार परिवार के काजी बालनरसिंह कुँवर और थापा वंशके गणेश कुमारी के पुत्र के रूपमें हुआ । वे नेपाल के प्रसिद्ध मुख्तियार (प्रधानमंत्री) भीमसेन थापा के सहोदर भाइ काजी नैनसिंह थापा के भ्रातृपौत्र थे। उनकी नानी रणकुमारी पांडे नेपालके प्रसिद्ध भारदार पाँडे वंश के काजी रणजीत पांडे के पुत्री हैं । ये अपने पूर्वजों की अपेक्षा स्थायी शासन की स्थापना करने में सफल रहे। इन्हें अपने मामा माथवरसिंह थापा के मंत्रित्वकाल में सेनाध्यक्ष तथा प्रधानमंत्री का पद सौंपा गया किंतु शीघ्र ही उन्होंने रानी राज्य लक्ष्मी के आदेश में मामा माथवरसिंहकी छलपूर्वक हत्या कर दी और चौतारिया फत्तेजंग शाह ने नया मंत्रिमंडल बनाया । इस नए मंत्रिमंडल में इन्हें सैन्य विभाग सौंपा गया। दूसरे वर्ष 1846 ई. में शासन में एक संघर्ष छिड़ा। फलस्वरूप फतेहजंग और उनके साथ के 32 अन्य प्रधान व्यक्तियों की कुटिलतापूर्वक हत्या कर दी गई। महारानी द्वारा राणा की नियुक्ति सीधे प्रधान मंत्री पद पर की गई। शीघ्र ही महारानी का विचार परिवर्तित हुआ और उनकी हत्या के षड्यंत्र भी रचे गए। परंतु रानी की योजना असफल रही। फलत: राजा और रानी दोनों को ही भारत में शरण लेनी पड़ी। अब राणा के मार्ग से सारी बाधाएँ परे हट चुकी थीं। शासन को व्यवस्थित और नियंत्रित करने में इन्हें पूर्ण सफलता मिली। यहाँ तक कि जनवरी, 1850 में वे निश्चिंत होकर इंग्लैंड गए और 6 फ़रवरी 1851 तक वहीं रहे। लौटने पर इन्होंने अपने विरुद्ध रची गई हत्या की कुटिल योजनाओं को पूर्णत: विफल कर दिया। इसके बाद आप दंडसंहिता के सुधार कार्यों में तथा तिब्बत के साथ होनेवाले छिटपुट संघर्षों में उलझे रहे। इसी बीच उन्हें भारतीय सिपाही विद्रोह की सूचना मिली। राणा ने विद्रोहियों से किसी प्रकार की बातचीत का विरोध किया और जुलाई, 1857 को सेना की एक टुकड़ी गोरखपुर भेजी। यही नहीं, दिसंबर में इन्होंने 14,000 गोरखा सिपाहियों की एक सेना लखनऊ की ओर भी भेजी थी जिसने 11 मार्च 1858 को लखनऊ की घेरेबंदी में सहयोग दिया। जंगबहादुर राणा को इस कार्य के लिए जी.बी.सी.

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काजी

काजी नेपालके उच्च घरानेके क्षत्रिय पुरूषोंको दियाजानेवाला उपाधि है। ये नेपाली पहाडी जाति क्षेत्रीको दियाजाता था। काजी पुरूष नेपाल दरबारमेंं १८ सताब्दी से जंगबहादुर राणाके उदयतक सशक्त रुपसे राजनीति करते थे। पाँच काजी परिवारोंमे बस्नेत, बिष्ट, पाण्डे, कुँवर और थापा है। http://www.karma99.com/2013/01/chhettri.html?m.

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