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12 संबंधों: डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल, पितृवंश समूह ऍनओ, पितृवंश समूह ऍम, पितृवंश समूह ऍस, पितृवंश समूह पी, पितृवंश समूह के, भारतीय उपमहाद्वीप, मध्य एशिया, मनुष्य पितृवंश समूह, वंश समूह, आनुवंशिकी, अंग्रेज़ी भाषा।
डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल
डीएनए के घुमावदार सीढ़ीनुमा संरचना के एक भाग की त्रिविम (3-D) रूप डी एन ए जीवित कोशिकाओं के गुणसूत्रों में पाए जाने वाले तंतुनुमा अणु को डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल या डी एन ए कहते हैं। इसमें अनुवांशिक कूट निबद्ध रहता है। डी एन ए अणु की संरचना घुमावदार सीढ़ी की तरह होती है। डीएनए की एक अणु चार अलग-अलग रास वस्तुओं से बना है जिन्हें न्यूक्लियोटाइड कहते है। हर न्यूक्लियोटाइड एक नाइट्रोजन युक्त वस्तु है। इन चार न्यूक्लियोटाइडोन को एडेनिन, ग्वानिन, थाइमिन और साइटोसिन कहा जाता है। इन न्यूक्लियोटाइडोन से युक्त डिऑक्सीराइबोस नाम का एक शक्कर भी पाया जाता है। इन न्यूक्लियोटाइडोन को एक फॉस्फेट की अणु जोड़ती है। न्यूक्लियोटाइडोन के सम्बन्ध के अनुसार एक कोशिका के लिए अवश्य प्रोटीनों की निर्माण होता है। अतः डी इन ए हर एक जीवित कोशिका के लिए अनिवार्य है। डीएनए आमतौर पर क्रोमोसोम के रूप में होता है। एक कोशिका में गुणसूत्रों के सेट अपने जीनोम का निर्माण करता है; मानव जीनोम 46 गुणसूत्रों की व्यवस्था में डीएनए के लगभग 3 अरब आधार जोड़े है। जीन में आनुवंशिक जानकारी के प्रसारण की पूरक आधार बाँधना के माध्यम से हासिल की है। उदाहरण के लिए, एक कोशिका एक जीन में जानकारी का उपयोग करता है जब प्रतिलेखन में, डीएनए अनुक्रम डीएनए और सही आरएनए न्यूक्लियोटाइडों के बीच आकर्षण के माध्यम से एक पूरक शाही सेना अनुक्रम में नकल है। आमतौर पर, यह आरएनए की नकल तो शाही सेना न्यूक्लियोटाइडों के बीच एक ही बातचीत पर निर्भर करता है जो अनुवाद नामक प्रक्रिया में एक मिलान प्रोटीन अनुक्रम बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। वैकल्पिक भानुमति में एक कोशिका बस एक प्रक्रिया बुलाया डीएनए प्रतिकृति में अपने आनुवंशिक जानकारी कॉपी कर सकते हैं। डी एन ए की रूपचित्र की खोज अंग्रेजी वैज्ञानिक जेम्स वॉटसन और के द्वारा सन १९५३ में किया गया था। इस खोज के लिए उन्हें सन १९६२ में नोबेल पुरस्कार सम्मानित किया गया। .
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पितृवंश समूह ऍनओ
मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ऍनओ या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप NO एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह के (ऍक्सऍलटी) से उत्पन्न हुई एक शाखा है। विश्व में इसकी उपशाखाओं - पितृवंश समूह ऍन और पितृवंश समूह ओ - के तो बहुत पुरुष मिलते हैं, लेकिन सीधा पितृवंश समूह ऍनओ का सदस्य आज तक कोई नहीं मिला है। फिर भी वैज्ञानिकों का मानना है के इसे समूह के वंशज कभी ज़रूर रहे होंगे। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ३०,०००-४०,००० वर्ष पहले एशिया में अरल सागर से पूर्व की ओर कहीं रहता था।Rootsi, Siiri et al.
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पितृवंश समूह ऍम
पितृवंश समूह ऍम का ओशिआनिया में फैलाव - आंकड़े बता रहें हैं के इन इलाकों के कितने प्रतिशत पुरुष इस पितृवंश के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ऍम या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप M एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह ऍमऍनओपीऍस से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष अधिकतर ओशिआनिया के द्वीप राष्ट्रों में मिलते हैं, जैसे की नया गिनी, फ़िजी, टोंगा, सोलोमन द्वीपसमूह, वग़ैराह। पश्चिमी नया गिनी में (जो इण्डोनेशिया का एक राज्य है) अधिकाँश पुरुष इसी पितृवंश समूह के वंशज हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ३२,०००-४७,००० वर्ष पहले दक्षिण पूर्व एशिया या ओशिआनिया के मॅलानिशिया क्षेत्र में रहता था।Laura Scheinfeldt, Françoise Friedlaender, Jonathan Friedlaender, Krista Latham, George Koki, Tatyana Karafet, Michael Hammer and Joseph Lorenz, "," Molecular Biology and Evolution 2006 23(8):1628-1641 .
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पितृवंश समूह ऍस
ओशिआनिया में पितृवंश समूह ऍस का फैलाव - आंकड़े बता रहे हैं के किसी भी इलाक़े के कितने प्रतिशत पुरुष इसके वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ऍस या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप S एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह ऍमऍनओपीऍस से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष ज़्यादातर ओशिआनिया के मेलानेशिया क्षेत्र में बसते हैं, लेकिन कुछ-कुछ इण्डोनेशिया के नज़दीकी हिस्सों में भी पाए जाते हैं। माना जाता है के मूल पितृवंश समूह ऍस जिस पुरुष के साथ आरम्भ हुआ वह आज से २८,०००-४१,००० साल पहले नया गिनी या उसके इर्द-गिर्द के किसी इलाक़े का रहने वाला था।Laura Scheinfeldt, Françoise Friedlaender, Jonathan Friedlaender, Krista Latham, George Koki, Tatyana Karafet, Michael Hammer and Joseph Lorenz, "," Molecular Biology and Evolution 2006 23(8):1628-1641 .
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पितृवंश समूह पी
भारत के माडिया गोंड समुदाय के २५% पुरुष पितृवंश समूह पी के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह पी या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप P एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह ऍमऍनओपीऍस से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष भारत में कुछ समुदायों में ही मिलते हैं - मणिपुर के ३०% मुस्लिम पुरुष और गोंड जनजाति की माडिया शाखा के २५% पुरुष इसके सदस्य हैं। यूरोप में क्रोएशिया के ह्वार द्वीप पर भी कुछ पुरुष इसके वंशज हैं। चाहे पितृवंश समूह पी के सीधे वंशज कम हों, लेकिन इस से उत्पन्न क्यु और आर उपशाखाओं के वंशज यूरोप, मध्य एशिया, दक्षिण एशिया, उत्तर अमेरिका और दक्षिण अमेरिका पर करोड़ों की संख्या में दूर-दूर तक फैले हुए हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से पितृवंश समूह पी शुरू हुआ वह आज से लगभग २७,०००-४१,००० वर्ष पहले जीवित था और मध्य एशिया या साइबेरिया में रहता था। .
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पितृवंश समूह के
ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी समुदायों के कई पुरुष पितृवंश समूह 'के' (K) के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह के या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप K एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह आईजेके से उत्पन्न हुई एक शाखा है। अंदाज़ा लगाया जाता है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ४७,००० वर्ष पहले दक्षिण एशिया या पश्चिम एशिया में रहता था। इस पितृवंश समूह के सदस्य ओशिआनिया के द्वीपों पर और ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी समुदायों में मिलते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप, इण्डोनेशिया और फ़िलीपीन्स के भी आदिवासी समुदायों में भी बहुत कम संख्या में भी इसके वंशज पुरुष मिलते हैं। .
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भारतीय उपमहाद्वीप
भारतीय उपमहाद्वीप का भौगोलिक मानचित्र भारतीय उपमहाद्वीप, एशिया के दक्षिणी भाग में स्थित एक उपमहाद्वीप है। इस उपमहाद्वीप को दक्षिण एशिया भी कहा जाता है भूवैज्ञानिक दृष्टि से भारतीय उपमहाद्वीप का अधिकांश भाग भारतीय प्रस्तर (या भारतीय प्लेट) पर स्थित है, हालाँकि इस के कुछ भाग इस प्रस्तर से हटकर यूरेशियाई प्रस्तर पर भी स्थित हैं। .
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मध्य एशिया
मध्य एशिया एशिया के महाद्वीप का मध्य भाग है। यह पूर्व में चीन से पश्चिम में कैस्पियन सागर तक और उत्तर में रूस से दक्षिण में अफ़ग़ानिस्तान तक विस्तृत है। भूवैज्ञानिकों द्वारा मध्य एशिया की हर परिभाषा में भूतपूर्व सोवियत संघ के पाँच देश हमेशा गिने जाते हैं - काज़ाख़स्तान, किरगिज़स्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़बेकिस्तान। इसके अलावा मंगोलिया, अफ़ग़ानिस्तान, उत्तरी पाकिस्तान, भारत के लद्दाख़ प्रदेश, चीन के शिनजियांग और तिब्बत क्षेत्रों और रूस के साइबेरिया क्षेत्र के दक्षिणी भाग को भी अक्सर मध्य एशिया का हिस्सा समझा जाता है। इतिहास में मध्य एशिया रेशम मार्ग के व्यापारिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। चीन, भारतीय उपमहाद्वीप, ईरान, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच लोग, माल, सेनाएँ और विचार मध्य एशिया से गुज़रकर ही आते-जाते थे। इस इलाक़े का बड़ा भाग एक स्तेपी वाला घास से ढका मैदान है हालाँकि तियान शान जैसी पर्वत शृंखलाएँ, काराकुम जैसे रेगिस्तान और अरल सागर जैसी बड़ी झीलें भी इस भूभाग में आती हैं। ऐतिहासिक रूप मध्य एशिया में ख़ानाबदोश जातियों का ज़ोर रहा है। पहले इसपर पूर्वी ईरानी भाषाएँ बोलने वाली स्किथी, बैक्ट्रियाई और सोग़दाई लोगों का बोलबाला था लेकिन समय के साथ-साथ काज़ाख़, उज़बेक, किरगिज़ और उईग़ुर जैसी तुर्की जातियाँ अधिक शक्तिशाली बन गई।Encyclopædia Iranica, "CENTRAL ASIA: The Islamic period up to the Mongols", C.
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मनुष्य पितृवंश समूह
मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह उस वंश समूह या हैपलोग्रुप को कहते हैं जिसका पुरुषों के वाए गुण सूत्र (Y-क्रोमोज़ोम) पर स्थित डी॰एन॰ए॰ की जांच से पता चलता है। अगर दो पुरुषों का पितृवंश समूह मिलता हो तो इसका अर्थ होता है के उनका हजारों साल पूर्व एक ही पुरुष पूर्वज रहा है, चाहे आधुनिक युग में यह दोनों पुरुष अलग-अलग जातियों से सम्बंधित ही क्यों न हों। .
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वंश समूह
आण्विक क्रम-विकास के अध्ययन में वंश समूह या हैपलोग्रुप ऐसे जीन के समूह को कहतें हैं जिनसे यह ज्ञात होता है के उस समूह को धारण करने वाले सभी प्राणियों का एक ही पूर्वज था। .
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आनुवंशिकी
पैतृक गुणसूत्रों के पुनर्संयोजन के फलस्वरूप एक ही पीढी की संतानें भी भिन्न हो सकती हैं। आनुवंशिकी (जेनेटिक्स) जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत आनुवंशिकता (हेरेडिटी) तथा जीवों की विभिन्नताओं (वैरिएशन) का अध्ययन किया जाता है। आनुवंशिकता के अध्ययन में ग्रेगर जॉन मेंडेल की मूलभूत उपलब्धियों को आजकल आनुवंशिकी के अंतर्गत समाहित कर लिया गया है। प्रत्येक सजीव प्राणी का निर्माण मूल रूप से कोशिकाओं द्वारा ही हुआ होता है। इन कोशिकाओं में कुछ गुणसूत्र (क्रोमोसोम) पाए जाते हैं। इनकी संख्या प्रत्येक जाति (स्पीशीज) में निश्चित होती है। इन गुणसूत्रों के अंदर माला की मोतियों की भाँति कुछ डी एन ए की रासायनिक इकाइयाँ पाई जाती हैं जिन्हें जीन कहते हैं। ये जीन गुणसूत्र के लक्षणों अथवा गुणों के प्रकट होने, कार्य करने और अर्जित करने के लिए जिम्मेवार होते हैं। इस विज्ञान का मूल उद्देश्य आनुवंशिकता के ढंगों (पैटर्न) का अध्ययन करना है अर्थात् संतति अपने जनकों से किस प्रकार मिलती जुलती अथवा भिन्न होती है। .
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अंग्रेज़ी भाषा
अंग्रेज़ी भाषा (अंग्रेज़ी: English हिन्दी उच्चारण: इंग्लिश) हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में आती है और इस दृष्टि से हिंदी, उर्दू, फ़ारसी आदि के साथ इसका दूर का संबंध बनता है। ये इस परिवार की जर्मनिक शाखा में रखी जाती है। इसे दुनिया की सर्वप्रथम अन्तरराष्ट्रीय भाषा माना जाता है। ये दुनिया के कई देशों की मुख्य राजभाषा है और आज के दौर में कई देशों में (मुख्यतः भूतपूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में) विज्ञान, कम्प्यूटर, साहित्य, राजनीति और उच्च शिक्षा की भी मुख्य भाषा है। अंग्रेज़ी भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती है। यह एक पश्चिम जर्मेनिक भाषा है जिसकी उत्पत्ति एंग्लो-सेक्सन इंग्लैंड में हुई थी। संयुक्त राज्य अमेरिका के 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध और ब्रिटिश साम्राज्य के 18 वीं, 19 वीं और 20 वीं शताब्दी के सैन्य, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव के परिणाम स्वरूप यह दुनिया के कई भागों में सामान्य (बोलचाल की) भाषा बन गई है। कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रमंडल देशों में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल एक द्वितीय भाषा और अधिकारिक भाषा के रूप में होता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति ५वीं शताब्दी की शुरुआत से इंग्लैंड में बसने वाले एंग्लो-सेक्सन लोगों द्वारा लायी गयी अनेक बोलियों, जिन्हें अब पुरानी अंग्रेजी कहा जाता है, से हुई है। वाइकिंग हमलावरों की प्राचीन नोर्स भाषा का अंग्रेजी भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। नॉर्मन विजय के बाद पुरानी अंग्रेजी का विकास मध्य अंग्रेजी के रूप में हुआ, इसके लिए नॉर्मन शब्दावली और वर्तनी के नियमों का भारी मात्र में उपयोग हुआ। वहां से आधुनिक अंग्रेजी का विकास हुआ और अभी भी इसमें अनेक भाषाओँ से विदेशी शब्दों को अपनाने और साथ ही साथ नए शब्दों को गढ़ने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। एक बड़ी मात्र में अंग्रेजी के शब्दों, खासकर तकनीकी शब्दों, का गठन प्राचीन ग्रीक और लैटिन की जड़ों पर आधारित है। .
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पितृवंश समूह ऍमऍनओपीऍस के रूप में भी जाना जाता है।