लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
इंस्टॉल करें
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

प्रकाश के सिद्धान्त

सूची प्रकाश के सिद्धान्त

प्रकाश क्या है और वह किस रूप में स्थानांतरित होता है, इन प्रश्नों के समाधान के लिये समय समय पर अनेक सिद्धांत बनाए गए थे, किंतु इस समय विद्युतचुंबकीय सिद्धांत तथा क्वांटम सिद्धांत ही सर्वमान्य हैं।.

5 संबंधों: प्रकाश, प्रकाश का तरंग सिद्धान्त, प्रकाश का विद्युतचुम्बकीय सिद्धान्त, प्रकाश का कणिका सिद्धान्त, प्रकाश का क्वाण्टम सिद्धान्त

प्रकाश

सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित एक मेघ प्रकाश एक विद्युतचुम्बकीय विकिरण है, जिसकी तरंगदैर्ध्य दृश्य सीमा के भीतर होती है। तकनीकी या वैज्ञानिक संदर्भ में किसी भी तरंगदैर्घ्य के विकिरण को प्रकाश कहते हैं। प्रकाश का मूल कण फ़ोटान होता है। प्रकाश की तीन प्रमुख विमायें निम्नवत है।.

नई!!: प्रकाश के सिद्धान्त और प्रकाश · और देखें »

प्रकाश का तरंग सिद्धान्त

न्यूटन के ही समकालीन जर्मन विद्वान हाइगेंज (Huyghens) ने,सन् 1678 ई. में 'प्रकाश का तरंग सिद्धान्त' (wave theory of light) का प्रतिपादन किया था। इसके अनुसार समस्त संसार में एक अत्यंत हलका और रहस्यमय पदार्थ ईथर (Ether) भरा हुआ है: तारों के बीच के विशाल शून्याकाश में भी और ठोस द्रव्य के अंदर तथा परमाणुओं के अभ्यंतर में भी। प्रकाश इसी ईश्वर समुद्र में अत्यंत छोटी लंबाईवाली प्रत्यास्थ (Elastic) तरंगें हैं। लाल प्रकाश की तरंगें सबसे लंबी होती हैं और बैंगनी की सबसे छोटी। इससे व्यतिकरण और विर्वतन की व्याख्या तो सरलता से हो गई, क्योंकि ये घटनाएँ तो तरंगमूलक ही हें। ध्रुवण की घटनाओं से यह भी प्रगट हो गया कि तरंगें अनुदैर्ध्य (Longitudinal) नहीं, वरन्‌ अनुप्रस्थ (Transvers) हैं। हाइगेंज की तरंगिकाओं को परिकल्पना से अपर्वतन और परावर्तन तथा दोनों का योगपत्य भी अच्छी तरह समझ में आ गया। किंतु अब दो कठिनाइयाँ रह गईं। एक तो सरल रेखा गमन की व्याख्या न हो सकी। दूसरे यह समझ में नही आया कि ईथर की रगड़ के कारण अगणित वर्षो से तीव्र वेग से घूमते हुए ग्रहों और उपग्रहों की गति में किंचिन्मात्र भी कमी क्यों नहीं होती। इनसे भी अधिक कठिनाई यह थी कि न्यूटन जैसे महान्‌ वैज्ञानिक का विरोध करने का साहस और सामर्थ्य किसी में न था। अत: प्राय: दो शताब्दी तक कणिकासिद्धांत ही का साम्राज्य अक्षुण्ण रहा। सन्‌ 1807 में यंग (Young) ने व्यतिकरण का प्रयोग अत्यंत सुस्पष्ट रूप में कर दिखाया। इसके बाद फ़ेनल (Fresnel) ने तरंगों द्वारा ही सरल रेखा गमन की भी बहुत अच्छी व्याख्या कर दी। 1850 ई. में फूको (Foucalult) ने प्रत्यक्ष नाप से यह भी प्रमाणित कर दिया कि जल जैसे अधिक घनत्वावाले माध्यमों में प्रकाशवेग वायु की अपेक्षा कम होता है। यह बात कणिकासिद्धांत के प्रतिकूल तथा तरंग के अनुकूल होने के कारण तरंगसिद्धांत सर्वमान्य हो गया। इसके बाद तो इस सिद्धांत के द्वारा अनेक नवीन और आश्चर्यजनक घटनाओं की प्रागुक्तियाँ भी प्रेक्षण द्वारा सत्य प्रमाणित हुई। अब प्रश्न यह रहा कि ईथर किस प्रकार का पदार्थ है। यह विदित है कि किसी भी प्रत्यास्थ द्रव में; तरंग का वेग .

नई!!: प्रकाश के सिद्धान्त और प्रकाश का तरंग सिद्धान्त · और देखें »

प्रकाश का विद्युतचुम्बकीय सिद्धान्त

रूबिडियम-८७ मे ज़ेमान प्रभाव् और चुम्बकीय क्षेत्र मे होनेवाले परिवर्तन। वैद्युत्‌ और चुंबकीय बलों की व्याख्या के लिये फैराडे (Faraday) ने एक प्रकार के सर्वव्यापी ईथर की परिकल्पना बनाई थी और यह बताया था कि इस ईथर की परिकल्पना बनाई थी और यह बताया था कि इसे ईथर की विकृति के कारण ही ये बल पैदा होते हें। मैक्सवेल ने इस विषय की विशद विवेचना करके 1865 ई. में यह परिणाम निकाला कि इन बलों का स्थानांतरण तरंग के रूप में होता है। प्राय: 20 वर्ष तक यह सिद्धांत वैज्ञानिकों द्वारा स्वीकृत नहीं हुआ, क्योंकि आधार केवल गणित था और विद्युतचुंबकीय तरंग प्रयोग द्वारा प्रेक्षित नहीं हो सकी थी। 1887 ई. में हेर्ट्‌स (Hertz) ने यह कमी भी पूरी कर दी। अब तो ऐसी तरंगें बड़ी सरलता से उत्पन्न की जा सकती हैं। प्रकाशतरंगों की लंबाई अत्यंत छोटी होती है, किंतु इसके अतिरिक्त इनमें और रेडियो की तरंगों में कोई अंतर नहीं है। इसके बाद द्रव्य में इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के द्वारा वर्णविश्लेषण की भी संतोषजनक व्याख्या हो गई। अपवर्तित तथा परावर्तित प्रकाश की तीव्रता तथा ध्रुवण संबंधी नियम तथा क्रिस्टलों में द्विअपवर्तन के नियम भी सही प्राप्त हो गए। इसके अतिरिक्त अब तो प्रकाश पर वैद्युत तथा चुंबकीय क्षेत्र के फ़ैरेडे प्रभाव तथा ज़ेमान प्रभाव (Zeeman effect) तथा वैद्युत क्षेत्र के केर प्रभाव (Kerr effect) की इस सिद्धांत से अच्छी व्याख्या हो जाती है। किंतु ईथर के अस्तित्व के संबंध में बड़ी कठिनाई उपस्थित हो गई। अनेक प्रयोगों से यह प्रमाणित हो गया है कि जब कोई द्रव्य चलता है, तो उसमें आबद्ध ईथर भी उसके साथ साथ चलता है, किंतु कम वेग से। फलत: इस वेग की दिशा में चलनेवाले प्रकाश का वेग कुछ बढ़ जाता है और विपरीत दिशा में चलनेवाले प्रकाश का वेग कुछ घट जाता है। किंतु जब माइकेलसन (Michelson) तथा मॉर्लि (Morley) ने इस तथ्य के आधार पर पृथ्वी की गति का वेग नापने का प्रयत्न अत्यंत सुग्राही विधि से किया तब आशा से विपरीत यह मालूम हुआ कि पृथ्वी की गति का प्रकाश के वेग पर कुछ भी असर नहीं होता। इस प्रयोग की मीमांसा करने में ही आइन्स्टाइन (Einstein) ने 1905 ई. में अपने आपेक्षिकता सिद्धांत का प्रतिपादन किया और वे इस परिणाम पर पहुँचे कि ईथर जैसी कोई वस्तु है ही नही। .

नई!!: प्रकाश के सिद्धान्त और प्रकाश का विद्युतचुम्बकीय सिद्धान्त · और देखें »

प्रकाश का कणिका सिद्धान्त

न्यूटन सबसे पहला, पूर्णत: वैज्ञानिक सिद्धांत विख्यात अँग्रेज वैज्ञानिक न्यूटन (सन्‌ 1642-1727) द्वारा प्रतिपादित हुआ था। इसमें यह माना गया था कि प्रदीप्त वस्तु में से प्रकाश अत्यंत सूक्ष्म एवं तीव्रगामी कणिकाओं के रूप में निकलता है। ये कणिकाएँ साधारण द्रव्य की नहीं होतीं, क्योंकि इनमें भार बिलकुल नहीं होता। विभिन्न रंगों के प्रकाश की कणिकाओं में भेद केवल उनके विस्तार का होता है: लाल प्रकाश की कणिकाएँ बड़ी होती हैं और बैंगनी की छोटी। इस परिकल्पना के द्वारा प्रकाश द्वारा उर्जा का संचारण, शून्यकाश में गमन, सरल रेखा गमन आदि बातें तो स्पष्ट: समझ में आ जाती हैं, क्योंकि ये घटनाएँ तो न्यूटन ही के सुप्रतिष्ठित गतिवैज्ञानिक नियमानुकूल हैं। इन कणिकाओं को पूर्णत: प्रत्यास्थी मान लेने से उन्हीं नियमों से परावर्तन के मुख्य नियम (परावर्तन कोण .

नई!!: प्रकाश के सिद्धान्त और प्रकाश का कणिका सिद्धान्त · और देखें »

प्रकाश का क्वाण्टम सिद्धान्त

तरंग सिद्धान्त के प्रतिपादन के बाद के कुछ वर्षो में कुछ बातें ऐसी भी मालूम हुई जो प्रकाश के तरंगमय स्वरूप के सर्वथा प्रतिकूल हैं। इनकी व्याख्या तरंगसिद्धांत के द्वारा हो ही नहीं सकती। इनके लिये प्लांक (Planck) के क्वांटम सिद्धांत का सहारा लेना पड़ता है। क्वांटम सिद्धान्त का प्रतिपादन 1900 ई. में ऊष्मा विकिरण के संबंध में हुआ था। प्रकाश विद्युत (Photo electricity) की घटना का, जिसमें कुछ धातुओं पर प्रकाश के पड़ने से इलैक्ट्रॉन उत्सर्जित हो जाते हैं और तत्वों के रेखामय स्पेक्ट्रम (Line spectrum) की घटना का, जिसमें परमाणु में से एकवर्ण प्रकाश निकलता है, स्पष्टतया संकेत किसी नवीन प्रकार के कणिकासिद्धांत की ओर है। आइन्स्टाइन ने इन कणिकाओं का नाम फ़ोटान (Photon) रख दिया है। ये कणिकाएँ द्रव्य की नहीं हैं, पुंजित ऊर्जा की हैं। प्रत्येक फ़ोटोन में ऊर्जा E का परिमाण प्रकाश तरंग की आवृत्ति n का अनुपाती होता है, E .

नई!!: प्रकाश के सिद्धान्त और प्रकाश का क्वाण्टम सिद्धान्त · और देखें »

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »