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पिस्टन

सूची पिस्टन

एक ठेठ, चार स्ट्रोक साइकिल, DOHC पिस्टन इंजन के घटक. (E) निकास कैमशाफ़्ट, (I) इंटेक कैमशाफ्ट, (S) स्पार्क प्लग, (V) वाल्व, (P) पिस्टन, (R) कनेक्टिंग रॉड, (C) क्रेंकशाफ्ट, (W) शीतलक प्रवाह के लिए पानी की जैकेट.

सामग्री की तालिका

  1. 8 संबंधों: द्रव, पम्प, प्रत्यागामी इंजन, भाप का इंजन, वाल्व, गैस, गैस संपीडक, अन्तर्दहन इंजन

द्रव

द्रव का कोई निश्चित आकार नहीं होता। द्रव जिस पात्र में रखा जाता है उसी का आकार ग्रहण कर लेता है। प्रकृति में सभी रासायनिक पदार्थ साधारणत: ठोस, द्रव और गैस तथा प्लाज्मा - इन चार अवस्थाओं में पाए जाते हैं। द्रव और गैस प्रवाहित हो सकते हैं, किंतु ठोस प्रवाहित नहीं होता। लचीले ठोस पदार्थों में आयतन अथवा आकार को विकृत करने से प्रतिबल उत्पन्न होता है। अल्प विकृतियों के लिए विकृति और प्रतिबल परस्पर समानुपाती होते हैं। इस गुण के कारण लचीले ठोस एक निश्चित मान तक के बाहरी बलों को सँभालने की क्षमता रखते हैं। प्रवाह का गुण होने के कारण द्रवों और गैसों को तरल पदार्थ (fluid) कहा जाता है। ये पदार्थ कर्तन (shear) बलों को सँभालने में अक्षम होते हैं और गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के कारण प्रवाहित होकर जिस बरतन में रखे रहते हैं, उसी का आकार धारण कर लेते हैं। ठोस और तरल का यांत्रिक भेद बहुत स्पष्ट नहीं है। बहुत से पदार्थ, विशेषत: उच्च कोटि के बहुलक (polymer) के यांत्रिक गुण, श्यान तरल (viscous fluid) और लचीले ठोस के गुणों के मध्यवर्ती होते हैं। प्रत्येक पदार्थ के लिए एक ऐसा क्रांतिक ताप (critical temperature) पाया जाता है, जिससे अधिक होने पर पदार्थ केवल तरल अवस्था में रह सकता है। क्रांतिक ताप पर पदार्थ की द्रव और गैस अवस्था में विशेष अंतर नहीं रह जाता। इससे नीचे के प्रत्येक ताप पर द्रव के साथ उसका कुछ वाष्प भी उपस्थित रहता है और इस वाष्प का कुछ निश्चित दबाव भी होता है। इस दबाव को वाष्प दबाव कहते हैं। प्रत्येक ताप पर वाष्प दबाव का अधिकतम मान निश्चित होता है। इस अधिकतम दबाव को संपृक्त-वाष्प-दबाव के बराबर अथवा उससे अधिक हो, तो द्रव स्थायी रहता है। यदि ऊपरी दबाव द्रव के संपृक्तवाष्प-दबाव से कम हो, तो द्रव अस्थायी होता है। संपृक्त-वाष्प-दबाव ताप के बढ़ने से बढ़ता है। जिस ताप पर द्रव का संपृक्त-वाष्प-दबाव बाहरी वातावरण के दबाव के बराबर हो जाता है, उसपर द्रव बहुत तेजी से वाष्पित होने लगता है। इस ताप को द्रव का क्वथनांक (boiling point) कहते हैं। यदि बाहरी दबाव सर्वथा स्थायी हो तो क्वथनांक से नीचे द्रव स्थायी रहता है। क्वथनांक पर पहुँचने पर यह खौलने लगता है। इस दशा में यह ताप का शोषण करके द्रव अवस्था से गैस अवस्था में परिवर्तित होने लगता है। क्वथनांक पर द्रव के इकाई द्रव्यमान को द्रव से पूर्णत: गैस में परिवर्तित करने के लिए जितने कैलोरी ऊष्मा की आवश्यकता होती है, उसे द्रव के वाष्पीभवन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। विभिन्न द्रव पदार्थों के लिए इसका मान भिन्न होता है। एक नियत दबाव पर ठोस और द्रव दोनों रूप साथ साथ एक निश्चित ताप पर पाए जा सकते हैं। यह ताप द्रव का हिमबिंदु या ठोस का द्रवणांक कहलाता है। द्रवणांक पर पदार्थ के इकाई द्रव्यमान को ठोस से पूर्णत: द्रव में परिवर्तित करने में जितनी ऊष्मा की आवश्यकता होती है, उसे ठोस के गलन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। अक्रिस्टली पदार्थों के लिए कोई नियत गलनांक नहीं पाया जाता। वे गरम करने पर धीरे धीरे मुलायम होते जाते हैं और फिर द्रव अवस्था में आ जाते हैं। काँच तथा काँच जैसे अन्य पदार्थ इसी प्रकार का व्यवहार करते हैं। एक नियत ताप और नियत दबाव पर प्रत्येक द्रव्य की तीनों अवस्थाएँ एक साथ विद्यमान रह सकती हैं। दबाव और ताप के बीच खीचें गए आरेख (diagram) में ये नियत ताप और दबाव एक बिंदु द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं। इस बिंदु को द्रव का त्रिक् बिंदु (triple point) कहते हैं। त्रिक् विंदु की अपेक्षा निम्न दाबों पर द्रव अस्थायी रहता है। यदि किसी ठोस को त्रिक् विंदु की अपेक्षा निम्न दबाव पर रखकर गरम किया जाए तो वह बिना द्रव बने ही वाष्प में परिवर्तित हो जाता है, अर्थात् ऊर्ध्वपातित (sublime) हो जाता है। द्रव के मुक्त तल में, जो उस द्रव के वाष्प या सामान्य वायु के संपर्क में रहता है, एक विशेष गुण पाया जाता है, जिसके कारण यह तल तनी हुई महीन झिल्ली जैसा व्यवहार करता है। इस गुण को पृष्ठ तनाव (surface tension) कहते हैं। पृष्ठ तनाव के कारण द्रव के पृष्ठ का क्षेत्रफल यथासंभव न्यूनतम होता है। किसी दिए आयतन के लिए सबसे कम क्षेत्रफल एक गोले का होता है। अत: ऐसी स्थितियों में जब कि बाहरी बल नगण्य माने जा सकते हों द्रव की बूँदे गोल होती हैं। जब कोई द्रव किसी ठोस, या अन्य किसी अमिश्रय द्रव, के संपर्क में आता है तो भी संपर्क तल पर तनाव उत्पन्न होता है। साधारणत: कोई भी पदार्थ केवल एक ही प्रकार के द्रव रूप में प्राप्त होता है, किंतु इसके कुछ अपवाद भी मिलते हैं, जैसे हीलियम गैस को द्रवित करके दो प्रकार के हीलियम द्रव प्राप्त किए जा सकते हैं। उसी प्रकार पैरा-ऐज़ॉक्सी-ऐनिसोल (Para-azoxy-anisole) प्रकाशत: विषमदैशिक (anisotropic) द्रव के रूप में, क्रिस्टलीय अवस्था में तथा सामान्य द्रव के रूप में भी प्राप्त हो सकता है। .

देखें पिस्टन और द्रव

पम्प

एक छोटा सा विद्युत चालित पम्प एक बड़ा विद्युत चालित पम्प पम्प एक यांत्रिक युक्ति है जो गैसों व द्रवों को धकेलकर विस्थापित करने के काम आती है। दूसरे शब्दों में, पम्प तरल को कम दाब के स्थान से अधिक दाब के स्थान पर धकेलने का काम करता है। पंप बहुत प्राचीन काल से ही निम्न धरातल पर भरे हुए, अथवा बहते हुए, पानी का उदंचन (पम्पिंग) कर ऊँचे धरातल पर लाने के लिए अनेक प्रकार के उपकरणों और साधनों का व्यवहार किया जाता रहा है। आधुनिक युग के विविध कार्यक्षेत्रों में नाना प्रकार के तरल पदार्थों का उदंचन करके उन्हें स्थानांतरित करने के लिए एक विशेष साधन का अनिवार्यत: उपयोग करना पड़ता है, जिसे पंप कहते हैं। .

देखें पिस्टन और पम्प

प्रत्यागामी इंजन

'''अन्तर्दहन पिस्टन इंजन''' किसी चार स्ट्रोक वाले सामान्य अन्तर्दहन पिस्टन इंजन के मुख्य अवयव - '''E''' - वहिर्द्वार कैमशाफ्ट (Exhaust camshaft) '''I''' - प्रवेशद्वार कैमशाफ्ट (Intake camshaft) '''S''' - स्पार्क प्लग '''V''' - वाल्व '''P''' - पिस्टन '''R''' - योजक छड़ (Connecting rod) '''C''' - क्रैंकशाफ्ट (Crankshaft) '''W''' - शीतलक (जल) के प्रवाह के लिये जैकेट प्रत्यागामी इंजन (reciprocating engine) को पिस्टन इंजन भी कहा जाता है। प्रत्यागामी इंजन में एक या अधिक पिस्टन होते हैं जो प्रत्यागामी गति (reciprocating motion) करते हैं और इस प्रकार दाब का समुचित ढ़ंग से गति में परिवर्तन करते हैं। पिस्टन की यह प्रत्यागामी गति अन्तत: क्रैंक एवं क्रैंक-शाफ्ट की सहायता से घूर्णन गति में बदल दी जाती है। प्रत्यागामी इंजन, वाह्य दहन इंजन तथा अन्तर्दहन इंजन दोनो में प्रयुक्त होता है। .

देखें पिस्टन और प्रत्यागामी इंजन

भाप का इंजन

एक स्वयं-प्रगामी (self-propelled) वाष्पयान एक संरक्षित अपूर्ण पोर्टेबल वाष्पयान (टेन्टरफिल्ड एन एस डब्ल्यू) वाष्पयान या भाप का इंजन एक प्रकार का उष्मीय इंजन है जो कार्य करने के लिये जल-वाष्प का प्रयोग करता है। भाप के इंजन अधिकांशतः वाह्य दहन इंजन होते हैं जिसमें रैंकाइन चक्र (Rankine cycle) नामक उष्मा-चक्र (heat cycle) काम में लाया जाता है। कुछ वाष्पयान सौर उर्जा, नाभिकीय उर्जा या जिओथर्मल उर्जा से भी चलते हैंइसकी खोज १७६३ में हुई .

देखें पिस्टन और भाप का इंजन

वाल्व

एक वाल्व और उसकी आन्तरिक संरचना वाल्व (Valve) वे यांत्रिक युक्तियाँ हैं जिनका उपयोग पाइप तथा जैविक वाहिकाओं (vessels) में तरल के प्रवाह को रोकने के लिए किया जाता है1 शरीर-क्रिया विज्ञान (physiology) में भी इस शब्द (वाल्व) का प्रयोग उन प्राकृतिक युक्तियों के लिए किया जाता है, जो शरीर में वे ही कार्य करती हैं जिन्हें यांत्रिक वाल्व करते हैं। इन प्राकृतिक युक्तियों में हृदय के वाल्व उल्लेखनीय हैं, जो खुलकर या बंद होकर हृदयकोष्ठ से रक्त के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं। .

देखें पिस्टन और वाल्व

गैस

गैसों का कण मॉडल: गैसों के कणों के बीच की औसत दूरी अपेक्षाकृत अधिक होती है। गैस (Gas) पदार्थ की तीन अवस्थाओं में से एक अवस्था का नाम है (अन्य दो अवस्थाएँ हैं - ठोस तथा द्रव)। गैस अवस्था में पदार्थ का न तो निश्चित आकार होता है न नियत आयतन। ये जिस बर्तन में रखे जाते हैं उसी का आकार और पूरा आयतन ग्रहण कर लेते हैं। जीवधारियों के लिये दो गैसे मुख्य हैं, आक्सीजन गैस जिसके द्वारा जीवधारी जीवित रहता है, दूसरी जिसे जीवधारी अपने शरीर से छोड़ते हैं, उसका नाम कार्बन डाई आक्साइड है। इनके अलावा अन्य गैसों का भी बहु-प्रयोग होता है, जैसे खाना पकाने वाली रसोई गैस। पानी दो गैसों से मिलकर बनता है, आक्सीजन और हाइड्रोजन। .

देखें पिस्टन और गैस

गैस संपीडक

गैस संपीडक (gas compressor) एक यांत्रिक युक्ति है जो गैस का आयतन घटाकर उसका दाब बढ़ा देती है। कम्प्रेसर और पम्प में समानता है - दोनो ही किसी तरल का दाब बढ़ाते हैं और दोनो ही किसी पाइप से तरल को ला-लेजा (यातायात) सकते हैं। चूंकि गैसें संपीड्य (compressible) हैं इसलिये गैस संपीडक गैस का आयतन भी कम करता है जबकि द्रव अपेक्षाकृत बहुत कम संपीड्य होने कारण पम्प द्रव का आयतन बहुत ही कम बदल पाते हैं। (अर्थात, पम्प का मुख्य काम दाबढ़ाना है, न कि आयतन कम करना) .

देखें पिस्टन और गैस संपीडक

अन्तर्दहन इंजन

42-सिलिण्डर वाला JSC Zvezda M503 डीजल इंजन, 2940 kW अन्तर्दहन इंजन (अन्तः दहन इंजन या आन्तरिक दहन इंजन या internal combustion engine) ऐसा इंजन है जिसमें ईंधन एवं आक्सीकारक सभी तरफ से बन्द एक बेलानाकार दहन कक्ष में जलते हैं। दहन की इस क्रिया में प्रायः हवा ही आक्सीकारक का काम करती है। जिस बन्द कक्ष में दहन होता है उसे दहन कक्ष (कम्बशन चैम्बर) कहते हैं। दहन की यह अभिक्रिया ऊष्माक्षेपी (exothermic reaction) होती है जो उच्च ताप एवं दाब वाली गैसें उत्पन्न करती है। ये गैसें दहन कक्ष में लगे हुए एक पिस्टन को धकेलती हुए फैलतीं है। पिस्टन एक कनेक्टिंग रॉड के माध्यम से एक क्रेंक शाफ्ट(घुमने वाली छड़) से जुड़ा होता है, इस प्रकार जब पिस्टन नीचे की तरफ जाता है तो कनेक्टिंग रॉड से जुड़ी क्रेंक शाफ्ट घुमने लगती है, इस प्रकार ईंधन की रासायनिक ऊर्जा पहले ऊष्मीय ऊर्जा में बदलती है और फिर ऊष्मीय ऊर्जा यांत्रिक उर्जा में बदल जाती है। अन्तर्दहन इंजन के विपरीत बहिर्दहन इंजन, (जैसे, वाष्प इंजन) में कार्य करने वाला तरल (जैसे वाष्प) किसी अन्य कक्ष में किसी तरल को गरम करके प्राप्त किया जाता है। प्रायः पिस्टनयुक्त प्रत्यागामी इंजन, जिसमें कुछ-कुछ समयान्तराल के बाद दहन होता है (लगातार नहीं), को ही अन्तर्दहन इंजन कहा जाता है किन्तु जेट इंजन, अधिकांश रॉकेट एवं अनेक गैस टर्बाइनें भी अन्तर्दहन इंजन की श्रेणी में आती हैं जिनमें दहन की क्रिया अनवरत रूप से चलती रहती है। .

देखें पिस्टन और अन्तर्दहन इंजन